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जीवन के सिद्धांतों के बारे में बात करने का समय, बहुत कम लोग ऐसा जीवन जीते हैं: इफ्फी 53 में फिल्म ‘महानंदा’ के निर्देशक अरिंदम सिल

“हम जिस चीज के लिए संघर्ष करते हैं वह भारत के वास्तविक लोगों के लिए है। वे शायद नहीं जानते हैं कि देश का राष्ट्रपति कौन है या कोलकाता या मुंबई कहां है, लेकिन ये भारत के असली लोग हैं।” लेखिका-सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्म ‘महानंदा’ इन शब्दों के पीछे की भावना को जीवंत करती है, जिसके निर्देशक अरिंदम सिल का मानना ​​है कि हर किसी को जीवंत रहना और उत्साह जारी रखना चाहिए।भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) के 53वें संस्करण के भारतीय पैनोरमा – फीचर फिल्म खंड में शामिल बंगाली फिल्म ‘महानंदा’ को महोत्सव के प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

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गोवा में आज इफ्फी टेबल वार्ता/प्रेस कॉन्फ्रेंस में फिल्म महोत्सव के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, निर्देशक अरिंदम सिल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस जटिल समय में इस पर काम करना कितना महत्वपूर्ण है। “यह जीवन के सिद्धांतों के बारे में बात करने का समय है, क्योंकि आजकल बहुत कम लोग वास्तव में सैद्धांतिक जीवन जीते हैं। महाश्वेता देवी उन गिने-चुने लोगों में से एक थीं, जो सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीती थीं। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीना सिखाएं।
तो, ऐसा क्या है जिसने उन्हें फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया? अरिंदम सिल ने कहा, नैतिक जिम्मेदारी की भावना से कम कुछ नहीं। “मैंने महसूस किया कि महाश्वेता देवी जैसी शख्सियत के बारे में बात करना और इसे आगे बढ़ाना हम जैसे फिल्म निर्माताओं की नैतिक जिम्मेदारी है, जिन्होंने सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीया। वह कोई है जिसे हम सब भूलने की कोशिश कर रहे हैं। महाश्वेता देवी को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। हालाँकि, भारत के विश्वविद्यालयों में, हम उनके बारे में बात तक नहीं करते!”

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”तो वह महान कार्यकर्ता जिन सिद्धांतों के लिए जीती थीं, जिसने अब उनकी कहानी को बताना एक नैतिक अनिवार्यता बना दिया है? महाश्वेता देवी की जीवन गाथा का वर्णन करते हुए अरिंदम सिल बताते हैं कि उनकी यह कहानी अमीर से फकीर बनने की कहानी है। “एक पूंजीवादी परिवार से आने और एक कम्युनिस्ट परिवार से शादी करने के बाद, सिद्धांतवादी महिला ने अपने पति और कम्युनिस्ट नाटककार बिजन भट्टाचार्य को छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता किया और जीवन में अच्छा करने के लिए तुच्छ फिल्म पटकथा लिखीं। उन दिनों महाश्वेता देवी ने अपने पति और बच्चे को छोड़ने का साहस दिखाया था। मानसिक पीड़ा के चलते उसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। लेकिन वह बच गई और इस देश की अब तक की सबसे बड़ी सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक बन गई!

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निर्देशक ने जोर देकर कहा कि महाश्वेता देवी का पूरा जीवन उन लोगों के लिए लड़ने के लिए समर्पित रहा, जिन्हें वह भारत के वास्तविक लोगों के रूप में संदर्भित करती थीं। “इस देश में किसी ने भी आदिवासियों – साबर और मुंडाओं के लिए काम नहीं किया है – जैसा उन्होंने किया। मेधा पाटेकर और महाश्वेता देवी एक साथ कामरेड की तरह थीं। महाश्वेता देवी ने कहा था: ‘हम जिस चीज के लिए संघर्ष करते हैं, वह भारत के असली लोगों के लिए है। वे नहीं जानते कि देश का राष्ट्रपति कौन है या कोलकाता या मुंबई कहां है, लेकिन ये भारत के असली लोग हैं। ‘ अपने आखिरी दिन तक, वह संघर्ष करती रही और काम करती रही और उन लोगों के बारे में बात करती रही जिन्हें हम पिछड़ा वर्ग कहते हैं। लेकिन ये वे लोग थे जो वास्तव में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले भारतीयों में सबसे आगे थे।” निर्देशक ने कहा, “महाश्वेता देवी को बड़े पैमाने पर लोगों ने फॉलो किया; उन्हें आदिवासी क्षेत्रों में भगवान के रूप में माना जाता है।” उन्होंने कहा कि हमने फिल्म में इन सभी तथ्यों को सामने लाने की कोशिश की है। निर्देशक ने जोर देकर कहा कि फिल्म का फोकस महाश्वेता देवी की बात करना था। वह नहीं चाहते थे कि बायोपिक सिर्फ साहित्य अकादमी विजेता व रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता महाश्वेता देवी के बारे में बताए, बल्कि भारत के वास्तविक लोगों के लिए उनके वास्तविक संघर्षों के बारे में बताए। अरिंदम सिल ने बताया, तो, जैसा कि फिल्म के शीर्षक से पता चलता है? “महानंदा नदी की तरह, उनके सिद्धांतों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रवाहित होना चाहिए।” संयोग से, फिल्म के संगीत निर्देशक पंडित बिक्रम घोष हैं, जिन्हें कल संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इफ्फी टेबल वार्ता के लिए अरिंदम सिल के साथ शामिल होने वाले कलाकार ने बताया कि संगीत की दृष्टि से यह परियोजना एक चुनौतीपूर्ण काम था। चुनौतियों में प्रमुख थी उस निरंतर भयावहता को सामने लाना, जिससे फिल्म ओतप्रोत थी। “फिल्म में त्रासदी, मृत्यु, दुःख और जीवन के अप्रत्याशित झटके को दिखाया गया है, जिससे उनका जीवन काफी प्रभावित था।
संगीत निर्देशक ने कहा कि इसको बाहर लाने के लिए पूरी तरह से आदिवासी संगीत बैकग्राउंड स्कोर का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने कहा “उस भयावहता को फिल्म में पूरी तरह से आदिवासी स्कोर के साथ जोड़ा गया है। गाने सभी आदिवासी हैं। सुबीर दासमुंशी द्वारा लिखे गए गीत मुंडा जनजाति की भाषा में हैं। हमने ढोद्रो बनम और हड्डी की बांसुरी जैसे उनके वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया है।” हालाँकि, आदिवासी संगीत के बजाय शास्त्रीय संगीत और राग का उपयोग उस हिस्से को चित्रित करने के लिए किया गया है जहाँ उनके पैतृक परिवार को दिखाया गया है, जो उस समय समाज में बहुत ऊँचे थे। बिक्रम घोष ने बताया कि कैसे फिल्म की गैर-रैखिक संरचना को ध्यान में रखते हुए संगीत के दो रूपों को आपस में जोड़ा गया है। “वहां एक दृश्य है जहां महाश्वेता देवी 25 साल की हैं, और उसके ठीक बाद, कैमरा 75 वर्षीय महाश्वेता देवी को दिखाने के लिए पैन करता है। इसलिए, दृश्य के साथ जाने के लिए संगीत को एक साथ जोड़ना पड़ा। बिक्रम घोष ने फिल्म की संगीत यात्रा के बारे में बताते हुए कहा: “यह एक कठोर यथार्थ व वास्तविकता है। इसलिए संगीत को यथार्थपरक होना था, जिसके लिए मुझे संथाल और मुंडा जनजातियों के संगीतकार मिले, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संगीत असली लगे।”

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अरिंदम सिल ने इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए इफ्फी की सराहना की कि क्षेत्रीय फिल्म निर्माता वास्तव में भारतीय सिनेमा को विभिन्न भारतीय भाषाओं में बना रहे हैं। “हम वास्तव में छोटे बजट के साथ बड़ा सिनेमा बना रहे हैं।” 30 साल से 75 साल की उम्र की महाश्वेता देवी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री गार्गी रॉयचौधरी ने कहा कि उन्होंने महाश्वेता देवी की यात्रा को महसूस किया और उनके किरदार को निभाने का आनंद लिया।

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इफ्फी-53 में सदाबहार क्लासिक फिल्म ‘कटी पतंग’ का प्रदर्शन आशा पारेख को अतीत की स्मृतियों में वापस ले गया

प्यार दीवाना होता हैमस्ताना होता है

हर खुशी से हर ग़म सेबेगाना होता है”

किशोर कुमार की दिव्य आवाज और राजेश खन्ना का दमदार चरित्र एक बार फिर इस सदाबहार गीत के साथ पणजी के मैकिनेज पैलेस ऑडिटोरियम के पर्दे पर जीवंत हो उठा, और ये दर्शकों के लिए एक सुनहरा क्षण था। गुजरे जमाने की अभिनेत्री और दर्शकों के दिल की धड़कन आशा पारेख, जिन्होंने इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाया और इस गाने में भी नजर आई थीं, उनके लिए फिल्म कटी पतंग की स्क्रीनिंग में उपस्थित होना दिल को छू लेने वाले पलों से भरे अतीत की स्मृतियों की लौट जाने जैसा था। 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड रेट्रो सेक्शन में कटी पतंग को प्रदर्शित किया गया था। इफ्फी का ये खंड इस वर्ष आशा पारेख को समर्पित है जो साल 2020 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की विजेता हैं।

इस स्क्रीनिंग में भाग लेते हुए और इस महोत्सव के प्रतिनिधियों से बातचीत करते हुए आशा पारेख ने कहा कि बीते वर्षों में इफ्फी बहुत बड़ा हो गया है और ये निर्माताओं को अपनी फिल्मों को प्रदर्शित करने और बेचने का अवसर देता है। उन्होंने कहा, “मुझे अपनी फिल्म इंडस्ट्री से प्यार है। फिल्म प्रेमियों के लिए इफ्फी सबसे अच्छी जगह है, क्योंकि यहां देश भर के लोग एक साथ आते हैं। आशा पारेख ने सम्मानित किए जाने के लिए इफ्फी, एनएफडीसी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को धन्यवाद दिया।

कई सुपरहिट फिल्मों में काम कर चुकीं आशा पारेख को प्यार से 1960 और 70 के दशक में हिंदी सिनेमा की ‘हिट गर्ल’ कहा जाता था। एक बाल कलाकार के रूप में शुरुआत करने वाली आशा पारेख की डेब्यू फिल्म दिल देके देखो (1959) थी, जो एक बड़ी हिट बन गई जिसने उन्हें स्टारडम की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। उन्होंने 95 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें कुछ तब के शीर्ष फिल्मकारों और उस समय के प्रमुख कलाकारों के साथ थीं, जैसे कि – शक्ति सामंत, राज खोसला, नासिर हुसैन, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, शम्मी कपूर, मनोज कुमार, देव आनंद और कई अन्य। उन्होंने कटी पतंग (1971) के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता और कई अन्य प्रतिष्ठित सम्मानों के साथ फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड (2002) भी पाया। आशा पारेख एक फिल्म निर्देशक, निर्माता और कुशल भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना भी हैं।

पद्म श्री (1992) से सम्मानित आशा पारेख ने 1998-2001 के दौरान केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के प्रमुख के रूप में भी काम किया।

शक्ति सामंत द्वारा निर्देशित कटी पतंग, गुलशन नंदा के इसी शीर्षक वाले सबसे अधिक बिकने वाले उपन्यास पर आधारित थी। इस फिल्म में केंद्रीय पात्र माधवी (आशा पारेख) कमल (राजेश खन्ना) के साथ अपनी शादी के दिन घर से दूर पतंग की तरह कट कर उड़ जाती है, लेकिन आगे उसे अपने ‘प्रेमी’ कैलाश (प्रेम चोपड़ा) के नापाक इरादे पता चलते हैं। परिस्थितियां माधवी को मजबूर कर देती हैं और उसे एक घर में शरण लेनी पड़ती है और उस घर की बहू होने का नाटक करना पड़ता है। असली बहू पूनम (नाज़) की रेल दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, लेकिन मरने से पहले वो अपने बच्चे को माधवी के हाथों सौंप जाती है। आगे फिल्म की कहानी माधवी की जिदंगी दिखाती है, कैसे वो एक झूठी पहचान के साथ जीने लगती है। संगीतकार आरडी बर्मन और सुपरस्टार राजेश खन्ना को एक साथ लाने के लिए भी इस फिल्म को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इस फिल्म में ‘ये शाम मस्तानी’, ‘प्यार दीवाना होता है’ और ‘ये जो मोहब्बत है’ जैसे सदाबहार मधुर हिट गानों का संग्रह सुनने को मिलता है।

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प्रदूषण…. एक गंभीर समस्या ~प्रियंका वर्मा महेश्वरी

प्रदूषण सिर्फ मल, कचरा, सीवर लाइनों का बहना या यहां वहां पानी का जमा होना ही नहीं है बल्कि ऐसे तमाम कारक है जो प्रदूषण के दायरे में आते हैं और उनसे बचने का उपाय, उन्हें सुधारना, स्वच्छ रखना आज की मुख्य जरूरत है। भागमभाग वाली जीवनशैली, समयाभाव, कम समय में ज्यादा सुविधाओं की उपलब्धता और प्रकृति के प्रति लापरवाही ऐसे कारक हैं जो वातावरण में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं और इसी वजह से प्राकृतिक वातावरण में प्रतिकूल परिवर्तन हो रहा है। वातावरण में फैले हानिकारक तत्व से अनजाने में ही व्यक्ति उनका शिकार होते जा रहा है, फलस्वरुप सांस की बीमारी, हृदयाघात, एलर्जी, कैंसर जैसी बीमारियांज्यादा पनप रही हैं। आज सड़कों पर नजर घुमायें तो दो चक्के और चार चक्कों से भरी हुई सड़कें दिखाई देंगी। अक्सर पैदल यात्रियों के चलने के लिए जगह भी कम पड़ जाती है और तो और इस समस्या से निजात पाने के लिए फ्लाईओवर बना दिए जा रहे हैं जो समस्या का कुछ हद तक निदान तो कर देता है लेकिन जगह का दायरा धीरे धीरे कम होते जा रहा है, खुलापन खत्म होते जा रहा है। साथ ही ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण को भी बढ़ावा मिल रहा है। बड़ी-बड़ी मिलों से और कारखानों से निकलता हुआ धुआं सिर्फ बीमार ही नहीं करता बल्कि प्रकृति को भी नुकसान पहुंचाता है। घने शहरीकरण और औद्योगिकरण के कारण ध्वनि प्रदूषण आम हो गया है और इसकी वजह से बहरापन, नींद विकार, बीपी की समस्या जैसी बीमारियां आम हो गई है। बात जब प्रदूषण की निकली है तो जल प्रदूषण को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कहते हैं कि जल ही जीवन है और यही जीवनदायिनी जल अब दूषित जल में परिवर्तित हो गया है। मुझे याद नहीं आता कि बचपन में हमने कभी आर ओ का पानी या बिसलेरी का पानी पिया हो। सीधे नगरपालिका का पानी ही पीने के काम में और घर के कामकाज में इस्तेमाल किया जाता था। कहीं सफर पर भी जा रहे हों तो स्टेशन पर लगे नल से ही पानी भरकर काम चल जाता था लेकिन अब स्वच्छ हवा, पानी सब बिकने लगा है। आर ओ या फिल्टर पानी पीने से व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमजोर होता जा रहा है लेकिन आज इसके अलावा कोई पर्याय भी नहीं बचा है। सबसे बड़ी समस्या तब आती है जब पानी निकासी की व्यवस्था सही ढंग से नहीं हो पाती है। बारिश से जमा हुआ पानी, सीवर लाइनों और गटर का भरा हुआ होना, जहां तहां लीकेज यह प्रशासन की अव्यवस्था दर्शाती है और साथ ही बीमारियों को न्योता भी देती है। नदियों को स्वच्छ करने का अभियान काफी समय से चल रहा है लेकिन गंगा अभी तक दूषित है। कुछ ऐसी चीजों जिनका दैनिक जीवन में बहुत महत्व है लेकिन साथ ही वह जीवन के लिए हानिकारक भी है मसलन पॉलिथीन, प्लास्टिक से बनी चीजें, बॉटल यह जितनी सुविधाजनक है उतनी ही नुकसानदेह भी होती हैं। मुझे याद है कि बचपन में हमारे घरों में सामान लाने के लिए कपड़े की थैली का इस्तेमाल किया जाता था। दूध, छाछ, घी लाने के लिए बरनियों का इस्तेमाल किया जाता था, आज की तरह प्लास्टिक का इस्तेमाल नहींहोता था। लोगबाग सफाई के लिए भी जागरूक नहीं दिखाई देते हैं। पहले सड़कों पर सफाई कर्मचारी रोज सुबह झाड़ू लगाते थे लेकिन अब कर्मचारी गायब दिखते हैं। कचरा उठाने वाली गाड़ियाँ दो दो दिन तक गायब रहतीं हैं। जनता जनार्दन भी कचरा फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। आज बहुत जरूरत है कि प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए यातायात के कुछ नियम बनाए जायें। नदियों का जल स्वच्छ किया जाए ताकि आर ओ या फिल्टर का पानी पीने से बचा जा सके और पानी की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। प्रकृति की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए वरना उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है प्राकृतिक आपदाओं के रूप में। दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां इस समय सबसे ज्यादा प्रदूषण फैला हुआ है, और यह सरकार की विफलता और अव्यवस्था ही है कि हम प्रदूषण के इस भयानक मंजर पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली वाले एक बार फिर से नजर बंद हो गए। दिल्ली में ए क्यू आई (गुणवत्ता सूचकांक) लेवल के खतरनाक स्तर तक पहुंचने के बाद सख्त नियम लागू किए गए थे जिसका प्रभाव आम नागरिकों को रोजगार और आर्थिकी रूप से चुकाना पड़ा। प्रदूषण स्तर में बढ़ोतरी के मद्देनज़र दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने शहर में BS-4 डीजल और BS-3 पेट्रोल गाड़ियों पर रोक लगाई थी। साथ ही लोगों को एक बार फिर से वर्क फार होम के लिए आदेश मिल गए थे। स्कूल कॉलेज बंद हो गए थे, फिर से ऑनलाइन क्लासेस शुरु हो गई थी। ऐसे में बच्चे क्या अपनी शिक्षा के साथ न्याय कर पाएंगे? और पराली जैसी गंभीर समस्या का स्थाई हल क्यों नहीं निकाला जा रहा?

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गंगा वाटर रैली,कानपुर से प्रयागराज तैयारी हेतु नदी मार्ग के रेकी दल अटल घाट से रवाना

गंगा वाटर रैली की तैयारी तथा नदी मार्ग के सर्वे के लिए , आयुक्त कानपुर मंडल डाक्टर राजशेखर ने हरी झंडी दिखाकर रेकी दल को रवाना किया।इस अवसर पर
पुलिस उपायुक्त विजय ढुल, मुख्य वन संरक्षक, आयुक्त शिव शर्राप्पा मुख्य विकास अधिकारी सुधीर कुमार, समन्वयक तथा सचिव नीरज श्रीवास्तव , अपर जिलाधिकारी वित्त ज्वाइंट मजिस्ट्रेट,तथा सिंचाई विभाग के अधिकार मौजूद रहे।
इस अवसर पर आयुक्त डाक्टर राजशेखर ने बताया कि।कानपुर से प्रयागराज तक कि प्रस्तावित रैली का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक गंगा नदी हैबिटेट का संरक्षण,गंगा नदी तट पर रोमांचक नदी पर्यटन का विकास को बढ़ावा देना है।

कानपुर बोट क्लब के प्रस्तावित उद्घाटन कार्यक्रम के साथ , नवंबर के चतुर्थ सप्ताह मे प्रस्तावित गंगा वाटर रैली कानपुर से प्रयागराज के आयोजन से पूर्व कानपुर से प्रयागराज तक नदी मार्ग के सर्वे तथा समस्त मध्य मार्गिय जनपदों के गंगा तटों पर रैली के आगमन स्थलों में आयोजनों के लिए आवश्यक व्यवस्थाओं का निरीक्षण हेतु एक रेकी दल गंगा नदी के रास्ते ,जिसमे सैतीसवी वाहिनी पी ए सी कानपुर के प्लाटून कमांडर वीरेंद्र कुमार ,,शिव कुमार,सत्य प्रकाश, संतोष कुमार तथा
बीसवीं वाहिनी पी ए सी आजमगढ़ के प्लाटून कमांडर राम निरंजन तथा उत्तर प्रदेश कयाकिंग कनोइंग एसोसिएशन के धवन कुशवाहा साथ चल है,।
दूसरा रेकी दल सड़क मार्ग से रवाना हुआ जिसका नेतृत्व , देव पाल सिंह, सचिव उत्तर प्रदेश कयाकिंग कनोइंग एसोसिएशन तथा बोट क्लब अधिकारी प्रयागराज कर रहे हैं।
कानपुर के विकास कार्यों के समन्वयक और कानपुर बोट क्लब के सचिव नीरज श्रीवास्तव ने बताया गंगा वाटर रैली जिसमे लगभग 50 खिलाड़ी प्रतिभागी तथा लगभग 30 अन्य टीम मैनेजर इत्यादि होंगे ।
गंगा वाटर रैली, पहला पड़ाव बक्सर जिला उन्नाव, दूसरा पड़ाव, डलमऊ जिला रायबरेली, तीसरा पड़ाव कालाकांकर जिला प्रतापगढ़, चौथा पड़ाव श्रृंगवेरपुर जनपद प्रयागराज पांचवां अंतिम पड़ाव प्रयागराज बोट क्लब प्रयागराज होगा।
पांच दिवसीय गंगा रैली के आयोजन से पूर्व नदी मार्ग का
सर्वे आवश्यक होता है इसमें नदी के रास्ते गंगा धारा का रूट,पानी का बहाव , पानी की गहराई,और प्रत्येक सेक्शन के बीच में अल्प विश्राम के स्थल देखे जायेंगे।
सड़क मार्ग से जाने बाला रेकी दल, प्रत्येक जनपद के पड़ाव मे
रैली दल तथा अधिकारियों, तकनीकी दल के रुकने का,स्थल सांस्कृतिक कार्यक्रमआयोजन स्थल तथा व्यवस्थाएं, नदी तट की सफाई, सड़क से घाट के मार्ग की स्थिति इत्यादि देखेगे। डाक्टर राजशेखर ने बताया कि,मध्य मार्गिया जनपद उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़, तथा प्रयागराज जनपदों के जिलाधिकारियों ने अपने अपने जनपद के संबंधित उपजिलाधिकारी,तथा पुलिस क्षेत्राधिकारी को निर्देश दे दिए हैं, उन्होंने बताया की, जिलाधिकारियों से समन्वय नीरज श्रीवास्तव कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि सभी जनपदीय अधिकारियों से समन्वय हो गया है संबंधित अधिकारी रेकी दल के आगमन पर घाट पर उपस्थित रहेंगे और सभी अपेक्षित व्यवस्थाएँ सुनिश्चित करेंगे।

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मोतियों का शहर….. हैदराबाद

सफर की शुरुआत अगर अच्छी हो तो पूरा सफर अच्छा बीतता है और सफर में उत्साह भी बना रहता है। जब हम हैदराबाद घूमने के लिए रवाना हुए तो कुछ ऐसा ही उत्साह और मंजिल पर पहुंचने की बेचैनी हमारे सफर को खुशनुमा बनाए हुए थी। हमारी यात्रा की मंजिल हैदराबाद से ढाई सौ किलोमीटर कुरनूल के पास स्थित श्रीशैलम में स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर था। गोल पहाड़ियों वाला रास्ता बहुत रोमांचक था। सधे हुए हाथों से गाड़ी चलाना आसान नहीं था, हर समय एक डर बना रहता था किसी दुर्घटना का। श्रीशैलम पहुंचने का रास्ता पैदल नहीं है, आपको या तो बस, टैक्सी करनी पड़ती है या फिर खुद का वाहन रखना पड़ता है।रास्ता घने जंगल से होकर गुजरता है। रास्ते भर बंदरों का जमघट दिखाई पड़ता है और रात में वापसी की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। जंगली जानवरों का डर, अंधेरा और खतरनाक रास्ते रात में गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं देते।

श्रीशैलम पहुंचने के बाद हम होटल में रूकने के बजाय मंदिर के प्रांगण में ही रुके और वहां प्रकृति और मंदिर की सुंदरता का आनंद लेने लगे। मंदिर में दर्शन का समय सुबह 6:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और शाम को 5:00 से 6:00 बजे तक रहता है। शीघ्र दर्शन के लिए रूपया महत्वपूर्ण तो हो ही गया है। बिचौलियों ने अपनी घुसपैठ हर जगह बना रखी है। बहरहाल हम सादी लाइन में खड़े हो गये और कुछ देर बाद करीब 4:30 बजे के आसपास मंदिर का दरवाजा खुला और हम सब अंदर जाने लगे। अंदर पड़ी हुई बेंच पर बैठकर बाबा के दर्शन का इंतजार करने लगे। कुछ समय बाद बाबा के दर्शन के लिए धीरे-धीरे भीड़ छोड़ी जाने लगी। यह सत्य है कि ईश्वर के सामने अमीर गरीब सब एक समान हो जाते हैं। उस समय भी ऐसा ही था। बाबा के दर्शन के समय शीघ्र दर्शन वालों की लाइन और आम लोगों की लाइन सब मिलकर एक हो गए और सभी दर्शनार्थी एक साथ दर्शन लाभ ले रहे थे। सबसे अच्छी बात यह लगी की भीड़भाड़ होने के बावजूद सब लोग एक जगह पर बैठे हुए थे और थोड़ी-थोड़ी देर से लोग दर्शन के लिए भेजे जा रहे थे। सावन के महीने में यहाँ बहुत ज्यादा भीड़ रहती है। बाबा का फूलों से श्रंगार देखकर मेरी नजर हट ही नहीं रही थी अगर मन में कुछ मांगने की इच्छा हो तो शायद वह भी भूल जाते हैं बाबा को देख कर। सिर्फ सुंदर अलौकिक रूप दर्शन ही दिखाई देता है।
उसके बाद हम लोगों ने मां पार्वती के दर्शन किये। दक्षिण संस्कृति की छाप के कारण मंदिर का एक अलग सौंदर्य देखने को मिल रहा था। मल्लिकार्जुन मंदिर की स्थापत्य कला ने मुझे बहुत आकर्षित किया। पुराने पत्थर, पुराना ढांचा, पुराने खंभे और उन पर बनी आकृति कहीं कोई नवनिर्माण नहीं। मैं कुछ देर तक मंदिर की बनावट और पत्थरों को देखती रही। वहाँ की स्थानीय भाषा तेलुगु होने के कारण लोग क्या बोलते थे वह समझ से बाहर था लेकिन जरूरत पड़ने पर वह लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते थे।
ऐसा माना जाता है कि शैल पर्वत पर स्थित होने के कारण इसे श्रीशैलम पर्वत भी कहते हैं। शिवपुराण के आधार पर मल्लिकार्जुन का अर्थ मल्लिका मां पार्वती और अर्जुन भगवान शिव को माना गया है मल्लिकार्जुन की कहानी शिव पार्वती के पुत्र गणेश और कार्तिकेय की कहानी है जो गणेश जी अपने माता-पिता की परिक्रमा पूरी करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जब गणेश जी के परिक्रमा पूरी करने पर कार्तिकेय जी नाराज हो गये तो माता पार्वती भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर कार्तिकेय जी को मनाने पहुंची। माता पिता के आगमन को सुन कार्तिकेय जी बारह कोस दूर चले गए, तब भगवान शिव वहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से वह स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हो गया। ऐसा कहा जाता है कि वहां पर पुत्र स्नेह में माता पार्वती हर पूर्णिमा और भगवान शिव हर अमावस्या को आते हैं।
इसके बाद हम सब रामोजी सिटी घूमने गए। रामोजी सिटी घूमने में पूरा दिन लग गया। मुझे सबसे ज्यादा अच्छा रामोजी सिटी का प्रबंधन लगा। हर व्यवस्था बहुत कायदे से की गई थी और घूमने आए पर्यटकों का ध्यान भी बहुत अच्छे से रखा जा रह था। कई प्रोग्राम जो मूवी से ही जुड़े हुए थे जिससे यह पता चलता है कि कार्टून कैसे बनते हैं, मूवी कैसे बनती है इसकी जानकारियां दी गई थी। जिसे जानकर आप आश्चर्य करेंगे। नई – पुरानी फिल्मों के सेट देखे बाहुबली, केजीएफ, आरआर, पुष्पा जैसी मूवी के सेट देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। बाहुबली का सेट जब देखा तो महसूस हुआ कि व्यक्ति मूवी देखने में इतना गुम जाता है कि पीछे लगा सेट जिसमें हाथी घोड़े हिल रहे हैं या नहीं वह भी मालूम नहीं पड़ता। वैसे भी तकनीकी दौर है और अब सबकुछ टेक्निकल हो गया है। रामोजी में ही हम लखनऊ, आगरा, मुंबई, दिल्ली, लंदन, रेलवे स्टेशन, ताजमहल वगैरह वगैरह सब घूम लिए। रामोजी सिटी 2,500 एकड़ में डिज़ाइन किया गया है, इसे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा दुनिया के सबसे बड़े स्टूडियो कॉम्प्लेक्स के रूप में प्रमाणित किया गया है।
बर्ड पार्क, एडवेंचर पार्क, जापानी गार्डन, मुगल गार्डन, सन फाउंटेन गार्डन और एंजल्स फाउंटेन गार्डन मुख्य आकर्षण हैं। वाइल्ड वेस्ट स्टंट शो, रामोजी स्पिरिट और कई तरह के स्ट्रीट इवेंट जैसे आकर्षक और रोमांचकारी लाइव शो हैं।
उसके बाद हम सालार जंग म्यूजियम जो हैदराबाद का इतिहास बयां करता है। म्यूजियम की जैपनीज गैलरी बहुत सुंदर है। पुराने गहने, बर्तन, हाथी को पहनाने वाले गहने, हथियार वगैरह सब कुछ बहुत दिलचस्प था। म्यूजियम में चीन, जापान, ईरान, पर्शिया और भारतीय सभ्यताओं का मिलाजुला इतिहास दिख रहा था।
बात करती हूँ अब चारमीनार की… चारमीनार यूं तो बहुत खूबसूरत दिखता है लेकिन वहां फैला हुआ बाजार उसकी सुंदरता को खत्म कर रहा है। चारमीनार हैदराबाद का सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण का केंद्र है। यह स्मारक 1591 में मोहम्मद कुली कुतुब शाह द्वारा बनाया गया था और इसका नाम चारमीनार रखा गया था। इसे ‘पूर्व का आर्क डी ट्रायम्फ’ भी कहा जाता है। चारमीनार की ऊपरी मंजिल पर एक छोटी सी मस्जिद है। शाम की रोशनी इसे देखने लायक बनाती है। चारमीनार भीड़-भाड़ वाले इलाके में खड़ा है, जहां बाजार अस्त-व्यस्त हैं, जहां फेरीवाले, चूड़ी बेचने वाले और खाने-पीने की दुकानें हैं। फिर भी, यह हैदराबाद में एक लोकप्रिय यात्रा स्थल बना हुआ है।
इसके बाद हम सब सेवेन टोमब्स देखने गये। सात मकबरे काफी बड़े एरिया में फैला हुआ है और मैं दो ही मकबरे तक घूम सकी क्योंकि मेरे पैरों ने जवाब दे दिया था। मैंने वहां पर लोगों को पिकनिक मनाते हुए देखा। वो जगह हैदराबाद की विरासत को अब भी संभाले हुए हैं। कुतुब शाही मकबरा कुतुब शाही शासकों का शाही कब्रिस्तान है।
फिर निजाम पैलेस दिखा जो अब होटल के रूप में तब्दील हो चुका है। रास्ते से गुजरते हुए धूलपेट नाम की एक जगह थी। जिसके बारे में मालूम हुआ कि वहां पर मौजूद मस्जिद जिसमें एक मंदिर भी है जहां दोनों समय आरती और नमाज होती है और मस्जिद के बाहरी हिस्सों में लगी दुकानों में पूजा की सामग्री मिलती है। कहीं कोई बैरभाव नहीं दिखता। यह भाईचारा देखकर दिल बहुत खुश हो गया और अच्छा भी लगा कि अब भी ऐसी जगह मौजूद है।
हैदराबाद के खास पर्यटन स्थलों में गोलकुंडा किला बहुत मशहूर है। 170 सालों तक यहां के निजाम ने गोलकुंडा पर शासन किया। गोल आकार का किला, हैदराबाद का एक दर्शनीय पर्यटन स्थल है। किला 300 फीट की ग्रेनाइट पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। 87 बुर्जों के साथ गोलकुंडा किले में मंदिर, मस्जिद, महल, हॉल, अपार्टमेंट और अन्य संरचनाएं हैं। शानदार डिजाइन के साथ-साथ यह किला अपनी ध्वनि से भी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। हमलों के दौरान राजा को सचेत करने के लिए किले को एक किलोमीटर की दूरी तक ध्वनि ले जाने के लिए बनाया गया था। गोलकुंडा खदानें अपने हीरे जैसे कोहिनूर, नासक डायमंड और होप डायमंड के लिए भी प्रसिद्ध हैं। गोलकुंडा का किला शहर के बाकी हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। किले के ऊपर से सूर्यास्त देखने लायक होता है।
फिर वहां का संघी मंदिर हैदरबाद के बाहरी क्षेत्र संघी नगर में स्थित है। यह मंदिर ऊंचे बने राजा गोपुरम के लिए जाना जाता है, जो कि स्थानीय लोगों के बीच काफी पवित्र है। अपनी ऊंचाई के कारण गोपुरम को काफी दूर से भी देखा जा सकता है। यह मंदिर सुंदर ढंग से परमानंद गिरि नामक एक छोटी सी पहाड़ी पर बना है। मंदिर की बनावट विशिष्ट दक्षिण भारतीय वास्तुशिल्प की याद दिलाती है। यहां हर साल हजारों की तादाद में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने आते हैं। मंदिर में पत्थर से बने एक हाथी से खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। संघी मंदिर में कुल तीन गोपुरम है, जिसे देखकर लगता है कि यह आसमान को छू रहा है।
उसके बाद हम सब चिल्कुर मंदिर गये। वहाँ बालाजी को वीजा देने वाले भगवान भी कहते हैं। इस विश्वास की जड़ें एक घटना की जानकारी के रूप में मिलती हैं जब कुछ छात्र जिनके वीज़ा का आवेदन खारिज कर दिया गया था, वो यहाँ मंदिर में आए और प्रार्थना की कि केवल उनके आवेदन स्वीकार किए जाएं। खास बात यह है कि यह मंदिर किसी भी तरह का धन या दान स्वीकार नहीं करता है और यहाँ भगवान के दर्शन करते समय आंखें बंद नहीं की जाती है। यह बहुत पुराना मंदिर है और अभी भी अपनी वास्तविकता को बरकरार रखे हुए है।
इसके बाद नंबर बिड़ला मंदिर का जो अपने आप में बहुत खूबसूरत है। शांत वातावरण और बालाजी को देखकर शांति महसूस की। प्रभू का चेहरा निहारना अत्यंत सुखद लगा।
कोई भी घुमक्कड़ी हो बिना खरीदारी के पूरी नहीं होती। हैदराबाद को मोती की नगरी भी कहते हैं। तरह तरह के आकर्षक मोती के गहने मन को लुभाते हैं। लाख की चूड़ियाँ, मोजड़ी और हैदराबाद की पोचमपल्ली साड़ी बहुत मशहूर है। हैदराबाद एक ऐसा शहर है जो अपनी पारंपरिक संस्कृति के लिए जाना जाता है और वह संस्कृति निज़ामी विशेष खानपान की चीजों में दिखती है। खानपान में हैदराबादी बिरयानी, ईरानी चाय बहुत मशहूर है।

~प्रियंका वर्मा महेश्वरी 

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विराट स्वरूप में मना “कोहली” का जन्मदिन , राहगीरों को मिठाई खिलाकर बोले हैप्पी बर्थडे चीकू , टी 20 वर्ल्ड कप जीतने की हुई कामना

कानपुर 5 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता क्रिकेट प्रेमियों में किंग कोहली के नाम से मशहूर भारत की शान विराट कोहली का जन्मदिन आज कानपुर में धूमधाम से मनाया गया । भरत स्ट्राइकर क्रिकेट क्लब की ओर से हुए इस आयोजन में 34 किलो मिठाई बांटकर “कोहली” का विराट स्वरूप में 34 वां जन्मदिन मनाया गया । किसी के हाथों में विराट कोहली का पोस्टर तो कोई क्रिकेट का बैट लिए था । कोई मिठाई खिला रहा था तो कोई क्रिकेट पैड और ग्लब्स लिए हुए था । ” हैप्पी बर्थ डे विराट कोहली ” के सुरों के बीच क्रिकेट प्रेमियों ने राहगीरों को मिठाई खिलाकर एक दूसरे को बधाई दी । कार्यक्रम के दौरान विराट कोहली के दीर्घायु की कामना के साथ ही टी 20 वर्ड कप में भारत के विजेता होने की प्रार्थना भी की । कहां गया कि विराट कोहली ने अपने प्रतिभा के दम पर पूरे विश्व में भारत का गौरव बढ़ाया है । कई मैच में तो अकेले विराट के खेल से भारत को जीत मिली है । टी 20 वर्ड कप में इंडिया-पाकिस्तान के मैच हुए कांटे के मैच में विराट ने अकेले दम पर भारत को जीत दिलाई थी । विराट ने अपने खेल से यह साबित कर दिया कि विराट का व्यक्तित्व “विराट” है । इस मौके पर भारतेंदु पुरी , विपिन वर्मा , सुनील गुप्ता प्रशांत पुरी , शारदा प्रसाद साहू , कुशाग्र सक्सेना , गौरव श्रीवास्तव , पवन साहू सहित अन्य क्रिकेट प्रेमी मौजूद थे ।

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आप को देखा तो इक कमी का अहसास हुआ

साँची तुम वहाँ अकेली कंयू बैठी हो ? जब से आई हो चुप सी हो।रेवा ने सांची को कहा।साँची बोली,नहीं ऐसा कुछ नहीं रेवा ! तुम लोग बैठो।मैं शायद थकी हूँ।मैं रूम में जा रही हूँ।शायद सफ़र की थकान थी या कुछ और।साँची इक माध्यम परिवार में रहने वाली ,संस्कारों से परिपूर्ण और सादगी की बेमिसाल प्रतिमा थी।कोई भी उसे देखें तो उसके व्यक्तित्व का दीवाना हो जाता।हर शाम साँची रेवा के छोटे भाई को पढ़ाने ज़ाया करती थी,मगर इक शख़्स ऐसा भी था वहाँ।रेवा का बड़ा भाई मुकेश सिंघानिया, जो अच्छा बिज़नेसमैन तो था ही ,शहर के जाने माने इंडस्ट्रियलिस्ट में उसका नाम जाना जाता था।पार्टियो में उठने बैठने का शौक़ीन ,अपनी मर्ज़ी का मालिक था वो।आते जाते कभी कभार साँची से आमना सामना होता तो हैलो !हाय हो ज़ाया करती।रेवा अक्सर हंसी में छेड़ भी दिया करती,ये कह कर ,कि उसका भाई उसे पसंद करता है।मगर साँची इस बात को इक मज़ाक़ से ज़्यादा कुछ न समझती।दोनों का व्यक्तित्व इक दूजे से बिलकुल अलग सा था,मगर दोनों ही इक दूजे के लिये इक खिंचाव सा महसूस करते।साँची को खुद नहीं पता था कि मुकेश के सामने आते ही उसके शरीर में कंपन, इक सरसराहट सी कंयू हो ज़ाया करती है। रात गहरी हो रही थी।ठीक साँची की उदासी की तरह। इक गहरी साँस भर साँची बोझिल कदमों से होटल के कमरे की तरफ़ चल पड़ी।ठण्ड बहुत होने की वजह से रूम में आ कर सीधे काफ़ी बनाई और पास पड़ी किताब उठा कर फ़ायर प्लेस के पास बैठ कर पढ़ने लगी।जैसे मन को कहीं और लगाने की कोशिश में थी।बस दो ही पन्ने मुश्किल से पढ़ पाई।किताब हाथ में तो थी मगर साँची कहीं और ही थी।किताब में जैसे मन नहीं लग रहा था। कल रात की अपनी ही चीखें उसे अपने कानों में सुनाई दे रही थी।आँखों के सामने वही नजारा बार बार आ रहा था जिसे वो कब से झुठलाने की कोशिश कर रही थी।उसे याद आ रहा था कि कल रात ,जब वो आदि को पढ़ाने गई तो बारिश बहुत ज़ोरों पर थी।साँची जैसे ही आदि के घर पहुँची।सब को वहाँ न पा कर गेट से वापिस जाने लगी तो इतने में मुकेश की गाड़ी आ गई।मुकेश गाड़ी से निकल कर लड़खड़ाते हुए गिरने ही वाला था कि साँची ने उसे हाथ देकर संभाल लिया।उसने जल्दी से नौकर को मदद के लिये आवाज़ें दी मगर जब कोई नहीं आया तो खुद मुकेश को सहारा दे कर घर के अंदर ले गई।सोफ़े पर मुकेश को बिठाकर जैसे ही मुड़ी।मुकेश ने उसका हाथ ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी ओर खिंचने लगा।साँची चिल्लाई !ये क्या कर रहे हैं आप ? मुकेश की लाल आँखे और उसका ये रूप।दो मिनट के लिए कुछ समझ ही नहीं पाई कि ये क्या हो रहा है।साँची ने कोशिश की खुद को छुड़ाने की मगर मुकेश आज जैसे खुद में था ही नहीं।पूरे होश हवास खो बैठा था और बोलता जा रहा था।अभी मत जाओ रीटा।शराब के नशे में साँची को रीटा समझ कर अपने सीने से लगाने के लिये ,उसे कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींच कर ज़बरदस्ती करने लगा।साँची चिल्ला रही थी।साँची खुद को छुड़ाने की कोशिश में थी।इसी कश्मकश में उसकी साड़ी मेज़ के कोने में फँस कर फटती चली गई मगर फिर भी फटी हुई साड़ी को खुद पर लपेटते हुए, किसी तरह खुद को बचा कर वहाँ से बाहर सड़क की ओर भागने लगी थी।सूनी सड़क पर अकेली भागती जा रही थी।जैसे तैसे घर आ कर दरवाज़ा बंद कर खूब रोई।उसे यक़ीन नहीं हो रहा था।मुकेश ने उसके साथ ऐसी हरकत की है।जब से साँची मनाली आई थी बिलकुल गुमसुम सी हो गई थी।नफ़रत और ग़ुस्से के मिले जुले भावों से झूझ रही थी साँची।इतने में उसकी मोबाइल की घन्टी बजी।साँची ने फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ़ मुकेश था।बोला ! साँची जो कल शाम हुआ उसके लिए मुझे माफ़ कर दो।अच्छे से तो,मुझे कुछ याद नहीं,मगर धुँधला सा याद है और आप की फटी हुई साड़ी का टुकड़ा,मुझे रात की सारी बात बयान कर गया।ग़ुस्से और नफ़रत की वजह से साँची ने फ़ोन बीच में ही काट दिया।साँची मनाली से वापस आ कर आदि के यहाँ नहीं गई।दिन पर दिन गुजरते जा रहे थे।एक दिन साँची ने सोचा !आदि की पढ़ाई का नुक़सान न हो तो,अगले दिन आदि को पढ़ाने उसके घर चली गई तो रेवा की दादी ने बताया कि मुकेश को कितने दिनों से बहुत बुख़ार हो रहा है जो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा।साँची ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। रेवा भी बता रही थी कि इतना चहकने वाला उसका भाई मुकेश एक दम चुप सा हो गया है।अगले रोज़ कालेज के बाद सीधा ही आदि के यहाँ चली गईं।रेवा अभी कालेज से आई नही थी शायद।दादी नौकर को आवाज़ें दे रही थी मगर नौकर को आसपास न पा कर दादी ने साँची को कहा !चल बेटा ज़रा तू ही जा कर खाना मुकेश के कमरे में दे आ।साँची न चाहते हुए भी दादी को कुछ न कह सकी और सीधा ऊपर मुकेश के कमरे में पहुँच गई।मुकेश सो रहा था,मासूम से बच्चे की तरह।उसका कमरा साफ़ सुधरा ,हर इक चीज़ ,अपनी जगह ठिकाने पर थी।सोचने लगी इतनी सुसज्जित इन्सान, ऐसी मानसिकता का मालिक कैसे हो सकता है ?जैसे ही वो प्लेट रख कर वापस जाने के लिए मुड़ी।मुकेश ने आवाज़ दी।साँची प्लीज़! दो मिनट रूक जाओ।मुझे तुम से कुछ कहना है जब तक नहीं कहूँगा, मेरा मन ऐसे बेचैन ही रहेगा।साँची मुझे माफ़ कर दो।उस रात, मैं होश में नहीं था।साँची बिना कुछ कहे बाहर आ गई।साँची का कुछ न कहना,मुकेश को बहुत तकलीफ़ दे गया।इक रोज़ नौकर के हाथ चिट्ठी लिखकर साँची को भेजी मगर साँची ने वो चिट्ठी नौकर के सामने ही फाड़ दी।साँची को ऐसा करते हुए मुकेश ने ,ऊपर बालकनी से देख लिया था।इक तीर सा चुभा ,मुकेश के दिल पर। वक़्त निकलता गया। इक रोज़ रेवा ने साँची से मुकेश की जन्मदिन की पार्टी के लिए रूकने को कहा।साँची के बहुत मना करने के बाद भी उसे वहाँ रूकना पड़ा।पार्टी मे लोगों की भीड़ ,डांस, म्यूज़िक के बीच साँची का दम घुट रहा था।साँची बाहर कोरीडोर में आ गई।मुकेश भी पार्टी में तो था मगर उसकी नज़र सिर्फ़ साँची के आसपास ही थी। अचानक साँची को पार्टी में न पा कर , वो भी साँची को ढूँढता हुआ बाहर आ गया।साड़ी में लिपटी साँची ,शान्त सी , अकेले खड़ी थी।उसके घने लम्बे बाल,मुख पर आई लटे,मुकेश को दीवाना सा बना रही थी।चाँद की चाँदनी में और भी खूबसूरत लग रही थी।मुकेश हिम्मत करके साँची के पास आया।धीरे से आकर साँची से कहा! मैं जानता हूँ मेरी गलती माफ़ी के काबिल नहीं है मगर आज शहर की तमाम भीड़ मुझे बधाई देने आई है,पर न जाने क्यों उस में आप की बधाई की कमी ने मुझे अन्दर से उदास कर रखा है साँची।कुछ ऐसा है आप में,जो मैंने पहले कभी नहीं देखा ,न ही कभी महसूस किया।दादी अक्सर कहती हैं कि मैं शादी कर लूँ मगर मन कभी माना ही नहीं।हर चीज़ आसानी से मिलती रही, कभी पता ही नहीं चला कि कमी क्या होती है मगर आप को देखा तो इक कमी का अहसास हुआ है मुझे।मुकेश बोलता जा रहा।साँची मैं उम्मीद नहीं करता कि तुम मुझे माफ़ कर दो मगर मैं सारी उम्र तुम्हारा इन्तज़ार ज़रूर करूँगा।साँची बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गई।मुकेश बस उसे जाते देखता रहा।अब मुकेश हर वक़्त काम में व्यस्त रखने लगा था खुद को।अब उसका प्यार सिर्फ़ प्यार न रह कर इक इबादत सा हो गया था।जिस में इन्सान का प्यार कम नहीं होता ,बस ख़ामोश सा हो जाता है। वक़्त गुज़रता गया साल तीन बाद
इक रोज़, साँची आदि को पढ़ा कर बाहर आ रही थी तो उसके कानों में रेवा और मुकेश की बातें पड़ गई।रेवा कह रही थी।भाई तुम शादी के लिए हाँ कंयू नहीं कर रहे,कब से दादी कहे जा रही है, मुकेश बोला !रेवा मै किसी को चाहता हूँ उसी का इन्तज़ार ताउम्र करूँगा।रेवा ने कहा !मुझे नाम बताओ ? भाई मैं खुद उसे मनाऊँगी तुम से शादी के लिए।मुकेश कहने लगा। पगली !दिल के रिश्तों पर ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं चलती।तेरा भाई दुनिया की हर चीज़ ख़रीदने की ताक़त रखता है मगर उसे नहीं पता था कि किसी का दिल या किसी का प्यार ख़रीदा नहीं जा सकता।मुकेश की बात सुन कर रेवा की भी आँखे नम हो गईं। जाने अनजाने मुकेश के वो अल्फ़ाज़ साँची के दिल को छू गये थे।सोच रही थी, कितना बदल भी गया है।किस के लिए ? मेरे लिए न किस बात का ग़रूर है मुझे।मैं क्यों उस बात को माफ़ नहीं पा रही।तीन साल से मुकेश मेरा ही तो इन्तज़ार कर रहा है।धीरे धीरे साँची के लिए मुकेश आम से ख़ास होता चला गया।तीन साल गुज़र चुके थे आज भी मुकेश के जन्म दिन पर सब था वहाँ। “नहीं थी तो “ बस मुकेश के चेहरे की मुस्कान ही नहीं थी। पार्टी चल रही थी।मुकेश ने महसूस किया कि साँची उसके कहीं आसपास है।मुकेश ने आँखें बंद कर ली और खुद को समझाया,ये सिर्फ़ उसका ख़याल ही है और कुछ नहीं।इस ख़्याल के आते ही उसका ध्यान दरवाज़े की ओर चला गया, तो देखा साँची वहाँ खड़ी थी।मुकेश तेज कदमों से साँची की ओर बढ़ने लगा।दोनों की धड़कन तेज हो रही थी,अधरों पर हल्की सी मुस्कुराहट लिये साँची धीरे से बोली!मुकेश तुम्हारे प्यार का,तुम्हारे इन्तज़ार का,तुम्हारी शिद्दत से की हुई चाहत का ,अहसास है मुझे।साँची फूलों का गुलदस्ता मुकेश को देते हुए बोली !”जन्मदिन की बधाई हो मुकेश” मेरे पास आप को देने के लिये कोई क़ीमती तोहफ़ा नही है।मुकेश ने कहा ! तुम सोच भी नहीं सकती कि मैं आज कितना ख़ुश हूँ। मेरे जन्मदिन पर तुम्हारा आना ही बेशक़ीमती तोहफ़ा है साँची, और तुम्हारे मुँह से अपना नाम सुनना ,ये भी तोहफ़े से कम नही।साँची की आँखे भर आई और उसने धीरे से अपना हाथ मुकेश के हाथ पर रख दिया।जैसे कह रही थी अब उसकी ख़ुशी भी मुकेश के होने से ही है। दोस्तों ! साँची की सादगी ,न केवल उसके दिल को बल्कि उसकी रूह तक को छू गई 🙏दोस्तों ! सादगी को हलके में मत लिया कीजिए। “बहुतों का ग़रूर टूटते हुए देखा है हमने ,जब कभी उनकी मुलाक़ात सादगी से गई”

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फिल्म रायबरेली का ट्रेलर धूमधाम से हुआ लांच

कानपुर 1 अक्टूबर भारतीय स्वरूप संवाददाता, मैनपुरी के रहने वाले प्रोड्यूसर विनीत यादव की चर्चित फिल्म रायबरेली का ऑफिशियल ट्रेलर धूमधाम से आज नावेल्टी होटल लाटूश रोड में मेयर प्रमिला पांडे व मशहूर कॉमेडियन अन्नू अवस्थी के हाथों लॉन्च हुआ इस अवसर पर प्रमिला पांडे ने बताया कि प्रदेश सरकार फिल्म उद्योग को बहुत बढ़ावा दे रही है इसलिए अरबों रुपया खर्च करके प्रदेश सरकार नोएडा में फिल्म सिटी ला रही है अनु अवस्थी ने बताया कि कानपुर में टैलेंट की कमी नहीं है और कानपुर के कलाकार मुंबई में छाए हुए हैं फिल्म प्रोड्यूसर विनीत यादव ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि इसके पहले उनकी फिल्म शूटआउट एट इटावा सफारी रिलीज हो चुकी है। कानपुर के चर्चित कलाकार अजय त्रिपाठी ने बताया की अब वह जमाने चले गए जब लोग घरों से भाग भाग कर बॉलीवुड में अपना भाग्य आजमाने जाते थे आप यूपी और खास तौर पर कानपुर में ही बड़े बड़े निर्माता आ रहे हैं और नई नई प्रतिभाओं को चांस मिल रहा है राजू श्रीवास्तव मरने से 2 महीने पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले थे और उनको उन्नाव और कानपुर के बीच फिल्म सिटी विकसित करने की सलाह दी थी। इस अवसर पर मेयर प्रमिला पाण्डेय, विधायक अमिताभ बाजपेयी, मशहूर कॉमेडियन अन्नू अवस्थी, पूर्व विधायक सतीश निगम, फिल्म के मुख्य विलेन गौरव कुमार, फिल्म के निर्माता और हीरो विनीत यादव फिल्म के लेखक इनायत अली और हीरोइन इस्मत आदि उपस्थित थे।

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राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए

राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज नई दिल्ली में 68वें फिल्म समारोह में विभिन्न श्रेणियों के तहत वर्ष 2020 के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए। इस मौके पर प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी प्रदान किया गया। समारोह में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री  श्री अनुराग सिंह ठाकुर, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव श्री अपूर्व चंद्रा, जूरी के अध्यक्ष और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने दादा साहेब फाल्के पुरूस्कार की विजेता सुश्री आशा पारेख को सिनेमा की दुनिया में उनके विशेष योगदान के लिए बधाई दी और कहा कि उनका यह पुरस्कार महिला सशक्तिकरण को मान्यता प्रदान करता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सभी कला रूपों में फिल्मों का प्रभाव सबसे व्यापक होता है और फिल्में न केवल एक उद्योग हैं बल्कि हमारी मूल्य प्रणाली की कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी हैं। सिनेमा राष्ट्र निर्माण का भी एक प्रभावी उपकरण है।

श्रीमती मुर्मु ने कहा कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो भारतीय दर्शकों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों-ज्ञात औए गुमनाम दोनों- की जीवन से जुड़ी कहानियों से संबंधित फीचर और गैर-फीचर फिल्मों का स्वागत किया जाएगा। दर्शक ऐसी फिल्मों के निर्माण की इच्छा रखते हैं, जो समाज में एकता को बढ़ावा दें, राष्ट्र के विकास को गति प्रदान करें और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करें।

विदेशों में भारतीय संगीत को मिली मान्यता पर प्रकाश डालते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि यह भारत की सॉफ्ट-पावर को वैश्विक स्तर पर फैलाने का एक बड़ा माध्यम रहा है। उन्होंने कहा कि इस साल जुलाई में, शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक उज्बेकिस्तान में आयोजित की गई थी। इस बैठक के समापन समारोह में एक विदेशी बैंड द्वारा 1960 के दशक की एक हिन्दी फिल्म का एक लोकप्रिय गीत बजाया गया था।

उन्होंने आगे कहा कि इस सॉफ्ट-पावर का अधिक कारगर इस्तेमाल करने के लिए, हमें अपनी फिल्मों की गुणवत्ता को बेहतर करना होगा। उन्होंने कहा, “अब हमारे देश के किसी एक क्षेत्र में बनी फिल्में अन्य सभी क्षेत्रों में भी बेहद लोकप्रिय हो रही हैं। इस तरह भारतीय सिनेमा सभी देशवासियों को एक सांस्कृतिक सूत्र में बांध रहा है। इस फिल्म समुदाय का भारतीय समाज में बहुत बड़ा योगदान है।”

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इस अवसर पर बोलते हुए, श्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि सिनेमा चित्रों में पिरोई एक कविता है जो उन सभी किस्म के जादू, चमत्कार और जुनून को दर्शाती है जिससे हमें जीवंत और मानवीय होने का एहसास होता है। सिनेमा ने हमारे देश की अंतरात्मा, समुदाय और संस्कृति को सहेजा है और उसे उकेरा है। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय फिल्म उद्योग के उभरते कलाकारों, पेशेवरों और दिग्गजों ने एक सदी से भी अधिक समय से हमारे दिल एवं दिमाग को गुदगुदाया और छुआ है।

कोविड-19 महामारी के दौरान ओटीटी प्लेटफार्मों द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि आज सिनेमा थिएटर की सीमाओं से परे निकल गया है और ओटीटी के आगमन के साथ वह हमारे घरों और मोबाइल फोन तक पहुंच गया है। केन्द्रीय मंत्री ने महामारी के दौरान भारत के फिल्मी सितारों को उनके योगदान के लिए श्रेय दिया और कहा कि कोविड की गंभीर हकीकत और नाजुक वैश्विक आर्थिक स्थितियों के बीच, आपके द्वारा प्रदान किया गया मनोरंजन और संदेश ही हमारे लिए उम्मीद की किरण थी।

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अनुराग ठाकुर ने पांच साल में दूसरी बार मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट अवार्ड जीतने के लिए मध्य प्रदेश की राज्य सरकार की सराहना की। उन्होंने पुरस्कार विजेताओं को 75 क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टुमारो के माध्यम से चुने जा रहे मूवी मैजिक के भविष्य के रचनाकारों का मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा कि युवाओं को प्रेरित करने और सलाह देने की इस अनूठी पहल के माध्यम से उनका समर्थन मिलने से पुरस्कार विजेताओं की अगली पीढ़ी तैयार होगी।

भारत भाषायी विविधता का देश है और इस विविधता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से बेहतर प्रदर्शन किसी दूसरे रूप में नहीं हो सकता है। देश भर के प्रतिभाशाली विजेताओं के बारे में बात करते हुए, श्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि एक बार फिर पुरस्कारों ने देश की क्षेत्रीय ताकत को सामने ला दिया है और हमें याद दिलाया है कि भारतीय सिनेमा किस तरह मेधा और प्रतिभा के साथ खिलकर निखर रहा है। उन्होंने कहा कि कार्बी भाषा में कचिचिनिथु, डांगी में एना की गवाही और दीमासा में सेमखोर जैसी फिल्में हमारी भाषायी संपदा का असाधारण प्रदर्शन हैं। श्री ठाकुर ने आज 4 बाल कलाकारों को सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का पुरस्कार मिलने पर अपार प्रसन्नता व्यक्त की और एक दिव्यांग बालक एवं पुरस्कार विजेताओं में शामिल दिव्येश इंदुलकर के बारे में विशेष रूप से चर्चा की। श्री ठाकुर ने  इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार से सम्मानित नानजियाम्मा एक लोक गायिका हैं और वह केरल के एक छोटे आदिवासी समुदाय से हैं, जिसकी कोई पेशेवर फिल्म की पृष्ठभूमि से नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारे कहानी कहने की शक्ति के साथ-साथ हमारी प्रतिभा को दर्शाता है।

समारोह के दौरान एना की गवाही को सर्वश्रेष्ठ गैर-फीचर फिल्म का पुरस्कार दिया गया, जबकि सोरारई पोट्रु को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म से सम्मानित किया गया। सूर्या और अजय देवगन को संयुक्त रूप से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला, जबकि अपर्णा बालमुरली को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया। सच्चिदानंदन के.आर को मलयालम फिल्म एके अय्यप्पनम कोशियुम के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिया गया और तन्हाजी: द अनसंग वॉरियर को संपूर्ण मनोरंजन प्रदान करने वाली सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म का पुरस्कार मिला। पुरस्कार विजेताओं की पूरी सूची यहां देखी जा सकती है।

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भारतीय रेलवे “रेलगाड़ियां एक नजर में(टीएजी)” के रूप में जानी जाने वाली अपनी नई अखिल भारतीय रेलवे समय सारणी जारी करेगा, जो 1 अक्टूबर, 2022 से लागू होगी

रेल मंत्रालय “रेलगाड़ियां एक नजर में (टीएजी)” के रूप में जानी जाने वाली अपनी नई अखिल भारतीय रेलवे समय सारणी जारी करेगा, जो 1अक्टूबर, 2022 से लागू होगी। नई ‘रेलगाडि़यां एक नज़र में ‘1 अक्टूबर, 2022 से भारतीय रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट अर्थात www.indianrailways.gov.in पर भी उपलब्ध होगी।

नई समय सारिणी की मुख्य विशेषताएं निम्‍नलिखित हैं:

  1. भारतीय रेलवे लगभग 3,240 मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों का परिचालन करता है, जिनमें वंदे भारत एक्सप्रेस, गतिमान एक्सप्रेस, राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस, हमसफ़र एक्सप्रेस, तेजस एक्सप्रेस, दुरंतो एक्सप्रेस, अंत्योदय एक्सप्रेस, गरीब रथ एक्सप्रेस, संपर्क क्रांति एक्सप्रेस, युवा एक्सप्रेस, उदय एक्सप्रेस, जनशताब्दी एक्सप्रेस और अन्य प्रकार की रेलगाडि़यां शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीय रेलवे नेटवर्क पर लगभग 3,000 यात्री रेलगाडि़यों और 5,660 उपनगरीय रेलगाडि़यों  का भी परिचालन किया जाता है। इन पर प्रतिदिन यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या लगभग 2.23 करोड़ है।
  • II. अतिरिक्त भीड़भाड़ को कम करने और यात्रियों की मांग को पूरा करने के लिए, 2021-22 के दौरान 65,000 से अधिक विशेष ट्रेन यात्राएं संचालित की गईं। रेलगाडि़यों की वहन क्षमता बढ़ाने के लिए लगभग 566 कोचों को स्थायी रूप से संवर्धित किया गया।

III. ट्रेन के इंजन और डिब्‍बों का अधिकतम उपयोग करना:

  1. रेकस के लाइ ओवर की समीक्षा के दौरान पाया गया कि मौजूदा सेवाओं के विस्तार या आवृत्ति बढ़ाने के लिए इन रेक का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। यह इंजन और डिब्‍बों के उपयोग को अधिकतम करेगा और यात्रियों को बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगा।
  • ii. वर्ष 2021-22 के दौरान, 106 नई सेवाएं शुरू की गईं, 212 सेवाओं का विस्तार किया गया और 24 सेवाओं की आवृत्ति बढ़ाई गई।
  1. प्रीमियम ट्रेनों का प्रसार:
  1. वर्तमान में वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनें नई दिल्ली-वाराणसी और नई दिल्ली-श्री माता वैष्णो देवी कटरा के बीच चलाई जा रही हैं। एक और वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन गांधीनगर कैपिटल और मुंबई सेंट्रल के बीच 30.09.2022 से शुरू की गई है। भारतीय रेलवे नेटवर्क पर और वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों को शुरू करने का प्रस्ताव किया गया है।
  • ii. मनोरंजन, स्थानीय व्यंजन, वाईफाई आदि जैसी ऑनबोर्ड सेवाओं की पेशकश करने वाली तेजस एक्सप्रेस सेवाओं का भी भारतीय रेलवे नेटवर्क पर प्रसार किया जा रहा है। वर्तमान में भारतीय रेलवे में 7 जोड़ी तेजस एक्सप्रेस सेवाएं परिचालित की जा रही हैं।
  1. मंडलों की कार्यशील समय-सारणी में कॉरिडोर ब्लॉक का प्रावधान:

पटरियों की संरचना, सिग्नलिंग गियर, ओवरहेड उपकरण आदि जैसे स्थिर बुनियादी ढांचे के रखरखाव के लिए पर्याप्त समय प्रदान करने के लिए, फिक्स्ड कॉरिडोर ब्लॉक का प्रावधान  सुनिश्चित करने की योजना बनाई गई है। इन कॉरिडोर ब्लॉकों की अवधि प्रत्येक खंड में 3 घंटे से होगी। इससे न केवल इन परिसंपत्तियों की विश्वसनीयता में सुधार होगा बल्कि यात्रियों की सुरक्षा में भी वृद्धि होगी।

  1. आईसीएफ डिजाइन के रेक का एलएचबी में रूपांतरण:

यात्री सुरक्षा में सुधार लाने और बेहतर सवारी की सुविधा के साथ तेज पारगमन प्रदान करने के लिए आईसीएफ डिजाइन के रेक के साथ परिचालित की जाने वाली मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों का रूपांतरण किया जा रहा है। भारतीय रेलवे ने वर्ष 2021-2022 की अवधि के लिए आईसीएफ के 187 रेक एलएचबी में परिवर्तित किये।

  1. विलंब से चलने वाली रेलगाडि़यों के समयपालन में सुधार लाने के प्रयास:

समय की पाबंदी में सुधार लाने के लिए समय सारिणी में आवश्यक परिवर्तन शामिल किए गए हैं। ठोस प्रयासों की बदौलत मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के समयपालन में कोविड से पूर्व (2019-20) की समय की पाबंदी की तुलना में लगभग 9 प्रतिशत सुधार हुआ है।

  1. रेकों का मानकीकरण:

विभिन्न रखरखाव डिपो में रेक लिंक के एकीकरण द्वारा रेकों को मानकीकृत किया गया है, ताकि परिचालन में बेहतर लचीलेपन लाया सके और इस प्रकार समयपालन में सुधार लाने में भी मदद मिलती है।

  1. पारंपरिक यात्री ट्रेनों का एमईएमयू/डीईएमयू से प्रतिस्‍थापन

वर्ष 2021-22 में, 60 पारंपरिक यात्री सेवाओं को एमईएमयू द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, जिससे प्रणाली की समग्र गतिशीलता में वृद्धि हुई है।

X. ‘रेलगाडि़यां एक नज़र में’ की ई-बुक‘ के रूप में उपलब्धता:

ट्रेन समय सारणी के डिजिटलीकरण के अंग के रूप में, ‘रेलगाडि़यां एक नज़र में’(टीएजी) अब ‘ई-बुक’ के  रूप में भी उपलब्ध होगी, जिसे आईआरसीटीसी की वेबसाइट (www.irctc.co.in & www.irctctourism.com) से डाउनलोड किया जा सकता है।

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