तमाम रात ख्याल भटकते रहे
कुछ खामोशियां अल्फ़ाज़ों में ढलती रही
इन सन्नाटों में झींगुरों की आवाज भी
चीखती हुई सी महसूस होती है
हवा की एक हल्की सी आहट
इक दस्तक सी महसूस होती है
नीम के झुरमुटों का हिलना
जैसे हवा संग मस्तियां करना
ठंडी हवा का झोंका
जैसे रात को आवारा कर रही है
तमाम रात ख्याल भटकते रहे
रात ढलती रही ख्याल गुजरते रहे.
प्रियंका वर्मा महेश्वरी