Breaking News

बात बराबरी की

मैंने कहीं सुना था कि महिलाओं का नौकरी करना मतलब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है मतलब कि उन्हें अपने पति के आगे हाथ ना फैलाना पड़े। तो इसमें गलत क्या है अगर महिला आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है तो लाभ भी तो परिवार को ही मिल रहा है बल्कि स्त्री को परिवार का ज्यादा भार उठाना पड़ता है। बच्चों से लेकर घर के बड़े बुजुर्गों और घर की जरूरतों तक का ध्यान रखने की जिम्मेदारी महिला पर ज्यादा होती है। नौकरी से लौटकर जहाँ पति अखबार या टीवी में बिजी हो जाता है वहीं स्त्री को रसोई संभालनी पड़ती है। ऐसा नहीं कहूंगी कि आजकल इस मानसिकता में बदलाव नहीं आया है। यह बदलाव जरूर आया है कि आज की युवा पीढ़ी घर और बच्चे दोनों संभाल रही है। जरूरत ने उन्हें घरेलू बना दिया है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति परिवार का दुर्लक्ष होते नहीं देख सकता इसलिए समझौता जरूरी है। फिर भी अभी भी ऐसी मानसिकता देखने को मिल जाती है कि महिला पुरुष पर निर्भर करें। कितना अच्छा लगता है जब औरत सौ रुपए मांगे और उस सौ रुपए के खर्च का हिसाब देना पड़े। कुछ भी खर्च करना हो तो पहले हिसाब और जरूरत बताएं फिर तय होगा कि उसे खर्च करना है या नहीं। अच्छा लगता है ऐसा स्वामित्व भरा दंभ?

यह सही है कि महिला का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाने के बाद उसकी निर्भरता पुरुष पर कम हो जाती है बल्कि एक तरीके से खत्म हो जाती है। उसमें एक आत्मविश्वास आ जाता है। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के साथ – साथ सही गलत का फर्क समझ कर कोई बात दबी जबान से ना कह कर सीधे बोलना भी सीख जाती है। फिर भी आज भले ही महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई हों लेकिन आज भी खर्चे के मामले में वह परिवार के मुखिया पर ही निर्भर हैं। कहीं कहीं महिलाएं घरेलू हिंसा का भी शिकार हो जाती हैं। अभी भी आत्मनिर्भरता सिर्फ नाम की है क्योंकि स्त्री का पूरी तन्ख्वाह पति के हाथों में चली जाती है। जब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी उन्हें अपनी जरूरतों, खर्चों के लिए अनुमति मांगने पड़े तब स्थिति बड़ी विषाद हो जाती है। मन में यही सवाल उठता है कि क्या इतना भी अधिकार नहीं है कि हम अपने ऊपर खर्च कर सके? उसके लिए भी पूछना पड़े? क्या कभी देखा है कि पुरुष को अपने खर्चों के लिए, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्त्री से अनुमति मांगते हुये? इन तमाम दुविधाओं के साथ जीती हुई महिला अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहती है। अगर इतनी ही संकुचित मानसिकता रहेगी पुरुषों की तो स्त्री घर और बाहर की जिम्मेदारी कैसे संभाल पायेगी? ऐसी संकुचित सोच रख कर क्या महिलाएं सही मायने में आत्मनिर्भर हो पाएंगी? हमने महिला को आधुनिक तो बना दिया लेकिन बराबर का हक और सम्मान देने में असफल रहे। ~ प्रियंका वर्मा माहेश्वरी