हे !मुरलीधर ,गोवर्धन धारी तुझ संग मेरी प्रीत पुरानी
दुनिया वालों सुनो ,यह बात सुहानी मेरी अमर कहानी
तूने बक्शी मुझको अपनी कृपा की नजर नूरानी
प्रीत ,प्रेम, प्यार स्नेह की मुझको राह दिखाई
बनकर करुणा के स्वामी किया मुझको लासानी
लगाकर प्रीत तेरे चरणों में, मैं पागल बनी पुजारी
इस जग में, संसार में, मैं बनकर आई सैलानी
मुझको तेरा ही आसरा, बस्ती हो या हो वीरानी
मन को तेरे चरणों में ही रखूं, क्यों मैं करूं नादानी
रस के लोभ में फंसकर हासिल होगी सिर्फ हैरानी
क्यों मैं अपना सत चित आनंद का रूप भुलाऊं
जाना पहचाना और माना यह दुनिया है फानी
न जानेगी दुनिया सारी,सुन ले आज यह अर्ज हमारी।
मुझको लगे ये बीमारी ,चढ़ी रहे तेरे नाम की खुमारी
हे गोवर्धन धारी तुम संग मेरी प्रीत नहीं है किताबी
जन्म -जन्म से यह तो है, मेरे अंग- संग की बाती
प्रीत ,प्रेम, प्यार, स्नेह, प्यार की ये रीत पुरानी
मीरा और राधा दोनों प्रेम -दिवानी ,दोनो ने जानी
– इंदु दीवान
गुरुग्राम
हरियाणा