दसरी अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बी ‘आईएनएस अरिघात’ को 29 अगस्त, 2024 को विशाखापत्तनम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। अपने संबोधन में रक्षा मंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि ‘अरिघात’ भूमि, जल और वायु प्लेटफॉर्मों पर परमाणु हथियारों की भारत की सैनिक रणनीति (न्यूक्लीयर ट्रायड) को और मजबूत करेगा, परमाणु निवारण बढ़ाएगा, क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन और शांति स्थापित करने में मदद करेगा तथा देश की सुरक्षा में निर्णायक भूमिका निभाएगा। उन्होंने इसे राष्ट्र के लिए एक उपलब्धि और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के रक्षा में ‘आत्मनिर्भरता’ हासिल करने के अटूट संकल्प का प्रमाण बताया। राजनाथ सिंह ने इस क्षमता को हासिल करने में भारतीय नौसेना, डीआरडीओ और उद्योग जगत की कड़ी मेहनत और तालमेल की सराहना की। उन्होंने इस आत्मनिर्भरता को आत्मशक्ति की नींव बताया। उन्होंने इस तथ्य की सराहना की कि देश के औद्योगिक क्षेत्र, विशेषकर एमएसएमई को इस परियोजना के माध्यम से भारी बढ़ावा मिला है और अधिक रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक इच्छाशक्ति को याद करते हुए, जिसने भारत को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र के समकक्ष खड़ा कर दिया, रक्षा मंत्री ने कहा, “आज भारत विकसित देश बनने की ओर अग्रसर है। हमारे लिए रक्षा सहित हर क्षेत्र में तेजी से विकास करना जरूरी है, खासकर आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में। आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ हमें एक मजबूत सेना की जरूरत है। हमारी सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है कि हमारे सैनिकों के पास भारत की धरती पर बने उच्च गुणवत्ता वाले हथियार और प्लेटफॉर्म हों।” आईएनएस अरिघात के निर्माण में उन्नत डिजाइन और विनिर्माण प्रौद्योगिकी, विस्तृत अनुसंधान एवं विकास, विशेष सामग्रियों का उपयोग, जटिल इंजीनियरिंग और अत्यधिक कुशल कारीगरी का इस्तेमाल शामिल था। इसे स्वदेशी प्रणालियों और उपकरणों से युक्त होने का गौरव प्राप्त है, जिनकी अवधारणा, डिजाइन, निर्माण और एकीकरण भारतीय वैज्ञानिकों, उद्योग और नौसेना कर्मियों द्वारा किया गया था। इस पनडुब्बी पर स्वदेशी रूप से की गई तकनीकी प्रगति इसे इसके पूर्ववर्ती अरिहंत की तुलना में काफी उन्नत बनाती है। आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघात दोनों की मौजूदगी संभावित शत्रुओं को रोकने और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की भारत की क्षमता बढ़ाएगी।