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सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने जम्मू-कश्मीर में ट्विन-ट्यूब जवाहर सुरंग का नवीनीकरण शुरू किया; दिसंबर 2024 में जनता के लिए खुलेगी

सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने जम्मू और कश्मीर में 1956 में निर्मित 2.5 किलोमीटर लंबी ट्विन-ट्यूब जवाहर सुरंग का नवीनीकरण किया है। इसे अत्याधुनिक आधुनिक तकनीक का उपयोग करके उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा, संरक्षा और आराम को बढ़ाने के लिए उन्‍नत किया गया है। इस प्रकार इसे आधुनिक सुरंगों के बराबर लाया गया है। पुनर्निर्मित सुरंग दिसंबर 2024 में जनता के लिए खोल दी जाएगी।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित 62.5 करोड़ रुपये की लागत से इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण मोड के माध्यम से पुनर्वास किया गया। इसे बीआरओ के प्रोजेक्ट बीकन द्वारा लगभग एक वर्ष में पूरा किया गया है। इसके उन्‍नयन में सिविल के साथ-साथ इलेक्ट्रो-मैकेनिकल कार्य भी शामिल है। इसमें 76 उच्‍च क्षमता के सीसीटीवी कैमरे, धुआं और आग का पता लगाने वाले सेंसर, एससीएडीए सिस्टम और वास्तविक समय की निगरानी के लिए एक केंद्रीकृत निगरानी कक्ष भी शामिल है।

जवाहर सुरंग ऐतिहासिक रूप से कश्मीर घाटी और लेह को शेष भारत से जोड़ने वाले पीर-पंजाल रेंज के माध्यम से एक महत्वपूर्ण मार्ग रही है। यह राष्‍ट्रीय राजमार्ग-44 का विकल्‍प है। जिन वाहनों को नवनिर्मित काजीकुंड-बनिहाल सुरंग को पार करने की अनुमति नहीं है, जैसे कि तेल टैंकर, विस्फोटक से लदे और गैसोलीन वाहन, वे इस सुरंग का उपयोग करेंगे।

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केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने लेह में एनटीपीसी की ग्रीन हाइड्रोजन बसों को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया

केंद्रीय विद्युत तथा आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री श्री मनोहर लाल ने आज विद्युत मंत्रालय, लेह प्रशासन और एनटीपीसी के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में लेह में एनटीपीसी की हरित हाइड्रोजन बसों के बेड़े को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।

बसों को हरी झंड़ी दिखाकर रवाना करने के बाद, मंत्री महोदय ने एक हाइड्रोजन बस में सवार होकर हाइड्रोजन फिलिंग स्टेशन से लेह हवाई अड्डे तक 12 किलोमीटर की यात्रा की।

केंद्रीय मंत्री ने एनटीपीसी को गतिशीलता, पीएनजी के साथ सम्मिश्रण, हरित मेथनॉल जैसे विभिन्न मोर्चों पर हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों को अपनाने और नवीकरणीय ऊर्जा पर समग्र जोर देने के माध्यम से देश की ऊर्जा सुरक्षा और डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों में उसके अनूठे योगदान के लिए बधाई दी।

लेह स्थित हरित हाइड्रोजन गतिशीलता परियोजना में 1.7 मेगावाट का सौर संयंत्र, 80 किलोग्राम/दिन क्षमता वाला हरित हाइड्रोजन फिलिंग स्टेशन और 5 हाइड्रोजन इंट्रा-सिटी बसें शामिल हैं। प्रत्येक बस 25 किलोग्राम हाइड्रोजन भरकर 300 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है। यह दुनिया की सबसे अधिक ऊंचाई (3650 मीटर एमएसएल) वाली हरित हाइड्रोजन गतिशीलता परियोजना भी है, जिसे कम घनत्व वाली हवा, शून्य डिग्री से नीचे के तापमान में संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और यह 350 बार प्रेशर पर हाइड्रोजन भर सकती है।

यह स्टेशन प्रतिवर्ष लगभग 350 एमटी कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा तथा वातावरण में प्रतिवर्ष 230 एमटी शुद्ध ऑक्सीजन का योगदान देगा, जो लगभग 13000 पेड़ लगाने के बराबर है।

लद्दाख में हरित हाइड्रोजन गतिशीलता समाधान की संभावना बहुत मजबूत है, क्योंकि यहां कम तापमान के साथ उच्च सौर विकिरण होता है, जो सौर ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन का कुशलतापूर्वक उत्पादन करने के लिए एक उपयुक्त स्थान है। इन स्थानों पर इस हरित ईंधन के उत्पादन और उपयोग से जीवाश्म ईंधन रसद से बचा जा सकेगा और ऊर्जा आवश्यकता के मामले में ये स्थान आत्मनिर्भर बनेंगे।

एनटीपीसी विभिन्न हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों की तैनाती के अलावा पूरे देश में और ज्यादा हाइड्रोजन गतिशीलता परियोजनाएं स्थापित कर रही है तथा आंध्र प्रदेश में हाइड्रोजन हब की स्थापना सहित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तेजी से बढ़ा रही है।

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फ्लोरोजेनिक जांच के उपयोग से एचआईवी जीनोम की स्पष्ट पहचान की नई तकनीक विकसित की गई

शोधकर्ताओं ने फ्लोरोमेट्रिक जांच द्वारा एचआईवी-जीनोम व्युत्पन्न जी-क्वाड्रप्लेक्स के चार जुड़े हुए न्यूक्लियोटाइड्स स्ट्रिंग वाले असामान्य और विशिष्ट डीएनए संरचना की खोज के लिए नई तकनीक विकसित की है। इससे  एचआई वायरस का सटीकता से पता लगाया जा सकता  है।

ह्यूम्न इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस टाइप 1 (एचआईवी-1) एक रेट्रोवायरस है जो प्रतिरोध हीनता जनित सिंड्रोम एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) के लिए जिम्मेदार है।  मानव स्वास्थ्य के लिए यह दुनिया भर में खतरा बना हुआ है। आम तौर पर एचआईवी की जांच  में शुरुआती संक्रमण का पता नही चल पाता और क्रॉस-रिएक्टिविटी के कारण यह मिथ्या सकारात्मकता का जोखिम बढ़ा सकता है। इस वायरस की आरंभिक पहचान की अन्य जांच में अल्प संवेदनशीलता और दीर्घकालीन प्रक्रिया चलती है। मौजूदा न्यूक्लिक एसिड-आधारित जांच सामान्य तौर पर डीएनए सेंसिंग जांच के उपयोग से गलत पॉजिटिव रिपोर्ट देती हैं जिससे गैर-विशिष्ट और लक्षित एम्पलीकॉन के बीच अंतर जानना मुश्किल हो जाता है। इस संदर्भ में, विशिष्ट न्यूक्लिक एसिड अनुक्रमों की पहचान और लक्ष्यीकरण से झूठी पॉजिटिविटी में उल्लेखनीय कमी आ सकती है। इसलिए, अब आणविक जांच विकसित होने से रोगजनक जीनोम में असामान्य अद्वितीय न्यूक्लिक एसिड जीक्यू संरचनाओं की भली-भांति पहचान हो सकती है और सटीक नैदानिक जांच के विकास में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।

जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने नई जांच ​​तकनीक विकसित की है जिसे जीक्यू टोपोलॉजी-टारगेटेड रिलायबल कंफॉर्मेशनल पॉलीमॉर्फिज्म (जीक्यू-सीआरपी) प्लेटफॉर्म कहा जाता है। आरंभ में  इसे सार्स – कोव 2 जैसे रोगजनकों के फ्लोरोमेट्रिक पता लगाने के लिए विकसित किया गया था। अब  इस उपयोगी प्लेटफ़ॉर्म को एचआईवी  की जांच के लिए सफलतापूर्वक अनुकूलित किया गया है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान जेएनसीएएसआर के वैज्ञानिको सुमन प्रतिहार, वसुधर भट एस.वी., कृति के. भागवत, थिमैया गोविंदराजू ने 176-न्यूक्लियोटाइड युक्त जीनोमिक सेगमेंट के रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन और एम्पलीफिकेशन विधि द्वारा एचआईवी-व्युत्पन्न जीक्यू डीएनए का जीक्यू टोपोलॉजी पता लगाने की प्रस्तुति दी।

संबंधित अध्ययन एनालिटिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित किया गया है जिसमें जीक्यू संरचना में डीएसडीएनए के पीएच-मध्यस्थ, सुगम, एकल-चरण मात्रात्मक संक्रमण को दिखाया गया है। इसमें बेंज़ोबिस्थियाज़ोल-आधारित फ्लोरोसेंट जांच (टीजीएस64) का उपयोग कर वायरस का पता लगाया जाता है। यह एचआईवी की विश्वसनीय जांच की पद्धति प्रदान करता है।

यह शोध अध्ययन हाल के वर्षों में विकसित अधिकांश अन्य जांच के विपरीत विशिष्ट और असामान्य न्यूक्लिक एसिड-लघु अणु पारस्पारिकता के आधार पर विशिष्ट नैदानिक पद्धति है।

इस आणविक पहचान प्लेटफ़ॉर्म को मौजूदा न्यूक्लिक एसिड आधारित डायग्नोस्टिक प्लेटफ़ॉर्म में शामिल किया जा सकता है, जिससे अनुक्रम विशिष्ट पहचान से उत्पन्न विश्वसनीयता और बढ़ेगी।

यह मौजूदा प्रवर्धन-आधारित तकनीकों की समस्या भी कम कर सकता है, गैर-विशिष्ट प्रवर्धन से उत्पन्न होने वाले भ्रामक-पॉजिटिव परिणामों और लक्षित जीक्यू (गैर-विहित न्यूक्लिक एसिड अनुरूपता) का स्पष्ट रूप से पता लगाने में सहायक हो सकता है।

जीक्यू-आरसीपी आधारित प्लेटफ़ॉर्म को बैक्टीरिया और वायरस सहित विभिन्न डीएनए/आरएनए आधारित रोगों का पता लगाने के लिए व्यावहारिक रूप से अपनाया जा सकता है।

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ईएसआई योजना के अंतर्गत सितंबर, 2024 में 20.58 लाख नए कर्मी नामांकित

कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के वेतन भुगतान संबंधी अनंतिम आंकड़ों से पता चलता है कि इसमें सितंबर, 2024 में 20.58 लाख नए कर्मचारी जोड़े गए हैं।

सितंबर, 2024 तक 23,043 नए प्रतिष्ठानों को ईएसआई योजना के सामाजिक सुरक्षा दायरे में लाया गया है। इससे अधिक कर्मियों को सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी।

इसके अतिरिक्त, वर्ष दर वर्ष विश्लेषण से पता चलता है कि वास्तविक रूप से पंजीकरण में सितंबर 2023 की तुलना में 9 प्रतिशत वृद्धि हुई है।

वर्ष दर वर्ष तुलना
मद सितंबर 2023 सितंबर 2024 वृद्धि
माह के दौरान पंजीकृत नये कर्मचारियों की संख्या  

18.88 लाख

 

20.58 लाख

 

1.70 लाख

आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष सितंबर माह के दौरान जोड़े गए कुल 20.58 लाख कर्मचारियों में से 10.05 लाख कर्मचारी 25 वर्ष तक की आयु वर्ग के हैं। यह कुल पंजीकृत कर्मचारियों का लगभग 48.83 प्रतिशत है।

वेतन भुगतान संबंधी आंकड़ों के लिंग-वार विश्लेषण के अनुसार, सितंबर 2024 में 3.91 लाख महिला सदस्यों का भी नामांकन हुआ है। इसके अतिरिक्त, सितंबर, 2024 में कुल 64 ट्रांसजेंडर कर्मचारियों ने भी ईएसआई योजना के तहत पंजीकरण कराया, जो समाज के हर वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए ईएसआईसी की प्रतिबद्धता को प्रमाणित करता है।

वेतन भुगतान संबंधी आंकड़े अस्थायी हैं क्योंकि डेटा तैयार करना सतत प्रक्रिया है।

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प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की दृष्टि और ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में गरीब लोगों के लिए पक्के मकान बनाने और उपलब्ध कराने की सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता के कारण मई 2014 में प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (2015) और ग्रामीण (2016) का शुभारंभ हुआ।

प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण

प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण (पीएमएवाई – ग्रामीण) 20 नवंबर 2016 को शुरू की गई, जिसका लक्ष्य समाज के सबसे गरीब वर्गों के लिए आवास प्रदान करना था। लाभार्थियों का चयन कठोर तीन-चरणीय सत्यापन प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है जिसमें सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी 2011) और आवास+ (2018) सर्वेक्षण, ग्राम सभा अनुमोदन और जियो-टैगिंग शामिल है। इससे सुनिश्चित होता है कि सहायता सबसे योग्य व्यक्तियों तक पहुंचे। इस योजना में कुशल निधि संवितरण के लिए आईटी और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) को भी शामिल किया गया है। इसने विभिन्न निर्माण चरणों में जियो-टैग की गई तस्वीरों के माध्यम से क्षेत्र-विशिष्ट आवास डिजाइन और साक्ष्य-आधारित निगरानी भी लागू की है।

मूल रूप से 2023-24 तक 2.95 करोड़ मकानों को पूरा करने का लक्ष्य रखते हुए, इस योजना को 2 करोड़ और मकानों के साथ बढ़ाया गया, जिसमें वित्त वर्ष 2024-29 के लिए ₹3,06,137 करोड़ का कुल परिव्यय और वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹54,500 करोड़ का आवंटन किया गया।

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्यक्षता में 9 अगस्त, 2024 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मैदानी क्षेत्रों में 1.20 लाख रुपये और पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों एवं पहाड़ी राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 1.30 लाख  रुपये की मौजूदा इकाई सहायता पर दो करोड़ और मकानों के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

आवेदन प्रक्रिया

पीएमएवाई-जी के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए, लाभार्थियों को सरल ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया https://web.umang.gov.in/landing/department/pmayg.html से गुजरना होगा।

पीएमएवाई-जी के तहत प्रगति:

प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के तहत सरकार ने 3.32 करोड़ मकान बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। 19 नवंबर, 2024 तक, 3.21 करोड़ मकानों को मंजूरी दी गई है, और 2.67 करोड़ मकान पूरे हो चुके हैं, जिससे लाखों ग्रामीण परिवारों की रहने की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

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इस योजना में महिला सशक्तीकरण पर भी विशेष ध्यान दिया गया है, जिसमें 74% स्वीकृत मकानों का स्वामित्व पूरी तरह से या संयुक्त रूप से महिलाओं के पास है। यह योजना अब महिलाओं को 100% स्वामित्व प्रदान करने की आकांक्षा रखती है। कुशल रोजगार भी प्राथमिकता रही है। लगभग 3 लाख ग्रामीण राजमिस्त्रियों को आपदा-रोधी निर्माण में प्रशिक्षित किया गया है, जिससे उनकी रोजगार क्षमता में वृद्धि हुई है।

दो करोड़ से अधिक परिवारों के लिए मकानों के निर्माण से लगभग दस करोड़ व्यक्तियों को लाभ होने की उम्मीद है। इस मंजूरी से बिना आवास वाले सभी लोगों और जीर्ण-शीर्ण और कच्चे घरों में रहने वाले लोगों के लिए सभी बुनियादी सुविधाओं के साथ अच्छी गुणवत्ता वाले सुरक्षित मकानों के निर्माण की सुविधा मिलेगी। इससे लाभार्थियों की सुरक्षा, स्वच्छता और सामाजिक समावेशन सुनिश्चित होगा।

पीएमएवाई-जी की मुख्य विशेषताएं हैं:

  • 25 वर्ग मीटर की न्यूनतम इकाई (मकान) का आकार, जिसमें स्वच्छ खाना पकाने के लिए समर्पित क्षेत्र भी शामिल है।
  • लाभार्थी स्थानीय सामग्रियों और प्रशिक्षित राजमिस्त्रियों का उपयोग करके गुणवत्तापूर्ण मकान बनाते हैं।
  • लाभार्थी को मानक सीमेंट कंक्रीट मकान डिजाइनों के बजाय संरचनात्मक रूप से सुदृढ़, सौंदर्यपूर्ण, सांस्कृतिक और पर्यावरण की दृष्टि से उपयुक्त मकान डिजाइनों का विस्तृत चयन की सुविधा उपलब्ध है।

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निर्माण के लिए संस्थागत ऋण

  • पात्र लाभार्थियों को उनके पक्के मकान के निर्माण के लिए 3% कम ब्याज दर पर ₹70,000 तक का ऋण उपलब्ध है।
  • अधिकतम मूल राशि जिसके लिए सब्सिडी का लाभ उठाया जा सकता है वह ₹2,00,000 है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्माण लागत व्यापक रूप से कवर की गई है।
  • यह अतिरिक्त ऋण सहायता लाभार्थियों पर वित्तीय बोझ को कम करने में मदद करती है, जिससे ग्रामीण परिवारों के लिए गृह निर्माण किफायती हो जाता है।

बेहतर लाभ के लिए सरकारी योजनाओं के साथ अभिसरण

पीएमएवाई-जी ग्रामीण परिवारों के लिए व्यापक सहायता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न अन्य सरकारी पहलों के साथ मिलकर काम करती है। इन योजनाओं का उद्देश्य स्वच्छता, रोजगार, खाना पकाने के ईंधन और जल आपूर्ति जैसी कई जरूरतों को पूरा करके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।

  • स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी): ग्रामीण घरों में बेहतर स्वच्छता सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए लाभार्थियों को शौचालय बनाने के लिए ₹12,000 तक मिलते हैं।
  • मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम): पात्र परिवार अकुशल श्रमिक के रूप में 95 दिनों का रोजगार प्राप्त कर सकते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण राजमिस्त्री प्रशिक्षण के तहत, ₹90.95 की दैनिक मजदूरी प्राप्त कर सकते हैं।
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई): इस योजना के तहत, प्रत्येक घर मुफ्त एलपीजी कनेक्शन का हकदार है, जो स्वच्छ और सुरक्षित खाना पकाने के ईंधन को बढ़ावा देता है।
  • पाइप्ड पेयजल और बिजली कनेक्शन: लाभार्थियों को पाइप्ड पेयजल और बिजली कनेक्शन सुलभ कराने की सुविधा प्रदान की जाती है, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार होता है और असुरक्षित पानी और अनियमित बिजली आपूर्ति से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों में कमी आती है।
  • सामाजिक और तरल अपशिष्ट प्रबंधन: पीएमएवाई-जी लाभार्थियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य और स्वच्छता सुनिश्चित करने, अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सरकारी कार्यक्रमों के साथ भी जुड़ती है।

भुगतान स्थानांतरण प्रक्रिया

पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए, पीएमएवाई-जी के तहत सभी भुगतान इलेक्ट्रॉनिक रूप से किए जाते हैं। भुगतान सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों या डाकघर खातों में स्थानांतरित किया जाता है जो आधार से जुड़े होते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि धनराशि बिना किसी देरी के इच्छित प्राप्तकर्ताओं तक पहुंच जाए।

तकनीकी नवाचार यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) के सहयोग से आवास+ 2024 मोबाइल ऐप आधार-आधारित चेहरे प्रमाणीकरण और 3डी हाउस डिजाइन के साथ पारदर्शी लाभार्थी पहचान सुनिश्चित करता है।  इससे लाभार्थी उपयुक्त डिजाइन चुनने में सक्षम होते हैं।

लाभार्थियों के लिए पात्रता मानदंड

विशिष्ट मानदंडों का उपयोग करके पीएमएवाई-जी के लाभार्थियों की पहचान की जाती है।  इससे यह सुनिश्चित होता है कि सबसे योग्य परिवारों, विशेष रूप से आवास अभाव का सामना करने वाले लोगों को प्राथमिकता दी जाती है।

इस योजना के तहत, लाभार्थियों की पहचान एसईसीसी 2011 और आवास+ (2018) सर्वेक्षणों के माध्यम से की जाती है, जिन्हें ग्राम सभाओं द्वारा सत्यापित किया जाता है। पिछले एक दशक में, एसईसीसी 2011 की स्थायी प्रतीक्षा सूची पूरी हो गई है, और 20 से अधिक राज्यों की आवास+ 2018 सूची भी पूरी हो गई है।

पात्रता मानदंड इस प्रकार हैं:

  • आवासहीन परिवार: बिना आश्रय वाले सभी परिवार।
  • कच्चे घरों वाले परिवार: सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) 2011 के अनुसार कच्ची दीवारों और कच्ची छत वाले घरों या शून्य, एक या दो कमरों वाले घरों में रहने वाले परिवार।

अनिवार्य समावेशन मानदंड:

निम्नलिखित श्रेणियों के लोग स्वचालित रूप से लाभार्थियों की सूची में शामिल हो जाते हैं:

  • निराश्रित परिवार या भिक्षा पर जीवन यापन करने वाले।
  • मैनुअल मैला ढोने वाले
  • आदिम जनजातीय समूह
  • कानूनी तौर पर रिहा किये गये बंधुआ मजदूर

सहायता के लिए प्राथमिकता

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*19 नवंबर, 2024 तक

पात्र लाभार्थियों के दायरे में, निम्नलिखित श्रेणियों को प्राथमिकता दी जाएगी:

  • बेघर परिवार
  • शून्य या कम कमरे वाले घर (एक से अधिक कमरे वाले घरों के मामले में, कम कमरे वाले घरों को प्राथमिकता दी जाएगी)।

निम्नलिखित सामाजिक-आर्थिक मापदंडों का उपयोग करके गणना किए गए संचयी अभाव स्कोर के आधार पर विशेष प्राथमिकता भी दी जाएगी:

  • ऐसे परिवार जिनमें 16 से 59 वर्ष की आयु का कोई वयस्क सदस्य नहीं है।
  • महिला मुखिया वाले परिवार जिनमें कोई वयस्क पुरुष सदस्य नहीं है।
  • वे परिवार जिनमें 25 वर्ष से अधिक आयु का कोई साक्षर वयस्क नहीं है।
  • ऐसे परिवार जिनमें एक दिव्यांगजन सदस्य है और कोई सक्षम वयस्क नहीं है।
  • भूमिहीन परिवार शारीरिक आकस्मिक श्रम पर निर्भर हैं।

लक्ष्यों का निर्धारण

पीएमएवाई-जी विशिष्ट वंचित समूहों के लिए लक्षित सहायता भी सुनिश्चित करती है:

     .अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी): यह योजना एससी/एसटी परिवारों के लिए न्यूनतम 60% लक्ष्य आरक्षित करती है, जिसमें 59.58 लाख एससी घर और 58.57 लाख एसटी घर पूरे हो गए हैं।

  • “सभी के लिए आवास” के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक और महत्वपूर्ण पहल धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान है जो जनजातीय विकास पर केंद्रित है, जिसमें 63,843 गांवों को शामिल किया गया है, जिससे 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 5 करोड़ से अधिक जनजातीय लोगों को लाभ मिलता है। यह पहल आवास और सामाजिक बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका में महत्वपूर्ण अंतराल को दूर करती है।  इससे 72.31 लाख आदिवासी परिवार पहले से ही लाभान्वित हो रहे हैं।
  • लक्ष्य का 5% अलग-अलग दिव्यांग लाभार्थियों के लिए आरक्षित है, और अन्य 5% ओडिशा में फानी चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित परिवारों के लिए आवास को प्राथमिकता देता है।
  • अल्पसंख्यक: राष्ट्रीय स्तर पर कुल धनराशि का 15% अल्पसंख्यक परिवारों के लिए निर्धारित किया गया है। राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के बीच लक्ष्यों का आवंटन जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार अल्पसंख्यकों की आनुपातिक ग्रामीण आबादी पर आधारित है।

बहिष्करण की शर्त

कुछ परिवारों को उनकी वित्तीय स्थिति और संपत्ति के आधार पर योजना से बाहर रखा गया है। निम्नलिखित परिवारों को स्वचालित रूप से बाहर कर दिया जाएगा:

  • जिन परिवारों के पास किसान क्रेडिट कार्ड है और उनकी क्रेडिट सीमा ₹50,000 या उससे अधिक है।
  • सरकारी कर्मचारी या गैर-कृषि उद्यम वाले।
  • 15,000 रुपये से अधिक मासिक आय वाले या आयकर का भुगतान करने वाले परिवार।
  • जिन परिवारों के पास रेफ्रिजरेटर, लैंडलाइन फोन या सिंचित भूमि (2.5 एकड़ से अधिक) जैसी संपत्ति है।

समावेशिता को बढ़ाने के लिए, बहिष्करण मानदंड को 13 से घटाकर 10 कर दिया गया है, मछली पकड़ने वाली नाव या मोटर चालित दोपहिया वाहन के स्वामित्व जैसी शर्तों को हटा दिया गया है, और आय सीमा को बढ़ाकर ₹15,000 प्रति माह कर दिया गया है।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) ने सुरक्षित आवास प्रदान करके लाखों ग्रामीण परिवारों की जीवन स्थितियों को बदलने में उल्लेखनीय प्रगति की है। पीएमएवाई-जी आवास योजना से कहीं अधिक है – यह ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने, सामाजिक समानता सुनिश्चित करने और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान के लिए आंदोलन है। दो करोड़ अतिरिक्त घरों के निर्माण के लिए हालिया मंजूरी के साथ, सरकार “सभी के लिए आवास” लक्ष्य हासिल करने की प्रतिबद्धता को मजबूत कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक पात्र परिवार को गुणवत्तापूर्ण आवास और सम्मानजनक जीवन मिले।

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निडर, निष्पक्ष और सकारात्मक पत्रकारिता पर जोर

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर, -श्रीमदभगवत गीता को आत्मसात कर पत्रकारिता करें, इसमें है निर्माण का संदेश
कानपुर। भगवत गीता सिखाती है कि किस तरह निष्पक्ष, निडर, निस्वार्थ रहकर हम कर्म करें, जो हमें संतोष देगा और एक अच्छे समाज का निर्माण करेगा। पत्रकार भी गीता को आत्मसात कर पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करें।
ये विचार कानपुर प्रेस क्लब की ओर से नवीन मार्केट कार्यालय में “पत्रकारिता में गीता का महत्व” विषय पर आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किए। श्रीमद भगवत गीता वैदिक न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उमेश पालीवाल ने कहा समाज और राष्ट्र निर्माण में पत्रकारों की बड़ी भूमिका है। उन्हें गीता के संदेशों पर अमल करना चाहिए। उसमें स्पष्ट है कि कर्म ही धर्म है, उसी रास्ते पर बिना किसी डर, पक्षपात और स्वार्थ निष्काम भाव से चलते रहो। पत्रकारिता धर्म का निर्वहन इसी भाव से करो तो राष्ट्र मजबूत होगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़कर गीता को प्रचारित कर रहे अमरनाथ ने कहा कि निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता से बड़ा कोई धर्म नहीं है और इस पवित्र कर्म के पथ पर कदम नहीं डगमगाएं, गीता वैदिक न्यास के जिलाध्यक्ष एवं समजसेवी भूपेश अवस्थी ने कहा गीता के संदेश हृदय में रख पत्रकारिता के रास्ते पर चलेंगे तो बिल्कुल न तो डरेंगे और न ही विचलित होंगे। वरिष्ठ पत्रकार जुवैद फारूखी ने कहा गीता और कुरान, दोनों ही कर्म और इंसानियत की राह पर चलना सिखाते हैं, कर्म ही प्रधान है। गीता न्यास से जुड़े कमल द्विवेदी ने कर्मयोग पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ पत्रकार महेश शर्मा ने शायरी के जरिये कर्मयोग की बात कही। प्रेस क्लब के अध्यक्ष सरस वाजपेयी ने सकारात्मक पत्रकारिता पर जोर देते हुए गीता आत्मसात करने की अपील की। इस मौके पर प्रेस क्लब के मंत्री शिवराज साहू, मोहित दुबे, कोषाध्यक्ष सुनील साहू, कौशतुभ मिश्र, रोहित मिश्र, दीपक सिंह, मयंक मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार जीपी वर्मा, अनिल मिश्र, उन्नाव-शुक्लागंज प्रेस क्लब के अध्यक्ष मयंक और कई पत्रकार मौजूद रहे। संचालन प्रेस क्लब के महामंत्री शैलेश अवस्थी ने किया। इस मौके पर डॉ. उमेश पालीवाल सहित सभी अथितियों को शॉल और प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।

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क्राइस्ट चर्च कॉलेज में “भारतीय संविधान के 75 वर्षों की यात्रा” विषय पर व्याख्यान और पोस्टर प्रदर्शनी आयोजित

भारतीय स्वरूप संवाददाता भारत 26 नवंबर 2024 को भारतीय संविधान लागू होने के 75 वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रहा है। इस अवसर पर क्राइस्ट चर्च कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग ने “भारतीय संविधान के 75 वर्षों की यात्रा” विषय पर एक व्याख्यान और पोस्टर प्रदर्शनी का आयोजन किया। इस अवसर पर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि, क्राइस्ट चर्च कॉलेज के प्रिंसिपल और सचिव प्रोफेसर जोसेफ डैनियल; मुख्य वक्ता श्री प्रकल्प शर्मा, कानूनी विशेषज्ञ और डिप्टी रजिस्ट्रार आईआईटी कानपुर; और राजनीति विज्ञान विभाग पूर्व प्रमुख प्रो. आशुतोष सक्सेना ने अध्यक्षता की.कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और ज्ञान की देवी मां सरस्वती के आह्वान के साथ हुई। संयोजिका प्रो. विभा दीक्षित ने विशिष्ट अतिथियों, सहकर्मियों और छात्रों का स्वागत किया और कार्यक्रम की विषयवस्तु से परिचय कराया। उन्होंने संविधान में निहित सिद्धांतों की रक्षा और प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर जोर दिया।

मुख्य वक्ता और संवैधानिक कानून विशेषज्ञ, श्री प्रकल्प शर्मा ने संवैधानिक साक्षरता के महत्व पर ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया. उन्होंने बताया कि कैसे प्रत्येक नागरिक की अपने अधिकारों के बारे में चैतन्यता लोकतंत्र की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। “संविधान हमारे अतीत का एक दस्तावेज मात्र नहीं है; यह हमारे भविष्य का मार्ग दर्शक है।” उनके व्याख्यान में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कैसे भारतीय संविधान ने विभिन्न चुनौतियों का दृढ़ता से सामना किया है और समावेशी और जीवंत लोकतंत्र को बढ़ावा देते हुए शासन में संवैधानिक मूल्यों, आदर्शों और दृष्टिकोण को अक्षुण्ण रखा है।
अपने संबोधन में मुख्य अतिथि प्रोफेसर जोसेफ डेनियल ने छात्रों को भारतीय संविधान में निहित आदर्शों और उद्देश्यों का पालन करते हुए राष्ट्र निर्माण के लिए खुद को समर्पित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। सत्र के अध्यक्ष प्रो. आशुतोष सक्सेना ने पैनलिस्टों के दृष्टिकोण में निहित सार को बताते हुए विषय पर अपनी मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रस्तुत की. उन्होंने संवैधानिक व्याख्या, कानूनी मिसालों के महत्व और युवा नागरिक जीवन में संविधान का महत्व पर प्रकाश डाला। सभी पैनलिस्टों ने इस बात पर जोर दिया कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सक्रिय, ज्ञानपूर्ण नागरिक भागीदारी आवश्यक है। इसके उपरान्त इंटरैक्टिव सत्र में छात्रों एवं शिक्षकों ने संविधान में डिजिटल गोपनीयता, सामाजिक न्याय और पर्यावरण नीति पर सवाल किये. सभी पनेलिस्ट ने छात्रों और शिक्षकों को समान रूप से संवैधानिक मूल्यों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिकाओं के बारे में गंभीरता से सोचने के लिए प्रोत्साहित किया।
राजनीति विज्ञान के बी. ए. प्रथम सेमेस्टर के छात्रों ने इस विषय पर एक “पोस्टर प्रदर्शनी” लगाई और सभी उपस्थित लोगों से इस प्रयास की सराहना की। सर्वश्रेष्ठ पोस्टरों को पुरस्कार के लिए चुना गया। कार्यक्रम का समापन डॉ. अर्चना पांडे द्वारा प्रस्तावित धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। डॉ. अर्चना वर्मा और उनकी आयोजन टीम, जिसमें परमा मिश्रा, पूजा कमल और छात्र शामिल थे, के प्रभावी समन्वय के कारण यह कार्यक्रम बेहद सफल रहा। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्रों और शिक्षकों की उत्साहपूर्ण भागीदारी रही जिनमे डॉ. जुनेजा, डॉ. अनिंदिता, डॉ. नवीन अम्बष्ट, डॉ. सत्यप्रकाश डॉ. हिमांशु आदि मौजूद थे.

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भारत सरकार और एडीबी ने उत्तराखंड में जलापूर्ति, स्वच्छता, शहरी गतिशीलता और अन्य सेवाओं में सुधार के लिए 200 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए

भारत सरकार और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने आज उत्तराखंड राज्य में जलापूर्ति, स्वच्छता, शहरी गतिशीलता और अन्य सेवाओं के स्तर को बेहतर बनाने के लिए 200 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए।

उत्तराखंड जीवन-यापन सुधार परियोजना के लिए ऋण समझौते पर सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग की संयुक्त सचिव सुश्री जूही मुखर्जी और एडीबी की ओर से भारत में इंडिया रेजिडेंट मिशन की निदेशक सुश्री मियो ओका ने हस्ताक्षर किए।

सुश्री मुखर्जी ने कहा कि यह परियोजना भारत सरकार के शहरी विकास एजेंडे के साथ-साथ शहरी सेवाओं में विस्तार के लिए उत्तराखंड सरकार की पहल के अनुरूप है। इसका उद्देश्य शहरों में रहने की स्थितियों को बेहतर बनाना और स्थिरता को बढ़ावा देना है।

सुश्री मियो ने कहा, “इस परियोजना का उद्देश्य ऐसे शहरी बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है जो बाढ़ और जलवायु और पर्यावरणीय में हो रहे परिवर्तन के कारण भूस्खलन जैसे जोखिमों से निपटने में सक्षम हो और उत्तराखंड की आबादी की सुरक्षा और स्वास्थ्य दोनों सुनिश्चित हो सके। यह परियोजना प्रबंधन, जलवायु और आपदा-रोधी योजना, अपने स्रोत से राजस्व सृजन और लैंगिक भेदभाव खत्म करने के लिए राज्य एजेंसियों में क्षमता निर्माण भी करेगी।”

उत्तराखण्ड के आर्थिक केंद्र हल्द्वानी में यह परियोजना परिवहन, शहरी गतिशीलता, जल निकासी, बाढ़ प्रबंधन और सभी सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बनाएगी। इसके अतिरिक्त, इससे कुशल और जलवायु-अनुकूल जल आपूर्ति प्रणालियों को विकसित करके चार शहरों- चंपावत, किच्छा, कोटद्वार और विकासनगर में जल आपूर्ति व्यवस्था में सुधार होगा।

परियोजना के तहत हल्द्वानी में, 16 किलोमीटर लंबी जलवायु-अनुकूल सड़कों का निर्माण किया जाएगा, आधुनिक यातायात प्रबंधन प्रणाली स्थापित की जाएगी, साथ ही सीएनजी और इलेक्ट्रिक बसें चलाई जाएगी। आपदा के समय शहर में बचाव के लिए बाढ़ प्रबंधन में सुधार के लिए 36 किलोमीटर लंबी वर्षा जल निकासी तथा सड़क किनारे नालियों का निर्माण किया जाएगा और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित की जाएगी। लोगों को सार्वजनिक सेवाएं और बेहतर ढंग से मुहैया कराने के लिए हरित-प्रमाणित प्रशासनिक परिसर तथा बस टर्मिनल का निर्माण किया जाएगा।

अन्य चार शहरों में, इस परियोजना का लक्ष्य स्मार्ट वाटर मीटर, 26 ट्यूबवेल, नए जलाशयों और 3.5 मिलियन लीटर प्रतिदिन क्षमता वाले जल शोधन संयंत्र के निर्माण के साथ 1,024 किलोमीटर लंबी जलवायु-अनुकूल पाइपलाइनें बिछाकर प्रत्येक घर तक जल पहुंचाना है। विकासनगर में सीवेज शोधन सुविधाओं द्वारा स्वच्छता के दायरे को बढ़ाया जाएगा, जिससे लगभग 2,000 घरों को लाभ होगा।

इस परियोजना के माध्यम से बस चालान, टिकटिंग और इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशनों के रख-रखाव से आजीविका चलाने के कौशल के प्रशिक्षण जैसी पहल महिलाओं के लिए की जाएगी। जल आपूर्ति प्रणालियों की निगरानी में महिलाओं की भूमिका के महत्व को ध्यान में रखते हुए इस परियोजना के तहत जल आपूर्ति और स्वच्छता सेवाओं के संचालन और प्रबंधन में कमजोर परिवारों को शामिल करते हुए महिलाओं में क्षमता निर्माण किया जाएगा।

यूरोपीय निवेश बैंक 191 मिलियन डॉलर की राशि से इस परियोजना को समानांतर आधार पर सह-वित्तपोषित कर रहा है।

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कैबिनेट ने 2024-25 में वेज एंड मीन्स एडवांस को इक्विटी में परिवर्तित करके भारतीय खाद्य निगम में 10,700 करोड़ रुपये की इक्विटी डालने को मंजूरी दी

प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में वित्तीय वर्ष 2024-25 में कार्यशील पूंजी के लिए 10,700 करोड़ रुपये की इक्विटी डालने को मंजूरी दे दी है। इस निर्णय का उद्देश्य कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना और देश भर के किसानों का कल्याण सुनिश्चित करना है। यह रणनीतिक कदम किसानों को समर्थन देने और भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

एफसीआई ने 1964 में 100 करोड़ रुपये की अधिकृत पूंजी और 4 करोड़ रुपये की इक्विटी के साथ अपनी यात्रा शुरू की थी। एफसीआई के संचालन में कई गुना वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप फरवरी, 2023 में अधिकृत पूंजी 11,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 21,000 करोड़ रुपये हो गई। वित्तीय वर्ष 2019-20 में एफसीआई की इक्विटी 4,496 करोड़ रुपये थी, जो वित्तीय वर्ष 2023-24 में बढ़कर 10,157 करोड़ रुपये हो गई। अब, भारत सरकार ने एफसीआई के लिए 10,700 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण इक्विटी को मंजूरी दी है, जो इसे वित्तीय रूप से मजबूत करेगी और इसके परिवर्तन के लिए की गई पहलों को एक बड़ा बढ़ावा देगी।

एफसीआई न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खाद्यान्नों की खरीद, रणनीतिक खाद्यान्न भंडार के रखरखाव, कल्याणकारी उपायों के लिए खाद्यान्नों के वितरण और बाजार में खाद्यान्नों की कीमतों के स्थिरीकरण के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इक्विटी का निवेश एफसीआई की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, ताकि वह अपने अधिदेश को प्रभावी ढंग से पूरा कर सके। एफसीआई फंड की आवश्यकता से जुड़ी कमी को पूरा करने के लिए अल्पकालिक उधार का सहारा लेता है। इस निवेश से ब्याज का बोझ कम करने में मदद मिलेगी और अंततः भारत सरकार की सब्सिडी कम होगी।

एमएसपी आधारित खरीद और एफसीआई की परिचालन क्षमताओं में निवेश के प्रति सरकार की दोहरी प्रतिबद्धता, किसानों को सशक्त बनाने, कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने और राष्ट्र के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक सहयोगात्मक प्रयास का प्रतीक है।

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भारतीय तटरक्षक बल के पूर्व अपर महानिदेशक (सेवानिवृत्त) वीडी चाफेकर को 01 अप्रैल, 2025 से 31 मार्च, 2028 तक रीकाप आईएससी, सिंगापुर का कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया

भारतीय तटरक्षक बल के पूर्व अपर महानिदेशक (सेवानिवृत्त) वीडी चाफेकर को एशियाई जल क्षेत्र में जहाजों के खिलाफ होने वाली समुद्री डकैती और सशस्त्र। लूट का मुकाबला करने पर सिंगापुर में सूचना साझाकरण केंद्र (रीसीएएपी आईएससी) में क्षेत्रीय सहयोग समझौते के सातवें कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया है। उन्हें रीकाप आईएससी की शासी परिषद द्वारा  01 अप्रैल, 2025 से 31 मार्च, 2028 तक की अवधि के लिए कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया है। उनका चयन क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा एवं सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जो अधिक सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

वर्ष 2006 में स्थापित रीकाप आईएससी एशिया के समुद्री इलाकों में समुद्री डकैती और सशस्त्र लूट के खिलाफ सहयोग को बढ़ावा देने तथा गतिविधियों को विस्तार देने के लिए पहला क्षेत्रीय सरकार-से-सरकार का समझौता है। यह पूरे समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए सूचना साझा करने, रक्षा क्षमताओं की बढ़ोतरी और सहयोगात्मक प्रयासों को सुविधाजनक बनाने में सहायक रहा है। रीकाॅप आईएससी के एक प्रमुख अनुबंध पक्ष के रूप में, भारत ने एशियाई समुद्र में सुरक्षा व संरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए अपने समुद्री अनुभव तथा संसाधनों का लाभ उठाते हुए संगठन के मिशन में निरंतर सहयोग और योगदान दिया है

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