हाथो में जाम थामे विराज पूरी महफ़िल में झूमता सा दिख रहा था..,
कुंवर प्रताप सिंह का बेटा विराज जिसका व्यक्तित्व देखने में बिन्दास ,मन मौजी सा ,मगर अन्दर से गंभीर, शांत व्यक्तित्व का स्वामी था।
विराज की ख़ुशी की वजह सौम्या का पार्टी मे होना ही था ।
शांत स्वभाव वाली सौम्या,..सोने जैसा रंग और उस पर नीले रगं के लिबास में लिपटी पार्टी में सब से मिल रही थी।
कुंवर प्रताप सिंह के चरण स्पर्श कर उनको उनके जन्मदिन की हार्दिक बधाई देती है कुँवर प्रताप सिंह जाने माने शहर के लोगों में से एक है .. सौम्या उनके दोस्त की बेटी जो इंग्लैंड से डिग्री ले आई थी अभी।
विराज की नज़रें सौम्या पर ही थी।धड़कते दिल से सौम्या के पास आया और धीरे से अपने होंठ सौम्या के कान के पास ले जा पूछने लगा ! कब आई इंग्लैंड से ? मुझे बताया नहीं ,कि तुम आने वाली हो।सौम्या ने मुड़ कर देखा तो विराज को अपने बेहद क़रीब पाया।विराज कहता जा रहा था। सौम्या तुम पर तो इंग्लैंड का रंग बिलकुल नही चढा।
वही हीरे जैसी चमकती आँखे जो झील से भी गहरी है ..पार्टी में म्यूज़िक की आवाज़ ऊँची होने पर भी सौम्या विराज की हर बात को सुन पा रही थी। सौम्या ने इक नज़र विराज को देखा, और बिना कुछ कहे आगे निकल गई। विराज सौम्या के पास जा कर कहने लगा !
तुम से बात करनी है मुझे ..इतने सालों के बाद तुम्हें मिल रहा हूँ और तुम ….,
सौम्या बोली !
होश में तो आप आ जायें पहले,फिर बात भी कर लूँगी और फिर जल्दी से कुंवर प्रताप सिंह से इजाज़त ले कर पार्टी से निकल गई। विराज को लगा जैसे कोई हवा का झोंका आया और उसके दिल और दिमाग़ पर तूफ़ान सा छोड़ गया और उसके बाद पार्टी में क्या हुआ,सबसे बेख़बर सा ,लुटा लुटा सोच रहा था।पार्टी तो चल रही है लोग भी है यहाँ, पर मैं क्यों ख़ाली ख़ाली सा महसूस कर रहा हूँ।क्या हो गया मुझे इक दम अचानक से ? वजह भी जानता था विराज ….
ज़िन्दगी में कोई ख़ास ऐसा होता ही है .. जिस के होने,या न होने से बहुत फ़र्क़ पड़ता है ..ऐसा कोई ख़ास शख़्स ,रूह से जुड़ा होता है
जिस के बिना हर चीज़ बे-मायने हो जाती है।और उसकी जुदाई आप की रूह को जला डालती है ।
उसे याद आ रहा था कि कैसे सौम्या और वो इक दूजे को चाहते थे मगर विराज की शादी रोशनी से,जो शहर के जाने माने रईस की बेटी थी तय कर दी गई थी ।जब सौम्या को उसकी सगाई का पता चला तो बिना कुछ कहे लंदन चली गई थी .. .. सौम्या की नाराज़गी से वाक़िफ़ था विराज।
इक रोज़ विराज ने सौम्या को काफ़ी के लिए बुलाया।
सौम्या के लिए न करना आसान नही था।रेस्टोरेन्ट में सौम्या का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा विराज बार बार घड़ी देख रहा था तभी उसने सौम्या को देखा आते हुये देखा…
कच्चे पीले रंग का दुपट्टा ,जो बार बार लहरा कर उसके चेहरे को ढके जा रहा था ,उसपर आँखो पर काला चश्मा बेहद खूबसूरत लग रहा था।
सौम्या की गंभीर आँखों को देख कर विराज बोला! नाज़ है मुझे मेरी पसंद पर ..
तुम कुछ भी न कहो चाहे ,सौम्या मगर
मेरी मौजूदगी तुम्हारी आँखों में आज भी साफ़ दिख रही है…
. वजूद तो तुम्हारा है वहाँ …मगर मेरी ही तालाश में ..
अक्सर तुम्हारी तसवीर देखता हूँ तुम्हारे फ़ोन पर
होंठों पर मुस्कुराहट तो होती है वहाँ..मगर फीकी फीकी सी …. जैसे तुम्हारी आँखे देखती तो सबको है ,मगर ढूँढती मुझे ही है।
सौम्या बोली! इतना जानते हो मुझे ,तो ये भी जानते होंगे कि मैं नाराज़ हूँ आप से।मेरे लिए ,मेरी चाहत के लिए जरा सा भी लड़ नहीं पाये किसी से ..और मुझे नहीं पता था कि आप रोशनी से शादी कर लोगे ।मुझे लगा !आप और मैं …कहते कहते सौम्या का गला भर आया।सौम्या कहती जा रही थी..विराज आप भागते जा रहे हो दुनिया की चाहते ले कर ..और मैं …कुछ न चाह कर ..बस आप तक ही आ कर ठहर गई थी मगर आप वहाँ न ठहर सके।विराज बोला !
तुम ने ये कैसे सोचा कि मैं रोशनी से शादी करूँगा। मेरी मजबूरी थी वो ,शायद तुम्हें नहीं पता।जब मेरी सगाई की हुई ।तब पापा की तबियत इक दम से ख़राब हो गई थी और पापा दिल्ली अस्पताल में दाखिल थे।तब मैं पापा से कुछ नहीं कहना चाहता था ,मगर कुछ दिन बाद मैंने वो रिश्ता खुद ही तोड़ दिया था। रोशनी ने भी इस बात को समझा कि वो मेरे साथ कभी ख़ुश नहीं रह पायेगी।तब तक तुम जा चुकी थी। तुम ने मुझ से कोई सवाल नहीं किया ,न ही कभी कोई जवाब माँगा.. भरोसा नहीं था मुझ पर ,या मेरे प्यार पर ..कितना इन्तज़ार किया है मैंने तुम्हारा ।मैं तुम्हें चाहता था मगर खुद ही जान नहीं पाया मैं, कि तुम मेरे लिए कितनी ज़रूरी थी।तुम्हीं मेरा प्यार हो ,तुम मेरा बचपन हो ,.. तुम ही तो हो जिस ने मेरे दिल पर राज किया है।
सौम्या बोली! तो क्या आप रोशनी को चाहते नहीं थे।पागल हो तुम !
इतना भी पहचान नहीं पाई मुझे।विराज का यूँ सौम्या को पागल कहना ,सौम्या को इक अपनेपन का अहसास करवा रहा था
विराज बोला।रोशनी को बचपन से जानता ज़रूर हूँ मगर अपनी पत्नी के रूप में उसे कभी नहीं देखा था।
मेरी बेशुमार चाहतों की तुम ही अकेली वारिस रही हो।
सौम्या बोली !विराज
पिछले चार सालों में मैंने दर्द तो सहा ,मगर आप से नाराज़ नहीं हो पाई।विराज बोला ! सौम्या किसी से हँस कर बात करना ,प्यार नहीं होता .. ,जो दिल मे छिपा रहता है वही प्यार है,ज़ाहिर रिश्तों मे गहराई नही हुआ करती।रोशनी मेरी दोस्त से ज़्यादा कुछ भी नहीं ..याद है मुझे इक रोज़ तुम ने कहा !तुम मुझ से कभी बात नहीं करोगी ,न ही कभी मिलोगी।ये सोच कर मैं अक्सर बेचैन रहता था ,फिर तुम मुझे छोड़ कर इंग्लैंड पढ़ने चली गई और तुम्हें देखने की मेरी तमन्ना मुझे दिवाना बना दिया करती।कभी कभी तो जैसे पंजाबी में कहते हैं न,खो पढ़ जाना ऐसे तुम्हें देखने के लिए मुझे हुआ करती थी।तुम नहीं थी यहाँ , मैं खुद को काम मे बीज़ी रखने लगा, पार्टियों में जाने लगा,गाने सुनता मगर सकून मुझ से कोसों दूर ही रहा।
तुम्हारी याद मुझे बेचैन रखती।बहुत मिस करता था तुम्हें।
मिस करना जैसा लफ़्ज़ शायद बहुत छोटा है।सौम्या को, ये सब सुनना कहीं न कहीं सकून दे रहा था।अच्छा लग रहा था कि विराज को भी उसकी कमी का अहसास होता रहा है ..जैसे वो खुद महसूस किया करती थी।विराज कहता जा रहा था लोगों की नज़रों में जो मैं दिखता हूँ मैं वैसा बिलकुल भी नहीं .. सौम्या बोली !
विराज मेरी नाराज़गी अपनी जगह थी .. फ़िक्र अपनी जगह थी ..नही चाहती थी कि तुम से बात करूँ कभी ..मगर मुझे भी बार बार तलब उठती थी ..तुम्हें देखने की . ..तुम से बात करने की मगर मैं खुद को रोक लेती थी।
विराज कहने लगा जितनी ऊँची दिवारें तुम बनाती रही अपने इर्द गिर्द ,उतनी ही मेरी चाहत बढ़ती रही।विराज ने सौम्या का हाथ पकड़ कर धीरे से कहा !अगर तुम्हारी इजाज़त हो तो मैं अपने पापा से बात करूँ शादी की ?
और सौम्या ने भरी आँखों से अपना सर विराज के कंधे पर रख दिया जैसे हाँ की स्वीकृति दे रही हो ..
दोस्तों !
ग़लतफ़हमियाँ ही वजह बनती है दूरियों की … वक़्त रहते उन्हें सुलझा लेना चाहिए क्योंकि
कोई भरोसा नही ,कब ज़िन्दगी बेवफ़ाई कर हमारे अपनों को हम से दूर ले जाये और हमारे हाथ तरसने ..तड़पने और बेचैन होने के इलावा कोई रास्ता ही न बचे।
यही मेरी इल्तिजा है सब के लिए ..वक़्त रहते.. अपने दिल के क़रीब रिश्तों को संभाल लीजिए .. —स्मिता केंथ
लेख/विचार
पत्रकारिता में विश्वास बहाल करना: नैतिक पत्रकारों की जिम्मेदारी!
सनसनीखेज और अनैतिक पत्रकारिता:
डिजिटल मीडिया और 24/7 समाचार चक्र के युग में, सनसनीखेज और क्लिकबेट रणनीति प्रचलित हो गई है। कुछ पत्रकार तथ्य-जाँच और गहन रिपोर्टिंग के बजाय आकर्षक सुर्खियाँ बनाने और दर्शकों को आकर्षित करने को प्राथमिकता देते हैं। यह दृष्टिकोण न केवल जनता को गुमराह करता है बल्कि समग्र रूप से पत्रकारिता में विश्वास को भी ख़त्म करता है।
अनैतिक प्रथाएँ, जैसे मनगढ़ंत कहानियाँ, पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग और भुगतान की गई सामग्री, समस्या को और बढ़ा देती हैं। ये कार्रवाइयां न केवल पत्रकारिता की अखंडता को कमजोर करती हैं बल्कि सूचना के भरोसेमंद स्रोत के रूप में कार्य करने की पत्रकारों की क्षमता को भी कम करती हैं।
पत्रकारों की भूमिका:
नैतिक पत्रकार सत्य और निष्पक्षता के संरक्षक होते हैं। उन्हें पत्रकारिता के मूल मूल्यों को बनाए रखने में आगे आना चाहिए और अपने साथियों के लिए रोल मॉडल के रूप में कार्य करना चाहिए। सटीक रिपोर्टिंग, संतुलित कवरेज और पेशेवर मानकों के पालन के लिए प्रतिबद्ध होकर, नैतिक पत्रकार खोए हुए विश्वास को फिर से बनाने में मदद कर सकते हैं।
- तथ्य-जांच और सत्यापन पर जोर देना:
नैतिक पत्रकार गति से अधिक सटीकता को प्राथमिकता देते हैं। उन्हें जनता तक जानकारी प्रसारित करने से पहले कई स्रोतों से जानकारी सत्यापित करनी होगी। तथ्य-जाँच न केवल पत्रकार की विश्वसनीयता की रक्षा करती है बल्कि दर्शकों को गलत सूचना से भी बचाती है।
- सनसनीखेज और क्लिकबेट से बचना:
जिम्मेदार पत्रकार सनसनीखेज और क्लिकबेट हेडलाइन के प्रलोभन का विरोध करते हैं। वे ठोस और सार्थक सामग्री प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो जनता की निष्पक्ष जानकारी की आवश्यकता को पूरा करती है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही:
नैतिक पत्रकार अपने स्रोतों, कार्यप्रणाली और हितों के संभावित टकराव के बारे में पारदर्शी होते हैं। वे प्रतिक्रिया और सुधारों का स्वागत करते हैं, यह स्वीकार करते हुए कि कोई भी अचूक नहीं है।
- साथियों को जवाबदेह बनाना:
अपने स्तर की समस्या का समाधान करने के लिए, नैतिक पत्रकारों को अपने साथी पेशेवरों को जवाबदेह ठहराने से नहीं कतराना चाहिए। पत्रकारिता समुदाय के भीतर रचनात्मक आलोचना और चर्चाएं सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं और जिम्मेदार रिपोर्टिंग के महत्व को सुदृढ़ कर सकती हैं।
मीडिया संगठनों का महत्व:
मीडिया संगठन नैतिक पत्रकारिता की संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें सभी स्तरों पर पत्रकारिता की अखंडता को बढ़ावा देते हुए अपने कर्मचारियों के लिए सख्त आचार संहिता बनानी और लागू करनी चाहिए। न्यूज़रूम में विविधता को प्रोत्साहित करने से व्यापक परिप्रेक्ष्य और अधिक संतुलित रिपोर्टिंग हो सकती है।
आज पत्रकारिता के सामने आने वाली चुनौतियों के लिए इस पेशे की प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए नैतिक पत्रकारों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। पारदर्शिता, सटीकता और निष्पक्ष रिपोर्टिंग को सक्रिय रूप से बढ़ावा देकर, वे जनता का विश्वास बहाल कर सकते हैं और सनसनीखेज और अनैतिक प्रथाओं के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला कर सकते हैं। इसके अलावा, मीडिया संगठनों को मजबूत आंतरिक जांच और संतुलन लागू करके नैतिक पत्रकारिता का समर्थन करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
अंततः, सत्य के समर्थक और सत्यनिष्ठा के संरक्षक बनने की जिम्मेदारी स्वयं पत्रकारों की है। केवल नैतिक पत्रकारिता के प्रति सामूहिक प्रतिबद्धता के माध्यम से ही यह पेशा लोकतंत्र की आधारशिला और जनता के लिए विश्वसनीय जानकारी के अमूल्य स्रोत के रूप में अपना दर्जा फिर से हासिल कर सकता है।
और अब सनातन पर राजनीति- डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)
बीते सप्ताह इन्दौर के एक मन्दिर की सीढ़ी पर एक हिन्दू संगठन द्वारा तमिलनाडु के मन्त्री उदयनिधि स्टालिन की फोटो लगा दी गयी| मन्दिर में आने-जाने वाले श्रद्धालु इस फोटो पर पैर रखकर उदयनिधि के उस बयान का विरोध जता रहे थे, जिसमें उन्होंने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना से करते हुए इसे मिटाने की बात कही थी| 6 सितम्बर को अपने मन्त्रियों के साथ बैठक करते हुए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भी उदयनिधि स्टालिन के उक्त बयान का सही तथ्यों के साथ विरोध करने का आह्वाहन किया था| उसके बाद 14 सितम्बर को उन्होंने स्वयं मध्य प्रदेश के बीना में एक सभा को सम्बोधित करते हुए सनातन धर्म की आलोचना करने वालों पर सार्वजनिक रूप से हल्ला बोला| बीजेपी के अलावा अनेक धर्मगुरु भी उदयनिधि के साथ-साथ विपक्षी पार्टियों के गठबन्धन इण्डिया को घेरने में लगे हुए हैं| क्योंकि उदयनिधि की पार्टी डीएमके इण्डिया गठबन्धन में शामिल है| इसके बाद से राजनीतिक विश्लेषक यह मानने लगे हैं कि 2024 के चुनाव का यह एक अहम मुद्दा बन सकता है| हालाकि कांग्रेस सहित गठबन्धन के अन्य सभी दल इसे उदयनिधि का व्यक्तिगत विचार बताते हुए स्वयं को इस मुद्दे से अलग करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं| इस बीच भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का आक्रामक रुख देखते हुए द्रमुक के अन्य नेताओं ने भी उदयनिधि के सुर में सुर मिलाकर और भी ज्यादा खतरनाक बयान दिये| किसी ने सनातन धर्म की तुलना एड्स से तो किसी ने खूंख्वार जानवरों से की| परन्तु बाद में द्रमुक के सर्वेसर्वा तमिलनाडु के मुख्यमन्त्री एमके स्टालिन ने अपने नेताओं को इस मुद्दे पर बोलने से रोक दिया| क्योंकि उन्हें समझ में आने लगा था कि भाजपा इसका पूरा-पूरा फायदा ले रही है| लेकिन भाजपा और उसके सहयोगी दल चुनाव तक हर हाल में द्रमुक नेताओं के सनातन विरोधी बयान को ताजा और महत्वपूर्ण बनाये रखना चाहते हैं|
गौरतलब है कि डीएमके मुखिया एवं तमिलनाडु के मुख्य मन्त्री एमके स्टालिन के पुत्र तथा प्रदेश सरकार के मन्त्री उदयनिधि स्टालिन ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि ‘सनातन का बस विरोध नहीं किया जाना चाहिए, इसे समाप्त ही कर देना चाहिए| यह धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है| हम डेंगू, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते, हमें इसे मिटाना है| इसी तरह हमें सनातन को भी मिटाना है|’ इसके बाद प्रधानमन्त्री सहित बीजेपी नेताओं और धर्म गुरुओं ने द्रमुक तथा विपक्षी गठ्बन्धन इण्डिया पर चौतरफा हमला बोल दिया| तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन को शुरू में यह लगा कि वह अपने बेटे को सनातन विरोधी साबित करके तमिल राजनीति में मजबूती से स्थापित कर लेंगे| अतः उनकी सह पर द्रमुक के अन्य सभी नेता भी बाबले हो गये और सनातन धर्म पर अनाप-शनाप बयानबाजी करने लगे| लेकिन जल्द ही द्रमुक मुखिया को अपना कदम उल्टा पड़ता नजर आया और अब वह इस विषय से दूर होते नजर आ रहे हैं| इण्डिया गठबन्धन के कई घटक दलों ने भी उदयनिधि के बयान की निन्दा की है| आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने कहा कि ‘मैं सनातन धर्म से हूँ, मैं ऐसे बयानों की निन्दा और विरोध करता हूँ| किसी को भी इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए| इस तरह की धर्म विरोधी टिप्पणी से हर किसी को बचना चाहिए|’ शिवसेना ने भी इसकी कड़ी निन्दा की| कांग्रेस के अन्दर इस बयान को लेकर दो तरह के विचार चल रहे हैं| आम आदमी पार्टी और शिव सेना के सख्त रूख के बाद से इण्डिया गठबन्धन में सनातन विरोधी मुद्दा अब कमजोर भले ही पड़ रहा हो लेकिन बीजेपी लगातार विपक्षी गठबन्धन पर हमलावर बनी हुई है| प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा है कि ‘देश के कोने कोने में हर सनातनी को, इस देश को प्यार करने वाले को, इस देश की मिटटी को प्यार करने वाले को, इस देश के कोटि-कोटि जनों को प्यार करने वालों को, हर किसी को सतर्क रहने की जरुरत है| सनातन को मिटाकर ये देश को फिर एक हजार साल की गुलामी में धकेलना चाहते हैं|’ मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘इण्डिया गठबन्धन सनातन को खत्म करने की कोशिश कर रहा है|’ वहीँ गृहमन्त्री अमित शाह का कथन है कि ‘वोटबैंक और तुष्टीकरण की राजनीति करने के लिए सनातन धर्म को समाप्त करने की बात की जा रही है|’ योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि ‘जो सनातन को गाली दे रहे हैं उन सबका 2024 में मोक्ष होने वाला है|’ कांग्रेसी नेता कमलनाथ ने अपना पक्ष रखते हुए स्पष्ट किया कि ‘हमारा देश सनातन धर्म का है, कोई कुछ भी कहे, डीएमके वाला कुछ कहे मैं उस चक्कर में नहीं हूँ|’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने इण्डिया गठबन्धन को नसीहत देते हुए कहा कि ‘मेरी सभी लोगों से प्रार्थना है कि ऐसा कुछ भी न कहें जिससे किसी की आस्था को चोट पहुँचे|’ आप नेता संजय सिंह ने कहा कि ‘उद्ययनिधि ने सनातन धर्म को लेकर जो बयान दिया है उससे हम लोग सहमत नहीं हैं|’ समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अली खान ने भाजपा पर आरोप जड़ते हुए कहा कि ‘भारतीय जनता पार्टी को साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के अलावा कोई काम नहीं आता है, उसमें वह माहिर हैं| लेकिन उनके कारनामों को देश की जनता पहचान चुकी है|’
सनातन के नाम पर अचानक मचे इस बवाल से देश के आम जन का चौकना स्वाभाविक है| क्योंकि नई पीढ़ी के लिए यह एक नया शब्द है, जिसे सम्प्रदाय या पन्थ के रूप में प्रतिष्ठित करके साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने की पुरजोर कोशिश हो रही है| अतः सनातन के अर्थ को समझना अति आवश्यक है| वस्तुतः सनातन का मूल अर्थ है: शाश्वत, सत्य, नित्य, प्राचीन, कभी नष्ट न होने वाला, जिसके प्रारम्भ का ज्ञान न हो तथा सदा रहने वाला|
मनुस्मृतिः के प्रथम अध्याय के श्लोक संख्या 7 में सनातन शब्द का उपयोग नित्य अर्थात सदैव के अर्थ में किया गया है| ‘योЅसावतीन्द्रियग्राह्यः सूक्ष्मोЅव्यक्तः सनातनः| सर्वभूतमेयोЅचिन्त्यः स एव स्वयमुद्वभौ|| अर्थात जो यह परमात्मा इन्द्रियों से ग्रहण नहीं किया जा सकता, शरीर रहित, सूक्ष्म रूप, नित्य, सब प्राणियों की आत्मा और चिन्तन करने के योग्य नहीं है, वह अपने आप प्रकट हुआ है|’ इसी अध्याय के श्लोक संख्या 23 में वेदों के लिए सनातन शब्द का प्रयोग हुआ है: ‘अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्| दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थमृग्यजुःसामलक्षणम्|| अर्थात ब्रह्मा ने यज्ञ की सिद्धि के लिए ऋक्, यजु और साम इन सनातन वेदों को अग्नि, पवन और सूर्य से क्रमशः प्रकट किया|’ श्रीमद्भगवतगीता के श्लोक संख्या 20 में शाश्वत को सनातन के अर्थ में तथा 23 में सनातन को शाश्वत के अर्थ में प्रस्तुत किया गया है: ‘न जायते म्रियते वा कदाचित्रायं भूत्वा भविता वा न भूयः| अजो नित्यः शाश्वतोЅयं पुराणोन हन्यते हन्यमाने शरीरे|| अर्थात यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है; शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता|’ श्लोक संख्या 23 में कहा गया है ‘अच्छेद्योЅयमदाह्योЅयमक्लेद्योЅशोष्य एव च| नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः|| अर्थात यह आत्मा अच्छेद्य(जो छेदा न जा सके), अदाह्य (जो जलाया न जा सके), अक्लेद्य(जो गीला न किया जा सके) और अशोष्य(जो सुखाया न जा सके) है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है|’ गरुड़ पुराण के प्रथम खण्ड के अध्याय पचास के श्लोक संख्या 28 में सूर्यदेव की स्तुति करते हुए उन्हें सनातन कहा गया है ‘त्वमेव ब्रह्म परमापोज्योतिरसोsЅमृतम्| भूर्भुवःस्वस्त्वमोंकरः सर्वो रुद्रः सनातनः|| अर्थात आप ही परम ब्रह्म, आप ही ज्योति रस और अमृत हैं| आप ही भूर्भुवः स्वः मन्त्र रुप हैं, आप ओंकार रूप एकादश रूद्र तथा सनातन हैं|’ गरुड़ पुराण के प्रथम खण्ड के ही अध्याय 205 के श्लोक संख्या 4 एवं 5 में सनातन शब्द का प्रयोग करते हुए धर्म को कुछ इस तरह परिभाषित किया गया है| ‘श्रुत्युक्तः परमो धर्मः स्मृतिशास्त्रगतोЅपरः| शिष्टाचारेण शिष्टानां त्रयो धर्म सनातनः|| सत्यं दानं दया लोभो विद्येज्या पूजनं दमः| अष्टौ तानि पवित्राणि शिष्टाचारस्य लक्षणम्|| अर्थात श्रुति युक्त धर्म तथा स्मृति में कहा कर्म ही परम धर्म है| शिष्टचार भी उत्तम धर्म है| ये तीनों ही धर्म सनातन हैं| सत्य, दान, दया, अलोभ, विद्या, यज्ञ, पूजा, तथा दम (इन्द्रिय दमन) ये आठ पवित्र शिष्टाचार के लक्षण हैं|’ इसी अध्याय के श्लोक संख्या 7, 8, 9 एवं 10 में धर्म के लक्षण बताते हुए अध्ययन, दान तथा शास्त्र सम्मत आचरणों को सनातन बताते हुए धर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है: ‘निवासमुख्या वर्णानां धर्माचाराः प्रकीर्त्तितः| सत्यं यज्ञस्तपो दानमेतद्धर्मस्य लक्षणम्|| अदत्तस्यानुपादानं दानमध्ययनं तपः| विद्या वित्तं तपः शौर्य्यं कुले जन्म त्वरोगिता|| संसारोच्छित्तिहेतुश्च धर्मादेव प्रवर्त्तते| धर्मात् सुखञ्च ज्ञानञ्च ज्ञानान्मोक्षोЅधिगम्यते|| इज्याध्ययनदानानि यथाशास्त्रं सनातनः| ब्रह्मक्षत्रियवैश्यानां सामान्यो धर्म उच्यते|| अर्थात निवास मुख्य (आश्रम अवस्था) कतिपय धर्माचरण के रूप में विख्यात है| सत्य, यज्ञ, तप, दान धर्म के लक्षण हैं| अदत्त द्रव्य का अनुपादान (न देने योग्य वस्तु के प्रति आसक्ति न होना), दान, अध्ययन, तप, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, यज्ञ ये सभी धर्म के लक्षण हैं| विद्या, वित्त, तपःप्रभाव, सतकुल जन्म, आरोग्य, संसार बन्धन से मुक्ति के लिए अर्थात इन सबको पाने के लिए धर्म में लगना उचित है| धर्म से ही सुख तथा ज्ञान प्राप्त होता है| ज्ञान से ही मोक्ष मिलता है| अतः शास्त्र के अनुसार किया गया यज्ञ, अध्ययन तथा दान आदि धर्म सनातन हैं| ये यज्ञादि ही मनुष्य मात्र के लिए सामान्य धर्म बताये गये हैं|
उपरोक्त से स्पष्ट होता है कि सनातन शब्द कोई सम्प्रदाय, पन्थ या रिलीजन का नाम नहीं है| बल्कि भारतीय संस्कृति के शाश्वत या प्राचीन स्वरुप को प्रतिष्ठित करने का माध्यम भर है| भारतीय संस्कृति किसी एक प्रवर्तक द्वारा स्थापित नहीं की गयी है| अपितु भारतीय उपमहाद्वीप में जन्में हजारों ऋषियों के ज्ञान, तपस्या तथा वर्षो बरस के अनुसन्धान से प्रस्फुटित हुई है| इसे किसी सम्प्रदाय या पन्थ की दृष्टि से देखना तथा डेंगू, मलेरिया और कोरोना की तरह नष्ट करने का विचार लाना अल्पज्ञता तथा मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है| विश्व भर के आपस में लड़ते-झगड़ते विभिन्न सम्प्रदाय एक साथ मिलकर भी इस संस्कृति का मुकाबला नहीं कर सकते| अल्पज्ञता के वशीभूत इन सम्प्रदायों से प्रभावित होकर जब हम इनकी दृष्टि से स्वयं को देखने का प्रयास करते हैं तो हमें भी एक वैसे ही नाम की आवश्यकता महसूस होती है| तब हम कभी हिन्दू तो कभी सनातनी बनकर स्वयं को संकीर्ण बनाने का प्रयास करते हैं| जबकि ये दोनों या ऐसा कोई भी शब्द भारतीय संस्कृति की व्यापकता का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है| हमारे पूर्वजों ने इसको जितना अधिक व्यापक बनाया उतना ही ग्राह्य भी बना दिया है| कोई भी व्यक्ति इसे आत्मसात करके मनुष्य से देवता तथा अवतारी पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो सकता है| श्रीराम तथा श्रीकृष्ण सहित अनेक महापुरुष इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं|
Read More »हिंदी भाषा का महत्व
हमारा देश विविध भाषाओं वाला देश है। हर प्रांत की अपनी एक बोली है, महत्व है फिर भी हिंदी एक ऐसी भाषा है जो सभी जगह आपसी संवाद के लिए सुगम्य है और अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती है और समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक संपर्क के माध्यम के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। सुमित्रानंदन पंत ने कहा था कि “हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिसके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। “हर साल में विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन भारत में 14 सितंबर को होता है।अलग-अलग तारीखों पर हिंदी दिवस मनाने का क्या औचित्य? विश्व हिंदी दिवस और राष्ट्रीय हिंदी दिवस में क्या अंतर है? हालांकि दोनों का उद्देश्य हिंदी का प्रसार करना ही है फिर भी दोनों में यह अंतर क्यों? यह अंतर भौगोलिक स्तर पर है और राष्ट्रीय हिंदी दिवस भारत में हिंदी को आधिकारिक दर्जा प्राप्त होने की खुशी में मनाया जाता है तो वहीं विश्व हिंदी दिवस दुनिया में हिंदी को वही दर्जा दिलाने के प्रयास में मनाया जाता है। पहला हिंदी दिवस नागपुर में 10 जनवरी 1974 में मनाया गया था। यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर का था, जिसमें 30 देश के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। आजादी के बाद हिंदी को राजभाषा बनाने के लिए कई बहसें हुईं। अहिंदी भाषी राज्य हिंदी को राजभाषा मानने के पक्ष में नहीं थे। दक्षिणी राज्य के लोग इसे अपने साथ अन्याय मान रहे थे इसलिए हिंदी भाषा राज्यों का विरोध देखते हुए संविधान निर्माता ने हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दे दिया और इस तरह 1953 को राजभाषा प्रचार समिति वर्धा ने 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया।
हालांकि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल नहीं है। राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अंतर लोग जल्दी से समझ नहीं पाते हैं। पहला अंतर इन्हें बोलने वाली संख्या से और दूसरा अंतर इनके प्रयोग करने का है। राष्ट्रभाषा जनसाधारण की भाषा होती है और राजभाषा सरकारी कार्यालय और सरकारी कर्मियों के द्वारा उपयोग में लाई जाती है। कुछ देशों में राजभाषा और राष्ट्रभाषा एक ही है लेकिन बहुभाषी देश में राजभाषा राष्ट्रभाषा अलग-अलग होती है। राष्ट्रभाषा किसी देश को एक करने के लिहाज से बेहद महत्त्वपूर्ण होती है। यही कारण है कि महात्मा गांधी ने वर्ष 1917 में गुजरात के भरूच में हुए गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की वकालत की थी- “भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।”
पूरे विश्व में 150 से अधिक देशों में फैले 2 करोड़ भारतीयों द्वारा हिंदी बोली जाती है इसके अलावा 40 देशों में 600 से अधिक विश्वविद्यालय और स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा मंदारिन है तो दूसरा स्थान हिंदी का आता है। यूनेस्को की मान्यता वाली सात भाषाओं में एक भाषा हिंदी है। आज हिंदी भाषा इस समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यही है कि अब तक यह रोजगार की भाषा नहीं बन पाई है। आज तमाम मल्टीनेशनल कंपनियां के दैनिक कामकाज का प्रबंधन, संचालन का माध्यम अंग्रेजी है और अपनी निजी हितों को साधने के लिए सामाजिक और राजनीतिक संगठन भी हिंदी का विरोध करते हैं। अभी भी भारत में उच्च शिक्षा का माध्यम भी अंग्रेजी ही है। आज भी हिंदी की जागरूकता के लिए सम्मेलनों का सहारा लेना पड़ता है। हालांकि इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल से हिंदी भाषा को बढ़ावा मिल रहा है। गूगल के अनुसार भारत में अंग्रेजी भाषा में जहां विषय वस्तु निर्माण रफ्तार 19% है तो हिंदी के लिए यह आंकड़ा 94% है। भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिन्दी है। इसलिए इसको एक-दूसरे में प्रचारित करना चाहिये।
चूंकि बहुसंख्यक भारतीय उपभोक्ता हिंदी भाषी हैं और बाजार में विभिन्न प्रकार की गतिविधियां चलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल हो रहा है, जिसके कारण इंटरनेट पर ज्यादातर सामग्री हिंदी में उपलब्ध करवाई जा रही है। यह भी हिंदी के विस्तार में मुख्य भूमिका निभा रहा है। इंटरनेट पर हिंदी सामग्री की मांग 5 गुना ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। स्मार्टफोन में औसतन एप्लीकेशंस 25 प्रतिशत हिंदी में हैं। कम्प्यूटर में लिखने के लिए हिंदी के विभिन्न फॉन्ट्स तथा टूल्स विकसित किए गए हैं। स्मार्टफोन में हिंदी के कुंजीपटल उपलब्ध हैं, जिनका इस्तेमाल इंटरनेट पर सोशल मीडिया तथा अन्य ऑनलाइन सेवाओं में हिंदी लिखने के लिए किया जा सकता है।
बावजूद इसके आज सोशल मीडिया पर हिंदी का उपयोग जिस टूटे-फूटे अंदाज में किया जा रहा है, वह चिंतनीय विषय है। इससे भाषा का स्वरूप व सुंदरता ही समाप्त हो जाती है। एक समय वह था, जब स्कूली शिक्षा की शुरुआत हिंदी माध्यम से होती थी और दूसरी ओर वर्तमान की स्थिति है जहां इसकी शुरुआत अंग्रेजी से होती है। भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिन्दी है। इसलिए इसको एक-दूसरे में प्रचारित करनी चाहिए ताकि हिंदी को सेमिनार और सम्मेलनों का सहारा ना लेना पड़े।
~प्रियंका वर्मा महेश्वरी
पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय लंबित मामलों के निष्पादन एवं स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए 2 से 31 अक्टूबर 2023 तक विशेष अभियान 3.0 में शामिल होगा
दिसंबर 2022 से अगस्त 2023 के दौरान पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा उसके संगठनों द्वारा हासिल की गयी उपलब्धियों के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं….
- 58,433 जन शिकायतों का निपटारा किया गया।
- 14,886 वर्ग फुट जगह खाली कराई गई।
- 21,15,174 रुपये स्क्रैप निस्तारण से राजस्व अर्जित किया गया।
- 5028 फाइलें हटाई गईं।
- 182 स्वच्छता अभियान।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय पिछले अभियानों के उद्देश्यों और उपलब्धियों को आगे बढ़ाने और विशेष अभियान 3.0 के प्रमुख उद्देश्यों को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है।
पत्रकारिता का पतन: एक साझा जिम्मेदारी -द हरिश्चंद्र
आज के तेजी से विकसित हो रहे मीडिया परिदृश्य में पत्रकारिता की स्थिति चिंता का विषय बन गई है। कई लोग पत्रकारिता की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और सत्यनिष्ठा में कथित गिरावट पर अफसोस जताते हैं। जबकि पत्रकार निस्संदेह पत्रकारिता के सिद्धांतों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि पत्रकारिता की स्थिति की जिम्मेदारी केवल उनके कंधों पर नहीं है। मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र में उपभोक्ताओं और प्रतिभागियों के रूप में जनता भी पत्रकारिता के भविष्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाती है। यह एक साझा जिम्मेदारी है, और चुनौतियों से निपटने और एक स्थायी और मजबूत पत्रकारिता पारिस्थितिकी तंत्र की दिशा में काम करने के लिए पत्रकारों और जनता दोनों की भूमिका को समझना आवश्यक है।
पत्रकार की भूमिका:
पत्रकार परंपरागत रूप से सूचना के द्वारपाल रहे हैं, जिनका काम जांच करना, रिपोर्टिंग करना और जनता के सामने समाचार प्रस्तुत करना है। वे सत्य की खोज करने, सटीकता सुनिश्चित करने और नैतिक मानकों को बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं। पत्रकार लोकतंत्र के संरक्षक हैं, जो सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाते हैं और समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं। हालाँकि, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ऐसे उदाहरण हैं जहाँ पत्रकार इन आदर्शों से पीछे रह गए हैं, दबावों, पूर्वाग्रहों के आगे झुक गए हैं, या ईमानदारी से समझौता कर लिया है। इन मामलों ने निस्संदेह पत्रकारिता में जनता के विश्वास को कम करने में योगदान दिया है। बहरहाल, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कुछ लोगों के कार्यों से कई पत्रकारों द्वारा प्रदर्शित समर्पण और व्यावसायिकता पर असर नहीं पड़ना चाहिए जो उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना जारी रखते हैं।
जनता की भूमिका:
समाचार के उपभोक्ता के रूप में जनता, मीडिया परिदृश्य को आकार देने में अपार शक्ति रखती है। सोशल मीडिया और नागरिक पत्रकारिता के युग में, व्यक्ति समाचार प्रसार और उपभोग में सक्रिय भागीदार बन गए हैं। हालाँकि, इस नई शक्ति के साथ प्रस्तुत की गई जानकारी के साथ आलोचनात्मक ढंग से जुड़ने की जिम्मेदारी भी आती है। हालांकि यह सच है कि कुछ मीडिया आउटलेट्स द्वारा गलत सूचना और सनसनीखेज फैलाया जा सकता है, जनता के लिए विवेक का प्रयोग करना और विश्वसनीय स्रोतों की तलाश करना आवश्यक है। विश्वसनीय पत्रकारिता का समर्थन करके, प्रतिष्ठित समाचार आउटलेट्स की सदस्यता लेकर और सटीक जानकारी साझा करके, जनता एक स्वस्थ मीडिया वातावरण में योगदान कर सकती है।
मीडिया साक्षरता और सहभागिता:
जनता की ज़िम्मेदारी का एक महत्वपूर्ण पहलू मीडिया साक्षरता कौशल विकसित करना है। मीडिया साक्षरता व्यक्तियों को समाचार सामग्री का आलोचनात्मक विश्लेषण, मूल्यांकन और व्याख्या करने का अधिकार देती है। पत्रकारिता प्रथाओं पर खुद को शिक्षित करके, तथ्य-जांच और पूर्वाग्रहों को समझकर, व्यक्ति समाचार स्रोतों की विश्वसनीयता और विश्वसनीयता के बारे में सूचित निर्णय ले सकते हैं। इसके अलावा, पत्रकारों और समाचार संगठनों के साथ रचनात्मक बातचीत में शामिल होने से पारदर्शिता, जवाबदेही और मीडिया और जनता के बीच मजबूत रिश्ते को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता का समर्थन:
वित्तीय स्थिरता पत्रकारिता का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। जैसे-जैसे मीडिया परिदृश्य महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुजर रहा है, पारंपरिक राजस्व मॉडल बाधित हो गए हैं। विज्ञापन राजस्व कम हो गया है, जिसके कारण बजट में कटौती, छँटनी और पत्रकारिता की गुणवत्ता में संभावित समझौता हुआ है। इसका प्रतिकार करने के लिए, जनता प्रतिष्ठित समाचार आउटलेट्स की सदस्यता लेकर, डिजिटल सामग्री के लिए भुगतान करके, या गैर-लाभकारी समाचार संगठनों को दान करके सक्रिय रूप से गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता का समर्थन कर सकती है। ऐसा करके, व्यक्ति पत्रकारिता की वित्तीय व्यवहार्यता में योगदान करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि पत्रकारों के पास उच्च गुणवत्ता वाली, स्वतंत्र रिपोर्टिंग करने के लिए संसाधन और स्वतंत्रता है।
कुल मिलाकर, पत्रकारिता की गिरावट के लिए केवल पत्रकारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जहां वे पेशेवर मानकों और नैतिकता को बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं, वहीं जनता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आलोचनात्मक ढंग से संलग्न होकर, मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देकर और प्रतिष्ठित समाचार आउटलेटों का समर्थन करके, व्यक्ति पत्रकारिता के पुनरुद्धार में योगदान दे सकते हैं। एक जीवंत और मजबूत मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पत्रकारों और जनता के बीच साझेदारी की आवश्यकता होती है, जो सटीक, विश्वसनीय और सार्थक जानकारी के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करते हैं। केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम चुनौतियों से निपट सकते हैं और एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जहां पत्रकारिता लोकतंत्र के स्तंभ और सकारात्मक बदलाव के लिए एक आवश्यक शक्ति के रूप में विकसित हो। –द हरिश्चंद्र
Read More »इस बार जन्माष्टमी का त्यौहार 6 सितम्बर को मनाया जाएगा
प्रतिवर्ष भाद्रपक्ष कृष्णाष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। दरअसल मान्यता है कि इसी दिन मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया था। इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण की 5250वीं जन्माष्टमी मनाई जा रही है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस बार जन्माष्टमी का त्यो हार 6 सितम्बर को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल अष्टमी तिथि बुधवार 6 सितंबर को दोपहर 3.37 बजे शुरू होगी, जिसका समापन 7 सितंबर की शाम 4 बजकर 14 मिनट पर होगा। वैसे जन्माष्टमी का त्योहार आमतौर पर दो दिन मनाया जाता है, पहले दिन (स्मार्त) गृहस्थियों द्वारा तथा दूसरे दिन वैष्णव सम्प्रदाय द्वारा। गृहस्थ लोग इस बार 6 सितंबर को जन्माष्टमी मनाएंगे जबकि वैष्णव सम्प्रदाय में 7 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव मनाया जाएगा।
भारतीय संस्कृति में जन्माष्टमी का इतना महत्व क्यों है, यह जानने के लिए श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन और उनकी अलौकिक लीलाओं को समझना जरूरी है। द्वापर युग के अंत में मथुरा में अग्रसेन नामक राजा का शासन था। उनका पुत्र था कंस, जिसने बलपूर्वक अपने पिता से सिंहासन छीन लिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव के साथ हुआ। एक दिन जब कंस देवकी को उसकी ससुराल छोड़ने जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई कि हे कंस! जिस देवकी को तू इतने प्रेम से उसकी ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसी का आठवां बालक तेरा संहारक होगा। आकाशवाणी सुन कंस घबरा गया और देवकी की ससुराल पहुंचकर उसने अपने जीजा वसुदेव की हत्या करने के लिए तलवार खींच ली। तब देवकी ने अपने भाई कंस से निवेदन करते हुए वादा किया कि उसके गर्भ से जो भी संतान होगी, उसे वह कंस को सौंप दिया करेगी। कंस ने देवकी की विनती स्वीकार कर ली और वसुदेव-देवकी को कारागार में डाल दिया।
कारागार में देवकी ने पहली संतान को जन्म दिया, जिसे कंस ने मार डाला। इसी प्रकार एक-एक कर उसने देवकी के सात बालकों की हत्या कर दी। जब कंस को देवकी के 8वें गर्भ की सूचना मिली तो उसने वसुदेव-देवकी पर पहरा और कड़ा कर दिया। आखिरकार वह घड़ी भी आ गई, जब देवकी ने कृष्ण को जन्म लिया। उस समय घोर अंधकार छाया हुआ था तथा मूसलाधार वर्षा हो रही थी। तभी वसुदेव जी की कोठरी में अलौकिक प्रकाश हुआ। उन्होंने देखा कि शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी चतुर्भुज भगवान उनके सामने खड़े हैं। भगवान के इस दिव्य रूप के दर्शन पाकर वसुदेव और देवकी उनके चरणों में गिर पड़े। भगवान ने वसुदेव से कहा, ‘‘अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नंद के घर पहुंचा दो, जहां अभी एक कन्या ने जन्म लिया है। मेरे स्थान पर उस कन्या को कंस को सौंप दो। मेरी ही माया से कंस की जेल के सारे पहरेदार सो रहे हैं और कारागार के सारे ताले भी अपने आप खुल गए हैं। यमुना भी तुम्हें जाने का मार्ग अपने आप देगी।’’
वसुदेव ने भगवान की आज्ञा पाकर शिशु को छाज में रखकर अपने सिर पर उठा लिया। यमुना में प्रवेश करने पर यमुना का जल भगवान श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श करने के लिए हिलोरं, लेने लगा और जलचर भी श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श के लिए उमड़ पड़े। गोकुल पहुंचकर वसुदेव सीधे नंद बाबा के घर पहुंचे। घर के सभी लोग उस समय गहरी नींद में सोये हुए थे पर सभी दरवाजे खुले पड़े थे। वसुदेव ने नंद की पत्नी यशोदा की बगल में सोई कन्या को उठा लिया और उसकी जगह श्रीकृष्ण को लिटा दिया। उसके बाद वसुदेव मथुरा पहुंचकर अपनी कोठरी में पहुंच गए। कोठरी में पहुंचते ही कारागार के द्वार अपने आप बंद हो गए और पहरेदारों की नींद खुल गई।
कंस को जैसे ही कन्या के जन्म का समाचार मिला, वह तुरन्त कारागार पहुंचा और कन्या को बालों से पकड़कर शिला पर पटककर मारने के लिए ऊपर उठाया लेकिन कन्या अचानक कंस के हाथ से छूटकर आकाश में पहुंच गई। आकाश में पहुंचकर उसने कहा, ‘‘मुझे मारने से तुझे कुछ लाभ नहीं होगा। तेरा संहारक गोकुल में सुरक्षित है।’’ यह सुनकर कंस के होश उड़ गए। उसके बाद कंस ने उन्हें मारने के लिए अनेक प्रयास किए। कंस ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए अनेक भयानक राक्षस भेजे परन्तु श्रीकृष्ण ने एक-एक कर उन सभी का संहार कर दिया। बड़ा होने पर कंस का वध कर उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया और अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को कारागार से मुक्त कराया। तभी से भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की स्मृति में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा।
बाल्याकाल से लेकर बड़े होने तक श्रीकृष्ण की अनेक लीलाएं विख्यात हैं। उन्होंने अपने बड़े भाई बलराम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान जी का आव्हान किया था, जिसके बाद हनुमान जी ने बलराम की वाटिका में जाकर बलराम से युद्ध किया और उनका घमंड चूर-चूर कर दिया था। श्रीकृष्ण ने नररकासुर नामक असुर के बंदीगृह से 16100 बंदी महिलाओं को मुक्त कराया था, जिन्हें समाज द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाने पर उन महिलाओं ने श्रीकृष्ण से अपनी रक्षा की गुहार लगाई और तब श्रीकृष्ण ने उन सभी महिलाओं को अपनी रानी होने का दर्जा देकर उन्हें सम्मान दिया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेवा शुल्क से संबंधित अपने निर्देशों का पालन न करने पर रेस्तरां और होटल एसोसिएशनों पर 1,00,000 रुपये का जुर्माना लगाया
उल्लेखनीय है कि 12 अप्रैल, 2023 के आदेश के अनुसार न्यायालय ने निर्देश दिया था कि:-
(i) दोनों एसोसिएशन 30 अप्रैल 2023 तक अपने सभी सदस्यों की पूरी सूची दाखिल करेंगे जो वर्तमान रिट याचिकाओं का समर्थन कर रहे हैं।
(ii) दोनों एसोसिएशन निम्नलिखित पहलुओं पर अपना पक्ष रखेंगे और एक विशिष्ट हलफनामा दायर करेंगे: –
(ए) उन सदस्यों का प्रतिशत जो अपने बिलों में अनिवार्य शर्त के रूप में सेवा शुल्क लगाते हैं
(बी) क्या एसोसिएशन को सेवा शुल्क शब्द को वैकल्पिक शब्दावली से बदलने पर आपत्ति होगी ताकि उपभोक्ता के मन में यह भ्रम पैदा न हो कि यह ‘कर्मचारी कल्याण निधि’, ‘कर्मचारी कल्याण अंशदान’, ‘कर्मचारी शुल्क’, ‘कर्मचारी कल्याण शुल्क’ आदि जैसी सरकारी लेवी नहीं है।
(सी) उन सदस्यों का प्रतिशत जो सेवा शुल्क को स्वैच्छिक और अनिवार्य नहीं बनाने के इच्छुक हैं, उपभोक्ताओं को उस सीमा तक अपना अंशदान देने का विकल्प दिया जाता है, जिस सीमा तक वे स्वेच्छा से अधिकतम प्रतिशत के अधीन जो शुल्क चाहते हैं, उसकी वसूली की जा सकती है।
रेस्तरां संघों को उपर्युक्त निर्देशों के अनुसार आवश्यक अनुपालन करना आवश्यक था। हालांकि, किसी भी एसोसिएशन ने उक्त आदेश के संदर्भ में हलफनामा दाखिल नहीं किया।
न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट धारणा है कि रेस्तरां संघ 12 अप्रैल, 2023 के आदेशों का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहे हैं और उन्होंने उत्तरदाताओं को उचित रूप से सेवा दिए बिना हलफनामा दायर किया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सुनवाई अदालत के समक्ष आगे न बढ़े।
न्यायालय ने प्रत्येक याचिका में लागत के रूप में 1,00,000/- रुपये के भुगतान की शर्त पर 4 दिनों के भीतर इन हलफनामों को ठीक से दाखिल करने का एक आखिरी मौका दिया, जिसका भुगतान वेतन और लेखा कार्यालय, उपभोक्ता मामले विभाग, नई दिल्ली को डिमांड ड्राफ्ट के रूप में किया जाना है। इस निर्देश का अनुपालन न करने पर हलफनामे को रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाएगा। मामले की सुनवाई अब 5 सितंबर, 2023 को होनी है ।
विदित है कि कई उपभोक्ताओं ने राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (एनसीएच) पर सेवा शुल्क जबरन वसूलने की शिकायत की है। जुलाई, 2022 में सीसीपीए द्वारा जारी दिशानिर्देशों के बाद से, 4,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं :-
ए) रेस्तरां/होटल द्वारा प्रदान की गई सेवा से असंतुष्ट होने पर भी उपभोक्ताओं को सेवा शुल्क का भुगतान करने के लिए मजबूर करना।
बी) सेवा शुल्क का भुगतान अनिवार्य बनाना।
सी) सेवा शुल्क को ऐसे शुल्क के रूप में चित्रित करना, जो सरकार द्वारा लगाया जाता है या जिसे सरकार की मंजूरी प्राप्त है।
डी) सेवा शुल्क देने का विरोध करने पर बाउंसरों सहित उपभोक्ताओं को शर्मिंदा करना और परेशान करना।
ई) ऐसे शुल्क के नाम पर 15 प्रतिशत, 14 प्रतिशत तक अत्यधिक पैसे वसूलना।
एफ) ‘एस/सी.’, ‘एससी’, ‘एससीआर’ या ‘एस’ चार्ज’ आदि जैसे अन्य कपटपूर्ण नामों से सेवा शुल्क भी वसूला गया है।
जलता मणिपुर
मणिपुर जल रहा है काफी समय से जल रहा है, लगातार हिंसा की खबरें आ रही हैं। दो समुदाय मैतेई और कुकी के बीच होने वाले संघर्ष का नतीजा है सुलगता मणिपुर। वहाँ भाजपा की सरकार है लेकिन वहां की सरकार ने जनता का भरोसा खो दिया है। केंद्र सरकार की लगातार चुप्पी और नजरअंदाजी ने लोगों में रोष उत्पन्न कर दिया हैं। मन की बात के प्रसारण के समय वहां की जनता ने रेडियो तोड़कर अपना क्रोध प्रदर्शित किया। पूरी मन की बात में मणिपुर के लिए एक शब्द भी नहीं कहा गया था। बड़ी बात यह है कि वहां से मंत्री, विधायकों ने प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा लेकिन समयाभाव के कारण प्रधानमंत्री जी मिल नहीं सके। राज्यसभा सांसद के. वेनलेलवना ने राष्ट्रपति शासन की मांग की। इतने लंबे समय तक सरकार के चुप रहने की क्या वजह हो सकती है? क्या यह जरूरी मुद्दा नहीं था कि मणिपुर की समस्या का शीघ्रातिशीघ्र समाधान किया जाए? अनगिनत लोगों का नरसंहार हो चुका है। मणिपुर राज्य सरकार के मंत्री के घर पर हमला बोल दिया और उनके निजी गोदाम और वहां खड़ी दो गाड़ियों को आग लगा दिया गया। और तो और मणिपुर के विधायकों को अपने ही मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं रह गया है तो फिर राष्ट्रपतिशासन क्यों नहीं लागू किया जा रहा है? दो समुदाय मिलकर लगातार उत्पात मचाये हुये हैं। पृष्ठभूमि यह है कि मणिपुर में तीन समुदाय है कुकी, नागा और मैतेई। कुकी और नागा आदिवासी समुदाय है तो वहीं मैतेई आदिवासी नहीं है। मैतेई और आदिवासियों के बीच मौजूदा संघर्ष पहाड़ी बनाम मैदानी विस्तार का संघर्ष है। मैतेई मणिपुर में बहुसंख्यक समुदाय है जबकि आदिवासी समुदायों की आबादी लगभग 40% से भी कम है। नागा और कुकी जनजातियों को एसटी की सूची में शामिल किया गया है, अधिकांश मैतेई समुदाय के लोगों को ओबीसी का दर्जा प्राप्त है और उनमें से कुछ को एससी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। मैतेई समुदाय की मांग 2012 से जोर पकड़ रही है और इसे मुख्य तौर पर शैडयूल्ड ट्राइब्स डिमांड कमेटी आफ मणिपुर (STDCM)उठाती रही है। 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले तक मैतेई समुदाय को जनजाति माना जाता था, भारत में मिलने के बाद यह दर्जा उनसे छिन गया। हाल ही में हाईकोर्ट में जब एसटी का दर्जा देने का मामला उठा तो दलील दी गई कि मैतेई समुदाय की पैतृक भूमि, परंपराओं, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए एसटी का दर्जा दिया जाना जरूरी है।
विरोध की कई वजह हैं मगर सबसे अहम यह है कि मैतेई समुदाय का आबादी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों ही मामलों में खासा प्रभुत्व है। राज्य विधानसभा की 60 में से 40 सीटें मैतेई समुदाय से आती हैं। ऐसे में जनजातियों को डर है कि यदि मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा मिल गया तो उनके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे।
शैडयूल्ड ट्राइब्स डिमांड कमेटी आफ मणिपुर (STDCM) का कहना है कि राज्य की आबादी में मैतेई समुदाय का हिस्सा घट रहा है। 1951 में जहाँ यह कुल आबादी का 59% थे वहीं 2011
की जनगणना में ये घटकर 44% रह गये। मैतेई यह भी दावा करते हैं कि एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ हिंसक विरोध सिर्फ एक दिखावा है। उनका वास्तविक लक्ष्य वन भूमि का सर्वेक्षण और संरक्षित क्षेत्र से अवैध अप्रवासियों को बेदखल करना है।
केंद्र सरकार चुप्पी क्यों साधे हुये है और गृहमंत्री ने इतनी देर से क्यों सुध ली? मंत्रीगणों से मिलने के बाद भी समस्या का समाधान सिफर रहा? अमित शाह के दौरे के बाद मुख्यमंत्री ने कुकी और मैतेई समुदाय से हथियार डालने की अपील की। मणिपुर में इस समय भीड़ का शासन चल रहा है और दशकों में बनाई गई संपत्तियां नष्ट हो रही है। स्थानीय अधिकारी स्थिति को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं और लोगों का पलायन जारी है। काफी समय बाद अमित शाह की सर्वदलीय बैठक बुलाई लेकिन नतीजा कुछ नहीं आया। प्रधानमंत्री से मनोज मुंतशिर मिल सकते हैं लेकिन उनके अपने मंत्री और विधायक नहीं? यह कैसा दोहरापन है? इस चुप्पी के कारण मणिपुर और कितना जलेगा?
~प्रियंका वर्मा महेश्वरी
Read More »महिला सम्मान सिर्फ एक दिखावा
यह बहुत दुख की बात है कि हमारे देश का गौरव बढ़ाने वाली बेटियां अपने सम्मान (मेडल) को गंगा में बहाने की बात कही। इनकी आहत भावना और सरकार द्वारा किया जा रहा उपेक्षा पूर्ण व्यवहार न्याय की गुहार लगाती खिलाड़ियों में असंतोष की भावना उत्पन्न कर रही है। पुलिस द्वारा बलपूर्वक किया गया अनुचित आचरण लोगों के मन से व्यवस्था और न्याय पर से भरोसा खत्म कर रहा है।भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी की मांग पर जंतर मंतर पर बैठी महिला पहलवानों की बात क्यों नहीं सुनी जा रही है? इससे पहले महिला खिलाड़ियों ने बेरीकेड्स तोड़कर नये संसद भवन की ओर बढ़ने का प्रयास किया जिससे और खिलाड़ियों के बीच हाथापाई हो गई और पुलिस ने उनके प्रदर्शन पर रोक लगा दिया और कहा कि उन्हें किसी अन्य जगह पर प्रदर्शन की इजाजत दी जा सकती है लेकिन जंतर मंतर पर नहीं। बृजभूषण सिंह पर एक नाबालिग सहित महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप है। मामला कुछ भी हो मगर न्याय के लिए भटकती खिलाड़ियों की बात सुनी जानी चाहिए। खाप पंचायतें बैठकें तो कर रही हैं लेकिन उनका कोई निर्णय सामने नहीं आ रहा है।
1983 में विश्व कप जीतने वाली टीम ने साझा बयान जारी कर महिला खिलाड़ियों को अपना समर्थन दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस खबर को प्रमुखता से छापा है। बेटी बचाओ का नारा देने वाली सरकार इन्हें अनदेखा क्यों कर रही है? और महिला नेत्राणियों ने भी इस मसले पर चुप्पी क्यों साध रखी है? क्या सिर्फ एक फोटो खिंचवाने तक ही बेटियों का सम्मान था ? ऐसे तमाम सवाल है जो सरकार के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं? क्या बेटियाँ यूं ही अपमानित होती रहेंगी?
जमीर जागने में वक्त तो लगता है
हौसले पस्त ना हो तो उम्मीद का दिया जलते रहता है
प्रियंका वर्मा महेश्वरी
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