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पहली बार, भारत के आठ सागर तटों को प्रतिष्ठित “ब्लू फ्लैग अंतरराष्ट्रीय ईको लेबल” दिए जाने की सिफारिश

अंतरराष्ट्रीय सागर तट स्वच्छता दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्री ने एक आभासी कार्यक्रम में घोषणा की कि पहली बार भारत के आठ सागर तटों की प्रतिष्ठित “अंतरराष्ट्रीय ईको लेबल ब्लू फ्लैग प्रमाणपत्र” के लिए सिफारिश की गई है ।

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प्रमुख पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों की एक स्वतंत्र राष्ट्रीय ज्यूरी ने यह सिफारिश की है। “ब्लू फ्लैग सागर तट” विश्व के सबसे स्वच्छ सागर तट माने जाते हैं। ये आठ सागर तट हैं -गुजरात का शिवराजपुर तट, दमण एवं दीव का घोघला तट, कर्नाटक का कासरगोड बीच और पदुबिरदी बीच, केरल का कप्पड बीच, आंध्र प्रदेश का रुषिकोंडा बीच, ओडिशा का गोल्डन बीच और अंडमान निकोबार का राधानगर बीच।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर, संसद के मौजूदा सत्र के जारी रहने के कारण इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने एक वीडियो संदेश में कहा कि सरकार देश भर के सागर तटों को स्वच्छ बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि तटवर्ती इलाकों के स्वच्छ सागर तट स्वच्छ पर्यावरण के प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि समुद्री कचरा और तेल के बिखरने से समुद्री जीव जंतुओं का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और भारत सरकार सागर तटवर्ती इलाकों के सतत विकास के लिए महती प्रयास कर रही है।

इस कार्यक्रम में भारत के अपने ईको लेबल “बीम्स” का भी शुभारंभ किया गया और इसके लिए इन आठों सागर तटों पर एक साथ -#IAMSAVINGMYBEACH नाम का ई ध्वज लहराया गया। सीकॉम और मंत्रालय ने तटवर्ती इलाकों के सतत विकास के उद्देश्य से तैयार अपनी नीतियों को आगे बढ़ने के लक्ष्य को तेकर अपने समन्वित तटीय प्रबंधन परियोजना (आईसीजेडएम) के अंतर्गत एक उच्च गुणवत्ता वाला कार्यक्रम “बीम्स” (तटीय पर्यावरण एवं सुरुचिपूर्ण प्रबंधन सेवा) शुरू किया है। यह परियोजना आईसीजेडएम की कई अन्य परियोजनाओं में से एक परियोजना है जिसे भारत सरकार तटवर्ती इलाकों के सतत विकास के लिए लागू कर रही है ताकि वैश्विक रूप से मान्य प्रतिष्ठित ईको लेबल ब्लू फ्लैग को हासिल किया जा सके।

यह ध्वज लहराने का कार्यक्रम मंत्रालय द्वारा आठ सागर तटों पर आभासी तरीके से तो संबद्ध राज्य सरकारों अथवा केंद्र शासित प्रदेशों के विधायकों अथवा बीच प्रबंधन समितियों के अध्यक्षों द्वारा स्वयं उपस्थित होकर किया गया।

इस अवसर पर केंद्रीय पर्यावरण सचिव श्री आर पी गुप्ता ने कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सागर तटों को स्वच्छ रखने के उद्देश्य से ही उच्च मानक तय किए गए हैं और अगले चार से पांच वर्ष में 100 अन्य सागर तटों को पूरी तरह स्वच्छ बना दिया जाएगा।

एक वीडियो संदेश में विश्व बैंक के कंट्री निदेशक श्री जुनैद खान ने अपने सागर तटों को स्वच्छ बनाने के प्रयासों के लिए भारत की सराहना करते हुए कहा कि भारत की तटवर्ती इलाकों के प्रबंधन की सतत रणनीति क्षेत्र के अन्य देशों के लिए प्रकाशस्तंभ साबित होगी।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने समग्र तटवर्ती क्षेत्र प्रबंधन के माध्यम से तटवर्ती क्षेत्र और सागर की ईको व्यवस्था की सुरक्षा और संरक्षण के लिए एक समग्र तटीय प्रबंधन व्यवस्था शुरू की है जिसमें वह अपने सीकॉम विंग के माध्यम से एक परस्पर संपर्क, गतिशीलता, बहु अनुशासन और पुनरावृत्तिमूलक प्रक्रिया से तटीय इलाकों के सतत विकास और प्रबंधन को बढ़ावा देता है।

आईसीजेडएम की परिकल्पना 1992 में रियो दि जनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन के दौरान पेश की गई थी अब विश्व के लगभग सभी तटवर्ती देश अपने तटों के प्रबंधन का काम आईसीजेडएम के सिद्धांतों के अनुसार करते हैं। अतः अपने तटीय क्षेत्र के प्रबंधन और सतत विकास के लिए आईसीजेडएम के सिद्धांतों के पालन से भारत को इस अंतरराष्ट्रीय समझौते के प्रति व्यक्त प्रतिबद्धता को पूरा करने में मदद मिलती है।

बीम्स कार्यक्रम का उद्देश्य तटवर्ती क्षेत्र के जल को प्रदूषित होने से बचाना, तटों पर समस्त सुविधाओं का सतत विकास, तटीय ईको व्यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण करने के साथ साथ स्थानीय प्रशासन और अन्य भागीदारों को बीच की स्वच्छता और वहां आने वालों के स्वास्थ्य और सुरक्षा का तटीय पर्यावरण और नियमों के अनुसार पालन सुनिश्चित करने को प्रेरित करना है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य प्रकृति के साथ पूर्ण तादात्म्य बनाकर तटीय मनोरंजन का विकास करना है। अंतरराष्ट्रीय तटीय स्वच्छता दिवस 1986 में शुरू हुआ था, जब लिंडा मरानिस की सागर संरक्षण के मामले को लेकर कैथी ओ हारा से मुलाकात हुई थी। ओ हारा ने तभी एक रिपोर्ट” प्लास्टिक इन दि ओशन: मोर दैन ए लिटिल प्राब्लम” पूरी की थी। ये दोनों इसके बाद अन्य सागर प्रेमियों के संपर्क में आईं और उन्होंने “क्लीन अप फार ओशन कंजर्वैंसी” का आयोजन किया। इस पहले क्लीन अप में 2,800 स्वयंसेवियों ने भाग लिया। उसी समय से ये क्लीन अप सौ से अधिक देशों में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम बन गया।

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प्रधानमंत्री ने बिहार में पेट्रोलियम क्षेत्र से जुड़ी तीन प्रमुख परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित की

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज बिहार में पेट्रोलियम क्षेत्र से जुड़ी तीन प्रमुख परियोजनाओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से देश को समर्पित किया। परियोजनाओं में पारादीप-हल्दिया-दुर्गापुर पाइपलाइन विस्तार परियोजना का दुर्गापुर-बांका खंड और दो एलपीजी बॉटलिंग संयंत्र शामिल हैं। उन्हें पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तत्वावधान में इंडियनऑयल और एचपीसीएल, पीएसयू द्वारा अधिकृत किया गया है।

इस अवसर पर प्रधान मंत्री ने कहा कि कुछ साल पहले बिहार के लिए घोषित विशेष पैकेज ने राज्य के बुनियादी ढांचे पर ध्यान केन्‍द्रित किया। उन्होंने कहा कि बिहार के लिए दिए गए विशेष पैकेज में पेट्रोलियम और गैस से संबंधित 21 हजार करोड़ रुपये की 10 बड़ी परियोजनाएँ थीं। इनमें से आज यह सातवीं परियोजना है जो बिहार के लोगों को समर्पित की जा रही है। उन्होंने अन्य छह परियोजनाओं की भी सूची दी जो बिहार में पहले पूरी हो चुकी हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि वह एक महत्वपूर्ण गैस पाइपलाइन परियोजना दुर्गापुर-बांका खंड (लगभग 200 किमी) का उद्घाटन कर रहे हैं, जिसकी उन्होंने लगभग डेढ़ साल पहले आधारशिला रखी थी। उन्होंने चुनौतीपूर्ण इलाका होने के बावजूद इस परियोजना को समय पर पूरा करने के लिए इंजीनियरों और मजदूरों की कड़ी मेहनत और राज्य सरकार की सक्रिय सहायता की सराहना की। उन्होंने बिहार को कार्य संस्कृति से बाहर लाने में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिएबिहार के मुख्यमंत्री की बड़ी भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि पहले एक पीढ़ी काम शुरू करती थी और दूसरी पीढ़ी इसे पूरा करती थी। उन्होंने कहा कि इस नई कार्य संस्कृति को मजबूत करने की जरूरत है और यह बिहार और पूर्वी भारत को विकास के पथ पर ले जा सकती है।

प्रधानमंत्री ने शास्त्रों से उद्धृत किया, “सामर्थ्य मूलं स्वातंत्र्यम्, श्रम मूलं वैभवम्।” अर्थ शक्ति जिसका अर्थ है शक्ति स्वतंत्रता का स्रोत है और श्रम शक्ति किसी भी राष्ट्र के विकास का आधार है। उन्होंने कहा कि बिहार सहित पूर्वी भारत में न तो श्रम शक्ति की कमी है, और न ही इस स्थान पर प्राकृतिक संसाधनों की कमी है और इसके बावजूद, बिहार और पूर्वी भारत दशकों तक विकास के मामले में पीछे रहे और राजनीतिक, आर्थिक और अन्‍य प्राथमिकताओं के कारणों से उन्‍हें अंतहीन देरी का सामना करना पड़ा। और अन्य प्राथमिकताएं। उन्होंने कहा कि चूंकि सड़क संपर्क, रेल संपर्क, हवाई संपर्क, इंटरनेट कनेक्टिविटी पहले प्राथमिकता नहीं थी, इसलिए बिहार में गैस आधारित उद्योग और पेट्रो-कनेक्टिविटी की कल्पना नहीं की जा सकती थी। उन्होंने कहा कि भूमिबद्ध राज्‍य होने और पेट्रोलियम और गैस से संबंधित संसाधनों का अभाव होने के कारण गैस आधारित उद्योगों का विकास बिहार में एक बड़ी चुनौती था जो अन्यथा समुद्र से सटे राज्यों में उपलब्ध हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि गैस आधारित उद्योग और पेट्रो-कनेक्टिविटी का लोगों के जीवन पर, उनके जीवन स्तर पर सीधा प्रभाव पड़ता है और लाखों नए रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं। उन्होंने आज कहा, जब बिहार और पूर्वी भारत के कई शहरों में सीएनजी और पीएनजी पहुंच रही है, तो यहां के लोगों को ये सुविधाएं आसानी से मिल जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा योजना के अंतर्गत पूर्वी समुद्र तट और पश्चिमी समुद्री तट पर कांडला पर पूर्वी सागर पर पूर्वी भारत को पारादीप से जोड़ने का भगीरथ का प्रयास शुरू हुआ और सात राज्यों को इस पाइपलाइन के माध्यम से जोड़ा जाएगा, जो लगभग 3000 किलोमीटर लंबी है, जिसमें बिहार की भी प्रमुख भूमिका है। पारादीप – हल्दिया से जाने वाली लाइन को अब पटना, मुज़फ़्फ़रपुर तक बढ़ाया जाएगा और कांडला से आने वाली पाइपलाइन जो गोरखपुर तक पहुँच चुकी है, उसे भी इससे जोड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि जब पूरी परियोजना तैयार हो जाएगी, तो यह दुनिया की सबसे लंबी पाइपलाइन परियोजनाओं में से एक बन जाएगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इन गैस पाइपलाइनों के कारण, बिहार में बड़े बॉटलिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं। जिनमें से बांका और चंपारण में आज दो नए बॉटलिंग प्लांट शुरू किए गए हैं। इन दोनों संयंत्रों में हर साल 125 मिलियन से अधिक सिलेंडर भरने की क्षमता है। ये संयंत्र गोड्डा, देवघर, दुमका, साहिबगंज, पाकुड़ जिलों और झारखंड में उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों की एलपीजी आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। उन्होंने कहा कि गैस पाइपलाइन के बिछाने से पाइपलाइन से ऊर्जा के आधार पर नए उद्योगों के लिए बिहार हजारों नए रोजगार पैदा कर रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि बरौनी का उर्वरक कारखाना, जो पिछले दिनों बंद था, इस गैस पाइपलाइन के निर्माण के बाद जल्द ही काम करना शुरू कर देगा। उन्होंने कहा कि आज देश के आठ करोड़ गरीब परिवारों के पास उज्ज्वला योजना के कारण गैस कनेक्शन हैं। इसने कोरोना की अवधि के दौरान गरीबों के जीवन को बदल दिया क्योंकि उनके लिए घर पर रहना आवश्यक था और उन्हें लकड़ी या अन्य ईंधन इकट्ठा करने के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना की इस अवधि में, उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को लाखों सिलेंडर मुफ्त प्रदान किए गए हैं, जिससे लाखों गरीब परिवारों को लाभ हुआ है। उन्होंने संक्रमण के खतरों के बावजूद, पेट्रोलियम और गैस विभागों और कंपनियों के प्रयासों की सराहना की, साथ ही साथ उनके लाखों वितरण साझेदारों ने भी, कोरोना के समय में भी लोगों को गैस से बाहर नहीं निकलने दिया। उन्होंने कहा कि एक समय था जब बिहार में एलपीजी गैस कनेक्शन संपन्न लोगों की निशानी थी। लोगों को प्रत्येक गैस कनेक्शन के लिए सिफारिशें देनी पड़ती थी। लेकिन अब बिहार में यह स्थिति बदल चुकी है उज्जवला योजना के कारण, बिहार के लगभग 1.25 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया गया है। घर में गैस कनेक्शन ने बिहार के करोड़ों गरीबों का जीवन बदल दिया है।

प्रधानमंत्री ने बिहार के युवाओं की प्रशंसा की और कहा कि बिहार देश की प्रतिभा का पावरहाउस है। उन्होंने कहा कि बिहार की ताकत और बिहार के श्रम की छाप हर राज्य के विकास में दिखाई देगी। उन्होंने कहा कि पिछले 15 वर्षों में, बिहार ने एक सही सरकार, सही निर्णय और एक स्पष्ट नीति के साथ दिखाया है, विकास होता है और हर एक तक पहुंचता है। एक सोच थी, शिक्षा जरूरी नहीं है क्योंकि बिहार के युवाओं को खेतों में काम करना पड़ता है। इस सोच के कारण, बिहार में बड़े शिक्षण संस्थानों को खोलने के लिए ज्यादा काम नहीं किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि बिहार के युवाओं को पढ़ाई करने, काम करने के लिए बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। खेत में काम करना, खेती करना बहुत मेहनत और गर्व का काम है, लेकिन युवाओं को अन्य अवसर न दें, और न ही ऐसी व्यवस्था करें, यह सही नहीं था।


प्रधानमंत्री ने कहा कि आज बिहार में शिक्षा के बड़े केन्‍द्र खुल रहे हैं। अब कृषि कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ रही है। अब राज्य में आईआईटी, आईआईएम और आईआईआईटी बिहार के युवाओं के सपनों को साकार करने में मदद कर रहे हैं। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के पॉलिटेक्निक संस्थानों की संख्या को तीन गुना करने और दो बड़े विश्वविद्यालयों, एक आईआईटी, एक आईआईएम, एक निफ्ट और बिहार में एक राष्ट्रीय विधि संस्थान खोलने के प्रयासों की सराहना की।

प्रधानमंत्री ने कहा कि स्टार्ट अप इंडिया, मुद्रा योजना और ऐसी कई योजनाओं ने बिहार के युवाओं को स्वरोजगार की आवश्यक मात्रा प्रदान की है। उन्होंने कहा कि आज बिहार के शहरों और गांवों में बिजली की उपलब्धता पहले से कहीं अधिक है। बिजली, पेट्रोलियम और गैस क्षेत्रों में आधुनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा रहा है, सुधार लाए जा रहे हैं, उद्योगों और अर्थव्यवस्था को गति देने के साथ-साथ लोगों का जीवन आसान बन रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना की इस अवधि में, एक बार फिर पेट्रोलियम से संबंधित बुनियादी ढांचा रिफाइनरी परियोजनाओं, अन्वेषण या उत्पादन से संबंधित परियोजनाएं, पाइपलाइन, सिटी गैस वितरण परियोजनाओं जैसी कई परियोजनाओं ने गति प्राप्त की है। उन्होंने कहा कि 8 हजार से अधिक परियोजनाएं हैं, जिन पर आने वाले दिनों में 6 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रवासी मजदूर वापस आ गए हैं और रोजगार के नए अवसर भी पैदा हुए हैं। इतनी बड़ी वैश्विक महामारी के दौरान भी देश विशेष रूप से बिहार बंद नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि 100 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन परियोजना भी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में मदद करने वाली है। उन्होंने सभी से बिहार, पूर्वी भारत को विकास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए तेजी से काम करने का आग्रह किया।

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प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति–2020 के तहत ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर संगोष्ठी को संबोधित किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 21वीं सदी में स्कूली शिक्षा विषय पर एकसंगोष्ठी को संबोधित किया। शिक्षक पर्व 2020 के एक हिस्से के तौर पर शिक्षा मंत्रालय द्वारा ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर आयोजित एक दो-दिवसीय संगोष्ठी की आभासी शुरुआत 10 सितंबर 2020 को हुई। इस संगोष्ठी का आयोजन शिक्षा मंत्रालय द्वारा शिक्षक पर्व के एक हिस्से के तौर पर किया गया। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल; केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री श्री संजय धोत्रे; उच्च शिक्षा विभाग के सचिव श्री अमित खरे तथा स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की सचिव श्रीमती अनीता करवाल ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. कस्तूरीरंगन, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मसौदा समिति के सदस्य प्रोफेसर एम. के. श्रीधर, नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति के सदस्य प्रोफेसर मंजुल भार्गव तथा नई शिक्षा नीति की मसौदा समिति की सदस्य डॉ. शकीला शम्सु भी उपस्थित थीं।

इस अवसर पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत को एक नई दिशा देने जा रही है और हम एक ऐसे क्षण का हिस्सा बन रहे हैं जो हमारे देश के भविष्य के निर्माण की नींव रख रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों में हमारे जीवन का शायद ही कोई पहलू पहले जैसा रहा हो, फिर भी हमारी शिक्षा प्रणाली अभी भी पुरानी व्यवस्था के तहत चल रही है। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नई आकांक्षाओं, एक नए भारत के नए अवसरों को पूरा करने का एक साधन है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पिछले 3 से 4 वर्षों में हर इलाके, हर क्षेत्र एवं हर भाषा के लोगों की कड़ी मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि इस नीति के कार्यान्वयन के साथ वास्तविक कार्य अब शुरू होगा। उन्होंने शिक्षकों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी नीति की घोषणा के बाद कई सवालों का उठना जायज है और  आगे बढ़ने के लिए इस संगोष्ठी में वैसे मुद्दों पर चर्चा करना आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए प्रधानाध्यापक एवं शिक्षक इस चर्चा में उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के बारे में देशभर के शिक्षकों से एक सप्ताह के भीतर 1.5 मिलियन से अधिक सुझाव प्राप्त हुए हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ऊर्जावान युवा किसी देश के विकास के साधन होते हैं, लेकिन उनका विकास उनके बचपन से शुरू हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों की शिक्षा, उन्हें मिलने वाला सही माहौल, काफी हद तक यह निर्धारित करता है कि वह व्यक्ति अपने भविष्य में क्या बनेगा और उसका व्यक्तित्व कैसा होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 इस पर बहुत जोर देती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्री–स्कूल वह अवस्था है, जहां बच्चे अपनी इंद्रियों, अपने कौशल को बेहतर ढंग से समझने लगते हैं। इसके लिए, स्कूलों एवं शिक्षकों को बच्चों को मजेदार तरीके से  सीखने, खेल के साथ सीखने, गतिविधि आधारित सीखने तथा खोज आधारित सीखने का माहौल प्रदान करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, उसमें अधिक से अधिक सीखने की भावना, वैज्ञानिक एवं तार्किक सोच, गणितीय सोच तथा वैज्ञानिक चेतना विकसित करना बहुत आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने पुरानी 10 प्लस 2 की प्रणाली को  राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 की प्रणाली से बदलने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अब प्री-स्कूल की खेल के साथ शिक्षा, जो शहरों में निजी स्कूलों तक सीमित है, इस नीति के लागू होने के बाद गांवों में भी पहुंचेगी।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बुनियादी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत, बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक साक्षरता के विकास को एक राष्ट्रीय मिशन के तौर पर लिया जाएगा। एक बच्चे को आगे बढ़ना चाहिए और  सीखने के लिए पढ़ना चाहिए, इसके लिए यह आवश्यक है कि वह शुरुआत में पढ़ना सीखे। पढ़ना सीखने से लेकर सीखने के लिए पढ़ने की यह विकास यात्रा बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक साक्षरता के माध्यम से पूरी होगी।

प्रधानमंत्री ने देश के बच्चों के धाराप्रवाह मौखिक पठन के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तीसरी कक्षा को पार करने वाला प्रत्येक बच्चा एक मिनट में सहजता से 30 से 35 शब्द पढ़ सके। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इससे उन्हें अन्य विषयों की सामग्री को आसानी से समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने आगे कहा कि यह सब तभी होगा जब पढ़ाई वास्तविक दुनिया से, हमारे जीवन एवं आसपास के वातावरण से जुड़ी हो।

उन्होंने यह भी कहा कि जब शिक्षा आसपास के वातावरण से जुड़ी होती है, तो इसका प्रभाव छात्र के पूरे जीवन पर पड़ता है और साथ ही पूरे समाज पर भी पड़ता है। उन्होंने अपने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के समय की एक पहल का भी उल्लेख किया। सभी स्कूलों के छात्रों को अपने गांव के सबसे पुराने पेड़ की पहचान करने का काम दिया गया, और फिर उनसे उस पेड़ एवं अपने गांव पर आधारित एक निबंध लिखने को कहा गया। उन्होंने कहा कि यह प्रयोग बहुत सफल रहा क्योंकि एक तरफ बच्चों को पर्यावरण के बारे में जानकारी मिली और साथ ही उन्हें अपने गांव के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त करने का मौका मिला।

प्रधानमंत्री ने ऐसे आसान एवं मौलिक तरीकों को बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। इन प्रयोगों को हमारे नए युग के सीखने के केंद्र में होना चाहिए- संलग्नता, अन्वेषण, अनुभव, अभिव्यक्ति तथा श्रेष्ठता।

श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि छात्र अपनी रुचि के अनुसार गतिविधियों, कार्यक्रमों, परियोजनाओं में संलग्न हों। तभी बच्चे रचनात्मक तरीके से अभिव्यक्त करना सीखते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को स्टडी टूर पर ऐतिहासिक स्थानों, रुचि वाले स्थानों, खेतों, उद्योगों आदि में ले जाना चाहिए, क्योंकि यह उन्हें व्यावहारिक ज्ञान देगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसा अब सभी स्कूलों में नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस वजह से कई छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से सामना कराने से उनकी जिज्ञासा बढ़ेगी और उनका ज्ञान भी बढ़ेगा। यदि छात्र कुशल पेशेवरों को देखेंगे तो एक प्रकार का भावनात्मक संबंध जुड़ेगा, वे कौशल को समझेंगे और उनका सम्मान करेंगे। यह संभव है कि इनमें से कई बच्चे बड़े होकर ऐसे उद्योगों में शामिल होंगे या फिर अगर वे कोई अन्य पेशा चुनते हैं तो यह बात  उनके दिमाग में रहेगी कि इस पेशे को बेहतर बनाने के लिए क्या नया किया जाये।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस तरह से तैयार की गई है कि पाठ्यक्रम को घटाया जा सकता है और बुनियादी चीजों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। सीखने को एकीकृत एवं अंतःविषयी, मजेदार और संपूर्ण अनुभव वाला बनाने के लिए एक नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क विकसित किया जाएगा। इसके लिए सुझाव लिए जायेंगे और सभी सिफारिशों एवं आधुनिक शिक्षा प्रणालियों को इसमें शामिल किया जाएगा। भविष्य की दुनिया आज की हमारी दुनिया से काफी अलग होने जा रही है।

उन्होंने 21 वीं सदी के कौशल के साथ हमारे छात्रों को आगे बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने 21 वीं सदी के कौशल– तार्किक सोच, रचनात्मकता, सहकार्यता, जिज्ञासा एवं संचार- को सूचीबद्ध किया। उन्होंने कहा कि छात्रों को शुरू से ही कोडिंग सीखनी चाहिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को समझना चाहिए और इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा साइंस एवं रोबोटिक्स से जुड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी पहले वाली शिक्षा नीति प्रतिबंधात्मक थी। लेकिन वास्तविक दुनिया में, सभी विषय एक-दूसरे से जुड़े हैं। लेकिन वर्तमान प्रणाली ने क्षेत्र बदलने एवं  नई संभावनाओं से जुड़ने के अवसर प्रदान नहीं किए। यह भी कई बच्चों के स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण रहा है। इसलिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को किसी भी विषय को चुनने की स्वतंत्रता दी गयी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक अन्य बड़े मुद्दे को भी संबोधित करती है – हमारे देश में सीखने से संचालित शिक्षा के स्थान पर अंकपत्र (मार्कशीट) संचालित शिक्षा का हावी होना। उन्होंने कहा कि अंकपत्र अब मानसिक दबाव के एक पत्र की तरह हो गये हैं। शिक्षा से इस तनाव को दूर करना राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। परीक्षा ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों पर अनावश्यक दबाव न डाले। और प्रयास यह है कि छात्रों का मूल्यांकन केवल एक परीक्षा से नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उसे आत्म-मूल्यांकन, सहकर्मी से सहकर्मी मूल्यांकन जैसे छात्रों के विकास के विभिन्न पहलुओं पर आधारित होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक मार्कशीट के बजाय एक समग्र रिपोर्ट कार्ड का प्रस्ताव दिया गया है जो छात्रों की अनूठी क्षमता, योग्यता, दृष्टिकोण, प्रतिभा, कौशल, दक्षता एवं संभावनाओं की एक विस्तृत शीट होगी। उन्होंने कहा कि मूल्यांकन प्रणाली के समग्र सुधार के लिए एक नये राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र “परख” की भी स्थापना की जायेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि भाषा शिक्षा का माध्यम है, भाषा ही संपूर्ण शिक्षा नहीं है। कुछ लोग इस अंतर को भूल जाते हैं। इसलिए जो भी भाषा बच्चा आसानी से सीख सकता है, वही भाषा सीखने की भाषा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्तावित किया गया है कि अधिकांश अन्य देशों की तरह प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। अन्यथा जब बच्चे किसी अन्य भाषा में कुछ सुनेंगे, तो वे पहले इसे अपनी भाषा में अनुवाद करेंगे और  फिर इसे समझेंगे। इससे बच्चों के मन में बहुत भ्रम पैदा होता है, यह बहुत तनावपूर्ण होता है। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में, जहां तक संभव हो, कक्षा पांच तक, कम से कम पांचवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा, मातृभाषा में रखने को कहा गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा के अलावा कोई एक अन्य भाषा सीखने और सिखाने पर कुछ प्रतिबंध हैं। यद्यपि अंग्रेजी के साथ-साथ विदेशी भाषाएं अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहायक होती हैं, लेकिन बच्चे उन्हें पढ़ने और सीखने में सक्षम होंगे। उन्होंने कहा कि इसके साथ–साथ सभी भारतीय भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि हमारे युवा विभिन्न राज्यों की भाषा और वहां की संस्कृति से परिचित हो सकें।

प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षक राष्ट्रीय शिक्षा नीति के इस सफ़र के अग्रदूत हैं। इसलिए, सभी शिक्षकों को बहुत सी नई चीजें सीखनी पड़ेगी और कई पुरानी चीजों को भुलाना भी पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब 2022 में आजादी के 75 साल पूरे होंगे, तब यह सुनिश्चित करना  हमारी सामूहिक जिम्मेदारी होगी कि भारत का प्रत्येक छात्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पढ़े।

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उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आईआईटी दिल्ली के हीरक जयंती समारोहों का उद्घाटन किया

उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक‘ की उपस्थिति में सोमवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये आईआईटी दिल्ली के वर्ष भर चलने वाले हीरक जयंती समारोहों का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति ने आईआईटी दिल्ली की हीरक जयंती लोगो एवं संस्थान का कार्यनीतिक दस्तावेज-‘ आईआईटी दिल्ली-2030 के लिए विजन एवं दिशा का निर्धारण‘ जारी किया।

प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए, श्री एम वेंकैया नायडू ने आज जोर देकर कहा  कि आईआईटी एवं अन्य उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों को समाज के संगत होना चाहिए एवं जलवायु परिवर्तन से लेकर स्वास्थ्य मुद्वों तक मानव जाति द्वारा सामना किए जाने वाली विभिन्न समस्याओं का समाधान ढूंढने पर फोकस करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्थान विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों के बीच तभी गिने जाएंगे जब वे देश द्वारा सामना किए जाने वाली समस्याओं का ईष्टतम एवं स्थायी सामधान विकसित करने के द्वारा अपने आसपास के समाजों को प्रभावित करना आरंभ कर देंगे।

ऐसी विकास एवं अनुसंधान परियोजनाओं जो समाजगत समरूाओं का समाधान ढूंढने पर फोकस करती हैं, में अधिक निवेश करने की अपील करते हुए, उपराष्ट्रपति ने निजी क्षेत्र से ऐसी परियोजनाओं की पहचान करने एवं उदारतापूर्वक उनका वित्तपोषण करने में शिक्षा क्षेत्र के साथ सहयोग करने का आग्रह किया।

उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि अनुसंधान को लोगों का जीवन आरामदायक बनाने, प्रगति में तेजी लाने एवं अधिक समान वैश्विक व्यवस्था सुनिश्चित करने पर फोकस करना चाहिए। इसकी अपील करते हुए आईआईटी करने वालों को किसानों एवं ग्रामीण भारत के सामने आने वाली समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, श्री नायडू ने उन्हें न केवल कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कहा बल्कि पोषक तत्वों एवं प्रोटीन समृद्ध खाद्य के उत्पादन पर भी विशेष रूप से फोकस करने को कहा। उन्होंने उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों को अलग अलग काम न करने अपील की और कहा कि उन्हें एक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का विकास करने के लिए उद्योग के साथ सहजीवी संबंध बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों के उद्योग के विशेषज्ञों को शोधकर्ताओं को दिशानिर्देश देने के लिए संरक्षक के रूप में कार्य करना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के सहयोग से परियोजनाओं की फास्ट ट्रैकिंग में सहायता मिलेगी तथा परिणाम शीघ्र प्राप्त होंगे।

इस पर प्रसन्नता जताते हुए कि नई शिक्षा नीति का ध्येय भरत को एक वैश्विक अध्ययन गंतव्य के रूप में बढ़ावा देना है, श्री नायडू ने बताया कि भारत के केवल आठ संस्थानों ने वैश्विक में शीर्ष 500 संस्थानों में अपनी जगह बनाई है। उन्होंने कहा कि इस स्थिति में बदलाव लाया जाना चाहिए तथा सभी हितधारकों-सरकारों, विश्वविद्यालयों, शिक्षाविदों एवं निजी क्षेत्र से उच्चतर अध्ययन के हमारे संस्थानों के मानकों तथा गुणवत्ता में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए सतत एवं सामूहिक कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।

यह देखते हुए कि जनसांख्यिकीय लाभ एवं उच्च प्रतिभवान युवाओं की उपस्थिति के कारण विभिन्न प्रौद्योगिकीय क्षेत्रों में विश्व गुरु बनने की भाारत में असीम क्षमता है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘ अभी महत्ती आवश्यकता गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की है। ‘ 

आईआईटी दिल्ली के उद्यमशीलता क्षेत्र में अग्रणी रूप में उभरने की सराहना करते हुए, श्री नायडू ने प्रसन्नता जताई कि आईआईटी दिल्ली जैसे संस्थान रोजगार प्रदान करने वालों का निर्माण कर रहे हैं रोजगार मांगने वालों का नहीं और इस प्रकार देश में अन्य संस्थानों के लिए मार्ग प्रदर्शक बन गये हैं।

उपराष्ट्रपति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रम उन्नत भारत अभियान (यूबीए) के लिए राष्ट्रीय समन्वयन संस्थान के लिए एक मजबूत उत्प्रेरक भूमिका निभाने के लिए आईआईटी दिल्ली की सराहना करने के द्वारा अपने भाषण का समापन किया। यूबीए के पास पहले ही 2000 से अधिक प्रतिभागी संस्थान (पीआई) हैं और इन संस्थानों ने 10,000 से अधिक गांवों को गोद लिया है।

इस अवसर पर श्री पोखरियाल ने आईआईटी दिल्ली के हीरक जयंती समारोहों का उद्घाटन करने के लिए उपराष्ट्रपति के प्रति कृतज्ञता जाहिर की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भारत में शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करता है और उसका ध्येय भारतीय शिक्षा प्रणाली को हमारे देश के छात्रों के लिए सर्पाधिक उन्नत और आधुनिक बनाना है। उन्होंने कहा कि उच्चतर शिक्षा में नए अवसर अब इस नई शिक्षा नीति के परिणामस्वरूप उभरे हैं और भारत एनईपी-2020 के प्रभावी कार्यान्वयन के साथ एक वैश्विक अध्ययन गंतव्य बन जाएगा।

 आईआईटी दिल्ली को उसकी हीरक जयंती के लिए बधाई देते हुए मंत्री ने कहा कि इस संस्थान की 60 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पूरे देश के लिए महान गर्व और प्रेरणा की बात है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकीय समर्थन के जरिये कोविड-19 से लड़ने की राष्ट्रीय चुनौती को पूरा करने में आईआईटी दिल्ली का योगदान सराहनीय रहा है। विश्व की सबसे सस्ती आरटी-पीसीआर आधारित कोविड-19 डायग्नोस्टिक किट के विकास से लेकर भारत और विश्व को 40 लाख से अधिक पीपीई की आपूर्ति करने में संस्थान के शोधकर्ताओं ने एक उल्लेखनीय कार्य किया है।

मंत्री को यह जान कर खुशी हुई कि आईआईटी दिल्ली संकाय एवं छात्रों द्वारा पिछले पांच वर्षों के दौरान 500 से अधिक पैटेंट दायर किए गए हैं और साथ ही इसी अवधि के दौरान समान पदस्थ समीक्षित अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में 10000 से अधिक शोध पत्र भी प्रकाशित किए गए हैं। प्रतिस्पर्धी अनुसंधान अनुदानों से आईआईटी दिल्ली शोध परियोजना वित्तपोषण भी पिछले पांच वर्षों के दौरान 2016 के प्रति वर्ष 100 करोड़ रुपये 4 गुना बढकर 2019 में 400 करोड़ रुपये हो़ गया है।‘

श्री पोखरियाल ने यह भी कहा कि आईआईटी दिल्ली के पास अभी तक देश में स्टार्ट अप्स के लिए सर्वश्रेष्ठ परितंत्र है। मैं गौरवान्वित महसूस करता हूं कि आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्रों ने लगभग 800 स्टार्ट अप्स का निर्माण किया है जो किसी भी संस्थान के पूर्व छात्रों द्वारा सृजित स्टार्ट अप्स की तुलना में सर्वाधिक है। भारतीयों द्वारा सृजित करीब 30 यूनिकॉर्न में से 15 का सृजन केवल आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्रों ने ही किया है। आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्रों के नेतृत्व वाले स्टार्ट अप्स ने 30 मिलियन से अधिक रोजगारों का सृजन किया है और 19 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश जुटाया है तथा भारत एवं विश्व में ट्रेंड सेंटर रहे हैं।

आईआईटी दिल्ली के निदेशक प्रो. वी वेणुगोपाल राव ने कहा कि 2030 के लिए विजन के निर्माण के साथ, आईआईटी दिल्ली विकास के अगले चरण के मार्ग पर है। इस विजन की सफल उपलब्धि सकारात्मक रूप से छात्रों, पूर्व छात्रों, संकाय एवं स्टाफ के जीवन को प्रभावित करेगी तथा आने वाले दशकों के लिए हमारे राष्ट्र की प्रगति को आकार देगी।

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एमएसएमई क्षेत्र और बुनियादी ढांचा में अंतर्राष्ट्रीय निवेश बढ़ाने का नितिन गडकरी ने किया आह्वान

     केन्द्रीय सड़क परिवन, राजमार्ग और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री श्री नितिन गडकरी ने अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और निकायों से भारतीय राजमार्गों और एमएसएमई क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने का आह्वान किया है। यह दोनों क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास ईंजन है। आज सड़क बुनियादी ढांचा और एमएसएमई में व्यापार निवेश और सहयोग पर इंडो-ऑस्ट्रेलियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स और वोमेनोवेटर को संबोधित करते हुए श्री गडकरी ने कहा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया पहले से ही सड़क सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं। इस सहयोग ने जनता के लिए बेहतर डिजाइन और जागरूकता के अवसर उपलब्ध कराए हैं। भारतीय सड़क सुरक्षा आकलन कार्यक्रम के तहत 21,000 किलोमीटर लम्बी सड़कों का आकलन किया गया है और लगभग 3,000 किलोमीटर लम्बी सड़कों का तकनीकी उन्नयन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बेहतर सड़क इंजीनियरिंग और सार्वजनिक जागरूकता में बढ़ोतरी से यह सुधार आया है। अनुमान है कि इन उन्नयन कार्यक्रमों से सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 50 प्रतिशत कमी आएगी। श्री गडकरी ने यह भी बताया कि हमारा उद्देश्य 2030 तक शून्य सड़क मृत्यु दर अर्जित करना है। श्री नितिन गडकरी ने बताया कि उनके मंत्रालय ने सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए अनेक पहल की हैं। विश्व बैंक और एडीबी ने इस अभियान के लिए 7000-7000 करोड़ रुपये देने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि सामाजिक जागरूकता और शिक्षा, आपातकालीन सेवाओं में सुधार, चिकित्सा बीमा पर जोर, अधिक से अधिक अस्पताल आदि उपलब्ध करा कर देश अपने सड़क सुरक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने के करीब पहुंच रहा है। उन्होंने मोटर वाहन अधिनियम, 2019 का उल्लेख किया, जो देश में परिवहन क्षेत्र के सभी पहलुओं के लिए एक व्यापक कानून है।

     उन्होंने कहा कि सरकार रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए गांव, कृषि और जनजातीये क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दे रही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एमएसएमई एक ऐसा क्षेत्र है जो आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि बुनियादी ढांचे और बीमा क्षेत्रों में निवेश खोल दिया गया है क्योंकि बीमा, पेंशन और शेयर अर्थव्यवस्थाओं में बड़े अवसर मौजूद है। उन्होंने कहा कि एमएसएमई जल्दी ही पूंजी बाजार में प्रवेश करने वाली है।

     ऑस्ट्रेलिया के उप-प्रधानमंत्री श्री माइकल मेककॉर्मेक ने इस अवसर पर भारतीय सड़क क्षेत्र के विकास और प्रगति, विशेष रूप से सड़क सुरक्षा क्षेत्र में भागीदारी करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की गहरी दिलचस्पी व्यक्त की। उन्होंने विशेष रूप से सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में उनके देश द्वारा की गई विभिन्न पहलों के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया में मजबूत संबंध है। इससे पहले इतने मजबूत संबंध कभी नहीं रहे। इन संबंधों में व्यापक रूप से बढ़ोतरी होगी। उन्होंने बुनियादी ढांचा निर्माण पर जोर दिया और कहा कि कोविड-19 पर काबू पाने का एक तरीका बुनियादी ढांचे का निर्माण करना भी है।

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आईआईए के स्थापना दिवस के अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों ने कहा कि आईआईए के संस्थापक डॉ. वेणु बापू के उत्साह को बरकरार रखने के लिए युवाओं के विचारों को अनुभव के साथ जोड़ा जा सकता है

भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (आईआईए) ने अपना 50वां स्थापना दिवस मनाया, जिसमें गणमान्य व्यक्तियों ने युवा लोगों के नए विचारों को पिछले पांच दशकों में अर्जित ज्ञान और अनुभव के साथ जोड़कर इस संस्थान के संस्थापक डॉ. वेणु बापू की ऊर्जा और उत्साह को बरकरार रखने की जरूरत पर जोर दिया।

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इस वैज्ञानिक संस्थान की यात्रा का यह 50वां वर्ष बहुत महत्वपूर्ण है, जिसे डॉ. वेणु बापू के महान दृष्टिकोण के साथ शुरू किया गया था। यह अब विज्ञान और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के पुनर्निर्माण के चरण में है और आज इन्हीं के कद के और अधिक मार्गदर्शकों की जरूरत है। इस संस्थान की प्रारंभिक ऊर्जा और उत्साह पांच दशकों में अर्जित ज्ञान और अनुभव से समृद्ध हो गई है। आईआईए की स्थापना के 50वें वर्ष के समारोह का उद्घाटन करते हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ युवाओं और नए विचारों के मिश्रण के साथ इस ऊर्जा को बरकरार रखना ही आगे बढ़ने का रास्ता है। आईआईए ने गुणवत्तायुक्त मानव संसाधनों, बुनियादी ढांचे का निर्माण करने और पर्यवेक्षीय खगोल विज्ञान और गहन विज्ञान उपलब्ध कराने के लिए बहुत अच्छा कार्य किया है। यह संस्थान सही संसाधनों और दृष्टिकोण के साथ प्रगति करके नई ऊंचाइयों की और बढ़ना जारी रखेगा।  

आईआईए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार का एक स्वायत संस्थान है। इस संस्थान का स्थापना दिवस ऑनलाइन कार्यक्रम के माध्यम से मनाया गया, जिसमें स्थापना दिवस व्याख्यान, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के. विजय राघवन द्वारा दिया गया। आधुनिक भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान की स्थापना में योगदान देने वाले डॉ. मनाली कल्लात वेणु बापू के जन्मदिन को यह संस्थान अपने स्थापना दिवस के रूप में मनाता है। इस वर्ष के स्थापना दिवस के साथ इस संस्थान ने अपने अस्तित्व के 50वें वर्ष में प्रवेश किया है।

आईआईए की गवर्निंग काउंसिल के चेयरमैन, प्रो. अविनाश सी. पांडे ने संस्थान के छात्रों द्वारा तैयार की गई ई-पत्रिका ‘डीओओटी’ का विमोचन किया और कहा कि इस पत्रिका के माध्यम से हम छात्रों को रचनात्मक रूप से जोड़ने के लिए एक मंच उपलब्ध करा रहे हैं। यह विज्ञान की अनूठी अवधारणाओं के रचनात्मक वितरण को एक सरल तरीके से जन-जन तक पहुंचाने की अभिव्यक्ति होगी। निदेशक, प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने संस्थान के पूर्व निदेशकों के लघु संदेशों के माध्यम से आईआईए के गठन और विकास के प्रदर्शन द्वारा दर्शकों को काफी आकर्षित किया।

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राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए कोविड-19 वित्तीय पैकेज की दूसरी किस्त के तहत 890.32 करोड़ रूपए जारी

भारत सरकार ने 22 राज्यों / केन्‍द्र द्रशासित प्रदेशों को ‘ कोविड-19 आपात प्रतिक्रिया और स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली तैयारी’  पैकेज की दूसरी किस्‍त के रूप में  890.32 करोड़ रूपए जारी किए हैं। इन राज्‍यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों में छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, पंजाब, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव, अरुणाचल प्रदेश,  मेघालय , मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम शामिल हैं। यह वित्तीय सहायता राशि इन राज्यों / केन्‍द्र शासित प्रदेशों में कोविड-19 संक्रमण के मामलों के हिसाब से जारी की गई है।

केन्‍द्र सरकार कोविड -19 प्रतिक्रिया और प्रबंधन में नेतृत्‍व की भूमिका में है इस सिलसिले में  राज्‍यों तथा केन्‍द्र शासित प्रदेशों को तकनीकी और वित्‍तीय मदद उपलब्‍ध करा रही है। प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को राष्‍ट्र के नाम अपने संबोधन  में ‘ कोविड-19 आपात प्रतिक्रिया और स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली तैयारी’  पैकेज की घोषणा की थी। इस मौके पर उन्‍होंने कहा था “केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस रोगियों का इलाज करने और देश के चिकित्सा बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए 15 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इससे कोरोना की जांच सुविधाओंव्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई)रोगियों को अलग रखे जाने तथा गहन चिकित्‍सा कक्ष में बिस्‍तरों , वेंटिलेटर और अन्य आवश्यक उपकरणों की संख्या तेजी से बढ़ाने में मदद मिलेगी।  इसके साथ हीचिकित्सा और अर्धचिकित्‍सा कर्मियों के लिए प्रशिक्ष्‍ज्ञण की व्‍यवस्‍था भी होगी। मैंने राज्य सरकारों से अनुरोध किया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि स्वास्थ्य सेवा उनकी पहली और सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। “

दूसरी किस्त  के रूप में जारी वित्तीय सहायता का उपयोग आरटी-पीसीआर मशीनों, आरएनए निष्कर्षण किट, ट्रुनेट और सीबीएनएएटी मशीनों तथा बीएसएल- II अलमारियाँ आदि की खरीद के साथ ही कोविड नमूनों के परीक्षण के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, आईसीयू बेड,ऑक्सीजन जनरेटर, क्रायोजेनिक ऑक्सीजन टैंक और मेडिकल गैस पाइपलाइनें लगाने और बेड साइड ऑक्सीजन सांद्रता आदि की खरीद तथा कोविड से निबटने के लिए आशा कर्मियों सहित आवश्‍यक  मानव संसाधन और स्वास्थ्य कार्यबल तथा स्वयंसेवकों को प्रोत्साहन देने और उनके प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए किया जाएगा। आवश्यकता पड़ने पर को‍विड वारियर्स पोर्टल पर पंजीकृत स्‍वयंसेवकों को भी कोविड की ड्यूटी पर तैनात किया जाएगा

कोविड-19 आपात प्रतिक्रिया और स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली तैयारी’  पैकेज  की पहली किस्‍त के रूप में अप्रैल 2020 में राज्‍यों और केन्‍द्रशासित प्रदेशों को 300 करोड़ रूपए जारी किए गए थे ताकि वे आवश्यक सुविधाओं, दवाओं और अन्य आपूर्ति की खरीद के साथ-साथ परीक्षण सुविधाओं को बढ़ाने, अस्पताल के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और निगरानी गतिविधियों का संचालन करने में सक्षम हो सकें।

इस पैकेज के जरिए  राज्यों / केन्‍द्र शासित प्रदेशों में  5,80,342 आइसोलेशन बेड, 1,36,068 ऑक्सीजन समर्थित बेड और 31,255 आईसीयू बेड उपलब्‍ध हुए हैं जिससे उनकी स्‍वास्‍थ्‍य सेवा प्रणाली मजबूत बनी हुई है। इसके साथ ही, इस पैसे से राज्‍यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों ने 86,88,357 परीक्षण किट और 79,88,366 शीशी दवा (VTM) की खरीद की है। इसके अलावा  राज्यों / केन्‍द्र शासित प्रदेशों में 96,557 मानव कार्य बल जोड़ा गया है इनमें से 6,65,799 को प्रोत्साहन राशि दी गई है। पैकेज में 11,821 कर्मचारियों के लिए एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर जाने आने के खर्च का  प्रावधान भी किया गया है। .

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प्रधानमंत्री मोदी 13 अगस्त 2020 को ‘पारदर्शी कराधान – ईमानदार का सम्मान’ के लिए प्‍लेटफॉर्म लॉन्च करेंगे

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी 13 अगस्त 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘पारदर्शी कराधान – ईमानदार का सम्मान’ के लिए प्‍लेटफॉर्म लॉन्च करेंगे।

सीबीडीटी ने हाल के वर्षों में प्रत्यक्ष करों में कई प्रमुख या बड़े कर सुधार लागू किए हैं। पिछले वर्ष कॉरपोरेट टैक्स की दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया गया एवं नई विनिर्माण इकाइयों के लिए इस दर को और भी अधिक घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया। ‘लाभांश वितरण कर’ को भी हटा दिया गया।

कर सुधारों के तहत टैक्‍स की दरों में कमी करने और प्रत्यक्ष कर कानूनों के सरलीकरण पर फोकस रहा है। आयकर विभाग के कामकाज में दक्षता और पारदर्शिता लाने के लिए सीबीडीटी द्वारा कई पहल की गई हैं। हाल ही में शुरू की गई ‘दस्तावेज पहचान संख्या (डिन) ’  के जरिए आधिकारिक संचार में अधिक पारदर्शिता लाना भी इन पहलों में शामिल है जिसके तहत विभाग के हर संचार या पत्र-व्यवहार पर कंप्यूटर सृजित एक अनूठी दस्तावेज पहचान संख्या अंकित होती है। इसी तरह  करदाताओं के लिए अनुपालन को ज्‍यादा आसान करने के लिए  आयकर विभाग अब ‘पहले से ही भरे हुए आयकर रिटर्न फॉर्म’ प्रस्‍तुत करने लगा है, ताकि व्यक्तिगत करदाताओं के लिए अनुपालन को और भी अधिक सुविधाजनक बनाया जा सके। इसी तरह स्टार्ट-अप्‍स के लिए भी अनुपालन मानदंडों को सरल बना दिया गया है।

लंबित कर विवादों का समाधान प्रदान करने के उद्देश्य से  आयकर विभाग ने प्रत्यक्ष कर ‘विवाद से विश्वास अधिनियम, 2020’ भी प्रस्‍तुत किया है जिसके तहत वर्तमान में विवादों को निपटाने के लिए घोषणाएं दाखिल की जा रही हैं। करदाताओं की शिकायतों/मुकदमों में प्रभावकारी रूप से कमी सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न अपीलीय न्यायालयों में विभागीय अपील दाखिल करने के लिए आरंभिक मौद्रिक सीमाएं बढ़ा दी गई हैं। डिजिटल लेन-देन और भुगतान के इलेक्ट्रॉनिक मोड या तरीकों को बढ़ावा देने के लिए भी कई उपाय किए गए हैं। आयकर विभाग इन पहलों को आगे ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है। यही नहीं, विभाग ने ‘कोविड काल’ में करदाताओं के लिए अनुपालन को आसान बनाने के लिए भी अनेक तरह के प्रयास किए हैं जिनके तहत रिटर्न दाखिल करने के लिए वैधानिक समयसीमा बढ़ा दी गई है और करदाताओं के हाथों में तरलता या नकदी प्रवाह बढ़ाने के लिए तेजी से रिफंड जारी किए गए हैं।

प्रधानमंत्री ‘पारदर्शी कराधान – ईमानदार का सम्मान’ के लिए जो प्‍लेटफॉर्म लॉन्च करेंगे वह प्रत्यक्ष कर सुधारों की यात्रा को और भी आगे ले जाएगा।  

आयकर विभाग के अधिकारियों एवं पदाधिकारियों के अलावा विभिन्न वाणिज्य मंडलों, व्यापार संघों एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट संघों के साथ-साथ जाने-माने करदाता भी इस आयोजन के साक्षी होंगे। केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण और वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य राज्य मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर भी इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे।  

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भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करना : सेना मुख्यालय ने आवेदन जमा करने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए

भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (पीसी) देने के लिए औपचारिक रूप से सरकारी अनुमोदन पत्र प्राप्त होने के परिणामस्वरूप, सेना मुख्यालय स्थायी कमीशन प्रदान करने के लिए महिला अधिकारियों की स्क्रीनिंग के लिए एक विशेष नंबर 5 चयन बोर्ड बुलाने की प्रक्रिया में है। इसके लिए सभी प्रभावित महिला अधिकारियों को आवेदन प्रस्तुत करने संबंधी दिशानिर्देश देने वाले विस्तृत प्रशासनिक निर्देश जारी किए गए हैं ताकि बोर्ड उनके आवेदन पर विचार कर सके।

महिला विशेष प्रवेश योजना (डब्ल्यूएसईएस) और अल्प सेवा कमीशन महिला (एसएससीडब्ल्यू) के माध्यम से भारतीय सेना में शामिल महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर विचार किया जा रहा है, और उन्हें 31 अगस्त, 2020 तक सेना मुख्यालय में अपना आवेदन पत्र, विकल्प प्रमाण पत्र और अन्य संबंधित दस्तावेज जमा करने के निर्देश दिए गए हैं। सही दस्तावेज के साथ सही तरीके से आवेदन करने की सुविधा के लिए प्रशासनिक निर्देशों में नमूना प्रारूप और विस्तृत जांच सूची शामिल किए गए हैं।

कोविड की स्थिति की वजह से लगाए गए मौजूदा प्रतिबंधों के कारण, इन निर्देशों के प्रसार के लिए कई साधनों का इस्तेमाल किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये दस्तावेज़ प्राथमिकता के आधार पर सभी प्रभावित महिला अधिकारियों तक पहुंच सके। आवेदनों की प्राप्ति और उनके सत्यापन के तुरंत बाद चयन बोर्ड का गठन किया जाएगा।

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शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद भेंट को नई शिक्षा नीति 2020 की प्रति भेंट की

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शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद भेंट को नई शिक्षा नीति 2020 की प्रति भेंट की

केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने  आज राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से शिष्टाचार भेंट की तथा उन्हें नई शिक्षा नीति 2020 की प्रति भेंट की। केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हुए सभी आधारभूत एवं व्यापक परिवर्तनों की विस्तृत जानकारी से राष्ट्रपति जी को अवगत करवाया। श्री रामनाथ कोविंद ने शिक्षा नीति पर हुए व्यापक परामर्श पर अपनी खुशी व्यक्त की और अपनी शुभकामनाएं  दी। इससे पहले श्री निशंक भारत के उप राष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू को भी नई शिक्षा नीति की प्रति भेंट कर चुके हैं।

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