राष्ट्रपति ने कहा कि यह ‘पंच परमेश्वर’ का देश है और न्याय की अवधारणा हमारी ग्रामीण व्यवस्था में शुरू से मौजूद थी। उन्होंने वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली को मजबूत करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे एक ओर जहां विवादों का समाधान सस्ता और आसान हो जाएगा, वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका पर बोझ भी कम हो जाएगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के प्रावधानों का उपयोग करने से मध्यस्थता को व्यापक और संस्थागत स्वीकृति मिलेगी और मुकदमेबाजी का बोझ कम होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज टेक्नोलॉजी हर क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रही है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ा है। उन्होंने आगे कहा कि ई-कोर्ट, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-प्रोसिडिंग और ई-फाइलिंग की मदद से जहां न्याय दिलाना आसान हो गया है, वहीं कागज के इस्तेमाल में कमी आने से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी संभव हो गया है। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि सरकार ने हाल ही में ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण को मंजूरी दे दी है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस चरण के सफल कार्यान्वयन से न्याय प्रणाली सभी हितधारकों के लिए अधिक सुलभ, किफायती, विश्वसनीय और पारदर्शी हो जाएगी।
राष्ट्रपति ने वकील संगठनों और समूहों से वंचितों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए आगे आने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमें यह ध्यान रखना होगा कि न्याय इतना महंगा न हो जाए कि आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाए। उन्होंने आगे कहा कि इस संबंध में संस्थागत प्रयासों को मजबूत करने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि समावेशी भारत के लिए महिला सशक्तिकरण आवश्यक है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं की उचित भागीदारी जरूरी है। उन्होंने कहा कि महिलाओं में न्याय की सहज भावना होती है और कहा जाता है कि माताएं अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करतीं। न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया किसी एक गणितीय सूत्र पर आधारित नहीं है और न्याय प्रशासन के लिए किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान की भी आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में भावनाएँ, परिस्थितियाँ और संवेदनाएँ जैसे अन्य आयाम भी महत्वपूर्ण हैं। अतः न्याय व्यवस्था में महिलाओं की अधिकतम भागीदारी भी न्यायपालिका के हित में होगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि जब न्यायपालिका में सुधार का दृष्टिकोण आता है तो जबलपुर का नाम स्वत: ही मन में आ जाता है। एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला के मामले में, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के पक्ष में जबलपुर उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1976 में खारिज कर दिया था। 42 साल बाद वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला पलट दिया और मौलिक अधिकारों के पक्ष में जबलपुर हाई कोर्ट के तत्कालीन फैसले के मूल सिद्धांतों को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा स्थापित किया है। इस प्रकार, जबलपुर का नाम भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में न्याय प्रणाली की प्रगतिशील यात्रा का प्रतीक बन गया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का नया भवन आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित होगा। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि महिला वकीलों के लिए अलग से बार रूम का प्रस्ताव दिया गया है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था न सिर्फ महिला वकीलों बल्कि महिला याचिकाकर्ताओं के लिए भी सुविधाजनक होगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि नया भवन पूरा होने पर न्यायाधीशों, वकीलों और प्रशासनिक कर्मचारियों को अधिक समर्पण, प्रतिबद्धता और दक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करेगा।