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केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह ने केंद्रीय रेशम बोर्ड की प्लेटिनम जयंती मनाने के लिए स्मारक सिक्के का अनावरण किया

केंद्रीय कपड़ा मंत्री, श्री गिरिराज सिंह ने 20 सितंबर 2024 को मैसूर में केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) की प्लेटिनम जयंती के अवसर पर स्मारक सिक्के का अनावरण किया। केंद्रीय रेशम बोर्ड ने भारत के रेशम उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए 75 वर्षों की समर्पित सेवा को गर्व के साथ चिह्नित किया।

इस समारोह में कई गणमान्य लोगों की भागीदारी देखी गई जिनमें केंद्रीय भारी उद्योग एवं इस्पात मंत्री श्री एच.डी. कुमारस्वामी; विदेश राज्य मंत्री और कपड़ा राज्य मंत्री, श्री पाबित्रा मार्गेरिटा; श्रीमती रचना शाह, सचिव, कपड़ा मंत्रालय; श्री के. वेंकटेश, पशुपालन और रेशम उत्पादन मंत्री, कर्नाटक सरकार,; श्री इरन्ना बी कल्लाडी संसद सदस्य, राज्य सभा और बोर्ड सदस्य, केंद्रीय रेशम बोर्ड; श्री नारायण कोरगप्पा संसद सदस्य, राज्य सभा और बोर्ड सदस्य, केंद्रीय रेशम बोर्ड; डॉ. के. सुधाकर, संसद सदस्य, लोकसभा, चिक्कबल्लापुरा एवं बोर्ड सदस्य, केंद्रीय रेशम बोर्ड; श्री ए.जी. लक्ष्मीनारायण वाल्मिकी, संसद सदस्य, लोकसभा और बोर्ड सदस्य, केंद्रीय रेशम बोर्ड; श्री यदुवीर कृष्णदत्त चमराज वाडियार, संसद सदस्य, लोकसभा; श्री जी.टी. देवगौड़ा, विधायक, कर्नाटक सरकार; और मंत्रालय और केंद्रीय रेशम बोर्ड के अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं।

केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) की 75 वर्षों की यात्रा के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों के दौरान, कई महत्वपूर्ण अवावरण और लोकार्पण किए गए। सीएसबी के इतिहास को प्रदर्शित करने वाले एक वृत्तचित्र वीडियो का अनावरण किया गया, साथ ही प्लेटिनम जुबली का उत्सव मनाने वाला एक स्मारक सिक्का और 1949 से राष्ट्र की सेवा में सीएसबी शीर्षक वाली एक कॉफी टेबल बुक भी जारी की गई। ‘सीएसबी 75 वर्ष’ लोगो वाला एक डाक कवर भी जारी किया गया। इसके अलावा, रेशम के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई शहतूत किस्मों और रेशमकीट हाइब्रिड को लॉन्च किया गया, जिनमें पूर्वी और उत्तर-पूर्व भारत के लिए सीबीसी-01 (सी-2038), साथ ही सीएमबी-01 (एस8 x सीएसआर16) और सीएमबी-02 (टीटी21 x टीटी56) शामिल हैं। रेशम उत्पादन को समर्पित 13 पुस्तकों, 3 मैनुअल और 1 हिंदी पत्रिका का विमोचन किया गया, साथ ही चार नई प्रौद्योगिकियां- निर्मूल, सेरी-विन, मिस्टर प्रो और एक ट्रैपिंग मशीन प्रस्तुत की गईं। सिल्क मार्क इंडिया (एसएमओआई) वेबसाइट आधिकारिक रूप से शुरू की गई और रेशम उत्पादन में अनुसंधान एवं प्रशिक्षण में सहकारी प्रयासों को मजबूती प्रदान करने के लिए सीएसबी और आईसीएआर-सीआईएफआरआई बैरकपुर, जैन विश्वविद्यालय बेंगलुरु और असम कृषि विश्वविद्यालय (एएयू), जोरहाट जैसे प्रमुख संस्थानों के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) का उल्लेखनीय आदान-प्रदान किया गया।

रेशम उत्पादन को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से पूर्वी और उत्तर-पूर्व भारत में शहतूत की नई किस्मों और रेशमकीट हाईब्रिड का अनावरण करना बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे उत्पादन क्षेत्रों में विविधता आएगी और क्षेत्रीय निर्भरता कम होगी। इसके अलावा,  निर्मूल और सेरी-विन जैसी नवीन तकनीकों का अनावरण कीट प्रबंधन, स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देने और उत्पादकता बढ़ाने जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करता है।

आयोजन के दौरान जारी किए गए शैक्षिक संसाधन किसानों को आवश्यक जानकारी प्रदान कर सशक्त बनाएंगे, जबकि आईसीएआर-सीआईएफआरआई और जैन विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के साथ हस्ताक्षरित एमओयू सहयोगात्मक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण पहल की सुविधा प्रदान करेंगे। रेशम उत्पादन में अवसंरचना, बाजार पहुंच और संसाधन उपलब्धता को बढ़ाने का यह रणनीतिक दृष्टिकोण किसानों के विकास के लिए एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है, जिसका लक्ष्य अंततः आजीविका को बढ़ावा देना और वैश्विक रेशम बाजार में भारत की स्थिति को मजबूत करना है।

दो दिवसीय समारोह के दौरान, रेशम पालन हितधारकों का अनुभव-साझाकरण सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें रेशम क्षेत्र के सभी हितधारकों और उप-उत्पाद उत्पादकों को एक साथ लाया गया। सत्र में प्रतिभागियों को रेशम उद्योग की वर्तमान स्थिति के बारे में बातचीत करने और अपने अनुभव साझा करने के लिए एक मंच प्रदान किया गया। इन बातचीत में कई प्रमुख सुझाव उभर कर सामने आए, जिनमें पशु आहार, औषध और चिकित्सा अनुप्रयोगों में रेशम उत्पादन अपशिष्ट का उपयोग करने के लिए एक मंच की स्थापना करना भी शामिल है।

प्रतिभागियों ने किसानों के लाभ को बढ़ाने के लिए बिचौलियों के प्रभाव को कम करते हुए रेशम उत्पादक राज्यों में बाजार सुविधाओं को मजबूत करने और कोकून की कीमतों को स्थिर करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बाजार की मुद्रास्फीति के अनुरूप इकाई लागत में समायोजन के साथ-साथ रेशम उत्पादन घटकों पर सब्सिडी देने का भी आह्वान किया।

केंद्रीय सिल्क बोर्ड की स्थापना इंपीरियल सरकार द्वारा 8 मार्च 1945 को रेशम उद्योग के विकास की जांच करने के लिए गठित सिल्क पैनल की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। स्वतंत्र भारत की सरकार ने 20 सितंबर 1948 को सीएसबी अधिनियम 1948 को लागू किया। तदनुसार, 9 अप्रैल 1949 को रेशम उत्पादन उद्योग को आकार देने के लिए 1948 में संसद के एक अधिनियम (एलएक्सआई) के अंतर्गत केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी), एक वैधानिक निकाय की स्थापना की गई।

केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) व्यापक रेशम उत्पादन अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) के लिए एकमात्र संगठन है और 26 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में विकास कार्यक्रमों का समन्वय करता है। सीएसबी की अनिवार्य गतिविधियों में अनुसंधान एवं विकास, चार स्तरीय रेशमकीट बीज उत्पादन नेटवर्क का रखरखाव, वाणिज्यिक रेशमकीट बीज उत्पादन में नेतृत्व वाली भूमिका, विभिन्न उत्पादन प्रक्रियाओं में गुणवत्ता मापदंडों का मानकीकरण और स्थापना, रेशम उत्पादन और रेशम उद्योग से संबंधित सभी मामलों पर सरकार को सलाह देना आदि शामिल हैं। केंद्रीय रेशम बोर्ड की ये अनिवार्य गतिविधियां विभिन्न राज्यों में स्थित सीएसबी की 159 इकाइयों द्वारा निष्पादित की जाती हैं।

सीएसबी के अनुसंधान एवं विकास संस्थानों ने विभिन्न क्षेत्रों और मौसमों के अनुरूप 51 से अधिक रेशमकीट हाइब्रिड, मेजबान पौधों की 20 उच्च उपज देने वाली किस्मों और 68 से अधिक पेटेंट प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सीएसबी के अनुसंधान एवं विकास कोशिशों का ही परिणाम है कि देश में स्वदेशी स्वचालित रीलिंग मशीनों का निर्माण शुरू हुआ है, जिन्हें पहले चीन से आयात किया जाता था। ये प्रगति रेशम उत्पादन में सुधार लाने, किसानों और हितधारकों को गुणवत्ता एवं उपज दोनों को बढ़ावा देने के लिए मूल्यवान उपकरण और तकनीक प्रदान करने में सहायक रही है।

केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) की परिवर्तनकारी पहलों के माध्यम से, भारत ने रेशम उद्योग में प्रभावशाली प्रगति की है। भारत अब पूरे विश्व में दूसरा सबसे बड़ा रेशम उत्पादक देश है, वैश्विक उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 1949 में 6% से बढ़कर 2023 में 42% हो चुकी है। कच्चे रेशम का उत्पादन 1949 में 1,242 मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 38,913 मीट्रिक टन हो चुका है। दक्षता में सुधार बहुत स्पष्ट है, क्योंकि रेंडिटा 1949 में 17 से घटकर 2023-24 में 6.47 हो गया है और शहतूत के बागानों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 15 किलोग्राम से बढ़कर 110 किलोग्राम हो गई है। इसके अलावा, रेशम निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और कमाई 1949-50 में 0.41 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 2,028 करोड़ रुपये हो चुकी है और यह 80 से अधिक देशों तक पहुंच चुकी है।