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महाकुम्भ, आस्था,धर्म,और संस्कृति का संगम है -सतपाल महाराज

हरिद्वार| उत्तराखंड के पर्यटन संस्कृति कैबिनेट मंत्री एवं सुप्रसिद्ध समाजसेवी  सतपाल  महाराज ने कहा कि कुम्भ महापर्व सदियों से चला आ रहा है भारतीय सनातन संस्कृति का अद्वितीय महापर्व है जिसका अमृतमय सन्देश आत्मसात करके ही विश्व को विनाश से बचाया जा सकता है। महाराज  ने प्रेमनगर आश्रम स्थितगोवर्धन हॉल में आयोजित विशाल अध्यात्म-योग-साधना शिविर के दूसरे दिन श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमें कोविड-19 के सभी नियमों का पालन करते हुए अपने दैनिक तथा सामाजिक कार्यों  को करने की आदत बनानी है। महाराज ने कहा कि भारत के ऋषि-महऋषियों एवं धर्म शास्त्रों के ज्ञान का मूल है कि समस्त प्राणियों के श्वांस-प्रश्वांस में समाये प्रभु-नाम के अध्यात्म तत्व-ज्ञान से ही मानव के विनाश कारी मन पर काबू किया जा सकता है। समुद्र मंथन से अमृत कुम्भ निकला और उसकी बूँदें चार स्थानोंपर गिरीं जहां पर हर बारह वर्ष में कुम्भ मनाया जाता है। महाराज ने अपने सम्बोधन में कहा कि भारत का प्राचीन विज्ञान इतना उन्नत था कि ऋषि-महाऋषियों को यह ज्ञात था कि हर बारह वर्ष में बृहस्पति सूर्य की राशि में लौटता है जिससे महा-योग की स्थिति उत्पन्न होती है तथा इसी पावन योग में कुम्भ पर्व मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि समुद्र से निकले चौदह रत्नो में सबसे पहले विष निकला जिसके विनाश से भगवान शिव ने संसार की रक्षा की ।  मानव मन को अध्यात्म ज्ञान से संतुलित करके ही मन के सागर मंथन से हम अमरत्व की दिशा प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए हमें अपने समाज की व राष्ट्र सहित समग्र मानवता की प्रगति को सुनिश्चित व सुरक्षित रखने हेतु हम सबको कुम्भ अर्थात घड़ा बनकर अच्छाइयों का संग्रह अपने अंदर करना होगा। तभी हम विनाशकारी शक्तियों का डटकर मुकाबला करते हुए अमृतत्व की शक्ति से अपने व अपने समाज की रक्षा कर भारत को एक महाशक्ति बना सकते हैं। कार्यक्रम में पूर्व कैबिनेट मंत्री अमृता रावत सहित देश से विभिन्न राज्यों से आये हुए अनेक-अनुभवी संत-महात्माओं ने अपने विचार रखे तथा कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध कलाकारों ने अपने मधुर भजनों से श्रद्धालुओं को मंत्र मुग्ध किया।