Breaking News

विविधा

डॉ. मनसुख मांडविया ने 75वें संविधान दिवस से पूर्व माय भारत के युवा स्वयंसेवकों की ओर से आयोजित ‘हमारा संविधान हमारा स्वाभिमान’ पदयात्रा निकाली

केंद्रीय युवा कार्यक्रम एवं खेल और श्रम एवं रोजगार मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने आज नई दिल्ली में 75वें संविधान दिवस के उपलक्ष्य में ‘माय भारत’ के स्वयंसेवकों की ओर से आयोजित 6 किलोमीटर लंबी पदयात्रा में भाग लिया। “हमारा संविधान हमारा स्वाभिमान” विषय पर आधारित यह पदयात्रा मेजर ध्यानचंद स्टेडियम से शुरू हुई और कर्तव्य पथ तथा इंडिया गेट से होकर गुजरी। इस पदयात्रा में माय भारत के 10,000 से अधिक युवा स्वयंसेवकों के साथ-साथ प्रमुख युवा हस्तियां, केंद्रीय मंत्री और सांसद शामिल हुए।

इस पदयात्रा की शुरुआत ‘एक पेड़ मां के नाम’ पहल के साथ हुई, जिसमें डॉ. मनसुख मांडविया ने अपने संसदीय सहयोगियों के साथ एक पेड़ लगाया। इसके बाद श्री पीयूष गोयल, श्री धर्मेंद्र प्रधान, श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, श्री किरण रिजिजू, श्री अर्जुन राम मेघवाल, सुश्री रक्षा निखिल खडसे जैसे केंद्रीय मंत्रियों के साथ-साथ अन्य सांसद इस पदयात्रा में शामिल हुए। योगेश्वर दत्त, मीराबाई चानू, रवि दहिया, योगेश कथूनिया जैसे प्रमुख युवा प्रतीकों और ओलंपिक पदक विजेताओं ने भी पदयात्रा में भाग लिया।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image001SNJP.jpghttps://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image0021Y7W.jpg

पदयात्रा के दौरान मीडिया से बातचीत में केंद्रीय मंत्री डॉ. मांडविया ने ‘माय भारत’ के 10,000 से ज़्यादा युवा स्वयंसेवकों की भागीदारी पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि देश के युवाओं ने न सिर्फ़ संविधान की प्रस्तावना पढ़ीबल्कि इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि नए भारत के युवा ‘विकसित भारत’ के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में एक व्यापक प्रदर्शनी के जरिए भारतीय संविधान की विकास यात्रा को प्रदर्शित किया गया और इसमें प्रमुख हस्तियों के योगदान को प्रमुखता से बताया गया। ऐतिहासिक वेशभूषा पहने युवाओं ने डॉ. बी. आर. अंबेडकर और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं का चित्रण करके इतिहास को जीवंत कर दिया, जिससे मनोरंजक अनुभव मिला। पूरे मार्ग के साथ-साथ, पदयात्रा में विभिन्न स्थलों पर जीवंत सांस्कृतिक प्रदर्शनियां दिखाई गईं। प्रतिभागियों ने पारंपरिक गुजराती नृत्य, राजस्थानी लोक नृत्य और ऊर्जावान पंजाबी भांगड़ा सहित मंत्रमुग्ध करने वाले अनेक सांस्कृतिक प्रदर्शनों का आनंद लिया।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image0034XFR.jpghttps://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image00458KL.jpg

इस पदयात्रा का उद्देश्य युवाओं में संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देना था। इस अवसर पर इंडिया गेट पर एक विशेष समारोह आयोजित किया गया, जिसमें युवाओं ने सामूहिक रूप से संविधान की प्रस्तावना पढ़ी। इस दौरान भारत के संविधान की नींव के रूप में प्रस्तावना की भूमिका और न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के इसके प्रमुख मूल्यों पर प्रकाश डाला गया। केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों की मौजूदगी में इस कार्यक्रम में भारतीय लोकतंत्र में इन सिद्धांतों के महत्व को रेखांकित किया गया। समारोह स्थल के रूप में राष्ट्रीय एकता के प्रतीक इंडिया गेट ने समारोह के प्रभाव को और बढ़ा दिया। प्रस्तावना पढ़ने के बाद, डॉ. मांडविया ने अपने संसदीय सहयोगियों के साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पुष्पांजलि अर्पित की। इस कार्यक्रम के केंद्र में युवाओं की भागीदारी रही। पूरे कार्यक्रम के दौरान माय भारत पंजीकरण अभियान चलाया गया। प्रतिभागी प्रस्तावना थीम वाले सेल्फी पॉइंट के साथ अपनी यादगार तस्वीरें ले सकते थे। पूरे रास्ते में माय भारत के स्वयंसेवकों ने प्रतिभागियों के लिए जलपान के स्टॉल लगाकर और स्वच्छ भारत अभियान में प्रमुखता से भाग लेकर पदयात्रा के पूरे मार्ग में स्वच्छता सुनिश्चित करके महत्वपूर्ण योगदान दिया।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image009DXB2.jpghttps://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image0101NYP.jpg

इस पदयात्रा में एनसीआर क्षेत्र के 125 से अधिक कॉलेजों और एनवाईकेएस, एनएसएस, एनसीसी और भारत स्काउट्स एंड गाइड्स सहित विभिन्न संगठनों के युवा प्रतिभागियों ने सफलतापूर्वक भाग लिया। यह संविधान के 75वें वर्ष के जश्न में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यानी मील का पत्थर साबित हुआ। इस कार्यक्रम में विकसित भारत के लिए संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करने और इसे बढ़ावा देने में युवाओं की भूमिका पर जोर दिया गया।

Read More »

मैं 90 के दशक की पीढ़ी के लिए ‘वंदे मातरम’ को और अधिक आकर्षक बनाना चाहता था: भारत बाला

प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक भारत बाला ने कहा, “मेरे पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे और 90 के दशक की पीढ़ी के लिए वंदे मातरम गीत को और अधिक आकर्षक बनाने के उनके अनुरोध पर मैंने ए.आर. रहमान द्वारा लोकप्रिय एल्बम ‘वंदे मातरम’ बनाया।” वह गोवा में 55वें इफ्फी में ‘सिनेमैटिक स्टोरीटेलिंग के संदर्भ में संस्कृति’ विषय पर पैनल चर्चा में बोल रहे थे। पैनल में अन्य वक्ता प्रतिष्ठित लेखक डॉ. सच्चिदानंद जोशी और अमीश त्रिपाठी थे।

श्री बाला ने कहा कि विज्ञापन का मतलब किसी उत्पाद के प्रति उत्साह और रोमांच पैदा करना है। इसी तरह वह नई पीढ़ी के लिए ‘वंदे मातरम’ को कूल बनाना चाहते थे और ‘वंदे मातरम’ एल्बम का गीत इसी सोच का नतीजा था।

श्री बाला ने बताया कि वे वर्चुअल भारत नामक एक नई परियोजना पर काम कर रहे हैं, जो देश के विभिन्न भागों से आने वाली 1000 कहानियों के माध्यम से भारत का इतिहास प्रस्तुत करेगी। श्री बाला ने निष्कर्ष देते हुए कहा कि “वर्तमान प्रणाली के विपरीत, जहां निर्माता या निर्देशक यह निर्णय लेते हैं कि फिल्म बनाने के लिए कौन सी कहानी चुननी है, फिल्मों की क्राउड फंडिंग आम जनता को अपनी पसंद की कहानियां चुनने की शक्ति दे सकती है।”

‘द शिवा ट्रिलॉजी’ और ‘राम चंद्र सीरीज’ के लोकप्रिय लेखक अमीश त्रिपाठी ने कहा कि कई दशकों से फिल्में समाज की वास्तविकताओं को चित्रित कर रही हैं। उन्होंने कहा कि जब कहानीकार अपने सांस्कृतिक परिवेश के प्रति सजग होगा तो अधिक प्रामाणिक कहानियाँ सामने आएंगी।

श्री त्रिपाठी ने निष्कर्ष निकाला, “हिंदी फिल्म उद्योग हमारे प्राचीन साहित्य में उपलब्ध विविध कहानियों का उपयोग करने में पीछे रह गया है, जबकि क्षेत्रीय सिनेमा ऐसी कहानियों को चुनने में कहीं बेहतर स्थिति में रहा है।”

प्रसिद्ध लेखक और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के सदस्य सचिव श्री सच्चिदानंद जोशी ने बताया कि मोबाइल फोन धीरे-धीरे हमारे घरों में बुजुर्गों के माध्यम से बताई जाने वाली पारंपरिक कहानीयों को कहने की कला को खत्म कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आम लोगों की असाधारण कहानियाँ जो अब हमारे बुजुर्गों के माध्यम से नहीं बताई जा रही हैं उन्हें सिनेमा द्वारा सामने लाया जा रहा है और फिल्मों के माध्यम से हम तक पहुंचाया जा रहा है। श्री जोशी ने निष्कर्ष देते हुए बताया, “क्लासिक साहित्य पर आधारित स्क्रिप्ट को अंतिम रूप देते समय शोध की कमी की भरपाई क्लासिक के विभिन्न संस्करणों के तत्वों को मिलाकर की जा रही है।”

सुप्रसिद्ध लेखक, श्री मकरंद परांजपे ने चर्चा का संचालन किया।

Read More »

‘अम्माज़ प्राइड’ और ‘ओंको कि कोठीन’- 55वें आईएफएफआई में वंचित समुदाय की आवाज़ को चित्रित करती दो फिल्मों प्रदर्शित की गयीं

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में दो बेहतरीन फ़िल्में ‘अम्माज़ प्राइड’ और ‘ओंको कि कोठीन’ को देश भर के सिनेमा प्रेमियों ने खूब पसंद किया। दोनों फ़िल्मों के निर्माता और कलाकारों ने आज गोवा के पणजी में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में मीडिया से बातचीत की।

अम्माज़ प्राइड: दृढ़ता और गर्व की यात्रा

इस साल आईएफएफआई की एकमात्र एलजीबीटीक्यू+ फ़िल्म, अम्माज़ प्राइड एक ट्रांसवुमन का सच्चा और ईमानदार चित्रण है, जो अपने पूरे जीवन में अपनी गरिमा और गौरव के लिए लड़ती है।

भारतीय पैनोरमा में गैर-फीचर फ़िल्मों के खंड के लिए चुनी गई यह लघु फ़िल्म, दक्षिण भारत की एक युवा ट्रांसवुमन श्रीजा के कष्टों और परेशानियों का चित्रण करती है। जिस तरह से वह अपनी शादी की जटिलताओं से निपटती है और इसे कानूनी मान्यता दिलाने के लिए लड़ती है और जिस तरह से उसकी माँ, वल्ली पूरे दिल से उसका समर्थन और मार्गदर्शन करती है, यही फ़िल्म का केंद्रीय भाव है।https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/24-9-3LPMH.jpg

मीडिया से अपनी फ़िल्म के बारे में बात करते हुए, निर्देशक शिव कृष्ण ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ट्रांसजेंडर लोगों के मुद्दों को दर्शाने वाली फ़िल्में बहुत कम और कभी-कभार बनती हैं। उन्होंने कहा, “ये फ़िल्में अक्सर ट्रांसपर्सन को रूढ़िवादी नकारात्मक रोशनी में चित्रित करती हैं, जिससे वे निराश हो जाते हैं। फ़िल्म की मुख्य पात्र माँ वल्ली हैं, जो खुद एक सिंगल मदर होने के बावजूद अपनी बेटी को अपने तरीके से जीने में सक्षम बनाती हैं।“

समाज में ट्रांसपर्सन के प्रति धारणा बदलने की उम्मीद करते हुए, नवोदित निर्देशक ने कहा, “हमने वरिष्ठ एलजीबीटीक्यू कार्यकर्ताओं और कई ट्रांसपर्सन को उनकी प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करने के लिए फ़िल्म दिखाई और वे फ़िल्म में दिखाई गई सकारात्मकता से चकित थे। यह मेरे लिए बहुत बड़ा मनोबल बढ़ाने वाला सिद्ध हुआ। वे यह भी चाहते हैं कि इस फ़िल्म का सामाजिक प्रभाव हो और हम भारत के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका में भी इस फ़िल्म के इर्द-गिर्द एक प्रभाव अभियान चलाने की योजना बना रहे हैं, जिससे मुझे उम्मीद है कि ट्रांसपर्सन के लिए मुख्यधारा के मीडिया में एक सकारात्मक लहर पैदा होगी।”

फ़िल्म समारोहों में प्रशंसा अर्जित करते हुए, इस वृत्तचित्र ने इस वर्ष कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय दक्षिण एशियाई फ़िल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ एलजीबीटीक्यू फ़िल्म के लिए शेर वैंकूवर पुरस्कार जीता है। इसे दुनिया भर के कई समारोहों जैसे 64वें क्राको फ़िल्म समारोह, वुडस्टॉक फ़िल्म समारोह 2024, अंतर्राष्ट्रीय दक्षिण एशियाई फ़िल्म समारोह कनाडा 2024 में भी प्रदर्शित किया गया है और इसे दर्शकों की खूब सराहना मिली है।

ओंको कि कोठीन – विपरीत परिस्थितियों के बीच सपने

55वें आईएफएफआई में वर्ल्ड प्रीमियर के तौर पर बंगाली फीचर फिल्म ‘ओंको कि कोठीन’ को भी इंडियन पैनोरमा खंड के लिए चुना गया है। फिल्म तीन वंचित बच्चों की कहानी है, जो एक अस्थायी अस्पताल बनाते हैं और इसे बनाए रखने की कोशिश में कई चुनौतियों का सामना करते हैं। कहानी इस उम्मीद के साथ खत्म होती है कि क्या ये तीनों बच्चे तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने सपने पूरे कर पाएंगे।

फिल्म के निर्देशक सौरव पालोधी कहते हैं, “कहानी तीन बच्चों, बबिन, डॉली और टायर की उम्मीद और दृढ़ संकल्प के बारे में है।” “कोविड महामारी के दौरान कई सरकारी स्कूल बंद हो गए, जिससे कई वंचित बच्चों की शिक्षा रुक गई। अगर सपनों की फैक्ट्रियां, यानि स्कूल बंद हो जाएं, तो बच्चे सपने देखना कहां सीखेंगे। इसलिए, जब मैंने फिल्म बनाने के बारे में सोचा तो यही मुख्य विचार मेरे दिमाग में आया।”

सम्मेलन में मौजूद फिल्म की अभिनेत्री उषाशी चक्रवर्ती ने बताया कि कैसे कहानी ने उन्हें इस प्रोजेक्ट को चुनने के लिए प्रेरित किया। “भारतीय सिनेमा में वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों का चित्रण करने वाली बहुत कम फिल्में बनती हैं। जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मुझे लगा कि इस कहानी को बड़े दर्शक वर्ग के बीच जाना चाहिए। तीन बच्चों की यह कहानी, जिन्होंने तमाम बाधाओं के बावजूद कभी हार नहीं मानी, आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणादायक कहानी है।”

पालोधी ने निष्कर्ष के तौर पर कहा, “हमारे देश में, वंचित पृष्ठभूमि के माता-पिता अपने बच्चों को केवल दोपहर के भोजन के लिए स्कूल भेजते हैं, उनके लिए सीखना गौण है। मैंने करीब से देखा है कि कैसे इन बच्चों के सपने उनके माता-पिता की सीमाओं और आर्थिक बाधाओं के कारण चकनाचूर हो जाते हैं। इसलिए, यह फिल्म बनाना इन बच्चों की कठोर वास्तविकता को सामने लाने तथा उनके दृढ़ संकल्प और ईमानदारी को दिखाने का मेरा तरीका था।”

Read More »

55वें आईएफएफआई में आयोजित पहली पैनल चर्चा में महिला सुरक्षा और सिनेमा पर चर्चा की गई

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) की पहली पैनल चर्चा आज महिला सुरक्षा और सिनेमा पर बातचीत के साथ शुरू हुई। प्रसिद्ध अभिनेत्री और निर्माता वाणी त्रिपाठी टिक्कू द्वारा संचालित इस सत्र में फिल्म निर्माता इम्तियाज अली, अभिनेत्री सुहासिनी मणिरत्नम, खुशबू सुंदर और भूमि पेडनेकर सहित पैनलिस्ट एक साथ आए। उन्होंने फिल्म उद्योग में महिलाओं की सुरक्षा, लैंगिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक मूल्यों को आकार देने में सिनेमा की भूमिका से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।

पैनलिस्टों ने व्यक्तिगत अनुभव और सोच साझा की कि कैसे फिल्म उद्योग महिलाओं को पर्दे पर और पर्दे के पीछे बेहतर तरीके से समर्थन कर सकता है और सशक्त बना सकता है। उन्होंने एक सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया जहां सिनेमा में महिलाएं उत्पीड़न या शोषण की चिंता किए बिना स्वतंत्र रूप से काम कर सके।

चर्चा का एक महत्वपूर्ण भाग इस बात पर केंद्रित था कि अगर कोई अपराधी पहचाना जाता है तो फिल्म सेट को किस तरह से पेश आना चाहिए। पैनलिस्ट इस बात पर सहमत हुए कि कार्यस्थल पर लैंगिक अन्याय के प्रति सहनशीलता अब स्वीकार्य नहीं है। सुहासिनी मणिरत्नम ने अपना अनुभव साझा किया कि कैसे पुरुष अभिनेता अक्सर सेट पर आते हैं और दृश्यों में बदलाव का सुझाव देते हैं ऐसा महिलाओं के साथ शायद ही कभी होता है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को भी अपने दृश्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और अपने प्रतिनिधित्व में निष्क्रिय भागीदार बनने के बजाय बातचीत शुरू करनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि उद्योग के पेशेवरों के लिए क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले कार्य संबंधी नैतिकता को समझना आवश्यक है।

इम्तियाज अली ने एक ऐसा कार्य संस्कृति बनाने के महत्व पर जोर दिया जहां सेट पर महिलाएं केवल कला पर ध्यान केंद्रित कर सकें बिना इस बात की चिंता किए कि उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माता सेट पर लैंगिक अन्याय के प्रति सहनशील नहीं हो सकते हैं।

इस बातचीत में फिल्मों में महिलाओं के चित्रण और यह कैसे उनके लिए एक सुरक्षित स्थान के निर्माण को सीधे प्रभावित करता है इस पर भी चर्चा हुई। भूमि पेडनेकर ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं की गरिमा और उन्हें पर्दे पर जिस तरह से दिखाया जाता है वह एक सम्मानजनक और सशक्त वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

खुशबू सुंदर ने कहा कि उनका ध्यान मनोरंजक फिल्में बनाने पर है, लेकिन वह ऐसा जिम्मेदारी से करती हैं यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके काम में समानता और सम्मान के सिद्धांतों से समझौता न हो। पैनलिस्ट सामूहिक रूप से इस बात पर सहमत हुए कि महिलाओं को गरिमा के साथ चित्रित करना केवल चरित्र के बारे में नहीं है, बल्कि बड़े पैमाने पर उद्योग के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करने के बारे में है।

चर्चा में दर्शकों ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया। दर्शकों ने सिनेमा में महिलाओं की उभरती भूमिका और कैसे उद्योग उनकी सुरक्षा या गरिमा से समझौता किए बिना उन्हें सफल होने के लिए जगह बनाना जारी रख सकता है इस बारे में सवाल पूछे।

आईएफएफआई 2024 के पहले पैनल के रूप में, इस बातचीत ने एक ऐसे उत्सव की शुरुआत की, जो न केवल सिनेमा की कला का उत्सव मनाता है बल्कि सभी के लिए एक सुरक्षित, अधिक समावेशी भविष्य को आकार देने में उद्योग की जिम्मेदारी की भी आलोचनात्मक जांच करता है।

Read More »

82 युवा कलाकारों को वर्ष 2022 और 2023 के लिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया

वर्ष 2022 और 2023 के असाधारण विजेताओं को सम्मानित करने के लिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार समारोह का उद्घाटन संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री अरुणीश चावला; सुश्री उमा नंदूरी, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय; संगीत नाटक अकादमी के उपाध्यक्ष श्री जोरावर सिंह जादव; संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा और संगीत नाटक अकादमी के सचिव श्री राजू दास ने किया।

डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, नई दिल्ली में 82 युवा कलाकारों को वर्ष 2022 और 2023 के लिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

 

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री अरुणीश चावला ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा, “यह देखकर खुशी हो रही है कि इस वर्ष के पुरस्कार विजेता भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो देश के हर कोने, हर क्षेत्र, हर राज्य और हर समुदाय की अनूठी विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस पुरस्कार के माध्यम से, संगीत नाटक अकादमी और भारत सरकार ने प्रदर्शन कला में उनके असाधारण योगदान को मान्यता दी है।”

पुरस्कार समारोह के बारे में बोलते हुए, संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा ने कहा, “यह देखना वास्तव में खुशी की बात है कि आज के युवा नर्तक किस तरह अपनी कला के प्रति इतनी लगन से समर्पित हो गए हैं। विकल्पों की प्रचुरता, वैश्वीकरण के प्रभाव और आधुनिक दुनिया की विकर्षणों के बावजूद, इन युवाओं ने आत्मविश्वास से अपना रास्ता चुना है। वे अपनी कला में महारत हासिल करने के लिए अथक प्रयास करते हैं और वह भावना आज यहां पुरस्कार विजेताओं में स्पष्ट झलकती है।”

पुरस्कार समारोह के बाद, 22 से 26 नवंबर, 2024 तक तीन अलग-अलग स्थानों – मेघदूत थिएटर कॉम्प्लेक्स, रवींद्र भवन, कोपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली; अभिमंच थिएटर, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, भावलपुर हाउस, नई दिल्ली और विवेकानंद ऑडिटोरियम, कथक केंद्र, चाणक्यपुरी में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार के विजेताओं की प्रस्तुति के लिए प्रदर्शन कला महोत्सव का आयोजन किया जाएगा।

 

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार

संगीत नाटक अकादमी ने 40 वर्ष की आयु तक के युवा प्रदर्शन कला साधकों के लिए वर्ष 2006 में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के नाम पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार (यूबीकेयूपी) की स्थापना की। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार हर साल संगीत, नृत्य, नाटक, लोक और आदिवासी कला और कठपुतली के क्षेत्र में उत्कृष्ट युवा कलाकारों को दिल्ली और दिल्ली के बाहर आयोजित एक विशेष समारोह में दिया जाता है। युवा पुरस्कार के तहत 25,000/- रुपये (केवल पच्चीस हजार रुपये) की राशि, एक पट्टिका और एक अंगवस्त्रम प्रदान किया जाता है।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार को शुरू करने के पीछे का उद्देश्य देश के संगीत, नृत्य, नाटक, लोक और आदिवासी कला रूपों और अन्य संबद्ध प्रदर्शन कला रूपों के क्षेत्र में युवा कलाकारों को प्रोत्साहित और प्रेरित करना था।

वर्ष 2022 और 2023 के लिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार विजेताओं की सूची इस प्रकार है:

वर्ष 2022 के लिए उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ युवा पुरस्कार

कला का क्षेत्रः संगीत -10

  1. समित मल्लिक हिंदुस्तानी गायन
  2. समर्थ जानवे हिंदुस्तानी गायन
  3. संगीत मिश्रा हिंदुस्तानी वाद्य संगीत (सारंगी)
  4. पार्थो रॉय चौधुरी हिंदुस्तानी वाद्य संगीत (संतूर)
  5. गायत्री कर्नाटक गायन
  6. आइ. श्वेता प्रसाद कर्नाटक गायन
  7. बी. अनंता कृष्णन कर्नाटक वाद्य संगीत (वायलिन)
  8. सहाना एस. वी. कर्नाटक वाद्य संगीत (वीणा)
  9. मनोज राय रचनात्मक एवं प्रायोगिक संगीत
  10. नंदिनी राव गुजर संगीत की अन्य प्रमुख परंपराएँ (सुगम संगीत)

कला का क्षेत्रः नृत्य -10

  1. मंदाक्रांता रॉय भरतनाट्यम
  2. कदम पारिख कथक
  3. ऊर्मिका माइबम मणिपुरी
  4. टी. रेड्डी लक्ष्मी कूचिपूड़ी
  5. आरूपा गायत्री पाण्डा ओडिसी
  6. डिम्पी बैश्य सत्रिय
  7. अक्षरा एम. दास मोहिनीआट्टम
  8. प्रद्युम्न कुमार मोहंता छऊ
  9. मिंगमा दोर्जी लेप्चा रचनात्मक एवं प्रायोगिक नृत्य
  10. अपर्णा नांगियार नृत्य एवं नृत्य नाट्य की अन्य प्रमुख परंपराएँ (नांगियारकुथु)

कला का क्षेत्रः रंगमंच– 08

  1. बेलुरु रघुनंदन नाट्य लेखन
  2. ईफ़रा मुश्ताक़ काक नाट्य निर्देशन
  3. हरिशंकर रवि नाट्य निर्देशन
  4. हरविंदर सिंह नाट्य अभिनय
  5. कुमार रविकांत नाट्य अभिनय
  6. सिद्धि उपाध्ये नाट्य अभिनय
  7. मुकुंद नाथ माइम (मूक अभिनय)
  8. संगीत श्रीवास्तव संबद्ध नाट्य कलाएँ (प्रकाश विन्यास)

कला का क्षेत्रः अन्य पारंपरिक/लोक/जनजातीय नृत्य/संगीत/नाट्य और पुतुल कला – 11

  1. लता तिवारी एवं संजय दत्त पांडे (संयुक्त पुरस्कार), लोक संगीत एवं नृत्य, उत्तराखंड
  2. चाउ साराथम नामचूम लोक संगीत, अरुणाचल प्रदेश
  3. समप्रिया पूजा लोक संगीत एवं नृत्य, छत्तीसगढ़
  4. सूर्यवंशी प्रमिला कौतिकराव लोक नृत्य (लावणी), महाराष्ट्र
  5. कुमार उदय सिंह लोक नृत्य, बिहार
  6. नसरुल्ला ईपीआइ लोक नृत्य, लक्षद्वीप
  7. बिनीता देवी पुतुल कला, असम
  8. महेश आबा सतरकर लोक नृत्य, गोवा
  9. वसावा मुकेशभाई एम. लोक नृत्य, गुजरात

10. गुलज़ार अहमद भट्ट लोक नृत्य, जम्मू-कश्मीर

11. मोइरांथेम केन्द्रा सिंह नट संकीर्तन, मणिपुर

कला का क्षेत्रः प्रदर्शन कला में समग्र योगदान/विद्वत्ता– 1

  1. अनुत्तमा मुरला प्रदर्शन कला में समग्र योगदान

वर्ष 2023 के लिए उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ युवा पुरस्कार

कला का क्षेत्रः संगीत -10

  1. अनुजा झोकरकर हिंदुस्तानी गायन
  2. मोनिका सोनी हिंदुस्तानी गायन
  3. ऋषि शंकर उपाध्याय हिंदुस्तानी वाद्य संगीत (पखावज)
  4. सारंग राजन कुलकर्णी हिंदुस्तानी वाद्य संगीत (सरोद)
  5. एस. आर. विनय शर्व कर्नाटक गायन
  6. रामकृष्ण मूर्ति कर्नाटक गायन
  7. अक्षय अनंतपद्मनाभन कर्नाटक वाद्य संगीत (मृदंगम)
  8. सैखोम पिंकी देवी रचनात्मक एवं प्रायोगिक संगीत
  9. सत्यवती मुडावत रचनात्मक एवं प्रायोगिक संगीत
  10. नागेश शंकरराव अडगांवकर संगीत की अन्य प्रमुख परंपराएँ (अभंग)

कला का क्षेत्रः नृत्य -10

  1. अपूर्वा जयरमण भरतनाट्यम
  2. मेघरंजनी मेडी कथक
  3. कलामंडलम विपीन शंकर कथकलि
  4. पुखराम्बम रीपा देवी मणिपुरी
  5. मुरमल्ला सुरेंद्र नाथ कूचिपूड़ी
  6. देबाशीष पटनायक ओडिसी
  7. मुकुंद सैकिया सत्रिय
  8. विद्या प्रदीप मोहिनीआट्टम
  9. सुनीता महतो छऊ
  10. वेंकटेश्वरन कुप्पुस्वामी नृत्य संगीत

कला का क्षेत्रः रंगमंच– 08

  1. प्रियदर्शिनी मिश्रा नाट्य लेखन
  2. बेन्दांग वॉलिंग नाट्य निर्देशन
  3. शुभोजीत बनर्जी नाट्य निर्देशन
  4. ऋतुजा राजन बागवे नाट्य अभिनय
  5. विपन कुमार नाट्य अभिनय
  6. श्रुति सिंह नाट्य अभिनय
  7. मल्लिकार्जुन राव बचाला सम्बद्ध नाट्य कलाएँ (रूप विन्यास)
  8. पुनीत डिमरी और अमित खंडूरी

(संयुक्त पुरस्कार) रंगमंच की अन्य प्रमुख परंपराएँ (रामलीला)

कला का क्षेत्रः अन्य पारंपरिक/लोक/जनजातीय नृत्य/संगीत/नाट्य और पुतुल कला – 11

  1. अंगदी भास्कर लोक संगीत (दप्पलु), तेलंगाना
  2. आलोक बिशोई लोक नृत्य एवं संगीत, ओडिशा
  3. एम प्रकाश लोक नृत्य, पुडुचेरी
  4. पद्मा डोलकर लोक संगीत और नृत्य, लद्दाख
  5. सुखराम पाहन लोक संगीत, झारखंड
  6. यूसुफ खान मेवाती जोगी लोक संगीत, राजस्थान
  7. कलामंडलम रवि शंकर टी. एस. लोक वाद्य (चेंडा), केरल
  8. दीक्षित कुशल मनवंतराय लोक नृत्य, गुजरात
  9. प्रियंका शक्ति ठाकुर पारंपरिक रंगमंच, महाराष्ट्र
  10. अनुरीत पाल कौर लोक संगीत, पंजाब
  11. चारु शर्मा लोक संगीत, हिमाचल प्रदेश

कला का क्षेत्रः प्रदर्शन कला में समग्र योगदान/विद्वत्ता – 1

  1. लक्ष्मीनारायण जेना, प्रदर्शन कला में समग्र योगदान

Read More »

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने आईआरईडीए की कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व पहल के तहत ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर में 10 बैटरी चालित वाहनों को हरी झंडी दिखाई

केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने आज ओडिशा के पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर में 10 बैटरी चालित वाहनों को हरी झंडी दिखाई। भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (आईआरईडीए) के कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) कार्यक्रम के तहत इस पहल का उद्देश्य पर्यावरण अनुकूल गतिशीलता को बढ़ावा देना और आगंतुकों के लिए पहुंच में सुधार करना है। इसका उद्देश्य वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों को इस प्रतिष्ठित विरासत स्थल तक पहुंचने में मदद करना है।

जोशी ने श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक को वाहन की चाबियाँ सौंपते हुए सांस्कृतिक स्थलों पर इस प्रकार की सतत पहल के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “इस ऐतिहासिक मंदिर में बैटरी से चलने वाले वाहनों की उपलब्धता हरित ऊर्जा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है और आगंतुकों को एक सुलभ तथा पर्यावरण अनुकूल परिवहन विकल्प प्रदान करती है। इस तरह की स्थायी पहलों में मदद करने में इरेडा के प्रयास राष्ट्र के हरित मिशन और महत्वपूर्ण विरासत स्थलों पर आगंतुकों के अनुभवों को बढ़ाने में उसके समर्पण को दर्शाते हैं।

इरेडा के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक श्री प्रदीप कुमार दास ने पर्यावरणीय स्थिरता के प्रति कंपनी की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए कहा कि इरेडा को हमारी सीएसआर पहलों के माध्यम से विरासत स्थलों के 10 पर्यावरण अनुकूल वाहनों के विकास में योगदान देने का सम्मान मिला है। यह परियोजना जीवन के हर क्षेत्र में टिकाऊ और नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के हमारे मिशन के अनुरूप है। इसका उद्देश्य आगंतुकों के लिए पर्यावरण अनुकूल गतिशीलता समाधान प्रदान करना है।

इस समारोह में इरेडा के निदेशक (वित्त) डॉ. बीके मोहंती के साथ नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई), श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन और इरेडा के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए। केंद्रीय मंत्री, इरेडा के सीएमडी, मंत्रालय और इरेडा के अन्य अधिकारियों ने भगवान जगन्नाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की।

Read More »

पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग ने 30 नवंबर, 2024 तक राष्ट्रव्यापी डिजिटल जीवन प्रमाणपत्र अभियान 3.0 शुरू किया है

पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग ने पेंशनभोगियों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रव्यापी डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र अभियान 3.0 शुरू किया है। जीवन प्रमाण, पेंशनभोगियों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का विजन है। डीएलसी अभियान 3.0 1 से 30 नवंबर, 2024 तक भारत के 800 शहरों/कस्बों में आयोजित किया जाएगा, जिसमें केंद्र/राज्य सरकारों/ईपीएफओ/स्वायत्त निकायों के सभी पेंशनभोगी पेंशन वितरण बैंकों या आईपीपीबी में अपने डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र जमा कर सकते हैं। सुपर सीनियर पेंशनभोगी इसे अपने घर से ही जमा कर सकते हैं और घर पर ही सेवाएंभी प्राप्त कर सकते है। सभी पेंशन वितरण बैंक, सीजीडीए, आईपीपीबी, यूआईडीएआई देशभर में डीएलसी अभियान को लागू करने के लिए मिलकर काम करेंगे।

राष्ट्रव्यापी अभियान 2.0 1 से 30 नवंबर, 2023 तक देश भर के 100 शहरों में 600 स्थानों पर 17 पेंशन वितरण बैंकों, मंत्रालयों/विभागों, पेंशनभोगी कल्याण संघों, यूआईडीएआई, एमईआईटीवाई आदि के सहयोग से चलाया गया। इस अभियान के तहत 1.47 करोड़ से अधिक डीएलसी बनाए गए, जो कि एक बड़ी सफलता थी।

अभियान 3.0 में, पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग कार्यालयों और सभी बैंक शाखाओं/एटीएम में लगाए गए बैनर/पोस्टर के माध्यम से डीएलसी-फेस ऑथेंटिकेशन तकनीक के बारे में सभी पेंशनभोगियों को बीच जागरूकता पैदा करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। सभी बैंकों ने अपनी शाखाओं में समर्पित कर्मचारियों की एक टीम बनाई है, जिन्होंने अपने स्मार्टफोन में आवश्यक ऐप डाउनलोड किए हैं, जो पेंशनभोगियों द्वारा जीवन प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए इस तकनीक का व्यापक रूप से उपयोग कर रहे हैं। यदि पेंशनभोगी वृद्धावस्था/बीमारी/कमजोरी के कारण शाखाओं में जा पाने में सक्षम नहीं है, तो बैंक अधिकारी उपरोक्त उद्देश्य के लिए उनके घर/अस्पताल भी जा रहे हैं।

पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन इस अभियान को अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं। उनके प्रतिनिधि पेंशनभोगियों को आस-पास के शिविर स्थलों पर जाकर डीएलसी जमा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग के अधिकारी भी देश भर में प्रमुख स्थानों का दौरा कर पेंशनभोगियों को उनके जीवन प्रमाण पत्र जमा करने के लिए विभिन्न डिजिटल तरीकों के इस्तेमाल में मदद कर रहे हैं और इस संबंध में हुई प्रगति की बहुत बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।

सभी हितधारकों, विशेष रूप से सभी स्थानों पर बीमार/बुजुर्ग पेंशनभोगियों में बहुत उत्साह देखने को मिला है। इसके परिणामस्वरूप, 3.0 अभियान के शुभारंभ के पहले सप्ताह के अंत तक 37 लाख से अधिक डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र बनाए गए, जिनमें से 90 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 14,329 पेंशनभोगी और 80-90 वर्ष की आयु के बीच के 1,95,771 पेंशनभोगी अपने घर/स्थान/कार्यालय/शाखाओं से अपने डीएलसी जमा कर सके।

एसबीआई और पीएनबी महीने भर चलने वाले अभियान के पहले सप्ताह के दौरान 5 लाख से अधिक डीएलसी बनाकर अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। महाराष्ट्र और तमिलनाडु राज्य महीने भर चलने वाले अभियान के पहले सप्ताह के दौरान 8.5 लाख से अधिक डीएलसी बनाकर सूची में शीर्ष पर हैं।

पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्याण विभाग इस अभियान को पूरे देश में सफल बनाने के लिए अपने सभी प्रयास जारी रखेगा।

Read More »

निडर, निष्पक्ष और सकारात्मक पत्रकारिता पर जोर

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर, -श्रीमदभगवत गीता को आत्मसात कर पत्रकारिता करें, इसमें है निर्माण का संदेश
कानपुर। भगवत गीता सिखाती है कि किस तरह निष्पक्ष, निडर, निस्वार्थ रहकर हम कर्म करें, जो हमें संतोष देगा और एक अच्छे समाज का निर्माण करेगा। पत्रकार भी गीता को आत्मसात कर पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करें।
ये विचार कानपुर प्रेस क्लब की ओर से नवीन मार्केट कार्यालय में “पत्रकारिता में गीता का महत्व” विषय पर आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किए। श्रीमद भगवत गीता वैदिक न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उमेश पालीवाल ने कहा समाज और राष्ट्र निर्माण में पत्रकारों की बड़ी भूमिका है। उन्हें गीता के संदेशों पर अमल करना चाहिए। उसमें स्पष्ट है कि कर्म ही धर्म है, उसी रास्ते पर बिना किसी डर, पक्षपात और स्वार्थ निष्काम भाव से चलते रहो। पत्रकारिता धर्म का निर्वहन इसी भाव से करो तो राष्ट्र मजबूत होगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़कर गीता को प्रचारित कर रहे अमरनाथ ने कहा कि निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता से बड़ा कोई धर्म नहीं है और इस पवित्र कर्म के पथ पर कदम नहीं डगमगाएं, गीता वैदिक न्यास के जिलाध्यक्ष एवं समजसेवी भूपेश अवस्थी ने कहा गीता के संदेश हृदय में रख पत्रकारिता के रास्ते पर चलेंगे तो बिल्कुल न तो डरेंगे और न ही विचलित होंगे। वरिष्ठ पत्रकार जुवैद फारूखी ने कहा गीता और कुरान, दोनों ही कर्म और इंसानियत की राह पर चलना सिखाते हैं, कर्म ही प्रधान है। गीता न्यास से जुड़े कमल द्विवेदी ने कर्मयोग पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ पत्रकार महेश शर्मा ने शायरी के जरिये कर्मयोग की बात कही। प्रेस क्लब के अध्यक्ष सरस वाजपेयी ने सकारात्मक पत्रकारिता पर जोर देते हुए गीता आत्मसात करने की अपील की। इस मौके पर प्रेस क्लब के मंत्री शिवराज साहू, मोहित दुबे, कोषाध्यक्ष सुनील साहू, कौशतुभ मिश्र, रोहित मिश्र, दीपक सिंह, मयंक मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार जीपी वर्मा, अनिल मिश्र, उन्नाव-शुक्लागंज प्रेस क्लब के अध्यक्ष मयंक और कई पत्रकार मौजूद रहे। संचालन प्रेस क्लब के महामंत्री शैलेश अवस्थी ने किया। इस मौके पर डॉ. उमेश पालीवाल सहित सभी अथितियों को शॉल और प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।

Read More »

संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने 5-6 नवंबर 2024 को नई दिल्ली में पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन आयोजित किया

संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने 5-6 नवंबर 2024 को नई दिल्ली में पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। इस शिखर सम्मेलन की उल्लेखनीय उपलब्धियों में दो समानांतर मंचों का सफल आयोजन था जिनमें कई तरह के व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए। इन मंचों के जरिए विचारों का समृद्ध आदान-प्रदान हुआ। जहां पहला मंच बुद्ध की मूलभूत शिक्षाओं और आधुनिक समय में उनके प्रयोगों पर केंद्रित था, दूसरे में उन तरीकों की खोज की गई जिनसे बौद्ध सिद्धांत सतत विकास, सामाजिक सद्भाव और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में योगदान दे सकते हैं।

कार्यक्रम में कई प्रस्तुतियाँ हुईं जिनके जरिये अद्वितीय विकल्प, दृष्टिकोण और कुछ अनोखे विचार प्रस्तुत किए गए ताकि समाज की भलाई के लिए इनका व्यावहारिक उपयोग किया जा सके। अब तक के सेमिनार और सम्मेलन मुख्य रूप से धार्मिक पहलुओं और उससे जुड़े प्रवचनों से संबंधित थे। इस शिखर सम्मेलन ने धम्म के प्राचीन दर्शन और विज्ञान से निकले कई नवीन विचारों को सामने रखा।

संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) द्वारा आयोजित यह एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’ विषय पर आधारित था। इसमें 32 देशों के 160 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों ने भाग लिया। महासंघ के सदस्य, विभिन्न मठवासी परंपराओं के संरक्षक, भिक्षु, भिक्षुणियाँ, राजनयिक समुदाय के सदस्य, बौद्ध अध्ययन के प्रोफेसर, विशेषज्ञ और विद्वान समेत लगभग 700 प्रतिभागियों ने इस विषय पर चर्चा की।

अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. सीऑन रेमन ने न्यूरोसाइंस से मानसिक अनुभूति की अवधि और उनके नैदानिक ​​अनुप्रयोगों में ध्यान के बौद्ध दृष्टिकोण के बीच तुलना की। किसी विचार (ध्यान-क्षण) के जागने और समाप्ति की प्रकृति पर विचार करने पर पता चला कि ये समय-सीमाएँ वही हैं जो ध्यानियों ने बिना घड़ी के सदियों पहले अनुमान लगाया था। पारमिता और ध्यान जैसे बौद्ध प्रथाओं के साथ-साथ न्यूरोफीडबैक और विज़ुअलाइज़ेशन तकनीकों के आधार पर यह मानसिक विकारों के उपचार में उपयोगी हो सकता है।

मंगोलिया में विपश्यना अनुसंधान केंद्र के निदेशक श्री शिरेन्देव डोरलिग द्वारा मंगोलियाई जेलों में बौद्ध अभ्यास का एक अनूठा योगदान पेश किया गया। कुछ शुरुआती रुकावटों के बाद विपश्यना ध्यान पाठ्यक्रम घोर अपराधियों वाली जेलों में भी बहुत अच्छे परिणाम दे रहे हैं।

अपने प्रस्तुतीकरण में श्री डोरलिग ने कहा कि उन्होंने जेल अधिकारियों से पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले कुछ निश्चित कार्य स्थितियों पर जोर दिया। इसमें जेल अधिकारियों को विपश्यना अभ्यास का प्रशिक्षण देना, अभ्यास और परंपरा के अनुरूप एक सख्त अनुशासित दिनचर्या और दिन के अंत में कैदियों के लिए एक दैनिक ‘समूह बैठक’ शामिल थी ताकि सफलता दर का वास्तविक आकलन किया जा सके।

अनेक प्रस्तुतियों के माध्य से मध्य एशिया, पूर्वी तुर्किस्तान और रूसी स्वायत्त गणराज्यों कलमीकिया, बुरातिया और तुवा के विशाल क्षेत्रों पर बौद्ध धर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया जैसे कि वास्तुकला, पूजा पद्धतियों और जीवन के दार्शनिक तरीके पर इसका प्रभाव, जिसके निशान पुरातात्विक दृष्टि से तथा प्राचीन ग्रंथों में आज भी मौजूद हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह इवनिंग कॉलेज के इतिहास विभाग के डॉ. जगबीर सिंह ने चीनी वास्तुकला के विकास पर बौद्ध प्रभावों के बारे में बात की। उन्होंने हान राजवंश से लेकर आज तक इसके विकास पर बात की।

पहली शताब्दी में हान सम्राट मिंग ने भारत से चीन गए पहले दो भारतीय भिक्षुओं-कश्यप मतंग और धर्मरत्न के सम्मान में व्हाइट हॉर्स मठ का निर्माण कराया था।

यह चीनी बौद्ध वास्तुकला का जन्म था। वास्तुकला के इस रूप को बाद में शुद्ध चीनी वास्तुकला में शामिल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप एक अनूठी वास्तुकला विरासत सामने आई जो बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक और सौंदर्य मूल्यों को दर्शाती है।

जापान के क्योटो स्थित ओटानी विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन विभाग की प्रमुख प्रोफेसर डॉ. शोभा रानी दाश ने जापानी बौद्ध धर्म में पूजे जाने वाले हिंदू देवताओं के बारे में बताया। उन्होंने हिंदू देवताओं के समूह के बारे में बताया जिन्हें बौद्ध धर्म के साथ जापान में बौद्ध देवताओं के रूप में लाया गया था लेकिन धीरे-धीरे उनमें से कई को शिंतो धर्म के जापानी मूल पंथ के साथ भी आत्मसात कर लिया गया। उन्होंने देवी सरस्वती का विशेष उल्लेख किया जिन्हें जापान में बेंजाइटन के नाम से जाना जाता है और स्थानीय लोग उनकी पूजा करते हैं।

तुर्की के अंकारा विश्वविद्यालय में पूर्वी भाषाओं और साहित्य के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. यालसीन कायाली ने उइगर तुर्की सांस्कृतिक दुनिया में बौद्ध धर्म की मौजूदगी के बारे में कम ज्ञात तथ्य सामने लाए। यह अध्ययन संस्कृत में सुवर्णभास सूत्र के रूप में ज्ञात बौद्ध ग्रंथ पर केंद्रित था, जिसे धर्मक्षेम के चीनी अनुवाद से उइगर-तुर्की बौद्ध विरासत क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया था और इसका नाम अल्तुनयारुक (स्वर्ण प्रकाश सूत्र) रखा गया था।

ऐसा माना जाता है कि चौथी शताब्दी में इसके चीनी अनुवाद तथा जापानी और अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद ने प्राचीन बौद्ध सिद्धांत को विश्व की सांस्कृतिक विरासत में शामिल करने में योगदान दिया।

इसी तरह, रूसी अकादमी के ओरिएंटल अध्ययन संस्थान के शोध फेलो डॉ. बाटर यू. किटिनोव ने बौद्ध धर्म कैसे पूर्वी तुर्किस्तान में फैल गया और लंबे समय तक बौद्ध धर्म को बनाए रखने में उइगरों की भूमिका क्या रही इस बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पूर्वी तुर्किस्तान में कुछ छोटे जनसंख्या समूह अभी भी बौद्ध धर्म का पालन कर रहे हैं जिनकी संख्या में वृद्धि हो रही है।

श्रीलंका से एसआईबीए परिसर के पाली और बौद्ध अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पोलगोले कुशलाधम्मा ने शारीरिक दुर्बलता और अन्य कष्टों, विशेष रूप से भावनाओं में नकारात्मक शक्तियों, जो मानसिक अशांति, दुःख, भय और हताशा आदि उत्पन्न करती हैं, पर काबू पाने के लिए माइंडफुलनेस अभ्यासों की उपयोगिता की पहचान करने के लिए बौद्ध ध्यान पर तंत्रिका विज्ञान संबंधी शोध की भूमिका की व्याख्या की।

उन्होंने विस्तार से बताया कि किस प्रकार बौद्ध धर्म मन की प्रकृति का अध्ययन करता है और मन के तर्कसंगत वर्णन की जांच करता है तथा अनुयायियों को मानसिक कष्टों को ठीक करने वाले स्वस्थ मानसिक व्यवहार विकसित करने के लिए मार्गदर्शन करता है।

भूटान में महाचुलालोंगकोर्न राजविद्यालय विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध अध्ययन महाविद्यालय (आईबीएससी) के व्याख्याता डॉ. उग्येन शेरिंग ने प्रसिद्ध अवधारणा सकल राष्ट्रीय खुशी (जीएनएच) के बारे में बात की और बताया कि कैसे बौद्ध दर्शन और सिद्धांत जीएनएच की अवधारणा को रेखांकित करते हैं, जो भूटान की नीतियों और सामाजिक मूल्यों को प्रभावित करते हैं। यह बौद्ध धर्म ही था जिसने भूटान को जीएनएच का उच्च स्तर प्राप्त करने में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बताया कि कैसे अन्य लोग इस मॉडल का अनुकरण कर सकते हैं।

श्रीलंका के कोलंबो विश्वविद्यालय में वियतनामी पीएचडी विद्वान गुयेन न्गोक आन्ह ने वियतनाम में सामंतवाद, उपनिवेशवाद और आधुनिकीकरण के दौरान बौद्ध धर्म के सामने आईं चुनौतियों के बारे में बताया।

हालांकि बौद्ध धर्म का वियतनामी समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह देश कई संघर्षों से गुजरा है और इसलिए मुक्ति (मोक्ष), शांति और खुशी (निर्वाण) के दर्शन ने वियतनामी समाज को मजबूती से एक साथ रखा है। दूसरी शताब्दी ईस्वी में वियतनाम में शुरू किया गया बौद्ध धर्म वियतनामी समाज का मूल सार है।

कजाकिस्तान के श्री रुसलान काजकेनोव ने बताया कि भले ही कजाकिस्तान बौद्ध देश नहीं है लेकिन देश में बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन के प्रति गहरी आस्था है। यह इसलिए भी है क्योंकि बौद्ध धर्म में टेंग्रियनवाद के साथ कई समानताएं हैं। इसके अलावा, बौद्ध धर्म ने इस क्षेत्र (मध्य एशिया) की कला, वास्तुकला और सांस्कृतिक परंपराओं को प्रभावित किया है, जिसमें बौद्ध कला और ऐतिहासिक स्मारकों के तत्व शामिल हैं। उन्होंने अगला एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन कजाकिस्तान में आयोजित करने का सुझाव दिया।

ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के विद्वानों ने भी इसी भावना के साथ बताया कि कैसे इन देशों के लोग अपनी बौद्ध विरासत के बारे में तेजी से जागरूक हो रहे हैं जिसे इस क्षेत्र में इसके प्रसार के शुरुआती वर्षों में स्थानीय लोगों द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार किया गया था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन दोनों देशों में अभी तक अज्ञात बौद्ध स्थलों की खुदाई की काफी गुंजाइश है। प्रतिनिधियों ने खुदाई पर भारतीय विशेषज्ञों और शिक्षाविदों को भी शामिल करने में उत्सुकता व्यक्त की जो बुद्ध की शिक्षाओं के सार और दुनिया के इस हिस्से में उनके प्रसार में मदद कर सकते हैं।

Read More »

भारत के उत्तरी पश्चिमी घाट में डिक्लिप्टेरा की एक नई अग्निरोधी, दोहरे खिलने वाली प्रजाति की वैज्ञानिकों ने खोज की

A close-up of a plantDescription automatically generatedचित्र 1: डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा 
भारत के पश्चिमी घाट में एक नई अग्निरोधी दोहरे खिलने वाली प्रजाति की खोज की गई है। यह एक ऐसी पुष्प संरचना है जो भारतीय प्रजातियों में दुर्लभ है। यह प्रजाति पश्चिमी घाट में पाई जाती है, जहां कई ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं जिनकी खोज अभी तक नहीं की गई है।

भारत के चार वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक पश्चिमी घाट, लंबे समय से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, पुणे के अघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) द्वारा अन्वेषण का केंद्र रहा है। पिछले कुछ दशकों से, एआरआई के वैज्ञानिक इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का गहन अध्ययन कर रहे हैं।

डॉ. मंदार दातार के नेतृत्व में एक टीम द्वारा हाल ही में की गई खोज, जिसमें तलेगांव-दभाड़े के वनस्पतिशास्त्री आदित्य धरप और पीएचडी छात्र भूषण शिगवान शामिल हैं, ने डिक्लिप्टेरा जीनस में एक नई प्रजाति को जोड़ा है, जिसका नाम उन्होंने डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा है। यह प्रजाति तलेगांव-दभाड़े से एकत्र की गई थी, जो अपने घास के मैदानों और चारा बाजारों के लिए जाना जाता है।

डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा एक विशिष्ट प्रजाति है, जो अपनी अग्निरोधी, पायरोफाइटिक प्रकृति और अपने असामान्य दोहरे खिलने के लिए उल्लेखनीय है। यह प्रजाति वर्गीकरण की दृष्टि से अद्वितीय है, जिसमें पुष्पक्रम इकाइयां (सिम्यूल्स) होती हैं जो स्पाइकेट पुष्पक्रम में विकसित होती हैं। यह स्पाइकेट पुष्पक्रम संरचना वाली एकमात्र ज्ञात भारतीय प्रजाति है, जिसका सबसे करीबी सहयोगी अफ्रीका में पाया जाता है।

इस प्रजाति का नाम इसके विविध रूपात्मक लक्षणों को दर्शाने के लिए डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा गया था। पहले नमूने 2020 के मानसून के दौरान एकत्र किए गए थे। इसकी विशेषताओं की स्थिरता की पुष्टि करने के लिए अगले कुछ वर्षों तक आदित्य धरप द्वारा निगरानी की गई थी। लंदन के केव बोटेनिक गार्डन के अग्रणी वैश्विक विशेषज्ञ डॉ. आई. डार्बीशायर ने इस प्रजाति की नवीनता की पुष्टि की। इस प्रजाति के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाला एक शोध पत्र हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिका केव बुलेटिन में प्रकाशित हुआ था।

डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा उत्तरी पश्चिमी घाट के खुले घास के मैदानों में ढलानों पर पनपता है, यह क्षेत्र गर्मियों में सूखे और अक्सर मानव-प्रेरित आग जैसी चरम जलवायु स्थितियों के संपर्क में आता है। इन कठोर परिस्थितियों के बावजूद यह प्रजाति अस्तित्व में रहने और साल में दो बार खिलने के लिए खुद को अनुकूलित किया है। पहला पुष्प चरण मानसून के बाद (नवंबर की शुरुआत) से मार्च या अप्रैल तक होता है, जबकि मई और जून में दूसरा पुष्प चरण आग से शुरू होता है। इस दूसरे चरण के दौरान, वुडी रूटस्टॉक्स छोटे पुष्पों की टहनियां पैदा करते हैं, जो अधिक प्रचुर मात्रा में लेकिन कम अवधि की होती है।

डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा की खोज संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। आग के प्रति इस प्रजाति का अनूठा अनुकूलन और पश्चिमी घाट में इसके सीमित उत्पत्ति स्थान घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र के सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता को उजागर करते हैं। बार-बार होने वाली मानव-प्रेरित आग, जो इस प्रजाति के जीवन चक्र का हिस्सा है, आवास क्षरण को रोकने के लिए संतुलित किया जाना चाहिए। घास के मैदानों को अत्यधिक उपयोग से बचाना और यह सुनिश्चित करना कि आग प्रबंधन प्रथाएं जैव विविधता का समर्थन करती हैं, इस नई खोजी गई प्रजाति के संरक्षण में महत्वपूर्ण कदम है।

यह खोज पश्चिमी घाटों के संकटपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करने के महत्व को प्रदर्शित करती है। इसमें अद्वितीय अनुकूलन वाली अभी कई और प्रजातियां खोजी जानी है

 

Read More »