मां हमेशा जिंदा रहती है…
कभी रसोई में तो कभी बगीचे में
दिख जाती है….
अक्सर सुई धागे में भी दिख जाती है
यूं ही बातों बातों में भी कभी याद बनकर
दिख जाती है…
मंदिर में, अलमारी में, पल पल पर घटते जा रहे हैं जीवन में
अक्सर मां दिख जाती है …. कोई व्यंजन कब सीखा.. याद नहीं
पर किसने कैसे सिखाए यह याद आ जाता है बगीचे का पौधा जो अब बड़ा हो गया है
अपने बड़े होने की बात बताता है…
न जाने कितनी बातें हैं याद आती….
मां घर के हर कोने में यूंही चलती रहती है
शायद…. हमेशा.
~प्रियांका वर्मा माहेश्वरी