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समानता के मुद्दे पर भारत को इस दुनियां में किसी से उपदेश की आवश्यकता नहीं है-उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि भारत को समानता के मुद्दे पर इस दुनियां में किसी से उपदेश की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम सदैव समानता में विश्वास करते हैं। श्री धनखड़ ने सभी देशों से अपने भीतर झाँकने का आह्वान करते हुए इस बात पर प्रकाश डालते हुए कहा, “कुछ देशों में अभी तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं है, जबकि हमारे यहाँ ब्रिटेन से भी पहले एक महिला प्रधानमंत्री बन गई थीं। अन्य देशों में सर्वोच्च न्यायालय ने बिना महिला न्यायाधीश के 200 वर्ष पूरे कर लिए, लेकिन हमारे यहां महिला न्यायाधीश है।”

श्री धनखड़ ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के बारे में फैलाई जा रही झूठी कहानी और गलत सूचना के प्रति आगाह करते हुए रेखांकित किया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) न तो किसी भी भारतीय नागरिक को उसकी नागरिकता से वंचित करना चाहता है, न ही यह पहले की तरह किसी को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से रोकता है। उन्होंने यह उल्लेख किया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता के अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करता है। उपराष्ट्रपति महोदय ने पूछा, “हमारे पड़ोस में उनकी धार्मिक प्रतिबद्धता के कारण सताए गए लोगों को यह राहत, उपचारात्मक संबंध भेदभावपूर्ण कैसे हो सकता है?”

यह देखते हुए कि  नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) उन लोगों पर लागू होता है जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए थे, उन्होंने इस बात पर बल दिया कि यह अधिक संख्या में लोगों को निमंत्रण नहीं है। उन्होंने आगाह किया, “हमें इन आख्यानों को बेअसर करना होगा। ये अज्ञानता से नहीं, बल्कि हमारे देश को बर्बाद करने की रणनीति से उत्पन्न होते हैं।”

उपराष्ट्रपति महोदय ने मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में व्यावसायिक पाठ्यक्रम के चरण- I के समापन पर आज 2023 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने युवा प्रतिभाओं से ऐसे “हमारे गौरवशाली और मजबूत संवैधानिक निकायों को कलंकित करने और धूमिल करने के उद्देश्य से तथ्यात्मक रूप से अस्थिर राष्ट्र-विरोधी आख्यानों के रणनीतिक आयोजनों” का खंडन करने का आह्वान किया।

यह कहते हुए कि हाल के वर्षों में शासन व्यवस्था बेहतर हुई है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली अब गलियों में धूमिल हो रही है। उन्होंने कहा, “लोकतांत्रिक मूल्य और सार गहरा हो रहा है क्योंकि कानून के समक्ष समानता को अनुकरणीय तरीके से लागू किया जा रहा है और भ्रष्टाचार अब एक व्यापारिक वस्तु नहीं रह गया है। पहले यह अनुबंध, भर्ती, अवसर तक पहुंचने का एकमात्र साधन था।”

यह कहते हुए कि कुछ विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली पहले सोचते थे कि वे कानूनी प्रक्रिया से सुरक्षित हैं और कानून उन तक नहीं पहुंच सकता है, उपराष्ट्रपति महोदय ने प्रशन किया, “हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में कोई दूसरों की तुलना में अधिक समान कैसे हो सकता है?” इस क्रांति में सिविल सेवकों के योगदान को मान्यता देते हुए उन्होंने युवा अधिकारियों से कहा कि कानून के समक्ष समानता जो लंबे समय से हमसे दूर थी और भ्रष्टाचार जो प्रशासन की रगों में खून की तरह बह रहा था, अब अतीत की बात है।

इस बात की प्रशंसा करते हुए कि हमारे सत्ता के गलियारों को उन भ्रष्ट तत्वों से मुक्त कर दिया गया है, जो निर्णय लेने में कानूनी रूप से अतिरिक्त लाभ उठाते हैं, उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि देश को निराशा से बाहर निकाला गया है। उन्होंने कहा कि भारत आशा और संभावना की भूमि बन गया है। यह कहते हुए कि पूरे देश में उत्साह का माहौल है, उपराष्ट्रपति महोदय ने बल देकर कहा, “भारत अब सोता हुआ देश नहीं है। यह गतिमान देश है।”

इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि हमारी वैश्विक छवि बढ़ रही है, उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने कहा कि शायद ही कोई सप्ताह गुजरता हो जब हमारी नौसेना ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को बचाने या समुद्री डकैती के पीड़ितों को बचाने के लिए काम नहीं किया हो। उन्होंने कहा कि प्रत्येक भारतीय को हमारी नौसेना की उपलब्धि पर गर्व होगा।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि हमारी लोकतांत्रिक राजनीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती उन लोगों से उत्पन्न हो रही है जो लंबे समय से व्यवस्था का हिस्सा रहे हैं, सत्ता के पदों पर रहे हैं, जिनके पास राष्ट्र के विकास में योगदान करने का अवसर था और सत्ता या सत्ता से बाहर होने के बाद उनमें राष्ट्र के विकास के पथ के प्रति कम भूख है। उन्होंने कहा कि युवा मन से कुछ प्रतिकार की आवश्यकता है।

यह चेतावनी देते हुए कि लोकतंत्र के लिए इससे अधिक चुनौतीपूर्ण कुछ नहीं हो सकता, उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि विषय को अच्छी तरह से जानने वाला एक जागरूक दिमाग लोगों की अज्ञानता का फायदा उठाने के लिए गलत बयान देने वाले लोगों को बेनकाब करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “कुछ व्यक्ति, जो एक बार सत्ता या सत्ता से बाहर होने के बाद सत्ता के पदों पर रहे हैं, उनमें राष्ट्र के विकास पथ के प्रति कम भूख है।”

अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति महोदय ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) परिवीक्षाधीन अधिकारियों से कहा कि लोग उन्हें आदर्श के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा, “आपको ऐसे कार्यों से उदाहरण पेश करना होगा जो अनुकरणीय हों, युवा प्रतिभाओं को प्रेरित और उत्साहित करें तथा किसी भी क्षमता में बड़ों की प्रशंसा प्राप्त करें।” हमारे सभ्यतागत मूल्यों को अपना मार्गदर्शक सिद्धांत बताते हुए, उपराष्ट्रपति महोदय ने युवा अधिकारियों से “सेवा भाव और समानुभूति – सेवा और सहानुभूति की भावना” के साथ काम करने को कहा।

इस अवसर पर उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के निदेशक श्री श्रीराम तरणीकांति और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।