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रूढ़ियां

आज मैं कुछ जल्दी ही घर आ गई थी। बरसात का मौसम था और मौसम में घनी बदली छाई हुई थी। हवा के झोंके रह-रहकर मेरे गालों को सहला जाते थे। इस वक्त मुझे चाय की बड़ी तलब लगी हुई थी तो अपने लिए चाय बना कर मैं फिर से बालकनी में आ गई। मैं इन पलों को खोना नहीं चाहती थी। मैं बाहर भागते हुए ट्रैफिक को देख रही थी, कभी किसी को एक दूसरे से उलझते हुए देख रही थी तो कभी यूं ही नजरें इधरउधर घुमा लेती। मुझे अचानक अपनी कमर पर दो हाथ घेरते हुए से महसूस हुए। सोनू ने बाहों में जकड़ कर कहा, “क्या बात है! आज बड़ी फुर्सत में हो”।
मैं:- “अरे तुम! हां आज जल्दी फ्री हो गई तो घर आ गई। तुम कैसे जल्दी आ गए।”
सोनू:- “तुम्हारे सेंटर पर फोन किया था तो पता चला कि तुम घर चली गई हो तो मैं तुम्हें सरप्राइज करने के लिए आ गया।”
मैं:- “रुको, मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूं।”
सोनू:-  “चाय के साथ में कुछ नमकीन भी प्लीज।”
मैं:- “भुक्खड़”!
सोनू:- “चाय के साथ कुछ मीठा वगैरह भी लेती आना।”
मैं:- “चाय के साथ कोई मीठा भी खाता है क्या? नहीं है मीठा” और मैं चाय लेने चली गई। चाय के साथ मठरी चवाड़ा लेकर बालकनी में आ गई।
सोनू:- “तुम्हारी क्लास और बच्चे कैसे चल रहे है मतलब कि तुम्हारा सेंटर कैसा चल रहा है”।
मैं:- “बस ठीक ही चल रहा है। ऑफलाइन तो कुछ ऑनलाइन काम करना पड़ रहा है। नेटवर्क प्रॉब्लम तो है ही। बस चल रहा है।”
सोनू:- “सभी टीचर आ रहे हैं क्या?”
मैं:- “अब पढ़ाना है तो आना ही पड़ेगा। घर बैठे तो सैलरी मिलेगी नहीं।”
सोनू:- “हां यह भी सही है।”
मैं:- “और तुम कहां गायब रहते हो आजकल? दिखाई नहीं दिए कई दिनों से।”
सोनू:- “घर जाने की सोच रहा था, तुम्हारे और मेरे बारे में घर में बताना भी है और शादी की बात भी कर करनी है।
मैं:- “कब जा रहे हो ?”
सोनू:- “जाऊंगा वीकेंड पर।”
मैं:- “मुझे टेंशन रहेगा जब तक तुम मुझे बता नहीं दोगे कि तुम्हारे घर वालों ने क्या कहा।”
सोनू:- “परेशान मत हो, मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला। तुमने अपनी मां से बात की।”
मैं:- “हां, वह मिलना चाह रही थी तुमसे। अगले महीने वह यहां आ रही है।”
सोनू:- “ठीक है मिल लेंगे तभी।”
मैं:- “कास्ट अलग है हमारी, पता नहीं तुम्हारे घर वाले हमारे रिश्ते को स्वीकार करेंगे या नहीं”।
सोनू:- “देखता हूं यार, सब ठीक होगा। टेंशन ना लो।” मैं हंस देती हूं।
मुझे और सोनू को रहते हुए करीब दो साल हो रहा था और अब हम इस रिश्ते को समाज की रजामंदी की मोहर लगा देना चाहते थे । मैं और मेरी मां अकेले ही रहते थे। पापा को मैंने बचपन में ही खो दिया था। मेरी परवरिश मेरी मां के कांधों पर थी। उन्होंने मेरे लिए दूसरी शादी भी नहीं की और अब उम्र के इस पड़ाव पर मैं उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। हमारी जिंदगी सोनू के जवाब पर टिकी थी। इन्हीं विचारों में किचन के काम निपटाती रही। जब कमरे में आई तो देखा सोनू लेटा हुआ टीवी देख रहा है।
मैं:- अरे तुम गए नहीं अभी तक?”
सोनू:- “आज मूड नहीं हो रहा। बारिश भी देखो कितनी है, जरा हल्की हो फिर जाता हूं।” मैं सोनू की बगल में आकर बैठ गई।
मैं”:- “सुनो तुम्हारे घरवाले मान तो जाएंगे ना।”
बदले में सोनू ने मेरा हाथ अपने हाथ में दबाकर आश्वासन दिया। सोनू टीवी देखते-देखते सो गया फिर मैं भी उसी के बगल में सो गई। सुबह उठते ही सोनू बोला, “रात को कुछ खाने को नहीं दिया। बड़ी जोर की भूख लगी है, कुछ अच्छा खाने को दो”।
मैं:- “दस मिनट रुको जल्दी से पोहा बना देती हूं।”
सोनू:- “ठीक है! जल्दी से दो।”
और मैं जल्दी से किचन में जाकर पोहा बनाने की तैयारी में जुट गई। आधे घंटे के बाद सोनू नाश्ता करके जाने लगा। सोनू:- “मैं जा रहा हूं, कल सुबह ही घर के लिए निकल जाऊंगा। शायद शाम को ना आ पाऊं।” मैंने सहमति में सिर हिलाया फिर सेंटर जाने के लिए तैयारी करने लगी।
मेरे दो दिन उहापोह में बीते कि सोनू के माता पिता ने क्या जवाब दिया होगा। ट्यूशन में भी काम का प्रेशर बढ़ रहा था, बच्चों के एग्जाम करीब आ रहे थे सो उनके लिए पेपर बनाने का भी टेंशन था लेकिन दिमाग में यही चल रहा था कि सोनू जल्दी से जवाब दे दे तो सर से बोझ हल्का हो। तभी फोन बजता है स्क्रीन पर देखा तो मां का फोन था। मै:- “हेलो! कैसी हो मां ? सब ठीक तो है ना ?
मां:- “हां.. हां सब ठीक है। तुम कैसी हो? आज अपने सेंटर नहीं गई क्या?”
मैं:- “बस कुछ देर हुआ मैं घर पहुंची हूं।”
मां:- “अच्छा सुन मैं तेरे पास आ रही हूं। मन नहीं लग रहा था। तेरी चिंता हो रही थी। कुछ दिन के लिए आ जाती हूं तेरे पास।”
मै:- “ऐसे तो सब ठीक है मां यहां पर लेकिन तुम आना चाहती हो तो आ जाओ। तुम्हें भी चेंज मिल जाएगा।”
मां:- “ठीक है, दो दिन बाद निकलूंगी। कुछ लाना है तो बोल देना।”
मैं:- “नहीं किसी चीज की जरूरत नहीं है। ठीक है। बाय मां।”
मां को सोनू से मिलवाने का समय आ रहा था लेकिन सब कुछ सोनू के जवाब पर निर्भर था। मुझे कुछ भूख सी महसूस हुई और मैं किचन में मैगी बनाने लगी।
चार दिन बाद सोनू वापस आया। उसका मुंह उतरा हुआ था। उसे देखकर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
मैं:- “क्या हुआ ? ऐसे क्यों हो? मां पिताजी ने क्या कहा?” सोनू:- “कुछ नहीं जिसका डर था वही हुआ उन्होंने मना कर दिया, बोले कि अपने समाज में ही शादी करेंगे। बहुत समझाया लेकिन नहीं मानते वो।”
मैं कुछ बोल नहीं पायी। आज के वक्त में जब समय इतना बदल गया है, स्त्री पुरुष के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है तब ऐसी मानसिकता पर गुस्सा आने लगता है लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकती थी। मैं रोआंसी हो गई।
सोनू:- “कोई बात नहीं हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे।
मैं:- ” नहीं घरवालों को नाराज करके शादी नहीं करनी है हमें। मैं उन्हें मनाने की कोशिश करूंगी।”
सोनू :- “कोई फायदा नहीं। मैं बहुत कोशिश कर चुका हूं।” मैं:- “फिर भी मैं एक बार और कोशिश करूंगी। मम्मी आने वाली है सोच रही हूं तुमको मिलाऊं या नहीं।”
सोनू:- “क्यों मम्मी से मिलने में क्या हर्ज है?”
मैं:- “हर्ज तो कुछ नहीं लेकिन कहूंगी क्या तुम्हारे बारे में। तुम्हारे मम्मी पापा से मिलने के बाद ही मैं तुम्हारे बारे में मम्मी से बात करूंगी।”
सोनू:- “जैसा ठीक लगे तुम्हें।”
मैं:- “मम्मी को जाने दो फिर तुम्हारे मम्मी पापा से बात करती।
अगले दिन सुबह-सुबह बस स्टाप पर मां को लेने पहुंची। उन्हें लेकर घर आई और ऑनलाइन क्लासेस लेने के लिए लैपटॉप के सामने बैठ गई। घंटे भर बाद देखा कि मां चाय के लिए मेरी राह देख रही है।
मां:- “चलो जल्दी! चाय तैयार है। हर काम धीरे करती हो। पता नहीं ससुराल में कैसे सब संभालोगी?  मुझे बाजार भी जाना है। किचन में सब अस्त-व्यस्त पड़ा है। कुछ जरूरत का सामान भी लाना है।”
मैं:- “आ रही हूं मां! आते ही शुरू हो गई। बाजार कल चलेंगे। कल मैं जल्दी फ्री हो जाऊंगी तब बाजार चलेंगे। आज बहुत बिजी शेड्यूल है।”
मां:- “ठीक है तेरी पसंद के आलू के पराठे बनाने वाली हूं। खाएगी ना?”
मैं:- “हां तुम्हारे हाथ का आलू का पराठा क्यों नहीं खाऊंगी मैं। रोज-रोज थोड़े ही मिलता है मुझे”। और मां की गोद में सर रख दिया
मां:- “क्या बात है कुछ परेशान लग रही हो? सब ठीक तो है?
मैं:- “नहीं बस ऐसे ही। सेंटर की परेशानी रहती है एग्जाम करीब आ रहे हैं तो काम का प्रेशर भी ज्यादा हो गया है।”
चार दिन बाद मां चली गई तब मैंने सोनू से उनके मम्मी पापा से बात करने के लिए कहा।
शाम में जब वह घर आया तो साथ में खाने का पार्सल भी लेता आया।
मैं:- “यह क्यों ले आए मैं घर में ही कुछ बना लेती थी।
सोनू:- “आ रहा था तो गरमा गरम समोसे दिखे तो ले लिया।”
मैं:- “फोन लगाओ अपनी मम्मी को।”
सोनू:-  “हूं” और नंबर मिलाने लगता है। कुछ देर बाद उसकी मां फोन उठाती है।
सोनू की मां:- “हेलो बेटा! बोलो।”
मैं:- “आंटी नमस्ते! मैं रितिका सोनू की दोस्त बोल रही हूं।” आंटी:- “बोलो बेटा।”
मैं:- “आंटी आपसे कुछ बात करनी थी। सोनू ने मेरे और अपने बारे में आपको बताया होगा।
आंटी:- “हां! बताया था और उसने तुम्हें हमारा जवाब भी बता दिया होगा।”
मैं:- “जी क्या सिर्फ एक उसी वजह से आप मुझे और सोनू को दूर कर देना चाहती हैं?  मैं पूरी कोशिश करूंगी कि मैं आपके परिवार में पूरी तरह ढल जाऊं। मुझे एक मौका तो मिलना ही चाहिए। हम दोनों काफी वक्त से साथ में हैं और एक दूसरे को खोना नहीं चाहते। आप एक बार सोचिए तो सही।”
आंटी:- “नहीं बेटा! मेरा एक ही बेटा है और उसकी शादी मैं अपने समाज में ही करना चाहती हूं। कल को कोई ऊंच-नीच हो गई तो मैं समाज में कहाँ मुंह दिखाऊंगी। बेहतर होगा कि तुम सोनू को छोड़ दो।”
मैं कुछ कह नहीं पायी। आंखों में से आंसू टपकने लगे।
सोनू:- “मैंने कहा था कि वो नहीं मानेंगी पर तुम भी जिद लेकर बैठी थी। हो गई तसल्ली।”
मैं:- “अच्छा एक बात बताओ। क्या शादी के बाद मुझे तुम्हारे घर में प्रेम और सम्मान मिल पायेगा? क्या हम दोनों शांति से जीवन बिता पायेंगे? मेरे और तुम्हारी मां के बीच तुम अपना व्यवहार कितना न्यायसंगत कर पाओगे? और मैं मेरी मां का ध्यान सही तरीके से रख पाऊंगी क्या ऐसी स्थिति में?”
मैंने सोनू से कहा कि, “तुम जाओ।”
सोनू कुछ बोलने जा रहा था कि मैंने उसके होंठों पर हाथ रख दिया और कहा कि जाओ बाद में मिलना।”
बाद में सोनू ने मुझसे मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं उससे नहीं मिली। कुछ समय बाद मैं मां के पास अपने शहर इंदौर वापस आ गई।
मैं कह नहीं पा रही थी यह रूढ़ियाँ अक्सर कितनी तकलीफ दे जाती है जीवन में। क्या मैं किसी और को आसानी से अपना पाऊंगी? क्या सोनू किसी दूसरी के साथ खुश रह पाएगा? समाज में इतनी जड़ता क्यों है आखिर? आखिर चाहतें भी तो कुछ मायने रखती हैं। सोनू का नंबर मैंने ब्लॉक कर रखा था और अकेलेपन के सफर को अकेली ही तय करना शुरू कर दिया था। ;~ प्रियंका वर्मा माहेश्वरी