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मैडम सर’ ने 500 शानदार एपिसोड्स पूरे किए, शो के कलाकारों ने मनाया इस उपलब्धि का जश्‍न!

‘मैडम सर’ ने 500 शानदार एपिसोड्स पूरे किए, शो के कलाकारों ने अपने अंदाज में मनाया इस उपलब्धि का जश्‍न!

सोनी सब के शो ‘मैडम सर’ ने सफलतापूर्वक 500 एपिसोड पूरे कर लिए हैं। यही वह समय है कि भारत की सबसे चहेती महिला पुलिस अधिकारियों के लिये हम सब जमकर ताली बजाएं। दो साल पहले अपने लॉन्‍च के बाद से ही, इस शो ने महिलाओं के नेतृत्‍व वाले मजबूत किरदारों और सोच-विचार कर बनाई गईं कहानियों एवं प्‍लॉट के साथ दर्शकों को काफी लुभाया है। इस शो में एसएचओ हसीना मलिक (गुल्‍की जोशी), करिश्‍मा सिंह (युक्ति कपूर), संतोष (भाविका शर्मा), पुष्‍पा सिंह (सोनाली नाईक) और चीता चतुर्वेदी (प्रियांशु सिंह) मुख्‍य भूमिकाएं निभा रहे हैं। शो में बड़े आत्‍मविश्‍वास और बेहतरीन तरीके से एक महिला पुलिस थाने को संभालने में रोजाना आने वाली चुनौतियाँ दिखाई गई हैं। इसके किरदारों ने अजीब से अजीब मामलों को पूरे ‘जज्‍बात’ के साथ और सबसे अभिनव तरीकों से सुलझाया है। पिछले 500 एपिसोड्स में ‘मैडम सर’ ने अनगिनत सामयिक विषयों और निजी अनुभवों को छुआ है, जो ऐसी लड़कियों के लिये प्रेरक हैं, जिन्‍हें अपने काम में महारथ पाने और उसे सहजता से करने की आकांक्षा है। महिला सशक्तिकरण से लेकर, दबंगई, सामाजिक रूढि़यों, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, आदि तक इस शो ने प्रासंगिक मुद्दों को ऐसी कहानियों के जरिए दिखाया है जोकि एक सकारात्‍मक एवं महत्‍वपूर्ण असर पैदा करने के लिए समाधान प्रदान करती हैं। आज हासिल हुई उपलब्धि के साथ ‘मैडम सर’ नये रास्‍तों पर बढ़ने के लिये तैयार है, और यह दर्शकों को बांधकर रखने की कोशिश करता रहेगा।  इस उपलब्धि पर अपनी बात रखते हुए, हसीना मलिक की भूमिका निभा रहीं गुल्‍की जोशी ने कहा, “मुझे ‘मैडम सर’ का हिस्‍सा बनकर बहुत गर्व और खुशी है, क्‍योंकि यह शो समस्‍याओं को हल करने की नई-नई विधियों से दयालुता और हास्‍य के भाव को फैलाता है। एक एक्‍टर के तौर पर इसमें मैंने न केवल नये लुक्‍स और शख्सियतों को अपनाया, बल्कि परफॉर्मेंस के मामले में भी मेरा दायरा बढ़ा। हमारे शो को दर्शकों से अब तक मिली प्रतिक्रिया काफी संतोषजनक रही है और हम आगे और भी ज्‍यादा एडवेंचर्स लाकर दर्शकों का मनोरंजन जारी रखना चाहते हैं। 500 एपिसोड्स पूरे करने और यह बेजोड़ उपलब्धि हासिल करने के लिये पूरी टीम को शाबाशी मिलनी चाहिये। यह ‘मैडम सर’ की यात्रा में एक नये अध्‍याय की शुरूआत है।‘’ करिश्‍मा सिंह की भूमिका निभा रहीं युक्ति कपूर ने कहा, “मैं 500 शानदार एपिसोड्स पूरे होने पर पूरे दिल से हमारी टीम को बधाई देना चाहती हूँ। यह उपलब्धि हासिल करने का अनुभव सपने जैसा लग रहा है और यह हमारी उस कड़ी मेहनत को दिखाता है, जो इस कहानी को पर्दे पर जीवंत करने में लगी है। इस शो ने हमें एक्‍टर के तौर पर कई बारीकियाँ जानने का मौका दिया और इसके नेरेटिव भी आधुनिक समय के हैं। ऐसे बेहतरीन कलाकारों और क्रू के साथ काम करना मैं अपना सौभाग्‍य मानती हूँ, जिन्‍होंने हमेशा मेरा साथ दिया। मैं ऐसी और भी उपलब्धियों की कामना करती हूँ।” संतोष की भूमिका निभा रहीं भाविका शर्मा ने कहा, “इतनी बड़ी उपलब्धि का हिस्‍सा बनकर मैं बहुत खुश और आभारी हूँ। एक शो को इतने लंबे समय तक चलाना और दर्शकों के लिये प्रासंगिक बनाये रखना कठिन है, लेकिन ‘मैडम सर’ ने कौतुहल पैदा करने और मनोरंजन देने वाली कहानियों के साथ एक बदलाव करके दिखाया है। एक टीम के तौर पर हमने इस शो को सफल बनाने के लिये बड़ी कोशिश की है और मैं दर्शकों से आग्रह करती हूँ कि वे हमें अपना प्‍यार और सहयोग लगातार देते रहें।” देखते रहिये ‘मैडम सर’, सोमवार से शनिवार रात 10 बजे, सिर्फ सोनी सब पर!

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भ्रष्ट सरकारी तन्त्र को दुस्साहसी बनाने वाला शासनादेश -डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के तहत हर पांच वर्ष में एक सरकार जाती है और दूसरी आती है| प्रत्येक सरकार सरकारी तन्त्र से सुचारू रूप से काम करवाने का न केवल संकल्प बार-बार दोहराती है बल्कि हर सम्भव प्रयास करती है कि प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मचारी अपने दायित्व का ईमानदारी पूर्वक निर्वाहन करें| लेकिन दुर्भाग्य कहें या विडम्बना कि जैसे जैसे लोकतान्त्रिक भारत की आयु बढ़ रही है वैसे वैसे सरकारी तन्त्र निकम्मा और नैतिक आचरण से हीन होता जा रहा है| किसी भी शिकायत या समस्या का संज्ञान लेकर उस पर कार्यवाही करने की अपेक्षा शिकायतकर्ता को विभिन्न माध्यमों से परेशान करके हतोत्साहित करना ही पूरे तन्त्र का एकमात्र उद्देश्य बन चुका है| इसके मूल में 9 मई 1997 को उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जारी शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997 है| जो किसी भी अधिकारी के विरुद्ध की गयी शिकायत के परिप्रेक्ष्य में उसका पूर्ण रूपेण संरक्षण करता है| इस शासनादेश की भाषा इतनी सरल और भावपूर्ण है कि पूरा आदेश पढ़ने के बाद हर कोई इसे प्रथम दृष्टया उचित कहने में संकोच नहीं करेगा| परन्तु इसका व्यावहारिक पक्ष उतना ही जटिल और लोकतन्त्र को मुंह चिढ़ाने वाला है| यही वह शासनादेश है जिसके चलते सूचना अधिकार जैसा प्रभावी कानून मजाक बनकर रह गया है| सूचना आयुक्तों के यहाँ द्वितीय अपीलों की लम्बी श्रंखला का कारण यही शासनादेश है| यह वही शासनादेश है जिसके कारण प्रतिदिन उच्च अधिकारियों के कार्यालय से लेकर मुख्यमन्त्री के जनता दरबार तक अनगिनत फरियादियों की भीड़ जमा होती है| एक ही शिकायत के निस्तारण हेतु उच्च अधिकारियों से लेकर राष्ट्रपति तक को शिकायतकर्ताओं द्वारा पत्र-दर-पत्र प्रेषित किये जाते हैं| इसके बाद भी उनकी समस्या का समाधान नहीं होता है| वहीं जिस अधिकारी के विरुद्ध शिकायत की जाती है वह पूर्ण निर्भय होकर भ्रष्टाचार के निते नये कारनामे करता रहता है|

शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997, 9 मई 1997 को कार्मिक अनुभाग-1 उत्तर प्रदेश शासन के तत्कालीन विशेष सचिव के.एम.लाल की आज्ञा से सचिव जगजीत सिंह द्वारा प्रदेश के समस्त प्रमुख सचिवों/सचिवों, विभागाध्यक्षों/प्रमुख कार्यालयाध्यक्षों एवं सचिवालय के समस्त अनुभागों तथा सतर्कता विभाग के प्रमुख सचिव को प्रेषित किया गया था| “समूह ‘क’ (श्रेणी-1) के अधिकारियों के विरुद्ध प्राप्त शिकायती-पत्रों का निस्तारण” विषय वाले इस शासनादेश के अनुसार सामान्य व्यक्तियों से प्राप्त शिकायतों के सम्बन्ध में शिकायतकर्ता को शपथ-पत्र तथा शिकायत की पुष्टि हेतु समुचित साक्ष्य उपलब्ध कराने के साथ जाँच अधिकारी के समक्ष बयान देने हेतु प्रस्तुत होने का निर्देश दिया जाता है| इसके बाद जाँच की लम्बी प्रक्रिया कच्छप गति से आगे बढ़ती है| कहने को तो यह शासनादेश मात्र समूह ‘क’ (श्रेणी-1) के अधिकारियों के विरुद्ध प्राप्त शिकायतों के सन्दर्भ में है| परन्तु इसका इस्तेमाल न केवल हर छोटे-बड़े अधिकारी को बचाने में होता है बल्कि शिकायत के निस्तारण को लम्बित और प्रभावहीन बनाने में भी इसको ढाल और तलवार के रूप में प्रयुक्त किया जाता है| गम्भीर से गम्भीर मामले का शिकायती-पत्र प्रेषित करने के बाद प्रथम दृष्टया उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता| लम्बी प्रतीक्षा के बाद जब शिकायतकर्ता उच्च अधिकारियों को पत्र लिखता है या सूचना अधिकार का प्रयोग करता है| तब उसको इस शासनादेश का हवाला देते हुए शपथ-पत्र एवं साक्ष्यों सहित बयान देने हेतु जाँच अधिकारी के समक्ष पेश होने का निर्देश मिलता  है| अनेक मामलों में हर किसी के पास साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते और यदि हुए भी तो महीनों की समयावधि तक उन्हें सुरक्षित रख पाना मुश्किल होता है| इसके बाद पैसा तथा समय लगाकर शपथ-पत्र बनवाना और फिर बयान देने हेतु जाँच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होना, सामान्य या रोज खाने-कमाने वाले व्यक्ति के लिए दुरूह कार्य जैसा है| कोई शिकायतकर्ता यदि साहस करके पूरी कवायद करता भी है तो उसे बयान के नाम पर उलझाने का प्रयास होता है| पहले एक अधिकारी बुलाता है फिर दूसरा बुलाता है| अवसर मिलते ही यह सिद्ध कर दिया जाता है कि शिकायतकर्ता की शिकायत के प्रति कोई रूचि नहीं है| इस बीच जिसके विरुद्ध शिकायत होती है वह साम, दाम, दण्ड, भेद द्वारा शिकायतकर्ता पर दबाव डालकर शिकायत वापस करवाने या फिर मामले को फर्जी सिद्ध करवाने का प्रयास करता है| कई मामलों में तो जाँच उसी अधिकारी को सौंप दी जाती है, जिसके विरुद्ध शिकायत होती है| कुल मिलाकर शिकायत को प्रभावहीन बनाकर दोषियों को बचाने का खुला खेल इस शासनादेश की आड़ में चल रहा है| इस सन्दर्भ में लेखक का निजी अनुभव है| बीते अगस्त माह में लेखक ने अपने पिताजी को खांसी की समस्या के चलते कानपुर के मन्नत हॉस्पिटल में भर्ती करवाया था| इस अस्पताल के संचालक मनीष सचान को क्षेत्रीय जनों की तरह लेखक भी एम.एम.बी.एस. डॉक्टर समझता था| मनीष सचान ने स्वयं को कानपुर के सरकारी अस्पताल के.पी.एम. हॉस्पिटल का सरकारी डॉक्टर बताया था| जबकि बाद में मालूम हुआ कि वह वहाँ चिकित्सक न होकर फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत है| क्षेत्रीय जनों को वेवकूफ बनाकर सुबह-शाम मन्नत हॉस्पिटल में ओपीडी करने वाले इस तथाकथित डॉक्टर के गलत इलाज से 30 अगस्त को लेखक के पिता की मृत्यु हो गयी| अतः लेखक ने अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को पत्र भेजकर उक्त चिकित्सक तथा ऐसे सभी चिकित्सकों को प्रश्रय देकर आम जन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाले चिकित्साधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने की मांग की| इस बीच पिताजी को श्रद्धांजलि देने लेखक के घर पहुँचे क्षेत्रीय विधायक तथा वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को भी उक्त प्रकरण से अवगत कराया गया| उन्होंने तत्काल मुख्य चिकित्साधिकारी को फोन करके पन्द्रह दिनों में कार्यवाही करने का निर्देश दिया| इसके बाद भी जब कुछ नहीं हुआ तब लेखक ने सूचनाधिकार के तहत अपनी शिकायत के सन्दर्भ में जानकारी मांगी| तब अपर निदेशक कार्यालय द्वारा पत्र भेजकर उपरोक्त शासनादेश का हवाला देते हुए शपथ-पत्र एवं साक्ष्य सहित बयान देने हेतु उपस्थित होने का निर्देश दिया गया| इस खानापूर्ति के लगभग दो माह बाद अपर मुख्य चिक्तिसाधिकारी के कार्यालय में पुनः साक्ष्य सहित बयान हेतु बुलाया गया| इस दिन 23 दिसम्बर था| यहाँ गौरतलब है कि लेखक ने अपनी शिकायत में स्वास्थ्य विभाग के जिन अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की मांग की थी, उनमें अपर मुख्य चिकित्साधिकारी भी एक हैं| क्योंकि प्राईवेट अस्पतालों का नोडल अधिकारी प्रायः अपर मुख्य चिकित्साधिकारी को ही बनाया जाता है| जिनकी सहायता से मुख्य चिकित्साधिकारी प्राईवेट अस्पतालों के मानक की निगरानी करते हैं| लेखक के एक पत्रकार मित्र भी साथ गये थे| जो कि पिताजी की मृत्यु वाले दिन बराबर साथ थे| अपर मुख्य चिक्तिसाधिकारी के कार्यालय में पहुँचते ही सर्वप्रथम अकेले बयान देने का दबाव बनाया गया| जबकि लेखक चाहता था कि उसके मित्र साथ रहें| अतः बयान लेने वाले अधिकारी ने प्रोपेगंडा बनाते हुए बयान लेने से मना कर दिया| इसके बाद अपर मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा पत्र प्रेषित करके लेखक को पुनः बयान देने हेतु 17 जनवरी को बुलाया गया| जबकि यह पत्र 19 जनवरी को प्रेषित किया गया था| जो कि 20 जनवरी को प्राप्त हुआ| पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि यदि आप नहीं आये तो समझा जायेगा कि शिकायत के सम्बन्ध में आपको कुछ नहीं कहना है| जाहिर है जब 17 तारीख को बुलावे की सूचना 20 तारीख को प्राप्त होगी तब वही होगा जो पत्र प्रेषक चाहेगा| हुआ भी वही| अगले ही दिन शिकायत को निराधार बताकर प्रकरण को समाप्त करने की संस्तुति कर दी गयी| जब एक पत्रकार के मामले में यह हो सकता है तब फिर सामान्य व्यक्ति के साथ क्या होता होगा, यह स्वतः समझा जा सकता है| आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबे सरकारी तन्त्र को दुस्साहसी बनाने वाले उपरोक्त शासनादेश संख्या 13/1/97-का-1/1997 के रहते क्या सामान्य व्यक्ति न्याय की अपेक्षा कर सकता है? यह प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा में है|

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केन्‍द्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कन्हेरी गुफाओं में विभिन्न सुविधाओं का उद्घाटन किया

केन्‍द्रीय पर्यटन, संस्कृति और उत्‍तर पूर्व क्षेत्र विकास मंत्री (डोनर) श्री जी. किशन रेड्डी ने आज बोरीवली के नजदीक संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित कन्हेरी गुफाओं में पर्यटकों के लिए विभिन्न सुविधाओं का उद्घाटन किया। संस्‍कृति मंत्री ने कहा, “कन्हेरी गुफाएं हमारी प्राचीन विरासत का हिस्सा हैं क्योंकि वे हमारे उद्भव और अतीत का प्रमाण प्रदान करती हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर किए गए कार्यों का उद्घाटन करना सौभाग्य की बात है। बुद्ध का संदेश संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए आज भी महत्‍वपूर्ण है।”

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श्री रेड्डी ने कहा कि हमारी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण में रुचि दिखाना और उसकी जिम्मेदारी लेना प्रत्येक नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है। संस्‍कृति मंत्री ने कहा कि हमारी विरासत की रक्षा, संरक्षण और प्रचार-प्रसार में सार्वजनिक-निजी भागीदारी, कॉरपोरेट और सिविल सोसाइटी संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां इन खजानों तक पहुंच सकें। इंडियन ऑयल फाउंडेशन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के साथ हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के हिस्से के रूप में कन्हेरी में उन्नत पर्यटक बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के कार्य में शामिल है। वर्तमान इमारत में आगन्‍तुक मंडप, रखवाली करने वालों के आवास, बुकिंग ऑफिस को अपग्रेड करने के साथ उनका नवीनीकरण किया गया है। बुकिंग काउंटर से लेकर कस्टोडियन क्वार्टर तक के क्षेत्र को प्राकृतिक दश्‍यों से सुशोभित किया गया है। चूंकि गुफाएं जंगल के मुख्य क्षेत्र में आती हैं, बिजली और पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती है, इसके बावजूद सौर ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से बिजली की व्यवस्था की गई है। आगंतुकों की रुचि बनाए रखने के लिए सरल और सुविधाजनक विवेचना केन्‍द्र की स्‍थापना की गई है जिसमें ग्यारह व्‍याख्‍यात्‍मक पैनलों की मदद से प्रमुख गुफाओं की उत्कृष्ट विशेषताओं और अद्वितीयता को उजागर किया गया है। कन्हेरी का ट्रेल मैप यानी रास्‍ता दिखाने वाला नक्‍शा एक और महत्वपूर्ण विशेषता है जो आगंतुकों का समय बचाने में मदद करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पूरे मठ परिसर के 3डी वर्चुअल टूर पर भी काम कर रहा है। कन्हेरी गुफाएं मुंबई के पश्चिमी बाहरी इलाके में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों में बड़े पैमाने पर बेसाल्ट आउटक्रॉप में गुफाओं का समूह और कटी हुई चट्टानों से बने स्मारकों का एक समूह है। इनमें बौद्ध मूर्तियां और राहत नक्काशी, पेंटिंग और शिलालेख हैं, जो पहली शताब्दी सीई से 10वीं शताब्दी सीई तक की हैं। पानी के अनेक जलाशयों के साथ खुदाई की सतह और क्षेत्र, शिलालेख, एक सबसे पुराना बांध, एक स्तूप दफन गैलरी और उत्कृष्ट वर्षा जल संचयन प्रणाली इसकी एक आश्रम और तीर्थ केन्‍द्र के रूप में लोकप्रियता का संकेत देती है। कन्हेरी सातवाहन, त्रिकुटक, वाकाटक और सिलहारा के संरक्षण में और क्षेत्र के धनी व्यापारियों द्वारा किए गए दान के माध्यम से फला-फूला।

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संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक महामहिम शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान के असामयिक निधन पर सम्मान स्‍वरूप कल पूरे देश में एक दिवसीय राजकीय शोक मनाया जाएगा

संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक महामहिम शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान का असामयिक निधन हो गया है। भारत सरकार ने दिवंगत गणमान्य व्यक्ति के सम्मान में पूरे देश में एक दिन का राजकीय शोक मनाने की घोषणा की है।

राजकीय शोक के दिन पूरे देश में उन सभी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा, जहां राष्ट्रीय ध्वज नियमित रूप से फहराया जाता है। इस दिन कोई भी आधिकारिक मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित नहीं होगा।

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स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देने के लिये असम और अरुणाचल प्रदेश में काष्ठशिल्प और अगरबत्ती उद्योग को गति देने में केवाईआईसी का बड़ा प्रयास

खादी और ग्रामीण उद्योग आयोग (केवाईआईसी)ने असम और अरुणाचल प्रदेश में 100 महिलाओं सहित 150 प्रशिक्षित खादी शिल्पकारों को स्व-रोजगार की विभिन्न गतिविधियों से जोड़ा है। केवाईआईसी के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में 50 शिल्पकारों को काष्ठकला की मशीनें वितरित कीं। इसी तरह उन्होंने गुवावाटी, असम में शिल्पकारों को अगरबत्ती बनाने वाली 50 मशीनें और अचार बनाने वाली 50 मशीनों का वितरण किया। पहली बार केवाईआईसी ने मशीनों द्वारा काष्ठकला का प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम शुरू किया है। यह कार्यक्रम अरुणाचल प्रदेश के स्थानीय युवाओं को दिया जा रहा है, जिसका उद्देश्य तवांग के स्थानीय जनजातीय युवाओं के लिये स्थायी रोजगार उत्पन्न हो सकें। इसका एक और उद्देश्य है राज्य की पारंपरिक काष्ठकला को दोबारा जीवित करना। सभी काष्ठ शिल्पकार बीपील परिवारों से सम्बंधित हैं तथा केवाईआईसी 20 दिनों का समग्र प्रशिक्षण देता है। प्रशिक्षण पूरा हो जाने के बाद इन शिल्पकारों को मशीनें प्रदान की जाती हैं।

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शनिवार को, श्री सक्सेना ने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएम-ईजीपी) के तहत 50 महिला शिल्पकारों को अगरबत्ती बनाने वाली 50 मशीनें वितरित कीं, ताकि वे अपनी अगरबत्ती निर्माण इकाइयां स्थापित कर सकें। इसका एक और उद्देश्य है कि स्थानीय अगरबत्ती उद्योग को मजबूत किया जाये। उल्लेखनीय है कि असम में अगरबत्ती निर्माण में बहुत रोजगार हैं। केवाईआईसी ने इसके लिये एक व्यापारिक साझीदार को भी जोड़ा है, जो असम का सफल स्थानीय अगरबत्ती निर्माता है। वह कच्चा माल उपलब्ध करायेगा तथा इन 50 महिला उद्यमियों को मजदूरी चुकाते हुये उनके द्वारा बनाई गई समस्त अगरबत्तियां खरीदेगा। केवाईआईसी अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि पूर्वोत्तर में युवाओं को आत्मनिर्भर बनाते हुये खादी गतिविधियों को प्रधानमंत्री की परिकल्पना “आत्मनिर्भर भारत” के साथ जोड़ा गया है। उन्होंने कहा, “केवाईआईसी ने पूर्वोत्तर में स्थायी रोजगार सृजन और पारंपरिक शिल्प को मजबूत करने पर लगातार जोर दिया है। केवाईआईसी के समर्थन से काष्ठशिल्प, अगरबत्ती निर्माण और अचार बनाने जैसे कृषि व खाद्य-आधारित उद्योगों के बल पर स्थानीय युवा व महिलायें सशक्त बनेंगी तथा उनके घर में ही रोजगार के अवसर मिलेंगे।” उल्लेखनीय है कि हाल में ही केवाईआईसी ने अरुणाचल प्रदेश में दो ‘अरि रेशम प्रशिक्षण और उत्पादन केंद्र’ खोलेहैं। साथ ही तवांग में मोनपा हस्तनिर्मित कागज उद्योग को दोबारा जीवित किया गया है। इसके अतिरिक्त केवाईआईसी ने पिछले दो वर्षों में अगरबत्ती और गोल बांस की छड़ी निर्माण सहित बांस उत्पादों की 430 इकाइयां असम और अरुणाचल प्रदेश में स्थापित की हैं।

 

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प्रधानमंत्री ने लुम्बिनी, नेपाल में मायादेवी मंदिर के दर्शन किये

गेट खुलने की आवाज़ सुन कर मीरा ने खिड़की से झांका तो देखा ,शेखर फ़ैक्ट्री से आ गये थे।शेखर मीरा के पति जो शहर के जाने माने बिज़नेसमैन है।मीरा एक घरेलू औरत जो नौकरों की मदद से घर को चला रही है।गर्मी से झुनझुनाइये शेखर ने अपने नौकर से पानी माँगा और सोफ़े पर बैठ गया।बाहर बहुत गर्मी है!ज़रा ऐ-सी तेज करो नौकर से ये कह कर आँखे बंद कर थोड़ा आराम करने के इरादे से लेट गया।सारा दिन काम करके थक जाता हूँ ,शेखर सोच रहा था कितने सालों से वो सारा बिज़नेस अकेले ही देख रहा है ,किस के लिए अपनी पत्नी और बच्चों

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तुम्हें रानी बनाने की चाह मे ,पता नही कब ..मै राजा से गुलाम हो गया”

गेट खुलने की आवाज़ सुन कर मीरा ने खिड़की से झांका तो देखा ,शेखर फ़ैक्ट्री से आ गये थे।शेखर मीरा के पति जो शहर के जाने माने बिज़नेसमैन है।मीरा एक घरेलू औरत जो नौकरों की मदद से घर को चला रही है।गर्मी से झुनझुनाइये शेखर ने अपने नौकर से पानी माँगा और सोफ़े पर बैठ गया।बाहर बहुत गर्मी है!ज़रा ऐ-सी तेज करो नौकर से ये कह कर आँखे बंद कर थोड़ा आराम करने के इरादे से लेट गया।सारा दिन काम करके थक जाता हूँ ,शेखर सोच रहा था कितने सालों से वो सारा बिज़नेस अकेले ही देख रहा है ,किस के लिए अपनी पत्नी और बच्चों के लिये।फिर सोचने लगा!
मेरे बच्चे सब अपनी मर्ज़ी ही करते है।मै उनकी हर ख्वाहिश पूरी करताहूँ,क्या वो भी मेरी कोई इच्छा या ज़रूरत पूरी कर पायेंगे?
ये कैसे कैसे सवाल आज मेरे मन मे आ रहे है ?शेखर ने सोचा।शायद थका हुआ हूँ तभी ऐसे विचार मेरे मन में आ रहे हैं।तभी मीरा आई और शेखर से कहा जल्दी से तैयार हो जाओ।आज पुनीत के यहाँ किटी पर जाना हैं।शेखर थका हुआ था सोचा कि बोल दूँ ,कि तुम ही हो आओ।फिर सोचा इस किटी में उसके दोस्त भी होगें।वो जायेगा तो अच्छा भी लगेगा।बेमन से उठा और तैयार होने के लिये अपने कमरे मे चला गया।दोनों थोड़ी ही देर मे पुनीत के यहाँ पहुँच गये।
सब से मिले ,बाते चली ,गाने बजाने नाचने का माहौल ने शेखर को तरोताज़ा कर दिया।रात को काफ़ी देर तक पार्टी चली।शेखर ने मीरा को चलने का इशारा किया और वो दोनों वहाँ से निकल पड़े।रास्ते में मीरा ने शेखर से पार्टी की बात छेड़ दी ,कहा आज सोनिया ने नये डायमंड के टॉपस पहने हुये थे।बता रही थी कि उसके पति ने उसे शादी की सालगिरह का तोहफ़ा दिया और ये भी कह रही थी, बारह लाख के बनवाये।तुनक कर बोली!पता नही,क्या समझती है खुद को और ज़िद्द करने के लहजे से शेखर से बोली !मुझे भी वैसे ही कानों के टॉपस चाहिए।शेखर ने कहा ,ले लेना।ये कौन सी बड़ी बात है। फिर मीरा ने इक और तीर चलाया।कहने लगी और देखा था,रश्मि ने इतना सुन्दर डायमंड का सैट पहना हुआ था।बता रही थी तीस लाख का लिया था।उसके पति ने उस को पचासवीं सालगिरह पर तोहफ़ा दिया है।वो भी चहक चहक कर सब को दिखा रही थी।शेखर मुझे भी वैसा ही सैट चाहिए । शेखर जो पीये हुये भी था कहने लगा !ले लेना।हम कौन सा कम है किसी से। जब सुबह दोनों चाय पीने बैठे तो भी मीरा ने फिर वही बातें दोहरा दी।शेखर ने कहा ! हाँ मैं भी देख रहा था पुनीत मित्तल अपनी फरारी गाड़ी की कितनी ढींगे मार रहा था।मैं भी लैमबरगीनी गाड़ी निकलवाता हूँ ताकि लोगों को भी पता लगना चाहिए कि हम भी किसी से कम नहीं।अपनी 4 कनाल की कोठी की बात ,पता नहीं कितनी दफ़ा अपने दोस्तों के सामने की उसने। क्या समझता है खुद को,हम भी अब 8 कनाल की कोठी लेंगे जल्दी ही, अब बडे लोगों के बीच रहना है तो ये सब तो करना ही पड़ेगा ।शेखर चाय पी कर जल्दी से फ़ैक्ट्री चला गया, दोस्तों कोई बड़ी बात नही।पैसा हो तो खर्च भी करना चाहिए।जो इच्छा हो, पूरी भी करनी चाहिए। देखा जाये ,तो औरतो का सपना होता है बड़ा घर ,पैसा ,गाड़ी और भी बहुत कुछ डिमांड करती रहती है पतियों से ।मगर देखने मे ये आता है जितनी बड़ी माँग को पूरा करना होता है ।पति को उतनी ही कड़ी मेहनत करनी पड़ती है ।कई बार तो साम दाम दंड भेद कोई भी तरीक़े से पैसा कमाया जाता है।ज़मीर तक दावँ पर लगा डालते हैं। शराफ़त से कमाई गई दौलत से इक सादा सच्चा जीवन जीया जा सकता है।बड़े बड़े शौक़ पूरे नही किये जा सकते। ये अलग बात है बड़ी बड़ी फ़ैक्टरियों की आमदनी से ये सब संभव भी है दोस्तों !
डायमंड जिसे मै सिर्फ़ इक चमकता हुआ पत्थर ही कह सकती हूँ और सोना जिसे पीले रंग की धातु मात्र ही समझती हूँ और इस बात से भी इनकार नहीं कर सकती ,ये सब चीज़ें हमारे दुख सुख मे काम भी आते है। ये बैंक बैलेंस ,ये ज़मीनें जायदाद जो हम पता नही ,कैसे कैसे किसी को दुख दे कर या किसी की आह ले कर ,बड़ी ख़ुशी के साथ इकट्ठा करते है जो अंत मे हमारा साथ न देंगी और मरने के बाद हमसे जब बल छल से किये गये करमो का हिसाब माँगा जायेगा तो कोई बच्चा या पत्नी इल्ज़ाम अपने सर नही लेगी कि मेरे कहने पर मेरे पति ने मुझे हीरे का सैट या जुलरी लेने के लिये ही ऐसा कोई करम बना लिया ।हमारी औरतों की बड़ी बड़ी इच्छायें आदमियों से ऐसे ऐसे काम करवा देती है जो उसके शरीर तो भुगतता ही है ,रूह पर भी दाग लग ज़ाया करते है। ये सोशल गैदरिगं मे यही सब हो रहा है आजकल।इक दूसरे से आगे निकलने की रेस। आनन्द लीजिए !इन सोशल नेटवर्किंग का ,मगर कोई ऐसी इच्छा अपने पति के सामने न रखे जिसे पूरा करते वक़्त वो अपना ईमान ही बेच डाले।
अग्नि के इर्द गिर्द फेरे लेने का मतलब ये नहीं ,उसे अपनी इच्छा पूर्ति का ज़रिया बना लिया जायें। उनकी भी अपनी इच्छा होती होगी ,पत्नियों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए। कई पुरुष औरत की हर इच्छा को पूरा करने के लिए कई हदें पार कर देता है और अगर पुरूष की ख़ास इच्छा हो ,जिसमें उसकी ख़ुशी हो ,तो पूरे परिवार को भी उस इच्छा का सम्मान भी करना चाहिए और कहीं न कहीं शायद हम सब ही अपने पिता या पति के प्रयासों के लिये ढंग से आभार भी प्रकट नही कर पाते। अगर आप सच में रानी बनना चाहतीं है तो अपने पति को राजा बनाये न कि अपना या अपनी इच्छायों का गुलाम। कहीं ऐसा न हो कि पति को ये लगने लगे।
“शौक़ तेरे भी थे और मेरे भी,मगर “ईमान”मेरा बिक गया ..तुम्हें रानी बनाने की चाह मे ,पता नही कब ..मै राजा से गुलाम हो गया”।

स्मिता केंथ

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स्वदेशी जागरण मंच के कानपुर प्रांत एक़ाई ने स्वावलंबी भारत अभियान के अंतर्गत ११ परिषदों ने संयुक्त रूप से देश को स्वावलंबी बनाने का बीड़ा उठाया है।

कानपुर 8 मई, भारतीय स्वरूप संवाददाता, दीनदयाल उपाध्याय सभागार, छत्रपति शाहू जी महाराज विश्विद्यालय, कानपुर में स्वदेशी जागरण मंच के कानपुर प्रांत एक़ाई ने स्वावलंबी भारत अभियन के अंतर्गत ११ परिषदों अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,विश्व हिंदू परिषद,लघु उद्योग भारती, वनवासी कल्याण आश्रम,ग्राहक पंचायत, भारतीय मज़दूर संघ,भारतीय किसान संघ, भारतीय जनता पार्टी, सहकार भारती एवं राष्ट्रीय सेवा भारती ने संयुक्त रूप से देश कोस्वावलंबी बनाने का बीड़ा उठाया है।
कार्यक्रम का शुभारंभ दूध दही के देश में पेप्सी कोला नहि चलेगा…के नारे के साथ हुआ। दीप प्रज्वलन तथा ज्ञान की देवी सरस्वती और पंडित दीं दयाल उपाध्याय के चित्र पर माल्यार्पण के साथ ही सभागार में स्वावलंबी स्वाभिमानी भाव जगाना है,चलो गाँव की ओर हमें फिर देश बनाना है- गीत गूँज उठा। नोयडा विश्वविद्यालय के कुलपति एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्रविद प्रोफ़ेसर भगवती शरण शर्मा ने देश की इकॉनमी का विश्लेषण किया उनके अनुसार विश्व की इकॉनमी में भारत का योगदान शून्य से १५०० ईश्वी तक ३४% था पर आज मात्र ३% है हमें वापस अपना स्वावलम्बन जगाना है। हमारा देश १४० करोड़ जनसंख्या वाला देश है और हमारे पास १८ करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है, जो विश्व में सर्वाधिक है। दुनिय में पर कैपिटा मिल्क प्रडक्शन ३५० लीटर है जबकि हमारे भारत की पर कैपिटा प्रडक्शन ५०० ली है। हमें अपने देश में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके देश को स्वावलंबी बनाना है। इससे पहले भारत का युवा अलगाववादी ताक़तों के चंगुल में चला जाए उनको रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराना है और I HATE FOR APPLYING JOBS का भाव जगाकर रोज़गार दाता बनाना है।
ग्राहक पंचायत के श्री हरिभाऊ खांडेकर,बी जे पी के श्री राम किशोरसाह सहकार भारती के गजेंद्र जी कानपुर के ज़िला सम्पर्क प्रमुख श्री प्रवीण कुमार मिश्रा ,यू पी टेक्स्टायल के निदेशक श्री पी सी ठाकुर तथा एम एस एम ई के कमिशनर श्री सर्वेश्वर शुक्ला जी ,चंद्र शेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक श्री वी के यादव ने युवाओं को नयीं रोज़गारपरक योगनाओ की जानकारी दी|
धन्यवाद ज्ञापन श्री पी के मिश्रा ने दिया प्रांत महिला प्रमुख श्रीमती शलिनी कपूर,क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री अजय उपाध्याय जी तथा प्रांत के सभी कार्यकरता उपस्थित रहे, कार्यक्रम में मुख्य रूप से ड़ा सत्यनारायण मिश्रा को स्वदेशी जागरण मंच का समन्वयक मनोनीत किया गया जिससे मंच का कार्य तेज़ी से हो सकेगा

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हाउस वाइफ

पालक के पत्तों में खो जाती है वो, मेथी बारीक कटी या नहीं इसी उधेड़बुन में घर के बाकी सारे काम कर जाती है वो!!
सबकी फरमाइश पूरी करती है वो, किसी ने घर मे तेज़ आवाज़ दी तो सारे काम छोड़ कर दौड़ पड़ती है वो,बच्चे भी क़भी- क़भी ढंग से बात नहीं करते उससे फिर भी अपनी ममता में कमी नहीं रखती है वो!!
पालक के पत्तों में खो जाती है वो,
याद नहीं उसको कब सँवारी थी आईने के सामने बैठ कर देर तक खुद में झांकी थी,वही जुड़ा जल्दी
वाला बनकर किचन की और बस भागी थी
अकेले बैठी थी सोच रही थी कि मैं भी कुछ कर सकती हूँ क्या,मग़र फिर याद आया सब्जी चढ़ा कर आई हो गैस पर वो ना जला जाये कहीं,इसे छोड़ो अभी सब्जी ज्यादा जरूरी है,खाने का स्वाद ना बिगड़ जाये इसलिए ये ज्यादा जरूरी है!!
पालक के पत्तों में खो जाती है वो,
कितनी ऐसी स्त्रियां है जो गुम हो गई रोज़मर्रा की इन्ही उधड़बुन मैं,खुद को भूल चुकी भरे पूरे परिवार में खो चुकी है,मग़र जब भी वक़्त मिलता है तो सोचती है ऊँचा उड़ाने की,देखे थे कुछ सपने उन्हें पूरा करने की,मग़र उसी दाफा फ़िर से एक और आवाज़ आती है और वो तेज़ी से फ़िर दौड़ लगती है
फ़िर सपनो की दुनिया से निकलकर हकीकत में खो जाती है!!
पालक के पत्तों में खो जाती है वो…..श्रद्धा श्रीवास्तव

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ग्लैमर की चमक में खोते लोग~ प्रियंका वर्मा महेश्वरी

कुछ दिन पहले मैंने मेरी बेटी के मुंह से डेट शब्द सुना। तभी उसके पिताजी ने उससे पूछा कि यह डेट क्या होता है? डेट पर जाना मतलब क्या? ऐसा नहीं था कि उन्हें पता नहीं था लेकिन वो बेटी के मुंह से सुनना चाह रहे थे। बेटी जरा झेंप गई, उसे समझ में नहीं आया कि वो इस बात को किस तरह से बताये। सोचती हूं कि वक्त कितनी तेजी से बदल रहा है। एक वक्त था जब हम डेट जैसे शब्द नहीं पहचानते थे। फोन पर बात करना भी मुश्किल होता था और मिलना तो हमारी कल्पना से बाहर की बात थी लेकिन आज बच्चे छोटी सी उम्र में डेट का मतलब जानते हैं और वो इस चलन को अपनाने में भी बड़ी खुशी महसूस करते हैं। बच्चे गर्व से बताते हैं (अगर बच्चा आपसे बहुत फ्री है तो) कि मैं फला लड़के या लड़की के साथ डेट पर गया था।

बदलते वक्त ने ग्लैमर को बहुत बढ़ावा दिया है आज लोग सेलिब्रिटी जैसी लाइफ स्टाइल अपना रहे हैं। वह खुद को किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझते। तमाम वीडियो, रील्स देखने पर तो यही लगता है। अब शादी ब्याह की रस्मों को को ही ले लीजिए। हर रस्म के लिए अलग डेकोरेशन और ड्रेस कोड रहते हैं। गर्मी है तो समर डेकोरेशन और समर ड्रेस कोड और खाना भी कुछ माहौल से मिलता जुलता ही होगा। कोशिश यही रहती है कि इवेंट के हिसाब से सब व्यवस्था की जाये।
अब यदि हल्दी की रस्म है तो सब तरफ पीले रंग का डेकोरेशन रहेगा और कपड़े भी पीले रंग के रहेंगे। मुझे मेरा वक्त याद आता है कि जब मेरी हल्दी की रस्म हुई थी तो एक कैमरा वाला नहीं था, कोई वीडियो नहीं और तो और कोई बाहर बाहरी व्यक्ति भी नहीं था। एक नाउन और घर के करीबी सदस्य और पुराने कपड़े में बैठी मैं सबने हल्दी लगाई गीत गाये और हल्दी की रस्म पूरी हो गई।
इधर कुछ समय से शादियों में प्री वेडिंग शूट का चलन बहुत जोरों पर है। शादी के पहले एक जगह पर जाना और रोमांटिक शॉट देना और बाद में प्री वेडिंग ऑकेजन रखकर लोगों को बुला कर उस शूट को दिखाना बड़ा अजीब लगता है। कुछ लोग तो बाकायदा ड्रेस कोड भी रखते हैं जैसे ग्रीन वैली में शूट किया तो ग्रीन ड्रेस कोड। जो बातें शादी के बाद व्यक्ति अपने गृहस्थ जीवन में शुरू करता है क्या वह शादी के पहले करना जरूरी है और लोगों को दिखाकर आप क्या जताना चाहते हैं। साथ ही ड्रेस कोड भी लोगों पर थोपना क्या सही है? मकसद सिर्फ एक ही होता है कि मेरे बच्चे इतनी महंगी जगह पर प्री वेडिंग शूट के लिए गए हैं और वह बहुत खुश है और हमने इतना खर्चा किया है। एक एक आकेजन पर लाखों का खर्च आता है और इस चमक दमक की भाग दौड़ में लोगों को खुश करने के चक्कर में मिडिल क्लास पिसता जाता है।
और एक रस्म होती है गोद भराई जिसमें लड़की को सात महीने का गर्भ होता है। हमारे हिंदू परंपरा में यह रस्म बहुत पारंपरिक तरीके से निभाई जाती है लेकिन आजकल इस रस्म पर भी चमक दमक भारी पड़ रही है। तरीके से तो जो लड़की गर्भवती होती है उसे ही हरे रंग का वस्त्र पहनना होता है लेकिन दिखावे और ग्लैमर की होड़ में ड्रेस कोड रखकर हर एक को हरे रंग का पहनावा अनिवार्य कर कर दिया जाता है और सजावट भी हरे रंग की ही होती है और तो और खाना भी हरे रंग का होता है जैसे हरा डोसा, हरी चटनी, हरे चावल वगैरह वगैरह।
आज के दौर में संगीत संध्या, मेहंदी, रिसेप्शन, जयमाला, मुंह दिखाई और भी घरेलू रस्में है जिनमें  ग्लैमर ने अपनी जगह बना ली है। अब गर्भ धारण की बात को ही लें आजकल बेबी बंप शूट का चलन बहुत है। जो नितांत निजी एहसास है वह आजकल सोशल साइट पर दिखते हैं। समझ में नहीं आता कि ममता बाजारू हो गई है या जमाने से कदम मिलाने की होड़ में यह बेतुकापन जरूरी हो गया है। मैं इस नए दौर के नए चलन के खिलाफ नहीं हूं लेकिन मैं सोचती हूँ कि कितनी तेजी से लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। बदलाव जरूरी भी है लेकिन सही गलत फर्क भी जरूरी है। शादियों के रस्म रिवाज परंपरा निभाने के साथ साथ एंजॉय करने के तरीकें भी हैं। दिखावा होना चाहिए लेकिन अगर उस दिखावे में आपकी आंतरिक खुशियाँ छिप जाती है तो दिखावे की खुशी का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। इनसे जुड़ना अच्छा जरूर लगता है लेकिन मर्यादा हर जगह जरूरी है।

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