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“विज्ञान और प्रौद्योगिकी उन्नति ने स्वक्छ पर्यावरण के हमारे मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया” विषय पर अंतरमहाविद्यालयी वाद- विवाद प्रतियोगि आयोजित

भारतीय स्वरूप संवाददाता कानपुर 5 दिसम्बर, एस एन सेन बालिका विद्यालय पी जी कॉलेज कानपुर के रसायन विज्ञान विभाग ने “ विज्ञान और प्रौद्योगिकी उन्नति में स्वक्छ पर्यावरण के हमारे मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया है- विषय पर एक अंतरमहाविद्यालयी वाद- विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया । इस अवसर पर छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से संबद्ध ११महाविद्यालयों की ३२ टीमो के ६४ प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया ।
कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय प्रबंध तंत्र के सचिव पी के सेन संयुक्त सचिव शुभ्रो सेन प्राचार्या प्रोफेसर सुमन , निर्णायक मंडल  श्रद्धा मिश्रा ,डिप्टी डायरेक्टर ,डी एम एस आर डी तथा डॉ गोवर्धन लाल ,जॉइंट डायरेक्टर ,डी एम एस आर डी कानपुर तथा रसायन विज्ञान की विभागाध्यक्ष प्रो गार्गी यादव ने माँ सरस्वती के माल्यार्पण तथा दीप प्रज्ज्वलित करके किया ।सभी छात्र छात्राओं ने अपने अपने विचार पक्ष और विपक्ष में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए अपनी प्रतिभा का परिचय दिया ।श्री शुभ्रो जी ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए अच्छे वाद विवाद करने के गुर बताए । प्राचार्या प्रो सुमन ने सभी प्रतिभागियों का मनोबल बढ़ाते हुए भूरि भूरी प्रशंसा की ।मंच संचालन बी एस सी तृतीय वर्ष की सृष्टि जायसवाल तथा माही तिवारी ने किया ।निर्णायकों के निर्णय लेने के अंतराल में महाविद्यालय की छात्राओं ने पर्यावरण संरक्षण पर एक लघु नाटिका और नृत्य का प्रदर्शन किया ।
विजयी टीमों को पुरस्कृत मंचासीनअतिथियों किया ने किया । प्रतियोगिता का निर्णय इस प्रकार रहा-
प्रथम -सिमोन तथा मौलश्री ए एन डी महाविद्यालय

द्वितीय -चित्रांशी शुक्ला तथा ग्वाँशी पटेल , ब्रह्मावर्त पी जी कॉलेज,मधना

तृतीय – माही तथा ख़ुशी ,डॉ वी एस ई सी

सांत्वना – निहारिका तथा सुहावनी कौर, जागरण कॉलेज
मीडिया प्रभारी डॉ प्रीति सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कार्यक्रम में डा अलका टंडन ,डॉ निशा वर्मा, डॉ रचना निगम डॉ शुभा बाजपेयी सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे ।

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आईआईटी कानपुर, में उपराष्ट्रपति का संबोधन

पहले भारत एक अलग देश था, लेकिन अब यह आशा और संभावनाओं वाला देश है। अब यह आर्थिक उन्नति करता हुआ एक देश है, एक अभूतपूर्व बुनियादी ढांचे वाला देश है,अब यह एक ऐसा देश है जिसके समुद्र, जमीन, आकाश या अंतरिक्ष में प्रदर्शन को वैश्विक प्रशंसा मिल रही है।

हमारे देश में जो परिवर्तन आया है, वह मोटे तौर पर इन संस्थानों के पूर्व छात्रों के कारण ही है। इतिहास गवाह है कि कोई भी राष्ट्र तकनीकी क्रांतियों के बगैर महानता हासिल नहीं कर सका है। पैक्स इंडिका को वास्तविकता बनाने के लिए, भारत को इसी तरह तकनीकी प्रगति का नेतृत्व करना होगा।

पिछले एक दशक में,भारत में उल्लेखनीय परिवर्तन और नवाचार देखा गया है। बेहतरी के लिए वातावरण में पूरी तरह से क्रांति ला दी गई है। हमारी पेटेंट फाइलिंग दोगुनी से भी अधिक हो गई है। कुछ लोगों के लिए यह आँकड़े हो सकते हैं, लेकिन आप इसका महत्व जानते हैं।

मैंने अक्सर संस्थानों पर इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि शोध केवल शोध के लिए नहीं होना चाहिए।

एक शोध पत्र सिर्फ अकादमिक प्रशंसा के लिए नहीं है। एक शोध पत्र का आधार ऐसा होना चाहिए, जो बड़े पैमाने पर जनता के लिए परिवर्तनकारी हो। वर्ष 2014-15 में 42,763 पेटेंट फाइलिंग थे, जो 2023-24 में 92,000 हो गए और ये इस प्रक्रिया में हम वैश्विक स्तर पर छठे स्थान पर हैं। लेकिन हम इससे संतुष्ट नहीं हो सकते। हमें शीर्ष पर पहुंचना है और इसके लिए पारिस्थितिकी तंत्र, सकारात्मक नीतियों, पहलों ने आपके लिए कार्य संस्कृति को और अधिक सुविधाजनक बना दिया है। 1,50,000 स्टार्टअप के साथ हमारे पास तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है। लेकिन जो अधिक उल्लेखनीय बात है, कि उनमें से 118 यूनिकॉर्न की लागत 354 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

मैं उद्योग, व्यापार, व्यवसाय और कॉरपोरेट्स तथा उनके संगठनों से अपील करूंगा, क्योंकि नवाचार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को उचित परिप्रेक्ष्य में समझना ज़रुरी है। वे अपने वर्तमान में और अपने भविष्य में निवेश कर रहे हैं। उन्हें इसका अहसास करना होगा। मैंने वैश्विक स्तर पर देखा और शीर्ष 25 में मैं केवल दो भारतीय कॉरपोरेट्स को ही पाया। वास्तव में हमें उस बड़े बदलाव की ज़रूरत है, जिसकी देश को ज़रुरत है, एक ऐसा बदलाव जो वैश्विक स्थिरता और सद्भाव के लिए होगा, क्योंकि भारत की वृद्धि विश्व के लिए समृद्धि है। यही हमारी संस्कृति है।

नवाचार के प्रति कॉर्पोरेट प्रतिबद्धता मजबूत हो रही है, इसे आगे बढ़ने की जरूरत है। बीएसई 100 कंपनियां अभी से अपना आरएंडडी में निवेश बढ़ा रही हैं, इसे समझने के लिए बहुत साहस की जरूरत है। पिछले पांच वर्षों में राजस्व 0.89% से 1.32% तक पहुंच गया है। इसके लिए एक बड़ी छलांग की जरूरत है। मुझे यकीन है कि निदेशक और उनके जैसे लोग तथा आईआईटी के पूर्व छात्र, उन्हें एक मंच पर बातचीत करनी चाहिए। वे शायद इस ग्रह पर बेजोड़ प्रतिभा का भंडार हैं। वे भारत और उसके बाहर अच्छे फैसले लेने की स्थिति में है।

मैं लंबे समय से आईआईटी के पूर्व छात्र संघों के एक संघ के लिए प्रयास कर रहा हूं। वह वैश्विक थिंक टैंक न केवल कॉरपोरेट्स को प्रेरित कर सकता है, बल्कि एक बड़ा बदलाव भी ला सकता है। मुझे ख़ुशी होगी अगर निदेशक अन्य निदेशकों से संपर्क करके पहल करें कि हमारे पास आईआईटी के पूर्व छात्र संघों का एक संघ हो। एक बार जब वे लोग एक ही बात पर सहमत होंगे,तो मुझे यकीन है कि तकनीक की मदद से ऐसा हो सकेगा। इन्क्यूबेशन केंद्रों के माध्यम से संस्थागत समर्थन आईआईटी कानपुर के साथ बढ़ रहा है, जिसने पहले 100 से अधिक महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों सहित 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के 250 स्टार्टअप को समर्थन दिया था। बाद की उपलब्धि खास ध्यान देने योग्य है। जब मैं यहाँ आया तो मैंने देखा कि ज्यादा छात्राएं नहीं थीं, लेकिन उनकी जो भी उपस्थिति है,आप बहुमत से अधिक हैं। बड़ा बदलाव पहले से ही हो रहा है।

भविष्य में नवाचार हमारे लिए ज़रुरी भूमिका निभाएगा और ये सिद्धांत मौलिक हैं। स्मार्ट, समाधान-उन्मुख, स्केलेबल और टिकाऊ। इन शब्दों का अर्थ बहुत सतत् है। मैं एक साधारण वजह से कहता हूं। हमारे ग्रह को वास्तव में ख़तरों का सामना करना पड़ रहा है और हमारे पास कोई दूसरा ग्रह नहीं है। इसलिए विकास स्थिर होना चाहिए। क्रांतिकारी स्मार्टफोन या भारत की यूपीआई प्रणाली जैसे स्मार्ट नवाचार सरल, अनुकूलनीय और परिवर्तनकारी होने चाहिए। जब मैं इस अनुकूलनशीलता को देखता हूं, तो यह मेरे लिए गर्व का क्षण होता है। आज करोड़ों भारतीय किसानों को उनके खातों में सीधे धनराशि प्राप्त होती है। आज जो सरकार कर रही है, वह सबसे अलग है। सुविधाए प्राप्त करने वालों को देखिए,जिन्हें पहले इनकी उम्मीद नहीं थी। तकनीकी मदद के चलते आज धनराशि को लेकर कोई संशय नहीं है, कोई बिचौलिया नहीं, कोई भ्रष्ट तत्व नहीं, पारदर्शिता और जवाबदेही और सबसे खास बात प्रक्रियाओं में तेज़ी आ रही है।

समाधान-उन्मुख नवाचार के लिए कृषि से लेकर स्वास्थ्य सेवा तक के क्षेत्रों में वास्तविक दुनिया की समस्याओं को समझने की ज़रुरत है। मेरे युवा मित्रों, इसके लिए ज़रुरी है कि हम आरामदायक क्षेत्र से बाहर निकलें और पूरे भारत में विविध हितधारकों के साथ जुड़ें। मैं इसी पर ध्यान केंद्रित करूंगा, क्योंकि मैं आईआईटी कानपुर से एक उत्साही अपील करने आया हूं।

मुझे बेहद खुशी होगी, अगर आईआईटी कानपुर मिशन मोड में किसानों का कल्याण कर सके। कुछ समस्याएं तो बेहद साफ है जैसे पराली जलाने का मुद्दा। कृपया अपने विचारों से इसका कोई समाधान खोजें। हमारे किसान तनावग्रस्त है, क्योंकि उन्हें नवाचार के लाभों का अनुभव नहीं है। आप में से अधिकांश लोग, या आप में से बहुत से लोग किसान परिवारों से आते होंगे। यही बताया जाता है कि कृषि उपज होती है और किसान उसे बेचता है और बात ख़त्म।

किसान को अपने उत्पाद का मूल्य क्यों नहीं बढ़ाना चाहिए? किसान को इसकी मार्केटिंग क्यों नहीं करनी चाहिए? उद्योग के राजकोषीय आयाम की मात्रा की कल्पना करें, जो कृषि उपज के मूल्य में बढ़ोत्तरी करता है।

मैंने कई आईआईटी से निकले महानुभावों को इस क्षेत्र में जाते देखा है। लेकिन जो लोग इसे आसानी से कर सकते हैं, कृपया इस पर ध्यान दें। कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आने वाला है, इसकी जरूरत है। हमें भारत में डिजाइनिंग की जगह, भारत में विनिर्माण पर फोकस करना चाहिए। यह बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र है। मैं बार-बार कहता रहा हूं, विनिर्माण का मतलब है कि हम मूल्यों में बढ़ोत्तरी करें, अपने कच्चे माल में वृद्धि करें। ये तो इसका एक छोटा सा पहलू है। लेकिन जब आप पारादीप जैसे बंदरगाह पर जाते हैं या जहां बिना मूल्यवर्धन के लोहा निर्यात किया जा रहा हो, तो युवा लड़के और लड़कियां उस परिदृश्य को किस तरह देखेंगे। कोई उस लौह अयस्क पर नियंत्रण रखता है, किसी को सौदे पर बातचीत करने के लिए कमरे में बैठना आरामदायक लगता है, किसी को विदेश में। लेकिन इस प्रक्रिया में हमारे हितों से समझौता किया जाता है। कोई राजकोषीय लाभ नहीं होता। आपको मूल्यांकन क्षेत्रों में अत्यंत नवोन्मेषी होना चाहिए। हालाँकि बहुत कुछ हो रहा है। यदि कचरे से धन बनाया जा रहा है, यदि कच्चा माल विभिन्न स्वरूपों में उभर कर आ रहा है, तो यह नवाचार के कारण ही है। युवाओं, स्थिरता को प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने की हमारी सभ्यता के लोकाचार के अनुरूप सभी नवाचारों को रेखांकित करना चाहिए। मुझे पता है कि इस प्रवृत्ति में कुछ गिरावट आ रही है। यह उन लोगों के लिए फैशन की बात है , जो संपन्न हैं और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं। आप प्रतिभाशाली व्यक्तित्व हैं, प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग होना चाहिए, क्योंकि यही सतत् विकास का आधार है।

यदि हम प्रकृति के साथ सामंजस्य रखते हैं, तो हमें इस तरह से काम करना होगा, कि पारिस्थितिकी तंत्र के विकास से नवीकरणीय ऊर्जा, टिकाऊ सामान, जैविक खेती और कृषि वानिकी में अवसर पैदा हों। जैसा कि मैंने कहा, किसानों को नवाचार को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाते हुए पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाने में सक्षम बनाना चाहिए। असल में अब यह एक सपना नहीं है, यह 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की हमारी मंजिल है। हमें कृषि के कल्याण पर अधिक गंभीरता से ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है। आपको इस बात पर विचार करना चाहिए कि घटती भूमि के आकार के साथ कृषि अर्थव्यवस्था को कैसे सुधारा जाए। सरकार की कई योजनाएं, हैंड-होल्डिंग योजनाएं, सहकारी समितियां हैं, जिन्हें अब हमारे संविधान में जगह मिली है। वह सब कुछ किया जा रहा है, जो हो सकता है। लेकिन नवीनता उत्पन्न होनी चाहिए। एक बार जब वह नवप्रवर्तन हो जाएगा, तो क्रियान्वयन भी अपने आप हो जाएगा।

हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश को देखते हुए, 2047 तक भारत का विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करना ज़रुरी है। प्राकृतिक संसाधन, प्रतिभा पूल और सहायक नीतियां, सकारात्मक नीतियों जैसी सुविधाएं हमारे पास नहीं थी, जो आपके पास है। जैसे ही आप बाहरी दुनिया के लिए प्रवेश करेंगे,एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है जो आपकी मदद करेगा। आप पाएंगे कि यदि आपके पास कोई स्टार्टअप है, तो शीर्ष कॉर्पोरेट्स निवेश करेंगे। आप अखबार तो पढ़ते ही होंगे, वे उसमें दिलचस्पी लेते हैं। आपने देखा होगा कि कैसे आपके संस्थानों से लोग अरबपति बन गए हैं, क्योंकि उन्होंने नवाचार से एक तकनीकी दिग्गज संस्था बनाई है।

सामान्य आदमी का सरोकार नवाचारों से नहीं, बल्कि समाधान से है। इसलिए, समाधान प्रदान करने वाला कोई भी नवाचार हर किसी की कल्पना को आकर्षित करता है। क्या आप हमारे जैसे देश की कल्पना कर सकते हैं जहां लोग गांवों में रहते हों? प्रौद्योगिकी की अनुकूलनशीलता इतनी तेज रही है, जिससे हमें दुनिया में बढ़त मिली है । हमारी प्रति व्यक्ति इंटरनेट खपत अमेरिका और चीन की संयुक्त खपत की तुलना में अधिक है। अब आप पाएंगे कि हर व्यक्ति डिजिटल माध्यम से भुगतान करने लगा है। अर्थव्यवस्था पर इसका असर देखिए, हमारी अर्थव्यवस्था औपचारिक होती जा रही है। एक औपचारिक अर्थव्यवस्था नैतिक मानकों, पारदर्शी शासन का अग्रदूत है। आपमें से जो लोग , जिनके माता-पिता से आयकर रिटर्न दाखिल करते थे, उनसे पता कर सकते हैं कि पहले यह काफी परेशानी भरा काम हुआ करता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। सभी लेन-देन सरल हो गए हैं। पूरे भारत में भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे का अभिसरण बाजार संबंधों के लिए अभूतपूर्व अवसर पैदा करता है।

मैं इनोवेटर्स से आग्रह करूंगा, यानी कि आप युवाओं से कि आपको स्थानीय उत्पादों को वैश्विक बाजारों से जोड़ने के लिए इन फाउंडेशन का लाभ उठाना चाहिए, जैसे कि कानपुर के चमड़े के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाना चाहिए। राष्ट्र की प्रगति, नवाचारों को तैयार करने की आपकी क्षमता पर निर्भर करती है, जो आर्थिक विकास को आगे बढ़ाते हुए वास्तविक चुनौतियों का समाधान भी करती है।

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मीडिया, विज्ञान और समाज के बीच सेतु का कार्य करता है

विज्ञान भारती के राष्ट्रीय आयोजन सचिव डॉ. शिव कुमार शर्मा ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा संचारक सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर सीएसआईआर-एनआईएससीएआईआर के पूर्व निदेशक डॉ. मनोज कुमार पटैरिया और सीएसआईआर-सीईसीआरआई के निदेशक डॉ. के. रमेश भी उपस्थित थे। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मीडिया सम्मेलन में अतिथियों ने रोजगार समाचार पत्रिका और विज्ञान भारत पत्रिका के अंकों का विमोचन किया। यह भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव 2024 का एक आयोजन है। देश के इस सबसे बड़े विज्ञान महोत्सव का आयोजन 30 नवंबर से 3 दिसंबर 2024 के दौरान असम के आईआईटी गुवाहाटी में किया जा रहा है।

मीडिया कॉन्क्लेव का परिचय देबोब्रत घोष ने दिया और इस आयोजन के दो दिनों के संक्षिप्त विवरण की जानकारी डॉ. राजीव सिंह द्वारा दी गई।

सीएसआईआर-केंद्रीय विद्युत-रासायनिक अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. के. रमेश ने अपने संबोधन में कहा कि आईआईएसएफ एक विज्ञान एक ऐसा महोत्सव है जिसे देश के लोगों के साथ मनाया जाता है। यह मीडिया शोध को लोगों तक पहुंचाने में सहायता करता है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध को अधिकतर इस कार्य से जुड़े व्‍यक्ति ही समझते हैं। आईआईएसएफ ने मीडिया से अनुरोध किया कि वह शोध को रचनात्मक तरीके से लोगों तक पहुंचाए, ताकि लोग शोध कार्य को समझ सकें। उन्‍होंने हर मीडियाकर्मी से अनुरोध किया कि वे इन शोधों को सकारात्‍मक रूप से लोगों तक पहुंचाए क्‍योंकि मीडिया ही इस कार्य को लोगों तक जोड़ने का माध्‍यम है।

सीएसआईआर-एनआईएससीएआईआर के पूर्व निदेशक डॉ. मनोज कुमार पटैरिया ने कहा कि विज्ञान विधि के रूप में कार्य करता है जिसमें जिज्ञासा, विश्लेषण, प्रयोग और सत्यापन शामिल है। यही बात मीडिया पर भी लागू होती है और इस तरह मीडिया और विज्ञान की प्रक्रिया समान ही है।

विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. शिवकुमार शर्मा ने कहा कि उन्‍हें यह अनुभव हुआ है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी अवधारणाओं को समझने और समझाने के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है। इस अंतर को पाटने के लिए, हमें जटिल विचारों को ऐसे सरल तरीके से संप्रेषित करने की आवश्यकता है जो सभी को समझ में आते हों। इसके लिए एक विचारशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है, हम क्या संप्रेषित करना चाहते हैं और इसे प्रभावी ढंग से कैसे करना है, इस बात पर विचार करते हुए कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को जनता के साथ साझा करने के लिए व्यवस्थित तरीके विकसित करके और मीडिया क्षमता का लाभ उठाते हुए हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी जागरूकता और समझ को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण प्रगति कर सकते हैं।

सम्मेलन में पूर्वोत्तर मीडिया में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रसार पर एक पैनल चर्चा भी शामिल थी। इसमें असम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. अरूप मिश्रा, मणिपुर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के निदेशक डॉ. मिनकेतन सिंह, असम विज्ञान प्रौद्योगिकी, पर्यावरण परिषद के निदेशक डॉ. जयदीप बरुआ और मिजोरम विज्ञान परिषद के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. डेवी तथा विज्ञान पत्रकार सुश्री गीताली सैकिया जैसे विशेषज्ञों ने भाग लिया।

आहारक्रांति पर डॉ. येलोजी राव मिराजकर का व्याख्यान:

भारत को खाद्य उत्पादन और उपभोग पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, ताकि संतुलित और स्वस्थ आहार सुनिश्चित किया जा सके जो देश के कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का समाधान निकालता हो। चरक आयुर्वेदिक आहार जैसी पारंपरिक आहार प्रथाओं को अपनाना और पाचन एवं पोषण के महत्व को समझाते हुए भारतीयों के लिए निदिृष्‍ट भोजन विकल्प बनाने और स्वस्थ जीवन जीने में सहायता प्रदान कर सकता है। अन्न और आहार के बीच केवल इतना अंतर है कि अन्न को हम मुख से मात्र उदरपूर्ति के साधन के रूप में ग्रहण करते हैं जबकि आहार में वह संपूर्ण पोषण शामिल है जिसका हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से आनंद लेते हैं।

इस सम्‍मेलन का समापन मीडिया में एसएंडटी कवरेज पर एक सत्र के साथ हुआ, जिसमें वैज्ञानिकों, मीडिया पेशेवरों और जनता के बीच वार्तालाप हुआ। इस अवसर पर डॉ. केजी सुरेश, पूर्व महानिदेशक, आईआईएमसी के साथ-साथ डॉ. मनोज पटैरिया, श्री डेकेन्द्र मेवाड़ी, डॉ. केएन पांडे, धृपल्लव बागला, श्री समीर गांगुली, श्री मारुफआलम और डॉ. वामसी कृष्णा जैसे विशेषज्ञों ने मीडिया के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने पर अपने विचार साझा किए।

मीडिया कॉन्क्लेव के दौरान आज विज्ञान आधारित फीचर फिल्म पर भी एक सत्र आयोजित किया गया।

कई विज्ञान संचारकों और छात्रों ने विशेषज्ञों के साथ संवाद किया। इसके परिणामस्वरूप एक उपयोगी प्रश्नोत्तर सत्र भी आयोजित किया गया जिसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मीडिया कॉन्क्लेव के उद्देश्यों की प्रभावी ढंग से प्रस्तुति की गई।

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कोटा में सुरंग के बाहर कट एंड कवर सेक्शन में बन रही मीडियन साइड वर्टिकल दीवार अचानक ढह गई

कोटा में सुरंग के बाहर कट एंड कवर सेक्शन में “8-लेन दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे (सुरंग) डीएमई पैकेज-15 के निर्माण” के तहत मीडियन साइड वर्टिकल दीवार अचानक ढह गई। स्वीकृत डिज़ाइन ड्राइंग के अनुसार दीवार को शॉटक्रीट और रॉक बोल्ट से सुरक्षित व स्थिर किया गया था। दुर्भाग्य से, दीवार ढहने के कारण एक टेलीहैंडलर ऑपरेटर सहित पांच मज़दूर दब गए। यह घटना सुदृढीकरण गतिविधियों के दौरान हुई, तथा यह देखा गया कि सभी मज़दूर आवश्यक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) यानी हेलमेट, गमबूट सुरक्षा जैकेट और अन्य से लैस थे।

बचाव कार्य तुरंत शुरू किया गया और मलबे में दबे चार मजदूरों को बचा लिया गया। दुर्भाग्य से, हरसंभव प्रयास के बावजूद, एक मजदूर को गंभीर चोटों की वजह से बचाया नहीं जा सका।

ठेकेदार मेसर्स दिलीप बिल्डकॉन लिमिटेड-मेसर्स एल्टिस-होल्डिंग कॉरपोरेशन (डीबीएल-एएचसी जेवी) पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है और मेसर्स हेक्सा कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम तथा मेसर्स नोकांग इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से अथॉरिटी इंजीनियर, मेसर्स आईसीटी के टीम लीडर को उनके स्तर पर सुरक्षा उपायों में चूक के लिए उक्त दुर्घटना होने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

डोमेन विशेषज्ञों की एक जांच टीम गठित की गई है जिसमें सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के डीजीआरडी (सेवानिवृत्त) श्री एस.के. निर्मल, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के  एडीजी (सेवानिवृत्त)  श्री ए. के. श्रीवास्तव और मेसर्स एलिगेंट इंजीनियरिंग के श्री आलोक पांडे शामिल है। समिति 02 दिसंबर 2024 को घटना के कारणों का पता लगाने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उपचारात्मक उपायों का पता लगाने के लिए साइट का दौरा करेगी।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक उपचारात्मक उपाय सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रहा है।

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सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) का विस्तार

एमएसएमई मंत्रालय 2008-09 से प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) नामक एक प्रमुख ऋण-सम्बद्ध सब्सिडी कार्यक्रम को कार्यान्वित कर रहा है, जिसमें खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) राष्ट्रीय स्तर पर नोडल एजेंसी है, ताकि गैर-कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना करके देश में उत्तराखंड सहित, रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकें।

पीएमईजीपी एक केंद्रीय योजना है, जो सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों को ग्रामीण क्षेत्रों में परियोजना लागत का 25% और शहरी क्षेत्रों में 15% मार्जिन मनी (एमएम) सब्सिडी के साथ सहायता प्रदान करती है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक, महिला, भूतपूर्व सैनिक, शारीरिक रूप से विकलांग, ट्रांसजेंडर, पूर्वोत्तर क्षेत्र, पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्रों और आकांक्षी जिलों से संबंधित जैसे विशेष श्रेणी के लाभार्थियों के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में मार्जिन मनी सब्सिडी 35% और शहरी क्षेत्रों में 25% है। विनिर्माण क्षेत्र में परियोजना की अधिकतम लागत 50 लाख रुपये और सेवा क्षेत्र में 20 लाख रुपये है।

2018-19 से, मौजूदा पीएमईजीपी/मुद्रा उद्यमों को भी पिछले अच्छे प्रदर्शन के आधार पर अपग्रेडेशन और विस्तार के लिए दूसरे ऋण के साथ समर्थन दिया जा रहा है। दूसरे ऋण के तहत, विनिर्माण क्षेत्र में मार्जिन मनी (एमएम) सब्सिडी के लिए स्वीकार्य अधिकतम परियोजना लागत 1.00 करोड़ रुपये है और सेवा क्षेत्र के लिए 25 लाख रुपये है। दूसरे ऋण पर सभी श्रेणियों के लिए सब्सिडी परियोजना लागत का 15% (एनईआर और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए 20%) है।

पीएमईजीपी एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, इसलिए राज्यवार बजट का कोई आवंटन नहीं किया जाता है। निधियों का उपयोग उत्पन्न मांग और वित्तीय संस्थानों द्वारा स्वीकृत ऋणों के आधार पर किया जाता है।

पीएमईजीपी के लिए पांच वित्तीय वर्षों (2021-22 से 2025-26) में 13,554.42 करोड़ रुपये के परिव्यय को मंजूरी दी गई है।

चालू वित्तीय वर्ष 2024-25 में उत्तराखंड राज्य में पीएमईजीपी के अंतर्गत 430 लाभार्थियों को 12.01 करोड़ रुपये की मार्जिन मनी सब्सिडी प्राप्त हुई है। उत्तराखंड राज्य में पीएमईजीपी के अंतर्गत 8.08 करोड़ रुपये की राशि के 77 सब्सिडी दावे लंबित हैं।

यह जानकारी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम राज्य मंत्री श्रीमती सुश्री शोभा करंदलाजे ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में कहा।

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संकट का सामना कर रहे एमएसएमई क्षेत्र की समीक्षा के लिए योजनाएं

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) देश भर में एमएसएमई क्षेत्र के विकास के लिए विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को क्रियान्वित करता है। इन योजनाओं/कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिए ऋण गारंटी योजना, सूक्ष्म एवं लघु उद्यम-क्लस्टर विकास कार्यक्रम, उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम, खरीद एवं विपणन सहायता योजना, एमएसएमई प्रदर्शन को उन्नत एवं तेज करना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग योजना, राष्ट्रीय एससी/एसटी हब, एमएसएमई चैंपियन आदि शामिल हैं।

सरकार सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों (एमएसई) के लिए ऋण गारंटी योजना (सीजीएस) लागू करती है, ताकि ऋण वितरण प्रणाली को मजबूत किया जा सके और बिना किसी संपार्श्विक और तीसरे पक्ष की गारंटी के झंझट के सूक्ष्म एवं लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रवाह की सुविधा प्रदान की जा सके। यह ऋण अधिकतम 500 लाख रुपये तक है। एमएसई के लिए सीजीएस के तहत सावधि ऋण और/या कार्यशील पूंजी सुविधाएं पात्र हैं।

केंद्रीय बजट 2024-25 में एमएसएमई के लिए वित्तपोषण, विनियामक परिवर्तन और प्रौद्योगिकी सहायता को कवर करने वाले पैकेज की घोषणा की गई है, ताकि उन्हें बढ़ने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिल सके, जैसा कि नीचे दिया गया है:

  • एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिए सहयोग;
  • विनिर्माण क्षेत्र में एमएसएमई के लिए ऋण गारंटी योजना;
  • एमएसएमई ऋण के लिए नया मूल्यांकन मॉडल;
  • तनाव की अवधि में एमएसएमई को ऋण सहायता;
  • मुद्रा ऋण की सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये की गई;
  • टीआरईडीएस में अनिवार्य ऑनबोर्डिंग के लिए दायरा बढ़ाया गया;
  • एमएसएमई क्लस्टरों में सिडबी शाखाएं;
  • खाद्य विकिरण, गुणवत्ता और सुरक्षा परीक्षण के लिए एमएसएमई इकाइयाँ;
  • ई-कॉमर्स निर्यात केन्द्र.

सरकार ने एमएसएमई को विपणन और खरीद सहायता प्रदान करने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। इनमें से कुछ उपाय इस प्रकार हैं:

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत सूक्ष्म और लघु उद्यम आदेश, 2012 के लिए सार्वजनिक खरीद नीति को कार्यान्वित करता है। नीति में केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों/केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा सूक्ष्म और लघु उद्यमों से 25% वार्षिक खरीद अनिवार्य की गई है, जिसमें एससी/एसटी उद्यमियों के स्वामित्व वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों से 4% और महिला उद्यमियों के स्वामित्व वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों से 3% खरीद शामिल है।
  • एमएसएमई मंत्रालय सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों की बाजार पहुंच बढ़ाने के लिए खरीद एवं विपणन सहायता योजना लागू करता है। यह योजना राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों/प्रदर्शनियों/एमएसएमई एक्सपो आदि में भागीदारी की सुविधा प्रदान करती है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय एमएसएमई को अपने उत्पादों के निर्यात और विदेशों में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों/मेलों/क्रेता-विक्रेता बैठकों में एमएसएमई की भागीदारी की सुविधा के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग योजना लागू करता है और भारत में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों/सेमिनारों/कार्यशालाओं का आयोजन करता है।
  • पहली बार निर्यात करने वालों (सीबीएफटीई) की क्षमता निर्माण के लिए, नए सूक्ष्म और लघु उद्यमों को, जो निर्यातक हैं, निर्यात संवर्धन परिषदों के साथ पंजीकरण सह-सदस्यता प्रमाणन (आरसीएमसी), निर्यात बीमा प्रीमियम और निर्यात के लिए परीक्षण एवं गुणवत्ता प्रमाणन पर हुए खर्च की प्रतिपूर्ति प्रदान की जाती है।

यह जानकारी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम राज्य मंत्री श्रीमती सुश्री शोभा करंदलाजे ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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एसएफआईओ ने इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण में लगी तीन कंपनियों पर तलाशी अभियान चलाया

गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय ( एसएफआईओ ) ने इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण में लगी तीन कंपनियों, हीरो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स प्राइवेट लिमिटेड, बेनलिंग इंडिया एनर्जी एंड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड और ओकिनावा ऑटोटेक इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड पर तलाशी अभियान चलाया है।

ये मामले भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय ( एमएचआई ) की फास्टर अडाप्शन एण्ड मन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल ( फेम ) II योजना के तहत तीनों कंपनियों द्वारा धोखाधड़ी से कुल मिलाकर 297 करोड़ रुपये की सब्सिडी का लाभ उठाने से उत्पन्न हुए हैं।

भारत में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2019 में फेम II योजना शुरू की गई थी। फेम-II योजना और चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम ( पीमपी ) दिशा-निर्देशों में, इस योजना के तहत सब्सिडी का पात्र होने के लिए वाहन के कुछ प्रमुख घटकों का भारत में विनिर्माण निर्धारित किया गया था। सब्सिडी का दावा करने के लिए तीनों कंपनियों ने एमएचआई को लागू दिशा-निर्देशों का भ्रामक अनुपालन दिखाया था, जिसे बाद में गलत और झूठा पाया गया।

एसएफआईओ द्वारा जांच करने पर पता चला कि पीएमपी दिशानिर्देशों के तहत कई प्रतिबंधित कलपुर्जों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चीन से आयात किया गया था, जिससे फेम-II के तहत पीएमपी दिशानिर्देशों का उल्लंघन हुआ।

तलाशी अभियान के दौरान डिजिटल डेटा, पुस्तकें और अन्य सामग्री जैसे साक्ष्य बरामद किए गए हैं।

आगे की जांच जारी है।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चंडीगढ़ में तीन नए आपराधिक कानूनों के सफल कार्यान्वयन को राष्ट्र को समर्पित करेंगे

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी 3 दिसंबर, 2024 को दोपहर 12 बजे चंडीगढ़ में तीन परिवर्तनकारी नए आपराधिक कानूनों- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के सफल कार्यान्वयन को राष्ट्र को समर्पित करेंगे।

तीनों कानूनों की अवधारणा प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण से प्रेरित थी। इसमें औपनिवेशिक काल के कानूनों को हटाने के बारे में विचार किया गया था, जो स्वतंत्रता के बाद भी अस्तित्व में रहे। साथ ही, दंड से न्याय पर ध्यान केंद्रित करके न्यायिक प्रणाली को बदलना भी था। इसे ध्यान में रखते हुए, इस कार्यक्रम का मूल विषय “सुरक्षित समाज, विकसित भारत – दंड से न्याय तक” है।

पूरे देश में 1 जुलाई, 2024 को नए आपराधिक कानून लागू किए गए। इन आपराधिक कानूनों का उद्देश्य भारत की न्याय व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, कुशल और समकालीन समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना है। ये ऐतिहासिक सुधार भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक हैं, जो साइबर अपराध, संगठित अपराध जैसी आधुनिक चुनौतियों से निपटने और विभिन्न अपराधों के पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए नए ढांचे लाते हैं।

कार्यक्रम में इन कानूनों के व्यावहारिक इस्तेमाल को प्रदर्शित किया जाएगा। इसमें यह भी दिखाया जाएगा कि कैसे वे पहले से ही आपराधिक न्याय परिदृश्य को नया आकार दे रहे हैं। एक लाइव प्रदर्शन भी आयोजित किया जाएगा, जिसमें अपराध स्थल की जांच का अनुसरण किया जाएगा और नए कानूनों को अमल में लाया जाएगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों के दौरान फिजिकल वैलेट सिस्टम शुरू करने की मांग वाली जनहित याचिका को किया खारिज।

कानपुर नगर, 26 नवम्बर (सू.वि.)* आज सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनावों में पेपर वैलेट सिस्टम को फिर से लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता डॉ. के.ए. पाल के ईवीएम से छेड़छाड़ के दावों को खारिज कर दिया, जिसमें उन नेताओं की असंगतता को उजागर किया गया, जो ईवीएम की विश्वसनीयता पर तभी सवाल उठाते हैं, जब वे चुनाव हार जाते हैं। याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने टिप्पणी की अगर आप चुनाव जीतते हैं तो ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं होती है। जब आप चुनाव हारते हैं, तो ईवीएम से छेड़छाड़ होती है। इस प्रकार अतंतोगत्वा न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पी.बी. वराले की पीठ ने याचिकाकर्ता डॉ. के.ए. पाल की दलीलों को खारिज करते हुए जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1750 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ अरुणाचल प्रदेश के शि योमी जिले में 186 मेगावाट की तातो-Iजलविद्युत परियोजना के निर्माण के लिए निवेश प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसे 50 महीने में पूरा किया जाना है

प्रधानमंत्री  मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने अरुणाचल प्रदेश के शि योमी जिले में तातो-I जलविद्युत परियोजना (एचईपी) के निर्माण के लिए 1750 करोड़ रुपये के निवेश को स्वीकृति दे दी है। परियोजना के पूरा होने का अनुमानित समय 50 महीने है।

186 मेगावाट (3 x 62 मेगावाट) की स्थापित क्षमता वाली यह परियोजना 802 मिलियन यूनिट (एमयू) ऊर्जा का उत्पादन करेगी। परियोजना से उत्पादित बिजली से अरुणाचल प्रदेश राज्य में बिजली आपूर्ति की स्थिति को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी और राष्ट्रीय ग्रिड भी संतुलित होगा।

परियोजना का क्रियान्वयन नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (नीपको) और अरुणाचल प्रदेश सरकार के बीच एक संयुक्त उद्यम कंपनी के माध्यम से किया जाएगा। भारत सरकार राज्य के इक्विटी शेयर के लिए 120.43 करोड़ रुपये की केंद्रीय वित्तीय सहायता के अलावा सक्षम बुनियादी ढांचे के तहत सड़कों, पुलों और संबंधित ट्रांसमिशन लाइन के निर्माण के लिए बजटीय सहायता के रूप में 77.37 करोड़ रुपये देगी।

इससे जहां राज्य को 12% मुफ्त बिजली और स्थानीय क्षेत्र विकास निधि (एलएडीएफ) से 1% का लाभ मिलेगा, वहीं क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में खासा सुधार और सामाजिक-आर्थिक विकास भी होगा।

परियोजना के लिए लगभग 10 किलोमीटर लंबी सड़कों और पुलों के विकास सहित बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण सुधार किया जाएगा, जो ज्यादातर स्थानीय उपयोग के लिए उपलब्ध होगा। जिले को अस्पताल, स्कूल, आईटीआई जैसे व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान, बाजार, खेल के मैदान जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण से भी लाभ होगा, जिन्हें 15 करोड़ रुपये के समर्पित परियोजना कोष से वित्तपोषित किया जाएगा। स्थानीय लोगों को कई तरह के मुआवजे, रोजगार और सीएसआर गतिविधियों से भी लाभ होगा।

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