कोई है वहाँ ? ज़रा फ़ोन तो उठाओ।फ़ोन की घंटी कब से बजे जा रही है।रिया ने बाथरूम से अपने पति रोहन को आवाज़ देते हुये कहा।रोहन ने झट से फ़ोन उठाया तो उधर रोहन की बहन सलोनी थी जो कह रही थी वो अगले हफ़्ते रोहन के शहर किसी आफ़िस के काम से आ रही है एक हफ़्ते के लिये, और उसी के यहाँ ठहरेगी।रोहन ने बात करके फ़ोन रख दिया, मगर अब सोच रहा था कि कैसे कहे रिया से कि सलोनी आ रही है।वो रिया को जानता था।इतने मे रिया बाथरूम से बाहर आ गई और पूछा किसका फ़ोन था ?रोहन ने कहा ! सलोनी कुछ काम के सिलसिले से यहाँ आ रही है और हमारे साथ दो चार दिन रहेगी ।बस फिर क्या था ,रिया ने कहा अगले हफ़्ते मेरी दो किटी पार्टी है और मै काम पर भी जाऊँगी ,मै नही सँभाल सकती किसी मेहमान को।कह दो सलोनी से कि तुमहारे बड़े भाई के यहाँ ठहर जाये।वहाँ भी तो जा सकती हैं रोहन कहने लगा !सलोनी अपने किसी आफ़िस के काम से आ रही है और उसका आफ़िस हमारे घर के पास है,इसीलिए हमारे यहाँ ठहरेगी।अब रोहन सलोनी को हाँ कर चुका था।रोहन चुपचाप उठा अपने आफ़िस चला गया मगर मन पर बोझ था।सोच रहा था ,अगर रिया की बहन का फ़ोन आया होता तो क्या रिया तब भी यूँ कहती और सोचने लगा जब कोई रिया के मायके से आता है तो वो कितना स्वागत करता है मगर रिया कयूं ऐसा करती है।मेरी माँ बाप ,बहन भाई ,जब भी कोई आता है तो उसका व्यावहार ऐसा कयूं होता है।अगर मैं रिया की हर बात का मान रखता हूँ तो रिया कयूं नही रख पाती।कंयू ऐसा बर्ताव करती है।आज काम पर मन नही लगा ,क्यूँकि रोहन ये पहले भी देख चुका था।शाम को सुनिल के घर जाने का प्रोग्राम था।सुनिल जो रोहन का बचपन का दोस्त था मगर भाई जैसा।सुनिल की दादी की 70 वीं सालगिरह थी।पार्टी सादी सी थी मगर वहाँ अपनापन और प्यार बहुत था।रोहन और रिया दादी के पास बैठे तो रोहन ने दादी को बताया कि उसकी बहन सलोनी आ रही है पूना से।दादी बहुत ख़ुश हुई और कहने लगी।तीन सालों के बाद आ रही है यहाँ, तेरे पापा के गुज़र जाने के बाद तुम दोनों भाई ही तो है उसके।तुमहारे पास नहीं आयेगी तो किस के पास जायेगी,मगर रिया ने तुनक कर कहा !दादी मै काम पर जाती हूँ मेरे घर कोई आये ,मुझे संभालना बहुत मुश्किल लगता है।दादी तो फिर दादी थी,बडे प्यार से रिया का हाथ पकड लिया और सिर पर हाथ फेर कर कहने लगी।
बिटिया,हम कितना परिवार अकेले सँभाल लिया करते थे बिना किसी नौकर के।आजकल तुम लोग इक मेहमान भी आ जाये तो तुम कैसा व्यावहार करने लगते हो ,अभी तो तुमहारे पास काम करने वाले नौकर चाकर भी रोहन ने लगा रखे है।बिटिया ज़रा दिल को बड़ा रखा करो।अगर तुम अपने पति का प्यार या विश्वास पाना चाहती हो तो उसकी भावनाओं का सन्मान करना सीखो ,फिर दादी ने अपने गाँव के इक पति पत्नी की बात बताई।कहने लगी कि हमारे गाँव मे इक जवान पति पत्नी रहते थे ।दोनों ही बहुत ही छोटे दिल के मालिक थे।उनके घर अगर कोई मेहमान आता तो पत्नी के माथे पर बल पड़ जाते और बहाने बहाने से ,साथ वाले पड़ोसी के घर से आटा माँग कर ले आती।कोई भिखारी भी उनके यहाँ आता तब भी वो दोनों ,साथ वाले पड़ोसी के घर भेज दिया करते और कहते कि पड़ोसी के घर चले जाओ यहाँ से कुछ नही मिलेगा।आये दिन अपने पड़ोसी के घर से कुछ न कुछ मागंते रहते।इक रोज बहुत ही गरीब भिखारी उनके दरवाज़े पर आया तो पहले की तरह उन्होंने उसे भी साथ वाले घर में भेज दिया।उस रात दोनों जब सो रहे थे तो पत्नी ने सपना देखा कि जिस गुरू को वो मानते है वो गुरू उनके आटा के डिब्बे मे से आटा निकाल कर पड़ोसी की रसोई में जा कर उनके आटे का डिब्बे में डाल रहे है। सुबह उठ कर पत्नी ने पति को ये बात बताई ।
दोनो घबरा गये ।सोचने लगे ,गुरू हमारे अन्न को बढ़ाने की बजाये अन्न को कम क्यों कर रहे थे।उन दोनों को ये सपना बैचेन कर रहा था।अगले रोज सीधा गुरू के पास पहुँच गये और सारी बात ,जो पत्नी ने सपने मे देखी थी ,गुरु जी से कह डाली ।गुरू जी हंसने लगे !कहने लगे अब तुमहारे यहाँ कोई मेहमान या कोई कुछ माँगने के लिए आता है तो तुम उसे साथ वाले घर मे भेज देती हो जबकि उनका दाना पानी तो तुमहारे घर मे लिखा था।बस मै तो वही अन्न,जो उनके हिस्से का अन्न होता है तुमहारे घर से निकाल कर पड़ोसी के यहाँ पहुँचा के आता हूँ।जब रिया ने बात सुनी तो सोच मे पड़ गई।बात तो सही थी कोई किसी के यहाँ ऐसे ही नहीं जाता ,दाना पानी खींच कर ले आता है ये बात तो उसने भी सुन रखी थी।अपनी सोच पर शर्म सी महसूस करने लगी।दादी कहती जा रही थी रिया जब तुम अपने भाई के यहाँ जाती हो तो वो तुम्हें कितना सन्मान देते है, अगर तुम्हारी भाभी भी ऐसा बर्ताव करे,जैसा तुम सलोनी के आने पर कर रही हो तो कैसा लगेगा तुम्हें।
दोस्तों!आज हम सब भी तो ,यही कर रहे हैं ।दिल को बड़ा रखने की जगह मेहमानों को मुसीबत समझने लगे हैं आज कोई घर आ जाये,तो अपने हाथो से खाना बना कर खिलाना तो बहुत दूर की बात हो गई है बस आसान रास्ता अपना लेते है कि चलो किसी रेस्टोरेन्ट मे खाना खिला देते है।मेहमान कोई भी हो ,पति का या पत्नी की तरफ़ से ,खुले दिल से स्वागत करे।यू तो हम कह रहे हैं समाज में प्यार बढ़ाये तो क्यों न शुरूवात अपने से ही करें।
यूँ भी दोस्तों !
“ कौन किसी के यहाँ आता जाता है आजकल,ये तो परिंदों की मासूमियत भरी मेहरबानी है ,जो हमारे बगीचो मे कभी भी आया ज़ाया करते है “
-लेखिका स्मिता ✍️