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लेख/विचार

मां हमेशा जिंदा रहती है

मां हमेशा जिंदा रहती है…
कभी रसोई में तो कभी बगीचे में
दिख जाती है….
अक्सर सुई धागे में भी दिख जाती है
यूं ही बातों बातों में भी कभी याद बनकर
दिख जाती है…
मंदिर में, अलमारी में, पल पल पर घटते जा रहे हैं जीवन में
अक्सर मां दिख जाती है …. कोई व्यंजन कब सीखा.. याद नहीं
पर किसने कैसे सिखाए यह याद आ जाता है बगीचे का पौधा जो अब बड़ा हो गया है
अपने बड़े होने की बात बताता है…
न जाने कितनी बातें हैं याद आती….
मां घर के हर कोने में यूंही चलती रहती है
शायद…. हमेशा.

~प्रियांका वर्मा माहेश्वरी

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27वें राष्ट्रीय युवा उत्सव में हिस्सा लेने कानपुर विश्वविद्यालय से नासिक के लिए टीम रवाना

कानपुर 11 जनवरी भारतीय स्वरूप संवाददाता, युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा 27वां राष्ट्रीय युवा उत्सव नासिक, महाराष्ट्र में 12 जनवरी से 16 जनवरी 2024 के मध्य मनाया जा रहा है। डॉ श्याम मिश्रा, राष्ट्रीय सेवा योजना छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा अवगत कराया गया कि इस युवा महासम्मेलन में राष्ट्रीय सेवा योजना, छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर से 11 स्वयंसेवकों का दल टीम लीडर डॉ संगीता सिरोही के निर्देशन में आज कानपुर सेंट्रल से नासिक के लिए रवाना हुआ। इसमें डी जी कॉलेज की राष्ट्रीय सेवा योजना की कार्यक्रम अधिकारी डॉ संगीता सिरोही का चयन राष्ट्रीय सेवा योजना उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड कंटिजेंट लीडर के रूप में किया गया। साथ में डी जी कॉलेज की दो छात्राओं वर्षा सिंह एवं आरती वर्मा का चयन प्रतिभागी के रूप में हुआ। डी ए वी कॉलेज से ऋषि श्रीवास्तव, आकांक्षा सक्सेना एवं प्रज्ञा वाखले, बी एन डी कॉलेज से सक्षम मिश्रा, अरमापुर कॉलेज से रूपेंद्र सिंह यादव, डी एस एन कॉलेज उन्नाव से शिवांगी मिश्रा एवं आदर्श पांडे, एल वाई कॉलेज, फर्रुखाबाद से रजत गुप्ता एवं रमन चतुर्वेदी का चयन युवा सम्मेलन प्रतिभागियों के रूप में किया गया। जिसमें वे विभिन्न संस्कृत अकादमी एवं खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेंगे। उत्तर प्रदेश से कुल 60 प्रतिभागियों तथा 6 कार्यक्रम अधिकारियों का चयन क्षेत्रीय निदेशक, राष्ट्रीय सेवा योजना, उत्तर प्रदेश एवम् उत्तराखंड के द्वारा उक्त कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए किया गया है।

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हर शय “इश्क़ नहीं “…

वक़्त से पूछा मैने .. अब इसका हल क्या है ? …
वक़्त ने कहा … मुझे गुज़र जाने दे ..
मैंने पूछा !! इस दर्द का इलाज क्या है ?
वक़्त ने हसं कर कहा .. .. “थोड़ा सब्र रख “
संभलने में वक़्त तो लगेगा.. इस जहान में हर शय
“इश्क़ नहीं “ जो पल भर में हो जाये….
🌹❤️🌹
दोस्तों ! समुद्र में तूफ़ान आने से कई बार बड़े बड़े

जहाज़ डूब ज़ाया करते हैं
मगर इक लकड़ी का टुकड़ा जो हमे समुद्र से बाहर निकालने की

क्षमता रखता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि “सह ले !
हँस कर ,हर सितम ज़िन्दगी का ..
न कर शिकायत … न शिकवा किसी से …बस मान कर चल …तेरे
सब्र में ही तेरा सकून छिपा है।
🌹🌹🌹
जो इन्सान अपनी ज़ुबान से किसी को ग़लत नहीं कहता, गाली गलौज नहीं करता ।अच्छा सोचता है ,हर लम्हा मालिक की याद में रहकर मालिक का नाम जिस की ज़ुबान पर रहे ।ऐसे इन्सान की ज़ुबान में ताक़त आ जाती है उसी ताक़त को वाणी की सिद्धि कहते है और ऐसा इन्सान किसी को कुछ कह दे तो वो सच होने लगता है,
और अगर हाथ सब को देने के लिए ही उठे, सब की मदद करे तो हाथों में बरकत आ जाती है।ऐसे लोग जब दूसरों को आशीर्वाद देते हैं तो वो फलीभूत होने लगता है।
इसी तरह जब आँखे दूसरों मे सिर्फ़ अच्छाई ही देखती है ,कुछ बुरा दिखाई ही नही देता , जिनकी आँखों में सदा करूणा रहती है उनकी नज़र में ताक़त आ जाती है इसी को ही सिद्धी पाना कहते हैं हम ने अक्सर ये सुना होगा कि फ़लाह इन्सान की नज़र हम पर क्या पड़ी ,मेरी तकलीफ़ दूर हो गई।
कभी-कभी हम ये भी कह देते है ,किसी ने हमे जो कहा था ,देखो आज मेरे साथ हो रहा है।
ये सब ताक़ते है ज़रूरी नहीं कि मंत्रों से ही हम सिद्धि पा सकते हैं ।अपने मन करम विचारों से भी हम सिद्धियो के स्वामी बन सकते है। भगवान के यहाँ बस यहीं नियम है कि इन्सान को इन्सान बन कर रहना चाहिए।
मगर काम क्रोध लोभ मोह हम इन्सानों को, इन्सानियत से हैवानियत की तरफ़ मोड़ देता है।
दोस्तों !
इक औरत
बहुत कमाई वाली थी।उसे मै साध्वी कह सकती हूँ
उसके यहाँ उसकी सेवा मे इक औरत रहा करती थी जिसका नाम लौरा था
लौरा आये दिनों बिमार रहने लगी .. वो साध्वी से कहती ,आप मुझे किसी तरह ठीक कर दो .. साध्वी बस मुस्कुरा देती .. और कहती !
लौरा “सह लो अभी “..
मगर लौरा की बिमारी में कोई सुधार नहीं आ रहा था।
इक दिन फिर लौरा ने साध्वी से कहा !
मैंने कितने साल आप की सेवा की है ।आप मुझे ठीक क्यों नहीं करती ।साध्वी ने फिर बड़े प्यार से लौरा के सिर पर हाथ फेर कर कहा!
तभी कह रही हूँ तुम से कि अभी तुम इस बिमारी को सह लो।
लौरा सोचने लगी मैंने ऐसे ही अपना वक़्त बर्बाद कर दिया, इस साध्वी के पीछे लग कर ..
दिन पर दिन लौरा की बिमारी तेज़ी से बढ़ने लगी।
लौरा फिर साध्वी के पास आ कर रो कर कहने लगी अब ये दर्द मुझ से बर्दाश्त नहीं हो रहा ,मेरी मदद किजीए ।
मुझे ठीक कर दो .. मै बहुत तकलीफ़ में हूँ ।
इस बार साध्वी ने आँखें बंद करके लौरा के लिए प्रार्थना की और इक पुड़िया लौरा के हाथ में रख दी और कहा !
ये लो विभूति ,इसका सेवन रोज़ करना।मेरे गुरू की किरपा से तुम जल्दी ठीक हो जाओगी.. लौरा को दस बाहर दिनों मे ही असर होने लगा और वो धीरे धीरे ठीक होने लगी ।
कुछ साल लौरा के अच्छे गुज़र गये मगर कुछ सालों बाद लौरा की बीमारी फिर ज़ोरों से आई और लौरा इस संसार को छोड़ कर चली गई।
वक़्त गुजरने लगा।
अब जब भी साध्वी अपने ध्यान में बैठती तो उसे लौरा दिखने लगी ..जो साध्वी के सामने रोया करती ।साध्वी ने कहा !
अब कंयू रोती हो लौरा ?
लौरा कहती !
यहाँ इक दरवाज़ा है सब जीवात्माये अन्दर जा रही है ।जब भी वो दरवाज़ा खुलता है, बहुत अच्छी सुगंध बाहर तक आती है।मै भी वहाँ जाना चाहती हूँ मगर मुझे अन्दर नहीं जाने देते।
बाहर ही रोक लेते हैं ।
जब वजह पूछती हूँ तो कहते हैं कि तुम्हारे करमो की वजह से वो बिमारी आई थी और उन्हीं करमो का तुम्हें भुगतान करना था मगर तुमने उस बिमारी को सहा नहीं , रब की रजा को न मान कर अपनी दख़लंदाज़ी की और रब की रजा में ख़लल डाला। इसी लिए तुम अन्दर नहीं जा सकती ।
लौरा कहने लगी जब आप को सब पता था फिर मुझे उस वक़्त आपने कंयू ठीक किया था।
अब मै जहां हूँ ,वहाँ कुछ भी अच्छा नही है
इक अजीब सी गंध है वहाँ जो असहनीय है।
साध्वी ने लौरा से कहा !
तभी मै कहा करती थी ,अभी यहाँ सह लो ..ताकि तुम्हारा आगे का रास्ता सुखमय हो जाये मगर तुम ही ज़िद्द किया करती थीं अगर उस वक़्त मेरा कहा मान लेती तो तुम भी आज उस ..दरवाज़े से अन्दर जा सकती।
.. दोस्तों
जैसे किसी परिन्दे के पंखों पर बहुत बड़े बड़े पत्थर रख दिये जाये तो वो परिन्दा आसानी से उड़ नहीं सकता है और जब हम करमो को हँस कर सह लेते है
तो करम रूपी पत्थर पँखो से हटने लगते है और रूह हल्की महसूस करने लगती हैं और जब इस संसार को छोडने का वक़्त आता है आसानी से उड़ जाती है .. करमो का यहीं बोझ हमें यहाँ भी तंग करता है और वहाँ भी …..।

जो मिल रहा है उसी में ही शुक्र
करें ।
“दुख सुख उसका ही भेजा हुआ है प्रशाद है “ऐसा मान कर उसे ह्रदय से ग्रहण करें तो ही हम सकून से रह सकते हैं यहाँ भी और फिर आगे के संसार मे भी

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अधूरे ख्वाब

अधूरे ख़्वाबों को सजा मत समझिये.. बल्कि ये इक ज़रिया है जो तुम्हे उस ओर ले जायेगा और यक़ीं रखो इक रोज यही तुझे तेरे महबूब से भी मिलवाएगा
🌹🌹🌹🌹
अक्सर लोग मुझ से पूछते हैं आप अधूरी कहानियों पर ज़्यादा लिखती है और वजूहात भी पूछते है, वैसे तो वजह कोई मेरी पर्सनल नही है।
अधूरेपन का अहसास तो हर इन्सान को कभी न कभी होता ही है।प्यार और अधूरेपन दोनों अलग नही है। दोनों ही इक दूजे से जुड़े हुए हैं।
“जो किसी को या किसी चीज़ को गहरा प्यार करता है वही अधूरेपन के अहसास को भी जान सकता है”।प्यार को समझने के साथ साथ अधूरेपन को भी समझना बहुत ज़रूरी है।
लिखना मेरा शौक़ है मगर हर लेखक अपनी आप बीती ही नहीं कहता बल्कि उसमें इक क़ाबलियत .. इक समझ होती है दूसरों के मन के भावों को ,दूसरों की पीड़ा और .. हर बात के दोनों पहलुओं को समझने की शक्ति होती है कयोंकि उसका मन ठहरा हुआ ,होने की वजह से वो हर बात की गहराई को महसूस कर लेता है, दूसरों की जगह पर खुद को रख कर हर इक का दरद समझ लेता है।और ..
फिर उसी के आधार पर उनकी कलम चला करती है .. मै अधूरी कहानियाँ इसीलिए लिखा करती हूँ क्योंकि मैं समझती हूँ जो आज अधूरा है ,यकीनन वो कभी न कभी पूरा ज़रूर होगा।
जब तक पूरा नहीं हो जाता …कहानियाँ बनती रहती है और संसार चलता रहता है।
अधूरापन ..या किसी चीज़ की कमी का अहसास होने पर
हम मन से..
विचारों से , गहरे होने लगते है यही वजह होती है।
हमारी चाहत मे शिद्दत बढ़ने लगती है जब हम हर वकत उसी के बारे में सोचते रहते हैं और ये सोच ही फिर आगे चल कर, हमे अधूरेपन से पूर्णता की तरफ़ ले जाती है .. ।
हम सब के ऊपर इक शक्ति है। जिसका काम ही यही है ,अधूरे को पूरा करना …,चाहे इस जन्म में पूरा करे या अगले किसी जन्म मे।
दोस्तों!
यदि हमारे सब ख़्वाब पूरे हो जाये। ज़िन्दगी में सब कुछ पा लिया जाये तो फिर आगे रह ही क्या जाता है ,कि उसकी कोई कहानी बनाई जाये..न तो उसमें कोई खुवाईश होगी
न कमी .. न कोई चाहत रह जायेगी ..न ही कोई शिद्दत…पूरा होने का मतलब ही “अंत हो जाना”।
जब हम कोई लक्ष्य या मक़सद पूरा कर लेते है ।
रिश्ते हम भोग चुके होते हैं। चीजों को अच्छे से जान चुके होते है।
जब परिवार में सबसे अपना हिसाब पूरा कर चुकते हैं तो इच्छाये समाप्त होने लगती है तो दुनिया मे आने के रास्ते बंद हो जाते है। क्यूं आयेगा कोई ?
जब कोई वजह ही नहीं रहती, तो फिर कोई मतलब ही नहीं रहता वापस इस संसार में आने का। जैसे जैसे हम ज़िन्दगी को जान चुके होते है अनुभव कर चुके होते है उससे हम मुक्त होते जाते है धीरे धीरे..
बेशक !
पूर्णता बहुत सुन्दर और आनंद देने वाली होती है मगर अधूरापन हमे अन्दर से और बाहर से और भी सुन्दर बना देता।
.”पूर्णिमा का चाँद “
पूरा कितना मनमोहक होता है ।उसको देखने भर से ही मन में शान्ति का संचालन होने लगता है और शायरों की कलम ✍️ लिखने को बेकरार होने लगती है।
मगर
“आधा चाँद “
वो भी कमाल का होता है ।
आधे चाँद की रात को ही
ईद का चाँद कहा जाता है।
वो हम सब जानते ही हैं ,
कि दोनों कितने ख़ास है।
जब जब हम इन्सानों की कहानियों में जब पूर्णता आती है तो सब ठहर जाता है।
अधूरापन ही आगे चलता है, अनंत काल तक ..जन्मों जन्मों तक ..
चाहे वो बिन कहे भाव हो ..
चाहते हो . ..
खुवाईशे हो ..
या दुनिया का कारोबार हो …
.सारी उम्र कुछ लोग ग़रीबी देखते हैं उनकी अमीर बनने की चाह अधूरी रह जाये तो इस इच्छा का अंत नहीं होगा जब तक ये इच्छा पूरी न होगी यही कुदरत का नियम है
अधूरे को पूरा करना ही जीवन का मक़सद होता है …
इस संसार में “
मोक्ष “के लिए
अधूरे से पूरे होना ज़रूरी है।
.. मेरी इक दोस्त है जिस को भगवान ने सब दे रखा था।
वो अक्सर कहा करती कि मै कभी भगवान से कुछ माँगती नहीं ,सब खुद ब खुद मिल रहा है .,
पैसा ,शोहरत ,पार्टीज़ ,ज़मीन जायदाद ,आभूषण से भरी हुई थी कारोबार भी बहुत था … उसके पास प्यार करने वाला पति भी था।
वक़्त ने पलटा मारा ..
सब चला गया। मगर जब गया तो बहुत दुखी हुई।
अब हर वकत उन चीजों का ही चिंतन करती रहती है।सब वापस पाना चाहती है।भगवान से प्रार्थना करती है, कि उसे सब वापस मिल जाये ।
इसी तरह हम सब भी जब चीजों को खो देते है तो उन्हें फिर से पाना चाहते हैं और फिर उन्हें वापस पाने का चाहत ,हमें इस संसार में वापस ले कर आती है।क्योंकि अब हम ख़ुद को पूरा महसूस नहीं कर रहे।

पूरे होंगे…तो ही मोक्ष मिल सकता है इसी लिए दोस्तों !!
अधूरेपन के अहसास से घबराए नहीं ,न ही डिप्रेशन की कागार में खुद को खड़ा करे बल्कि इक उम्मीद जगाये कि आज ये अधूरेपन ही हमे पूरे की ओर ले कर जायेगा और याद दिलाये खुद को…
.
“मैं आज अधूरी हूँ तो किसी रोज़ पूरी भी हो जाऊँगी ,बस यही ख़याल काफ़ी है ख़ुश
रहने के लिए “
लेखिका स्मिता ✍️

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“एबीवीपी का 69वां राष्ट्रीय अधिवेशन” ऋषि परम्परा वाहक का उनहत्तरवाँ झरना~ डॉ प्रीति

यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक परिवार है तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इस परिवार का युवा वर्ग है। इस युवा के आदर्श स्वामी विवेकानन्द हैं। संघ ने अपने परिवार के इस युवा सदस्य को जो सिखाया है उसका मूल है

काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पिछले उनसठ वर्षों की सतत यात्रा इन्हीं पांच विशेषताओं के साथ रही है। इतनी प्रसिद्धि, वीरता, संयम, महिमा, गुण, उपलब्धि, व्यापकता, विस्तार, उड़ान, गहराई, प्रवाह, उत्थान, परिपक्वता, सावधानी और सबसे बड़ी बात, इतना सुन्दर गीत-रूप किसी भी संगठन में ऐसे ही नहीं मिलता। एबीवीपी ने ये सभी गुण अपने पांच बुनियादी गुणों से हासिल किए हैं जो उसने अपने मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सीखे हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, जिसे संक्षेप में एबीवीपी के नाम से भी जाना जाता है, 7,8,9,10 दिसंबर को अपना 69वां अधिवेशन आयोजित कर रही है, यह न केवल भारत का बल्कि विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। विद्यार्थी परिषद, जिसकी स्थापना 9 जुलाई, 1949 को हुई थी, आज एक सोलह वर्षीय युवा की अद्भुत युवाता और ऊर्जा के साथ अपना उनहत्तरवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने के लिए तैयार है। इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में देश के गृह मंत्री अमित जी शाह और समापन सत्र में देश के तेजस्वी एवं लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाग ले रहे हैं
ज्ञान, शील और एकता के शब्द या मंत्र के साथ आगे बढ़ते हुए यह छात्र संगठन अपने जीवन में कई उपलब्धियां हासिल कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। अनेक लक्ष्य रखने वाले इस संगठन के मूल में एक ही लक्ष्य है- भारत माता को परम वैभव के शिखर पर स्थापित करना। बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ, कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति, श्री राम जन्मभूमि, बांग्लादेश को तीन बीघे जमीन देने के विरुद्ध सत्याग्रह, तुष्टिकरण, शिक्षा का भारतीयकरण, नई शिक्षा प्रणाली, आतंकवाद का विरोध, शिक्षण संस्थानों में शुचिता-अनुशासन-गरिमा, का विकास शिक्षण संस्थानों। यह संगठन व्यावसायीकरण का विरोध, ग्रामीण क्षेत्रों के कोने-कोने में शिक्षा का प्रसार आदि जैसे कई लक्ष्यों और आंदोलनों को प्राप्त करके यहां तक पहुंचा है, यह संगठन अब एक विशाल वट वृक्ष बन गया है।

विद्यार्थी परिषद ने अपनी 69 वर्षों की अथक, स्थायी और अद्भुत यात्रा में जो हासिल किया है वह दो ध्रुवों के बीच पुल बनने जैसा है। एक ओर यह संगठन भारत की बुनियादी ज्ञान परंपरा को उसके ज्ञान के शिखर पर स्थापित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर और वैश्विक शिक्षा पद्धतियों को भी आत्मसात कर रहा है। यद्यपि भारतीय ज्ञान परंपरा और वैश्विक आधुनिक शिक्षा के एकीकरण का कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन नई शिक्षा नीति के माध्यम से विद्यार्थी परिषद ने इस कार्य को बहुत आगे बढ़ाया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जहां भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अनेक सुधारों की आवश्यकता को लेकर चिंतित एवं विचारशील था, वहीं विद्यार्थी परिषद संघ की इस चिंता को अनुकूलता में बदलने का एक बड़ा माध्यम साबित हुई है। एबीवीपी खुद ही संघ की नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों को हासिल करने में जुट गई है. इस संगठन में न केवल विद्यार्थियों बल्कि शिक्षकों की भी निरंतर भागीदारी नई शिक्षा नीति को लागू करने के लक्ष्य में सहायक सिद्ध हुई है।
किसी भी राष्ट्र की मूल पहचान उसकी शिक्षा प्रणाली से निर्धारित होती है। यह संघ का अटल विश्वास रहा है और विद्यार्थी परिषद का पूरा संगठन इस विश्वास का वाहक और संवाहक रहा है। स्वामी विवेकानन्द ने शिक्षा के बारे में कहा है कि “पूर्णता का प्रकटीकरण मनुष्य में पहले से ही होता है!” इसी को आगे बढ़ाते हुए शिक्षा नर को नारायण बनाने की क्षमता रखती है, यह संघ परिवार का विश्वास रहा है। संघ की इस विचारधारा को कोठारी आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट – “राष्ट्र का भाग्य वर्गों में आकार लेता है” में प्रतिबिंबित किया है। इस देश की रक्त कोशिकाओं और धमनियों में गहराई तक पैठ बनाने वाले अंग्रेज थॉमस मैकाले को पिछले एक दशक में अकारण ही बाहर नहीं निकाला गया है। इसके पीछे विद्यार्थी परिषद, संघ परिवार और सौ वर्षों की तपस्या का अमूल्य योगदान है।
नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे प्रमुख उपलब्धियों में से एक, जो आने वाली सदियों तक देश को चमकती और चकाचौंध करती रहेगी, वह है “नई शिक्षा नीति”। इस नई शिक्षा नीति के निर्धारण में विद्यार्थी परिषद का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। के कस्तूरीरंगन नई शिक्षा व्यवस्था का मसौदा तैयार कर रहे हैं. कस्तूरीरंगन समिति ने अपनी रिपोर्ट में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का भी जिक्र किया है और उसके प्रति आभार व्यक्त किया है. नई शिक्षा प्रणाली में अपने योगदान में एबीवीपी चंद्रयान अभियान और स्वामी विवेकानन्द से लेकर भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय ऋषि परंपरा, गुरुकुल परंपरा, आचार्य चाणक्य, वैदिक तत्व, पौराणिक आख्यान और अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक सब कुछ शामिल करके इसे समग्र बनाने का प्रयास किया है।
अपनी 69 वर्षों की यात्रा में, एबीवीपी ने अनगिनत अभियानों, आंदोलनों और आह्वानों को आमंत्रित करके हमारे समाज और राष्ट्र को बेहतर बनाने का काम किया है। अगर इन सबकी सूची बनाई जाए तो शायद पूरे समुद्र की स्याही और पूरी धरती का कागज कम पड़ जाएगा, लेकिन फिर भी विद्यार्थी परिषद की इस व्यापक यात्रा को अगर हमें तीन शब्दों में समझना है तो ये तीन शब्द ही हैं इस संगठन के लिए पर्याप्त हैं. – ज्ञान, शील एकता!!
विद्यार्थी परिषद नये परिवर्तनों का वाहक बन गयी है, सामाजिक समरसता का पर्याय बन गयी है, समस्याओं के समाधान का अचूक मंत्र बन गयी है, पर्यावरण संरक्षण का साधन बन गयी है, सृजनात्मकता का स्रोत बन गयी है, इन सभी गुणों से अखिल भारत बढ़ रहा है आगे। विद्यार्थी परिषद का 69वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करने हेतु तत्पर विद्यार्थी परिषद को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं वंदन!!
एबीवीपी हर साल एक नया वार्षिक श्लोक निर्धारित करती है। पिछले वर्ष के गीत की इस पंक्ति को पढ़कर हमें इस संगठन का सार पता चलता है –
हम छात्र शक्ति के प्रखर पुंज , हम देव भूमि के हैं साधक,
हम छात्र शक्ति से राष्ट्रशक्ति , गढने वाले है आराधक!
हम तरुणाई में संस्कारों का अलख जगायेंगे ,
विश्वगुरु भारत का ध्वज लेकर जायेंगे !!

डॉ प्रीती
अस्सिस्टेंट प्रोफेसर
दिल्ली विश्वविद्यालय

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मां मुझे गर्भ में ही खत्म कर दो

मां मुझे गर्भ में ही खत्म कर दो
यह ज्यादा अच्छा है….
अपमानित, प्रताड़ित होने से
बहुत ज्यादा अच्छा है
कम से कम मैं जिंदा भट्टी में
झोंक दिए जाने से बच जाऊंगी
टुकड़ों में या फिर
सड़कों पर तो नहीं बिखरूंगी
मैं पीड़ित होकर भटकूंगी नहीं दर बदर
मदद की गुहार लगाते हुए
बार बार मरूंगी नहीं…
सीमेंट पत्थरों से बने हुए घरों में….
रहने वाले लोग भी….
सीमेंट और पत्थर के हो गये हैं..
इस दुनिया में कुचले जाने के लिए
मुझे जन्म मत दो मां….
मैं हर उस तकलीफ से आजाद रहूंगी
जो जन्म लेने के बाद….
मेरे इर्दगिर्द मंडराती रहती है
न जाने यह आदमी लोग किस देवी को पूजते है पत्थरों और मूर्तियों में सर झुकाते हैं
लेकिन सजीव स्त्री का सम्मान नहीं कर पाते है
मां तुम तो समझती हो ना मेरा दुख
तब तुम मुझे क्यों इस विषैली दुनिया के
सर्पदंश से नहीं बचाती हो
तुम मुझे गर्भ में ही क्यों नहीं मार देती…
**प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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खूब फलफूल रहा है कनाडा वीज़ा और वर्क परमिट घोटाला !

एक राज्य से दूसरे राज्य, एक देश से दूसरे देश में लोगों का प्रवास कोई नई बात नहीं है। यह बहुत पुरानी घटना है. इसके दो मुख्य कारण कारण हैं – पहला आर्थिक और दूसरा बेहतर जीवन के लिए। पहले को 80 प्रतिशत और बाकी 20 प्रतिशत ने दूसरे कारण से अपनाया। अब पिछले कुछ दशकों से शिक्षा युवा पीढ़ी के लिए उच्च शिक्षा के लिए दूसरे देशों की ओर पलायन का पहला कारण बन गई है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद से हमारी सरकारों द्वारा शिक्षा क्षेत्र की उपेक्षा की गई है। हमारे देश से सभी राज्यों से छात्र शिक्षा के लिए पलायन करते हैं। लेकिन नौकरी और बेहतर जीवन शैली के लिए पंजाब, गुजरात, केरल, आंध्र प्रदेश से अधिक लोग पलायन करते हैं।
बेहतर नौकरी के लिए सबसे पसंदीदा देशों में कनाडा शीर्ष पर है। पंजाब और अन्य राज्यों से लोग कनाडा प्रवास में काफी रुचि ले रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए कुछ अवांछित और धोखेबाज लोग भोले-भाले व्यक्तियों को नकद में अधिक राशि के बदले वीज़ा और वर्क परमिट प्रदान करने के व्यापार में शामिल हैं और कनाडा में व्यवसाय करने वाले और वर्क परमिट जारी करने का अधिकार रखने वाली कंपनियों के मालिक कुछ लोग इस अवैध तरीके से भारी पैसा कमाने का लाभ उठा रहे हैं। व्यापार और इन भोले-भाले लोगों को कनाडा के अधिकारियों को वर्क परमिट जारी करने की सिफारिश करता है और इन व्यक्तियों से भारी रकम लेने के लिए मजबूर करता है। एक बार जब कोई व्यक्ति इनकी पकड़ में आ जाता है तो ये धोखेबाज उनसे मोटी रकम वसूलने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं। चूंकि यहां कोई अधिनियम या किसी भी प्रकार का कानून नहीं है और सभी लेनदेन नकद में हैं, इसलिए पीड़ित की कोई मदद नहीं कर सकता। ये धोखेबाज़ उन महिलाओं को भी नहीं बख्शते जिनके माता-पिता/शुभचिंतक बड़ी रकम नकद में देते हैं।
कुछ लोग लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, चंडीगढ़, जालंधर, हैदराबाद, मुंबई, अहमदाबाद आदि से काम करते हैं। कुछ एनआरआई भी इस व्यापार में शामिल हैं। कुछ बहुत प्रभावशाली व्यक्ति भी शामिल हैं और वे पीड़ितों को धमकी भी देते हैं कि वे अधिकारियों को रिपोर्ट न करें अन्यथा उनके परिवारों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
भारत सरकार, उसके अधिकारियों और सत्तारूढ़ राजनेताओं को इस मामले को एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में लेना चाहिए और इन दोषियों को सजा देनी चाहिए। चूँकि इस प्रकार के अपराधों से निपटने के लिए कोई विशिष्ट कानून और अधिनियम नहीं है, लेकिन मानव तस्करी से निपटने के लिए बहुत सारे अधिनियम और नियम हैं और यह अधिनियम इस प्रकार के अपराधों के अंतर्गत आता है। जो व्यक्ति ये वीज़ा खरीदते हैं वे अपराधी हैं और ऐसे व्यक्ति हैं जो इस कारण से देश छोड़ना चाहते हैं कि या तो वे अपराधों में शामिल हैं या कुछ प्रतिबंधित संगठनों के सदस्य हैं जो विदेशी धरती से देश के खिलाफ अपराध रचते हैं और कनाडा इन अपराधों के लिए एक सुरक्षित देश है।
ऐसे वर्क परमिट की व्यवस्था करने वाले ये अपराधी देश की आंतरिक कानून व्यवस्था, सामाजिक शांति और सामाजिक सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं क्योंकि आपराधिक किस्म के लोग अपराध करने के बाद देश छोड़ने में इन लोगों की मदद लेते हैं। ये गतिविधियाँ सीधे तौर पर आंतरिक सामाजिक सुरक्षा में बाधा डालती हैं।
इस रैकेट में कुछ एनआरआई व्यवसायी शामिल हैं जो अन्य आर्थिक अपराधों जैसे लिमिटेड कंपनियों में बेनामी शेयरों के निवेश और प्रचार और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में भी शामिल हैं। गहन जांच से इन अपराधियों और राष्ट्र विरोधियों को सामने लाया जाएगा। यदि भारत सरकार कोई कानून लाती है तो इस प्रकार के मामलों में शामिल कई लोग सामने आ जायेंगे और भारी मात्रा में काला धन सामने आ जायेगा। यह बिना किसी संदेह के साबित हो जाएगा कि हाल ही में कनाडा की धरती से हमारे देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के दोषी पाए गए लोग इस प्रकार के वर्क परमिट विक्रेताओं द्वारा वहां भेजे गए व्यक्ति हैं। सरकार इस प्रकार की अवैध गतिविधियों की कमाई से बनाई गई भारी काली कमाई और संपत्तियों का पता लगाएगी।
हमारी केंद्र सरकार को इस प्रकार के अपराधियों को पकड़ने के लिए तत्काल कुछ कदम उठाने चाहिए और उन्हें सजा के दायरे में लाना चाहिए। यदि इसमें देरी हुई तो आपराधिक मानसिकता वाले एनआरआई व्यवसायी वर्क परमिट जारी करने के इस धंधे में सक्रिय हैं और हमारे देश की भोली-भाली जनता को वीजा दिलाने में मदद करते हैं। हमारी सरकार को इन धोखेबाजों की इन गतिविधियों को रोकना चाहिए और समाज के साथ-साथ पूरे देश की सुरक्षा को बचाना चाहिए।
लेखक – सुरेश कुमार गारोदिया, गोहाटी, असम।

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नव विकसित सस्ता रेडिएटिव पेंट भवनों को ठंडा करने के लिए बिजली की खपत को कम कर सकता है

एक नया सस्ता, पर्यावरण-अनुकूल रेडिएटिव (विकिरण वाला) कूलिंग पेंट, जिसे विशेष रूप से गर्म मौसम की स्थिति में इमारतों, पेवर्स (फर्श बनाने वाली सामग्री) और टाइल्स जैसी संरचनाओं को प्रभावी ढंग से ठंडा करने के लिए विकसित किया गया है। यह बिजली की खपत को कम कर सकता है और गर्मी के दिनों में जरूरी राहत दे सकता है।

वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) के बढ़ने और शहरी ताप द्वीप प्रभावों के कारण शीतलन प्रौद्योगिकियां मानव जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। एयर-कंडीशनर (एसी), बिजली के पंखे और रेफ्रिजरेटर जैसे सक्रिय शीतलन उपकरण भारी मात्रा में बिजली की खपत करते हैं। बड़े पैमाने पर बिजली की इस मांग के साथ सक्रिय शीतलन उपकरण भी काफी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जिससे पृथ्वी की सतह के तापमान में बढ़ोतरी होती है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए विकिरण शीतलन तकनीक विकसित की गई है, जो बिजली की खपत के बिना वायुमंडलीय संचरण विंडो (8-13 माइक्रोमीटर) के माध्यम से शीतल वातावरण (लगभग 3 केल्विन) में सीधे तापीय विकिरण उत्सर्जित करके ठंडी सतह प्रदान करती है। इसके परिणामस्वरूप हाल ही में पैसिव डेटाइम रेडिएटिव कूलिंग (पीडीआरसी) ने पेवर्स, टाइल्स, बिल्डिंग और ऑटोमोबाइल कूलिंग, सौर सेल और व्यक्तिगत थर्मल प्रबंधन जैसे कई अनुप्रयोगों के लिए काफी अधिक रुचि उत्पन्न की है।

बेंगलुरु स्थित जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर) में प्रोफेसर बिवास साहा ने शोधकर्ताओं- प्रसन्ना दास, सौरव रुद्र, कृष्ण चंद मौर्य के सहयोग से अपने नेतृत्व में एक शानदार रेडिएटिव कूलिंग पेंट प्रस्तुत किया है। इसे एक अभिनव एमजीओ-पीवीडीएफ पॉलिमर नैनोकम्पोजिट से विकसित किया गया है। कम लागत वाला यह समाधान-संसाधित पेंट उच्च सौर परावर्तन और अवरक्त तापीय उत्सर्जन के साथ महत्वपूर्ण शीतलन क्षमताओं को प्रदर्शित करता है। जेएनसीएएसआर, जो कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है, के वैज्ञानिकों के प्रयोगात्मक निष्कर्षों से यह बात सामने आई है कि उपचारित पेवर की सतह का तापमान तेज धूप के नीचे लगभग 10 डिग्री सेल्सियस कम हो जाता है। यह पारंपरिक सफेद पेंट की तुलना में लगभग दोगुना है।

इन शोधकर्ताओं ने एक सरल समाधान-संसाधित तकनीक का उपयोग करके पॉलिमर नैनोकम्पोजिट पेंट विकसित किया। इसके लिए उन्होंने पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध, सस्ते, गैर विषैले और गैर-हानिकारक पदार्थों से तैयार अल्ट्रा-व्हाइट और अल्ट्रा-एमिसिव मैग्नीशियम ऑक्साइड (एमजीओ)- पॉलीविनाइलिडीन फ्लोराइड (पीवीडीएफ) नैनो-कंपोजिट का उपयोग किया। शुरुआत में पॉलिमर पाउडर को विलायक का उपयोग करके एक सॉल्यूशन में बदल दिया गया और इसके बाद डाईइलेक्ट्रिक नैनोकणों को पॉलिमर मैट्रिक्स के अंदर प्रसारित किया गया। इस तैयारी के बाद विकसित पॉलिमर नैनोकम्पोजिट पेंट के ऑप्टिकल गुणों को चिह्नित करने के लिए विभिन्न स्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीकों का उपयोग किया गया। थर्मोकपल का उपयोग करके पेंट के तापमान को मापकर, तेज धूप के तहत उत्कृष्ट शीतलन प्रदर्शन को प्रदर्शित किया गया।

डाईइलेक्ट्रिक नैनो कणों के साथ अनुकूलित एमजीओ-पीवीडीएफ के परिणामस्वरूप पॉलिमर से 96.3 फीसदी का बड़ा सौर परावर्तन और एमजी─ओ बॉन्ड कंपन व अन्य स्ट्रेचिंग/बॉन्डिंग कंपन के कारण 98.5 फीसदी का रिकॉर्ड उच्च तापीय उत्सर्जन हुआ। नैनोकम्पोजिट पेंट में जल-प्रतिरोधी हाइड्रोफोबिक गुण दिखते हैं और इसे उच्च एकरूपता व अच्छे आसंजन के साथ पेवर्स, लकड़ी की छड़ियों आदि पर आसानी से लेपित किया जा सकता है।

जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर) में एसोसिएट प्रोफेसर  प्रोफेसर बिवास साहा ने कहा, “हमारे अभिनव अनुसंधान ने एक लागत प्रभावी और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ पेंट को तैयार किया गया है, जो गर्मी के दिनों में सतह के तापमान (इमारतों, टाइलों, पेवर्स आदि सहित) को 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक कम करने में सक्षम है। हम मानना है कि इस पेंट के सीधे उपयोग से चिलचिलाती गर्मी के दिनों में यह काफी राहत मिलेगी, जिससे शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों को समान रूप से लाभ होगा।”

यह कार्य एक विली प्रकाशन एडवांस्ड मेटेरियल टेक्नोलॉजीज में प्रकाशित किया गया है। यह  कूलिंग अनुप्रयोगों के निर्माण के लिए रेडियेटिव कूलिंग पेंट के उपयोग को लेकर उद्योगों को प्रेरित कर सकता है। इन निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि विनिर्माण में एमजीओ-पीवीडीएफ कूलिंग पेंट को अपनाने से एयर कंडीशनिंग पर निर्भरता को काफी कम किया जा सकता है, जिससे इसके कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों में में कमी आएगी।

प्रकाशन:

1. पी. दास, एस. रुद्र, के. सी. मौर्य, और बी. साहा, “पैसिव डेटाइम रेडिएटिव कूलिंग के लिए अल्ट्रा-एमिसिव एमजीओ-पीवीडीएफ पॉलिमर नैनोकम्पोजिट पेंट” एडवांस्ड मटेरियल टेक्नोलॉजी 2023 2301174 https://doi.org/10.1002/admt.202301174

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चित्रसस्तेहाइड्रोफोबिकसमाधानसंसाधित नैनोकम्पोजिट रेडिएटिव कूलिंग पेंट का विकास विशेष रूप से भूमध्यरेखीय क्षेत्रोंदक्षिणपूर्व एशियामध्यपूर्व और अफ्रीका में शहरी ताप द्वीप प्रभावों का समाधान करेगा। यहां एमजीओपीवीडीएफ नैनोकम्पोजिट पेंट को अल्ट्राहाई सौर परावर्तन (96.3 फीसदीऔर रिकॉर्डउच्च तापीय उत्सर्जन (98.5 फीसदीके साथ विकसित किया गया है। तापमान में ~10 की कमी प्रदर्शित करना, इसके उल्लेखनीय विकिरणीय शीतलन प्रदर्शन को दिखाता है।

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चित्र 1: (रेडिएटिव कूलिंग पेंट से रंगी गई बिल्डिंग का रेखाचित्र। (बीएमजीओपीवीडीएफ कोटिंग का प्रतिबिंब स्पेक्ट्रा और एएम 1.5 सौर स्पेक्ट्रम के साथ एक वाणिज्यिक सफेद पेंट। (सीएमजीओपीवीडीएफ मिश्रित फिल्मवाणिज्यिक पेंट, 300 केल्विन पर ब्लैकबॉडी (बीबीस्पेक्ट्रम और वायुमंडलीय ट्रांसमिशन प्रोफाइल का तापीय उत्सर्जन स्पेक्ट्रा प्रदर्शित किया गया है। (डी) भारत के बेंगलुरु में एक सपाट छत पर क्षेत्र परीक्षण के लिए नियोजित विकिरण शीतलन माप सेटअप का चित्र। (उपपरिवेश के संबंध में एमजीओपीवीडीएफ कोटिंग के बाहरी रियल टाइम शीतलन के नतीजे। (एफबाहर में एक लेपित और एक बिना लेपित सिरेमिक पेवर की तस्वीर और तापीय चित्र।

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महिला आरक्षण बिल क्यों जरूरी

महिला आरक्षण विधेयक पर यूं तो 45 साल पहले 1974 में सवाल उठ चुका था और महिला आरक्षण बिल पहली बार 1996 में देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया था और उसके बाद कम से काम 10 बार यह बिल पेश किया गया लेकिन आपसी सहमति न होने के कारण और महिलाओं को आरक्षण की जरूरत ही क्या है इस विचार के मद्देनजर इस बिल को मान्यता नहीं मिली। यहां तक कि इस बिल को लेकर मारपीट तक की नौबत आ गई थी। शरद यादव यहां तक कह चुके थे कि, “इस बिल से परकटी महिलाओं को ही फायदा होगा।”

2010 में जब राज्यसभा में यह बिल पास हुआ तो करण थापर ने एक प्राइम टाइम बहस में कहा कि, “महिलाओं को सशक्त बनाना तो ठीक है लेकिन इसके लिए आरक्षण की जरूरत क्या है?”  इन सब बातों के बीच में एक सवाल मेरे मन में भी आया कि महिलाओं को आरक्षण की जरूरत क्या है? जब हम बराबरी की बात करते हैं तो महिलाओं को आरक्षण क्यों चाहिए? जब इतना माद्दा है कि आप अपने आपको काबिल साबित कर सकती हैं तो आरक्षण क्यों? और यूं भी आरक्षण द्वारा चुनकर आई हुई महिलाएं सिर्फ राजनीतिक मोहरा भर होती है। हमारे विविधता वाले देश में जात-पात का मुद्दा बहुत बड़ा है जिसे राजनेताओं ने अपने राजनीतिक हित के लिए उत्थान के नाम पर “आरक्षण” की बैसाखी थमा रखी है। जब तक आरक्षण रहेगा तब तक जाति रहेगी,जब तक जाति रहेगी तब तक कुछ लोगों की राजनीति रहेगी और जब तक उनकी राजनीति रहेगी तब तक आरक्षण रहेगा।
इतने सालों से अटका हुआ यह बिल 19 सितंबर 2023 को पास हुआ हालांकि यू एन वूमेन का डाटा बताता है कि संसदीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश हमसे आगे है। दुनिया के 198 देशों की लिस्ट में महिलाओं की संसदीय भागीदारी के मामले में भारत का नंबर 148 है जबकि पाकिस्तान 116 और बांग्लादेश 111 नंबर पर है और बात हम महिलाओं के उत्थान की करते हैं। जब हम इन देशों से अपने बेहतर और आगे होने की बात करते हैं तो इस मसले पर पीछे क्यों है? एक विचार यह भी आता कि महिलाओं के लिए आरक्षण क्यों जरूरी है? अपनी दबंगई के चलते पुरुष महिलाओं को राजनीति में आगे नहीं बढ़ने देते तो आरक्षण अनिवार्य रूप से  संसद में महिलाओं की भागीदारी तय करेगा। अभी भी ग्राम पंचायतों पर ध्यान दें तो पाएंगे कि आज भी मुखिया चुनी हुई महिलाओं का कार्य उनके पुरुष ही संभालते हैं और आरक्षण द्वारा चुनी गईं महिलाएं ही संसद में जा सकेंगी उनके पुरुष नहीं।
आरक्षण इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि समाज में आज भी महिलाओं की भूमिका दोयम दर्जे की है और आरक्षण राजनीति में भागीदारी के लिए महिलाओं की अनिवार्यता को निश्चित करेगी। 33% आरक्षण के बजाय संसद में भागीदारी भी समान रूप से होनी चाहिए। इतने सालों से अटका हुआ यह बिल कहीं सरकार द्वारा चुनावी समीकरण को साधने का हथियार तो नहीं? चुनाव के वक्त ही तीन तलाक, 370 जैसे मुद्दे लाये जाते हैं। कहीं यह बिल भी 2024 की तैयारी में अहम भूमिका निभायेगा?
यह भी संभव है कि राजनीतिक हित साधने के लिए महिला आरक्षण बिल पर राजनेताओं के घर की महिलाओं को ही प्रमुखता दी जाये लेकिन फिर भी महिलाओं की भागीदारी धीरे-धीरे संसद में उनके लिए रास्ता बनायेगी और वह सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाएंगी। हालांकि इस बिल पर कानून बनने में अभी समय है और यह अभी दूर के ढोल सुहावने जैसा लगता है। इस बिल के आ जाने से फिर से सवाल खड़े होने लगे हैं और यह न्यूज चैनलों के बहस का मुद्दा बन चुका है। भारत जैसे देश में जहां सामाजिक, जातिगत और जेंडर भेदभाव की जड़े इतनी गहरी है कि बिना आरक्षण के यह बिल कार्यान्वित होता हुआ संभव नजर नहीं आता। संसद में महिलाओं की भागीदारी से उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन में बदलाव आयेगा और उनकी राजनीतिक सक्रियता बढ़ेगी।

प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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‘‘आधुनिक शिक्षा एवं अनुशासित जीवन के मूल मंत्र

लखनऊ 10 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, राम प्रसाद बिस्मिल मेमोरियल पब्लिक स्कूल, काकोरी, लखनऊ के तत्त्वावधान में नक्षत्र फाउण्डेशन द्वारा ‘‘आधुनिक शिक्षा एवं अनुशासित जीवन के मूल मंत्र ‘‘ विषयक शैक्षिक दक्षता वृद्धि व्याख्यानमाला की द्वितीय प्रस्तुति का आयोजन किया गया। उक्त व्याख्यानमाला में वक्ता के रूप में डा0 सतीश तिवारी, असिस्टेंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ दर्शन एवं संस्कृति, श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय, कटरा, जम्मू और कश्मीर, विद्यालय के प्रबंधक मो0 इरफान हुसैन, विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती विनीता अग्निहोत्री, नक्षत्र फाउण्डेशन से सुश्री सोनम सिंह उपस्थित रहे।

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