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वो नज़र कुछ ऐसी थी कि जिसमें जिस्म की चाह नही ,कुछ और ही था।

वो सामने बैठा मुझे ही देखे जा रहा था और मैं.. आँख भी नहीं मिला पा रही थी। वो नज़र कुछ ऐसी थी कि जिसमें जिस्म की चाह नही ,कुछ और ही था।मेरे ख़याल से इससे ख़ूबसूरत इश्क़ नहीं हो सकता, जो सिर्फ़ नज़रों से ही किसी की रूह को छू लेता है ..
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सबा ने हिम्मत कर अपनी आँखें उठाई और इक लम्बी ख़ामोशी को तोड़ते हुए बोली ! अच्छा तो बासु ..अब मैं चलू।बासु बोला !आज कितने सालों के बाद अचानक से तुम मेरे सामने आ गई।बहुत बार सोचा कि तुम्हें फ़ोन करूँ ,तुम से बात करूँ।इतने अरसे के बाद तुम्हें देखा।कैसे आज तुम्हें जाने के लिए कह दूँ। सबा मैं तो हैरान हूँ कि कैसे ,तुम मुझे भुला बैठी ? बासु की बड़ी बड़ी आँखों में गहराई और बेचैनी का अहसास कर पा रही थी सबा।शोर तो सबा के सीने में भी बहुत था मगर ख़ामोश सा।जैसे सब्र करना सीख गई थी सबा।इतना भी आसान नहीं था सबा के लिए ,खुद को सहज सा दिखाना।बहुत जद्दोजहद में थी सबा।कभी अपना दुपट्टे का पल्लू संभाल रही थी तो कभी अपनी नज़रों को।नहीं चाहती थी कि बासु उसकी बेक़रारी को देख पाये।
सबा ने इक गहरी साँस भरी,जो बासु के दिल के आरपार हो गई।सबा भारी आवाज़ में बोली! बासु वक़्त सब कुछ सिखा देता है।तुम से बिछड़े तीन साल हो गये है मगर मैं तुम्हें भूल नहीं पाई बासु, और भूलती भी कंयू तुम्हें।तुम चाहत हो मेरी।ये अलग बात है कि हमारी शादी नहीं हो पाई,क्यूँकि मैं मुसलमान घर की बेटी और तुम कट्टर ब्राह्मण परिवार से थे।घरों में शान्ति रहे इसीलिए हमने अपनी खुवाईशो का गला दबा दिया।तब कोई और चारा था भी नही ,हमारे पास।है न बासु ? बासु मेरे लिए ,तुम्हें छोड़ कर जाना मुश्किल होगा, ये तो पता था मुझे। शरीर से रूह निकल कर रह गई थी तुम्हारे ही पास .. ज़ाहिर है ..दर्द होना तो लाज़मी ही था ..मगर इतना दर्द होगा वो नही पता था। काश !! मेरे अबू मान गये होते या तुम्हारे पापा।सुबक पड़ी थी सबा ,ये सब कहते कहते। बासु का दिल रो रहा था। बासु बोला ! मैं कंयू नहीं लड़ पाया सबसे? क्यू अपने फ़र्ज़ को इतनी अहमियत दी मैंने ।याद आया उसे ,कैसे उसके पापा  अंबालिका की शादी की दुहाई देने लगे थे। चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि अगर तुम मुसलमान घर की लड़की ले कर आये तो तेरी बहन सारी उम्र कुँवारी बैठी रहेगी।सिहर उठा था बासु। सबा का हाथ पकड़ कर बोला। कुछ चाहते ऐसी होती है सबा।जिसमें इन्सान ,इश्क़ में दर्द तो सह लेता है मगर इश्क़ करना कभी नहीं छोड़ पाता ..
इश्क़ मे रहना और फिर इश्क़ की इबादत करना ….हर किसी के हिस्से में कहाँ आ पाती हैं हर जगह हर पल तुम्हारी ये कमी का अहसास ..क्या मुझे ख़ुशी दे पायेगा कभी। तुम ने ही तो कहा था कि हम बड़ों का दिल नहीं दुखायेंगे।तुम्हारी ही दी गई क़सम को निभा रहा हूँ मैं..मगर जीना अब इक सजा सा लगता है तुम्हारा वजूद सकून है मेरा ! सबा ..यूं मिल कर बिछड़ना ,मुक़द्दर में था या हमने ये सजा तय कर ली खुद अपने ही लिये..ये बात मैं समझ नहीं पाया, बस यही बात समझ में आई कि मुझे प्यार है तुमसे .. आज भी.. बासु बोलता जा रहा था। सबा ! कभी कभी मैं सोचता हूँ कि तुम और मैं , हम दोनों ही..बस सब का क़र्ज़ उतार रहे है। बाँट ही तो रहे हैं सभी को ..सभी का हक़। इक रह जायेगा तुम्हारे सर … या मेरे सर ..बस ! “हमारे इश्क़ का क़र्ज़ .. हमारी ख़ामोशियाँ…. तुम्हारा और मेरा इन्तज़ार .. कतरा कतरा आँखों से गिरते आँसुओं का बोझ कैसे उतार पायेंगे ,इक दूजे का ये क़र्ज़.. मेरी जागती रातों का हिसाब .. मेरे सवाल और तुम्हारे जवाब यही दफ़्न हो जायेगे,हमारे ही अन्दर।कितना अधूरा सा मैं ,कितनी अधूरी सी तुम..ये ख़ालीपन कभी नहीं भर पायेगा। सबा गंभीर हो कर बोली! बासु ..शायद ..वक़्त हमे इक दूजे के बिना रहना सिखा दे। बासु सबा की इस बात पर जैसे तड़प सा गया। बोला! क्या तुम मुझे भूल पाओगी सबा। हमारा प्यार कभी भी वक़्त के साथ धुंधला नहीं हो सकता।मरते दम तक तुम ही रहोगी मेरे दिल में।अब तो बस जीना ही है, मोहब्बत तो मैं ,कर चुका तुम से। अब तो सिर्फ़ बस फ़र्ज़ निभाने बाकि है। सबा !
मैं भी इक वादा करता हूँ आज के बाद मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूँगा। न ही कभी तुम्हें देखूँगा चाहे तुम मेरे पास से भी गुज़र जाओ।
तुम से न मिलने से,बात न करने से बेक़रारी तो रहेगी, मगर मिलने के बाद, तुम से बात करके मैं और भी बेचैन हो गया हूँ ।सबा की आँखों से आँसूओ की छड़ी सी लग गई बोली बासु !अगर तुम बात नहीं करोगे तो मै कैसे ज़िन्दा रह पाऊँगी तुम्हारे बग़ैर।
शाम गहरी हो चुकी थी। भीगती आँखों और बोझिल मन से सबा बासु को अलविदा कह कर चल पड़ी।जानती थी उसकी ज़िन्दगी का सफ़र अब आसान नहीं होगा मगर कोई चारा नहीं था ,सिवाय अपनी तक़दीर के फ़ैसले को मानने के और बासु भी अपनी हथेलियों से अपने मुँह को छिपा कर फूट फूट कर रो रहा था। दोस्तों! ओह !! ये कहानी बहुतो की हो सकती है। इतना प्यार ..इतना दर्द ..इतनी गहराई और फिर मिल न पाना ..कितना असहनीय होता होगा जिनको ऐसे हालातों में से गुजरना पड़ता होगा और कितने दुख की बात है कि हम आज भी मज़हबों में उलझ कर ,अपने ही हाथों से बच्चों की ख़ुशियों पर ग्रहण लगा देते है।हमारा कहना तो वो मान जाते है मगर वो ख़ुश ,कहाँ रह पाते है।कभी सोचा है कि वो पूरी ज़िन्दगी कैसे मर मर कर अपना जीवन काटेंगे।
प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है।जिस का किसी के साथ जो रिश्ता बनना होता है वो तो पहले से निर्धारित है फिर हम और आप कंयू उसे बदलना चाहते है । किसी को दर्द दे कर , किसी को अलग करके , किसी से बल छल करके, कोई कैसे चैन से रह सकता है ?
किसी को तंग करके कभी किसी का भला नहीं हुआ। न आज !! न पहले कभी !!
:_ लेखिका स्मिता ✍️