इंग्लैंड की सर्दी और बादलों का घिरे रहना,यहाँ के लोगो को बिलकुल भी पंसद नहीं,मगर हमारे भारत में ऐसे मौसम को आशिक़ाना मौसम कहा जाता है, और शायर लोगों की कलम खुद ब खुद चलने लगती है। मगर यहाँ ,इंग्लैंड की धूप बहुत ही हसीन और लाजवाब होती है।सर्दी और फिर उस पर धूप,कैसे लगता होगा।इसका अंदाज़ा ,हर कोई लगा सकता है।सौंधी सौंधी सी धूप में बैठी, मैं सुबह की चाय का आनंद ले ही रही थी।आज दोपहर को नीरा आ रही थी मेरे घर ,मुझ से मिलने।मैं बहुत ख़ुश थी।यहाँ का लाइफ़ स्टाइल ही कुछ ऐसा है कि लोग अक्सर वीकेंड पर ही मिला करते है।आज तो बुधवार था।जल्दी ही मैंने चाय ख़त्म की, कुछ लचं की तैयारी कर,नीरा का इंतज़ार करने लगी।इतने में ही नीरा की गाड़ी घर के बाहर थी।मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा, नीरा कुछ बदली सी लगी।कुछ उदास ,उतरा सा, चेहरा दिखा मुझे।लंच का वक़्त तो था ही,हम सीधे खाने की मेज़ पर जा बैठे।इधर उधर की बातों के बाद मैंने पूछा नीरा सब कुछ ठीक तो है न ?मेरे पूछने की देर थी और नीरा ने लम्बी साँस ली और अपना दिल खोल कर मेरे सामने रख दिया।कहने लगी !उसके पति ने इतना बड़ा कारोबार शुरू किया था।इतना पैसा कमाया, मगर आज सब उसके पति के भाइयों के अधिकार में है।ये बात शायद हर घर की कहानी होती ही है दोस्तों।
ये सब सुन कर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।जैसे उस की मौजूदगी में मेरा दम घुटने लगा था,मगर मैं सुन रही थी।मुझे लगा,जो वो कहना चाह रही है,मुझे उसे सुनना चाहिये। उसका मन हल्का हो जायेगा,मगर वो तो रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बोलती ही जा रही थी ,कभी जेठानी, कभी देवरानी की बात ,वग़ैरह वग़ैरह।
मैंने तब उसका हाथ ,अपने हाथ में लेकर कहा ! नीरा नीरा !! थोड़ा शांत हो जाओ।नीरा तुम जानती हो कि तुम्हारी प्राबल्म क्या है ? नीरा जब तुम किसी के घर जाती हो ,उस वक़्त तुम दूसरो की बातों का कूड़ा करकट,अपने सिर पर लाध कर ,अपने ही घर ले आती हो ,जब कि होना तो ये चाहिए कि उनकी सोच का कूड़ा करकट वही ,उनके ही दरवाज़े पर छोड़ कर आया जाये,और अपने घर में बिलकुल साफ़ मन से, दाखिल किया जाये।कभी तुम चाहोगी कि किसी की बातों का,किसी की सोच का कूड़ा करकट अपने घर में लाया जाये।नीरा इक दम सोच में पड़ गई और बोली “न बाबा न !! “कभी भी मैं ऐसा नहीं चाहूँगी।
मैंने कहा! नीरा बस रब पर विश्वास रखो,सब ठीक हो जायेगा।मेरे देखते देखते ही नीरा रोने लगी।
दोस्तों !जिसने सब अपने हाथों से बनाया हो और वो छिन जाये।उसे कैसे महसूस होता है ,उसका ये दर्द मै बख़ूबी समझ पा रही थी।
दोस्तों।मेरा मानना ये है कि हमारे करमो के हिसाब से हमें घर परिवार मिलता है ,तो हम दोष किसे दे?हमारा सब से ज़्यादा लेना देना ,अपने ही परिवार से शुरू होता है कभी भाई बहन ,कभी माँ बाप ,के रूप में क़र्ज़ उतारते हैं ।जिस के साथ हमारा सबसे भारी क़र्ज़ पिछले जन्म में रहा होता है।वही पति या पत्नी बन कर आते है और पति पत्नी के रूप मे दोनों इक दूजे का सारा क़र्ज़ उतारते है।बच्चों के लिए हम दिन रात मेहनत करके सब कुछ करते हैं और हम हंस हंस कर अपना सारा कमाया धन ,उनके ही नाम करके अपना क़र्ज़ उतारते है ।हर कोई लेना देना कर रहा है कोई हंस कर ,कोई रो कर क़र्ज़ा उतार रहा है ।बहुत बार तो पति पत्नी का रिश्ता,प्यार मोहब्बत का होता भी नही ,बस इक दूसरे का क़र्ज़ ही उतार रहे होते है।
दोस्तों ! इक बात याद आ रही है मुझे।इक बार किसी महात्मा के दो सेवक थे।एक के घर बेटी थी और दूसरे के घर में बेटा था।जब दोनों शादी के लायक़ हुये तो महात्मा ने कहा ,इन दोनों की शादी कर दो।जल्दी ही दोनों की शादी हो गई।अभी तीन साल भी नहीं गुजरे थे कि दोनो का तालाक हो गया।लड़की का पिता बहुत दुखी हुआ।दोनों ही महात्मा के पास पहुँच गये।पूछने लगे कि आप की ही मर्ज़ी से ये शादी हुई थी।आप ने हमे पहले कंयू नही बताया कि ये दोनों ऐसे अलग हो जायेंगें।लड़की का पिता कहने लगा! मैंने करोड़ों की पूँजी बेटी की शादी पर खर्च कर दी।अब बहुत दुख लगता है कि मेरा कितना पैसा बर्बाद हो गया और मेरी बेटी का घर भी न बस पाया।महात्मा ने कहा ! इन दोनों का
हिसाब किताब कुछ ऐसा ही था।दोनों ने पूछा ! वो कैसे ?
महात्मा ने कहा! अब जो तुम इक दूसरे के समधी बने हो ,मगर पिछले जन्म मे तुम दोनों सगे भाई थे।जो अब लड़की का पिता है,उसने पिछले जन्म में अपने भाई को ख़ूब ठगा था और बहुत दुखी किया था।जिस भाई को ठगा था ,वो अब इस जन्म में समधी बन कर आया है और उसके यहाँ बेटा हुआ था।जिसने ठगा था उसके यहाँ बेटी
हुई।अब बेटी की शादी पर उसने हंस हंस कर ,खुले दिल से ,भर भर कर लड़के वालों को दिया और अपने पिछले जन्म का क़र्ज़ उतारा।अब बच्चों के तालाक से ,वो पैसा भी बर्बाद हुआ और मन भी दुखी हुआ।
दोस्तों ! भगवान बहुत बड़ा न्यायाधीश है।ठगी से कमाया पैसा हमें लगता है कि वो फल फूल रहा है मगर वक़्त आने पर,उसका बुरा असर हमारे ही बच्चों को भुगतना पड़ता है।
”बेशक ठगी से धन कमाना आसान हो सकता है मगर उस धन से सकून मिल जाए ये नामुमकिन होता है”।
दोस्तों!” मैंने नीरा को तो ये बात बड़ी आसानी से कह दी और समझा भी दी मगर मैं खुद सोचने पर मजबूर हो गई कि कैसे रह लेता है कोई ?
किसी का कुछ चुरा कर ,चाहे वो किसी का पैसा हो ,किसी का हक़ हो,किसी का विश्वास हो या फिर ..किसी का दिल ही कंयू न हो।भला कैसे कोई चैन से सो सकता है किसी को बेचैन करके ?..ये बात हम तो न समझ पाये दोस्तों ,अगर आप को समझ आये तो हमें भी ज़रूर समझा देना 🙏 स्मिता केंथ