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प्रधानमंत्री मोदी ने नागपुर में महाराष्ट्र समृद्धि महामार्ग का उद्घाटन किया

प्रधानमंत्री ने आज नागपुर में हिंदू हृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र समृद्धि महामार्ग के पहले चरण का उद्घाटन किया। इसकी लंबाई 520 किलोमीटर है और यह महामार्ग नागपुर और शिरडी को जोड़ता है।

प्रधानमंत्री ने ट्वीट संदेश में कहा, “हम उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और नागपुर और शिरडी के बीच महामार्ग इस प्रयास का एक उदाहरण है। इस आधुनिक सड़क परियोजना का उद्घाटन किया और महामार्ग पर यात्रा भी की। मुझे विश्वास है कि यह महाराष्ट्र की आर्थिक प्रगति को आगे बढ़ाने में योगदान देगा।

प्रधानमंत्री के नागपुर पहुंचने पर उनका अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी भी उनके साथ थे।

पृष्ठभूमि

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी ने हिंदू हृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र समृद्धि महामार्ग के पहले चरण का उद्घाटन किया। इस महामार्ग की लंबाई 520 किलोमीटर की है। यह सड़क परियोजना नागपुर और शिरडी को आपस में जोड़ती है।

समृद्धि महामार्ग या नागपुर-मुंबई सुपर कम्युनिकेशन एक्सप्रेसवे परियोजना देश भर में बेहतर संपर्क और बुनियादी ढांचा उपलबध कराने के प्रधानमंत्री की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह एक्सप्रेसवे 701 किलोमीटर लंबा है और लगभग 55,000 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है। यह एक्सप्रेसवे भारत के सबसे लंबे एक्सप्रेसवे में से एक है। यह एक्सप्रेसवे महाराष्ट्र के 10 जिलों और अमरावती, औरंगाबाद और नासिक के प्रमुख शहरी क्षेत्रों से होकर गुजरेगा। एक्सप्रेसवे आसपास के 14 अन्य जिलों में संपर्क को बेहतर बनाने में मदद करेगा। यह एक्सप्रेसवे विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र के क्षेत्रों सहित राज्य के लगभग 24 जिलों के विकास में सहायता करेगा।

प्रधानमंत्री गति शक्ति परियोजना के अंतर्गत बुनियादी ढांचा संपर्क परियोजनाओं की एकीकृत योजना और समन्वित कार्यान्वयन की प्रधानमंत्री की परिकल्पना का समर्थन करते हुए, समृद्धि महामार्ग दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, जवाहरलाल नेहरू पत्तन न्यास और अजंता एलोरा गुफाओं, शिरडी, वेरुल, लोनार आदि जैसे पर्यटन स्थलों से जुड़ जाएगा। समृद्धि महामार्ग महाराष्ट्र के आर्थिक विकास को प्रमुखता से बढ़ावा प्रदान करने में एक परिवर्तन करने वाला सिद्ध होगा।

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उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया की उपस्थिति में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज दिवस 2022 सम्‍मेलन का उद्घाटन किया

उत्तर प्रदेश की माननीय राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने आज केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ मनसुख मांडविया की उपस्थिति में वाराणसी के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) के दो दिवसीय सम्मेलन का आभासी रूप से उद्घाटन किया। इस आयोजन में कई राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने भी भाग लिया। इनमें राज्य मंत्री, उत्तर प्रदेश डॉ दया शंकर मिश्रा, श्रीमती विदादला रजनी (आंध्र प्रदेश), श्री बन्ना गुप्ता (झारखंड), डॉ प्रभुराम चौधरी (मध्य प्रदेश), श्री धन सिंह रावत (उत्तराखंड), श्री रवींद्र जायसवाल (उत्तर प्रदेश), श्रीमती चंद्रिमा भट्टाचार्य (पश्चिम बंगाल), डॉ. सपम रंजन (मणिपुर) और डॉ. एम के शर्मा (सिक्किम) शामिल थे।

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उत्तर प्रदेश की माननीय राज्यपाल ने इस अवसर पर अपने संबोधन में अंतिम छोर तक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं आरोग्‍य केंद्रों के कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “मुझे यह जानकर प्रसन्‍नता हुई कि 1.33 लाख से अधिक एचडब्ल्यूसी अब चालू हो चुके हैं और टेली-परामर्श सेवाओं के केंद्र के रूप में काम कर रहे हैं”।  उन्होंने इन केंद्रों पर सेवारत चिकित्सा पेशेवरों को विभिन्न बीमारियों की जांच के बारे में स्थानीय आबादी के बीच जागरूकता फैलाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्‍होंने इस बात पर बल दिया कि राष्‍ट्र से रोगों का उन्‍मूलन करने के लिए सहयोगपूर्ण प्रयास आवश्यक है। निक्षय-मित्र पहल की भावना और प्रगति की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, “केंद्र, राज्यों, समुदायों और व्यक्तियों के सहयोगपूर्ण प्रयास से हम वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। आइए, हम सब आगे आएं और टीबी रोगियों की सहायता के लिए निक्षय मित्र बनें।” कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. मनसुख मांडविया ने निस्वार्थ सेवा और विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान कर्तव्य के प्रति संकल्‍पबद्धता  प्रदर्शित  करने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) का आभार व्‍यक्‍त किया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने डिजिटल स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत सरकार की प्रमुख पहल ई-संजीवनी के महत्वपूर्ण प्रभाव की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसकी बदौलत इलाज के लिए रोगी की 21.59 किमी प्रति यात्रा की सफलतापूर्वक बचत हुई, और प्रत्‍येक यात्रा पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आने वाली 941.51 रुपये की लागत की बचत संभव हो सकी और इस प्रकार देश भर में 7,522 करोड़ रुपये की बचत हुई। ये टेली-परामर्श एबी-एचडब्‍ल्‍यूसी पर उपलब्ध हैं। इस गति को बरकरार रखने और एचडब्ल्यूसी में प्रदान की जा रही 12 स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए उन्होंने जांच, निदान और उपचार के माध्यम से एकीकृत स्वास्थ्य और आरोग्‍य के बारे में व्यापक अभियान चलाने के लिए महीने में एक बार स्वास्थ्य मेला आयोजित करने का आग्रह किया।

 

यूएचसी दिवस 2022 की थीम “हम जैसा विश्व बनाना चाहते हैंउसका निर्माण करें :सभी के लिए स्वस्थ भविष्य” (बिल्ड द वर्ल्ड वी वांट: अ हेल्दी फ्यूचर फॉर ऑल) है । सभी के लिए स्वस्थ भविष्य के निर्माण में स्वास्थ्य कवरेज के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, यूएचसी यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि इन सेवाओं के लिए भुगतान करते समय सभी लोगों को बिना वित्तीय कठिनाइयों का सामना किए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच प्राप्त हो। इसके महत्व को देखते हुए जी-20 इंडिया हेल्थ ट्रैक में भी यूएचसी को एक प्रमुख प्राथमिकता के रूप में और वर्ष 2030 के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में एक प्रमुख लक्ष्य के रूप में शामिल किया गया है।

 

सम्‍मेलन के पहले दिन, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को निम्नलिखित श्रेणियों के तहत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया:

1. लक्ष्य के सामने एचडब्ल्यूसी के परिचालन की उपलब्धि,

2. टेली परामर्श, और

3. एबीएचए आईडी बनाना

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पीएम-आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) और 15वें वित्तीय आयोग के कार्यान्वयन पर एक मंत्रिस्तरीय सत्र भी आज आयोजित किया गया।

इस कार्यक्रम में डॉ आर एस शर्मा, सीईओ, एनएचए, श्री राजेश भूषण, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव, सुश्री रोली सिंह, एएस एंड एमडी (एनएचएम), केंद्र, राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों के वरिष्ठ अधिकारियों और विकास साझेदारों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

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प्रधानमंत्री ने एम्स नागपुर राष्ट्र को समर्पित किया

प्रधानमंत्री मोदी ने आज एम्स नागपुर राष्ट्र को समर्पित किया। प्रधानमंत्री ने नागपुर एम्स परियोजना मॉडल का निरीक्षण भी किया और इस अवसर पर प्रदर्शित माइलस्टोन प्रदर्शनी गैलरी का अवलोकन किया। देश भर में स्वास्थ्य अवसंरचना को सुदृढ़ बनाने की प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को एम्स नागपुर के राष्ट्र को समर्पित किए जाने से और मजबूती मिलेगी। इस अस्पताल, जिसका शिलान्यास भी जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री द्वारा किया गया था, की स्‍थापना केंद्रीय क्षेत्र स्‍कीम प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत की गई है।

1575 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से विकसित किया जा रहा एम्स नागपुर, अत्याधुनिक सुविधाओं वाला एक अस्पताल है, जिसमें ओपीडी, आईपीडी, नैदानिक सेवाएं, ऑपरेशन थिएटर और 38 विभाग हैं, जिसमें चिकित्सा विज्ञान के सभी प्रमुख स्पेशियलिटी और सुपर स्पेशियलिटी विषयों को कवर किया गया है। यह अस्पताल महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र को आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करता है और गढ़चिरौली, गोंदिया और मेलघाट के समीपवर्ती जनजातीय क्षेत्रों के लिए एक वरदान है।

प्रधानमंत्री के साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी भी थे।

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सोनी सब के ‘अलीबाबा: दास्‍तान ए काबुल’ में क्‍या होगा जब अलीबाबा का भाई कासिम पहुँचेगा सिमसिम की गुफा

सोनी सब का शो ‘अलीबाबा दास्‍तान-ए-काबुल’ अली (शेहजान खान) की जिन्‍दगी के एडवेंचर्स, कहानी में नये ट्विस्‍ट्स और आकर्षक दृश्‍यों से दर्शकों का लगातार मनोरंजन कर रहा है। मौजूदा कहानी में अली वाम की मौत का बदला मल्लिका-ए-तबाही, सिमसिम (सायंतनी घोष) से लेना चाहता है, लेकिन उसे पता नहीं है कि इस काम में उसके अपने भाई कासिम (विनीत रैना) की जिन्‍दगी खतरे में पड़ जाएगी।
‘अलीबाबा दास्‍तान-ए-काबुल’ के पिछले एपिसोड्स में हमने अली को मल्लिका-ए-तबाही, सिमसिम द्वारा भेजे गये खतरनाक सांप फकरी को हराते और वाम को तबाही से बचाने में कामयाब होते देखा था। अली अब वाम की जिन्‍दगी छीनने का बदला सिमसिम से लेना चाहता है। फकरी की मौत की खबर सुनकर सिमसिम भी गुस्‍से में है और बदला लेने की योजना बना रही है। इन घटनाओं के बाद से दोनों ही एक-दूसरे पर गुस्‍सा हैं, लेकिन वे नहीं जानते हैं कि आगे क्‍या होगा। दूसरी ओर, अली का भाई पता लगाने की कोशिश करेगा कि अली क्‍या योजना बना रहा है और उत्‍सुक होकर उसका पीछा करेगा। इसके बाद से अली और सिमसिम की जिन्‍दगी में घटनाएं एक मोड़ लेंगी। आने वाले एपिसोड्स में कई ट्विस्‍ट्स और टर्न्‍स आएंगे, जो दर्शकों को एक बार फिर एडवेंचर और जादू से भरे सफर पर लेकर जाएंगे!
क्‍या कासिम को पता चलेगा कि अली क्‍या करने जा रहा है, या सिमसिम उसकी जिन्‍दगी छीन लेगीᣛ?
अलीबाबा का किरदार निभा रहे शेहज़ान खान ने इस रोमांचक स्‍टोरीलाइन पर अपनी बात रखते हुए कहा, “अलीबाबा अपने लोगों और प्रियजनों से बहुत प्‍यार करता है। मेरी शख्सियत अली से काफी मिलती-जुलती है। बाबा अपने लोगों को तकलीफ में नहीं देख सकता, इसलिये तबाही के बाद वह सिमसिम से बदला लेने का फैसला करता है। इन एपिसोड्स की शूटिंग करना रोलर कोस्‍टर राइड जैसा था, क्‍योंकि उसमें एडवेंचर, ड्रामा और इमोशंस साथ-साथ चल रहे थे। आने वाले एपिसोड्स आपको एडवेंचर से भरे सफर पर लेकर जाएंगे और दर्शक कई ट्विस्‍ट्स देखेंगे। घटनाओं का मोड़ अली पर क्‍या असर डालता है, यह देखने लायक होगा। उम्‍मीद है कि दर्शक इस कहानी का मजा लेंगे और ‘अलीबाबा दास्‍तान-ए-काबुल’ को अपना प्‍यार देते रहेंगे। हमारे साथ बने रहिये और देखते रहिये ‘अलीबाबा दास्‍तान-ए-काबुल’, सोमवार से शनिवार रात 8 बजे, सिर्फ सोनी सब पर!

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विजन 2047 को मूर्त रूप देने हेतु कानपुर नगर बहुत तेजी से विजन कानपुर 2047 ड्राफ्ट प्लान तैयार करने की ओर अग्रसर

कानपुर 10 दिसंबर जिला सूचना कार्यालय प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के विजन 2047 को मूर्त रूप देने हेतु कानपुर नगर बहुत तेजी से विजन कानपुर 2047 ड्राफ्ट प्लान तैयार करने की ओर अग्रसर है, जिसकी आधारशिला मंडलायुक्त कानपुर डॉ राजशेखर जी ने रख दी है, इस ड्राफ्ट प्लान को प्रभावी स्वरूप प्रदान करने हेतु मंडल आयुक्त कानपुर डॉ राजशेखर जी, विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों एवं समाज के विभिन्न सेक्टर जैसे शैक्षिक, उद्यमी, सामाजिक संगठन, कला, संस्कृति एवं पर्यटन, शहरी विकास, नवाचार, स्टार्टअप के साथ विचार विमर्श एवं संवाद आयोजित किए जा चुके हैं, जिसमें इन क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में अपने विचार, सुझाव और क्रियान्वयन के तरीके इत्यादि उपलब्ध कराएं हैं, अब तक 5 मुख्य संवाद कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं और आने वाले दिनों में कृषि एवं खेलकूद सेक्टर के साथ भी संवाद कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है, विजन कानपुर 2047 के अध्यक्ष एवं मंडल आयुक्त कानपुर डॉ राजशेखर ने कहा इन संवाद कार्यक्रमों के पश्चात वृहद रूप से विचार विमर्श कार्यक्रम *कानपुर की बात* आयोजित की जाएगी , जिसमें समाज के हर सेक्टर के प्रतिनिधियों को एक साथ संयुक्त प्लेटफार्म पर आमंत्रित कर पूर्व में हुए संवाद कार्यक्रमों की समीक्षा एवं नए विचारों को अंतिम रूप से आमंत्रित कर ड्राफ्ट प्लान तैयार कर लिया जाएगा, डॉ राजशेखर ने बताया कि शहरवासी बड़ी संख्या में अपने सुझाव एवं फीडबैक विजन कानपुर 2047 के वेब पोर्टल visionkanpur2047.com पर ऑनलाइन भी उपलब्ध करा रहे हैं l

उन्होंने बताया अब तक लगभग 8000 फीडबैक प्राप्त हो चुके हैं और शहर वासियों के उत्साह और जोश को देखते हुए *वेब पोर्टल पर सुझाव और फीडबैक देने की अंतिम तिथि बढ़ा कर 15 दिसंबर 2022 कर दी गई है*, डॉ राजशेखर ने बताया कि विजन कानपुर 2047 पर ई पत्रिका का भी प्रकाशन कराया जा रहा है जिसमें विजन कानपुर 2047 के समन्वयक डॉ सुधांशु राय को मुख्य संपादक नामित किया गया है l उक्त पत्रिका में कोई भी शहरवासी, लेखक, साहित्यकार, कथाकार ,शिक्षक , छात्र-छात्राएं या अन्य व्यक्ति कानपुर के इतिहास (1947-2022) और कानपुर के विजन (2023-2047) से संबंधित अपने लेख कविताएं या अन्य तथ्य प्रकाशित करवा सकते हैं और अपने लेख मेल आईडी visionknp2047@gmail.com पर 15 दिसंबर 2022 तक उपलब्ध करवा सकते हैं,

किसी भी जानकारी हेतु विजन कानपुर समन्वयक के मोबाइल नंबर 8299173086 से संपर्क भी कर सकते हैं,

डॉ राजशेखर ने कहा विजन कानपुर 2047 मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश श्री दुर्गा शंकर मिश्रा जी के मार्गदर्शन में आगे बढ़ रहा है और आने वाले समय में पूरे प्रदेश के लिए विजन कानपुर 2047 एक मॉडल के रूप में स्थापित होगा,

उन्होंने कहा विजन कानपुर 2047 शहर के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर और शहरवासियों की परिकल्पना के अनुसार ही बनेगा।

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मेघालय की ग्रामीण आबादी को सड़कों और बाजारों तक पहुंच में वृद्धि

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य पूरे देश में योग्य असंबद्ध बस्तियों को (2001 की जनगणना के अनुसार उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए 250 और उससे ज्यादा लोगों की बस्ती) सभी मौसम में उचित सड़क संपर्क प्रदान करना था, जिससे ग्रामीण आबादी का सामाजिक-आर्थिक उत्थान किया जा सके। बाद में नए मध्यवर्तनों को शामिल करते हुए पीएमजीएसवाई के अधिदेश को और ज्यादा व्यापक बनाया गया। पीएमजीएसवाई-II की शुरुआत वर्ष 2013 में हुई थी, जिसमें मौजूदा ग्रामीण सड़कों में से 50,000 किलोमीटर सड़कों को अपग्रेड करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। पीएमजीएसवाई-III की शुरुआत 2019 में की गई,जो मार्गों और प्रमुख ग्रामीण संपर्कों के माध्यम से 1,25,000 किलोमीटर का समेकन करता है और ग्रामीण कृषि बाजारों, उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों और अस्पतालों से बस्तियों को जोड़ता है। पीएमजीएसवाई के दिशा-निर्देशों के अनुसार, ग्रामीण सड़कें राज्य का विषय है और राज्य सरकार अपने राज्य में इसकी नोडल कार्यान्वयन एजेंसी है। इसके अलावा, इस कार्यक्रम की इकाई बस्ती है, जिसका अर्थ जनसंख्या का एक ऐसा समूह है, जो एक ही क्षेत्र में रहता है और समय के साथ अपना निवास स्थान नहीं बदलता है। मेघालय राज्य मेंपीएमजीएसवाई के अंतर्गत सड़क संपर्क के लिए स्वीकृत 602 बस्तियों में से 481 बस्तियों को पहले ही सड़कों से जोड़ा जा चुका है।

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय, पूर्वोत्तर क्षेत्र (एनईआर) में संपर्क प्रदान करने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालयों के कार्यों में सहायता करता है, जिसमें दूरदराज के इलाकों में सड़क संपर्क प्रदान करना शामिल है, जिससे छोटे और दूरदराज के गांवों में रहने वाले जनजातीय लोगों को सुविधा प्राप्त होती है।

मेघालय राज्य में पिछले तीन वर्षों में डोनर मंत्रालय की मुख्य योजनाओं उत्तर पूर्व सड़क क्षेत्र विकास योजना (एनईआरएसडीएस) और उत्तर पूर्व विशेष अवसंरचना विकास योजना (एनईएसआईडीएस)के अंतर्गत स्वीकृत सड़कों की कुल लंबाई 169.51 किमी है, जिसे या तो सीधे तौर पर या उत्तर-पूर्वी परिषद (एनईसी) के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। इसके अलावा, गृह मंत्रालय के सीमा प्रबंधन विभाग ने भी 2014-15 से “सड़क और पुल” क्षेत्र के अंतर्गत मेघालय सहित उत्तर पूर्व क्षेत्र में 992 परियोजनाओं की शुरूआत की हैं। यह जानकारी उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्री, श्री जी. किशन रेड्डी ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में दिया।

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भारतीय रेलवे की उत्पादन इकाइयां वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड उत्पादन हासिल करने के लिए काफी तेजी से आगे बढ़ रही हैं

भारतीय रेलवे की उत्पादन इकाइयां यानी चित्तरंजन स्थित चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (सीएलडब्ल्यू), वाराणसी स्थित बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (बीएलडब्ल्यू), पटियाला स्थित पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स (पीएलडब्ल्यू) वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड उत्पादन हासिल करने के लिए काफी तेजी से आगे बढ़ रही हैं।

वित्त वर्ष 2022-23 में 30 नवंबर तक 614 इलेक्ट्रिक इंजन बनाने के साथ ही भारतीय रेलवे ने पिछले वित्‍त वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 25.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। पिछले वित्‍त वर्ष की इसी अवधि में 490 इलेक्ट्रिक इंजन बनाए गए थे।

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नितिन गडकरी ने उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 1121.95 करोड़ रुपये की लागत से एनएच उन्नयन कार्यों को मंजूरी दी

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी ने सिलसिलेवार कई ट्वीट करके यह जानकारी दी कि उत्तर प्रदेश के अमेठी में अमेठी बाइपास (एनएच- 931) के पेव्ड शोल्डर के साथ 2-लेन के निर्माण को 283.86 करोड़ रुपये के साथ मंजूरी दी गई है। उन्होंने कहा, “इस परियोजना से यातायात सुगम होगी, कृषि उत्पादों का परिवहन आसान होगा और व्यापार व औद्योगिक विकास में यह मददगार साबित होगा, जिससे क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।”

श्री गडकरी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में ईपीसी मोड के तहत एनएच- 130डी पर कोंडागांव और नारायणपुर जिलों में पेव्ड शोल्डर कॉन्फिगरेशन के साथ 2-लेन उन्नयन कार्य को 322.40 करोड़ रूपये की लागत के साथ स्वीकृति दी गई है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना वर्तमान असुविधा को समाप्त करेगी और छत्तीसगढ़ के अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग यातायात की सुरक्षित और कुशल आवाजाही सुनिश्चित करेगी। मंत्री ने कहा कि इस खंड के विकास से लंबे यातायात मार्ग और माल ढुलाई की दक्षता में समग्र रूप से सुधार होगा, जिससे सुगम और सुरक्षित यातायात परिचालन सुनिश्चित हो सकेगा। श्री गडकरी ने आगे कहा, “इसके अलावा इस परियोजना के कार्यान्वयन से क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में सुधार होगा, जिससे आखिरकार क्षेत्र के समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।

श्री गडकरी ने बताया कि उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में एनएच- 730 पर दो लेन के फुटपाथ के साथ बलरामपुर बाईपास के निर्माण को ईपीसी मोड के तहत 515.69 करोड़ रुपये की लागत के साथ स्वीकृति दी गई है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना भीड़-भाड़ वाले बलरामपुर शहर में प्रवेश किए बिना एनएच-330 और एनएच- 730 पर यातायात के सुचारू परिचालन को सुनिश्चित करेगी।

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सकून देता है शौक़, इसे ज़िन्दा रखिए

पिछले 35 सालों से यहाँ इंग्लैंड में रह कर ,यहाँ के लाईफ़ स्टाईल मे ढल चुकी थी गार्गी।बहुत अलग सी ज़िंदगी है ,इंग्लैंड की भारत से। यहाँ नौकर रखने का चलन आम नही है।ये भी नहीं कि लोग नौकर रख नहीं सकते मगर शायद लोगो को यहाँ अपनी प्राईवसी ज़्यादा पसंद है। ख़ुशी ख़ुशी सब लोग अपने घरो का काम खुद ही करना पसंद करते हैं और ऐक्टिव भी कहते है।
बेहद सादा और दिखावे से दूर ये देश ,काफ़ी अच्छा है।
आज गार्गी सारा घर का काम निपटा कर ,चाय का कप ले कर चुपचाप सी अपने कमरे में आँखे बंद करके बैठी हुई थी।तेज हवाओं के साथ साथ आज बाहर बहुत ठंड है ,उठ कर कमरे की खिड़की बंद कर दी।
बहुत थक गई थी गार्गी आज। शरीर टूट सा रहा था उसका।उसके बच्चे दो दिन से उसके पास आये हुए थे। बहुत शौक और प्यार से खाना बनाना फिर खिलाना ये गार्गी का शौक़ था।उसके अपने बच्चे ही नहीं बल्कि कोई भी उसके घर आ जाता तो कितने पकवान अपने हाथों से बनाती और बड़े प्यार से खिलाती भी,उसे ऐसा लगता कि जैसे घर में कोई त्योहार ही आ गया हो।उसके बच्चे और पति हर बार उसे टोकते और पूछा करते !क्यों करती हो ये सब ?.. बाद में फिर निढाल हो कर गिर पड़ती हो ।किस को दिखाना चाहती हो ? इस बात पर गार्गी ,नम आँखों से अपने पति से कहती!
दिखाना !! मेरी फ़ितरत नहीं है किशोर।जो भी करती हूँ उससे मुझे ख़ुशी मिलती है।बस यही तो चाहती हूँ मैं,कि जब कोई मेरे घर आये उसकी इतनी मेहमान नवाज़ी करूँ कि उसे याद रहे कि कोई मुझ से मिला था कभी।इस पर बच्चे हंसते और कहते !
अच्छा तो माम ! आप अपने ज़िन्दगी का सीवी बनाने की कोशिश में है।जैसे आज की जनरेशन सीवी बनाती है नौकरी के लिये ..और गार्गी को हँस कर गले लगा लेते।बस इतनी सी बात पर गार्गी की सारी थकान उतर जाती।अक्सर गार्गी ने अपनी माँ को ऐसे करते देखा था, वैसा ही अब गार्गी कर रही थी मगर आज तो गार्गी को बुख़ार ही हो गया था।सभी बच्चे उसके पास आये और प्यार की डांट भी लगाई गार्गी को।
गार्गी ने कहा मैं बस यही तो चाहती हूँ तुम सब को प्यार से रोटी ख़िलाऊ ,जिससे मेरे परिवार का पेट तो भर जाये पर मन कभी नहीं भरे।
इतने में गार्गी का पति किशोर कमरे में दाखिल हुआ तो देखा गार्गी बुख़ार से तप रही थी।उसने भी गार्गी को डाँटा और कहने लगा !क्यों इतना काम करती हो ?अब देखा न,बिस्तर पकड़ लिया तुमने।हम सब है न ,तुम्हारा हाथ बँटाने के लिए।सादे ढंग से भी खाना खिला सकती हो,मगर तुम्हें तो बस रानियों की तरह ही खाना और खिलाना पसंद है।गार्गी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।कहने लगी !
किशोर ! रानी बनने के लिए मुझे किसी महल की ज़रूरत नहीं है।
न ही किसी धन संमपदा की ,या किसी साम्राज्य की ही ज़रूरत है।
ये तो बस इक आदत ,इक तरीक़ा होता है रहने का और कुछ भी
नहीं।
मैं जहां भी हूँ जैसी भी हूँ मैं ऐसी ही रहूँगी ।किशोर के हाथ पर हाथ रख कर कहने लगी।फ़िक्र न करो मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊँगी।तुम्हारी पत्नी होने के नाते तुम्हें अपनापन और समर्पण के भाव से हमेशा खाना खिलाना चाहती हूँ जिससे तुम्हारा पेट और मन दोनों भरे रहे ।
कल जब हमारी बहू आयेगी वो कर्तव्य के भाव से खाना खिलायेगी जो कभी स्वाद देगा और कभी पेट भी भरेगा।,
किशोर कहने लगा !
कितना क़िस्मत वाला हूँ मैं ,कि मुझे तुम जैसी पत्नी मिली।
“गार्गी बोलती जा रही थी।रब न करें कि कभी ऐसी नौबत आये जब आप सब को नौकरानी के हाथ की रोटी खानी पडे।जिससे ना तो इन्सान का पेट भरता है न ही मन”
तृप्त होता है और स्वाद की तो कोई गारँटी ही नहीं है नौकरों के मन में क्या दुविधा चल रही है क्या मन में विचार चल रहे होते है,अच्छे या बुरे सब का असर रोटी में जाता है ।
ममता ,समर्पण या अपनापन का भाव उसमें नहीं होगा।
दोस्तों!
जब आप के भाग्य में प्यार,ममता,क्षृदा ,समर्पण और अपनापन का भाव खतम हो जाता है तो भी ,ईश्वर का शुक्रिया करो कि उसने हमें ज़िन्दा रखने के लिये नौकर को आप की सेवा में लगाया है ।
दोस्तों हमारे बुजुर्गों में सेवा भाव बहुत ज़्यादा हुआ करता था।ज़्यादातर बुजुर्ग अब दुनिया से जा भी चुके है।सुना है,जो दोगे ,वही वापिस आता भी है।
दोस्तों!मुझे तो लगता है।आज जो लोग अच्छी ज़िन्दगी जी रहे हैं।नौकर चाकर उनकी सेवा में लगे हुए हैं।ये वही हमारे बुजुर्ग होंगे जिन्होंने पहले,पिछले जन्मों में अपने परिवार ,आस पड़ोस ,समाज की सेवा मन से की। आज उनकी सेवा हो रही है।
वैसे भी करम ही प्रधान है।आज कोई आप की सेवा करेगा तो कल आप को उन की सेवा करनी पड़ेगी।यही सच है।बातों बातों में मुझे किसी गुरू जी की बात ध्यान में आ रही है गुरू जी के यहाँ लंगर की सेवा चल रही थी।गुरू जी ने देखा।लंगर में ज़्यादातर लोग बहुत बुजुर्ग ही थे।गुरू जी ने कहा! जवान लोगों को भी लगंर की सेवा करनी चाहिए।मगर जवान बच्चों ने कहा कि हम रोटी नहीं बना सकते।हम तो सब को सैंडविच ही बना कर दे दिया करेंगे।गुरू जी हँस पड़े।कहने लगे! ये जो बुजुर्ग महिलायें आज इतनी तपती हुई गर्मी में बैठ कर,सब के लिए लगंर तैयार कर रही है न।यही आने वाले वक़्त में रानियाँ होगी।कितना सही भी कहा गुरू जी ने।जो आज किसी को खिलायेंगा या सेवा करेगा।उसी को तो कल कोई खिलायेंगा या कोई उस की भी सेवा करेगा।वो चाहे इसी जन्म में हो या फिर अगले जन्म में।दोस्तों !
माँ के हाथ का बना खाना ,पत्नी के हाथ का बना खाना या बहू के हाथ से बना खाना ,अगर आप को ,इस कलियुग के समय में मिल रहा है तो आप खुद को बहुत ख़ुशनसीब इन्सान समझिये।
ये मेहमान नवाज़ी केवल इक शौक़ ही नहीं बल्कि बड़े फ़ायदे का सौदा हो सकता है अगर कोई दिल से करे।
बहुत सकून देता है ये शौक़ ,इसे ज़िन्दा ज़रूर रखिए जनाब 🙏

~ स्मिता केंथ

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जीवन के सिद्धांतों के बारे में बात करने का समय, बहुत कम लोग ऐसा जीवन जीते हैं: इफ्फी 53 में फिल्म ‘महानंदा’ के निर्देशक अरिंदम सिल

“हम जिस चीज के लिए संघर्ष करते हैं वह भारत के वास्तविक लोगों के लिए है। वे शायद नहीं जानते हैं कि देश का राष्ट्रपति कौन है या कोलकाता या मुंबई कहां है, लेकिन ये भारत के असली लोग हैं।” लेखिका-सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्म ‘महानंदा’ इन शब्दों के पीछे की भावना को जीवंत करती है, जिसके निर्देशक अरिंदम सिल का मानना ​​है कि हर किसी को जीवंत रहना और उत्साह जारी रखना चाहिए।भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) के 53वें संस्करण के भारतीय पैनोरमा – फीचर फिल्म खंड में शामिल बंगाली फिल्म ‘महानंदा’ को महोत्सव के प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

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गोवा में आज इफ्फी टेबल वार्ता/प्रेस कॉन्फ्रेंस में फिल्म महोत्सव के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, निर्देशक अरिंदम सिल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस जटिल समय में इस पर काम करना कितना महत्वपूर्ण है। “यह जीवन के सिद्धांतों के बारे में बात करने का समय है, क्योंकि आजकल बहुत कम लोग वास्तव में सैद्धांतिक जीवन जीते हैं। महाश्वेता देवी उन गिने-चुने लोगों में से एक थीं, जो सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीती थीं। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीना सिखाएं।
तो, ऐसा क्या है जिसने उन्हें फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया? अरिंदम सिल ने कहा, नैतिक जिम्मेदारी की भावना से कम कुछ नहीं। “मैंने महसूस किया कि महाश्वेता देवी जैसी शख्सियत के बारे में बात करना और इसे आगे बढ़ाना हम जैसे फिल्म निर्माताओं की नैतिक जिम्मेदारी है, जिन्होंने सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीया। वह कोई है जिसे हम सब भूलने की कोशिश कर रहे हैं। महाश्वेता देवी को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। हालाँकि, भारत के विश्वविद्यालयों में, हम उनके बारे में बात तक नहीं करते!”

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”तो वह महान कार्यकर्ता जिन सिद्धांतों के लिए जीती थीं, जिसने अब उनकी कहानी को बताना एक नैतिक अनिवार्यता बना दिया है? महाश्वेता देवी की जीवन गाथा का वर्णन करते हुए अरिंदम सिल बताते हैं कि उनकी यह कहानी अमीर से फकीर बनने की कहानी है। “एक पूंजीवादी परिवार से आने और एक कम्युनिस्ट परिवार से शादी करने के बाद, सिद्धांतवादी महिला ने अपने पति और कम्युनिस्ट नाटककार बिजन भट्टाचार्य को छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता किया और जीवन में अच्छा करने के लिए तुच्छ फिल्म पटकथा लिखीं। उन दिनों महाश्वेता देवी ने अपने पति और बच्चे को छोड़ने का साहस दिखाया था। मानसिक पीड़ा के चलते उसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। लेकिन वह बच गई और इस देश की अब तक की सबसे बड़ी सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक बन गई!

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निर्देशक ने जोर देकर कहा कि महाश्वेता देवी का पूरा जीवन उन लोगों के लिए लड़ने के लिए समर्पित रहा, जिन्हें वह भारत के वास्तविक लोगों के रूप में संदर्भित करती थीं। “इस देश में किसी ने भी आदिवासियों – साबर और मुंडाओं के लिए काम नहीं किया है – जैसा उन्होंने किया। मेधा पाटेकर और महाश्वेता देवी एक साथ कामरेड की तरह थीं। महाश्वेता देवी ने कहा था: ‘हम जिस चीज के लिए संघर्ष करते हैं, वह भारत के असली लोगों के लिए है। वे नहीं जानते कि देश का राष्ट्रपति कौन है या कोलकाता या मुंबई कहां है, लेकिन ये भारत के असली लोग हैं। ‘ अपने आखिरी दिन तक, वह संघर्ष करती रही और काम करती रही और उन लोगों के बारे में बात करती रही जिन्हें हम पिछड़ा वर्ग कहते हैं। लेकिन ये वे लोग थे जो वास्तव में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले भारतीयों में सबसे आगे थे।” निर्देशक ने कहा, “महाश्वेता देवी को बड़े पैमाने पर लोगों ने फॉलो किया; उन्हें आदिवासी क्षेत्रों में भगवान के रूप में माना जाता है।” उन्होंने कहा कि हमने फिल्म में इन सभी तथ्यों को सामने लाने की कोशिश की है। निर्देशक ने जोर देकर कहा कि फिल्म का फोकस महाश्वेता देवी की बात करना था। वह नहीं चाहते थे कि बायोपिक सिर्फ साहित्य अकादमी विजेता व रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता महाश्वेता देवी के बारे में बताए, बल्कि भारत के वास्तविक लोगों के लिए उनके वास्तविक संघर्षों के बारे में बताए। अरिंदम सिल ने बताया, तो, जैसा कि फिल्म के शीर्षक से पता चलता है? “महानंदा नदी की तरह, उनके सिद्धांतों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रवाहित होना चाहिए।” संयोग से, फिल्म के संगीत निर्देशक पंडित बिक्रम घोष हैं, जिन्हें कल संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इफ्फी टेबल वार्ता के लिए अरिंदम सिल के साथ शामिल होने वाले कलाकार ने बताया कि संगीत की दृष्टि से यह परियोजना एक चुनौतीपूर्ण काम था। चुनौतियों में प्रमुख थी उस निरंतर भयावहता को सामने लाना, जिससे फिल्म ओतप्रोत थी। “फिल्म में त्रासदी, मृत्यु, दुःख और जीवन के अप्रत्याशित झटके को दिखाया गया है, जिससे उनका जीवन काफी प्रभावित था।
संगीत निर्देशक ने कहा कि इसको बाहर लाने के लिए पूरी तरह से आदिवासी संगीत बैकग्राउंड स्कोर का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने कहा “उस भयावहता को फिल्म में पूरी तरह से आदिवासी स्कोर के साथ जोड़ा गया है। गाने सभी आदिवासी हैं। सुबीर दासमुंशी द्वारा लिखे गए गीत मुंडा जनजाति की भाषा में हैं। हमने ढोद्रो बनम और हड्डी की बांसुरी जैसे उनके वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया है।” हालाँकि, आदिवासी संगीत के बजाय शास्त्रीय संगीत और राग का उपयोग उस हिस्से को चित्रित करने के लिए किया गया है जहाँ उनके पैतृक परिवार को दिखाया गया है, जो उस समय समाज में बहुत ऊँचे थे। बिक्रम घोष ने बताया कि कैसे फिल्म की गैर-रैखिक संरचना को ध्यान में रखते हुए संगीत के दो रूपों को आपस में जोड़ा गया है। “वहां एक दृश्य है जहां महाश्वेता देवी 25 साल की हैं, और उसके ठीक बाद, कैमरा 75 वर्षीय महाश्वेता देवी को दिखाने के लिए पैन करता है। इसलिए, दृश्य के साथ जाने के लिए संगीत को एक साथ जोड़ना पड़ा। बिक्रम घोष ने फिल्म की संगीत यात्रा के बारे में बताते हुए कहा: “यह एक कठोर यथार्थ व वास्तविकता है। इसलिए संगीत को यथार्थपरक होना था, जिसके लिए मुझे संथाल और मुंडा जनजातियों के संगीतकार मिले, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संगीत असली लगे।”

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अरिंदम सिल ने इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए इफ्फी की सराहना की कि क्षेत्रीय फिल्म निर्माता वास्तव में भारतीय सिनेमा को विभिन्न भारतीय भाषाओं में बना रहे हैं। “हम वास्तव में छोटे बजट के साथ बड़ा सिनेमा बना रहे हैं।” 30 साल से 75 साल की उम्र की महाश्वेता देवी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री गार्गी रॉयचौधरी ने कहा कि उन्होंने महाश्वेता देवी की यात्रा को महसूस किया और उनके किरदार को निभाने का आनंद लिया।

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