घरेलू स्त्रियों का बायोडाटा नहीं होता….
उनकी तालीम और डिग्रियां कहीं धूल में सनी,
गर्द में दब जाती है….
वह खुद भूल जाती है कि उन्होंने तालीम हासिल की है
उन्हें याद रहता है बस पत्नी, बहू और मां की हासिल की हुई डिग्रियां
हर एक में अव्वल आना उनकी जिम्मेदारी है..
उनका कागजों का कोई औचित्य नहीं
जो ‘कागज’ कमा ना सके….
बहू के संस्कार से लेकर मां के संस्कार तक की तालीम में पीएचडी तो हो ही जाती है
यह जुदा है की ‘कमियां’ तो फिर भी रही जाती है…
अनपढ़, गंवार और तुम्हें कुछ मालूम नहीं है की डिग्रियां घर से ही मिल जाती है
इसीलिए उनका ‘बायोडाटा’ नहीं बस घरेलू स्त्री ही कहलाती है…
प्रियंका वर्मा माहेश्वरी