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सकून देता है शौक़, इसे ज़िन्दा रखिए

पिछले 35 सालों से यहाँ इंग्लैंड में रह कर ,यहाँ के लाईफ़ स्टाईल मे ढल चुकी थी गार्गी।बहुत अलग सी ज़िंदगी है ,इंग्लैंड की भारत से। यहाँ नौकर रखने का चलन आम नही है।ये भी नहीं कि लोग नौकर रख नहीं सकते मगर शायद लोगो को यहाँ अपनी प्राईवसी ज़्यादा पसंद है। ख़ुशी ख़ुशी सब लोग अपने घरो का काम खुद ही करना पसंद करते हैं और ऐक्टिव भी कहते है।
बेहद सादा और दिखावे से दूर ये देश ,काफ़ी अच्छा है।
आज गार्गी सारा घर का काम निपटा कर ,चाय का कप ले कर चुपचाप सी अपने कमरे में आँखे बंद करके बैठी हुई थी।तेज हवाओं के साथ साथ आज बाहर बहुत ठंड है ,उठ कर कमरे की खिड़की बंद कर दी।
बहुत थक गई थी गार्गी आज। शरीर टूट सा रहा था उसका।उसके बच्चे दो दिन से उसके पास आये हुए थे। बहुत शौक और प्यार से खाना बनाना फिर खिलाना ये गार्गी का शौक़ था।उसके अपने बच्चे ही नहीं बल्कि कोई भी उसके घर आ जाता तो कितने पकवान अपने हाथों से बनाती और बड़े प्यार से खिलाती भी,उसे ऐसा लगता कि जैसे घर में कोई त्योहार ही आ गया हो।उसके बच्चे और पति हर बार उसे टोकते और पूछा करते !क्यों करती हो ये सब ?.. बाद में फिर निढाल हो कर गिर पड़ती हो ।किस को दिखाना चाहती हो ? इस बात पर गार्गी ,नम आँखों से अपने पति से कहती!
दिखाना !! मेरी फ़ितरत नहीं है किशोर।जो भी करती हूँ उससे मुझे ख़ुशी मिलती है।बस यही तो चाहती हूँ मैं,कि जब कोई मेरे घर आये उसकी इतनी मेहमान नवाज़ी करूँ कि उसे याद रहे कि कोई मुझ से मिला था कभी।इस पर बच्चे हंसते और कहते !
अच्छा तो माम ! आप अपने ज़िन्दगी का सीवी बनाने की कोशिश में है।जैसे आज की जनरेशन सीवी बनाती है नौकरी के लिये ..और गार्गी को हँस कर गले लगा लेते।बस इतनी सी बात पर गार्गी की सारी थकान उतर जाती।अक्सर गार्गी ने अपनी माँ को ऐसे करते देखा था, वैसा ही अब गार्गी कर रही थी मगर आज तो गार्गी को बुख़ार ही हो गया था।सभी बच्चे उसके पास आये और प्यार की डांट भी लगाई गार्गी को।
गार्गी ने कहा मैं बस यही तो चाहती हूँ तुम सब को प्यार से रोटी ख़िलाऊ ,जिससे मेरे परिवार का पेट तो भर जाये पर मन कभी नहीं भरे।
इतने में गार्गी का पति किशोर कमरे में दाखिल हुआ तो देखा गार्गी बुख़ार से तप रही थी।उसने भी गार्गी को डाँटा और कहने लगा !क्यों इतना काम करती हो ?अब देखा न,बिस्तर पकड़ लिया तुमने।हम सब है न ,तुम्हारा हाथ बँटाने के लिए।सादे ढंग से भी खाना खिला सकती हो,मगर तुम्हें तो बस रानियों की तरह ही खाना और खिलाना पसंद है।गार्गी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।कहने लगी !
किशोर ! रानी बनने के लिए मुझे किसी महल की ज़रूरत नहीं है।
न ही किसी धन संमपदा की ,या किसी साम्राज्य की ही ज़रूरत है।
ये तो बस इक आदत ,इक तरीक़ा होता है रहने का और कुछ भी
नहीं।
मैं जहां भी हूँ जैसी भी हूँ मैं ऐसी ही रहूँगी ।किशोर के हाथ पर हाथ रख कर कहने लगी।फ़िक्र न करो मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊँगी।तुम्हारी पत्नी होने के नाते तुम्हें अपनापन और समर्पण के भाव से हमेशा खाना खिलाना चाहती हूँ जिससे तुम्हारा पेट और मन दोनों भरे रहे ।
कल जब हमारी बहू आयेगी वो कर्तव्य के भाव से खाना खिलायेगी जो कभी स्वाद देगा और कभी पेट भी भरेगा।,
किशोर कहने लगा !
कितना क़िस्मत वाला हूँ मैं ,कि मुझे तुम जैसी पत्नी मिली।
“गार्गी बोलती जा रही थी।रब न करें कि कभी ऐसी नौबत आये जब आप सब को नौकरानी के हाथ की रोटी खानी पडे।जिससे ना तो इन्सान का पेट भरता है न ही मन”
तृप्त होता है और स्वाद की तो कोई गारँटी ही नहीं है नौकरों के मन में क्या दुविधा चल रही है क्या मन में विचार चल रहे होते है,अच्छे या बुरे सब का असर रोटी में जाता है ।
ममता ,समर्पण या अपनापन का भाव उसमें नहीं होगा।
दोस्तों!
जब आप के भाग्य में प्यार,ममता,क्षृदा ,समर्पण और अपनापन का भाव खतम हो जाता है तो भी ,ईश्वर का शुक्रिया करो कि उसने हमें ज़िन्दा रखने के लिये नौकर को आप की सेवा में लगाया है ।
दोस्तों हमारे बुजुर्गों में सेवा भाव बहुत ज़्यादा हुआ करता था।ज़्यादातर बुजुर्ग अब दुनिया से जा भी चुके है।सुना है,जो दोगे ,वही वापिस आता भी है।
दोस्तों!मुझे तो लगता है।आज जो लोग अच्छी ज़िन्दगी जी रहे हैं।नौकर चाकर उनकी सेवा में लगे हुए हैं।ये वही हमारे बुजुर्ग होंगे जिन्होंने पहले,पिछले जन्मों में अपने परिवार ,आस पड़ोस ,समाज की सेवा मन से की। आज उनकी सेवा हो रही है।
वैसे भी करम ही प्रधान है।आज कोई आप की सेवा करेगा तो कल आप को उन की सेवा करनी पड़ेगी।यही सच है।बातों बातों में मुझे किसी गुरू जी की बात ध्यान में आ रही है गुरू जी के यहाँ लंगर की सेवा चल रही थी।गुरू जी ने देखा।लंगर में ज़्यादातर लोग बहुत बुजुर्ग ही थे।गुरू जी ने कहा! जवान लोगों को भी लगंर की सेवा करनी चाहिए।मगर जवान बच्चों ने कहा कि हम रोटी नहीं बना सकते।हम तो सब को सैंडविच ही बना कर दे दिया करेंगे।गुरू जी हँस पड़े।कहने लगे! ये जो बुजुर्ग महिलायें आज इतनी तपती हुई गर्मी में बैठ कर,सब के लिए लगंर तैयार कर रही है न।यही आने वाले वक़्त में रानियाँ होगी।कितना सही भी कहा गुरू जी ने।जो आज किसी को खिलायेंगा या सेवा करेगा।उसी को तो कल कोई खिलायेंगा या कोई उस की भी सेवा करेगा।वो चाहे इसी जन्म में हो या फिर अगले जन्म में।दोस्तों !
माँ के हाथ का बना खाना ,पत्नी के हाथ का बना खाना या बहू के हाथ से बना खाना ,अगर आप को ,इस कलियुग के समय में मिल रहा है तो आप खुद को बहुत ख़ुशनसीब इन्सान समझिये।
ये मेहमान नवाज़ी केवल इक शौक़ ही नहीं बल्कि बड़े फ़ायदे का सौदा हो सकता है अगर कोई दिल से करे।
बहुत सकून देता है ये शौक़ ,इसे ज़िन्दा ज़रूर रखिए जनाब 🙏

~ स्मिता केंथ