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केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने बीसीसीएल के 51 सौर ऊर्जा संयंत्रों का उद्घाटन किया

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केंद्रीय कोयला और खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने सतत ऊर्जा और कार्बन उत्सर्जन को न्यून करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के तहत वर्तमान में जारी विशेष अभियान 4.0 के तहत रांची से भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के 51 रूफटॉप सौर ऊर्जा संयंत्रों का रिमोट से उद्घाटन किया। 2.428 मेगा वाट (एमडब्ल्यू) की संचयी क्षमता के साथ, ये सौर ऊर्जा संयंत्र हरित और अधिक आत्मनिर्भर भारत को प्रोत्साहन देने की बीसीसीएल की प्रतिबद्धता में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि सिद्ध होंगे।

इस अवसर पर अपने संबोधन में, मंत्री महोदय सतीश चंद्र दुबे ने कहा कि इस दिशा में बीसीसीएल के प्रयास सराहनीय हैं। श्री सतीश चंद्र दुबे ने कहा कि बीसीसीएल द्वारा छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना अप्रयुक्त भवन स्थलों के उपयोग का एक अच्छा उदाहरण है।

बीसीसीएल के मुख्य प्रबंध निदेशक श्री समीरन दत्ता ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में कंपनी की प्रगति के प्रति उत्साह व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक उपलब्धि बीसीसीएल की न केवल देश की कोकिंग कोल आवश्यकताओं को सुरक्षित करने की स्थायी प्रतिबद्धता को दर्शाती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि भविष्य की यात्रा स्थायी और पर्यावरण के अनुकूल हो। उन्होंने कहा कि बीसीसीएल को भारत के अक्षय ऊर्जा मिशन में योगदान देने पर गर्व है और ये 51 सौर संयंत्र हरित भविष्य के लिए इसके दीर्घकालिक दृष्टिकोण का प्रतिबिंब हैं। इस अवसर पर बीसीसीएल के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की एक प्रमुख सहायक कंपनी और भारत में कोकिंग कोल का सबसे बड़ा उत्पादक बीसीसीएल, दूरदर्शी आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत “मिशन कोकिंग कोल” में योगदान देने में महत्वपूर्ण रहा है। वर्तमान में बीसीसीएल में विभिन्न स्थानों पर 1.66 मेगावाट रूफटॉप सोलर प्लांट स्थापित और संचालित किए गए हैं।

वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 2.428 मेगावाट के रूफटॉप प्लांट के अलावा 3 मेगावाट के रूफटॉप सोलर प्लांट की योजना बनाई गई है। इसके अलावा, दुग्धा वाशरी में 20 मेगावाट का ग्राउंड-माउंटेड सोलर प्रोजेक्ट लगाया जा रहा है, जिसके 2024 तक पूरा होने की उम्मीद है और भोजुडीह कोल वाशरी में 25 मेगावाट का ग्राउंड-माउंटेड सोलर प्रोजेक्ट लगाया जा रहा है, जिसके मार्च 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है।

इसके साथ ही, बीसीसीएल अपने पर्यावरण संबंधी प्रभाव को कम करने की अपनी प्रतिबद्धता को भी दृढ करता है, साथ ही कोयला उत्पादन के अपने मुख्य मिशन को नवीन हरित पहलों के साथ संतुलित करता है। नई तकनीकों को अपनाने पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ परिचालन उत्कृष्टता के प्रति समर्पण, ऊर्जा और खनन दोनों क्षेत्रों में जारी है।

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स्वच्छ भारत अभियान 140 करोड़ भारतीयों की शक्ति द्वारा संचालित एक असाधारण आंदोलन है: प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के 10 वर्ष पूरे होने की प्रशंसा की है और कहा है कि यह अभियान 140 करोड़ भारतीयों की शक्ति द्वारा संचालित एक असाधारण आंदोलन है।

माईगॉवइंडिया द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर एक थ्रेड को पुनः पोस्ट करते हुए, प्रधानमंत्री ने लिखा:

“एक असाधारण आंदोलन, 140 करोड़ भारतीयों की शक्ति द्वारा संचालित!

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने झारखंड के हजारीबाग में 80,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज झारखंड के हजारीबाग में 80,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। श्री मोदी ने धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान का शुभारंभ किया, 40 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) का उद्घाटन किया और 25 ईएमआरएस की आधारशिला रखी। श्री मोदी ने प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान (पीएम-जनमन) के तहत कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया।

उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने झारखंड की विकास यात्रा का हिस्सा बनने के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने कुछ दिन पहले सैकड़ों करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए अपने जमशेदपुर आगमन को याद किया। श्री मोदी ने पीएम आवास योजना के तहत झारखंड के हजारों गरीबों को पक्के मकान सौंपने का जिक्र किया। आदिवासी समुदायों के सशक्तिकरण और कल्याण से जुड़ी आज की 80,000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आदिवासी समुदायों के प्रति सरकार की प्राथमिकता का प्रमाण है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने आज की परियोजनाओं के लिए झारखंड और भारत के लोगों को बधाई दी।

महात्मा गांधीजी की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि आदिवासी कल्याण के प्रति उनकी दृष्टि और विचार भारत की पूंजी हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी का मानना ​​था कि भारत तभी प्रगति कर सकता है जब आदिवासी समाज तेज गति से प्रगति करे। श्री मोदी ने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार आदिवासी उत्थान पर अधिकतम ध्यान दे रही है और आज धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान का शुभारंभ किया गया। इस अभियान के तहत, लगभग 80,000 करोड़ रुपये की लागत से लगभग 550 जिलों में 63,000 आदिवासी बहुल गांवों का विकास किया जाएगा। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने बताया कि इन आदिवासी बहुल गांवों में सामाजिक-आर्थिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम किया जाएगा और इसका लाभ देश के 5 करोड़ से अधिक आदिवासी भाई-बहनों तक पहुंचेगा। उन्होंने कहा, “झारखंड के आदिवासी समाज को भी इससे बहुत लाभ होगा।”

प्रधानमंत्री ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान की शुरुआत भगवान बिरसा मुंडा की धरती से की जा रही है। प्रधानमंत्री ने यह भी याद दिलाया कि भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर झारखंड से पीएम-जनमन योजना की शुरुआत की गई थी। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि 15 नवंबर, 2024 को जनजातीय गौरव दिवस पर भारत पीएम-जनमन योजना की पहली वर्षगांठ मनाएगा। उन्होंने कहा कि पीएम-जनमन योजना के माध्यम से देश के उन आदिवासी क्षेत्रों तक विकास का लाभ पहुंच रहा है, जो पीछे रह गए थे। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पीएम-जनमन योजना के तहत आज लगभग 1350 करोड़ रुपये के विकास कार्यों की आधारशिला रखी गई। योजना के बारे में चर्चा करते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सबसे पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों में बेहतर जीवन के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी सुविधाओं का निर्माण किया जाएगा।

झारखंड में अपने पहले वर्ष में ही पीएम-जनमन योजना की कई उपलब्धियों के बारे में चर्चा करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि 950 से अधिक अति पिछड़े गांवों में हर घर में पानी पहुंचाने का काम पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि राज्य में 35 वनधन विकास केंद्रों को भी मंजूरी दी गई है। प्रधानमंत्री ने सुदूर आदिवासी क्षेत्रों को मोबाइल कनेक्टिविटी से जोड़ने के लिए किए जा रहे कार्यों पर भी प्रकाश डाला, जो प्रगति के समान अवसर प्रदान करके आदिवासी समाज को बदलने में मदद करेगा।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि जब आदिवासी युवाओं को शिक्षा और अवसर मिलेंगे तो आदिवासी समाज आगे बढ़ेगा। इसके लिए, श्री मोदी ने कहा कि सरकार आदिवासी क्षेत्रों में एकलव्य आवासीय विद्यालय बनाने के अभियान में जुटी है। प्रधानमंत्री ने आज 40 एकलव्य आवासीय विद्यालयों के उद्घाटन और 25 नए विद्यालयों की आधारशिला रखने का जिक्र करते हुए कहा कि एकलव्य विद्यालयों को सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस किया जाना चाहिए और उच्च स्तर की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार ने प्रत्येक विद्यालय का बजट भी लगभग दोगुना कर दिया है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि सही प्रयास किए जाने पर सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि आदिवासी युवा आगे बढ़ेंगे और देश को उनकी क्षमताओं से लाभ मिलेगा।

इस अवसर पर झारखंड के राज्यपाल श्री संतोष गंगवार और जनजातीय कार्य मंत्री श्री जुएल ओराम सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि

देश भर में आदिवासी समुदायों के व्यापक और समग्र विकास को सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप, प्रधानमंत्री ने 80,000 करोड़ रुपये से अधिक के कुल परिव्यय के साथ धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू किया। यह अभियान 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 549 जिलों और 2,740 ब्लॉकों में 5 करोड़ से अधिक आदिवासी लोगों को लाभान्वित करते हुए लगभग 63,000 गांवों को कवर करेगा। इसका उद्देश्य भारत सरकार के विभिन्न 17 मंत्रालयों और विभागों द्वारा कार्यान्वित 25 क्रियाकलापों के माध्यम से सामाजिक आधारभूत संरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका में महत्वपूर्ण अंतराल को पूरा करना है।

आदिवासी समुदायों के लिए शैक्षिक इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने के लिए, प्रधानमंत्री ने 40 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) का उद्घाटन किया और 2,800 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाले 25 ईएमआरएस की आधारशिला रखी।

प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान (पीएम-जनमन) के तहत 1360 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इसमें 1380 किलोमीटर से अधिक सड़कें, 120 आंगनवाड़ी, 250 बहुउद्देश्यीय केंद्र और स्कूलों के 10 छात्रावास शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने पीएम जनमन के तहत कई ऐतिहासिक उपलब्धियों का भी अनावरण किया, जिसमें लगभग 3,000 गांवों में 75,800 से अधिक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के घरों का विद्युतीकरण, 275 मोबाइल चिकित्सा इकाइयों का संचालन, 500 आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन, 250 वन धन विकास केंद्रों की स्थापना और 5,550 से अधिक पीवीटीजी गांवों को ‘नल से जल’ से परिपूर्ण करना शामिल है।

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प्रधानमंत्री स्मृति चिन्हों की ई-नीलामी 31 अक्टूबर, 2024 तक बढ़ाई गई

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिले स्मृति चिन्हों के अनूठे संग्रह की असाधारण ई-नीलामी को तिथि को आगे बढ़ा दिया है। यह नीलामी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाती है।

आरंभ में 17 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2024 तक निर्धारित यह नीलामी अब 31 अक्टूबर 2024 तक भागीदारी के लिए खुली रहेगी। इच्छुक व्यक्ति आधिकारिक वेबसाइट: https://pmmementos.gov.in/ के माध्यम से पंजीकरण कर सकते हैं और नीलामी में भाग ले सकते हैं।

इस नीलामी में प्रस्तुत की जाने वाली वस्तुओं में पारंपरिक कला रूपों की एक श्रृंखला है, जिसमें जीवंत चित्रकारी, भव्य मूर्तियां, स्वदेशी हस्तशिल्प, आकर्षक लोक और आदिवासी कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं। इन खजानों में पारंपरिक अंगवस्त्र, दुशाला, शिरोवस्ट्र और औपचारिक तलवारें सहित सम्मान और आदर के प्रतीक के रूप में पारंपरिक रूप से दी जाने वाली वस्तुएँ शामिल हैं।

खादी का दुशाला, चांदी की जरदोज़ी के वस्त्र, माता नी पचेड़ी कला, गोंड कला और मधुबनी कला जैसी उल्लेखनीय वस्तुएं भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हुए, इनमें चार चांद लगाती हैं । नीलामी की एक प्रमुख विशेषता पैरा ओलंपिक, 2024 से खेल स्मृति चिन्ह हैं। प्रत्येक खेल स्मृति चिन्ह एथलीटों के असाधारण एथलेटिकता और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है, जो उनकी कड़ी मेहनत और प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता का प्रमाण है। यह स्मृति चिन्ह न केवल उनकी उपलब्धियों का सम्मान है बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा है।

वर्तमान ई-नीलामी सफल नीलामियों की श्रृंखला में छठा संस्करण है, जिसे शुरू में जनवरी 2019 में प्रारंभ किया गया था। पिछले संस्करणों की तरह, नीलामी के इस संस्करण से प्राप्त आय भी नमामि गंगे परियोजना में योगदान देगी। यह परियोजना केंद्र सरकार की प्रमुख पहल है जो हमारी राष्ट्रीय नदी, गंगा के संरक्षण और पुनरुद्धार और इसके कमजोर पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए समर्पित है। इस नीलामी के माध्यम से प्राप्त धन का उपयोग इस श्रेष्ठ कार्य में किया जाएगा जो पर्यावरण के संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।  

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प्रधानमंत्री मोदी ने मौसम और जलवायु अनुसंधान के लिए तैयार उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग (एचपीसी) प्रणाली का उद्घाटन किया

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा अधिग्रहित, मौसम और जलवायु अनुसंधान के लिए तैयार उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग (एचपीसी) प्रणाली का उद्घाटन किया है।

इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर 850 करोड़ रुपये निवेश किए गए हैं। यह परियोजना विशेष रूप से चरम घटनाओं के लिए अधिक विश्वसनीय और सटीक मौसम और जलवायु पूर्वानुमान के लिए भारत की कम्प्यूटेशनल क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण छलांग है। यह दो प्रमुख स्थलों पर स्थित है – पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) और नोएडा में राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ)।  

आईआईटीएम सिस्टम 11.77 पेटा फ्लॉप्स और 33 पेटाबाइट स्टोरेज की प्रभावशाली क्षमता से लैस है, जबकि एनसीएमआरडब्ल्यूएफ सुविधा में 8.24 पेटा फ्लॉप्स और 24 पेटाबाइट स्टोरेज की सुविधा है। इसके अतिरिक्त, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग अनुप्रयोगों के लिए 1.9 पेटा फ्लॉप्स की क्षमता वाला एक समर्पित स्टैंडअलोन सिस्टम है।

इसके साथ, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की कुल कंप्यूटिंग शक्ति 22 पेटा फ्लॉप्स तक बढ़ जाएगी, जो 6.8 पेटा फ्लॉप्स की पिछली क्षमता से पर्याप्त वृद्धि है।

परंपरा के अनुसार, इन अत्याधुनिक प्रणालियों का नाम सूर्य से जुड़ी खगोलीय इकाइयों के नाम पर रखा गया है। पिछली प्रणालियों का नाम आदित्य, भास्कर, प्रत्युष और मिहिर रखा गया था। नई एचपीसी प्रणालियों को ‘अर्क’ और ‘अरुणिका’ नाम दिया गया है, जो सूर्य से उनके संबंध को दर्शाता है – सूर्य, पृथ्वी के लिए प्राथमिक ऊर्जा स्रोत है।

उन्नत कम्प्यूटेशनल ढांचा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाते हुए परिष्कृत मॉडलों के विकास को सक्षम करेगा, जिससे विभिन्न हितधारकों को प्रदान की जाने वाली अंतिम-मील सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार होगा।

एचपीसी सिस्टम द्वारा प्रदान की गई उन्नत कम्प्यूटेशनल क्षमताएं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को मौजूदा डेटा समाकलन क्षमताओं को और बेहतर बनाने तथा उच्च क्षैतिज रिज़ॉल्यूशन पर अपने वैश्विक मौसम पूर्वानुमान मॉडल की भौतिकी और गतिशीलता को परिष्कृत करने में सक्षम बनाएंगी। इसके अलावा, क्षेत्रीय मॉडल चुनिंदा भारतीय डोमेन पर 1 किमी या उससे कम के बेहतर रिज़ॉल्यूशन प्राप्त करेंगे। ये उच्च-रिज़ॉल्यूशन मॉडल उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, भारी वर्षा, गरज, ओलावृष्टि, गर्मी की लहरों, सूखे और अन्य चरम मौसम की घटनाओं से संबंधित भविष्यवाणियों की सटीकता और लीड टाइम को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएंगे।

इन उन्नत एचपीसी प्रणालियों का लाभ उठाते हुए, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का लक्ष्य मौसम पूर्वानुमानों की सटीकता और विश्वसनीयता में उल्लेखनीय सुधार करना है, ताकि जलवायु परिवर्तनशीलता और चरम मौसम की घटनाओं से उत्पन्न चुनौतियों के लिए बेहतर तैयारी और प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सके।

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विकसित भारत बनाने के लक्ष्य के साथ मोदी 3.0 सरकार के पहले 100 दिनों में 15,000 से अधिक युवाओं की नियुक्तियां

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी ने देश में रोजगार सृजन और युवा सशक्तिकरण को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। प्रधानमंत्री ने हमेशा कहा है कि हमारा जनसंख्या का लाभांश हमारे देश की सबसे बड़ी ताकतों में से एक है और यह सुनिश्चित करना भारत सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है कि राष्ट्र निर्माण में युवाओं की क्षमता का पूरा उपयोग किया जाए ताकि विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

वर्तमान सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन कई प्रमुख पहलों और निर्णयों से चिह्नित हैं, जिन्होंने लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला है और विकसित भारत @2047 के लिए एक मजबूत नींव रखी है। नागरिक-केंद्रित निर्णय गरीबों और मध्यम वर्ग, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और युवाओं के जीवन को बेहतर बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण से प्रेरित हैं।

100 दिनों में 15,000 से अधिक युवाओं को केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों द्वारा सरकारी नौकरियों के लिए नियुक्ति पत्र दिए गए हैं। विभिन्न रैंकों, पदों और समूहों के साथ नई नियुक्तियों में निम्नलिखित शामिल हैं:

गृह मंत्रालय – दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर, कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, सब इंस्पेक्टर, बढ़ई, स्टोर, ड्राइवर, कांस्टेबल (एग्जीक्यूटिव) आदि।

कोयला मंत्रालय – सर्वेक्षक (खनन), वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, चिकित्सा विशेषज्ञ, कार्यकारी प्रशिक्षु, डम्पर ऑपरेटर आदि।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय – डॉक्टर, नर्सिंग अधिकारी, प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर, चिकित्सा विशेषज्ञ, फार्मासिस्ट, एमटीएस, लोअर डिवीजन क्लर्क, रेडियोग्राफर और लाइब्रेरी क्लर्क, प्रयोगशाला परिचारक।

उच्च शिक्षा विभाग – सहायक प्रोफेसर, रजिस्ट्रार, मल्टी-टास्किंग स्टाफ, निजी सचिव, परीक्षा नियंत्रक, तकनीकी अधिकारी, खेल अधिकारी, कार्यकारी अभियंता, परामर्शदाता, विधि अधिकारी।

राजस्व विभाग – निरीक्षक, परीक्षक, प्रिवेंटिव ऑफिसर, कर सहायक, मल्टी-टास्किंग स्टाफ आदि।

विद्युत मंत्रालय – इंजीनियर (प्रशिक्षु), प्रबंधक, उप प्रबंधक आदि।

रक्षा मंत्रालय (सिविलियन) – वैज्ञानिक, मल्टी-टास्किंग स्टाफ (एमटीएस), ट्रेड्समैन, सिविलियन मोटर ड्राइवर, क्लर्क आदि।

नव नियुक्त कर्मचारियों को आईजीओटी कर्मयोगी पोर्टल पर एक ई-लर्निंग मॉड्यूल ‘कर्मयोगी प्रारम्भ’ के माध्यम से खुद को प्रशिक्षित करने का अवसर भी मिलेगा, जहां सीखने के लिए “कहीं भी किसी भी डिवाइस पर” 1200 से अधिक उच्च गुणवत्ता वाले ई-लर्निंग पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए गए हैं। नागरिक-केंद्रित शासन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सितंबर 2020 में लॉन्च किए गए पोर्टल मिशन कर्मयोगी पर अब तक 43 लाख से अधिक कर्मयोगी जुड़ चुके हैं।

नव नियुक्त विभिन्न भूमिकाओं में अपनी सेवाएं देकर राष्ट्र की सेवा करने में सक्षम होंगे और वे भारत@2047 के साक्षी बनेंगे तथा उनसे राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद की जाएगी। वे अन्य बातों के अलावा, देश के औद्योगिक, आर्थिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के कार्य में शामिल होंगे और इस तरह अपने नवीन विचारों, नवीन प्रौद्योगिकी और शासन में सार्वजनिक भागीदारी के साथ एक नए भारत का निर्माण करेंगे। परिवर्तन की गति वैश्विक स्तर पर देश के उत्थान को आकार दे रही है।

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गैर-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) के उपचार संबंधी संशोधित परिचालन और प्रशिक्षण दिशानिर्देश जारी किए

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आज यहां गैर-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) के उपचार संबंधी संशोधित परिचालन दिशानिर्देश और प्रशिक्षण मॉड्यूल जारी किए। ये दस्तावेज जानकारी, प्रमाण आधारित विधियों से एनएएफएलडी रोगियों की देखभाल और नतीजों को बेहतर बनाने के लिए तैयार किए गए हैं।

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केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव श्री अपूर्व चंद्रा ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा, “भारत ने एनएएफएलडी को एक प्रमुख गैर संचारी रोग (एनसीडी) के रूप में मान्यता देने में अग्रणी भूमिका निभाई है।” उन्होंने कहा कि यह देश की आबादी में बहुत तेजी से एक प्रमुख स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभर रहा है, जो चयापचय (मेटाबोलिक) विकारों जैसे मोटापे, मधुमेह और दिल की बीमारियों से निकटता से जुड़ा है। इस रोग की गंभीरता का पता इस बात से चलता है कि प्रत्येक 10 में से एक से तीन लोगों को एनएएफएलडी हो सकता है।

श्री चंद्रा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि संशोधित परिचालन दिशा-निर्देश और प्रशिक्षण मॉड्यूल जारी करना इस रोग पर अंकुश लगाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा रोग से निपटने  के महत्व को दर्शाता है।” उन्होंने कहा कि ये दस्तावेज सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से लेकर चिकित्सा अधिकारियों तक सभी स्तरों पर एक रूपरेखा प्रदान करेंगे। उन्होंने उन लोगों की निरंतर देखभाल पर भी जोर दिया, जिनमें इस रोग का पता चला था और इसके प्रसार को कम करने के लिए जीवनशैली में बदलाव लाने की बात भी कही।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की विशेष कार्य अधिकारी श्रीमती पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने इस मौके पर कहा, “इन दिशा-निर्देशों को जमीनी स्तर कार्य कर रहे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तक पहुंचाने की आवश्यकता है ताकि बीमारी का जल्द पता लगाकर इसके बोझ को कम किया जा सके।” उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण मॉड्यूल को जारी किया जाना देश में एनसीडी के बढ़ते बोझ से निपटने के लिए चिकित्सकों की क्षमता निर्माण के देश के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण अतिरिक्त कड़ी है।

इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (आईएलबीएस) के निदेशक डॉ. एस.के. सरीन ने कहा कि दोनों दस्तावेजों का जारी किया जाना लिवर संबंधी बीमारियों की रोकथाम में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसके परिणाम अगले कुछ वर्षों में दिखाई देंगे। उन्होंने लीवर को स्वस्थ बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी कई गैर-संचारी बीमारियां (एनसीडी) लीवर के स्वास्थ्य से जुड़ी हैं।

देश में 66 प्रतिशत से ज़्यादा मौतें गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण होती हैं। इन रोगों का तम्बाकू सेवन (धूम्रपान और धूम्रपान रहित), शराब पीना, खराब आहार संबंधी आदतें, अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि और वायु प्रदूषण के साथ गहरा संबंध है।

एनएएफएलडी भारत में लिवर रोग का एक महत्वपूर्ण कारण बनकर उभर रहा है। यह एक छिपी महामारी हो सकती है, जिसका सामुदायिक प्रसार 9 प्रतिशत से 32 प्रतिशत तक हो सकता है और आयु, लिंग, रहन-सहन संबंधी स्थितियां तथा सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि 10 में से 1 से 3 व्यक्ति फैटी लिवर या इससे संबंधित बीमारी से पीड़ित होंगे।

भारत में वैश्विक स्तर पर एनसीडी रोगियों की संख्या सबसे ज़्यादा है और मेटाबॉलिक बीमारियों का एक मुख्य कारण लिवर की कार्य प्रणाली से जुड़ा है। इस पर आने वाले खर्च के बढ़ते बोझ और इससे निपटने की आवश्यकता को देखते हुए, भारत 2021 में एनसीडी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम में एनएएफएलडी को शामिल करने वाला पहला देश बन गया है।

एनएएफएलडी के क्षेत्र में हाल ही में प्रमाण-आधारित समाधानों को देखते हुए, देश में एनएएफएलडी के नियंत्रण और इसकी रोकथाम में चिकित्सा पेशेवरों की मदद करने और उनका बेहतर तरीके से प्रबंधन करने के लिए अद्यतन दिशानिर्देशों की सख्त आवश्यकता महसूस की जा रही थी।

ये दिशानिर्देश बेहतर स्वास्थ्य स्थितियों और इस रोग की शुरू में ही पहचान पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो एनएएफएलडी मरीजों की समय पर उचित देखभाल को सुनिश्चित करने की दिशा में अहम हैं। ये दिशानिर्देश बहु-विषयक दृष्टिकोण पर जोर देते हैं, जो एनएएफएलडी से प्रभावित व्यक्ति को पूर्ण उपचार प्रदान करने, बेहतर देखभाल करने संबंधी विभिन्न मुद्दों पर स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के प्रयासों को एकीकृत करता है।

एनएएफएलडी के प्रभावी प्रबंधन के लिए न केवल रोग की स्थिति की अच्छी समझ जरूरी है बल्कि स्वास्थ्य सेवा के सभी स्तरों पर साक्ष्य-आधारित कार्यक्रमों को लागू करने की क्षमता भी होनी चाहिए। एनएएफएलडी के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल परिचालन दिशानिर्देशों को पूरक के रूप में विकसित किया गया है और विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर एनएएफएलडी की पहचान, प्रबंधन, रोकथाम के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल के साथ स्वास्थ्य पेशेवरों की क्षमता निर्माण में मदद करता है। मॉड्यूल में महामारी विज्ञान, जोखिम कारक, स्क्रीनिंग, नैदानिक ​​प्रोटोकॉल और मानकीकृत उपचार दिशानिर्देशों सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। यह स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए प्रारंभिक पहचान, रोगी शिक्षा, जीवन शैली में बदलाव और एकीकृत देखभाल नीतियों पर भी जोर देता है।

इस बैठक में स्वास्थ्य मंत्रालय के अपर सचिव और वित्तीय सलाहकार श्री जयदीप कुमार मिश्रा, अपर सचिव श्रीमती एल एस चांगसन, संयुक्त सचिव श्रीमती लता गणपति और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि, विकास साझेदार और विश्व स्वास्थ्य संगठन, आईएलबीएस, एम्स, सीएमसी वेल्लोर, जेआईपीएमईआर, एसजीपीजीआईएमएस, पीजीआईएमईआर और आरएमएल अस्पताल के विशेषज्ञ भी वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए।

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केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया ने बेंगलुरु में “उत्तरी पूर्व व्यापार और निवेश रोड शो” का नेतृत्व किया, उत्तरी पूर्वी भारत में निवेश के लिए निवेशकों को आमंत्रित किया

उत्तरी पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (एमडीओएनईआर) ने आज बेंगलुरु में उत्तरी पूर्व व्यापार और निवेश रोड शो का सफलतापूर्वक आयोजन किया। कार्यक्रम का प्रारंभ एक सकारात्मक स्वर से हुआ,इसने अहम ध्यान आकर्षित किया और बड़ी संख्या में भागीदारों ने इसमें रुचि दिखाई। केंद्रीय संचार एवं उत्तरी पूर्व क्षेत्र विकास मंत्री श्री ज्योतिरादित्य एम.सिंधिया ने मंत्रालय और आठ उत्तरी पूर्वी राज्यों के अधिकारियों के साथ कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। 

 

केंद्रीय मंत्री श्री ज्योदिरादित्य एम. सिंधिया ने उत्तरी पूर्व क्षेत्र की विशाल संभावनाओं के बारे में बताते हुए कहा कि क्षेत्र की विकसित भारत में एक बड़े भविष्य की भूमिका है। उन्होंने ध्यान आकर्षित किया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दूरगामी नेतृत्व के अंतर्गत उत्तरी पूर्वी क्षेत्र, केंद्र सरकार के केंद्रीय बिंदु में है। इसके परिणामस्वरुप क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई पहल जैसे एक्ट ईस्ट नीति और उन्नति आदि प्रारंभ की गई है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने रेल, सड़क,वायु, जलमार्ग और दूरसंचार क्षेत्र में संपर्कता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए है। उन्होंने बताया कि बीते दस सालो में क्षेत्र में निवेश में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है। क्षेत्र में कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, आईटी एवं आईटीईएस, शिक्षा, पर्यटन तथा आतिथ्य,ऊर्जा, मनोरंजन और खेल क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं है। उत्तर पूर्व अतुलनीय खेल प्रतिभाओं का घर है । इसमें विशेष तौर पर मुक्केबाजी, निशानेबाजी और फुटबाल सम्मिलित हैं। इसके साथ ही क्षेत्र के एथलीटो ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। केंद्र सरकार क्षेत्र की इस संभावना का लाभ उठाने के लिए क्षेत्रीय खेल लीग को प्रोत्साहन देने का लक्ष्य बना रही है। पर्यटन क्षेत्र में उत्तरी पूर्व क्षेत्र का हर एक राज्य एक आभूषण के समान है। उत्तरी पूर्वी क्षेत्रीय विकास मंत्रालय, क्षेत्र में विश्व स्तरीय बुनियादी ढ़ांचा विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने बेंगलुरू के भारत के सिलिकॉन वैली होने का संदर्भ देते हुए इसे उत्तरी पूर्वी क्षेत्र में आईटीऔर आईटीईएस क्षेत्र जैसे आईटी केंद्र, उभरती हुई प्रौद्योगिकियों के सर्वश्रेष्ठ केंद्र और डाटा एनेलेटेटिक्स आदि में अवसरों का पता लगाने और इसे दोहराने के लिए कहा। उत्तरी पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय के सचिव श्री चंचल कुमार ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की एक्ट ईस्ट नीति के तहत सभी आठ राज्यों में अनूठे अवसर हैं। बीते दस सालो में उत्तरी पूर्वी क्षेत्र में संपर्कता में कई गुना वृद्धि हुई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि क्षेत्र में निवेश संबंधी इकोसिस्टम कार्यरत है जो निवेशकों को सुविधा प्रदान करेगा। इसके साथ ही मंत्रालय तथा उत्तरी पूर्वी क्षेत्र की राज्य सरकार क्षेत्र में निवेश को आवश्यक समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय की संयुक्त सचिव मोनालीसा दाश ने अपने संबोधन में उत्तरी पूर्वी क्षेत्र के लाभ और निवेश तथा व्यापार में अवसरो पर जोर देते हुए कहा कि क्षेत्र में अभी विकास की अनेक संभावनाएं है। बीते दशक में सरकार ने विभिन्न योजनाओं तथा पहलों के द्वारा कई रूकी हुई परियोजनाओं को पूरा किया है, जिसका लाभ स्थानीय समुदायों और लाखों लोगो को मिला है। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य लाभ, पर्यटन, आईटी और आईटीईएस, ऊर्जा खेल आदि में अवसरों के संबंध में विशेष रूप से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मंत्रालय निवेश अवसरों को सुविधा तथा क्षेत्रीय निवेश अवसरो को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्तरी पूर्व क्षेत्र अपने विकास के लिए आशावान है और रणनीतिक निवेश के साथ विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका में आ सकता है। इसका लाभ स्थानीय जनसंख्या और भारत को सम्रग रूप से मिलेगा।

 

उत्तरीपूर्वी राज्य के सरकारी अधिकारियों ने फिक्की (औद्योगिक भागीदार) और इन्वेस्ट इंडिया (निवेश सुविधा भागीदार) के प्रतिनिधियों के साथ विभिन्न केंद्रित क्षेत्रो में अवसरों पर अहम जानकारी साझा की। प्रत्येक राज्य ने अपने क्षेत्र मे निवेश से संबंधित विस्तृत जानकारी भी प्रस्तुत की। कार्यक्रम में कई व्यवसायों से सक्रिय भागीदारी देखी गई जो क्षेत्र में निवेश परिदृश्य में बड़ी रूचि प्रदर्शित करता है।

उत्तरी पूर्वी क्षेत्र को रणनीतिक रूप से अहम स्थान का लाभ मिला है और इसकी आसियान अर्थव्यवस्था तक सुविधाजनक पहुंच है, जिसके कारण व्यापार करने के लिए आकर्षक अवसर मिलते हैं। क्षेत्र में त्वरित गति से बुनियादी ढ़ांचे का विकास जारी है, जिसके अंतर्गत नए प्रौद्योगिकी केंद्र और औद्योगिक पार्क स्थापित किए गए है जिससे क्षेत्र में व्यापार की संभावनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है।

शिखर सम्मेलन के भाग के रूप में विभिन्न राज्यों असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, सिक्किम और नागालैंड के साथ सफल राउंड टेबल कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता में पूर्व में आयोजित रोड शो में उत्साहवर्धक भागीदारी देखी गई थी, जबकि वाईब्रैंट गुजरात के दौरान राज्य सम्मेलनों में प्रभावी निवेशकों की रूचि को प्रभावित किया।

बैंगलुरू रोड शो ने निवेशको में अहम रूचि जाग्रत की है। एक परिवर्तनकारी कार्यक्रम के रूप में पूर्वानुमानित बैंगलुरू रोड शो के दौरान कई बी2जी का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ जिसमें उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे असम, अरूणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मिज़ोरम, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और नागालैंड में निवेशकों द्वारा रूचि प्रदर्शित की गई।

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केंद्र सरकार ने श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन दरें बढ़ाईं

केंद्र सरकार ने श्रमिकों, विशेषकर असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सहायता देने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए परिवर्तनशील महंगाई भत्ते (वीडीए) को संशोधित करके न्यूनतम मजदूरी दरों में बढ़ोतरी की घोषणा की है। इस निर्णय का उद्देश्य श्रमिकों को जीवनयापन के लिए बढ़ती लागत का सामना करने में मदद करना है।

केंद्रीय क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के भीतर भवन निर्माण, माल लादने और उतारने, चौकीदार या प्रहरी, सफाई, शोधन, घर की देख-भाल करने, खनन तथा कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में लगे श्रमिकों को संशोधित मजदूरी दरों से लाभ होगा। नई वेतन दरें 1 अक्टूबर, 2024 से प्रभावी होंगी। इससे पहले श्रमिक दरों का अंतिम संशोधन अप्रैल, 2024 में किया गया था।

न्यूनतम मजदूरी दरों को कौशल स्तरों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है – अकुशल, अर्ध-कुशल, कुशल एवं अत्यधिक कुशल और साथ ही इन्हें भौगोलिक क्षेत्र – ए, बी तथा सी के आधार पर बांटा जाता है।

इस संशोधन के बाद, अकुशल कार्य क्षेत्र जैसे निर्माण, सफाई, शोधन, माल लादने और उतारने में श्रमिकों के लिए क्षेत्र “ए” में न्यूनतम मजदूरी दर 783 रुपये प्रति दिन (20,358 रुपये प्रति माह) होगी, अर्ध-कुशल के लिए 868 रुपये प्रति दिन (22,568 रुपये प्रति माह) होगी। इसके अलावा, कुशल कर्मी, लिपिक और बिना हथियार वाले चौकीदार या प्रहरी के लिए प्रतिदिन 954 रुपये (24,804 रुपये प्रति माह) तथा अत्यधिक कुशल और हथियार के साथ चौकीदार या प्रहरी के लिए 1,035 रुपये प्रति दिन (26,910 रुपये प्रति माह) दिए जाएंगे।

केंद्र सरकार औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में छह महीने की औसत वृद्धि के आधार पर साल में दो बार परिवर्तनशील महंगाई भत्ते को संशोधित करती है, जो 1 अप्रैल और 1 अक्टूबर से प्रभावी होती है।

विभिन्न तरह के कार्य, श्रेणियों और क्षेत्र के अनुसार न्यूनतम मजदूरी दरों के संबंध में विस्तृत जानकारी भारत सरकार के मुख्य श्रम आयुक्त (केंद्रीय) की वेबसाइट (clc.gov.in) पर उपलब्ध कराई गयी हैं।

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केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह ने केंद्रीय रेशम बोर्ड की प्लेटिनम जयंती मनाने के लिए स्मारक सिक्के का अनावरण किया

केंद्रीय कपड़ा मंत्री, श्री गिरिराज सिंह ने 20 सितंबर 2024 को मैसूर में केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) की प्लेटिनम जयंती के अवसर पर स्मारक सिक्के का अनावरण किया। केंद्रीय रेशम बोर्ड ने भारत के रेशम उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए 75 वर्षों की समर्पित सेवा को गर्व के साथ चिह्नित किया।

इस समारोह में कई गणमान्य लोगों की भागीदारी देखी गई जिनमें केंद्रीय भारी उद्योग एवं इस्पात मंत्री श्री एच.डी. कुमारस्वामी; विदेश राज्य मंत्री और कपड़ा राज्य मंत्री, श्री पाबित्रा मार्गेरिटा; श्रीमती रचना शाह, सचिव, कपड़ा मंत्रालय; श्री के. वेंकटेश, पशुपालन और रेशम उत्पादन मंत्री, कर्नाटक सरकार,; श्री इरन्ना बी कल्लाडी संसद सदस्य, राज्य सभा और बोर्ड सदस्य, केंद्रीय रेशम बोर्ड; श्री नारायण कोरगप्पा संसद सदस्य, राज्य सभा और बोर्ड सदस्य, केंद्रीय रेशम बोर्ड; डॉ. के. सुधाकर, संसद सदस्य, लोकसभा, चिक्कबल्लापुरा एवं बोर्ड सदस्य, केंद्रीय रेशम बोर्ड; श्री ए.जी. लक्ष्मीनारायण वाल्मिकी, संसद सदस्य, लोकसभा और बोर्ड सदस्य, केंद्रीय रेशम बोर्ड; श्री यदुवीर कृष्णदत्त चमराज वाडियार, संसद सदस्य, लोकसभा; श्री जी.टी. देवगौड़ा, विधायक, कर्नाटक सरकार; और मंत्रालय और केंद्रीय रेशम बोर्ड के अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं।

केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) की 75 वर्षों की यात्रा के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों के दौरान, कई महत्वपूर्ण अवावरण और लोकार्पण किए गए। सीएसबी के इतिहास को प्रदर्शित करने वाले एक वृत्तचित्र वीडियो का अनावरण किया गया, साथ ही प्लेटिनम जुबली का उत्सव मनाने वाला एक स्मारक सिक्का और 1949 से राष्ट्र की सेवा में सीएसबी शीर्षक वाली एक कॉफी टेबल बुक भी जारी की गई। ‘सीएसबी 75 वर्ष’ लोगो वाला एक डाक कवर भी जारी किया गया। इसके अलावा, रेशम के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई शहतूत किस्मों और रेशमकीट हाइब्रिड को लॉन्च किया गया, जिनमें पूर्वी और उत्तर-पूर्व भारत के लिए सीबीसी-01 (सी-2038), साथ ही सीएमबी-01 (एस8 x सीएसआर16) और सीएमबी-02 (टीटी21 x टीटी56) शामिल हैं। रेशम उत्पादन को समर्पित 13 पुस्तकों, 3 मैनुअल और 1 हिंदी पत्रिका का विमोचन किया गया, साथ ही चार नई प्रौद्योगिकियां- निर्मूल, सेरी-विन, मिस्टर प्रो और एक ट्रैपिंग मशीन प्रस्तुत की गईं। सिल्क मार्क इंडिया (एसएमओआई) वेबसाइट आधिकारिक रूप से शुरू की गई और रेशम उत्पादन में अनुसंधान एवं प्रशिक्षण में सहकारी प्रयासों को मजबूती प्रदान करने के लिए सीएसबी और आईसीएआर-सीआईएफआरआई बैरकपुर, जैन विश्वविद्यालय बेंगलुरु और असम कृषि विश्वविद्यालय (एएयू), जोरहाट जैसे प्रमुख संस्थानों के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) का उल्लेखनीय आदान-प्रदान किया गया।

रेशम उत्पादन को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से पूर्वी और उत्तर-पूर्व भारत में शहतूत की नई किस्मों और रेशमकीट हाईब्रिड का अनावरण करना बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे उत्पादन क्षेत्रों में विविधता आएगी और क्षेत्रीय निर्भरता कम होगी। इसके अलावा,  निर्मूल और सेरी-विन जैसी नवीन तकनीकों का अनावरण कीट प्रबंधन, स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देने और उत्पादकता बढ़ाने जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करता है।

आयोजन के दौरान जारी किए गए शैक्षिक संसाधन किसानों को आवश्यक जानकारी प्रदान कर सशक्त बनाएंगे, जबकि आईसीएआर-सीआईएफआरआई और जैन विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के साथ हस्ताक्षरित एमओयू सहयोगात्मक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण पहल की सुविधा प्रदान करेंगे। रेशम उत्पादन में अवसंरचना, बाजार पहुंच और संसाधन उपलब्धता को बढ़ाने का यह रणनीतिक दृष्टिकोण किसानों के विकास के लिए एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है, जिसका लक्ष्य अंततः आजीविका को बढ़ावा देना और वैश्विक रेशम बाजार में भारत की स्थिति को मजबूत करना है।

दो दिवसीय समारोह के दौरान, रेशम पालन हितधारकों का अनुभव-साझाकरण सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें रेशम क्षेत्र के सभी हितधारकों और उप-उत्पाद उत्पादकों को एक साथ लाया गया। सत्र में प्रतिभागियों को रेशम उद्योग की वर्तमान स्थिति के बारे में बातचीत करने और अपने अनुभव साझा करने के लिए एक मंच प्रदान किया गया। इन बातचीत में कई प्रमुख सुझाव उभर कर सामने आए, जिनमें पशु आहार, औषध और चिकित्सा अनुप्रयोगों में रेशम उत्पादन अपशिष्ट का उपयोग करने के लिए एक मंच की स्थापना करना भी शामिल है।

प्रतिभागियों ने किसानों के लाभ को बढ़ाने के लिए बिचौलियों के प्रभाव को कम करते हुए रेशम उत्पादक राज्यों में बाजार सुविधाओं को मजबूत करने और कोकून की कीमतों को स्थिर करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बाजार की मुद्रास्फीति के अनुरूप इकाई लागत में समायोजन के साथ-साथ रेशम उत्पादन घटकों पर सब्सिडी देने का भी आह्वान किया।

केंद्रीय सिल्क बोर्ड की स्थापना इंपीरियल सरकार द्वारा 8 मार्च 1945 को रेशम उद्योग के विकास की जांच करने के लिए गठित सिल्क पैनल की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। स्वतंत्र भारत की सरकार ने 20 सितंबर 1948 को सीएसबी अधिनियम 1948 को लागू किया। तदनुसार, 9 अप्रैल 1949 को रेशम उत्पादन उद्योग को आकार देने के लिए 1948 में संसद के एक अधिनियम (एलएक्सआई) के अंतर्गत केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी), एक वैधानिक निकाय की स्थापना की गई।

केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) व्यापक रेशम उत्पादन अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) के लिए एकमात्र संगठन है और 26 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में विकास कार्यक्रमों का समन्वय करता है। सीएसबी की अनिवार्य गतिविधियों में अनुसंधान एवं विकास, चार स्तरीय रेशमकीट बीज उत्पादन नेटवर्क का रखरखाव, वाणिज्यिक रेशमकीट बीज उत्पादन में नेतृत्व वाली भूमिका, विभिन्न उत्पादन प्रक्रियाओं में गुणवत्ता मापदंडों का मानकीकरण और स्थापना, रेशम उत्पादन और रेशम उद्योग से संबंधित सभी मामलों पर सरकार को सलाह देना आदि शामिल हैं। केंद्रीय रेशम बोर्ड की ये अनिवार्य गतिविधियां विभिन्न राज्यों में स्थित सीएसबी की 159 इकाइयों द्वारा निष्पादित की जाती हैं।

सीएसबी के अनुसंधान एवं विकास संस्थानों ने विभिन्न क्षेत्रों और मौसमों के अनुरूप 51 से अधिक रेशमकीट हाइब्रिड, मेजबान पौधों की 20 उच्च उपज देने वाली किस्मों और 68 से अधिक पेटेंट प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सीएसबी के अनुसंधान एवं विकास कोशिशों का ही परिणाम है कि देश में स्वदेशी स्वचालित रीलिंग मशीनों का निर्माण शुरू हुआ है, जिन्हें पहले चीन से आयात किया जाता था। ये प्रगति रेशम उत्पादन में सुधार लाने, किसानों और हितधारकों को गुणवत्ता एवं उपज दोनों को बढ़ावा देने के लिए मूल्यवान उपकरण और तकनीक प्रदान करने में सहायक रही है।

केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) की परिवर्तनकारी पहलों के माध्यम से, भारत ने रेशम उद्योग में प्रभावशाली प्रगति की है। भारत अब पूरे विश्व में दूसरा सबसे बड़ा रेशम उत्पादक देश है, वैश्विक उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 1949 में 6% से बढ़कर 2023 में 42% हो चुकी है। कच्चे रेशम का उत्पादन 1949 में 1,242 मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 38,913 मीट्रिक टन हो चुका है। दक्षता में सुधार बहुत स्पष्ट है, क्योंकि रेंडिटा 1949 में 17 से घटकर 2023-24 में 6.47 हो गया है और शहतूत के बागानों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 15 किलोग्राम से बढ़कर 110 किलोग्राम हो गई है। इसके अलावा, रेशम निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और कमाई 1949-50 में 0.41 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 2,028 करोड़ रुपये हो चुकी है और यह 80 से अधिक देशों तक पहुंच चुकी है।

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