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लेख/विचार

हिंदी भाषा का महत्व

हमारा देश विविध भाषाओं वाला देश है। हर प्रांत की अपनी एक बोली है, महत्व है फिर भी हिंदी एक ऐसी भाषा है जो सभी जगह आपसी संवाद के लिए सुगम्य है और अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती है और समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक संपर्क के माध्यम के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। सुमित्रानंदन पंत ने कहा था कि “हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिसके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। “हर साल में विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन भारत में 14 सितंबर को होता है।अलग-अलग तारीखों पर हिंदी दिवस मनाने का क्या औचित्य? विश्व हिंदी दिवस और राष्ट्रीय हिंदी दिवस में क्या अंतर है? हालांकि दोनों का उद्देश्य हिंदी का प्रसार करना ही है फिर भी दोनों में यह अंतर क्यों? यह अंतर भौगोलिक स्तर पर है और राष्ट्रीय हिंदी दिवस भारत में हिंदी को आधिकारिक दर्जा प्राप्त होने की खुशी में मनाया जाता है तो वहीं विश्व हिंदी दिवस दुनिया में हिंदी को वही दर्जा दिलाने के प्रयास में मनाया जाता है। पहला हिंदी दिवस नागपुर में 10 जनवरी 1974 में मनाया गया था। यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर का था, जिसमें 30 देश के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। आजादी के बाद हिंदी को राजभाषा बनाने के लिए कई बहसें हुईं। अहिंदी भाषी राज्य हिंदी को राजभाषा मानने के पक्ष में नहीं थे। दक्षिणी राज्य के लोग इसे अपने साथ अन्याय मान रहे थे इसलिए हिंदी भाषा राज्यों का विरोध देखते हुए संविधान निर्माता ने हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दे दिया और इस तरह 1953 को राजभाषा प्रचार समिति वर्धा ने 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया।

हालांकि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल नहीं है। राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अंतर लोग जल्दी से समझ नहीं पाते हैं। पहला अंतर इन्हें बोलने वाली संख्या से और दूसरा अंतर इनके प्रयोग करने का है। राष्ट्रभाषा जनसाधारण की भाषा होती है और राजभाषा सरकारी कार्यालय और सरकारी कर्मियों के द्वारा उपयोग में लाई जाती है। कुछ देशों में राजभाषा और राष्ट्रभाषा एक ही है लेकिन बहुभाषी देश में राजभाषा राष्ट्रभाषा अलग-अलग होती है। राष्ट्रभाषा किसी देश को एक करने के लिहाज से बेहद महत्त्वपूर्ण होती है। यही कारण है कि महात्मा गांधी ने वर्ष 1917 में गुजरात के भरूच में हुए गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की वकालत की थी- “भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।”
पूरे विश्व में 150 से अधिक देशों में फैले 2 करोड़ भारतीयों द्वारा हिंदी बोली जाती है इसके अलावा 40 देशों में 600 से अधिक विश्वविद्यालय और स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा मंदारिन है तो दूसरा स्थान हिंदी का आता है। यूनेस्को की मान्यता वाली सात भाषाओं में एक भाषा हिंदी है। आज हिंदी भाषा इस समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यही है कि अब तक यह रोजगार की भाषा नहीं बन पाई है। आज तमाम मल्टीनेशनल कंपनियां के दैनिक कामकाज का प्रबंधन, संचालन का माध्यम अंग्रेजी है और अपनी निजी हितों को साधने के लिए सामाजिक और राजनीतिक संगठन भी हिंदी का विरोध करते हैं। अभी भी भारत में उच्च शिक्षा का माध्यम भी अंग्रेजी ही है। आज भी हिंदी की जागरूकता के लिए सम्मेलनों का सहारा लेना पड़ता है। हालांकि इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल से हिंदी भाषा को बढ़ावा मिल रहा है। गूगल के अनुसार भारत में अंग्रेजी भाषा में जहां विषय वस्तु निर्माण रफ्तार 19% है तो हिंदी के लिए यह आंकड़ा 94% है। भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिन्दी है। इसलिए इसको एक-दूसरे में प्रचारित करना चाहिये।
चूंकि बहुसंख्यक भारतीय उपभोक्ता हिंदी भाषी हैं और बाजार में विभिन्न प्रकार की गतिविधियां चलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल हो रहा है, जिसके कारण इंटरनेट पर ज्यादातर सामग्री हिंदी में उपलब्ध करवाई जा रही है। यह भी हिंदी के विस्तार में मुख्य भूमिका निभा रहा है। इंटरनेट पर हिंदी सामग्री की मांग 5 गुना ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। स्मार्टफोन में औसतन एप्लीकेशंस 25 प्रतिशत हिंदी में हैं। कम्प्यूटर में लिखने के लिए हिंदी के विभिन्न फॉन्ट्स तथा टूल्स विकसित किए गए हैं। स्मार्टफोन में हिंदी के कुंजीपटल उपलब्ध हैं, जिनका इस्तेमाल इंटरनेट पर सोशल मीडिया तथा अन्य ऑनलाइन सेवाओं में हिंदी लिखने के लिए किया जा सकता है।
बावजूद इसके आज सोशल मीडिया पर हिंदी का उपयोग जिस टूटे-फूटे अंदाज में किया जा रहा है, वह  चिंतनीय विषय है। इससे भाषा का स्वरूप व सुंदरता ही समाप्त हो जाती है। एक  समय वह था, जब स्कूली शिक्षा की शुरुआत हिंदी माध्यम से होती थी और दूसरी ओर वर्तमान की स्थिति है जहां इसकी शुरुआत अंग्रेजी से होती है। भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिन्दी है। इसलिए इसको एक-दूसरे में प्रचारित करनी चाहिए ताकि हिंदी को सेमिनार और सम्मेलनों का सहारा ना लेना पड़े।
~प्रियंका वर्मा महेश्वरी

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पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय लंबित मामलों के निष्पादन एवं स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए 2 से 31 अक्टूबर 2023 तक विशेष अभियान 3.0 में शामिल होगा

विशेष अभियान 3.0 के समन्वय और संचालन के लिए नोडल विभाग प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग ने स्वच्छता को संस्थागत रूप देने और सरकारी कार्यालयों में लंबित मामलों को कम करने के वास्ते 2 अक्टूबर से 31 अक्टूबर, 2023 तक चलाये जाने वाले विशेष अभियान के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। तदनुसार, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय लंबित मामलों के निष्पादन और स्वच्छता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 2 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2023 तक चलने वाले विशेष अभियान 3.0 में शामिल हो रहा है। मंत्रालय अभियान के 15 सितंबर 2023 से शुरू होने वाले प्रारंभिक चरण में भी शामिल हो रहा है। यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय स्वच्छता को संस्थागत बनाने और मंत्रालय में लंबित मामलों को कम करने के उद्देश्य से 2 से 31 अक्टूबर, 2022 तक चलाये गये विशेष अभियान 2.0 में भी शामिल हुआ था। इस अभियान में मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय, अधीनस्थ कार्यालय, स्वायत्त निकाय भी शामिल हुए थे।

दिसंबर 2022 से अगस्त 2023 के दौरान पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा उसके संगठनों द्वारा हासिल की गयी उपलब्धियों के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं….

 

  •  58,433 जन शिकायतों का निपटारा किया गया।
  •  14,886 वर्ग फुट जगह खाली कराई गई।
  •  21,15,174 रुपये स्क्रैप निस्तारण से राजस्व अर्जित किया गया।
  •  5028 फाइलें हटाई गईं।
  •  182 स्वच्छता अभियान।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय पिछले अभियानों के उद्देश्यों और उपलब्धियों को आगे बढ़ाने और विशेष अभियान 3.0 के प्रमुख उद्देश्यों को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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पत्रकारिता का पतन: एक साझा जिम्मेदारी -द हरिश्चंद्र

आज के तेजी से विकसित हो रहे मीडिया परिदृश्य में पत्रकारिता की स्थिति चिंता का विषय बन गई है। कई लोग पत्रकारिता की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और सत्यनिष्ठा में कथित गिरावट पर अफसोस जताते हैं। जबकि पत्रकार निस्संदेह पत्रकारिता के सिद्धांतों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि पत्रकारिता की स्थिति की जिम्मेदारी केवल उनके कंधों पर नहीं है। मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र में उपभोक्ताओं और प्रतिभागियों के रूप में जनता भी पत्रकारिता के भविष्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाती है। यह एक साझा जिम्मेदारी है, और चुनौतियों से निपटने और एक स्थायी और मजबूत पत्रकारिता पारिस्थितिकी तंत्र की दिशा में काम करने के लिए पत्रकारों और जनता दोनों की भूमिका को समझना आवश्यक है।

पत्रकार की भूमिका:

पत्रकार परंपरागत रूप से सूचना के द्वारपाल रहे हैं, जिनका काम जांच करना, रिपोर्टिंग करना और जनता के सामने समाचार प्रस्तुत करना है। वे सत्य की खोज करने, सटीकता सुनिश्चित करने और नैतिक मानकों को बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं। पत्रकार लोकतंत्र के संरक्षक हैं, जो सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाते हैं और समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं। हालाँकि, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ऐसे उदाहरण हैं जहाँ पत्रकार इन आदर्शों से पीछे रह गए हैं, दबावों, पूर्वाग्रहों के आगे झुक गए हैं, या ईमानदारी से समझौता कर लिया है। इन मामलों ने निस्संदेह पत्रकारिता में जनता के विश्वास को कम करने में योगदान दिया है। बहरहाल, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कुछ लोगों के कार्यों से कई पत्रकारों द्वारा प्रदर्शित समर्पण और व्यावसायिकता पर असर नहीं पड़ना चाहिए जो उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना जारी रखते हैं।

जनता की भूमिका:

समाचार के उपभोक्ता के रूप में जनता, मीडिया परिदृश्य को आकार देने में अपार शक्ति रखती है। सोशल मीडिया और नागरिक पत्रकारिता के युग में, व्यक्ति समाचार प्रसार और उपभोग में सक्रिय भागीदार बन गए हैं। हालाँकि, इस नई शक्ति के साथ प्रस्तुत की गई जानकारी के साथ आलोचनात्मक ढंग से जुड़ने की जिम्मेदारी भी आती है। हालांकि यह सच है कि कुछ मीडिया आउटलेट्स द्वारा गलत सूचना और सनसनीखेज फैलाया जा सकता है, जनता के लिए विवेक का प्रयोग करना और विश्वसनीय स्रोतों की तलाश करना आवश्यक है। विश्वसनीय पत्रकारिता का समर्थन करके, प्रतिष्ठित समाचार आउटलेट्स की सदस्यता लेकर और सटीक जानकारी साझा करके, जनता एक स्वस्थ मीडिया वातावरण में योगदान कर सकती है।

मीडिया साक्षरता और सहभागिता:

जनता की ज़िम्मेदारी का एक महत्वपूर्ण पहलू मीडिया साक्षरता कौशल विकसित करना है। मीडिया साक्षरता व्यक्तियों को समाचार सामग्री का आलोचनात्मक विश्लेषण, मूल्यांकन और व्याख्या करने का अधिकार देती है। पत्रकारिता प्रथाओं पर खुद को शिक्षित करके, तथ्य-जांच और पूर्वाग्रहों को समझकर, व्यक्ति समाचार स्रोतों की विश्वसनीयता और विश्वसनीयता के बारे में सूचित निर्णय ले सकते हैं। इसके अलावा, पत्रकारों और समाचार संगठनों के साथ रचनात्मक बातचीत में शामिल होने से पारदर्शिता, जवाबदेही और मीडिया और जनता के बीच मजबूत रिश्ते को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।

गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता का समर्थन:

वित्तीय स्थिरता पत्रकारिता का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। जैसे-जैसे मीडिया परिदृश्य महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुजर रहा है, पारंपरिक राजस्व मॉडल बाधित हो गए हैं। विज्ञापन राजस्व कम हो गया है, जिसके कारण बजट में कटौती, छँटनी और पत्रकारिता की गुणवत्ता में संभावित समझौता हुआ है। इसका प्रतिकार करने के लिए, जनता प्रतिष्ठित समाचार आउटलेट्स की सदस्यता लेकर, डिजिटल सामग्री के लिए भुगतान करके, या गैर-लाभकारी समाचार संगठनों को दान करके सक्रिय रूप से गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता का समर्थन कर सकती है। ऐसा करके, व्यक्ति पत्रकारिता की वित्तीय व्यवहार्यता में योगदान करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि पत्रकारों के पास उच्च गुणवत्ता वाली, स्वतंत्र रिपोर्टिंग करने के लिए संसाधन और स्वतंत्रता है।

कुल मिलाकर, पत्रकारिता की गिरावट के लिए केवल पत्रकारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जहां वे पेशेवर मानकों और नैतिकता को बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं, वहीं जनता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आलोचनात्मक ढंग से संलग्न होकर, मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देकर और प्रतिष्ठित समाचार आउटलेटों का समर्थन करके, व्यक्ति पत्रकारिता के पुनरुद्धार में योगदान दे सकते हैं। एक जीवंत और मजबूत मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पत्रकारों और जनता के बीच साझेदारी की आवश्यकता होती है, जो सटीक, विश्वसनीय और सार्थक जानकारी के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करते हैं। केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम चुनौतियों से निपट सकते हैं और एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जहां पत्रकारिता लोकतंत्र के स्तंभ और सकारात्मक बदलाव के लिए एक आवश्यक शक्ति के रूप में विकसित हो। –द हरिश्चंद्र

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इस बार जन्माष्टमी का त्यौहार 6 सितम्बर को मनाया जाएगा

Krishna Janmashtami 2023: कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष योग, ऐसे करेंगे पूजा और  व्रत को कान्हा पूर्ण करेंगे हर कामना, krishna-janmashtami -2023-date-and-time-janmashtami-puja-vidhi-and ...प्रतिवर्ष भाद्रपक्ष कृष्णाष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। दरअसल मान्यता है कि इसी दिन मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया था। इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण की 5250वीं जन्माष्टमी मनाई जा रही है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस बार जन्माष्टमी का त्यो हार 6 सितम्बर को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल अष्टमी तिथि बुधवार 6 सितंबर को दोपहर 3.37 बजे शुरू होगी, जिसका समापन 7 सितंबर की शाम 4 बजकर 14 मिनट पर होगा। वैसे जन्माष्टमी का त्योहार आमतौर पर दो दिन मनाया जाता है, पहले दिन (स्मार्त) गृहस्थियों द्वारा तथा दूसरे दिन वैष्णव सम्प्रदाय द्वारा। गृहस्थ लोग इस बार 6 सितंबर को जन्माष्टमी मनाएंगे जबकि वैष्णव सम्प्रदाय में 7 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव मनाया जाएगा।

भारतीय संस्कृति में जन्माष्टमी का इतना महत्व क्यों है, यह जानने के लिए श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन और उनकी अलौकिक लीलाओं को समझना जरूरी है। द्वापर युग के अंत में मथुरा में अग्रसेन नामक राजा का शासन था। उनका पुत्र था कंस, जिसने बलपूर्वक अपने पिता से सिंहासन छीन लिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव के साथ हुआ। एक दिन जब कंस देवकी को उसकी ससुराल छोड़ने जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई कि हे कंस! जिस देवकी को तू इतने प्रेम से उसकी ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसी का आठवां बालक तेरा संहारक होगा। आकाशवाणी सुन कंस घबरा गया और देवकी की ससुराल पहुंचकर उसने अपने जीजा वसुदेव की हत्या करने के लिए तलवार खींच ली। तब देवकी ने अपने भाई कंस से निवेदन करते हुए वादा किया कि उसके गर्भ से जो भी संतान होगी, उसे वह कंस को सौंप दिया करेगी। कंस ने देवकी की विनती स्वीकार कर ली और वसुदेव-देवकी को कारागार में डाल दिया।
कारागार में देवकी ने पहली संतान को जन्म दिया, जिसे कंस ने मार डाला। इसी प्रकार एक-एक कर उसने देवकी के सात बालकों की हत्या कर दी। जब कंस को देवकी के 8वें गर्भ की सूचना मिली तो उसने वसुदेव-देवकी पर पहरा और कड़ा कर दिया। आखिरकार वह घड़ी भी आ गई, जब देवकी ने कृष्ण को जन्म लिया। उस समय घोर अंधकार छाया हुआ था तथा मूसलाधार वर्षा हो रही थी। तभी वसुदेव जी की कोठरी में अलौकिक प्रकाश हुआ। उन्होंने देखा कि शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी चतुर्भुज भगवान उनके सामने खड़े हैं। भगवान के इस दिव्य रूप के दर्शन पाकर वसुदेव और देवकी उनके चरणों में गिर पड़े। भगवान ने वसुदेव से कहा, ‘‘अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नंद के घर पहुंचा दो, जहां अभी एक कन्या ने जन्म लिया है। मेरे स्थान पर उस कन्या को कंस को सौंप दो। मेरी ही माया से कंस की जेल के सारे पहरेदार सो रहे हैं और कारागार के सारे ताले भी अपने आप खुल गए हैं। यमुना भी तुम्हें जाने का मार्ग अपने आप देगी।’’
वसुदेव ने भगवान की आज्ञा पाकर शिशु को छाज में रखकर अपने सिर पर उठा लिया। यमुना में प्रवेश करने पर यमुना का जल भगवान श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श करने के लिए हिलोरं, लेने लगा और जलचर भी श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श के लिए उमड़ पड़े। गोकुल पहुंचकर वसुदेव सीधे नंद बाबा के घर पहुंचे। घर के सभी लोग उस समय गहरी नींद में सोये हुए थे पर सभी दरवाजे खुले पड़े थे। वसुदेव ने नंद की पत्नी यशोदा की बगल में सोई कन्या को उठा लिया और उसकी जगह श्रीकृष्ण को लिटा दिया। उसके बाद वसुदेव मथुरा पहुंचकर अपनी कोठरी में पहुंच गए। कोठरी में पहुंचते ही कारागार के द्वार अपने आप बंद हो गए और पहरेदारों की नींद खुल गई।
कंस को जैसे ही कन्या के जन्म का समाचार मिला, वह तुरन्त कारागार पहुंचा और कन्या को बालों से पकड़कर शिला पर पटककर मारने के लिए ऊपर उठाया लेकिन कन्या अचानक कंस के हाथ से छूटकर आकाश में पहुंच गई। आकाश में पहुंचकर उसने कहा, ‘‘मुझे मारने से तुझे कुछ लाभ नहीं होगा। तेरा संहारक गोकुल में सुरक्षित है।’’ यह सुनकर कंस के होश उड़ गए। उसके बाद कंस ने उन्हें मारने के लिए अनेक प्रयास किए। कंस ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए अनेक भयानक राक्षस भेजे परन्तु श्रीकृष्ण ने एक-एक कर उन सभी का संहार कर दिया। बड़ा होने पर कंस का वध कर उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया और अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को कारागार से मुक्त कराया। तभी से भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की स्मृति में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा।
बाल्याकाल से लेकर बड़े होने तक श्रीकृष्ण की अनेक लीलाएं विख्यात हैं। उन्होंने अपने बड़े भाई बलराम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान जी का आव्हान किया था, जिसके बाद हनुमान जी ने बलराम की वाटिका में जाकर बलराम से युद्ध किया और उनका घमंड चूर-चूर कर दिया था। श्रीकृष्ण ने नररकासुर नामक असुर के बंदीगृह से 16100 बंदी महिलाओं को मुक्त कराया था, जिन्हें समाज द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाने पर उन महिलाओं ने श्रीकृष्ण से अपनी रक्षा की गुहार लगाई और तब श्रीकृष्ण ने उन सभी महिलाओं को अपनी रानी होने का दर्जा देकर उन्हें सम्मान दिया था।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेवा शुल्क से संबंधित अपने निर्देशों का पालन न करने पर रेस्तरां और होटल एसोसिएशनों पर 1,00,000 रुपये का जुर्माना लगाया

माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने 24 जुलाई, 2023 को आदेश पारित कर नेशनल रेस्‍टोरेंट  एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) और फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्‍टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएचआरएआई) को 12 अप्रैल , 2023 के अपने आदेश के अनुसार निर्देशों का पूर्ण गैर-अनुपालन करने पर जुर्माने के रूप में प्रत्येक को 1,00,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। माननीय न्यायालय के निर्देश के अनुसार जुर्माने का भुगतान भारत सरकार के उपभोक्ता मामले विभाग को किया जाएगा ।

उल्लेखनीय है कि 12 अप्रैल, 2023 के आदेश के अनुसार न्यायालय ने निर्देश दिया था कि:-

(i) दोनों एसोसिएशन 30 अप्रैल 2023 तक अपने सभी सदस्यों की पूरी सूची दाखिल करेंगे जो वर्तमान रिट याचिकाओं का समर्थन कर रहे हैं।

(ii) दोनों एसोसिएशन निम्नलिखित पहलुओं पर अपना पक्ष रखेंगे और एक विशिष्ट हलफनामा दायर करेंगे: –

(ए) उन सदस्यों का प्रतिशत जो अपने बिलों में अनिवार्य शर्त के रूप में सेवा शुल्क लगाते हैं

(बी) क्या एसोसिएशन को सेवा शुल्क शब्द को वैकल्पिक शब्दावली से बदलने पर आपत्ति होगी ताकि उपभोक्ता के मन में यह भ्रम पैदा न हो कि यह ‘कर्मचारी कल्याण निधि’, ‘कर्मचारी कल्याण अंशदान’, ‘कर्मचारी शुल्क’, ‘कर्मचारी कल्याण शुल्क’ आदि जैसी सरकारी लेवी नहीं है।

(सी) उन सदस्यों का प्रतिशत जो सेवा शुल्क को स्वैच्छिक और अनिवार्य नहीं बनाने के इच्छुक हैं, उपभोक्ताओं को उस सीमा तक अपना अंशदान देने का विकल्प दिया जाता है, जिस सीमा तक वे स्वेच्छा से अधिकतम प्रतिशत के अधीन जो शुल्क चाहते हैं, उसकी वसूली की जा सकती है।

रेस्तरां संघों को उपर्युक्त निर्देशों के अनुसार आवश्यक अनुपालन करना आवश्यक था। हालांकि, किसी भी एसोसिएशन ने उक्त आदेश के संदर्भ में हलफनामा दाखिल नहीं किया।

न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट धारणा है कि रेस्तरां संघ 12 अप्रैल, 2023 के आदेशों का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहे हैं और उन्होंने उत्तरदाताओं को उचित रूप से सेवा दिए बिना हलफनामा दायर किया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सुनवाई अदालत के समक्ष आगे न बढ़े।

न्यायालय ने प्रत्येक याचिका में लागत के रूप में 1,00,000/- रुपये के भुगतान की शर्त पर 4 दिनों के भीतर इन हलफनामों को ठीक से दाखिल करने का एक आखिरी मौका दिया, जिसका भुगतान वेतन और लेखा कार्यालय, उपभोक्ता मामले विभाग, नई दिल्ली को डिमांड ड्राफ्ट के रूप में किया जाना है। इस निर्देश का अनुपालन न करने पर हलफनामे को रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाएगा। मामले की सुनवाई अब 5 सितंबर, 2023 को होनी है ।

विदित है कि कई उपभोक्ताओं ने राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता हेल्पलाइन (एनसीएच) पर सेवा शुल्‍क जबरन वसूलने की शिकायत की है। जुलाई, 2022 में सीसीपीए द्वारा जारी दिशानिर्देशों के बाद से, 4,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं :-

ए) रेस्तरां/होटल द्वारा प्रदान की गई सेवा से असंतुष्ट होने पर भी उपभोक्ताओं को सेवा शुल्क का भुगतान करने के लिए मजबूर करना।

बी) सेवा शुल्क का भुगतान अनिवार्य बनाना।

सी) सेवा शुल्क को ऐसे शुल्क के रूप में चित्रित करना, जो सरकार द्वारा लगाया जाता है या जिसे सरकार की मंजूरी प्राप्त है।

डी) सेवा शुल्क देने का विरोध करने पर बाउंसरों सहित उपभोक्ताओं को शर्मिंदा करना और परेशान करना।

ई) ऐसे शुल्‍क के नाम पर 15 प्रतिशत, 14 प्रतिशत तक अत्यधिक पैसे वसूलना।

एफ) ‘एस/सी.’, ‘एससी’, ‘एससीआर’ या ‘एस’ चार्ज’ आदि जैसे अन्य कपटपूर्ण नामों से सेवा शुल्क भी वसूला गया है।

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जलता मणिपुर

मणिपुर जल रहा है काफी समय से जल रहा है, लगातार हिंसा की खबरें आ रही हैं। दो समुदाय मैतेई और कुकी के बीच होने वाले संघर्ष का नतीजा है सुलगता मणिपुर। वहाँ भाजपा की सरकार है लेकिन वहां की सरकार ने जनता का भरोसा खो दिया है। केंद्र सरकार की लगातार चुप्पी और नजरअंदाजी ने लोगों में रोष उत्पन्न कर दिया हैं। मन की बात के प्रसारण के समय वहां की जनता ने रेडियो तोड़कर अपना क्रोध प्रदर्शित किया। पूरी मन की बात में मणिपुर के लिए एक शब्द भी नहीं कहा गया था। बड़ी बात यह है कि वहां से मंत्री, विधायकों ने प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा लेकिन समयाभाव के कारण प्रधानमंत्री जी मिल नहीं सके। राज्यसभा सांसद के. वेनलेलवना ने  राष्ट्रपति शासन की मांग की। इतने लंबे समय तक सरकार के चुप रहने की क्या वजह हो सकती है? क्या यह जरूरी मुद्दा नहीं था कि मणिपुर की समस्या का शीघ्रातिशीघ्र समाधान किया जाए? अनगिनत लोगों का नरसंहार हो चुका है। मणिपुर राज्य सरकार के मंत्री के घर पर हमला बोल दिया और उनके निजी गोदाम और वहां खड़ी दो गाड़ियों को आग लगा दिया गया। और तो और मणिपुर के विधायकों को अपने ही मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं रह गया है तो फिर राष्ट्रपतिशासन क्यों नहीं लागू किया जा रहा है? दो समुदाय मिलकर लगातार उत्पात मचाये हुये हैं। पृष्ठभूमि यह है कि मणिपुर में तीन समुदाय है कुकी, नागा और मैतेई। कुकी और नागा आदिवासी समुदाय है तो वहीं मैतेई आदिवासी नहीं है। मैतेई और आदिवासियों के बीच मौजूदा संघर्ष पहाड़ी बनाम मैदानी विस्तार का संघर्ष है। मैतेई मणिपुर में बहुसंख्यक समुदाय है जबकि आदिवासी समुदायों की आबादी लगभग 40% से भी कम है। नागा और कुकी जनजातियों को एसटी की सूची में शामिल किया गया है, अधिकांश मैतेई समुदाय के लोगों को ओबीसी का दर्जा प्राप्त है और उनमें से कुछ को एससी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। मैतेई समुदाय की मांग 2012 से जोर पकड़ रही है और इसे मुख्य तौर पर शैडयूल्ड ट्राइब्स डिमांड कमेटी आफ मणिपुर (STDCM)उठाती रही है। 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले तक मैतेई समुदाय को जनजाति माना जाता था, भारत में मिलने के बाद यह दर्जा उनसे छिन गया। हाल ही में हाईकोर्ट में जब एसटी का दर्जा देने का मामला उठा तो दलील दी गई कि मैतेई समुदाय की पैतृक भूमि, परंपराओं, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए एसटी का दर्जा दिया जाना जरूरी है।
विरोध की कई वजह हैं मगर सबसे अहम यह है कि मैतेई समुदाय का आबादी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों ही मामलों में खासा प्रभुत्व है। राज्य विधानसभा की 60 में से 40 सीटें मैतेई समुदाय से आती हैं। ऐसे में जनजातियों को डर है कि यदि मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा मिल गया तो उनके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे।
शैडयूल्ड ट्राइब्स डिमांड कमेटी आफ मणिपुर (STDCM) का कहना है कि राज्य की आबादी में मैतेई समुदाय का हिस्सा घट रहा है। 1951 में जहाँ यह कुल आबादी का  59% थे वहीं 2011
की जनगणना में ये घटकर 44% रह गये। मैतेई यह भी दावा करते हैं कि एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ हिंसक विरोध सिर्फ एक दिखावा है। उनका वास्तविक लक्ष्य वन भूमि का सर्वेक्षण और संरक्षित क्षेत्र से अवैध अप्रवासियों को बेदखल करना है।
केंद्र सरकार चुप्पी क्यों साधे हुये है और गृहमंत्री ने इतनी देर से क्यों सुध ली? मंत्रीगणों से मिलने के बाद भी समस्या का समाधान सिफर रहा? अमित शाह के दौरे के बाद मुख्यमंत्री ने कुकी और मैतेई समुदाय से हथियार डालने की अपील की। मणिपुर में इस समय भीड़ का शासन चल रहा है और दशकों में बनाई गई संपत्तियां नष्ट हो रही है। स्थानीय अधिकारी स्थिति को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं और लोगों का पलायन जारी है। काफी समय बाद अमित शाह की सर्वदलीय बैठक बुलाई लेकिन नतीजा कुछ नहीं आया। प्रधानमंत्री से मनोज मुंतशिर मिल सकते हैं लेकिन उनके अपने मंत्री और विधायक नहीं? यह कैसा दोहरापन है? इस चुप्पी के कारण मणिपुर और कितना जलेगा?

~प्रियंका वर्मा महेश्वरी

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महिला सम्मान सिर्फ एक दिखावा

यह बहुत दुख की बात है कि हमारे देश का गौरव बढ़ाने वाली बेटियां अपने सम्मान (मेडल) को गंगा में बहाने की बात कही। इनकी आहत भावना और सरकार द्वारा किया जा रहा उपेक्षा पूर्ण व्यवहार न्याय की गुहार लगाती खिलाड़ियों में असंतोष की भावना उत्पन्न कर रही है। पुलिस द्वारा बलपूर्वक किया गया अनुचित आचरण लोगों के मन से व्यवस्था और न्याय पर से भरोसा खत्म कर रहा है।भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी की मांग पर जंतर मंतर पर बैठी महिला पहलवानों की बात क्यों नहीं सुनी जा रही है? इससे पहले महिला खिलाड़ियों ने बेरीकेड्स तोड़कर नये संसद भवन की ओर बढ़ने का प्रयास किया जिससे और खिलाड़ियों के बीच हाथापाई हो गई और पुलिस ने उनके प्रदर्शन पर रोक लगा दिया और कहा कि उन्हें किसी अन्य जगह पर प्रदर्शन की इजाजत दी जा सकती है लेकिन जंतर मंतर पर नहीं। बृजभूषण सिंह पर एक नाबालिग सहित महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप है। मामला कुछ भी हो मगर न्याय के लिए भटकती खिलाड़ियों की बात सुनी जानी चाहिए। खाप पंचायतें बैठकें तो कर रही हैं लेकिन उनका कोई निर्णय सामने नहीं आ रहा है।

1983 में विश्व कप जीतने वाली टीम ने साझा बयान जारी कर महिला खिलाड़ियों को अपना समर्थन दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस खबर को प्रमुखता से छापा है। बेटी बचाओ का नारा देने वाली सरकार इन्हें अनदेखा क्यों कर रही है? और महिला नेत्राणियों ने भी इस मसले पर चुप्पी क्यों साध रखी है? क्या सिर्फ एक फोटो खिंचवाने तक ही बेटियों का सम्मान था ? ऐसे तमाम सवाल है जो सरकार के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं? क्या बेटियाँ यूं ही अपमानित होती रहेंगी?

जमीर जागने में वक्त तो लगता है
हौसले पस्त ना हो तो उम्मीद का दिया जलते रहता है

प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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वो नज़र कुछ ऐसी थी कि जिसमें जिस्म की चाह नही ,कुछ और ही था।

वो सामने बैठा मुझे ही देखे जा रहा था और मैं.. आँख भी नहीं मिला पा रही थी। वो नज़र कुछ ऐसी थी कि जिसमें जिस्म की चाह नही ,कुछ और ही था।मेरे ख़याल से इससे ख़ूबसूरत इश्क़ नहीं हो सकता, जो सिर्फ़ नज़रों से ही किसी की रूह को छू लेता है ..
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सबा ने हिम्मत कर अपनी आँखें उठाई और इक लम्बी ख़ामोशी को तोड़ते हुए बोली ! अच्छा तो बासु ..अब मैं चलू।बासु बोला !आज कितने सालों के बाद अचानक से तुम मेरे सामने आ गई।बहुत बार सोचा कि तुम्हें फ़ोन करूँ ,तुम से बात करूँ।इतने अरसे के बाद तुम्हें देखा।कैसे आज तुम्हें जाने के लिए कह दूँ। सबा मैं तो हैरान हूँ कि कैसे ,तुम मुझे भुला बैठी ? बासु की बड़ी बड़ी आँखों में गहराई और बेचैनी का अहसास कर पा रही थी सबा।शोर तो सबा के सीने में भी बहुत था मगर ख़ामोश सा।जैसे सब्र करना सीख गई थी सबा।इतना भी आसान नहीं था सबा के लिए ,खुद को सहज सा दिखाना।बहुत जद्दोजहद में थी सबा।कभी अपना दुपट्टे का पल्लू संभाल रही थी तो कभी अपनी नज़रों को।नहीं चाहती थी कि बासु उसकी बेक़रारी को देख पाये।
सबा ने इक गहरी साँस भरी,जो बासु के दिल के आरपार हो गई।सबा भारी आवाज़ में बोली! बासु वक़्त सब कुछ सिखा देता है।तुम से बिछड़े तीन साल हो गये है मगर मैं तुम्हें भूल नहीं पाई बासु, और भूलती भी कंयू तुम्हें।तुम चाहत हो मेरी।ये अलग बात है कि हमारी शादी नहीं हो पाई,क्यूँकि मैं मुसलमान घर की बेटी और तुम कट्टर ब्राह्मण परिवार से थे।घरों में शान्ति रहे इसीलिए हमने अपनी खुवाईशो का गला दबा दिया।तब कोई और चारा था भी नही ,हमारे पास।है न बासु ? बासु मेरे लिए ,तुम्हें छोड़ कर जाना मुश्किल होगा, ये तो पता था मुझे। शरीर से रूह निकल कर रह गई थी तुम्हारे ही पास .. ज़ाहिर है ..दर्द होना तो लाज़मी ही था ..मगर इतना दर्द होगा वो नही पता था। काश !! मेरे अबू मान गये होते या तुम्हारे पापा।सुबक पड़ी थी सबा ,ये सब कहते कहते। बासु का दिल रो रहा था। बासु बोला ! मैं कंयू नहीं लड़ पाया सबसे? क्यू अपने फ़र्ज़ को इतनी अहमियत दी मैंने ।याद आया उसे ,कैसे उसके पापा  अंबालिका की शादी की दुहाई देने लगे थे। चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि अगर तुम मुसलमान घर की लड़की ले कर आये तो तेरी बहन सारी उम्र कुँवारी बैठी रहेगी।सिहर उठा था बासु। सबा का हाथ पकड़ कर बोला। कुछ चाहते ऐसी होती है सबा।जिसमें इन्सान ,इश्क़ में दर्द तो सह लेता है मगर इश्क़ करना कभी नहीं छोड़ पाता ..
इश्क़ मे रहना और फिर इश्क़ की इबादत करना ….हर किसी के हिस्से में कहाँ आ पाती हैं हर जगह हर पल तुम्हारी ये कमी का अहसास ..क्या मुझे ख़ुशी दे पायेगा कभी। तुम ने ही तो कहा था कि हम बड़ों का दिल नहीं दुखायेंगे।तुम्हारी ही दी गई क़सम को निभा रहा हूँ मैं..मगर जीना अब इक सजा सा लगता है तुम्हारा वजूद सकून है मेरा ! सबा ..यूं मिल कर बिछड़ना ,मुक़द्दर में था या हमने ये सजा तय कर ली खुद अपने ही लिये..ये बात मैं समझ नहीं पाया, बस यही बात समझ में आई कि मुझे प्यार है तुमसे .. आज भी.. बासु बोलता जा रहा था। सबा ! कभी कभी मैं सोचता हूँ कि तुम और मैं , हम दोनों ही..बस सब का क़र्ज़ उतार रहे है। बाँट ही तो रहे हैं सभी को ..सभी का हक़। इक रह जायेगा तुम्हारे सर … या मेरे सर ..बस ! “हमारे इश्क़ का क़र्ज़ .. हमारी ख़ामोशियाँ…. तुम्हारा और मेरा इन्तज़ार .. कतरा कतरा आँखों से गिरते आँसुओं का बोझ कैसे उतार पायेंगे ,इक दूजे का ये क़र्ज़.. मेरी जागती रातों का हिसाब .. मेरे सवाल और तुम्हारे जवाब यही दफ़्न हो जायेगे,हमारे ही अन्दर।कितना अधूरा सा मैं ,कितनी अधूरी सी तुम..ये ख़ालीपन कभी नहीं भर पायेगा। सबा गंभीर हो कर बोली! बासु ..शायद ..वक़्त हमे इक दूजे के बिना रहना सिखा दे। बासु सबा की इस बात पर जैसे तड़प सा गया। बोला! क्या तुम मुझे भूल पाओगी सबा। हमारा प्यार कभी भी वक़्त के साथ धुंधला नहीं हो सकता।मरते दम तक तुम ही रहोगी मेरे दिल में।अब तो बस जीना ही है, मोहब्बत तो मैं ,कर चुका तुम से। अब तो सिर्फ़ बस फ़र्ज़ निभाने बाकि है। सबा !
मैं भी इक वादा करता हूँ आज के बाद मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूँगा। न ही कभी तुम्हें देखूँगा चाहे तुम मेरे पास से भी गुज़र जाओ।
तुम से न मिलने से,बात न करने से बेक़रारी तो रहेगी, मगर मिलने के बाद, तुम से बात करके मैं और भी बेचैन हो गया हूँ ।सबा की आँखों से आँसूओ की छड़ी सी लग गई बोली बासु !अगर तुम बात नहीं करोगे तो मै कैसे ज़िन्दा रह पाऊँगी तुम्हारे बग़ैर।
शाम गहरी हो चुकी थी। भीगती आँखों और बोझिल मन से सबा बासु को अलविदा कह कर चल पड़ी।जानती थी उसकी ज़िन्दगी का सफ़र अब आसान नहीं होगा मगर कोई चारा नहीं था ,सिवाय अपनी तक़दीर के फ़ैसले को मानने के और बासु भी अपनी हथेलियों से अपने मुँह को छिपा कर फूट फूट कर रो रहा था। दोस्तों! ओह !! ये कहानी बहुतो की हो सकती है। इतना प्यार ..इतना दर्द ..इतनी गहराई और फिर मिल न पाना ..कितना असहनीय होता होगा जिनको ऐसे हालातों में से गुजरना पड़ता होगा और कितने दुख की बात है कि हम आज भी मज़हबों में उलझ कर ,अपने ही हाथों से बच्चों की ख़ुशियों पर ग्रहण लगा देते है।हमारा कहना तो वो मान जाते है मगर वो ख़ुश ,कहाँ रह पाते है।कभी सोचा है कि वो पूरी ज़िन्दगी कैसे मर मर कर अपना जीवन काटेंगे।
प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है।जिस का किसी के साथ जो रिश्ता बनना होता है वो तो पहले से निर्धारित है फिर हम और आप कंयू उसे बदलना चाहते है । किसी को दर्द दे कर , किसी को अलग करके , किसी से बल छल करके, कोई कैसे चैन से रह सकता है ?
किसी को तंग करके कभी किसी का भला नहीं हुआ। न आज !! न पहले कभी !!
:_ लेखिका स्मिता ✍️

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होनहार “शौर्य मोहन”, भावी संस्कृत विद्वान

शौर्य मोहन, जीव विज्ञान के छात्र, वीरेंद्र स्वरूप शिक्षा केंद्र, श्यामनगर, कानपुर, यूपी के प्रतिष्ठित स्कूल ने कक्षा बारहवीं सीबीएसई (2023)परीक्षा में संस्कृत में 100/100 अंक प्राप्त किए।वे 10 वर्ष की उम्र से ही हिंदी और संस्कृत में कविताएँ लिखने लगे थे। उनका सपना संस्कृत के विद्वानों के लिए अपनी वेबसाइट बनाने का था। जब वह 12 साल के थे, तब उन्होंने अपनी दादी के साथ संस्कृत में बातचीत शुरू की, जो अभी भी उनकी संस्कृत की गुरु हैं । वह अपनी शिक्षिका को अपनी प्रेरणा मानते हैं।
वह ब्रिन-ओ-ब्रेन, गणित, प्रतियोगिता में दो बार राष्ट्रीय चैंपियन रह चुके हैं तथा स्कूल स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिता में भी चैंपियन रह चुके हैं । इसके अतिरिक्त जब उन्होंने विश्वविद्यालय में 100 से अधिक शोधार्थियों के सामने राष्ट्रीय संगोष्ठी में संस्कृत में शोध पत्र प्रस्तुत किया तो उनकी बहुत सराहना हुई। वह अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए भावुक हैं। उनका लक्ष्य निकटतम भविष्य में संस्कृत में चरक संहिता और अन्य प्राचीन साहित्य को आम आदमी की भाषा में सुलभ कराना है ताकि वर्तमान समय में आयुर्वेद और भारतीय संस्कृति को मजबूत किया जा सके।

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मां से… मायका

मायके से लगाव ताउम्र रहता है। कहीं भी घूम आओ मगर जब तक मायके ना घूम आओ तब तक घूमना अधूरा रहता है। मैं भी मायके जाने के लिए उल्लासित थी। सोचा भाभी को खबर तो कर ही दूं आने की और फोन लगा दिया भाभी को।

मैं:- “भाभी मैं होली के बाद आने वाली हूं लेकिन अभी तारीख तय नहीं है।
भाभी:- “अए बच्ची होली यहीं मना लेती हमरे पास। आ जाओ ईहां।” भाभी बोली
मैं:- “होली में ही नहीं आ सकती, बच्चों के एग्जाम हैं उसके बाद ही आना हो पाएगा। बाद में तारीख बताती हूं आपको।” फोन रख कर मैं कैलेंडर देखने लगी कि कौन सी तारीख निश्चित करना उचित रहेगा।
मैं भी सोच रही थी कि बहुत समय हो गया है पीहर गये हुए। पहले कोविड में नहीं जा पाई फिर लॉकडाउन के चलते कैंसिल हो गया और अब व्यस्तता के कारण टलता जा रहा था मायके जाने का प्रोग्राम और वैसे भी बहुत मन लगा हुआ था कि एक बार घूम कर आ जाऊं वहां से। आखिरकार होली के बाद का प्रोग्राम बना ही लिया।
जाने की खुशी तो थी ही लेकिन सब से मिलने की उत्सुकता ज्यादा थी। कपड़ों की पैकिंग भी शुरू कर दी जबकि जाने में अभी एक हफ्ते का समय था। क्या ले जाना क्या नहीं, खरीदारी की लिस्ट, क्या खाना क्या बनवाना भाभियों से, कहाँ घूमना सब दिमाग में घूमने लगा। पूरे हफ्ते भर का प्लान दिमाग में सेट हो गया था। एक सवाल यह भी दिमाग में कौंध रहा था कि पहली बार घर पर मम्मी पापा नहीं होंगे तो पता नहीं कैसा माहौल होगा, कैसा लगता होगा घर बिना मम्मी पापा के, यह  सोच कर ही मन भर आया। हालांकि भाभी से रोज बात करते हुए यह आभास हो गया था कि सब अपना सामान्य जीवन जी रहे हैं जैसा कि आमतौर पर सभी घरों में होते आया है।
खैर वो दिन भी आ ही गया जब घर की दहलीज पर पैर रखा। घर जरा बदला हुआ सा लगा। भैया जरा प्रौढ़ता ओढ़े हुये से दिखे। भाभी भी घर का दायित्व उठाती कुछ बड़ी सी नजर आईं। लेकिन फिर भी आंखे़ कुछ और ढूंढ रही थी। दरवाजे पर बाट जोहती मां नहीं दिखी, इंतजार करते पापा नहीं दिखे, पानी लाओ चाय बनाओ कहती आवाज नहीं सुनाई दी, बिट्टू थक गई होगी आओ बैठो कहीं सुनाई नहीं दे रहा था। यह भाव किसी पर इल्जाम नहीं बस मां की कमी अखर रही थी। नजर तलाश रही थी उसे जिससे मैं जोर से गले लग जाया करती थी और किसी की कमी तो कमी ही होती है जो उसके नहीं रहने पर ज्यादा महसूस होती है। इन भावों से मुझे भाभी ने उबार लिया जब उन्होंने मुझे गले लगाया और बोली, “रिशी बहुत राह दिखाती हो”। भाभी के गले लगने पर एहसास हुआ कि अभी मेरा मायका है और मेरा इंतजार भी।
घर को निहारते हुए दीवार पर लगी मम्मी पापा की तस्वीर को देखकर मन उदास हो गया। अभी कुछ समय पहले की बात थी कि हम साथ में बैठकर बातें करते थे, खाना खाते थे और आज उन्हें तस्वीर में देख रही हूं। हालांकि जीवन का सत्य है यही है पर स्वीकार मुश्किल से होता है।
मैं:- “भाभी सर में बहुत दर्द है, चाय पीनी है”।
भाभी:- ” हां! बन गई है बस लाई। एक दिन में आना मतलब भागदौड़ तो हो ही जाता है।”
मैं:- “हां! बहुत थक गई हूं”।
भाभी:- “और रिशी कहां कहां जाने का प्रोग्राम है तुम्हारा?”
मैं:- ” बस भाभी अपनी दौड़ तो वहीं तक है बाजार दौड़ेंगे, चाट खाएंगे” और हम दोनों हंस पड़ते हैं।
अगले दिन सुबह भाभी ने पूछा, “अच्छा रिशी क्या बना दूं तुम्हारे लिए?”
मैं:- “भाभी मुझे तो कढ़ी चावल, कटहल की सब्जी फरे और चाट खाना है और गुझिया भी। यहां आने वाली थी इसलिए मैंने गुझिया नहीं बनाई। मुझे आपके हाथ की खानी थी।”
भाभी;- “लो सबसे पहले गुजिया ही खाओ। बहुत अच्छी बनी है।” और भाभी मेरा मनपसंद खाना बनाने में लग गई।
दिनभर दौड़भाग के बाद रात में जब हम बैठे तब भाभी बोली,  “तुम्हारा घर है ये,  बेटियों को सोचना नहीं पड़ता मायके आने के लिए और मम्मी पापा नहीं हैं तो  क्या हुआ हम तो हैं, हम तुम्हारा इंतजार करते हैं।” माहौल जरा सा बोझिल हो गया था।
एकबारगी एहसास हुआ कि मां की तरह दुलराने वाली भाभी है फिर सामान्य होकर हंसते हुए कहने लगी मैं,” कि आप इंतजार करते हो, बुलाते हो, इतना प्यार देते हो तभी तो दौड़ी हुई आ गई मैं।”
परिचितों से मिलते जुलते, बाजार में घूमते, खरीदी करते हुए समय कब निकल गया मालूम नहीं पड़ा और घर वापसी का समय आ गया।
मैं:; “चलो भाई अब फिर से घर की ओर और वही रूटीन।”
भाभी:- “हां! वह तो है ही मगर अब इतना समय नहीं लगाना। घर जल्दी आना।”
मैं:- “कोशिश रहेगी।” और हंस देती हूं।
विदा लेकर मैं घर वापसी के लिए रवाना हो गई।
स्त्रियां अपना मायका कभी नहीं भुला पाती चाहे वो बूढ़ी ही क्यों ना हो जायें। : प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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