होली रंगों का त्योहार सिर्फ नाम से ही आंखों के आगे गुलाल तैर जाता है। मौसम में भी त्यौहार की मिठास घुल जाती है। अनेक व्यंजनों के साथ-साथ गुझिया का विशेष स्थान रखता है। कभी सोचा है कि होली में गुझिया क्यों बनाई जाती है और इसकी शुरुआत कब हुई? कहा जाता है कि “गुझिया नहीं खाई तो होली क्या मनाई”। होली में गुझिया बनाने का चलन सदियों पुराना है। ऐसा माना जाता है कि होली में सबसे पहले ब्रज में भगवान कृष्ण को इस मिठाई का भोग लगाया जाता है और विशेष रूप से यह व्यंजन होली में ही बनाया जाता है इसका चलन भी ब्रज से ही शुरू हुआ। वैसे यह मध्यकालीन व्यंजन है जो मुगल काल में शुरू हुआ और कालांतर में त्योहारों की मिठाई बन गई।
मिठाई का सबसे पहला जिक्र तेरहवीं शताब्दी में एक ऐसे व्यंजन के रूप में आता है जिसमें गुड़ और आटे के पतले खोल में भरकर धूप में सुखाकर बनाया गया था और यह प्राचीन काल की स्वादिष्ट मिठाइयों में से थी लेकिन जब आधुनिक गुझिया की बात आती है तब इसे सबसे पहली बार सत्रहवीं सदी में बनाया गया था। गुझिया के बारे में ऐसा भी माना जाता है कि सबसे पहली बार उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में इसे बनाया गया था और वही से राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और अन्य प्रदेशों में यह प्रचलित हो गई।
कई जगह ऐसा भी कहा गया है कि भारत में समोसे की शुरुआत के साथ ही गुझिया भी भारत में आई और यहां की खास व्यंजनों में से एक बन गई। गुजिया और गुझिया दोनों में बड़ा अंतर है। अक्सर लोगों को इस मिठाई के दो नाम लेते हुए सुना होगा। गुजिया और गुझिया दोनों के बनाने की विधि भी अलग अलग है। वैसे तो दोनों ही मिठाइयों में भी मैदे के पतले खोल के अंदर खोया, सूजी या ड्राई फ्रूट्स का भरावन होता है और इसका स्वाद भी जरा अलग होता है।
दरअसल जब आप गुजिया की बात करते हैं तब इसे मैदे के अंदर खोया भरकर बनाया जाता है, लेकिन जब आप गुझिया के बारे में बताते हैं तब इसमें मैदे की कोटिंग के ऊपर चीनी की चाशनी भी डाली जाती है। अर्धचंद्राकार जैसी दिखने वाली जिसे पकवानों की रानी भी कहा जाता है। गुझिया जिसे दोनों ही मिठाइयां अपने -अपने स्वाद के अनुसार पसंद की जाती हैं। इस स्वादिष्ट मिठाई को देशभर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जहां महाराष्ट्र में इसे करंजी कहा जाता है वहीं गुजरात में इसे घुघरा कहा जाता है, बिहार में इस मिठाई को पेड़किया नाम दिया गया है वहीं उत्तर भारत में से गुजिया और गुझिया नाम से जानी जाती है।
गुजिया के इतिहास में एक दिलचस्प बात ये सामने आती है कि एक समय ऐसा था जब औरतें गुजिया बनाने के लिए काफी दिनों पहले से ही अपने नाखून बढ़ाया करती थीं। तब औरतों का मानना था कि बढ़े हुए नाखूनों से गुजिया को आसानी से गोंठकर सही आकार दिया जा सकता है। पारंपरिक रूप से इसे हाथों से गोठ कर ही बनाया जाता था लेकिन अब इसे बनाने के लिये बाजार में सांचे उपलब्ध है। ~ प्रियंका वर्मा महेश्वरी