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भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने “राष्ट्रीय नंबरिंग योजना का संशोधन” पर परामर्श पत्र जारी किया

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने आज ‘राष्ट्रीय नंबरिंग योजना का संशोधन’ पर अपना परामर्श पत्र जारी किया है। देश का दूरसंचार परिदृश्य वर्तमान समय में अत्याधुनिक नेटवर्क संरचना और सेवाओं से संचालित होकर एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की दौर से गुजर रहा है। 5जी नेटवर्क का आगमन अभूतपूर्व संभावनाओं को प्रस्तुत करता है, जिसमें अल्ट्रा-हाई-स्पीड संपर्क, न्यूनतम विलंबता और व्यापक उपकरण एकीकरण शामिल हैं। इस परस्पर जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र में, दूरसंचार पहचानकर्ता (टीआई) कुशल संचार और नेटवर्क प्रबंधन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। टीआई सार्वभौमिक पहुंच के आधार पर कार्य करता है, जो विभिन्न संचार प्रौद्योगिकियों में उपभोक्ताओं, व्यवसायों और उद्योगों को विश्वसनीय सेवा वितरण की सुविधा प्रदान करता है।

राष्ट्रीय संख्यांकन योजना का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सर्वोत्तम पद्धतियों के अनुरूप टीआई संसाधनों के आबंटन और उपयोग के लिए एक संरचित दृष्टिकोण सुनिश्चित करना है। यह मुख्य रूप से वर्तमान और संभावित सेवाओं के लिए नंबरिंग स्पेस और इसके विकास को परिभाषित करता है, जिसका लक्ष्य सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला को समायोजित करना और समय से पहले कमी के बिना कुशल विस्तार की सुविधा प्रदान करना है।

दूरसंचार विभाग (डीओटी), आईटीयू के दूरसंचार मानकीकरण क्षेत्र (आईटीयू-टी) सिफारिशों की ई.164 श्रृंखला के बाद, फिक्स्ड और मोबाइल नेटवर्क दोनों के लिए दूरसंचार पहचानकर्ताओं का प्रबंधन करता है। वर्ष 2003 में, दूरसंचार विभाग ने उपभोक्ताओं की तीव्र वृद्धि को समायोजित करने के लिए राष्ट्रीय संख्या योजना की व्यापक समीक्षा और संशोधन किया। यह दूरदर्शी योजना, जिसे राष्ट्रीय नंबरिंग योजना 2003 कहा जाता है, देश भर में 750 मिलियन टेलीफोन कनेक्शनों के लिए नंबरिंग संसाधन आवंटित करने के लिए तैयार की गई थी। हालांकि, 21 वर्षों के बाद, सेवाओं के विस्तार और कनेक्शनों की संख्या में वृद्धि के कारण नंबरिंग संसाधनों की उपलब्धता अब खतरे में है। 31 मार्च, 2024 तक वर्तमान कुल 1,199.28 मिलियन टेलीफोन ग्राहकों और 85.69 प्रतिशत के टेली-घनत्व के साथ, दूरसंचार पहचानकर्ताओं (टीआईएस) के उपयोग का आकलन करना और दूरसंचार सेवाओं के निरंतर विकास के लिए एक स्थायी जलाशय सुनिश्चित करने के लिए विवेकपूर्ण नीतिगत निर्णय लेना बहुत महत्वपूर्ण है।

ट्राई को डीओटी से 29 सितंबर 2022 को एक संदर्भ प्राप्त हुआ, जिसमें ट्राई अधिनियम 1997 की धारा 11(1) (ए) के अंतर्गत संशोधित राष्ट्रीय नंबरिंग योजना पर ट्राई की सिफारिशें मांगी गई थी।  दूरसंचार विभाग ने तीव्र विकास के कारण पर्याप्त फिक्स्ड लाइन नंबरिंग संसाधनों की उपलब्धता से संबंधित वर्तमान एवं संभावित भविष्य की बाधाओं को समाप्त करने का भी अनुरोध किया है।

इस परामर्श पत्र (सीपी) का उद्देश्य दूरसंचार पहचानकर्ता (टीआई) संसाधनों के आवंटन और उपयोग को प्रभावित करने वाले सभी कारकों का आकलन करना है। यह आवंटन नीतियों और उपयोग प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए संभावित संशोधनों का भी प्रस्ताव देता है, जिससे टीआई संसाधनों का पर्याप्त भंडार सुनिश्चित होता है।

साझेदारों से इनपुट प्राप्त करने के लिए परामर्श पत्र ट्राई की वेबसाइट https://trai.gov.in/release-publication/consultation पर दिया गया है। राष्ट्रीय नंबरिंग योजना के संशोधन पर हितधारकों से 04 जुलाई, 2024 तक लिखित टिप्पणियां और 18 जुलाई, 2024 तक जवाबी टिप्पणियां आमंत्रित की गई हैं।

टिप्पणियां और प्रति-टिप्पणियां, इलेक्ट्रॉनिक रूप में, सलाहकार (बीबीएंडपीए), भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण advbbpa@trai.gov.in jtadvbbpa-1@trai.gov.in को ईमेल पर भेजी जा सकती हैं। किसी भी स्पष्टीकरण/जानकारी के लिए, सलाहकार (बीबीएंडपीए) से दूरभाष संख्या +91-11- 20907757 पर संपर्क किया जा सकता है।

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तापमान में वृद्धि को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों के साथ भीषण गर्मी से जुड़ी तैयारियों तथा गर्मी के महीनों में अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं को रोकने संबंधी उपायों पर समीक्षा बैठक की

तापमान में वृद्धि को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों के साथ भीषण गर्मी से जुड़ी तैयारियों तथा गर्मी के महीनों में अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं को रोकने संबंधी उपायों पर समीक्षा बैठक की

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डीजीएचएस डॉ. अतुल गोयल ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ भीषण गर्मी की स्थिति से जुड़ी तैयारियों और देश भर में विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल सुविधा केन्द्रों द्वारा अपनाए गए अग्नि और विद्युत सुरक्षा उपायों का आकलन करने के लिए एक वर्चुअल बैठक की।

27 मई 2024 को आईएमडी द्वारा जारी दीर्घकालिक पूर्वानुमान के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि जून 2024 में दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत के कुछ हिस्सों, जहां तापमान सामान्य या सामान्य से कम रहने की संभावना है, के अलावा देश के अधिकांश हिस्सों में मासिक अधिकतम तापमान, सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। जून के दौरान, उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश क्षेत्रों और मध्य भारत के आसपास के क्षेत्रों में सामान्य से अधिक गर्मी पड़ने की संभावना है।

राज्य स्वास्थ्य विभागों को निम्नलिखित निर्देश भेजे गए हैं:

· राज्य स्वास्थ्य विभागों के लिए परामर्श, गर्मी से संबंधित बीमारियों (एचआरआई) के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों की तैयारी को मजबूत करने पर दिशा-निर्देश।

· क्या करें और क्या न करें तथा आईईसी पोस्टर टेम्पलेट के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य परामर्श।

· भीषण गर्मी से संबंधित बीमारियों के लिए आपातकालीन शीतलन पर दिशा-निर्देश।

· देश भर के सभी एम्स और मेडिकल कॉलेजों में गर्मी से हुई मौतों में शव परीक्षण निष्कर्षों पर दिशा-निर्देश प्रसारित किए गए।

· सचिव (स्वास्थ्य), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और एनडीएमए के द्वारा संयुक्त संचार तथा स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के द्वारा स्वास्थ्य सुविधा केंद्र अग्नि सुरक्षा उपायों पर संचार।

· गर्मी के स्वास्थ्य प्रभावों को रोकने और प्रबंधित करने के लिए स्वास्थ्य सुविधा और एम्बुलेंस की तैयारी के आकलन के लिए सूची।

23 मार्च 2024 को भेजे गए एक पत्र के माध्यम से, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से भीषण गर्मी के कारण होने वाली विनाशकारी घटनाओं को रोकने के लिए सक्रिय उपाय करने का अनुरोध किया गया है। इसके बाद 29 मई 2024 को अग्नि सुरक्षा के संबंध में सभी निवारक उपाय करने के लिए एक और पत्र भेजा गया है।

बैठक में राज्य/संघ शासित प्रदेशों द्वारा उठाए जाने वाले निम्नलिखित कदमों और उपायों को दोहराया गया:

· हीट हेल्थ एक्शन प्लान का क्रियान्वयन।

· भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी भीषण गर्मी की प्रारंभिक चेतावनी का प्रसार।

· एचआरआई की रोकथाम और प्रबंधन के लिए सभी स्वास्थ्य देखभाल सुविधा केंद्रों और एम्बुलेंस की तैयारियों का आकलन

· आईएचआईपी पर भीषण गर्मी से संबंधित बीमारी और मृत्यु निगरानी व्यवस्था को मजबूत करना।

· सभी स्वास्थ्य देखभाल सुविधा केन्द्रों में समर्पित हीट स्ट्रोक रूम।

· स्वास्थ्य सलाह जारी करना और आईईसी गतिविधियों की योजना बनाना।

· एचआरआई लक्षणों, मामले की पहचान, नैदानिक प्रबंधन, आपातकालीन शीतलन और निगरानी रिपोर्टिंग पर स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों के चिकित्सा अधिकारियों और स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों को संवेदनशील बनाना और उनका क्षमता निर्माण करना।

· अत्यधिक गर्मी के खिलाफ स्वास्थ्य सुविधा सुदृढ़ता।

· एचआरआई-केंद्रित सामूहिक सभा/खेल आयोजन की तैयारी।

· संभावित रूप से कमजोर क्षेत्रों की पहचान करने के लिए नियमित रूप से निवारक अग्नि जोखिम मूल्यांकन अभ्यास आयोजित करना।

· अग्नि रोकथाम के सटीक उपायों को लागू करना, जैसे ज्वलनशील पदार्थों का उचित भंडारण और विद्युत सर्किट व प्रणालियों का नियमित और बेहतर निवारक रखरखाव।

· अग्नि सुरक्षा दिशानिर्देश, निकासी प्रक्रियाओं और अग्निशमन उपकरणों के उपयोग पर कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना।

· धुआं उठने पर चेतावनी, अग्निशामक यंत्र और स्प्रिंकलर सहित अग्नि का पता लगाने और रोकने की प्रणालियों की स्थापना और इष्टतम रखरखाव।

· आग लगने की अप्रिय घटना में रोगियों, कर्मचारियों और आगंतुकों को निकालने के लिए एसओपी के साथ एक आपातकालीन उपाय योजना की स्थापना।

· सबसे महत्वपूर्ण बात, बिना किसी लापरवाही के नियमित रूप से आपातकालीन स्थिति से संबंधित पूर्वाभ्यास का संचालन।

राज्य स्तरीय तैयारी:

यह जानकारी दी गयी कि सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के उच्चतम स्तर के अधिकारी स्थिति की कड़ी निगरानी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा दुर्घटनाओं पर पूर्वाभ्यास किये हैं। अग्नि सुरक्षा के बारे में पूर्वाभ्यास आयोजित करने के लिए शहरी प्रशासन और इंजीनियरिंग विभागों का समन्वय किया गया है। कोड रेड प्रोटोकॉल भी जारी किया गया है। ओडिशा में पूरे राज्य में हीट वेव कंट्रोल रूम स्थापित किए गए हैं। उत्तर प्रदेश में लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए दस्तक (घर-घर जाकर) अभियान चलाया जा रहा है। राज्य में लगभग सभी स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों में अग्नि सुरक्षा अधिकारियों की पहचान की गई है। हरियाणा ने सभी स्वास्थ्य देखभाल सुविधा केन्द्रों में आवश्यक दवाओं और लॉजिस्टिक्स सुनिश्चित करने के लिए समर्पित वित्तीय आवंटन किया है। राजस्थान में 104 और 108 से जुड़ी एंबुलेंस सेवाओं में कूलिंग उपकरण लगाए गए हैं। पश्चिम बंगाल में अग्निशमन विभाग से अग्नि सुरक्षा प्रमाणपत्र सुनिश्चित किए जा रहे हैं और मॉक ड्रिल आयोजित की जा रही है। बिहार में स्वास्थ्य सेवा सुविधा केन्द्रों में आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ समन्वय जारी है। दिल्ली ने भी सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को अग्निशमन व्यवस्था के लिए निर्देश और एसओपी जारी किए हैं। यदि छोटे सुविधा केन्द्रों में अग्नि एनओसी उपलब्ध नहीं है, चाहे वह सरकारी हो या निजी संस्थान, तो अग्नि निकासी योजना और अग्निशमन व्यवस्था को बनाए रखना अनिवार्य कर दिया गया है।

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तीसरी भारतीय विश्लेषणात्मक कांग्रेस (आईएसी) का उद्घाटन वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद- भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (सीएसआईआर-आईआईपी) देहरादून में हुआ

तीसरी भारतीय विश्लेषणात्मक कांग्रेस (आईएसी) का बुधवार को देहरादून में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद-भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (सीएसआईआर-आईआईपी) में उद्घाटन हुआ। यह तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन सह प्रदर्शनी आईएसी-2024 है। इसका आयोजन सीएसआईआर-आईआईपी और इंडियन सोसाइटी ऑफ एनालिटिकल साइंटिस्ट (आईएसएएस-दिल्ली चैप्टर) की ओर से संयुक्त रूप से किया जा रहा है । सम्मेलन का विषय ‘हरित परिवर्तनों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका’ है। लद्दाख विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस. के. मेहता ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुये लद्दाख में नव विकसित शैक्षणिक बुनियादी संरचना की भूमिका का अवलोकन प्रस्तुत किया । उन्होंने डीएसटी, डीबीटी और अन्य वित्त पोषण एजेंसियों से प्राप्त अनुसंधान निधि के माध्यम से लद्दाख विश्वविद्यालय में हाल ही में विकसित उन्नत अनुसंधान सुविधाओं का भी प्रदर्शन किया ।

प्रोएस.केमेहताकुलपतिलद्दाख विश्वविद्यालय

सीएसआईआर आईआईपी के निदेशक डॉ हरिंदर सिंह बिष्ट ने नयी उन्नत विश्लेषणात्मक सुविधाओं के महत्व और ऊर्जा परिवर्तन में उनकी भूमिका के बारे में जानकारी दी । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान , मद्रास के प्रोफेसर प्रो. रजनीश कुमार ने एसएसबी पुरस्कार विजेता और “ सीओ2 कैप्चर और सीक्वेस्ट्रेशन कार्बन कैप्चर उपयोग और सीक्वेस्ट्रेशन और भारत में नेट जीरो लक्ष्यों के लिये इसकी प्रासंगिकता ” पर एक पूरा व्याख्यान दिया । ऊर्जा और ऊर्जा उपकरणों (ईईडी) में सीएसआईआर की पहल और विषयगत उपलब्धियों को ‘ वन वीक वन थीम ’ (ओडब्ल्यूओटी) कार्यक्रम के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। ईईडी सत्र पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों, नवीकरणीय और गैर-पारंपरिक ऊर्जा / ऊर्जा प्रणालियों और ऊर्जा भंडारण और उपकरणों पर केंद्रित था ।

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन विश्लेषणात्मक विज्ञान में उद्योगों, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों के लिये इस क्षेत्र में प्रचलित और आगामी समाधानों को प्रस्तुत करने के लिये एक मंच प्रदान करेगा । सम्मेलन में पांच तकनीकी सत्र होंगे, जिनमें प्रख्यात वक्ताओं की वार्ता, शोधकर्ताओं की प्रस्तुतियां और विशेष और पूर्ण सत्र शामिल होंगे ।

उद्घाटन समारोह के दौरान इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चरल स्टेटिस्टिक्स – दिल्ली चैप्टर के अधिकारी डॉ. जी. एस. कपूर, डॉ. जे. क्रिस्टोफर, डॉ. रवीन्द्र कुमार और डॉ. राजकुमार सिंह मौजूद थे। सम्मेलन में इंडियन ऑयल कारपोरेशन लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कारपाेरेशन लिमिटेड और एचएमईएल जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान – रुड़की, यूपीईसी, दून विश्वविद्यालय, बार्क, पंजाब विश्वविद्यालय आदि जैसे संस्थानों के 250 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।

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टाटा मेमोरियल सेंटर के न्यूरो सर्जरी विभाग ने जटिल ब्रेन ट्यूमर सर्जरी के लिए अत्याधुनिक, देश में अपनी तरह का पहला, उन्नत इंट्राऑपरेटिव इमेजिंग उपकरण प्राप्त किया है

टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी), मुंबई के तंत्रिका शल्य चिकित्सा (न्यूरो सर्जरी) विभाग ने हाल ही में आंतरिक जटिल ब्रेन ट्यूमर सर्जरी करने के लिए एक अत्याधुनिक इंट्राऑपरेटिव अल्ट्रासाउंड (आईयूएस) मशीन खरीदी है। डॉ. अली असगर मोइयादी के नेतृत्व में टाटा मेमोरियल सेंटर की न्यूरो सर्जरी टीम ने भारत में आईयूएस के अनुप्रयोग की शुरुआत की है, और यह दुनिया भर में अग्रणी टीमों में से एक है। आईयूएस लागत-प्रभावी है और उचित प्रशिक्षण के साथ, न्यूरोसर्जन के चिकित्सा उपकरणों में एक महत्वपूर्ण सहायक बन सकता है। बीकेएक्टिव  मशीन, जिसे हाल ही में विभाग द्वारा प्राप्त किया गया था, देश में इस उन्नत इंट्राऑपरेटिव अल्ट्रासाउंड (आईयूएस) प्रणाली की पहली स्थापना है।

आंतरिक जटिल मस्तिष्क ट्यूमर को सुरक्षित और सटीक रूप से हटाने के लिए इंट्राऑपरेटिव इमेजिंग  महत्वपूर्ण है। नेविगेशनल सहायता (जो एक सर्जिकल जीपीएस प्रणाली की तरह है) के साथ संयुक्त, आईयूएस मशीन तंत्रिका शल्य चिकित्सक (न्यूरोसर्जन) को ट्यूमर के अवशेषों को सटीक रूप से ट्रैक करने की अनुमति देती है। इसके अलावा,  इसे जागृत अवस्था में शल्य चिकित्सा जैसी ब्रेन मैपिंग तकनीकों के साथ जोड़ा जाता है, तो वे मस्तिष्क के महत्वपूर्ण क्षेत्रों के पास भी, ट्यूमर को मौलिक रूप से हटाने में सक्षम होते हैं।

इस प्रणाली का अनावरण विगत शनिवार, 1 जून 2024 को टाटा मेमोरियल अस्पताल, परेल, मुंबई में डॉ. शैलेश श्रीखंडे, उप निदेशक एवं टाटा मेमोरियल अस्पताल के निदेशक; टाटा मेमोरियल सेंटर के तंत्रिका शल्य चिकित्सा (न्यूरोसर्जरी) विभाग प्रमुख डॉ. अली असगर मोइयादी और श्री चैतन्य सारावटे, प्रबंध निदेशक, विप्रो जीई हेल्थकेयर दक्षिण एशिया, सहित   पूरे विभागीय और ऑपरेशन थिएटर कर्मियों की उपस्थिति में किया गया।

डॉ. मोइयादी का मानना है कि इस उन्नत उपकरण से उनकी टीम को मदद मिलेगी और इससे सेंटर में ऑपरेशन किए गए बड़ी संख्या में ऐसे ब्रेन ट्यूमर रोगियों को लाभ होगा, जिनमें से कई अन्यत्र रियायती दरों पर अत्याधुनिक देखभाल प्राप्त करने में असमर्थ हैं। अन्य इंट्राऑपरेटिव इमेजिंग सिस्टम (जैसे इंट्राऑपरेटिव एमआरआई) की तुलना में आईयूएस कम महंगा होने के कारण, हमारे जैसे संसाधन सीमित स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी  है। विभाग ने न्यूरोसर्जनों को प्रशिक्षित करने और उन्हें आईओएस-निर्देशित सर्जरी को बेहतर ढंग से सम्पन्न करने के लिए आवश्यक कौशल से सुसज्जित करने के प्रयासों का नेतृत्व करते हुए भारत के साथ-साथ विश्व स्तर पर भी इसके लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किए हैं, अब आशा है कि और अधिक न्यूरोसर्जन इस उपयोगी तकनीक को अपना सकते हैं और पूरे भारत में रोगियों की बड़ी संख्या के बीच इसके लाभ का प्रसार कर सकते हैं। डॉ. ए मोइयादी ने यह भी बताया कि यह उपकरण यूबीएस द्वारा प्रदान किए गए उदार अनुदान की सहायता से खरीदा गया था। उन्होंने कहा कि टीएमसी यूबीएस द्वारा प्रदान की गई सहायता के लिए आभारी हैI साथ ही उन्होंने ऐसे योगदानों के महत्व पर प्रकाश डाला, जो सभी भारतीयों के लिए उन्नत कैंसर देखभाल प्रदान करने के टीएमसी के प्रयासों को मजबूती प्रदान  करते हैं।

लॉन्च इवेंट में अपने संबोधन में श्री सारावटे ने कहा कि “हम ऐसी सक्रिय छायांकन प्रणाली (इमेजिंग सिस्टम) डिजाइन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो शल्य चिकित्सकों (सर्जन्स) को शरीर रचना विज्ञान (एनाटोमी) और घावों को देख सकने, हस्तक्षेप का मार्गदर्शन करने और मानव शरीर के अंदर नेविगेट करने में सहायता करते हैं- और इस बीकेएक्टिव अल्ट्रासाउंड सिस्टम का  सहयोग भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होने के साथ ही तंत्रिका शल्य चिकित्सा (न्यूरोसर्जरी) में क्रांति लाने के लिए तैयार है।

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दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज कानपुर द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित

कानपुर 5 जून भारतीय स्वरूप संवाददाता, राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई, दयानंद गर्ल्स पी जी कॉलेज कानपुर द्वारा आज 5 जून, 2024 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर कार्यक्रम अधिकारी डॉ संगीता सिरोही के निर्देशन में कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें वृक्षारोपण कर छात्राओं को ज्यादा से ज्यादा प्लांटेशन करने के लिए प्रेरित किया गया। महाविद्यालय प्राचार्य प्रो अर्चना श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में छात्राओं को वृक्षारोपण के महत्व के बारे में बताया। आइ क्यू ए सी इंचार्ज प्रो बंदना निगम ने कहा कि हम प्लास्टिक का प्रयोग प्रतिबंधित करके एवम् अधिक से अधिक वृक्षारोपण करके भूमंडलीय उष्मीकरण तथा जलवायु परिवर्तन के होने वाले खतरों को कम कर सकते है। उक्त कार्यक्रम को सफल बनाने में कार्यालय अधीक्षक श्री कृष्णेंद्र श्रीवास्तव तथा समस्त वॉलिंटियर्स का सराहनीय योगदान रहा।

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कुल खाद्यान्न उत्पादन 3288.52 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है, जो पिछले 5 वर्षों के औसत खाद्यान्न उत्पादन से 211.00 लाख मीट्रिक टन अधिक है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023-24 के प्रमुख कृषि फसलों के उत्पादन का तीसरा अग्रिम अनुमान जारी किया गया है। पिछले कृषि वर्ष से, जायद के मौसम को रबी मौसम से अलग कर दिया गया है और इसे तीसरे अग्रिम अनुमान में शामिल किया गया है । इसलिए, क्षेत्रफल, उत्पादन और उपज के इस तीसरे अग्रिम अनुमान में ख़रीफ़, रबी एवं जायद मौसम शामिल हैं।

        यह अनुमान मुख्य रूप से राज्य कृषि सांख्यिकी प्राधिकरणों (एसएएसए) से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है। प्राप्त आंकड़ों को रिमोट सेंसिंग, साप्ताहिक फसल मौसम निगरानी समूह (सीडब्ल्यूडब्ल्यूजीकी रिपोर्ट और अन्य एजेंसियों से प्राप्त जानकारी के साथ मान्य और त्रिकोणित किया गया है। इसके अलावा अनुमान तैयार करते समय जलवायु परिस्थितियों, पिछले रुझानों, मूल्यो में उतार-चढ़ाव, मंडी आगमन आदि पर भी विचार किया गया है।

विभिन्न फसलों के उत्पादन का विवरण निम्नानुसार दिया गया है:

कुल खाद्यान्न– 3288.52 लाख मीट्रिक टन 

  • चावल 1367.00 लाख मीट्रिक टन
  • गेहूं- 1129.25 लाख मीट्रिक टन
  • मक्का – 356.73 लाख मीट्रिक टन
  • श्री अन्न- 174.08 लाख मीट्रिक टन
  • तूर – 33.85 लाख मीट्रिक टन
  • चना – 115.76 लाख मीट्रिक टन

 

कुल तिलहन– 395.93 लाख मीट्रिक टन

  • सोयाबीन – 130.54 लाख मीट्रिक टन
  • रेपसीड और सरसों – 131.61 लाख मीट्रिक टन

गन्ना – 4425.22 लाख मीट्रिक टन

कपास – 325.22 लाख गांठें (प्रत्येक गांठ 170 किलोग्राम)

जूट – 92.59 लाख गांठें (प्रत्येक गांठ180 किलोग्राम)

 

कुल खाद्यान्न उत्पादन 3288.52 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है, जो वर्ष 2022-23 के खाद्यान्न उत्पादन से थोड़ा कम है जबकि पिछले 5 वर्षों (2018-19 से 2022-23) के 3077.52 लाख मीट्रिक टन औसत खाद्यान्न उत्पादन से 211.00 लाख मीट्रिक टन अधिक है।

कुल चावल उत्पादन 1367.00 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है जो  2022-23 के 1357.55 लाख मीट्रिक टन की तुलना में, 9.45 लाख मीट्रिक टन की वृद्धि दर्शाता है। गेहूं का उत्पादन 1129.25 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है, जो पिछले वर्ष के गेहूं उत्पादन की तुलना में 23.71 लाख मीट्रिक टन अधिक है।

श्री अन्न का उत्पादन वर्ष 2022-23 के उत्पादन से 0.87 लाख मीट्रिक टन की थोड़ी सी वृद्धि दर्शाते हुए 174.08 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है। इसके अलावा, पोषक/मोटे अनाजों का उत्पादन 547.34 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है जो औसत उत्पादन से 46.24 लाख मीट्रिक टन अधिक है।

तूर का उत्पादन 33.85 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है जो कि पिछले वर्ष के 33.12 लाख मीट्रिक टन उत्पादन से 0.73 लाख मीट्रिक टन अधिक है। मसूर का उत्पादन 17.54 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है जो पिछले वर्ष के 15.59 लाख मीट्रिक टन उत्पादन से 1.95 लाख मीट्रिक टन अधिक है।

सोयाबीन का उत्पादन 130.54 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है एवं रेपसीड और सरसों का उत्पादन 131.61 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है, जो पिछले वर्ष के उत्पादन से 5.18 लाख मीट्रिक टन अधिक है। कपास का उत्पादन 325.22 लाख गांठे (प्रत्येक गांठ 170 किलोग्रामऔर गन्ने का उत्पादन 4425.22 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है।

खरीफ फसल के उत्पादन अनुमान तैयार करते समय फसल कटाई प्रयोग (सीसीईआधारित उपज पर विचार किया गया है। इसके अलावा, फसल कटाई प्रयोगों (सीसीई) के रिकॉर्ड की प्रक्रिया को डिजिटल जनरल क्रॉप एस्टीमेशन सर्वे (डीजीसीईएस) लागू कर पुनर्निर्मित किया गया है, जिसे रबी मौसम के दौरान 16 राज्यों में शुरु किया गया था। डीजीसीईएस के तहत प्राप्त उपज परिणामों का उपयोग मुख्यत: रबी फसल उत्पादन पर पहुंचने के लिए किया गया है। इसके अलावा, जायद फसलों का उत्पादन अनुमान पिछले 3 वर्षों की औसत उपज पर आधारित है।

पिछले अनुमानों के साथ तीसरे अग्रिम अनुमान 2023-24 का विवरण upag.gov.in पर उपलब्ध है।

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एफएसएसएआई ने एफबीओ को फलों के रस के लेबल और विज्ञापन से शत-प्रतिशत फलों के रस होने संबंधी दावे को हटाने का निर्देश दिया

दैनिक भारतीय स्वरुप,  भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने एक निर्देश जारी कर सभी खाद्य व्यवसाय संचालकों (एफबीओ) को फ्रूट जूस के लेबल और विज्ञापनों से ‘शत-प्रतिशत फलों के रस’ के किसी भी दावे को तत्काल प्रभाव से हटाने का निर्देश दिया है। सभी एफबीओ को 1 सितंबर, 2024 से पहले सभी मौजूदा प्री-प्रिंटेड पैकेजिंग सामग्री को समाप्त करने का भी निर्देश दिया गया है।

एफएसएसएआई के ध्यान में आया है कि कई एफबीओ गलत तरीके से विभिन्न प्रकार के फ्रूट जूस (रिकंस्टीट्यूटेड फ्रूट जूस) को लेकर यह दावा करते हुए कि वे शत-प्रतिशत फलों के रस हैं, की मार्केटिंग कर रहे हैं। गहन जांच के बाद, एफएसएसएआई ने निष्कर्ष निकाला है कि खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 के अनुसार, ‘शत-प्रतिशत’ दावा करने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे दावे भ्रामक हैं, खासकर उन परिस्थितियों में जहां फलों के रस का मुख्य घटक पानी है और प्राथमिक घटक, जिसके लिए दावा किया जाता है, केवल लिमिटेड कंस्ट्रेशन्स में मौजूद है, या जब फलों के रस को पानी और फलों के कंस्ट्रेशन या गूदे का उपयोग करके तैयार किया जाता है।

फ्रूट जूस का ‘शत-प्रतिशत फलों के रस’ के रूप में मार्केटिंग और बिक्री के संबंध में जारी स्पष्टीकरण में, एफबीओ को याद दिलाया जाता है कि उन्हें खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक) विनियमन, 2011 के उप-विनियमन 2.3.6 के तहत निर्दिष्ट फलों के रस के मानकों का पालन करना चाहिए। यह विनियमन बताता है कि इस मानक द्वारा कवर किए गए उत्पादों को खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियमन, 2020 के अनुसार लेबल किया जाना चाहिए। विशेष रूप से, घटक सूची में, “रिकंस्टीट्यूटेड” शब्द का उल्लेख उस रस के नाम के सामने किया जाना चाहिए जिसे कंस्ट्रेशन (जूस तैयार करने का तरीका) से तैयार किया जाता है। इसके अतिरिक्त, यदि उसमें डाले गए स्वीटनर 15 ग्राम/किलोग्राम से अधिक हैं, तो उत्पाद को ‘स्वीटेंड जूस’ के रूप में लेबल किया जाना चाहिए।

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) देश भर में खाद्य सुरक्षा मानकों के विनियमन और पर्यवेक्षण के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा और संवर्धन के लिए समर्पित है। – (PIB)

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मई 2024 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में कोयला उत्पादन में 10.15 प्रतिशत और कोयला प्रेषण में 10.35 प्रतिशत की वृद्धि हुई

मई 2024 में भारत का कोयला उत्पादन 83.91 मिलियन टन (अनंतिम) हुआ, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में हुए 76.18 मिलियन टन की तुलना में 10.15 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्शाता है। इस अवधि के दौरान, कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने 64.40 मिलियन टन (अनंतिम) कोयला उत्पादन हासिल किया, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में हुए 59.93 मिलियन टन उत्‍पादन की तुलना में 7.46 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। इसके अलावा, मई 2024 में कैप्टिव और अन्य संस्थाओं का कोयला उत्पादन 13.78 मिलियन टन (अनंतिम) रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 32.76 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। पिछले वर्ष इन संस्‍थाओं का उत्‍पादन 10.38 मिलियन टन रहा।

इसी तरह, मई 2024 के लिए भारत का कुल कोयला प्रेषण 90.84 मिलियन टन (अनंतिम) हुआ। जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 10.35 प्रतिशत अधिक है। पिछले वर्ष यह प्रेषण 82.32 मिलियन टन दर्ज किया गया था। मई 2024 के दौरान सीआईएल ने 69.08 मिलियन टन (अनंतिम) कोयला प्रेषण किया था जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में हुए 63.67 मिलियन टन प्रेषण की तुलना में 8.50 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। इसके अलावा, मई में कैप्टिव और अन्य संस्थाओं द्वारा कोयला प्रेषण 16 मिलियन टन (अनंतिम) दर्ज किया गया, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 29.33 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। पिछले वर्ष इन संस्‍थाओं का प्रेषण 12.37 मिलियन टन रहा था।

कोयला कंपनियों के पास कोयला का कुल स्टॉक 96.48 मिलियन टन है। सीआईएल के पास 83.01 मिलियन टन कोयला स्टॉक है, जबकि कैप्टिव और अन्य कंपनियों के पास 8.28 मिलियन टन कोयले का स्टॉक है।

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सीएसआईआर की ‘फेनोम इंडिया’ परियोजना ने 10,000 नमूने एकत्र कर लक्ष्य हासिल किया, सटीक चिकित्सा में नए युग की शुरुआत का लक्ष्य

  वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने अपनी अभूतपूर्व अनुदैर्ध्य स्वास्थ्य निगरानी परियोजना, ‘फेनोम इंडिया-सीएसआईआर हेल्थ कोहोर्ट नॉलेजबेस’ (पीआई-चेक) के पहले चरण के सफल समापन की घोषणा की। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को यादगार बनाने के लिए, सीएसआईआर ने आज 3 जून को गोवा के राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआईओ) में एक विशेष कार्यक्रम ‘फेनोम इंडिया अनबॉक्सिंग 1.0’ का आयोजन किया। सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी) के निदेशक डॉ. सौविक मैती, सीएसआईआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (एनआईओ) के निदेशक डॉ. सुनील कुमार सिंह, सीएसआईआर-आईजीआईबी के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. शांतनु सेनगुप्ता, सीएसआईआर के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंटेलिजेंट सेंसर्स एंड सिस्टम्स के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीरेन सरदाना उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में शामिल थे। मीडिया को संबोधित करते हुए सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. शांतनु सेनगुप्ता ने कहा कि यह भारतीय स्वास्थ्य सेवा के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। उन्होंने बताया कि भारत में कार्डियो-मेटाबोलिक बीमारियों का के बहुत केस होने के बावजूद, भारतीय आबादी में इतनी अधिक घटनाओं के कारण पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा, “पश्चिम के जोखिम कारक भारत के जोखिम कारकों के समान नहीं हैं। एक कारक जो किसी विशेष व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, वह दूसरे व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है। इसलिए हमारे देश में एक ही तरह की अवधारणा को खत्म करना होगा।”

उन्होंने बताया कि पहली बार, कार्डियो-मेटाबोलिक बीमारी, विशेष रूप से मधुमेह, लिवर रोग और हृदय रोगों के लिए एक उन्नत पूर्वानुमान मॉडल विकसित करने के उद्देश्य से एक अखिल भारतीय अनुदैर्ध्य अध्ययन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस तरह का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि इन बीमारियों में आनुवंशिक और जीवनशैली दोनों कारक होते हैं जो जोखिम में योगदान करते हैं।

उन्होंने कहा कि अध्ययन 10,000 नमूनों के अपने लक्ष्य को पार करने में सफल रहा है। उन्होंने अन्य संगठनों से भी इसी तरह के नमूना संग्रह अभियान शुरू करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “मान लीजिए, हमें लगभग 1 लाख या 10 लाख नमूने मिल जाते हैं, तो इससे हम देश में सभी प्रमुख मापदंडों को फिर से परिभाषित करने में सक्षम हो जाएंगे।” उन्होंने बताया कि सीएसआईआर ने नमूना संग्रह के लिए एक लागत प्रभावी मानक संचालन प्रक्रिया विकसित की है।

7 दिसंबर 2023 को लॉन्च की गई ‘पीआई-चेक’ परियोजना का उद्देश्य भारतीय आबादी में गैर-संचारी (कार्डियो-मेटाबोलिक) रोगों के जोखिम कारकों का आकलन करना है। इस अनूठी पहल में पहले से ही लगभग 10,000 प्रतिभागियों को नामांकित किया गया है, जिन्होंने व्यापक स्वास्थ्य डेटा प्रदान करने के लिए स्वेच्छा से काम किया है। इन प्रतिभागियों में 17 राज्यों और 24 शहरों के सीएसआईआर कर्मचारी, पेंशनभोगी और उनके पति/पत्नी शामिल हैं। एकत्र किए गए डेटा में नैदानिक ​​प्रश्नावली, जीवनशैली और आहार संबंधी आदतें, मानवशास्त्रीय माप, इमेजिंग/स्कैनिंग डेटा और व्यापक जैव रासायनिक और आणविक डेटा सहित कई पैरामीटर शामिल हैं।

भारतीय आबादी में कार्डियो मेटाबोलिक विकारों के बढ़ते जोखिम और घटनाओं के पीछे छिपे तंत्रों को समझना और इन प्रमुख बीमारियों के जोखिम स्तरीकरण, रोकथाम और प्रबंधन के लिए नई रणनीतियां विकसित करना महत्वपूर्ण है। वर्तमान में, इनमें से अधिकांश जोखिम पूर्वानुमान एल्गोरिदम काकेशियन आबादी के महामारी विज्ञान डेटा पर आधारित हैं और इस बात के प्रमाण हैं कि वे जातीय विविधता, विभिन्न आनुवंशिक संरचना और आहार संबंधी आदतों सहित जीवनशैली पैटर्न के कारण भारतीय आबादी के लिए बहुत सटीक नहीं हो सकते हैं। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि भारत-विशिष्ट जोखिम पूर्वानुमान एल्गोरिदम विकसित किए जाएं। फेनोम इंडिया परियोजना पूर्वानुमानित, व्यक्तिगत, सहभागी और निवारक स्वास्थ्य सेवा के माध्यम से सटीक चिकित्सा को आगे बढ़ाने के लिए सीएसआईआर की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। भारतीय आबादी के अनुरूप एक व्यापक फेनोम डेटाबेस तैयार करके, परियोजना का उद्देश्य पूरे देश में इसी तरह की पहल को उत्प्रेरित करना है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि जोखिम पूर्वानुमान एल्गोरिदम अधिक सटीक हों और भारत के विविध आनुवंशिक और जीवन शैली परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करें।

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सुप्रीम कोर्ट ने विज्ञापनदाताओं/विज्ञापन एजेंसियों द्वारा विज्ञापन जारी करने से पहले स्व-घोषणा अनिवार्य की

दैनिक भारतीय स्वरुप,  माननीय उच्‍चतम न्यायालय ने रिट याचिका सिविल संख्या 645/2022-आईएमए एवं एएनआर बनाम यूओआई एवं ओआरएस मामले में अपने दिनांक 07.05.2024 के आदेश में निर्देश दिया कि सभी विज्ञापनदाताओं/विज्ञापन एजेंसियों को किसी भी विज्ञापन को प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले एक ‘स्व-घोषणा प्रमाणपत्र’ प्रस्तुत करना होगा। माननीय उच्‍चतम न्यायालय के निर्देश के बाद, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टीवी और रेडियो विज्ञापनों के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) के प्रसारण सेवा पोर्टल और प्रिंट एवं डिजिटल/इंटरनेट विज्ञापनों के लिए भारतीय प्रेस परिषद के पोर्टल पर एक नई सुविधा शुरू की है। विज्ञापनदाता/विज्ञापन एजेंसी के अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाणपत्र को इन पोर्टलों के माध्यम से प्रस्तुत करना होगा।

पोर्टल 4 जून, 2024 से काम करने लगेगा। सभी विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों को 18 जून, 2024 या उसके बाद जारी/टेलीविजन प्रसारण/रेडियो पर प्रसारित/प्रकाशित होने वाले सभी नए विज्ञापनों के लिए स्व-घोषणा प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक है। सभी हितधारकों को स्व-प्रमाणन की प्रक्रिया से परिचित होने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करने के लिए दो सप्ताह का अतिरिक्‍त समय रखा गया है। वर्तमान में चल रहे विज्ञापनों को स्व-प्रमाणन की आवश्यकता नहीं है।

स्व-घोषणा प्रमाणपत्र यह प्रमाणित करता है कि विज्ञापन (i) भ्रामक दावे नहीं करता है, और (ii) केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के नियम 7 और भारतीय प्रेस परिषद के पत्रकारिता आचरण के मानदंडों में निर्धारित सभी उचित नियामक दिशा निर्देशों का अनुपालन करता है। विज्ञापनदाता को संबद्ध प्रसारक, प्रिंटर, प्रकाशक या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को उनके रिकॉर्ड के लिए स्व-घोषणा प्रमाणपत्र अपलोड करने का प्रमाण देना होगा। माननीय उच्‍चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार, वैध स्व-घोषणा प्रमाणपत्र के बिना किसी भी विज्ञापन को टेलीविज़न, प्रिंट मीडिया या इंटरनेट पर चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

माननीय उच्‍चतम न्यायालय का निर्देश पारदर्शिता, उपभोक्ता संरक्षण और जिम्मेदार विज्ञापन कार्य प्रणालियां सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय सभी विज्ञापनदाताओं, प्रसारकों और प्रकाशकों से इस निर्देश का पूरी लगन से पालन करने का आग्रह करता है। –(PIB)

स्‍व-घोषणा प्रमाणपत्र के बारे में विस्‍तृत दिशा-निर्देशों के लिए यहां क्लिक करें

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