मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्घाटन भाषण में माननीय न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट ने पिछले आठ वर्षों में आईबीसी की विकास यात्रा पर प्रकाश डाला और आईबीसी, 2016 के उद्देश्यों की तुलना आरडीबी अधिनियम 1993 और एसएआरएफईएएसआई अधिनियम 2002 से की और यह भी बताया कि पहले के कानून किस तरह से विखंडित थे। उन्होंने एनसीएलटी, एनसीएलएटी, सीआईआरपी की भूमिका, आईबीसी के तहत आईपी की भूमिका और इसकी एकीकृत तथा समयबद्ध प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। माननीय न्यायमूर्ति भट ने कुशल समाधान प्रक्रिया, प्राथमिकता और ऋणशोधन पर सीआईआरपी के महत्व के बारे में भी बात की। उन्होंने आईबीसी, 2016 के समक्ष समय पर समाधान, बुनियादी ढांचे के मुद्दे, समाधान और वसूली आदि चुनौतियों को भी चिह्नित किया। उन्होंने आईपी की भूमिका पर भी बात की, जिसमें उनके लिए आवश्यक कौशल सेट जैसे समाधान और बातचीत कौशल, प्रबंधन कौशल तथा दावों, परिसंपत्तियों, वित्त के संग्रहण, सीओसी के गठन, सीओसी में मतदान प्रक्रिया को विनियमित करने और भारत में आईबीसी 2016 की शुरुआत के बाद क्रेडिट संस्कृति में बदलाव शामिल हैं। पूर्व केंद्रीय सचिव, विधि एवं न्याय तथा एनसीएलएटी के पूर्व सदस्य (तकनीकी) डॉ. आलोक श्रीवास्तव ने आईबीसी मामलों के बारे में अपने अनुभव साझा किए तथा संपूर्ण समाधान प्रक्रिया में आईपी की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने व्यापार करने में आसानी, सीमा कानून तथा संबंधित पक्ष लेन-देन के बारे में बात की, जिन्हें आईबीसी प्रक्रिया में शामिल किया गया। इसके साथ ही उन्होंने यूके कॉमन लॉ सिस्टम से उधार लिए गए आईबीसी मॉडल पर भी अपनी बात रखी। इस अवसर पर अपने संबोधन में, आईबीबीआई के पूर्णकालिक सदस्य श्री सुधाकर शुक्ला ने आरबीआई की 90वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रधानमंत्री की टिप्पणियों पर प्रकाश डाला, जिसमें प्रधानमंत्री ने ‘मान्यता, समाधान तथा पुनर्पूंजीकरण की रणनीति’ पर बात की। उन्होंने कहा कि दोहरी बैलेंस शीट की समस्या अतीत की समस्या है। श्री शुक्ला ने यह भी उल्लेख किया कि आईबीसी की सफलता को चालू वर्ष के दौरान समाधानों की संख्या (लगभग 1000), आईबीसी के तहत आवेदनों की वापसी की संख्या तथा पिछले 8 वर्षों से ऋणशोधन पर 131 प्रतिशत समाधानों से देखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि दिवालियापन के लिए एक विनियामक के रूप में आईबीबीआई का निर्माण और युवा पेशेवरों के लिए पीजीआईपी अपनी तरह का पहला नवाचार है।
इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी केंद्र के प्रमुख डॉ. के. एल. ढींगरा ने पीजीआईपी के पूर्व छात्रों की सफलता की कहानियों और इन्सॉल्वेंसी तथा बैंकरप्ट्सी के क्षेत्र में इस पाठ्यक्रम की भूमिका और समाधान प्रक्रिया में नैतिकता की भूमिका के बारे में बताया। इससे पहले, अपने स्वागत भाषण में आईआईसीए के महानिदेशक और सीईओ डॉ. अजय भूषण प्रसाद पांडे ने मजबूत इन्सॉल्वेंसी फ्रेमवर्क और लेनदारों को प्रदान की जाने वाली स्वस्थ ऋण संस्कृति के आधार के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि दिवालियापन समाधान उत्पादक संपत्तियों को अनलॉक करने और मूल्य ह्रास को रोकने की कुंजी है। उन्होंने वित्तीय प्रणाली में जनता के विश्वास को बनाए रखने में इन्सॉल्वेंसी पेशेवरों की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी कहा कि आईबीसी का उद्देश्य एनपीए के समाधान के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किए जाने की तुलना में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में योगदान देना है। आईआईसीए में पोस्ट ग्रेजुएट इन्सॉल्वेंसी प्रोग्राम के छठे बैच का उद्घाटन भारत में इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्ट्सी के क्षेत्र में उत्कृष्टता एवं नेतृत्व के लिए युवा और कुशल पेशेवरों को तैयार करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। वर्ष 2019 में इसकी शुरुआत के बाद से भारत में विभिन्न हितधारकों द्वारा इस कार्यक्रम को बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।
आईआईसीए में पोस्ट ग्रेजुएट इन्सॉल्वेंसी प्रोग्राम की शुरुआत कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्ट्सी में ज्ञान व विशेषज्ञता बढ़ाने के लिए आईबीबीआई और आईआईसीए के ठोस प्रयास का नतीजा है। इसका उद्देश्य छात्रों को कॉर्पोरेट पुनर्गठन और इन्सॉल्वेंसी कार्रवाई की जटिलताओं से निपटने के लिए महत्वपूर्ण उन्नत कौशल और अंतर्दृष्टि से लैस करना है। आईआईसीए के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पायला नारायण राव ने कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन किया।