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लेख/विचार

अधूरे ख्वाब

अधूरे ख़्वाबों को सजा मत समझिये.. बल्कि ये इक ज़रिया है जो तुम्हे उस ओर ले जायेगा और यक़ीं रखो इक रोज यही तुझे तेरे महबूब से भी मिलवाएगा
🌹🌹🌹🌹
अक्सर लोग मुझ से पूछते हैं आप अधूरी कहानियों पर ज़्यादा लिखती है और वजूहात भी पूछते है, वैसे तो वजह कोई मेरी पर्सनल नही है।
अधूरेपन का अहसास तो हर इन्सान को कभी न कभी होता ही है।प्यार और अधूरेपन दोनों अलग नही है। दोनों ही इक दूजे से जुड़े हुए हैं।
“जो किसी को या किसी चीज़ को गहरा प्यार करता है वही अधूरेपन के अहसास को भी जान सकता है”।प्यार को समझने के साथ साथ अधूरेपन को भी समझना बहुत ज़रूरी है।
लिखना मेरा शौक़ है मगर हर लेखक अपनी आप बीती ही नहीं कहता बल्कि उसमें इक क़ाबलियत .. इक समझ होती है दूसरों के मन के भावों को ,दूसरों की पीड़ा और .. हर बात के दोनों पहलुओं को समझने की शक्ति होती है कयोंकि उसका मन ठहरा हुआ ,होने की वजह से वो हर बात की गहराई को महसूस कर लेता है, दूसरों की जगह पर खुद को रख कर हर इक का दरद समझ लेता है।और ..
फिर उसी के आधार पर उनकी कलम चला करती है .. मै अधूरी कहानियाँ इसीलिए लिखा करती हूँ क्योंकि मैं समझती हूँ जो आज अधूरा है ,यकीनन वो कभी न कभी पूरा ज़रूर होगा।
जब तक पूरा नहीं हो जाता …कहानियाँ बनती रहती है और संसार चलता रहता है।
अधूरापन ..या किसी चीज़ की कमी का अहसास होने पर
हम मन से..
विचारों से , गहरे होने लगते है यही वजह होती है।
हमारी चाहत मे शिद्दत बढ़ने लगती है जब हम हर वकत उसी के बारे में सोचते रहते हैं और ये सोच ही फिर आगे चल कर, हमे अधूरेपन से पूर्णता की तरफ़ ले जाती है .. ।
हम सब के ऊपर इक शक्ति है। जिसका काम ही यही है ,अधूरे को पूरा करना …,चाहे इस जन्म में पूरा करे या अगले किसी जन्म मे।
दोस्तों!
यदि हमारे सब ख़्वाब पूरे हो जाये। ज़िन्दगी में सब कुछ पा लिया जाये तो फिर आगे रह ही क्या जाता है ,कि उसकी कोई कहानी बनाई जाये..न तो उसमें कोई खुवाईश होगी
न कमी .. न कोई चाहत रह जायेगी ..न ही कोई शिद्दत…पूरा होने का मतलब ही “अंत हो जाना”।
जब हम कोई लक्ष्य या मक़सद पूरा कर लेते है ।
रिश्ते हम भोग चुके होते हैं। चीजों को अच्छे से जान चुके होते है।
जब परिवार में सबसे अपना हिसाब पूरा कर चुकते हैं तो इच्छाये समाप्त होने लगती है तो दुनिया मे आने के रास्ते बंद हो जाते है। क्यूं आयेगा कोई ?
जब कोई वजह ही नहीं रहती, तो फिर कोई मतलब ही नहीं रहता वापस इस संसार में आने का। जैसे जैसे हम ज़िन्दगी को जान चुके होते है अनुभव कर चुके होते है उससे हम मुक्त होते जाते है धीरे धीरे..
बेशक !
पूर्णता बहुत सुन्दर और आनंद देने वाली होती है मगर अधूरापन हमे अन्दर से और बाहर से और भी सुन्दर बना देता।
.”पूर्णिमा का चाँद “
पूरा कितना मनमोहक होता है ।उसको देखने भर से ही मन में शान्ति का संचालन होने लगता है और शायरों की कलम ✍️ लिखने को बेकरार होने लगती है।
मगर
“आधा चाँद “
वो भी कमाल का होता है ।
आधे चाँद की रात को ही
ईद का चाँद कहा जाता है।
वो हम सब जानते ही हैं ,
कि दोनों कितने ख़ास है।
जब जब हम इन्सानों की कहानियों में जब पूर्णता आती है तो सब ठहर जाता है।
अधूरापन ही आगे चलता है, अनंत काल तक ..जन्मों जन्मों तक ..
चाहे वो बिन कहे भाव हो ..
चाहते हो . ..
खुवाईशे हो ..
या दुनिया का कारोबार हो …
.सारी उम्र कुछ लोग ग़रीबी देखते हैं उनकी अमीर बनने की चाह अधूरी रह जाये तो इस इच्छा का अंत नहीं होगा जब तक ये इच्छा पूरी न होगी यही कुदरत का नियम है
अधूरे को पूरा करना ही जीवन का मक़सद होता है …
इस संसार में “
मोक्ष “के लिए
अधूरे से पूरे होना ज़रूरी है।
.. मेरी इक दोस्त है जिस को भगवान ने सब दे रखा था।
वो अक्सर कहा करती कि मै कभी भगवान से कुछ माँगती नहीं ,सब खुद ब खुद मिल रहा है .,
पैसा ,शोहरत ,पार्टीज़ ,ज़मीन जायदाद ,आभूषण से भरी हुई थी कारोबार भी बहुत था … उसके पास प्यार करने वाला पति भी था।
वक़्त ने पलटा मारा ..
सब चला गया। मगर जब गया तो बहुत दुखी हुई।
अब हर वकत उन चीजों का ही चिंतन करती रहती है।सब वापस पाना चाहती है।भगवान से प्रार्थना करती है, कि उसे सब वापस मिल जाये ।
इसी तरह हम सब भी जब चीजों को खो देते है तो उन्हें फिर से पाना चाहते हैं और फिर उन्हें वापस पाने का चाहत ,हमें इस संसार में वापस ले कर आती है।क्योंकि अब हम ख़ुद को पूरा महसूस नहीं कर रहे।

पूरे होंगे…तो ही मोक्ष मिल सकता है इसी लिए दोस्तों !!
अधूरेपन के अहसास से घबराए नहीं ,न ही डिप्रेशन की कागार में खुद को खड़ा करे बल्कि इक उम्मीद जगाये कि आज ये अधूरेपन ही हमे पूरे की ओर ले कर जायेगा और याद दिलाये खुद को…
.
“मैं आज अधूरी हूँ तो किसी रोज़ पूरी भी हो जाऊँगी ,बस यही ख़याल काफ़ी है ख़ुश
रहने के लिए “
लेखिका स्मिता ✍️

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“एबीवीपी का 69वां राष्ट्रीय अधिवेशन” ऋषि परम्परा वाहक का उनहत्तरवाँ झरना~ डॉ प्रीति

यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक परिवार है तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इस परिवार का युवा वर्ग है। इस युवा के आदर्श स्वामी विवेकानन्द हैं। संघ ने अपने परिवार के इस युवा सदस्य को जो सिखाया है उसका मूल है

काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पिछले उनसठ वर्षों की सतत यात्रा इन्हीं पांच विशेषताओं के साथ रही है। इतनी प्रसिद्धि, वीरता, संयम, महिमा, गुण, उपलब्धि, व्यापकता, विस्तार, उड़ान, गहराई, प्रवाह, उत्थान, परिपक्वता, सावधानी और सबसे बड़ी बात, इतना सुन्दर गीत-रूप किसी भी संगठन में ऐसे ही नहीं मिलता। एबीवीपी ने ये सभी गुण अपने पांच बुनियादी गुणों से हासिल किए हैं जो उसने अपने मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सीखे हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, जिसे संक्षेप में एबीवीपी के नाम से भी जाना जाता है, 7,8,9,10 दिसंबर को अपना 69वां अधिवेशन आयोजित कर रही है, यह न केवल भारत का बल्कि विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। विद्यार्थी परिषद, जिसकी स्थापना 9 जुलाई, 1949 को हुई थी, आज एक सोलह वर्षीय युवा की अद्भुत युवाता और ऊर्जा के साथ अपना उनहत्तरवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने के लिए तैयार है। इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में देश के गृह मंत्री अमित जी शाह और समापन सत्र में देश के तेजस्वी एवं लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाग ले रहे हैं
ज्ञान, शील और एकता के शब्द या मंत्र के साथ आगे बढ़ते हुए यह छात्र संगठन अपने जीवन में कई उपलब्धियां हासिल कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। अनेक लक्ष्य रखने वाले इस संगठन के मूल में एक ही लक्ष्य है- भारत माता को परम वैभव के शिखर पर स्थापित करना। बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ, कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति, श्री राम जन्मभूमि, बांग्लादेश को तीन बीघे जमीन देने के विरुद्ध सत्याग्रह, तुष्टिकरण, शिक्षा का भारतीयकरण, नई शिक्षा प्रणाली, आतंकवाद का विरोध, शिक्षण संस्थानों में शुचिता-अनुशासन-गरिमा, का विकास शिक्षण संस्थानों। यह संगठन व्यावसायीकरण का विरोध, ग्रामीण क्षेत्रों के कोने-कोने में शिक्षा का प्रसार आदि जैसे कई लक्ष्यों और आंदोलनों को प्राप्त करके यहां तक पहुंचा है, यह संगठन अब एक विशाल वट वृक्ष बन गया है।

विद्यार्थी परिषद ने अपनी 69 वर्षों की अथक, स्थायी और अद्भुत यात्रा में जो हासिल किया है वह दो ध्रुवों के बीच पुल बनने जैसा है। एक ओर यह संगठन भारत की बुनियादी ज्ञान परंपरा को उसके ज्ञान के शिखर पर स्थापित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर और वैश्विक शिक्षा पद्धतियों को भी आत्मसात कर रहा है। यद्यपि भारतीय ज्ञान परंपरा और वैश्विक आधुनिक शिक्षा के एकीकरण का कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन नई शिक्षा नीति के माध्यम से विद्यार्थी परिषद ने इस कार्य को बहुत आगे बढ़ाया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जहां भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अनेक सुधारों की आवश्यकता को लेकर चिंतित एवं विचारशील था, वहीं विद्यार्थी परिषद संघ की इस चिंता को अनुकूलता में बदलने का एक बड़ा माध्यम साबित हुई है। एबीवीपी खुद ही संघ की नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों को हासिल करने में जुट गई है. इस संगठन में न केवल विद्यार्थियों बल्कि शिक्षकों की भी निरंतर भागीदारी नई शिक्षा नीति को लागू करने के लक्ष्य में सहायक सिद्ध हुई है।
किसी भी राष्ट्र की मूल पहचान उसकी शिक्षा प्रणाली से निर्धारित होती है। यह संघ का अटल विश्वास रहा है और विद्यार्थी परिषद का पूरा संगठन इस विश्वास का वाहक और संवाहक रहा है। स्वामी विवेकानन्द ने शिक्षा के बारे में कहा है कि “पूर्णता का प्रकटीकरण मनुष्य में पहले से ही होता है!” इसी को आगे बढ़ाते हुए शिक्षा नर को नारायण बनाने की क्षमता रखती है, यह संघ परिवार का विश्वास रहा है। संघ की इस विचारधारा को कोठारी आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट – “राष्ट्र का भाग्य वर्गों में आकार लेता है” में प्रतिबिंबित किया है। इस देश की रक्त कोशिकाओं और धमनियों में गहराई तक पैठ बनाने वाले अंग्रेज थॉमस मैकाले को पिछले एक दशक में अकारण ही बाहर नहीं निकाला गया है। इसके पीछे विद्यार्थी परिषद, संघ परिवार और सौ वर्षों की तपस्या का अमूल्य योगदान है।
नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे प्रमुख उपलब्धियों में से एक, जो आने वाली सदियों तक देश को चमकती और चकाचौंध करती रहेगी, वह है “नई शिक्षा नीति”। इस नई शिक्षा नीति के निर्धारण में विद्यार्थी परिषद का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। के कस्तूरीरंगन नई शिक्षा व्यवस्था का मसौदा तैयार कर रहे हैं. कस्तूरीरंगन समिति ने अपनी रिपोर्ट में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का भी जिक्र किया है और उसके प्रति आभार व्यक्त किया है. नई शिक्षा प्रणाली में अपने योगदान में एबीवीपी चंद्रयान अभियान और स्वामी विवेकानन्द से लेकर भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय ऋषि परंपरा, गुरुकुल परंपरा, आचार्य चाणक्य, वैदिक तत्व, पौराणिक आख्यान और अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक सब कुछ शामिल करके इसे समग्र बनाने का प्रयास किया है।
अपनी 69 वर्षों की यात्रा में, एबीवीपी ने अनगिनत अभियानों, आंदोलनों और आह्वानों को आमंत्रित करके हमारे समाज और राष्ट्र को बेहतर बनाने का काम किया है। अगर इन सबकी सूची बनाई जाए तो शायद पूरे समुद्र की स्याही और पूरी धरती का कागज कम पड़ जाएगा, लेकिन फिर भी विद्यार्थी परिषद की इस व्यापक यात्रा को अगर हमें तीन शब्दों में समझना है तो ये तीन शब्द ही हैं इस संगठन के लिए पर्याप्त हैं. – ज्ञान, शील एकता!!
विद्यार्थी परिषद नये परिवर्तनों का वाहक बन गयी है, सामाजिक समरसता का पर्याय बन गयी है, समस्याओं के समाधान का अचूक मंत्र बन गयी है, पर्यावरण संरक्षण का साधन बन गयी है, सृजनात्मकता का स्रोत बन गयी है, इन सभी गुणों से अखिल भारत बढ़ रहा है आगे। विद्यार्थी परिषद का 69वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करने हेतु तत्पर विद्यार्थी परिषद को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं वंदन!!
एबीवीपी हर साल एक नया वार्षिक श्लोक निर्धारित करती है। पिछले वर्ष के गीत की इस पंक्ति को पढ़कर हमें इस संगठन का सार पता चलता है –
हम छात्र शक्ति के प्रखर पुंज , हम देव भूमि के हैं साधक,
हम छात्र शक्ति से राष्ट्रशक्ति , गढने वाले है आराधक!
हम तरुणाई में संस्कारों का अलख जगायेंगे ,
विश्वगुरु भारत का ध्वज लेकर जायेंगे !!

डॉ प्रीती
अस्सिस्टेंट प्रोफेसर
दिल्ली विश्वविद्यालय

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मां मुझे गर्भ में ही खत्म कर दो

मां मुझे गर्भ में ही खत्म कर दो
यह ज्यादा अच्छा है….
अपमानित, प्रताड़ित होने से
बहुत ज्यादा अच्छा है
कम से कम मैं जिंदा भट्टी में
झोंक दिए जाने से बच जाऊंगी
टुकड़ों में या फिर
सड़कों पर तो नहीं बिखरूंगी
मैं पीड़ित होकर भटकूंगी नहीं दर बदर
मदद की गुहार लगाते हुए
बार बार मरूंगी नहीं…
सीमेंट पत्थरों से बने हुए घरों में….
रहने वाले लोग भी….
सीमेंट और पत्थर के हो गये हैं..
इस दुनिया में कुचले जाने के लिए
मुझे जन्म मत दो मां….
मैं हर उस तकलीफ से आजाद रहूंगी
जो जन्म लेने के बाद….
मेरे इर्दगिर्द मंडराती रहती है
न जाने यह आदमी लोग किस देवी को पूजते है पत्थरों और मूर्तियों में सर झुकाते हैं
लेकिन सजीव स्त्री का सम्मान नहीं कर पाते है
मां तुम तो समझती हो ना मेरा दुख
तब तुम मुझे क्यों इस विषैली दुनिया के
सर्पदंश से नहीं बचाती हो
तुम मुझे गर्भ में ही क्यों नहीं मार देती…
**प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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खूब फलफूल रहा है कनाडा वीज़ा और वर्क परमिट घोटाला !

एक राज्य से दूसरे राज्य, एक देश से दूसरे देश में लोगों का प्रवास कोई नई बात नहीं है। यह बहुत पुरानी घटना है. इसके दो मुख्य कारण कारण हैं – पहला आर्थिक और दूसरा बेहतर जीवन के लिए। पहले को 80 प्रतिशत और बाकी 20 प्रतिशत ने दूसरे कारण से अपनाया। अब पिछले कुछ दशकों से शिक्षा युवा पीढ़ी के लिए उच्च शिक्षा के लिए दूसरे देशों की ओर पलायन का पहला कारण बन गई है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद से हमारी सरकारों द्वारा शिक्षा क्षेत्र की उपेक्षा की गई है। हमारे देश से सभी राज्यों से छात्र शिक्षा के लिए पलायन करते हैं। लेकिन नौकरी और बेहतर जीवन शैली के लिए पंजाब, गुजरात, केरल, आंध्र प्रदेश से अधिक लोग पलायन करते हैं।
बेहतर नौकरी के लिए सबसे पसंदीदा देशों में कनाडा शीर्ष पर है। पंजाब और अन्य राज्यों से लोग कनाडा प्रवास में काफी रुचि ले रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए कुछ अवांछित और धोखेबाज लोग भोले-भाले व्यक्तियों को नकद में अधिक राशि के बदले वीज़ा और वर्क परमिट प्रदान करने के व्यापार में शामिल हैं और कनाडा में व्यवसाय करने वाले और वर्क परमिट जारी करने का अधिकार रखने वाली कंपनियों के मालिक कुछ लोग इस अवैध तरीके से भारी पैसा कमाने का लाभ उठा रहे हैं। व्यापार और इन भोले-भाले लोगों को कनाडा के अधिकारियों को वर्क परमिट जारी करने की सिफारिश करता है और इन व्यक्तियों से भारी रकम लेने के लिए मजबूर करता है। एक बार जब कोई व्यक्ति इनकी पकड़ में आ जाता है तो ये धोखेबाज उनसे मोटी रकम वसूलने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं। चूंकि यहां कोई अधिनियम या किसी भी प्रकार का कानून नहीं है और सभी लेनदेन नकद में हैं, इसलिए पीड़ित की कोई मदद नहीं कर सकता। ये धोखेबाज़ उन महिलाओं को भी नहीं बख्शते जिनके माता-पिता/शुभचिंतक बड़ी रकम नकद में देते हैं।
कुछ लोग लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, चंडीगढ़, जालंधर, हैदराबाद, मुंबई, अहमदाबाद आदि से काम करते हैं। कुछ एनआरआई भी इस व्यापार में शामिल हैं। कुछ बहुत प्रभावशाली व्यक्ति भी शामिल हैं और वे पीड़ितों को धमकी भी देते हैं कि वे अधिकारियों को रिपोर्ट न करें अन्यथा उनके परिवारों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
भारत सरकार, उसके अधिकारियों और सत्तारूढ़ राजनेताओं को इस मामले को एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में लेना चाहिए और इन दोषियों को सजा देनी चाहिए। चूँकि इस प्रकार के अपराधों से निपटने के लिए कोई विशिष्ट कानून और अधिनियम नहीं है, लेकिन मानव तस्करी से निपटने के लिए बहुत सारे अधिनियम और नियम हैं और यह अधिनियम इस प्रकार के अपराधों के अंतर्गत आता है। जो व्यक्ति ये वीज़ा खरीदते हैं वे अपराधी हैं और ऐसे व्यक्ति हैं जो इस कारण से देश छोड़ना चाहते हैं कि या तो वे अपराधों में शामिल हैं या कुछ प्रतिबंधित संगठनों के सदस्य हैं जो विदेशी धरती से देश के खिलाफ अपराध रचते हैं और कनाडा इन अपराधों के लिए एक सुरक्षित देश है।
ऐसे वर्क परमिट की व्यवस्था करने वाले ये अपराधी देश की आंतरिक कानून व्यवस्था, सामाजिक शांति और सामाजिक सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं क्योंकि आपराधिक किस्म के लोग अपराध करने के बाद देश छोड़ने में इन लोगों की मदद लेते हैं। ये गतिविधियाँ सीधे तौर पर आंतरिक सामाजिक सुरक्षा में बाधा डालती हैं।
इस रैकेट में कुछ एनआरआई व्यवसायी शामिल हैं जो अन्य आर्थिक अपराधों जैसे लिमिटेड कंपनियों में बेनामी शेयरों के निवेश और प्रचार और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में भी शामिल हैं। गहन जांच से इन अपराधियों और राष्ट्र विरोधियों को सामने लाया जाएगा। यदि भारत सरकार कोई कानून लाती है तो इस प्रकार के मामलों में शामिल कई लोग सामने आ जायेंगे और भारी मात्रा में काला धन सामने आ जायेगा। यह बिना किसी संदेह के साबित हो जाएगा कि हाल ही में कनाडा की धरती से हमारे देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के दोषी पाए गए लोग इस प्रकार के वर्क परमिट विक्रेताओं द्वारा वहां भेजे गए व्यक्ति हैं। सरकार इस प्रकार की अवैध गतिविधियों की कमाई से बनाई गई भारी काली कमाई और संपत्तियों का पता लगाएगी।
हमारी केंद्र सरकार को इस प्रकार के अपराधियों को पकड़ने के लिए तत्काल कुछ कदम उठाने चाहिए और उन्हें सजा के दायरे में लाना चाहिए। यदि इसमें देरी हुई तो आपराधिक मानसिकता वाले एनआरआई व्यवसायी वर्क परमिट जारी करने के इस धंधे में सक्रिय हैं और हमारे देश की भोली-भाली जनता को वीजा दिलाने में मदद करते हैं। हमारी सरकार को इन धोखेबाजों की इन गतिविधियों को रोकना चाहिए और समाज के साथ-साथ पूरे देश की सुरक्षा को बचाना चाहिए।
लेखक – सुरेश कुमार गारोदिया, गोहाटी, असम।

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नव विकसित सस्ता रेडिएटिव पेंट भवनों को ठंडा करने के लिए बिजली की खपत को कम कर सकता है

एक नया सस्ता, पर्यावरण-अनुकूल रेडिएटिव (विकिरण वाला) कूलिंग पेंट, जिसे विशेष रूप से गर्म मौसम की स्थिति में इमारतों, पेवर्स (फर्श बनाने वाली सामग्री) और टाइल्स जैसी संरचनाओं को प्रभावी ढंग से ठंडा करने के लिए विकसित किया गया है। यह बिजली की खपत को कम कर सकता है और गर्मी के दिनों में जरूरी राहत दे सकता है।

वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) के बढ़ने और शहरी ताप द्वीप प्रभावों के कारण शीतलन प्रौद्योगिकियां मानव जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। एयर-कंडीशनर (एसी), बिजली के पंखे और रेफ्रिजरेटर जैसे सक्रिय शीतलन उपकरण भारी मात्रा में बिजली की खपत करते हैं। बड़े पैमाने पर बिजली की इस मांग के साथ सक्रिय शीतलन उपकरण भी काफी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जिससे पृथ्वी की सतह के तापमान में बढ़ोतरी होती है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए विकिरण शीतलन तकनीक विकसित की गई है, जो बिजली की खपत के बिना वायुमंडलीय संचरण विंडो (8-13 माइक्रोमीटर) के माध्यम से शीतल वातावरण (लगभग 3 केल्विन) में सीधे तापीय विकिरण उत्सर्जित करके ठंडी सतह प्रदान करती है। इसके परिणामस्वरूप हाल ही में पैसिव डेटाइम रेडिएटिव कूलिंग (पीडीआरसी) ने पेवर्स, टाइल्स, बिल्डिंग और ऑटोमोबाइल कूलिंग, सौर सेल और व्यक्तिगत थर्मल प्रबंधन जैसे कई अनुप्रयोगों के लिए काफी अधिक रुचि उत्पन्न की है।

बेंगलुरु स्थित जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर) में प्रोफेसर बिवास साहा ने शोधकर्ताओं- प्रसन्ना दास, सौरव रुद्र, कृष्ण चंद मौर्य के सहयोग से अपने नेतृत्व में एक शानदार रेडिएटिव कूलिंग पेंट प्रस्तुत किया है। इसे एक अभिनव एमजीओ-पीवीडीएफ पॉलिमर नैनोकम्पोजिट से विकसित किया गया है। कम लागत वाला यह समाधान-संसाधित पेंट उच्च सौर परावर्तन और अवरक्त तापीय उत्सर्जन के साथ महत्वपूर्ण शीतलन क्षमताओं को प्रदर्शित करता है। जेएनसीएएसआर, जो कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है, के वैज्ञानिकों के प्रयोगात्मक निष्कर्षों से यह बात सामने आई है कि उपचारित पेवर की सतह का तापमान तेज धूप के नीचे लगभग 10 डिग्री सेल्सियस कम हो जाता है। यह पारंपरिक सफेद पेंट की तुलना में लगभग दोगुना है।

इन शोधकर्ताओं ने एक सरल समाधान-संसाधित तकनीक का उपयोग करके पॉलिमर नैनोकम्पोजिट पेंट विकसित किया। इसके लिए उन्होंने पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध, सस्ते, गैर विषैले और गैर-हानिकारक पदार्थों से तैयार अल्ट्रा-व्हाइट और अल्ट्रा-एमिसिव मैग्नीशियम ऑक्साइड (एमजीओ)- पॉलीविनाइलिडीन फ्लोराइड (पीवीडीएफ) नैनो-कंपोजिट का उपयोग किया। शुरुआत में पॉलिमर पाउडर को विलायक का उपयोग करके एक सॉल्यूशन में बदल दिया गया और इसके बाद डाईइलेक्ट्रिक नैनोकणों को पॉलिमर मैट्रिक्स के अंदर प्रसारित किया गया। इस तैयारी के बाद विकसित पॉलिमर नैनोकम्पोजिट पेंट के ऑप्टिकल गुणों को चिह्नित करने के लिए विभिन्न स्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीकों का उपयोग किया गया। थर्मोकपल का उपयोग करके पेंट के तापमान को मापकर, तेज धूप के तहत उत्कृष्ट शीतलन प्रदर्शन को प्रदर्शित किया गया।

डाईइलेक्ट्रिक नैनो कणों के साथ अनुकूलित एमजीओ-पीवीडीएफ के परिणामस्वरूप पॉलिमर से 96.3 फीसदी का बड़ा सौर परावर्तन और एमजी─ओ बॉन्ड कंपन व अन्य स्ट्रेचिंग/बॉन्डिंग कंपन के कारण 98.5 फीसदी का रिकॉर्ड उच्च तापीय उत्सर्जन हुआ। नैनोकम्पोजिट पेंट में जल-प्रतिरोधी हाइड्रोफोबिक गुण दिखते हैं और इसे उच्च एकरूपता व अच्छे आसंजन के साथ पेवर्स, लकड़ी की छड़ियों आदि पर आसानी से लेपित किया जा सकता है।

जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर) में एसोसिएट प्रोफेसर  प्रोफेसर बिवास साहा ने कहा, “हमारे अभिनव अनुसंधान ने एक लागत प्रभावी और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ पेंट को तैयार किया गया है, जो गर्मी के दिनों में सतह के तापमान (इमारतों, टाइलों, पेवर्स आदि सहित) को 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक कम करने में सक्षम है। हम मानना है कि इस पेंट के सीधे उपयोग से चिलचिलाती गर्मी के दिनों में यह काफी राहत मिलेगी, जिससे शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों को समान रूप से लाभ होगा।”

यह कार्य एक विली प्रकाशन एडवांस्ड मेटेरियल टेक्नोलॉजीज में प्रकाशित किया गया है। यह  कूलिंग अनुप्रयोगों के निर्माण के लिए रेडियेटिव कूलिंग पेंट के उपयोग को लेकर उद्योगों को प्रेरित कर सकता है। इन निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि विनिर्माण में एमजीओ-पीवीडीएफ कूलिंग पेंट को अपनाने से एयर कंडीशनिंग पर निर्भरता को काफी कम किया जा सकता है, जिससे इसके कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों में में कमी आएगी।

प्रकाशन:

1. पी. दास, एस. रुद्र, के. सी. मौर्य, और बी. साहा, “पैसिव डेटाइम रेडिएटिव कूलिंग के लिए अल्ट्रा-एमिसिव एमजीओ-पीवीडीएफ पॉलिमर नैनोकम्पोजिट पेंट” एडवांस्ड मटेरियल टेक्नोलॉजी 2023 2301174 https://doi.org/10.1002/admt.202301174

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चित्रसस्तेहाइड्रोफोबिकसमाधानसंसाधित नैनोकम्पोजिट रेडिएटिव कूलिंग पेंट का विकास विशेष रूप से भूमध्यरेखीय क्षेत्रोंदक्षिणपूर्व एशियामध्यपूर्व और अफ्रीका में शहरी ताप द्वीप प्रभावों का समाधान करेगा। यहां एमजीओपीवीडीएफ नैनोकम्पोजिट पेंट को अल्ट्राहाई सौर परावर्तन (96.3 फीसदीऔर रिकॉर्डउच्च तापीय उत्सर्जन (98.5 फीसदीके साथ विकसित किया गया है। तापमान में ~10 की कमी प्रदर्शित करना, इसके उल्लेखनीय विकिरणीय शीतलन प्रदर्शन को दिखाता है।

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चित्र 1: (रेडिएटिव कूलिंग पेंट से रंगी गई बिल्डिंग का रेखाचित्र। (बीएमजीओपीवीडीएफ कोटिंग का प्रतिबिंब स्पेक्ट्रा और एएम 1.5 सौर स्पेक्ट्रम के साथ एक वाणिज्यिक सफेद पेंट। (सीएमजीओपीवीडीएफ मिश्रित फिल्मवाणिज्यिक पेंट, 300 केल्विन पर ब्लैकबॉडी (बीबीस्पेक्ट्रम और वायुमंडलीय ट्रांसमिशन प्रोफाइल का तापीय उत्सर्जन स्पेक्ट्रा प्रदर्शित किया गया है। (डी) भारत के बेंगलुरु में एक सपाट छत पर क्षेत्र परीक्षण के लिए नियोजित विकिरण शीतलन माप सेटअप का चित्र। (उपपरिवेश के संबंध में एमजीओपीवीडीएफ कोटिंग के बाहरी रियल टाइम शीतलन के नतीजे। (एफबाहर में एक लेपित और एक बिना लेपित सिरेमिक पेवर की तस्वीर और तापीय चित्र।

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महिला आरक्षण बिल क्यों जरूरी

महिला आरक्षण विधेयक पर यूं तो 45 साल पहले 1974 में सवाल उठ चुका था और महिला आरक्षण बिल पहली बार 1996 में देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया था और उसके बाद कम से काम 10 बार यह बिल पेश किया गया लेकिन आपसी सहमति न होने के कारण और महिलाओं को आरक्षण की जरूरत ही क्या है इस विचार के मद्देनजर इस बिल को मान्यता नहीं मिली। यहां तक कि इस बिल को लेकर मारपीट तक की नौबत आ गई थी। शरद यादव यहां तक कह चुके थे कि, “इस बिल से परकटी महिलाओं को ही फायदा होगा।”

2010 में जब राज्यसभा में यह बिल पास हुआ तो करण थापर ने एक प्राइम टाइम बहस में कहा कि, “महिलाओं को सशक्त बनाना तो ठीक है लेकिन इसके लिए आरक्षण की जरूरत क्या है?”  इन सब बातों के बीच में एक सवाल मेरे मन में भी आया कि महिलाओं को आरक्षण की जरूरत क्या है? जब हम बराबरी की बात करते हैं तो महिलाओं को आरक्षण क्यों चाहिए? जब इतना माद्दा है कि आप अपने आपको काबिल साबित कर सकती हैं तो आरक्षण क्यों? और यूं भी आरक्षण द्वारा चुनकर आई हुई महिलाएं सिर्फ राजनीतिक मोहरा भर होती है। हमारे विविधता वाले देश में जात-पात का मुद्दा बहुत बड़ा है जिसे राजनेताओं ने अपने राजनीतिक हित के लिए उत्थान के नाम पर “आरक्षण” की बैसाखी थमा रखी है। जब तक आरक्षण रहेगा तब तक जाति रहेगी,जब तक जाति रहेगी तब तक कुछ लोगों की राजनीति रहेगी और जब तक उनकी राजनीति रहेगी तब तक आरक्षण रहेगा।
इतने सालों से अटका हुआ यह बिल 19 सितंबर 2023 को पास हुआ हालांकि यू एन वूमेन का डाटा बताता है कि संसदीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश हमसे आगे है। दुनिया के 198 देशों की लिस्ट में महिलाओं की संसदीय भागीदारी के मामले में भारत का नंबर 148 है जबकि पाकिस्तान 116 और बांग्लादेश 111 नंबर पर है और बात हम महिलाओं के उत्थान की करते हैं। जब हम इन देशों से अपने बेहतर और आगे होने की बात करते हैं तो इस मसले पर पीछे क्यों है? एक विचार यह भी आता कि महिलाओं के लिए आरक्षण क्यों जरूरी है? अपनी दबंगई के चलते पुरुष महिलाओं को राजनीति में आगे नहीं बढ़ने देते तो आरक्षण अनिवार्य रूप से  संसद में महिलाओं की भागीदारी तय करेगा। अभी भी ग्राम पंचायतों पर ध्यान दें तो पाएंगे कि आज भी मुखिया चुनी हुई महिलाओं का कार्य उनके पुरुष ही संभालते हैं और आरक्षण द्वारा चुनी गईं महिलाएं ही संसद में जा सकेंगी उनके पुरुष नहीं।
आरक्षण इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि समाज में आज भी महिलाओं की भूमिका दोयम दर्जे की है और आरक्षण राजनीति में भागीदारी के लिए महिलाओं की अनिवार्यता को निश्चित करेगी। 33% आरक्षण के बजाय संसद में भागीदारी भी समान रूप से होनी चाहिए। इतने सालों से अटका हुआ यह बिल कहीं सरकार द्वारा चुनावी समीकरण को साधने का हथियार तो नहीं? चुनाव के वक्त ही तीन तलाक, 370 जैसे मुद्दे लाये जाते हैं। कहीं यह बिल भी 2024 की तैयारी में अहम भूमिका निभायेगा?
यह भी संभव है कि राजनीतिक हित साधने के लिए महिला आरक्षण बिल पर राजनेताओं के घर की महिलाओं को ही प्रमुखता दी जाये लेकिन फिर भी महिलाओं की भागीदारी धीरे-धीरे संसद में उनके लिए रास्ता बनायेगी और वह सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाएंगी। हालांकि इस बिल पर कानून बनने में अभी समय है और यह अभी दूर के ढोल सुहावने जैसा लगता है। इस बिल के आ जाने से फिर से सवाल खड़े होने लगे हैं और यह न्यूज चैनलों के बहस का मुद्दा बन चुका है। भारत जैसे देश में जहां सामाजिक, जातिगत और जेंडर भेदभाव की जड़े इतनी गहरी है कि बिना आरक्षण के यह बिल कार्यान्वित होता हुआ संभव नजर नहीं आता। संसद में महिलाओं की भागीदारी से उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन में बदलाव आयेगा और उनकी राजनीतिक सक्रियता बढ़ेगी।

प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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‘‘आधुनिक शिक्षा एवं अनुशासित जीवन के मूल मंत्र

लखनऊ 10 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, राम प्रसाद बिस्मिल मेमोरियल पब्लिक स्कूल, काकोरी, लखनऊ के तत्त्वावधान में नक्षत्र फाउण्डेशन द्वारा ‘‘आधुनिक शिक्षा एवं अनुशासित जीवन के मूल मंत्र ‘‘ विषयक शैक्षिक दक्षता वृद्धि व्याख्यानमाला की द्वितीय प्रस्तुति का आयोजन किया गया। उक्त व्याख्यानमाला में वक्ता के रूप में डा0 सतीश तिवारी, असिस्टेंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ दर्शन एवं संस्कृति, श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय, कटरा, जम्मू और कश्मीर, विद्यालय के प्रबंधक मो0 इरफान हुसैन, विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती विनीता अग्निहोत्री, नक्षत्र फाउण्डेशन से सुश्री सोनम सिंह उपस्थित रहे।

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वजूद है तुम्हारा मेरी तलाश में

हाथो में जाम थामे विराज पूरी महफ़िल में झूमता सा दिख रहा था..,
कुंवर प्रताप सिंह का बेटा विराज जिसका व्यक्तित्व देखने में बिन्दास ,मन मौजी सा ,मगर अन्दर से गंभीर, शांत व्यक्तित्व का स्वामी था।
विराज की ख़ुशी की वजह सौम्या का पार्टी मे होना ही था ।
शांत स्वभाव वाली सौम्या,..सोने जैसा रंग और उस पर नीले रगं के लिबास में लिपटी पार्टी में सब से मिल रही थी।
कुंवर प्रताप सिंह के चरण स्पर्श कर उनको उनके जन्मदिन की हार्दिक बधाई देती है कुँवर प्रताप सिंह जाने माने शहर के लोगों में से एक है .. सौम्या उनके दोस्त की बेटी जो इंग्लैंड से डिग्री ले आई थी अभी।
विराज की नज़रें सौम्या पर ही थी।धड़कते दिल से सौम्या के पास आया और धीरे से अपने होंठ सौम्या के कान के पास ले जा पूछने लगा ! कब आई इंग्लैंड से ? मुझे बताया नहीं ,कि तुम आने वाली हो।सौम्या ने मुड़ कर देखा तो विराज को अपने बेहद क़रीब पाया।विराज कहता जा रहा था। सौम्या तुम पर तो इंग्लैंड का रंग बिलकुल नही चढा।
वही हीरे जैसी चमकती आँखे जो झील से भी गहरी है ..पार्टी में म्यूज़िक की आवाज़ ऊँची होने पर भी सौम्या विराज की हर बात को सुन पा रही थी। सौम्या ने इक नज़र विराज को देखा, और बिना कुछ कहे आगे निकल गई। विराज सौम्या के पास जा कर कहने लगा !
तुम से बात करनी है मुझे ..इतने सालों के बाद तुम्हें मिल रहा हूँ और तुम ….,
सौम्या बोली !
होश में तो आप आ जायें पहले,फिर बात भी कर लूँगी और फिर जल्दी से कुंवर प्रताप सिंह से इजाज़त ले कर पार्टी से निकल गई। विराज को लगा जैसे कोई हवा का झोंका आया और उसके दिल और दिमाग़ पर तूफ़ान सा छोड़ गया और उसके बाद पार्टी में क्या हुआ,सबसे बेख़बर सा ,लुटा लुटा सोच रहा था।पार्टी तो चल रही है लोग भी है यहाँ, पर मैं क्यों ख़ाली ख़ाली सा महसूस कर रहा हूँ।क्या हो गया मुझे इक दम अचानक से ? वजह भी जानता था विराज ….
ज़िन्दगी में कोई ख़ास ऐसा होता ही है .. जिस के होने,या न होने से बहुत फ़र्क़ पड़ता है ..ऐसा कोई ख़ास शख़्स ,रूह से जुड़ा होता है
जिस के बिना हर चीज़ बे-मायने हो जाती है।और उसकी जुदाई आप की रूह को जला डालती है ।
उसे याद आ रहा था कि कैसे सौम्या और वो इक दूजे को चाहते थे मगर विराज की शादी रोशनी से,जो शहर के जाने माने रईस की बेटी थी तय कर दी गई थी ।जब सौम्या को उसकी सगाई का पता चला तो बिना कुछ कहे लंदन चली गई थी .. .. सौम्या की नाराज़गी से वाक़िफ़ था विराज।
इक रोज़ विराज ने सौम्या को काफ़ी के लिए बुलाया।
सौम्या के लिए न करना आसान नही था।रेस्टोरेन्ट में सौम्या का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा विराज बार बार घड़ी देख रहा था तभी उसने सौम्या को देखा आते हुये देखा…
कच्चे पीले रंग का दुपट्टा ,जो बार बार लहरा कर उसके चेहरे को ढके जा रहा था ,उसपर आँखो पर काला चश्मा बेहद खूबसूरत लग रहा था।
सौम्या की गंभीर आँखों को देख कर विराज बोला! नाज़ है मुझे मेरी पसंद पर ..
तुम कुछ भी न कहो चाहे ,सौम्या मगर
मेरी मौजूदगी तुम्हारी आँखों में आज भी साफ़ दिख रही है…
. वजूद तो तुम्हारा है वहाँ …मगर मेरी ही तालाश में ..
अक्सर तुम्हारी तसवीर देखता हूँ तुम्हारे फ़ोन पर
होंठों पर मुस्कुराहट तो होती है वहाँ..मगर फीकी फीकी सी …. जैसे तुम्हारी आँखे देखती तो सबको है ,मगर ढूँढती मुझे ही है।
सौम्या बोली! इतना जानते हो मुझे ,तो ये भी जानते होंगे कि मैं नाराज़ हूँ आप से।मेरे लिए ,मेरी चाहत के लिए जरा सा भी लड़ नहीं पाये किसी से ..और मुझे नहीं पता था कि आप रोशनी से शादी कर लोगे ।मुझे लगा !आप और मैं …कहते कहते सौम्या का गला भर आया।सौम्या कहती जा रही थी..विराज आप भागते जा रहे हो दुनिया की चाहते ले कर ..और मैं …कुछ न चाह कर ..बस आप तक ही आ कर ठहर गई थी मगर आप वहाँ न ठहर सके।विराज बोला !
तुम ने ये कैसे सोचा कि मैं रोशनी से शादी करूँगा। मेरी मजबूरी थी वो ,शायद तुम्हें नहीं पता।जब मेरी सगाई की हुई ।तब पापा की तबियत इक दम से ख़राब हो गई थी और पापा दिल्ली अस्पताल में दाखिल थे।तब मैं पापा से कुछ नहीं कहना चाहता था ,मगर कुछ दिन बाद मैंने वो रिश्ता खुद ही तोड़ दिया था। रोशनी ने भी इस बात को समझा कि वो मेरे साथ कभी ख़ुश नहीं रह पायेगी।तब तक तुम जा चुकी थी। तुम ने मुझ से कोई सवाल नहीं किया ,न ही कभी कोई जवाब माँगा.. भरोसा नहीं था मुझ पर ,या मेरे प्यार पर ..कितना इन्तज़ार किया है मैंने तुम्हारा ।मैं तुम्हें चाहता था मगर खुद ही जान नहीं पाया मैं, कि तुम मेरे लिए कितनी ज़रूरी थी।तुम्हीं मेरा प्यार हो ,तुम मेरा बचपन हो ,.. तुम ही तो हो जिस ने मेरे दिल पर राज किया है।
सौम्या बोली! तो क्या आप रोशनी को चाहते नहीं थे।पागल हो तुम !
इतना भी पहचान नहीं पाई मुझे।विराज का यूँ सौम्या को पागल कहना ,सौम्या को इक अपनेपन का अहसास करवा रहा था
विराज बोला।रोशनी को बचपन से जानता ज़रूर हूँ मगर अपनी पत्नी के रूप में उसे कभी नहीं देखा था।
मेरी बेशुमार चाहतों की तुम ही अकेली वारिस रही हो।
सौम्या बोली !विराज
पिछले चार सालों में मैंने दर्द तो सहा ,मगर आप से नाराज़ नहीं हो पाई।विराज बोला ! सौम्या किसी से हँस कर बात करना ,प्यार नहीं होता .. ,जो दिल मे छिपा रहता है वही प्यार है,ज़ाहिर रिश्तों मे गहराई नही हुआ करती।रोशनी मेरी दोस्त से ज़्यादा कुछ भी नहीं ..याद है मुझे इक रोज़ तुम ने कहा !तुम मुझ से कभी बात नहीं करोगी ,न ही कभी मिलोगी।ये सोच कर मैं अक्सर बेचैन रहता था ,फिर तुम मुझे छोड़ कर इंग्लैंड पढ़ने चली गई और तुम्हें देखने की मेरी तमन्ना मुझे दिवाना बना दिया करती।कभी कभी तो जैसे पंजाबी में कहते हैं न,खो पढ़ जाना ऐसे तुम्हें देखने के लिए मुझे हुआ करती थी।तुम नहीं थी यहाँ , मैं खुद को काम मे बीज़ी रखने लगा, पार्टियों में जाने लगा,गाने सुनता मगर सकून मुझ से कोसों दूर ही रहा।
तुम्हारी याद मुझे बेचैन रखती।बहुत मिस करता था तुम्हें।
मिस करना जैसा लफ़्ज़ शायद बहुत छोटा है।सौम्या को, ये सब सुनना कहीं न कहीं सकून दे रहा था।अच्छा लग रहा था कि विराज को भी उसकी कमी का अहसास होता रहा है ..जैसे वो खुद महसूस किया करती थी।विराज कहता जा रहा था लोगों की नज़रों में जो मैं दिखता हूँ मैं वैसा बिलकुल भी नहीं .. सौम्या बोली !
विराज मेरी नाराज़गी अपनी जगह थी .. फ़िक्र अपनी जगह थी ..नही चाहती थी कि तुम से बात करूँ कभी ..मगर मुझे भी बार बार तलब उठती थी ..तुम्हें देखने की . ..तुम से बात करने की मगर मैं खुद को रोक लेती थी।
विराज कहने लगा जितनी ऊँची दिवारें तुम बनाती रही अपने इर्द गिर्द ,उतनी ही मेरी चाहत बढ़ती रही।विराज ने सौम्या का हाथ पकड़ कर धीरे से कहा !अगर तुम्हारी इजाज़त हो तो मैं अपने पापा से बात करूँ शादी की ?
और सौम्या ने भरी आँखों से अपना सर विराज के कंधे पर रख दिया जैसे हाँ की स्वीकृति दे रही हो ..
दोस्तों !
ग़लतफ़हमियाँ ही वजह बनती है दूरियों की … वक़्त रहते उन्हें सुलझा लेना चाहिए क्योंकि
कोई भरोसा नही ,कब ज़िन्दगी बेवफ़ाई कर हमारे अपनों को हम से दूर ले जाये और हमारे हाथ तरसने ..तड़पने और बेचैन होने के इलावा कोई रास्ता ही न बचे।
यही मेरी इल्तिजा है सब के लिए ..वक़्त रहते.. अपने दिल के क़रीब रिश्तों को संभाल लीजिए .. —स्मिता केंथ

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पत्रकारिता में विश्वास बहाल करना: नैतिक पत्रकारों की जिम्मेदारी!

पत्रकारिता, जिसे अक्सर चौथी संपत्ति के रूप में जाना जाता है, सूचना प्रसारित करने, सच्चाई को उजागर करने और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाकर दुनिया भर के लोकतंत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालाँकि, इस महान पेशे की प्रतिष्ठा हाल के दिनों में कुछ बिकाऊ पत्रकारों के कार्यों के कारण धूमिल हुई है, जो ईमानदारी पर सनसनीज को प्राथमिकता देते हैं। इस चुनौती से पार पाने और जनता का विश्वास बहाल करने के लिए, नैतिक पत्रकारों को पत्रकारिता के सार को कमजोर करने वालों के खिलाफ खड़े होने की पहल करनी चाहिए। नैतिक प्रथाओं को सक्रिय रूप से बढ़ावा देकर, वे पूरे पेशे की विश्वसनीयता की रक्षा कर सकते हैं।

सनसनीखेज और अनैतिक पत्रकारिता:

डिजिटल मीडिया और 24/7 समाचार चक्र के युग में, सनसनीखेज और क्लिकबेट रणनीति प्रचलित हो गई है। कुछ पत्रकार तथ्य-जाँच और गहन रिपोर्टिंग के बजाय आकर्षक सुर्खियाँ बनाने और दर्शकों को आकर्षित करने को प्राथमिकता देते हैं। यह दृष्टिकोण न केवल जनता को गुमराह करता है बल्कि समग्र रूप से पत्रकारिता में विश्वास को भी ख़त्म करता है।

अनैतिक प्रथाएँ, जैसे मनगढ़ंत कहानियाँ, पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग और भुगतान की गई सामग्री, समस्या को और बढ़ा देती हैं। ये कार्रवाइयां न केवल पत्रकारिता की अखंडता को कमजोर करती हैं बल्कि सूचना के भरोसेमंद स्रोत के रूप में कार्य करने की पत्रकारों की क्षमता को भी कम करती हैं।

पत्रकारों की भूमिका:

नैतिक पत्रकार सत्य और निष्पक्षता के संरक्षक होते हैं। उन्हें पत्रकारिता के मूल मूल्यों को बनाए रखने में आगे आना चाहिए और अपने साथियों के लिए रोल मॉडल के रूप में कार्य करना चाहिए। सटीक रिपोर्टिंग, संतुलित कवरेज और पेशेवर मानकों के पालन के लिए प्रतिबद्ध होकर, नैतिक पत्रकार खोए हुए विश्वास को फिर से बनाने में मदद कर सकते हैं।

  1. तथ्य-जांच और सत्यापन पर जोर देना:

नैतिक पत्रकार गति से अधिक सटीकता को प्राथमिकता देते हैं। उन्हें जनता तक जानकारी प्रसारित करने से पहले कई स्रोतों से जानकारी सत्यापित करनी होगी। तथ्य-जाँच न केवल पत्रकार की विश्वसनीयता की रक्षा करती है बल्कि दर्शकों को गलत सूचना से भी बचाती है।

  1. सनसनीखेज और क्लिकबेट से बचना:

जिम्मेदार पत्रकार सनसनीखेज और क्लिकबेट हेडलाइन के प्रलोभन का विरोध करते हैं। वे ठोस और सार्थक सामग्री प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो जनता की निष्पक्ष जानकारी की आवश्यकता को पूरा करती है।

  1. पारदर्शिता और जवाबदेही:

नैतिक पत्रकार अपने स्रोतों, कार्यप्रणाली और हितों के संभावित टकराव के बारे में पारदर्शी होते हैं। वे प्रतिक्रिया और सुधारों का स्वागत करते हैं, यह स्वीकार करते हुए कि कोई भी अचूक नहीं है।

  1. साथियों को जवाबदेह बनाना:

अपने स्तर की समस्या का समाधान करने के लिए, नैतिक पत्रकारों को अपने साथी पेशेवरों को जवाबदेह ठहराने से नहीं कतराना चाहिए। पत्रकारिता समुदाय के भीतर रचनात्मक आलोचना और चर्चाएं सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं और जिम्मेदार रिपोर्टिंग के महत्व को सुदृढ़ कर सकती हैं।

मीडिया संगठनों का महत्व:

मीडिया संगठन नैतिक पत्रकारिता की संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें सभी स्तरों पर पत्रकारिता की अखंडता को बढ़ावा देते हुए अपने कर्मचारियों के लिए सख्त आचार संहिता बनानी और लागू करनी चाहिए। न्यूज़रूम में विविधता को प्रोत्साहित करने से व्यापक परिप्रेक्ष्य और अधिक संतुलित रिपोर्टिंग हो सकती है।

आज पत्रकारिता के सामने आने वाली चुनौतियों के लिए इस पेशे की प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए नैतिक पत्रकारों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। पारदर्शिता, सटीकता और निष्पक्ष रिपोर्टिंग को सक्रिय रूप से बढ़ावा देकर, वे जनता का विश्वास बहाल कर सकते हैं और सनसनीखेज और अनैतिक प्रथाओं के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला कर सकते हैं। इसके अलावा, मीडिया संगठनों को मजबूत आंतरिक जांच और संतुलन लागू करके नैतिक पत्रकारिता का समर्थन करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

अंततः, सत्य के समर्थक और सत्यनिष्ठा के संरक्षक बनने की जिम्मेदारी स्वयं पत्रकारों की है। केवल नैतिक पत्रकारिता के प्रति सामूहिक प्रतिबद्धता के माध्यम से ही यह पेशा लोकतंत्र की आधारशिला और जनता के लिए विश्वसनीय जानकारी के अमूल्य स्रोत के रूप में अपना दर्जा फिर से हासिल कर सकता है।

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और अब सनातन पर राजनीति- डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

बीते सप्ताह इन्दौर के एक मन्दिर की सीढ़ी पर एक हिन्दू संगठन द्वारा तमिलनाडु के मन्त्री उदयनिधि स्टालिन की फोटो लगा दी गयी| मन्दिर में आने-जाने वाले श्रद्धालु इस फोटो पर पैर रखकर उदयनिधि के उस बयान का विरोध जता रहे थे, जिसमें उन्होंने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना से करते हुए इसे मिटाने की बात कही थी| 6 सितम्बर को अपने मन्त्रियों के साथ बैठक करते हुए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भी उदयनिधि स्टालिन के उक्त बयान का सही तथ्यों के साथ विरोध करने का आह्वाहन किया था| उसके बाद 14 सितम्बर को उन्होंने स्वयं मध्य प्रदेश के बीना में एक सभा को सम्बोधित करते हुए सनातन धर्म की आलोचना करने वालों पर सार्वजनिक रूप से हल्ला बोला| बीजेपी के अलावा अनेक धर्मगुरु भी उदयनिधि के साथ-साथ विपक्षी पार्टियों के गठबन्धन इण्डिया को घेरने में लगे हुए हैं| क्योंकि उदयनिधि की पार्टी डीएमके इण्डिया गठबन्धन में शामिल है| इसके बाद से राजनीतिक विश्लेषक यह मानने लगे हैं कि 2024 के चुनाव का यह एक अहम मुद्दा बन सकता है| हालाकि कांग्रेस सहित गठबन्धन के अन्य सभी दल इसे उदयनिधि का व्यक्तिगत विचार बताते हुए स्वयं को इस मुद्दे से अलग करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं| इस बीच भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का आक्रामक रुख देखते हुए द्रमुक के अन्य नेताओं ने भी उदयनिधि के सुर में सुर मिलाकर और भी ज्यादा खतरनाक बयान दिये| किसी ने सनातन धर्म की तुलना एड्स से तो किसी ने खूंख्वार जानवरों से की| परन्तु बाद में द्रमुक के सर्वेसर्वा तमिलनाडु के मुख्यमन्त्री एमके स्टालिन ने अपने नेताओं को इस मुद्दे पर बोलने से रोक दिया| क्योंकि उन्हें समझ में आने लगा था कि भाजपा इसका पूरा-पूरा फायदा ले रही है| लेकिन भाजपा और उसके सहयोगी दल चुनाव तक हर हाल में द्रमुक नेताओं के सनातन विरोधी बयान को ताजा और महत्वपूर्ण बनाये रखना चाहते हैं|

गौरतलब है कि डीएमके मुखिया एवं तमिलनाडु के मुख्य मन्त्री एमके स्टालिन के पुत्र तथा प्रदेश सरकार के मन्त्री उदयनिधि स्टालिन ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि ‘सनातन का बस विरोध नहीं किया जाना चाहिए, इसे समाप्त ही कर देना चाहिए| यह धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है| हम डेंगू, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते, हमें इसे मिटाना है| इसी तरह हमें सनातन को भी मिटाना है|’ इसके बाद प्रधानमन्त्री सहित बीजेपी नेताओं और धर्म गुरुओं ने द्रमुक तथा विपक्षी गठ्बन्धन इण्डिया पर चौतरफा हमला बोल दिया| तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन को शुरू में यह लगा कि वह अपने बेटे को सनातन विरोधी साबित करके तमिल राजनीति में मजबूती से स्थापित कर लेंगे| अतः उनकी सह पर द्रमुक के अन्य सभी नेता भी बाबले हो गये और सनातन धर्म पर अनाप-शनाप बयानबाजी करने लगे| लेकिन जल्द ही द्रमुक मुखिया को अपना कदम उल्टा पड़ता नजर आया और अब वह इस विषय से दूर होते नजर आ रहे हैं| इण्डिया गठबन्धन के कई घटक दलों ने भी उदयनिधि के बयान की निन्दा की है| आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने कहा कि ‘मैं सनातन धर्म से हूँ, मैं ऐसे बयानों की निन्दा और विरोध करता हूँ| किसी को भी इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए| इस तरह की धर्म विरोधी टिप्पणी से हर किसी को बचना चाहिए|’ शिवसेना ने भी इसकी कड़ी निन्दा की| कांग्रेस के अन्दर इस बयान को लेकर दो तरह के विचार चल रहे हैं| आम आदमी पार्टी और शिव सेना के सख्त रूख के बाद से इण्डिया गठबन्धन में सनातन विरोधी मुद्दा अब कमजोर भले ही पड़ रहा हो लेकिन बीजेपी लगातार विपक्षी गठबन्धन पर हमलावर बनी हुई है| प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा है कि ‘देश के कोने कोने में हर सनातनी को, इस देश को प्यार करने वाले को, इस देश की मिटटी को प्यार करने वाले को, इस देश के कोटि-कोटि जनों को प्यार करने वालों को, हर किसी को सतर्क रहने की जरुरत है| सनातन को मिटाकर ये देश को फिर एक हजार साल की गुलामी में धकेलना चाहते हैं|’ मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘इण्डिया गठबन्धन सनातन को खत्म करने की कोशिश कर रहा है|’ वहीँ गृहमन्त्री अमित शाह का कथन है कि ‘वोटबैंक और तुष्टीकरण की राजनीति करने के लिए सनातन धर्म को समाप्त करने की बात की जा रही है|’ योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि ‘जो सनातन को गाली दे रहे हैं उन सबका 2024 में मोक्ष होने वाला है|’ कांग्रेसी नेता कमलनाथ ने अपना पक्ष रखते हुए स्पष्ट किया कि ‘हमारा देश सनातन धर्म का है, कोई कुछ भी कहे, डीएमके वाला कुछ कहे मैं उस चक्कर में नहीं हूँ|’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने इण्डिया गठबन्धन को नसीहत देते हुए कहा कि ‘मेरी सभी लोगों से प्रार्थना है कि ऐसा कुछ भी न कहें जिससे किसी की आस्था को चोट पहुँचे|’ आप नेता संजय सिंह ने कहा कि ‘उद्ययनिधि ने सनातन धर्म को लेकर जो बयान दिया है उससे हम लोग सहमत नहीं हैं|’ समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अली खान ने भाजपा पर आरोप जड़ते हुए कहा कि ‘भारतीय जनता पार्टी को साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के अलावा कोई काम नहीं आता है, उसमें वह माहिर हैं| लेकिन उनके कारनामों को देश की जनता पहचान चुकी है|’

सनातन के नाम पर अचानक मचे इस बवाल से देश के आम जन का चौकना स्वाभाविक है| क्योंकि नई पीढ़ी के लिए यह एक नया शब्द है, जिसे सम्प्रदाय या पन्थ के रूप में प्रतिष्ठित करके साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने की पुरजोर कोशिश हो रही है| अतः सनातन के अर्थ को समझना अति आवश्यक है| वस्तुतः सनातन का मूल अर्थ है: शाश्वत, सत्य, नित्य, प्राचीन, कभी नष्ट न होने वाला, जिसके प्रारम्भ का ज्ञान न हो तथा सदा रहने वाला|

मनुस्मृतिः के प्रथम अध्याय के श्लोक संख्या 7 में सनातन शब्द का उपयोग नित्य अर्थात सदैव के अर्थ में किया गया है| ‘योЅसावतीन्द्रियग्राह्यः सूक्ष्मोЅव्यक्तः सनातनः| सर्वभूतमेयोЅचिन्त्यः स एव स्वयमुद्वभौ|| अर्थात जो यह परमात्मा इन्द्रियों से ग्रहण नहीं किया जा सकता, शरीर रहित, सूक्ष्म रूप, नित्य, सब प्राणियों की आत्मा और चिन्तन करने के योग्य नहीं है, वह अपने आप प्रकट हुआ है|’ इसी अध्याय के श्लोक संख्या 23 में वेदों के लिए सनातन शब्द का प्रयोग हुआ है: ‘अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्| दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थमृग्यजुःसामलक्षणम्|| अर्थात ब्रह्मा ने यज्ञ की सिद्धि के लिए ऋक्, यजु और साम इन सनातन वेदों को अग्नि, पवन और सूर्य से क्रमशः प्रकट किया|’ श्रीमद्भगवतगीता के श्लोक संख्या 20 में शाश्वत को सनातन के अर्थ में तथा 23 में सनातन को शाश्वत के अर्थ में प्रस्तुत किया गया है: ‘न जायते म्रियते वा कदाचित्रायं भूत्वा भविता वा न भूयः| अजो नित्यः शाश्वतोЅयं पुराणोन हन्यते हन्यमाने शरीरे|| अर्थात यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है; शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता|’ श्लोक संख्या 23 में कहा गया है ‘अच्छेद्योЅयमदाह्योЅयमक्लेद्योЅशोष्य एव च| नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः|| अर्थात यह आत्मा अच्छेद्य(जो छेदा न जा सके), अदाह्य (जो जलाया न जा सके), अक्लेद्य(जो गीला न किया जा सके) और अशोष्य(जो सुखाया न जा सके) है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है|’ गरुड़ पुराण के प्रथम खण्ड के अध्याय पचास के श्लोक संख्या 28 में सूर्यदेव की स्तुति करते हुए उन्हें सनातन कहा गया है ‘त्वमेव ब्रह्म परमापोज्योतिरसोsЅमृतम्| भूर्भुवःस्वस्त्वमोंकरः सर्वो रुद्रः सनातनः|| अर्थात आप ही परम ब्रह्म, आप ही ज्योति रस और अमृत हैं| आप ही भूर्भुवः स्वः मन्त्र रुप हैं, आप ओंकार रूप एकादश रूद्र तथा सनातन हैं|’  गरुड़ पुराण के प्रथम खण्ड के ही अध्याय 205 के श्लोक संख्या 4 एवं 5 में सनातन शब्द का प्रयोग करते हुए धर्म को कुछ इस तरह परिभाषित किया गया है| ‘श्रुत्युक्तः परमो धर्मः स्मृतिशास्त्रगतोЅपरः| शिष्टाचारेण शिष्टानां त्रयो धर्म सनातनः|| सत्यं दानं दया लोभो विद्येज्या पूजनं दमः| अष्टौ तानि पवित्राणि शिष्टाचारस्य लक्षणम्|| अर्थात श्रुति युक्त धर्म तथा स्मृति में कहा कर्म ही परम धर्म है| शिष्टचार भी उत्तम धर्म है| ये तीनों ही धर्म सनातन हैं| सत्य, दान, दया, अलोभ, विद्या, यज्ञ, पूजा, तथा दम (इन्द्रिय दमन) ये आठ पवित्र शिष्टाचार के लक्षण हैं|’ इसी अध्याय के श्लोक संख्या 7, 8, 9 एवं 10 में धर्म के लक्षण बताते हुए अध्ययन, दान तथा शास्त्र सम्मत आचरणों को सनातन बताते हुए धर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है: ‘निवासमुख्या वर्णानां धर्माचाराः प्रकीर्त्तितः| सत्यं यज्ञस्तपो दानमेतद्धर्मस्य लक्षणम्|| अदत्तस्यानुपादानं दानमध्ययनं तपः| विद्या वित्तं तपः शौर्य्यं कुले जन्म त्वरोगिता|| संसारोच्छित्तिहेतुश्च धर्मादेव प्रवर्त्तते| धर्मात् सुखञ्च ज्ञानञ्च ज्ञानान्मोक्षोЅधिगम्यते|| इज्याध्ययनदानानि यथाशास्त्रं सनातनः| ब्रह्मक्षत्रियवैश्यानां सामान्यो धर्म उच्यते|| अर्थात निवास मुख्य (आश्रम अवस्था) कतिपय धर्माचरण के रूप में विख्यात है| सत्य, यज्ञ, तप, दान धर्म के लक्षण हैं| अदत्त द्रव्य का अनुपादान (न देने योग्य वस्तु के प्रति आसक्ति न होना), दान, अध्ययन, तप, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, यज्ञ ये सभी धर्म के लक्षण हैं| विद्या, वित्त, तपःप्रभाव, सतकुल जन्म, आरोग्य, संसार बन्धन से मुक्ति के लिए अर्थात इन सबको पाने के लिए धर्म में लगना उचित है| धर्म से ही सुख तथा ज्ञान प्राप्त होता है| ज्ञान से ही मोक्ष मिलता है| अतः शास्त्र के अनुसार किया गया यज्ञ, अध्ययन तथा दान आदि धर्म सनातन हैं| ये यज्ञादि ही मनुष्य मात्र के लिए सामान्य धर्म बताये गये हैं|

उपरोक्त से स्पष्ट होता है कि सनातन शब्द कोई सम्प्रदाय, पन्थ या रिलीजन का नाम नहीं है| बल्कि भारतीय संस्कृति के शाश्वत या प्राचीन स्वरुप को प्रतिष्ठित करने का माध्यम भर है| भारतीय संस्कृति किसी एक प्रवर्तक द्वारा स्थापित नहीं की गयी है| अपितु भारतीय उपमहाद्वीप में जन्में हजारों ऋषियों के ज्ञान, तपस्या तथा वर्षो बरस के अनुसन्धान से प्रस्फुटित हुई है| इसे किसी सम्प्रदाय या पन्थ की दृष्टि से देखना तथा डेंगू, मलेरिया और कोरोना की तरह नष्ट करने का विचार लाना अल्पज्ञता तथा मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है| विश्व भर के आपस में लड़ते-झगड़ते विभिन्न सम्प्रदाय एक साथ मिलकर भी इस संस्कृति का मुकाबला नहीं कर सकते| अल्पज्ञता के वशीभूत इन सम्प्रदायों से प्रभावित होकर जब हम इनकी दृष्टि से स्वयं को देखने का प्रयास करते हैं तो हमें भी एक वैसे ही नाम की आवश्यकता महसूस होती है| तब हम कभी हिन्दू तो कभी सनातनी बनकर स्वयं को संकीर्ण बनाने का प्रयास करते  हैं| जबकि ये दोनों या ऐसा कोई भी शब्द भारतीय संस्कृति की व्यापकता का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है| हमारे पूर्वजों ने इसको जितना अधिक व्यापक बनाया उतना ही ग्राह्य भी बना दिया है| कोई भी व्यक्ति  इसे आत्मसात करके मनुष्य से देवता तथा अवतारी पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो सकता है| श्रीराम तथा श्रीकृष्ण सहित अनेक महापुरुष इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं|

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