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महिला जगत

भाव और विश्वास इन्सान की खुद के अंतर मन की उपज है

दोस्तों ! ज़िन्दगी बहुत ही सरल और सीधी है हम लोगों ने ही उसे मुश्किल बना रखा है किसी भी चीज़ को पाना हो अगर ,तो पहले विश्वास करना पढ़ता है।चाहे वो दुनिया की कोई खुवाईशात हो या रब को पाने की चाहत ..बात सिर्फ़ विश्वास की है।
ऐलिस मेरी सहेली स्पेन से मुझे मिलने आ रही थी।ऐयरपोर्ट पर काफ़ी इंतज़ार के बाद मैं अपने डाईवर को गाड़ी पार्किंग में पार्क करने के लिए फ़ोन करने ही वाली थी कि पीछे से ज़ोर से आवाज़ सुनाई दी। हाय स्मिता !
मैंने मुड़ कर देखा।ऐलिस भागती हुई आई और मेरे गले लग गई। मेरी सहेली ऐलिस जो मेरे ही शहर में रहा करती थी फिर कुछ सालों बाद वो स्पेन चली गई।मैंने कहा !कैसी हो ऐलिस ? कैसा रहा सफ़र ?इतने सालों बाद मिल रही हो।दुबली भी हो गई हो।मेरे गले में बाँहें डाल कर बोली !जल्दी से मुझे घर चलो ।बहुत थक गई हूँ ।फिर आराम से बातें करते हैं।उसने अपना बैग उठाया और हम गाड़ी में बैठ कर घर आ गये। बड़ी ख़ुश थी मुझे मिल कर।कहने लगी मुझे बहुत इन्तज़ार था तुम से मिलने का।घर आ कर चाय का प्याला ले कर हम दोनों बैठ गये। मैंने पूछा ! कैसे आना हुआ इस बार ? ऐलिस ने लम्बी सी साँस ली और कहने लगी !टूट सी गई हूँ अब तो।मेरी स्पेन की नौकरी चली गई ,जो बिज़नेस था वो चल ही नहीं सका।सोचा शादी कर लूँ उसके लिए मुझे कोई ढंग का लड़का ही नहीं मिल पाया।मेरी गाड़ी का भी पिछले महीने ऐकसीडैंट हो गया मैं उदास हो गई थी ,सोचा इंग्लैंड हो कर आती हूँ ,तुम्हें भी मिलना हो जायेगा और अपने भाई से भी स्कॉटलैंड में मिल लूँगी।रात को देर तक बैठे बातें करते रहे ।सुबह पता नहीं क्या मेरे मन में आया।मेरे घर में मंदिर बना हुआ है जहां एक क्षीं यंत्र पड़ा था। लोग बहुत तरहां से रब की भक्ति करते हैं मगर मैं भाव से भक्ति में विश्वास करती हूँ ,न की कर्मकांड पर या यूँ कह सकती हूँ कि मुझे भक्ति करना आता ही नहीं। रब को रिझाना कैसे हैं शायद जानती ही नही मैं ।मैंने कहा ऐलिस ये क्षीं यंत्र तुम ले जाओ किसी महात्मा ने मुझे दिया था और मैंने थोड़ा सा कुम कुम उसे दे दिया और कहा कि रोज़ क्षीं यंत्र के ऊपर कुम कुम का अभिषेक कर दिया करना ,शायद तुम्हारे सब काम ठीक हो जाए।किसी महात्मा ने ऐसा ही कहा था मुझे ये यंत्र देते हुए।ये क्षीं यंत्र मुझे महात्मा जी ने शायद तुम्हारे लिये ही दिया हो।कह कर मैंने क्षीं यंत्र उसे दे दिया। ऐलिस अगले दिन की फ़्लाइट से अपने भाई से मिलने स्कॉटलैंड चली गई। वक़्त गुजरने लगा। पाँच साल हो चुके थे।इक रोज़ ऐलिस का फ़ोन आया कि स्मिता मैं तुम्हारे शहर में हूँ ,तुम्हें मिलने आ रही हूँ ।मैं हैरान थी आज एकदम अचानक से कैसे?उसी शाम ऐलिस घर आई।बेहद खुश थी मैंने पूछा !
कैसी हो? कहने लगी मैं बहुत खुश हूँ मेरा बिज़नस बहुत अच्छा हो गया है अब मुझे नौकरी की कोई ज़रूरत नहीं रही। घर भी ले लिया मैंने। नई गाड़ी भी ले ली है।और आज से तीन महीने बाद मेरी शादी है उसी का इन्वाइट देने आई हूँ तुम्हें।
मैं आजकल देश विदेश बहुत ट्रैवल करती हूँ और कहने लगी !
जहां भी जाती हूँ तुम्हारा दिया हुआ यंत्र साथ ले जाती हूँ।माई डियर फ्रैंड!ये सब तेरी वजह से हुआ है ,मैं हैरान थी ये सुन कर।मैंने पूछा !
मेरी वजह से ? कहने लगी !
हाँ हाँ तुम्हारी वजह से ही मैं सब कुछ वापस पा सकी।फिर बताने लगी तुम्हारा दिया हुआ क्षीं यंत्र मैं हर जगह ले कर जाती हूँ जैसा तुमने कहा था वैसे ही क्षीं यंत्र का अभिषेक करती हूँ। सब ठीक हो गया मेरा।ख़ुशी से उसने मुझे गले से लगा लिया ।कहने लगी !तुम मेरी बहुत स्पेशल सहेली हो। मैं उसकी ख़ुशी से बहुत खुश हो भी रही थी।ऐलिस जल्दी से एक बैग में से क्षीं यंत्र निकाल कर मुझे दिखाने लगी और एक पैकेट भी दिखाया। मैंने पूछा !ऐलिस ये क्या है ?कहने लगी !ये कुमकुम है।
मैंने पूछा कहाँ से ये लिया तुमने ? कहने लगी! ये तो हर गरोसरी शाप पर होता है। तुम्हारा दिया कुम कुम मेरे पास ख़त्म हो गया था तो मैं स्पेन में इक गरोसरी शाप पर गई। वहाँ का शाप ओनर स्पैनिश है। उसने कहा तुम ये ले ज़ाया करो ,ये भी लाल रंग का पाउडर है ,बस फिर क्या था मेरा काम बन गया।
मेरी आँखें नम हो रही थी उसकी बात सुन कर, उसकी मासूमियत देख कर और रब की मेहरबानियाँ देख कर ..असल में दोस्तों !
वो कुम कुम था ही नहीं ।
वो जो क्षीं यंत्र पर लगाया करती थी। वो लाल मिर्ची का पाउडर था। उसकी बातें सुन कर यहाँ ये समझ में आया मुझे कि उसे जो मिला है उसे उसके विश्वास से मिला है।उसने मुझ पर विश्वास करके मुझ से कुम कुम लिया और फिर उस स्पैनिश गरोसरी वाले इन्सान पर भरोसा किया ।ऐलिस का अपना ही विश्वास था कि सब ठीक हो जायेगा और हुआ भी।यहाँ इक और बात साफ़ हो गई भगवान को भाव व विश्वास चाहिए और कुछ नहीं।और हम इन्सान ही है जो कहते है ये करो ,वो करो ,तो ही काम होगा। मंत्र सही से नहीं किया तो काम ख़राब हो जायेंगे।भगवान को केवल भाव ,विश्वास ही प्रिय है ये दूध,दही,हल्दी,फल,फूल,धूप
बाती,तेल घी शहद जो भी हम भगवान को अर्पित करते हैं ,इसे हम पहले कहीं से ख़रीदते हैं या यूँ कह लीजिए ये सब भगवान के अपने ही बनाये हुये हैं।उसकी बनाई चीजों को ही भगवान पर अर्पित कर देते है और इसके विपरीत ..भाव और विश्वास ये दोनों चीजें खुद इन्सान की अपने अंतर मन की उपज है। ये वाक़या अपने आप में सब कुछ कह रहा है मुझे ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं।
दोस्तों।अगर आप का मन साफ़ सरल और छल कपट से दूर है ,यकीन कर सकता है विश्वास करता है तो ये मान कर चलो कि इक रोज़ वो सब होगा ….जैसा आप चाहते हैं
लेखिका स्मिता ✍️

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महिला सम्मान सिर्फ एक दिखावा

यह बहुत दुख की बात है कि हमारे देश का गौरव बढ़ाने वाली बेटियां अपने सम्मान (मेडल) को गंगा में बहाने की बात कही। इनकी आहत भावना और सरकार द्वारा किया जा रहा उपेक्षा पूर्ण व्यवहार न्याय की गुहार लगाती खिलाड़ियों में असंतोष की भावना उत्पन्न कर रही है। पुलिस द्वारा बलपूर्वक किया गया अनुचित आचरण लोगों के मन से व्यवस्था और न्याय पर से भरोसा खत्म कर रहा है।भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी की मांग पर जंतर मंतर पर बैठी महिला पहलवानों की बात क्यों नहीं सुनी जा रही है? इससे पहले महिला खिलाड़ियों ने बेरीकेड्स तोड़कर नये संसद भवन की ओर बढ़ने का प्रयास किया जिससे और खिलाड़ियों के बीच हाथापाई हो गई और पुलिस ने उनके प्रदर्शन पर रोक लगा दिया और कहा कि उन्हें किसी अन्य जगह पर प्रदर्शन की इजाजत दी जा सकती है लेकिन जंतर मंतर पर नहीं। बृजभूषण सिंह पर एक नाबालिग सहित महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप है। मामला कुछ भी हो मगर न्याय के लिए भटकती खिलाड़ियों की बात सुनी जानी चाहिए। खाप पंचायतें बैठकें तो कर रही हैं लेकिन उनका कोई निर्णय सामने नहीं आ रहा है।

1983 में विश्व कप जीतने वाली टीम ने साझा बयान जारी कर महिला खिलाड़ियों को अपना समर्थन दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस खबर को प्रमुखता से छापा है। बेटी बचाओ का नारा देने वाली सरकार इन्हें अनदेखा क्यों कर रही है? और महिला नेत्राणियों ने भी इस मसले पर चुप्पी क्यों साध रखी है? क्या सिर्फ एक फोटो खिंचवाने तक ही बेटियों का सम्मान था ? ऐसे तमाम सवाल है जो सरकार के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं? क्या बेटियाँ यूं ही अपमानित होती रहेंगी?

जमीर जागने में वक्त तो लगता है
हौसले पस्त ना हो तो उम्मीद का दिया जलते रहता है

प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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मिशन लाइफ के अंतर्गत डी जी कॉलेज में मनाया गया विश्व पर्यावरण दिवस

भारतीय स्वरूप संवाददाता, विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज में सेंचुरी क्लब, विजन कानपुर@2047 द्वारा *मिशन लाइफ – पर्यावरण संरक्षण* के मुद्दे को ध्यान मे रखते हुए छात्राओं के द्वारा पोस्टर बनाकर आसपास के लोगों को जागरूक किया गया। महाविद्यालय सेंचुरी कलब कोऑर्डिनेटर डॉ संगीता सिरोही के कुशल निर्देशन में एक जागरूकता रैली भी निकाली गई।
प्राचार्या प्रो अर्चना वर्मा जी ने अपने उद्बोधन में छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमे वन संरक्षण हेतु चिपको आंदोलन की प्रणेता अमृता देवी को कभी नहीं भूलना चाहिए तथा यथासंभव पेड़ों को कटने से बचाने, नए पौधों को आरोपित व उनका पालन-पोषण करना चाहिए। छात्राओं के द्वारा बस्ती वासियों को हरित घर की संकल्पना बताते हुए 5 मुख्य मुद्दों- वृक्षारोपण, जल संरक्षण, कचरे के वर्गीकरण, निस्तारण एवं चक्रण, पॉलिथीन मुक्त पर्यावरण लिए इकोब्रिक्स बनाकर विभिन्न उपयोगी सामग्री बनाने के लिए उनका प्रयोग करने व जीव-जंतु संरक्षण तथा ऊर्जा की बचत की ओर उन्मुख व अभिप्रेरित किया। डॉ सिरोही ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि मिशन लाइफ के अंतर्गत व्यक्तिगत _ छोटे-छोटे प्रयासों के द्वारा पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने अपने व्याख्यान में वेदो का भी उल्लेख किया जिनमें संपूर्ण जैव- जगत, जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधों आदि को देव स्वरूप मानकर पूजा करना मनुष्य का धर्म बताया गया था। यह सब पर्यावरण संरक्षण के ही उपाय है। कार्यक्रम में महाविद्यालय कार्यालय अधीक्षक डॉ कृष्णेंद्र श्रीवास्तव समेत डॉ नवीन, डॉ प्रजापति एवम् डॉ संचिता लक्ष्मी विशेष रूप से उपस्थित रहे । समस्त छात्राओं की सक्रिय सहभागिता उल्लेखनीय रही।

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यमनोत्री यात्रा और रोमांच

कुछ यात्राएं बेहद सुखद होती हैं जिनमें सिर्फ मौज मस्ती होती है। मंदिरों के दर्शन किया, दर्शनीय स्थल घूम लिए, बाजारों की रौनक बढ़ा ली और घूमना फिरना पूरा हो जाता है लेकिन कुछ यात्राएं रोमांचक होती है। चार धाम की यात्रा मेरे लिए किसी रोमांच से कम नहीं रही। यह एक तरह से कहा जाए तो मेरे लिए ट्रैकिंग से कम अनुभव नहीं रहा। चार धाम यात्रा में सबसे पहला पड़ाव यमुनोत्री का रहा। धार्मिक स्थलों से जुड़ी हुई यात्राएं अपने साथ कुछ ना कुछ पौराणिक कथाएं जरूर लिये हुये होती है। यमनोत्री के लिए कहा जाता है कि सूर्य देव की पुत्री युमना और पुत्र यमराज है। जब मां युमना नदी के रूप में पृथ्वी पर बहने लगी तो उनके भाई यमराज को मृत्यु लोक दिया गया। मां यमुना ने भाई दूज का त्योहार मनाया और यमराज ने मां गंगा से वरदान मांगने के लिए बोला। यमराज ने बहन यमुना की बात को सुनकर वरदान दिया जो कि तेरे पवित्र जल में स्नान करेगा वह कभी भी यमलोक का रास्ता नहीं देखेगा। इसीलिए कहा जाता है कि जो भी इस जल में स्नान करता है वह अकाल मृत्यु के भय से दूर रहता है और इसी वजह से हजारों लोग दर्शन के लिए आते हैं। यमनोत्री उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 3235 मी. ऊँचाई पर स्थित है।

उत्साह, रोमांच, कड़ाके की ठंड और हल्की बारिश के साथ यात्रा की शुरुआत हुई। चढ़ाई बहुत ज्यादा नहीं थी सिर्फ छह किलोमीटर की थी लेकिन चढ़ाई पूरी करने में बहुत शक्ति लगी और यदि खड़ी चढ़ाई हो तो दिक्कत ज्यादा होती है। एक किलोमीटर चढ़ाई मतलब एक घंटा। हमारी यात्रा की शुरुआत जानकीचट्टी से शुरू हुई। मुझे धीरे धीरे समझ में आने लगा यह चढ़ाई इतनी आसान नहीं है। मैं ऊपर देखते जाती और सोचते जाती कि कैसे और कब यह चढ़ाई पूरी होगी। एक बारगी मन में खयाल आया कि पालकी कर ली जाए लेकिन भीड़ का नजारा देखकर इरादा छोड़ दिया, जबकि लोगों को मैंने कहते हुए सुना कि भीड़ तो अभी शुरू ही नहीं हुई है। चढ़ते – चढ़ते पालकी वाले साइड साइड चिल्लाते हुए बाकायदा दौड़ लगा रहे थे। घोड़े वाले भी इसी तरह हांक लगाते हुये चल रहे थे। पिट्ठू माताजी माताजी बोलकर अपनी जगह बना रहे थे और पैदल यात्री अपने आप को इन सबसे बचाता हुआ अपनी यात्रा तय कर रहा था। रास्ता छोटा और जगह-जगह पहाड़ी पत्थर निकले हुए थे जिन से अपने आप को बचाना पड़ता था। हर कुछ दूरी पर चाय कोल्डड्रिंक और खीरे वाले बैठे थे।
चढ़ते चढ़ते पहाड़ों का मनमोहक दृश्य आंखों और कैमरे में कैद करते जा रही थी मैं। पहाड़ों से बहते हुये झरने, जमी हुई बर्फ, कोई कोई तो पूरा पहाड़ ही बर्फ से ढका हुआ, बादल सब कुछ अद्भुत था। फोटो में देखना, फिल्मों में देखना और जीवंत देखना एक अलग अनुभव रहा। मेरी यात्रा कभी ना भूलने वाली यात्रा रही जिसमें डर के साथ रोमांच भी रहा। डर इसलिए क्योंकि पहाड़ के दूसरी ओर खाई थी और कहीं रेलिंग थी तो कहीं नहीं थी। जरा सा धक्का लगा और आप नीचे। बारिश और फिसलन के कारण मैं कछुआ गति से धीरे-धीरे चढ़ती जा रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि नीचे उतरुंगी तो पालकी से ही। मैंने ऊपर देखना छोड़ दिया और चलते रही जब तक मंजिल नहीं आ गई। आखिरकार चढ़ाई पूरी हुई और जान में जान आई। भीड़ के बीच में घुसकर यमुनोत्री माता के दर्शन किए। यहाँ पर पानी के मुख्य स्रोतों में से एक सूर्यकुण्ड है जो गरम पानी का स्रोत है। भूगर्भ से उत्पन्न नब्बे डिग्री तक गर्म पानी के जल का कुंड सूर्य-कुंड है और पास ही ठन्डे पानी का गौरीकुंड यहाँ सबसे उल्लेखनीय स्थल हैं| कुछ देर वहां रुककर फोटो शूट किया और फिर वापसी शुरू हो गई।
जिस तरह से पालकी और घोड़े वाले बदमाशी कर रहे थे मतलब बाकायदा धक्का देकर वो आगे बढ़ रहे थे, पैदल यात्रियों को परेशान कर रहे थे, घोड़े को खींचकर ले जा रहे थे। एक पालकी वाले ने एक महिला को गिरा दिया, तो कुछ दूरी पर एक घोड़ा गिर गया। फिसलन के कारण यात्री घोड़े और पालकी वालों से झगड़ा कर रहे थे। यह सब देखकर पालकी पर सवार होने की हिम्मत जवाब दे गई और मैं फिर से कछुए की गति से नीचे उतरने लगी। इस छह किलोमीटर की चढ़ाई में करीब छह घंटा लगा। ऊपर भी बारिश और ओले पड़ रहे थे।
इतनी बड़ी और कठिन यात्रा में व्यवस्था का होना बहुत जरूरी है। पैदल यात्रियों के लिए अलग से चलने की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वह किसी हादसे का शिकार ना हो। मंदिर में दर्शन करने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं दिखी। एक भीड़ जिसमें धक्का मुक्की ज्यादा थी। वहाँ पुलिस प्रशासन व्यवस्था मूक दिखाई दे रही थी। कहीं कोई लाइन की व्यवस्था नहीं जो कि सही नहीं है। इतनी बड़ी और मेहनत से चढ़ाई के बाद दर्शन करने के बजाय लड़ाई झगड़ा धक्का मुक्की शोभनीय नहीं है। एक बड़े धाम के रूप में चर्चित यमुनोत्री में समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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दयानंद गर्ल्स पीजी कॉलेज में सेंचुरी क्लब, विजन कानपुर@2047 के अंतर्गत महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य के अंतर्गत सरोज देवी फाउंडेशन के सहयोग से मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया गया

कानपुर भारतीय स्वरूप संवाददाता, दयानंद गर्ल्स पीजी कॉलेज, कानपुर में सेंचुरी क्लब, विजन कानपुर@2047 के अंतर्गत महिलाओं की सुरक्षा, स्वावलंबन व सशक्तिकरण के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए सरोज देवी फाउंडेशन के सहयोग से मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया गया। इस दिन पूरी दुनिया में ‘मासिक धर्म स्वच्छता दिवस’ मनाया जाता है। 2014 में जर्मन के ‘वॉश यूनाइटेड’ नाम के एक एनजीओ ने इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य – लड़कियों और महिलाओं को महीने के उन 4-5 दिन यानी मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता रखने के लिए जागरूक करना है।
महाविद्यालय सेंचुरी क्लब समन्वयक डॉ संगीता सिरोही ने बताया कि सरोज देवी फाउंडेशन से हाइजीन एजुकेटर श्रीमती अनुपमा चौधरी ने अपने व्याख्यान में छात्राओं को मासिक धर्म के समय रखी जाने वाली सावधानियों से अवगत कराते हुए उस समय होने वाली कठिनाइयों को कम करने, संतुलित भोजन, उचित व्यायाम, आहार-विहार आदि के बारे में सुझाव दिए। इस अवसर पर एक जागरूकता रैली का भी आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से पूर्व प्राचार्य डॉ साधना सिंह, डॉ निवेदिता टंडन, आई क्यू ए सी इंचार्ज प्रो वंदना निगम, प्रो पप्पी मिश्रा, प्रो प्रज्ञा सहाय, प्रो मुकुलिका हितकारी, प्रो सुमन सिंह, प्रो स्वाति सक्सेना, डॉ कृष्णेंद्र कुमार श्रीवास्तव, स्वस्थ संसार संस्थान से श्री प्रमोद श्याम जी व उनकी टीम, सरोज देवी फाउंडेशन से श्री अरविंद चौधरी, श्रीमती संध्या एवम उनकी संपूर्ण टीम तथा समस्त छात्राओं की प्रतिभागिता सराहनीय रही।

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वो नज़र कुछ ऐसी थी कि जिसमें जिस्म की चाह नही ,कुछ और ही था।

वो सामने बैठा मुझे ही देखे जा रहा था और मैं.. आँख भी नहीं मिला पा रही थी। वो नज़र कुछ ऐसी थी कि जिसमें जिस्म की चाह नही ,कुछ और ही था।मेरे ख़याल से इससे ख़ूबसूरत इश्क़ नहीं हो सकता, जो सिर्फ़ नज़रों से ही किसी की रूह को छू लेता है ..
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सबा ने हिम्मत कर अपनी आँखें उठाई और इक लम्बी ख़ामोशी को तोड़ते हुए बोली ! अच्छा तो बासु ..अब मैं चलू।बासु बोला !आज कितने सालों के बाद अचानक से तुम मेरे सामने आ गई।बहुत बार सोचा कि तुम्हें फ़ोन करूँ ,तुम से बात करूँ।इतने अरसे के बाद तुम्हें देखा।कैसे आज तुम्हें जाने के लिए कह दूँ। सबा मैं तो हैरान हूँ कि कैसे ,तुम मुझे भुला बैठी ? बासु की बड़ी बड़ी आँखों में गहराई और बेचैनी का अहसास कर पा रही थी सबा।शोर तो सबा के सीने में भी बहुत था मगर ख़ामोश सा।जैसे सब्र करना सीख गई थी सबा।इतना भी आसान नहीं था सबा के लिए ,खुद को सहज सा दिखाना।बहुत जद्दोजहद में थी सबा।कभी अपना दुपट्टे का पल्लू संभाल रही थी तो कभी अपनी नज़रों को।नहीं चाहती थी कि बासु उसकी बेक़रारी को देख पाये।
सबा ने इक गहरी साँस भरी,जो बासु के दिल के आरपार हो गई।सबा भारी आवाज़ में बोली! बासु वक़्त सब कुछ सिखा देता है।तुम से बिछड़े तीन साल हो गये है मगर मैं तुम्हें भूल नहीं पाई बासु, और भूलती भी कंयू तुम्हें।तुम चाहत हो मेरी।ये अलग बात है कि हमारी शादी नहीं हो पाई,क्यूँकि मैं मुसलमान घर की बेटी और तुम कट्टर ब्राह्मण परिवार से थे।घरों में शान्ति रहे इसीलिए हमने अपनी खुवाईशो का गला दबा दिया।तब कोई और चारा था भी नही ,हमारे पास।है न बासु ? बासु मेरे लिए ,तुम्हें छोड़ कर जाना मुश्किल होगा, ये तो पता था मुझे। शरीर से रूह निकल कर रह गई थी तुम्हारे ही पास .. ज़ाहिर है ..दर्द होना तो लाज़मी ही था ..मगर इतना दर्द होगा वो नही पता था। काश !! मेरे अबू मान गये होते या तुम्हारे पापा।सुबक पड़ी थी सबा ,ये सब कहते कहते। बासु का दिल रो रहा था। बासु बोला ! मैं कंयू नहीं लड़ पाया सबसे? क्यू अपने फ़र्ज़ को इतनी अहमियत दी मैंने ।याद आया उसे ,कैसे उसके पापा  अंबालिका की शादी की दुहाई देने लगे थे। चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि अगर तुम मुसलमान घर की लड़की ले कर आये तो तेरी बहन सारी उम्र कुँवारी बैठी रहेगी।सिहर उठा था बासु। सबा का हाथ पकड़ कर बोला। कुछ चाहते ऐसी होती है सबा।जिसमें इन्सान ,इश्क़ में दर्द तो सह लेता है मगर इश्क़ करना कभी नहीं छोड़ पाता ..
इश्क़ मे रहना और फिर इश्क़ की इबादत करना ….हर किसी के हिस्से में कहाँ आ पाती हैं हर जगह हर पल तुम्हारी ये कमी का अहसास ..क्या मुझे ख़ुशी दे पायेगा कभी। तुम ने ही तो कहा था कि हम बड़ों का दिल नहीं दुखायेंगे।तुम्हारी ही दी गई क़सम को निभा रहा हूँ मैं..मगर जीना अब इक सजा सा लगता है तुम्हारा वजूद सकून है मेरा ! सबा ..यूं मिल कर बिछड़ना ,मुक़द्दर में था या हमने ये सजा तय कर ली खुद अपने ही लिये..ये बात मैं समझ नहीं पाया, बस यही बात समझ में आई कि मुझे प्यार है तुमसे .. आज भी.. बासु बोलता जा रहा था। सबा ! कभी कभी मैं सोचता हूँ कि तुम और मैं , हम दोनों ही..बस सब का क़र्ज़ उतार रहे है। बाँट ही तो रहे हैं सभी को ..सभी का हक़। इक रह जायेगा तुम्हारे सर … या मेरे सर ..बस ! “हमारे इश्क़ का क़र्ज़ .. हमारी ख़ामोशियाँ…. तुम्हारा और मेरा इन्तज़ार .. कतरा कतरा आँखों से गिरते आँसुओं का बोझ कैसे उतार पायेंगे ,इक दूजे का ये क़र्ज़.. मेरी जागती रातों का हिसाब .. मेरे सवाल और तुम्हारे जवाब यही दफ़्न हो जायेगे,हमारे ही अन्दर।कितना अधूरा सा मैं ,कितनी अधूरी सी तुम..ये ख़ालीपन कभी नहीं भर पायेगा। सबा गंभीर हो कर बोली! बासु ..शायद ..वक़्त हमे इक दूजे के बिना रहना सिखा दे। बासु सबा की इस बात पर जैसे तड़प सा गया। बोला! क्या तुम मुझे भूल पाओगी सबा। हमारा प्यार कभी भी वक़्त के साथ धुंधला नहीं हो सकता।मरते दम तक तुम ही रहोगी मेरे दिल में।अब तो बस जीना ही है, मोहब्बत तो मैं ,कर चुका तुम से। अब तो सिर्फ़ बस फ़र्ज़ निभाने बाकि है। सबा !
मैं भी इक वादा करता हूँ आज के बाद मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूँगा। न ही कभी तुम्हें देखूँगा चाहे तुम मेरे पास से भी गुज़र जाओ।
तुम से न मिलने से,बात न करने से बेक़रारी तो रहेगी, मगर मिलने के बाद, तुम से बात करके मैं और भी बेचैन हो गया हूँ ।सबा की आँखों से आँसूओ की छड़ी सी लग गई बोली बासु !अगर तुम बात नहीं करोगे तो मै कैसे ज़िन्दा रह पाऊँगी तुम्हारे बग़ैर।
शाम गहरी हो चुकी थी। भीगती आँखों और बोझिल मन से सबा बासु को अलविदा कह कर चल पड़ी।जानती थी उसकी ज़िन्दगी का सफ़र अब आसान नहीं होगा मगर कोई चारा नहीं था ,सिवाय अपनी तक़दीर के फ़ैसले को मानने के और बासु भी अपनी हथेलियों से अपने मुँह को छिपा कर फूट फूट कर रो रहा था। दोस्तों! ओह !! ये कहानी बहुतो की हो सकती है। इतना प्यार ..इतना दर्द ..इतनी गहराई और फिर मिल न पाना ..कितना असहनीय होता होगा जिनको ऐसे हालातों में से गुजरना पड़ता होगा और कितने दुख की बात है कि हम आज भी मज़हबों में उलझ कर ,अपने ही हाथों से बच्चों की ख़ुशियों पर ग्रहण लगा देते है।हमारा कहना तो वो मान जाते है मगर वो ख़ुश ,कहाँ रह पाते है।कभी सोचा है कि वो पूरी ज़िन्दगी कैसे मर मर कर अपना जीवन काटेंगे।
प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है।जिस का किसी के साथ जो रिश्ता बनना होता है वो तो पहले से निर्धारित है फिर हम और आप कंयू उसे बदलना चाहते है । किसी को दर्द दे कर , किसी को अलग करके , किसी से बल छल करके, कोई कैसे चैन से रह सकता है ?
किसी को तंग करके कभी किसी का भला नहीं हुआ। न आज !! न पहले कभी !!
:_ लेखिका स्मिता ✍️

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भारत उत्थान न्यास, महिला समिति द्वारा मातृदिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल संगोष्ठी: *आधुनिक परिप्रेक्ष्य में नारी का स्वरूप* गूगल मीट पर आयोजित की गई

कानपुर भारतीय स्वरूप संवाददाता, भारत उत्थान न्यास, महिला समिति द्वारा मातृदिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल संगोष्ठी: *आधुनिक परिप्रेक्ष्य में नारी का स्वरूप* गूगल मीट पर आयोजित की गयी। कानपुर आकाशवाणी की उद्घोषिका रंजना यादव के संचालन में आयोजित संगोष्ठी के संयोजक व न्यास के केन्द्रीय अध्यक्ष सुजीत कुंतल ने अतिथि के रूप में उपस्थित समस्त मातृशक्ति को प्रणाम करते हुए उनका स्वागत किया। मुख्य वक्ता डॉ. चित्रा तोमर ने कहा कि यही सत्य है कि महिलाएं अनेक रूपों मे सशक्त है यदि वे स्वम पर दया खाना छोड़ दें क्योंकि सदियों की विरासत ने हमें यही सिखाया है अपने स्वाभिमान एवं दृण इच्छा शक्ति को आधार बनाकर बधाओं कों नष्ट करने का सामर्थ्य है नारी मे और एक माँ क़े रूप मे तो वह जीवनदायिनी है अतः सकारात्मक सोच रखना आवश्यकत है। मुख्य अतिथि डॉ. शशि अग्रवाल ने आधुनिक परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सम्पूर्ण विश्व आज महिलाओं का नेतृत्व स्वीकार कर उनका अनुसरण कर रहा है। इसलिए अब दुनिया की आधी आबादी के रूप में हम सभी महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। आबूधाबी से विशिष्ट अतिथि ललिता मिश्रा ने अपनी कविता, भविष्य बाहें पसारे करता उसका इंतजार। युग निर्माता वो जननी, लक्ष्य भेदने को तैयार। इतिहास रचाकर करती है वो अपना सोलह श्रृंगार। आज की नारी है जो, सबल, सचेत, सृजनकार सुनाई। अमेरिका से रेखा भाटिया ने कहा कि मानसिक सोच में बदलाव ज़रूरी समय बीतने के साथ वर्तमान आधुनिक और भौतिकवादी काल में नारी का स्वरुप बदला है। उच्च शिक्षा ग्रहण कर नारी हर क्षेत्र में अग्रणी है। समाज, देश और विश्व के सामाजिक और आर्थिक विकास में अपना विशिष्ठ योगदान दे रही है। घर, बाहर कड़ी मेहनत से, लगन से, निष्ठा से सभी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह कर नारी ने संतुलन और सांमजस्य बनाने की भरपूर कोशिश की है। स्त्रियों की सामाजिक दशा में बदलाव ज़रूर हुआ है लेकिन उपभोक्तावादी इस आधुनिक काल में नारी के सशक्तिकरण का आकलन केवल आर्थिक और भौतिक दृष्टी से किया जा रहा है, नारी को मात्र प्रदर्शन और भोग की वस्तु की तरह पेश किया जाता है। यह सुधार केवल सतही स्तर पर है जैसे रहन-सहन-पहनावा ,नौकरी इत्यादि तक ही सिमित होकर रह गया है। आधुनिकता के नाम पर थोपी गई संस्कृति- संस्कार और पहनावे में स्वतंत्रता को शक्तिकरण का मापक बनाकर विभिन्न प्रचार माध्यमों से स्त्रियों के शरीर को वस्तु की तरह नुमाइश कर स्त्री की गरिमा पर गंभीर और भयंकर कुठाराघात होने लगा है। इस काल में नर-नारी के एकदूसरे के पूरक भाव की जगह विरोधी भाव को अधिक उभारा गया। आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल कर लेने के बाद भी स्त्रियों के विरुद्ध अपराध, यौन हिंसा, घरेलु हिंसा,अत्याचार,सामाजिक, मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न और शोषण में वृद्धि ही हुई है। बलात्कार की घटनाएँ भारत ही नहीं वरन अमेरिका में भी ज्यादा घटती हैं। नारी स्वरुप का सशक्तिकरण सम्पूर्ण रूप से अभी भी मात्र एक छलावा है, जिसमें नारी स्वयं भी छली जा रही है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सही मायनों में नारी को लैंगिक समानता, विचारों की समानता, समान अवसर और अधिकार मिले हैं , एक भ्रम है। लेकिन यह सोचकर संतोष होता है कि पितृसत्तात्मक सोच से नारी मुक्त होना चाहती है और निरंतर अग्रसर है। लेकिन सशक्तिकरण वैचारिक स्तर पर होना चाहिए, लैंगिक समानता, समान अधिकार और समान अवसर मिलने चाहिए जिसके लिए आवश्यक है नारी के प्रति सम्मान, संवेदनशील व्यवहार की भावना बढ़ाने के साथ ही सहिष्णुता उनकी सुरक्षा, जीवनशैली चुनने की उसे स्वतंत्रता होनी चाहिए। जिसके लिए सामाजिक और मानसिक सोच में बदलाव लाना बेहद ज़रूरी है। हिसार, हरियाणा की विशिष्ट वक्ता डॉ. गीतू भुटानी ने कहा कि कितनी बड़ी शक्ति आज हमारे हाथ में है। जिसे हमने पहचाना ही नहीं है। वी आर होम मेकर, हम जेनरेशन मेकर। बाहर से आने वाला आपको नहीं जीत सकता, जो आपके अंदर बैठा है, आपका स्वावलंबन, आत्मविश्वास। वही सब कुछ बदल सकता है। महिलाओं को अपने भीतर जीतना है, उन्हें बाहरी ताकत की ज़रूरत नहीं। हरियाणा से नेहा धवन और दुबई से निशा गिरि द्वारा वक्तव्य और कविता प्रस्तुत की ग्रीन। लखनऊ से डॉ. आनंदेश्वरी अवस्थी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा किभारतीय नारी को शक्ति का पुंज बताया उन्होंने कहा कि सहनशीलता और सृजनात्मक गुण नारी की अदम्य शक्तियां हैं। बनारस की प्रो. चम्पा कुमारी सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया। यहां डॉ. के सुवर्णा, डॉ. अनीता निगम, डॉ. रोचना विश्वनोई, शशि सिंह आदि उपस्थित रहे।

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प्रधानमंत्री ने महिला सम्मान बचत प्रमाणपत्र के लिये महिलाओं से नामांकन कराने का आग्रह किया

प्रधानमंत्री मोदी ने महिला सम्मान बचत प्रमाणपत्र (एमएसएससी) के लिये महिलाओं से नामांकन कराने का आग्रह किया है।

प्रधानमंत्री ने केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति इरानी के उस ट्वीट का उल्लेख किया है, जिसमें श्रीमती इरानी ने एमएसएससी के जरिये महिलाओं के वित्तीय समावेश को बढ़ाने और बेहतर लाभ उपलब्ध कराने के बारे में कहा गया है। प्रधानमंत्री ने इस ट्वीट को दोबारा ट्वीट करते हुये कहा :

मैं भी महिलाओं से आग्रह करता हूं कि वे एमएसएससी के लिये नामांकन कराएं। यह हमारी नारी शक्ति के लिये अनेक लाभ प्रदान करता है।”

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डी जी कॉलेज में व्याख्यानमाला के अंतर्गत “बिहेवियरल अप्रोच इन सोशल साइंसेज” विषय पर व्याख्यान अयोजित

कानपुर 29 अप्रैल भारतीय स्वरूप संवाददाता, डी जी कॉलेज, कानपुर के तथा भूगोल विभाग तथा मनोविज्ञान के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित की जा रही व्याख्यानमाला के अंतर्गत आज दिनांक 29 अप्रैल, 2023 को “बिहेवियरल अप्रोच इन सोशल साइंसेज” विषय पर एक व्याख्यान प्रो. जावेद हसन खान, सीनियर प्रोफेसर, भूगोल विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के द्वारा दिया गया। उन्होंने अपने व्याख्यान में छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि व्यवहारवाद, सीखने का एक सिद्धांत है जो बताता है कि सभी व्यवहारों को कंडीशनिंग नामक प्रक्रिया के द्वारा मानव-पर्यावरण के पारस्परिक संबंधों के माध्यम से सीखा जाता है। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय प्राचार्या प्रो. अर्चना वर्मा जी ने दीप प्रज्वलन कर किया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि प्रो जाबिर हसन खान के द्वारा अनुसंधान एवं अकादमिक कार्यों के उन्नयन हेतु किए जा रहे प्रयास एवं उनके बौद्धिक व सामाजिक सोच निश्चित ही भूगोल विषय तथा समाज को एक नई दिशा प्रदान करेगी।
कार्यक्रम का संयोजन भूगोल विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ संगीता सिरोही, धन्यवाद प्रस्ताव मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सुषमा शर्मा व संचालन डॉ अंजना श्रीवास्तव के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में समस्त प्रवक्ताये, डॉ शशि बाला सिंह, डॉ शिप्रा श्रीवास्तव, डॉ वंदना द्विवेदी, डॉ श्वेता गोंड़, डी ए वी कॉलेज से प्रो. अस्थाना, कार्यालय अधीक्षक कृष्णेंद्र श्रीवास्तव समेत सभी शोधार्थियों व छात्राओं की उपस्थिति सराहनीय रहा।

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नगर निगम महापौर पद हेतु बहुजन समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी श्रीमती अर्चना निषाद ने नामांकन कराया

नगर निगम महापौर पद हेतु बहुजन समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी श्रीमती अर्चना निषाद ने नामांकन कराया।

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