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राजनीतिक महाभारत…. जीत किसकी?

देश में चल रहे 2024 लोकसभा चुनाव का सियासी घमासान खत्म हो गया है और अब सबकी नजरें प्रधानमंत्री के शपथ समारोह पर है। सियासी युद्ध के परिणाम लोगों की सोच से परे रहा हालांकि साम दाम दंड भेद वाली नीति भाजपा की हमेशा से रही है मगर इस बार भाजपा की पकड़ कमजोर साबित हुई। इस चुनाव के नतीजों ने जहां बीजेपी की हार ने लोगों को चौकाया वहीं कांग्रेस का मजबूती से खड़ा होना और सत्तारूढ़ दल को टक्कर देना लोगों को आश्चर्य में डाल गया।

ये दीगर बात है कि कांग्रेस बहुमत नहीं ला पाई लेकिन एक मजबूत विपक्ष के रूप में खड़ी हुई है हालांकि सत्ता तक पहुंच बनाने के लिए उसे अभी कड़ी मेहनत की जरूरत है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने जिन प्रदेशों पर आंख मूंद कर भरोसा किया था इस बार वहीं से इन्हें मुंह की खानी पड़ी। अयोध्या जैसे शहर से हार जाना जरा अविश्वसनीय लगता है। जो शहर राम मंदिर के प्रचार और जय श्री राम के नारों से गूंजता था वहां भाजपा की हार अप्रत्याशित है हालांकि कई कारण बताए जा रहे हैं।
फैजाबाद लोकसभा सीट के नतीजे से हर कोई हैरान है जहां सरकार द्वारा राम मंदिर का निर्माण कराया गया था और मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी ऐसे समय  की गई जब इसी साल देश में लोकसभा चुनाव होने वाले थे। यह दीगर बात है कि यह कार्य भी चुनावी रणनीति के तहत ही किया गया था मगर इन सब के बावजूद भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। ध्यान दें कि यहां साल 2022 की विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की जमीन दरक चुकी थी और 2024 के लोकसभा चुनाव आते-आते पूरी तरह खिसक गई। 2022 के चुनाव में भाजपा ने जिले में पांच विधानसभा सीटों में से 2 सीटें गंवा दी थी फिर भी भाजपा सजग नहीं हुई और 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने है।
हिंदुत्व के रथ पर सवार भाजपा ने स्थानीय मुद्दों और मसलों को दरकिनार किया। 2020 में जब विकास कार्य शुरू हुआ तो सड़कों के चौड़ीकरण के दौरान बड़ी संख्या में मकान और दुकान टूटे। बड़ी संख्या में लोगों के घर उजड़े लोगों के रोजगार छिनें। व्यापारी वर्ग का आरोप है कि उन्हें मकान और दुकानों के अधिग्रहण का उचित मुआवजा नहीं मिला। जो लोग अपनी जमीन से संबंधित कागज पेश नहीं कर सके बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को मुआवजा नहीं मिला। अयोध्या के हाई प्रोफाइल बनने की वजह से यहां आम लोगों की सुनवाई ना तो भाजपा के नेताओं ने की और ना ही यहां के अधिकारियों ने की यही वजह है कि भाजपा से लोगों का मोह भंग होने लगा।
अयोध्या में करीब 84% हिंदू और 13% मुसलमान है। इसके बावजूद यहां पर भाजपा का हिंदुत्व का कार्ड फेल हो गया। स्थानीय हिंदू मुसलमानों ने खुलकर कहा कि बाबरी की घटना के बाद यहां पर लगातार भाईचारे को बिगड़ने का काम किया गया है एक समय था कि जब मुसलमानों के बनाये खड़ाऊं वहां के साधू संतों के पैर में सजते थे।
अयोध्या के आसपास के इलाकों में ज्यादातर किसान है और जो खेती किसानी से अपना जीवन यापन करते हैं। ऐसे में आवारा पशुओं की समस्या को भाजपा ने नजरअंदाज किया। खेतीबाड़ी से हुए नुकसान के चलते किसानों ने अपने खेत कई सालों तक खाली छोड़ रखे थे। किसानी से लागत नहीं निकलती थी और आवारा पशुओं द्वारा नुकसान अलग होता था। समाजवादी पार्टी ने इन मुद्दों पर  मोर्चा संभाला और जन समर्थन हासिल किया।
दूसरी बात महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त जनता ना तो कांग्रेस को वोट देना चाह रही थी और ना ही भाजपा को देना चाह रही थी ऐसे में लोगों ने नोटा को अपनाया और बड़ी संख्या में ऐसे लोग वोट देने नहीं गए। यह चुनाव इस बात का प्रमाण है कि धर्म से देश नहीं चलता बल्कि बुनियादी मुद्दे ज्यादा जरूरी होते है।