अनुसंधान साक्ष्यों का जिक्र करते हुए डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि यह पूरी तरह सिद्ध हो गया है कि कि कई पीढ़ियों से यूरोपीय देशों में रहने वाले भारतीय मूल के प्रवासियों में अभी भी टाइप2 मेलिटस डायबिटीज विकसित होने की प्रमुखता मौजूद हैं, हालांकि वे अब भारत और यहां के पर्यावरण में नहीं रह रहे थे। भारत में प्रचलित कुछ महत्वपूर्ण जोखिम कारकों का जिक्र करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि हमारी केंद्रीय मोटापा (ओबेसिटी) प्रोफाइल भी दूसरे लोगों से अलग है। उदाहरण के लिए भारत में केंद्रीय मोटापे का प्रसार पुरुषों और महिलाओं दोनों में लगभग बराबर है, जबकि पश्चिमी आबादी में व्यक्ति मोटे दिखाई देते हैं, लेकिन उनमें आंत की वसा सामान्य होती है। स्वास्थ्य सेवा को उच्च प्राथमिकता देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत दिलचस्पी और हस्तक्षेप का ही नतीजा है कि दो वर्षों के भीतर भारत ने न केवल छोटे देशों की तुलना में कोविड महामारी का सफलतापूर्वक और बेहतर तरीके से प्रबंधन किया है, बल्कि भारत में डीएनए वैक्सीन का भी सफलतापूर्वक निर्माण किया है और इसे अन्य देशों को भी उपलब्ध कराने में भी सफलता हासिल की है। स्वदेशी चिकित्सा अनुसंधान के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी के समर्थन का उल्लेख करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि पारंपरिक भारतीय ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक निष्कर्षों के साथ एकीकृत किया जाए और इसके साथ-साथ आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा सहित, चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियों के तालमेल की तलाश की जाए और डायबिटीज के नियंत्रण और रोकथाम में इनसे अधिकतम लाभ प्राप्त किया जाए।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में यह निष्कर्ष निकाला कि डायबिटीज की रोकथाम स्वास्थ्य सेवा के लिए न केवल हमारा कर्तव्य है बल्कि राष्ट्र निर्माण के लिए भी हमारी आवश्यक जिम्मेदारी है क्योंकि यह एक ऐसा देश है जहां 70 प्रतिशत आबादी 40 वर्ष से कम आयु की है और आज के युवा इंडिया@2047 के प्रधान नागरिक बनने जा रहे हैं। हम देश के युवाओं की ऊर्जा को टाइप2 डायबिटीज और अन्य संबंधित विकारों के परिणामस्वरूप होने वाली जटिलताओं को अक्षम बनाने में बर्बाद नहीं होने देंगे।