“हेलो मिसेज पाटिल कैसीं हैं?”
मिसेस पाटिल :- “अच्छी हूं ! चाय पीने आ जाइए आप भी, साथ में पिएंगे।”
(फोन पर दूसरी ओर से) अरे कहां ! अभी विकी को ट्यूशन छोड़ने जाना है और फिर उसे डांस क्लास भी छोड़ना है। पूरा वक्त तो इन बच्चों में ही बीत जाता है।
मिसेस पाटिल:- “कभी वक्त निकाला करो हमारे लिए भी और थोड़ा आराम खुद को भी दिया करो।
(फोन पर ) जी जरूर आऊंगी फुर्सत में! आपके यहां का जो माली है उसे मेरे यहां भेजेंगीं क्या ?
मैिसेज पाटील:- जी जरूर! कल आएगा तब भेजती हूं।
जी! अच्छा नमस्ते !
आभा पाटिल! इस नाम से को जीते हुए मुझे 30 साल हो गए हैं। मैं अब आभा रह ही नहीं गई। आभा पाटिल में अब बहू, बीवी, मां और जिम्मेदार औरत ही रह गई है। जिंदगी ऐसे ही कुछ उलझती और कुछ सुलझती सी रही, मैं भी कुछ इसी तरह अपने घर संसार को आगे बढ़ाती रही। शादी हो कर आई थी तभी बड़े प्यार से जिम्मेदारियों की चाबी मेरे हाथ में थमा दी गई और धीरे-धीरे मैं जिम्मेदारी की चाबी से जिंदगी के ताले खोलते चली गई और खुद उसी में कैद होती गई। ऐसा नहीं था कि इस जिम्मेदारी को उठाने मे मुझे कुछ दिक्कत महसूस हो रही था या कुछ घुटन महसूस हो रही थी बल्कि मैं खुशी खुशी जिम्मेदारियां उठा रही थी।
भार्गव पाटिल मेरे पति बड़े ही जिंदादिल आदमी है, मुझे कैसे खुश रखना है वो उन्हें बहुत अच्छे से आता है। वो शुरू से ही वह मेरा बहुत ध्यान रखते आए हैं। कहीं भी जाना हो या बीमारी हो हमेशा मेरे साथ रहते। कभी समयाभाव रहा हो तो बता देते थे। इसी तरह धीरे धीरे हम दोनों अपनी गृहस्थी में व्यस्त होते जा रहे थे। रिंकी और चिकी के आने के बाद दस पंद्रह साल किस तरह निकल गए मालूम ही नहीं पड़ा। मैं इन बच्चों और घर में ऐसी रम गई कि बाहर की दुनिया और खुद को भूल गई। पूजा-पाठ, रिश्तेदार, बच्चे घर बस यही जीवन बन गया था। भार्गव ने भी अपने आपको काम में धीरे-धीरे व्यस्त कर लिया था, आखिर हमारी जिम्मेदारियां जो बढ़ रही थी।
यूं तो हम दोनों आदर्श पति पत्नी थे। एक दूसरे के सुख दुख में साथ रहते थे। घूमना फिरना साथ-साथ, एक-दूसरे की केयर, कभी अकेलापन नहीं लगता था। कुछ सोचने के लिए समय ही नहीं था, बस कभी – कभार मन कुछ खाली खाली सा लगता था और वह खालीपन कैसे पूरा हो यह भी नहीं मालूम था। प्यार क्या होता है यह मैंने कभी जाना ही नहीं। जब प्यार करने की उम्र थी तब मैं किताबों में डूबी रहती थीं और पढ़ाई पूरी होते ही शादी हो गई। जिस उम्र में लोगों को मोहब्बत होती है उस उम्र में मैं गृहस्थी की दुनिया में आ गई थी। जब कभी भी भार्गव से झगड़ा हो जाता था तो बात करने की पहल मुझे ही करनी पड़ती थी। सॉरी या मनाने – बोलने का जिम्मा मेरा ही होता था। नाराजगी में मैं अकेले ही रोधो कर खुद को मना कर काम में व्यस्त हो जाती थी। कभी मन होता था कि कोई मुझे भी मनाए, प्यार भरी बातें करें, भविष्य की चिंताओं को छोड़कर सिर्फ अपनी बातें करें, पर यह कोरा ख्याल ही रहा। बच्चों के भविष्य की चिंताएं ऐसा सोचने नहीं देती थी।
रिवाज है हमारे यहां कि प्यार पति को ही करना पड़ता है फिर चाहे प्यार हो या ना हो। ऐसा भी नहीं है कि प्यार नहीं होता क्योंकि कुछ वक्त अगर जानवर भी साथ रह ले तो उससे भी प्यार हो जाता है फिर हम तो इंसान हैं। प्यार के अंकुर फूट ही पड़ते हैं और बढ़ती उम्र के साथ यह प्यार भी बढ़ते ही जाता है। अरेंज मैरिज मतलब समझौते के साथ-साथ शादी के बाद का प्यार। साथ ही एक परिपक्व प्रेम और सहारा ~ प्रियंका वर्मा महेश्वरी