इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है
स्त्री तकलीफ में होती है माना, मग़र पुरुष भी कहाँ सुकून से पलते है!!
इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है
कुछ पुरुष होते है जो दर्द को अन्दर ही अन्दर पीते है,अपने बच्चो का चेहरा देखकर उसी में वो जीते है!!
स्त्री रो कर बाह लेती है अपने दर्द को,वही पुरुष रोने भी कह बैठ पाता है
क़भी बच्चो में देखता है अपने अस्क को, तो क़भी आईने में खोजता फिरता है खुद को!!
इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है
तकलीफ होती हज़ार गुना जब माँ कहती है की
मेरा बेटा अब मेरा बेटा नहीं रह बस किसी का पति बन गया है, इस उलझन को वो कैसे सुलझाये
अपनी माँ को वो क्या बतलाये की वो क्या था और क्या बन के रह गया!!
इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है
हर पुरुष की नहीं ये कहानी, मग़र है बहुत से जो इस दर्द से है गुजरते,एक कोने में बैठ कर अपनी ज़िन्दगी की डोर को हाथों में लेकर घन्टो बैठ कर देखते है, फिर उसी डोर को सीने से लगा कर
ज़िम्मेदारियों को उठाने वो घर से निकलते है! इस अग्नि के फेरे में पुरुष भी तो जलते है …श्रद्धा श्रीवास्तव