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पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग ने 30 नवंबर, 2024 तक राष्ट्रव्यापी डिजिटल जीवन प्रमाणपत्र अभियान 3.0 शुरू किया है

पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग ने पेंशनभोगियों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रव्यापी डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र अभियान 3.0 शुरू किया है। जीवन प्रमाण, पेंशनभोगियों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का विजन है। डीएलसी अभियान 3.0 1 से 30 नवंबर, 2024 तक भारत के 800 शहरों/कस्बों में आयोजित किया जाएगा, जिसमें केंद्र/राज्य सरकारों/ईपीएफओ/स्वायत्त निकायों के सभी पेंशनभोगी पेंशन वितरण बैंकों या आईपीपीबी में अपने डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र जमा कर सकते हैं। सुपर सीनियर पेंशनभोगी इसे अपने घर से ही जमा कर सकते हैं और घर पर ही सेवाएंभी प्राप्त कर सकते है। सभी पेंशन वितरण बैंक, सीजीडीए, आईपीपीबी, यूआईडीएआई देशभर में डीएलसी अभियान को लागू करने के लिए मिलकर काम करेंगे।

राष्ट्रव्यापी अभियान 2.0 1 से 30 नवंबर, 2023 तक देश भर के 100 शहरों में 600 स्थानों पर 17 पेंशन वितरण बैंकों, मंत्रालयों/विभागों, पेंशनभोगी कल्याण संघों, यूआईडीएआई, एमईआईटीवाई आदि के सहयोग से चलाया गया। इस अभियान के तहत 1.47 करोड़ से अधिक डीएलसी बनाए गए, जो कि एक बड़ी सफलता थी।

अभियान 3.0 में, पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग कार्यालयों और सभी बैंक शाखाओं/एटीएम में लगाए गए बैनर/पोस्टर के माध्यम से डीएलसी-फेस ऑथेंटिकेशन तकनीक के बारे में सभी पेंशनभोगियों को बीच जागरूकता पैदा करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। सभी बैंकों ने अपनी शाखाओं में समर्पित कर्मचारियों की एक टीम बनाई है, जिन्होंने अपने स्मार्टफोन में आवश्यक ऐप डाउनलोड किए हैं, जो पेंशनभोगियों द्वारा जीवन प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए इस तकनीक का व्यापक रूप से उपयोग कर रहे हैं। यदि पेंशनभोगी वृद्धावस्था/बीमारी/कमजोरी के कारण शाखाओं में जा पाने में सक्षम नहीं है, तो बैंक अधिकारी उपरोक्त उद्देश्य के लिए उनके घर/अस्पताल भी जा रहे हैं।

पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन इस अभियान को अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं। उनके प्रतिनिधि पेंशनभोगियों को आस-पास के शिविर स्थलों पर जाकर डीएलसी जमा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग के अधिकारी भी देश भर में प्रमुख स्थानों का दौरा कर पेंशनभोगियों को उनके जीवन प्रमाण पत्र जमा करने के लिए विभिन्न डिजिटल तरीकों के इस्तेमाल में मदद कर रहे हैं और इस संबंध में हुई प्रगति की बहुत बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।

सभी हितधारकों, विशेष रूप से सभी स्थानों पर बीमार/बुजुर्ग पेंशनभोगियों में बहुत उत्साह देखने को मिला है। इसके परिणामस्वरूप, 3.0 अभियान के शुभारंभ के पहले सप्ताह के अंत तक 37 लाख से अधिक डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र बनाए गए, जिनमें से 90 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 14,329 पेंशनभोगी और 80-90 वर्ष की आयु के बीच के 1,95,771 पेंशनभोगी अपने घर/स्थान/कार्यालय/शाखाओं से अपने डीएलसी जमा कर सके।

एसबीआई और पीएनबी महीने भर चलने वाले अभियान के पहले सप्ताह के दौरान 5 लाख से अधिक डीएलसी बनाकर अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। महाराष्ट्र और तमिलनाडु राज्य महीने भर चलने वाले अभियान के पहले सप्ताह के दौरान 8.5 लाख से अधिक डीएलसी बनाकर सूची में शीर्ष पर हैं।

पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग इस अभियान को पूरे देश में सफल बनाने के लिए अपने सभी प्रयास जारी रखेगा।

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निडर, निष्पक्ष और सकारात्मक पत्रकारिता पर जोर

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर, -श्रीमदभगवत गीता को आत्मसात कर पत्रकारिता करें, इसमें है निर्माण का संदेश
कानपुर। भगवत गीता सिखाती है कि किस तरह निष्पक्ष, निडर, निस्वार्थ रहकर हम कर्म करें, जो हमें संतोष देगा और एक अच्छे समाज का निर्माण करेगा। पत्रकार भी गीता को आत्मसात कर पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करें।
ये विचार कानपुर प्रेस क्लब की ओर से नवीन मार्केट कार्यालय में “पत्रकारिता में गीता का महत्व” विषय पर आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किए। श्रीमद भगवत गीता वैदिक न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उमेश पालीवाल ने कहा समाज और राष्ट्र निर्माण में पत्रकारों की बड़ी भूमिका है। उन्हें गीता के संदेशों पर अमल करना चाहिए। उसमें स्पष्ट है कि कर्म ही धर्म है, उसी रास्ते पर बिना किसी डर, पक्षपात और स्वार्थ निष्काम भाव से चलते रहो। पत्रकारिता धर्म का निर्वहन इसी भाव से करो तो राष्ट्र मजबूत होगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़कर गीता को प्रचारित कर रहे अमरनाथ ने कहा कि निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता से बड़ा कोई धर्म नहीं है और इस पवित्र कर्म के पथ पर कदम नहीं डगमगाएं, गीता वैदिक न्यास के जिलाध्यक्ष एवं समजसेवी भूपेश अवस्थी ने कहा गीता के संदेश हृदय में रख पत्रकारिता के रास्ते पर चलेंगे तो बिल्कुल न तो डरेंगे और न ही विचलित होंगे। वरिष्ठ पत्रकार जुवैद फारूखी ने कहा गीता और कुरान, दोनों ही कर्म और इंसानियत की राह पर चलना सिखाते हैं, कर्म ही प्रधान है। गीता न्यास से जुड़े कमल द्विवेदी ने कर्मयोग पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ पत्रकार महेश शर्मा ने शायरी के जरिये कर्मयोग की बात कही। प्रेस क्लब के अध्यक्ष सरस वाजपेयी ने सकारात्मक पत्रकारिता पर जोर देते हुए गीता आत्मसात करने की अपील की। इस मौके पर प्रेस क्लब के मंत्री शिवराज साहू, मोहित दुबे, कोषाध्यक्ष सुनील साहू, कौशतुभ मिश्र, रोहित मिश्र, दीपक सिंह, मयंक मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार जीपी वर्मा, अनिल मिश्र, उन्नाव-शुक्लागंज प्रेस क्लब के अध्यक्ष मयंक और कई पत्रकार मौजूद रहे। संचालन प्रेस क्लब के महामंत्री शैलेश अवस्थी ने किया। इस मौके पर डॉ. उमेश पालीवाल सहित सभी अथितियों को शॉल और प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।

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संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने 5-6 नवंबर 2024 को नई दिल्ली में पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन आयोजित किया

संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने 5-6 नवंबर 2024 को नई दिल्ली में पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। इस शिखर सम्मेलन की उल्लेखनीय उपलब्धियों में दो समानांतर मंचों का सफल आयोजन था जिनमें कई तरह के व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए। इन मंचों के जरिए विचारों का समृद्ध आदान-प्रदान हुआ। जहां पहला मंच बुद्ध की मूलभूत शिक्षाओं और आधुनिक समय में उनके प्रयोगों पर केंद्रित था, दूसरे में उन तरीकों की खोज की गई जिनसे बौद्ध सिद्धांत सतत विकास, सामाजिक सद्भाव और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में योगदान दे सकते हैं।

कार्यक्रम में कई प्रस्तुतियाँ हुईं जिनके जरिये अद्वितीय विकल्प, दृष्टिकोण और कुछ अनोखे विचार प्रस्तुत किए गए ताकि समाज की भलाई के लिए इनका व्यावहारिक उपयोग किया जा सके। अब तक के सेमिनार और सम्मेलन मुख्य रूप से धार्मिक पहलुओं और उससे जुड़े प्रवचनों से संबंधित थे। इस शिखर सम्मेलन ने धम्म के प्राचीन दर्शन और विज्ञान से निकले कई नवीन विचारों को सामने रखा।

संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) द्वारा आयोजित यह एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’ विषय पर आधारित था। इसमें 32 देशों के 160 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों ने भाग लिया। महासंघ के सदस्य, विभिन्न मठवासी परंपराओं के संरक्षक, भिक्षु, भिक्षुणियाँ, राजनयिक समुदाय के सदस्य, बौद्ध अध्ययन के प्रोफेसर, विशेषज्ञ और विद्वान समेत लगभग 700 प्रतिभागियों ने इस विषय पर चर्चा की।

अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. सीऑन रेमन ने न्यूरोसाइंस से मानसिक अनुभूति की अवधि और उनके नैदानिक ​​अनुप्रयोगों में ध्यान के बौद्ध दृष्टिकोण के बीच तुलना की। किसी विचार (ध्यान-क्षण) के जागने और समाप्ति की प्रकृति पर विचार करने पर पता चला कि ये समय-सीमाएँ वही हैं जो ध्यानियों ने बिना घड़ी के सदियों पहले अनुमान लगाया था। पारमिता और ध्यान जैसे बौद्ध प्रथाओं के साथ-साथ न्यूरोफीडबैक और विज़ुअलाइज़ेशन तकनीकों के आधार पर यह मानसिक विकारों के उपचार में उपयोगी हो सकता है।

मंगोलिया में विपश्यना अनुसंधान केंद्र के निदेशक श्री शिरेन्देव डोरलिग द्वारा मंगोलियाई जेलों में बौद्ध अभ्यास का एक अनूठा योगदान पेश किया गया। कुछ शुरुआती रुकावटों के बाद विपश्यना ध्यान पाठ्यक्रम घोर अपराधियों वाली जेलों में भी बहुत अच्छे परिणाम दे रहे हैं।

अपने प्रस्तुतीकरण में श्री डोरलिग ने कहा कि उन्होंने जेल अधिकारियों से पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले कुछ निश्चित कार्य स्थितियों पर जोर दिया। इसमें जेल अधिकारियों को विपश्यना अभ्यास का प्रशिक्षण देना, अभ्यास और परंपरा के अनुरूप एक सख्त अनुशासित दिनचर्या और दिन के अंत में कैदियों के लिए एक दैनिक ‘समूह बैठक’ शामिल थी ताकि सफलता दर का वास्तविक आकलन किया जा सके।

अनेक प्रस्तुतियों के माध्य से मध्य एशिया, पूर्वी तुर्किस्तान और रूसी स्वायत्त गणराज्यों कलमीकिया, बुरातिया और तुवा के विशाल क्षेत्रों पर बौद्ध धर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया जैसे कि वास्तुकला, पूजा पद्धतियों और जीवन के दार्शनिक तरीके पर इसका प्रभाव, जिसके निशान पुरातात्विक दृष्टि से तथा प्राचीन ग्रंथों में आज भी मौजूद हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह इवनिंग कॉलेज के इतिहास विभाग के डॉ. जगबीर सिंह ने चीनी वास्तुकला के विकास पर बौद्ध प्रभावों के बारे में बात की। उन्होंने हान राजवंश से लेकर आज तक इसके विकास पर बात की।

पहली शताब्दी में हान सम्राट मिंग ने भारत से चीन गए पहले दो भारतीय भिक्षुओं-कश्यप मतंग और धर्मरत्न के सम्मान में व्हाइट हॉर्स मठ का निर्माण कराया था।

यह चीनी बौद्ध वास्तुकला का जन्म था। वास्तुकला के इस रूप को बाद में शुद्ध चीनी वास्तुकला में शामिल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप एक अनूठी वास्तुकला विरासत सामने आई जो बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक और सौंदर्य मूल्यों को दर्शाती है।

जापान के क्योटो स्थित ओटानी विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन विभाग की प्रमुख प्रोफेसर डॉ. शोभा रानी दाश ने जापानी बौद्ध धर्म में पूजे जाने वाले हिंदू देवताओं के बारे में बताया। उन्होंने हिंदू देवताओं के समूह के बारे में बताया जिन्हें बौद्ध धर्म के साथ जापान में बौद्ध देवताओं के रूप में लाया गया था लेकिन धीरे-धीरे उनमें से कई को शिंतो धर्म के जापानी मूल पंथ के साथ भी आत्मसात कर लिया गया। उन्होंने देवी सरस्वती का विशेष उल्लेख किया जिन्हें जापान में बेंजाइटन के नाम से जाना जाता है और स्थानीय लोग उनकी पूजा करते हैं।

तुर्की के अंकारा विश्वविद्यालय में पूर्वी भाषाओं और साहित्य के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. यालसीन कायाली ने उइगर तुर्की सांस्कृतिक दुनिया में बौद्ध धर्म की मौजूदगी के बारे में कम ज्ञात तथ्य सामने लाए। यह अध्ययन संस्कृत में सुवर्णभास सूत्र के रूप में ज्ञात बौद्ध ग्रंथ पर केंद्रित था, जिसे धर्मक्षेम के चीनी अनुवाद से उइगर-तुर्की बौद्ध विरासत क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया था और इसका नाम अल्तुनयारुक (स्वर्ण प्रकाश सूत्र) रखा गया था।

ऐसा माना जाता है कि चौथी शताब्दी में इसके चीनी अनुवाद तथा जापानी और अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद ने प्राचीन बौद्ध सिद्धांत को विश्व की सांस्कृतिक विरासत में शामिल करने में योगदान दिया।

इसी तरह, रूसी अकादमी के ओरिएंटल अध्ययन संस्थान के शोध फेलो डॉ. बाटर यू. किटिनोव ने बौद्ध धर्म कैसे पूर्वी तुर्किस्तान में फैल गया और लंबे समय तक बौद्ध धर्म को बनाए रखने में उइगरों की भूमिका क्या रही इस बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पूर्वी तुर्किस्तान में कुछ छोटे जनसंख्या समूह अभी भी बौद्ध धर्म का पालन कर रहे हैं जिनकी संख्या में वृद्धि हो रही है।

श्रीलंका से एसआईबीए परिसर के पाली और बौद्ध अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पोलगोले कुशलाधम्मा ने शारीरिक दुर्बलता और अन्य कष्टों, विशेष रूप से भावनाओं में नकारात्मक शक्तियों, जो मानसिक अशांति, दुःख, भय और हताशा आदि उत्पन्न करती हैं, पर काबू पाने के लिए माइंडफुलनेस अभ्यासों की उपयोगिता की पहचान करने के लिए बौद्ध ध्यान पर तंत्रिका विज्ञान संबंधी शोध की भूमिका की व्याख्या की।

उन्होंने विस्तार से बताया कि किस प्रकार बौद्ध धर्म मन की प्रकृति का अध्ययन करता है और मन के तर्कसंगत वर्णन की जांच करता है तथा अनुयायियों को मानसिक कष्टों को ठीक करने वाले स्वस्थ मानसिक व्यवहार विकसित करने के लिए मार्गदर्शन करता है।

भूटान में महाचुलालोंगकोर्न राजविद्यालय विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध अध्ययन महाविद्यालय (आईबीएससी) के व्याख्याता डॉ. उग्येन शेरिंग ने प्रसिद्ध अवधारणा सकल राष्ट्रीय खुशी (जीएनएच) के बारे में बात की और बताया कि कैसे बौद्ध दर्शन और सिद्धांत जीएनएच की अवधारणा को रेखांकित करते हैं, जो भूटान की नीतियों और सामाजिक मूल्यों को प्रभावित करते हैं। यह बौद्ध धर्म ही था जिसने भूटान को जीएनएच का उच्च स्तर प्राप्त करने में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बताया कि कैसे अन्य लोग इस मॉडल का अनुकरण कर सकते हैं।

श्रीलंका के कोलंबो विश्वविद्यालय में वियतनामी पीएचडी विद्वान गुयेन न्गोक आन्ह ने वियतनाम में सामंतवाद, उपनिवेशवाद और आधुनिकीकरण के दौरान बौद्ध धर्म के सामने आईं चुनौतियों के बारे में बताया।

हालांकि बौद्ध धर्म का वियतनामी समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह देश कई संघर्षों से गुजरा है और इसलिए मुक्ति (मोक्ष), शांति और खुशी (निर्वाण) के दर्शन ने वियतनामी समाज को मजबूती से एक साथ रखा है। दूसरी शताब्दी ईस्वी में वियतनाम में शुरू किया गया बौद्ध धर्म वियतनामी समाज का मूल सार है।

कजाकिस्तान के श्री रुसलान काजकेनोव ने बताया कि भले ही कजाकिस्तान बौद्ध देश नहीं है लेकिन देश में बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन के प्रति गहरी आस्था है। यह इसलिए भी है क्योंकि बौद्ध धर्म में टेंग्रियनवाद के साथ कई समानताएं हैं। इसके अलावा, बौद्ध धर्म ने इस क्षेत्र (मध्य एशिया) की कला, वास्तुकला और सांस्कृतिक परंपराओं को प्रभावित किया है, जिसमें बौद्ध कला और ऐतिहासिक स्मारकों के तत्व शामिल हैं। उन्होंने अगला एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन कजाकिस्तान में आयोजित करने का सुझाव दिया।

ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के विद्वानों ने भी इसी भावना के साथ बताया कि कैसे इन देशों के लोग अपनी बौद्ध विरासत के बारे में तेजी से जागरूक हो रहे हैं जिसे इस क्षेत्र में इसके प्रसार के शुरुआती वर्षों में स्थानीय लोगों द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार किया गया था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन दोनों देशों में अभी तक अज्ञात बौद्ध स्थलों की खुदाई की काफी गुंजाइश है। प्रतिनिधियों ने खुदाई पर भारतीय विशेषज्ञों और शिक्षाविदों को भी शामिल करने में उत्सुकता व्यक्त की जो बुद्ध की शिक्षाओं के सार और दुनिया के इस हिस्से में उनके प्रसार में मदद कर सकते हैं।

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भारत के उत्तरी पश्चिमी घाट में डिक्लिप्टेरा की एक नई अग्निरोधी, दोहरे खिलने वाली प्रजाति की वैज्ञानिकों ने खोज की

A close-up of a plantDescription automatically generatedचित्र 1: डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा 
भारत के पश्चिमी घाट में एक नई अग्निरोधी दोहरे खिलने वाली प्रजाति की खोज की गई है। यह एक ऐसी पुष्प संरचना है जो भारतीय प्रजातियों में दुर्लभ है। यह प्रजाति पश्चिमी घाट में पाई जाती है, जहां कई ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं जिनकी खोज अभी तक नहीं की गई है।

भारत के चार वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक पश्चिमी घाट, लंबे समय से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, पुणे के अघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) द्वारा अन्वेषण का केंद्र रहा है। पिछले कुछ दशकों से, एआरआई के वैज्ञानिक इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का गहन अध्ययन कर रहे हैं।

डॉ. मंदार दातार के नेतृत्व में एक टीम द्वारा हाल ही में की गई खोज, जिसमें तलेगांव-दभाड़े के वनस्पतिशास्त्री आदित्य धरप और पीएचडी छात्र भूषण शिगवान शामिल हैं, ने डिक्लिप्टेरा जीनस में एक नई प्रजाति को जोड़ा है, जिसका नाम उन्होंने डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा है। यह प्रजाति तलेगांव-दभाड़े से एकत्र की गई थी, जो अपने घास के मैदानों और चारा बाजारों के लिए जाना जाता है।

डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा एक विशिष्ट प्रजाति है, जो अपनी अग्निरोधी, पायरोफाइटिक प्रकृति और अपने असामान्य दोहरे खिलने के लिए उल्लेखनीय है। यह प्रजाति वर्गीकरण की दृष्टि से अद्वितीय है, जिसमें पुष्पक्रम इकाइयां (सिम्यूल्स) होती हैं जो स्पाइकेट पुष्पक्रम में विकसित होती हैं। यह स्पाइकेट पुष्पक्रम संरचना वाली एकमात्र ज्ञात भारतीय प्रजाति है, जिसका सबसे करीबी सहयोगी अफ्रीका में पाया जाता है।

इस प्रजाति का नाम इसके विविध रूपात्मक लक्षणों को दर्शाने के लिए डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा गया था। पहले नमूने 2020 के मानसून के दौरान एकत्र किए गए थे। इसकी विशेषताओं की स्थिरता की पुष्टि करने के लिए अगले कुछ वर्षों तक आदित्य धरप द्वारा निगरानी की गई थी। लंदन के केव बोटेनिक गार्डन के अग्रणी वैश्विक विशेषज्ञ डॉ. आई. डार्बीशायर ने इस प्रजाति की नवीनता की पुष्टि की। इस प्रजाति के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाला एक शोध पत्र हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिका केव बुलेटिन में प्रकाशित हुआ था।

डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा उत्तरी पश्चिमी घाट के खुले घास के मैदानों में ढलानों पर पनपता है, यह क्षेत्र गर्मियों में सूखे और अक्सर मानव-प्रेरित आग जैसी चरम जलवायु स्थितियों के संपर्क में आता है। इन कठोर परिस्थितियों के बावजूद यह प्रजाति अस्तित्व में रहने और साल में दो बार खिलने के लिए खुद को अनुकूलित किया है। पहला पुष्प चरण मानसून के बाद (नवंबर की शुरुआत) से मार्च या अप्रैल तक होता है, जबकि मई और जून में दूसरा पुष्प चरण आग से शुरू होता है। इस दूसरे चरण के दौरान, वुडी रूटस्टॉक्स छोटे पुष्पों की टहनियां पैदा करते हैं, जो अधिक प्रचुर मात्रा में लेकिन कम अवधि की होती है।

डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा की खोज संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। आग के प्रति इस प्रजाति का अनूठा अनुकूलन और पश्चिमी घाट में इसके सीमित उत्पत्ति स्थान घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र के सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता को उजागर करते हैं। बार-बार होने वाली मानव-प्रेरित आग, जो इस प्रजाति के जीवन चक्र का हिस्सा है, आवास क्षरण को रोकने के लिए संतुलित किया जाना चाहिए। घास के मैदानों को अत्यधिक उपयोग से बचाना और यह सुनिश्चित करना कि आग प्रबंधन प्रथाएं जैव विविधता का समर्थन करती हैं, इस नई खोजी गई प्रजाति के संरक्षण में महत्वपूर्ण कदम है।

यह खोज पश्चिमी घाटों के संकटपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करने के महत्व को प्रदर्शित करती है। इसमें अद्वितीय अनुकूलन वाली अभी कई और प्रजातियां खोजी जानी है

 

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आईआईटी रोपड़ ने घुटना रीहबिलटैशन के लिए किफायती और ऑफ-ग्रिड समाधान के साथ शल्य चिकित्सा में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला पेटेंटेड मैकेनिकल उपकरण विकसित किया

सर्जरी के बाद घुटने के रीहबिलटैशन के लिए एक महत्वपूर्ण सफलता के रूप में, आईआईटी रोपड़ के शोधकर्ताओं ने निरंतर निष्क्रिय गति (सीपीएम) थेरेपी को और अधिक सुलभ और किफायती बनाने के लिए एक अभिनव समाधान ढूंढ लिया है। आईआईटी रोपड़ की टीम ने घुटने के रीहबिलटैशन के लिए एक पूरी तरह से मैकेनिकल पैसिव मोशन मशीन विकसित की है और इसका पेटेंट कराया गया है, पेटेंट नम्बर 553407 है।

महंगी और बिजली से चलने वाली पारंपरिक मोटर चालित सीपीएम मशीनों से अलग, नव विकसित उपकरण पूरी तरह से यांत्रिक है। यह एक पिस्टन और पुली सिस्टम का उपयोग करता है, जो उपयोगकर्ता द्वारा हैंडल खींचने पर हवा को संग्रहीत करता है, जिससे घुटने के रीहबिलटैशन में सहायता के लिए सुचारू और नियंत्रित गति संभव होती है। यह सरल उपकरण हल्का और पोर्टेबल दोनों है और डिज़ाइन प्रभावी होने के कारण इसे बिजली, बैटरी या मोटर की कोई आवश्यकता नहीं है।

मैकेनिकल सीपीएम मशीन, कई रोगियों की पहुंच से बाहर महंगी इलेक्ट्रिक मशीनों के आशाजनक विकल्प प्रदान करती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बिजली की आपूर्ति निरंतर नहीं रहती। बिजली पर निर्भरता को कम करके, यह ऑफ-ग्रिड स्थानों में भी सहज रूप से अनिवारक गति चिकित्सा को संभव बनाती है।

इसके अतिरिक्त, इसकी पोर्टेबिलिटी के कारण मरीज इसे घर में आराम से उपयोग कर सकते हैं, जिससे उन्हें अस्पताल में लंबे समय तक रहने और रीहबिलटैशन के लिए जाने की आवश्यकता कम हो जाती है।

घुटने की सर्जरी से ठीक होने वाले रोगियों के लिए निरंतर अनिवारक गति एक महत्वपूर्ण चिकित्सा है, जो जोड़ों की गतिशीलता में सुधार, कठोरता को कम करने और रिकवरी में तेजी लाने में मदद करती है। इस यांत्रिक मशीन की शुरूआत एक लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है, जो घुटने के रीहबिलटैशन में किफायती स्वास्थ्य सेवा के लिए नई संभावनाओं का द्वार खोलती है।

इस अभिनव उपकरण का विकसित किया जाना सभी लोगों को स्वास्थ्य सेवा पहुँचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ संसाधन सीमित हैं। टीम की उपलब्धि से भारत के साथ ही और वैश्विक स्तर पर भी घुटने के रीहबिलटैशन के मामलों में स्थायी प्रभाव देखने को मिलेगा।

श्री सूरज भान मुंडोतिया और डॉ. समीर सी. रॉय की टीम के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. अभिषेक तिवारी ने कहा, “ये उपकरण भारत में घुटने के रीहबिलटैशन में क्रांति लाने की क्षमता वाला है, अभी इस क्षेत्र में उन्नत चिकित्सा तकनीक तक हमारी पहुँच सीमित है।” उन्होंने कहा, “इसे कम लागत वाला, टिकाऊ बनाया गया है जो न केवल रिकवरी में सहायता करता है बल्कि मोटर चालित उपकरणों से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने में भी मदद करता है।”

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कैबिनेट ने 2024-25 में वेज एंड मीन्स एडवांस को इक्विटी में परिवर्तित करके भारतीय खाद्य निगम में 10,700 करोड़ रुपये की इक्विटी डालने को मंजूरी दी

प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में वित्तीय वर्ष 2024-25 में कार्यशील पूंजी के लिए 10,700 करोड़ रुपये की इक्विटी डालने को मंजूरी दे दी है। इस निर्णय का उद्देश्य कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना और देश भर के किसानों का कल्याण सुनिश्चित करना है। यह रणनीतिक कदम किसानों को समर्थन देने और भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

एफसीआई ने 1964 में 100 करोड़ रुपये की अधिकृत पूंजी और 4 करोड़ रुपये की इक्विटी के साथ अपनी यात्रा शुरू की थी। एफसीआई के संचालन में कई गुना वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप फरवरी, 2023 में अधिकृत पूंजी 11,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 21,000 करोड़ रुपये हो गई। वित्तीय वर्ष 2019-20 में एफसीआई की इक्विटी 4,496 करोड़ रुपये थी, जो वित्तीय वर्ष 2023-24 में बढ़कर 10,157 करोड़ रुपये हो गई। अब, भारत सरकार ने एफसीआई के लिए 10,700 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण इक्विटी को मंजूरी दी है, जो इसे वित्तीय रूप से मजबूत करेगी और इसके परिवर्तन के लिए की गई पहलों को एक बड़ा बढ़ावा देगी।

एफसीआई न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खाद्यान्नों की खरीद, रणनीतिक खाद्यान्न भंडार के रखरखाव, कल्याणकारी उपायों के लिए खाद्यान्नों के वितरण और बाजार में खाद्यान्नों की कीमतों के स्थिरीकरण के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इक्विटी का निवेश एफसीआई की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, ताकि वह अपने अधिदेश को प्रभावी ढंग से पूरा कर सके। एफसीआई फंड की आवश्यकता से जुड़ी कमी को पूरा करने के लिए अल्पकालिक उधार का सहारा लेता है। इस निवेश से ब्याज का बोझ कम करने में मदद मिलेगी और अंततः भारत सरकार की सब्सिडी कम होगी।

एमएसपी आधारित खरीद और एफसीआई की परिचालन क्षमताओं में निवेश के प्रति सरकार की दोहरी प्रतिबद्धता, किसानों को सशक्त बनाने, कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने और राष्ट्र के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक सहयोगात्मक प्रयास का प्रतीक है।

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भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) 2024 में फिल्म बाजार के व्यूइंग रूम में 208 फिल्में दिखाई जाएंगी

गोवा में 20 से 28 नवंबर तक आयोजित किए जा रहे 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में राज्य के सांस्कृतिक परिदृश्य पर प्रमुखता से ध्यान दिया जाएगा। इसके साथ ही, 18वां फिल्म बाजार भी 20 से 24 नवंबर तक चलेगा, जो फिल्म निर्माताओं और फिल्म उद्योग के पेशेवरों को आपस में जुड़ने, सहयोग करने और अपनी कला प्रदर्शित करने के लिए व्यापक मंच प्रदान करेगा।

इस साल, व्यूइंग रूम मैरियट रिज़ॉर्ट में आ गया है, जिसमें भारत और दक्षिण एशिया की बेहतरीन गुणवत्ता वाली फ़िल्मों की एक समृद्ध श्रृंखला है। फिल्मों के वितरण और उन्हें फाइनेंस करने की तलाश कर रहे फ़िल्म निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में डिज़ाइन किया गया, व्यूइंग रूम उन फ़िल्मों को प्रदर्शित करेगा, जो पूरी हो चुकी हैं या बनने के अंतिम चरण में हैं। इससे वैश्विक स्तर पर फ़िल्म प्रोग्रामर, वितरक, बिक्री एजेंट और निवेशकों को आपस में जुड़ने का मौक़ा मिलेगा। व्यूइंग रूम 21 से 24 नवंबर तक उपलब्ध रहेगा।

इस साल की व्यूइंग रूम लाइब्रेरी में 208 फिल्में देखने के लिए उपलब्ध होंगी , जिनमें से 145 फ़ीचर फ़िल्में, 23 मध्यम अवधि की फ़िल्में और 30 लघु फ़िल्में हैं। फ़ीचर और मध्यम लंबाई की फिल्मों की कुल सूची में एनएफडीसी द्वारा निर्मित और सह-निर्मित बारह फ़िल्में भी शामिल हैं, और एनएफडीसी-एनएफएआई के सहयोग से बनी 10 पुनः निर्मित (रिस्टॉर्ड) क्लासिक फ़िल्में भी शामिल हैं। व्यूइंग रूम में जमा की गई 30-70 मिनट अवधि वाली फिल्मों को मध्यम लंबाई वाली फ़िल्म श्रेणी में दिखाया जाता है और 30 मिनट से कम अवधि वाली फ़िल्में लघु फ़िल्म श्रेणी में होंगी।

फिल्म बाज़ार की अनुशंसाएं (एफबीआर)

फिल्म बाजार अनुशंसा (एफबीआर) सूची में 27 फिल्म प्रोजेक्ट्स को शामिल किया गया है, जिनमें 19 फीचर फिल्में, मध्यम अवधि की 3 फिल्में, 2 लघु फिल्में और 3 पुनः निर्मित क्लासिक फिल्में शामिल हैं।

एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक पृथुल कुमार का कहना है, “हम एफबीआर के लिए चयन की घोषणा करते हुए रोमांचित हैं, जो फिल्म निर्माताओं की रचनात्मकता और जुनून को दर्शाता है। यह पहल केवल फिल्मों को मान्यता देने के बारे में नहीं है, बल्कि कहानीकारों को उनके दृष्टिकोण से दुनिया को जानकारी साझा करने के लिए सशक्त बनाने के बारे में है। हम फिल्म की परिवर्तनकारी शक्ति में विश्वास करते हैं और अगली पीढ़ी के कलाकारों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि वे अपने अभिनय और शैली से दर्शकों को प्रेरित और उनका मनोरंजन करते हैं।”

एफबीआर से चयनित फिल्म प्रोजेक्ट्स को फिल्म बाज़ार में एक खुले सत्र के दौरान निर्माताओं, बिक्री एजेंटों, वितरकों,  फिल्म महोत्सव से जुड़े लोगों और संभावित निवेशकों सहित फिल्म उद्योग के पेशेवरों के समक्ष अपनी फिल्में पेश करने का मौका मिलेगा। व्यूइंग रूम से फ़ीचर, मध्यम और लघु अवधि की फिल्में बनाने वाले निर्माता, फ़िल्म बाज़ार के दौरान एक खुले सत्र में बिक्री एजेंटों, वितरकों और संभावित निवेशकों के सामने अपनी फ़िल्मों का प्रदर्शन  करेंगे । फ़िल्मों की पूरी सूची यहां देखें-

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एफबीआर सूची या व्यूइंग रूम में शामिल फिल्मों को उनके अपने लिए या प्रचार सामग्री में फिल्म बाजार के लोगों (प्रतीक चिन्ह) का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।

फिल्म बाज़ार के बारे में

फिल्म बाज़ार एक खुला मंच है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशियाई फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय बाजार में बढ़ावा देना है। फिल्म बाज़ार में व्यूइंग रूम एक सशुल्क मंच (पेड प्लेटफॉर्म) है, जहां फिल्म निर्माता एक निश्चित धनराशि का भुगतान कर व्यक्तिगत रूप से अपनी फिल्मों का अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों, विश्व बिक्री एजेंटों और खरीदारों के सामने प्रचार करते हैं।

व्यूइंग रूम एक ऐसा सीमित प्रतिबंधित क्षेत्र है, जो विक्रेताओं (फिल्म निर्माताओं) को दुनिया भर के खरीदारों (फिल्म प्रोग्रामर, वितरक, विश्व बिक्री एजेंट और निवेशक) से जोड़ता है। ‘खरीदारों’ की क्षमता का निर्धारण फिल्म बाज़ार की टीम उनकी प्रोफाइल के आधार पर करती है। ये खरीदार विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए व्यूइंग रूम सॉफ़्टवेयर के माध्यम से फिल्मों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के साथ-साथ फिल्म निर्माताओं से संपर्क करने में सक्षम होंगे।

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भारतीय तटरक्षक बल के पूर्व अपर महानिदेशक (सेवानिवृत्त) वीडी चाफेकर को 01 अप्रैल, 2025 से 31 मार्च, 2028 तक रीकाप आईएससी, सिंगापुर का कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया

भारतीय तटरक्षक बल के पूर्व अपर महानिदेशक (सेवानिवृत्त) वीडी चाफेकर को एशियाई जल क्षेत्र में जहाजों के खिलाफ होने वाली समुद्री डकैती और सशस्त्र। लूट का मुकाबला करने पर सिंगापुर में सूचना साझाकरण केंद्र (रीसीएएपी आईएससी) में क्षेत्रीय सहयोग समझौते के सातवें कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया है। उन्हें रीकाप आईएससी की शासी परिषद द्वारा  01 अप्रैल, 2025 से 31 मार्च, 2028 तक की अवधि के लिए कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया है। उनका चयन क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा एवं सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जो अधिक सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

वर्ष 2006 में स्थापित रीकाप आईएससी एशिया के समुद्री इलाकों में समुद्री डकैती और सशस्त्र लूट के खिलाफ सहयोग को बढ़ावा देने तथा गतिविधियों को विस्तार देने के लिए पहला क्षेत्रीय सरकार-से-सरकार का समझौता है। यह पूरे समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए सूचना साझा करने, रक्षा क्षमताओं की बढ़ोतरी और सहयोगात्मक प्रयासों को सुविधाजनक बनाने में सहायक रहा है। रीकाॅप आईएससी के एक प्रमुख अनुबंध पक्ष के रूप में, भारत ने एशियाई समुद्र में सुरक्षा व संरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए अपने समुद्री अनुभव तथा संसाधनों का लाभ उठाते हुए संगठन के मिशन में निरंतर सहयोग और योगदान दिया है

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केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात के साळंगपुर स्थित श्री कष्टभंजन देव हनुमान जी मंदिर में दर्शन व पूजन कर 200 करोड़ रूपए की लागत से बने 1100 कमरे के यात्री भवन का उद्घाटन किया

अपने संबोधन की शुरूआत में श्री अमित शाह ने सभी देशवासियों को दीपावली की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि आज नरक चतुर्दशी के दिन यहां एक भव्य यात्री भवन का निर्माण हुआ है। उन्होंने कहा कि इस यात्री भवन को एक पूर्ण हरित यात्री भवन कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस यात्री भवन में दूर-दूर से आने वाले लोगों के विश्राम की व्यवस्था की गई है। श्री शाह ने कहा कि लगभग 200 करोड़ रूपये की लागत से 9 लाख वर्ग फीट स्थान और 1100 से ज्यादा कमरों वाले इस यात्री भवन का निर्माण दो साल की अल्पावधि में ही संपन्न कर लिया गया है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि इस मंदिर में हनुमान जी महाराज की यह मूर्ति गोपालानंद जी महाराज की भक्ति और शक्ति से स्थापित हुई है। उन्होंने कहा कि यह स्थान स्वामीनारायण भगवान के प्रसाद का भी स्थान है। उन्होंने कहा कि इतना समर्पण, सेवा भाव और स्वामीनारायण भगवान के प्रति ऐसी श्रद्धा होने के बाद भी गोपालानंद स्वामी जी बहुत विनम्र हैं और ये बहुत कम लोगों में होती है। उन्होंने कहा कि यह यात्री भवन आने वाले कई वर्षों तक यात्रियों को आश्रय और दादा के दर्शन का मौका भी देगा।

अमित शाह ने कहा कि हनुमान जी महाराज के गुणों का वर्णन कोई कर नहीं सकता और हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि सात चिरंजीव में से एक हनुमान जी महाराज हैं। उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी ने हनुमान जी महाराज को ज्ञान गुण सागर कहा है। श्री शाह ने कहा कि जब एक आदर्श भक्त, आदर्श योद्धा, आदर्श मित्र और एक आदर्श दूत अपनी इन सभी शक्तियों को प्रभु श्री राम के चरणों में समर्पित करता है तब हनुमान जी महाराज बन चिरंजीवी होता है।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि यह कष्टभंजन देव हनुमान जी मंदिर युवाओं के लिए आध्यात्म और भक्ति की प्रेरणा का स्थान बनने वाला है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां हनुमान जी महाराज की कई प्रतिमाएं हैं और उनके अनेकानेक गुण होते हैं। श्री शाह ने कहा कि चौमुखी मूर्ति हो तो शत्रुओं का नाश, संकटमोचन हो तो संकट से मुक्ति, दक्षिणामुखी हो तो भय और परेशानी से मुक्ति, पंचमुखी हो तो अहिरावण यानी दुष्ट वृत्ति से मुक्ति पाने के लिए पूजा होती है, एकादश हो तो राक्षसी वृत्ति से और कष्टभंजन की मूर्ति हो तो शनि समेत सभी कष्टों का भंजन होता है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि आज सरदार पटेल की 149वीं जन्म जयंती है। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल जी ने एक अखंड और प्रचंड शक्तिशाली भारत के निर्माण का संकल्प किया था। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा सरदार साहब की 150वीं जयंती को दो साल तक मनाने का निर्णय, सरदार साहब के विचार व सिद्धांत के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ युवाओं को देश के प्रति निष्ठा व त्याग की प्रेरणा देगा।

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वायरल प्रोटीन खंडों से हाइड्रोजैल बनाने की अनोखी विधियों से दवा उपलब्धता में सुधार होगा

एसएआरएस-सीओवी-1 वायरस से केवल पांच अमीनो एसिड के छोटे प्रोटीन खंडों का उपयोग करके हाइड्रोजैल बनाने का एक नया तरीका खोजा गया है, जो लक्षित दवा उपलब्धता में सुधार और दवा के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।

दीर्घकालिक और संक्रामक रोगों में बढ़ोतरी के कारण, शोधकर्ता लगातार उपचार की प्रभावशीलता में सुधार के लिए दवा की उपलब्धता के नए तरीकों की तलाश कर रहे हैं। हाइड्रोजैल को उनके सूजन व्यवहार, यांत्रिक शक्ति और जैव-संगतता के गुणों के कारण दवा उपलब्धता के लिए उपयुक्त माना जाता है।

छोटे पेप्टाइड-आधारित हाइड्रोजैल में कई तरह के अनुप्रयोगों के लिए अपार संभावनाएं हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं ने इन प्रणालियों के जेलेशन को नियंत्रित करना बहुत चुनौतीपूर्ण पाया है, क्योंकि पेप्टाइड अनुक्रम में किया गया मामूली बदलाव भी स्व-संयोजन तंत्र और जेलेशन प्रवृत्ति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।

वायरस के संयोजन और विमोचन में एसएआरएस सीओवी ई प्रोटीन की संलिप्तता के बाद, कोलकाता में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान बोस इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि इसमें अंतर्निहित स्व-संयोजन गुण हाइड्रोजैल के विकास में योगदान दे सकते हैं।

बोस इंस्टीट्यूट में रासायनिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अनिरबन भुनिया और उनकी टीम ने इस संभावना का पता लगाया और उपयोगी जेल सामग्री बनाने के एक नये तरीके की खोज की।

हाल ही में प्रतिष्ठित जर्नल स्मॉल (विली) में प्रकाशित एक पेपर में, प्रो. भुनिया और भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास रियो ग्रांडे वैली, यूएसए और इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस, कोलकाता के उनके सहयोगियों ने दर्शाया कि एसएआरएस सीओवी-1 वायरस के केवल पांच अमीनो एसिड को पुनर्व्यवस्थित करके, अद्वितीय गुणों वाले पेंटापेप्टाइड्स से बने जैल बनाए जा सकते हैं। इनमें से कुछ गर्म होने पर जैल बनते हैं और कुछ अन्य कमरे के तापमान पर जैल में परिवर्तित हो जाते हैं।

इस अनूठी खोज से अनुकूलन योग्य हाइड्रोजैल जैसी महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रगति हो सकती है। इससे लक्षित दवा उपलब्धता में सुधार हो सकता है, जिससे दवा के दुष्प्रभावों को कम करके उपचार प्रभावकारिता को बढ़ाया जा सकता है।

यह हाइड्रोजैल सामग्री ऊतक इंजीनियरिंग में क्रांति ला सकती हैं, संभावित रूप से अंग पुनर्जनन में सहायता कर सकती हैं। ये जैल घाव भरने के उपचार को भी आगे बढ़ा सकते हैं और अनुसंधान के लिए अधिक सटीक रोग मॉडलिंग को सक्षम बना सकते हैं।

 

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